उत्तराखंड में राज्य सहायता मिशन पर क्षेत्रीय कार्यशाला | उत्तराखंड | 04 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
नीति आयोग ने उत्तराखंड सशक्तीकरण एवं परिवर्तन संस्थान (सेतु) आयोग के सहयोग से देहरादून में राज्य सहायता मिशन (SSM) के अंतर्गत एक दिवसीय क्षेत्रीय कार्यशाला आयोजित की।
मुख्य बिंदु
- क्षेत्रीय कार्यशाला के बारे में:
- यह कार्यशाला राज्य सहायता मिशन (SSM) के अंतर्गत आयोजित शृंखला की पहली कार्यशाला थी, जिसका उद्देश्य राज्य परिवर्तन संस्थानों (SIT) के माध्यम से नीति आयोग तथा राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के बीच संरचित सहयोग को बढ़ावा देना था।
- कार्यशाला का उद्देश्य राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को एक साथ लाकर SSM पहल पर अनुभव साझा करना, सहकर्मी शिक्षा को बढ़ावा देना और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये सहयोग बढ़ाना था।
- इसमें राज्य के विकास को गति देने तथा राज्य के विज़न को आकार देने में SIT की भूमिका पर प्रकाश डाला गया।
- राज्य सहायता मिशन (SSM):
- इस मिशन के अंतर्गत, नीति आयोग राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों को क्षमता निर्माण तथा राज्य परिवर्तन संस्थानों (SIT) की स्थापना में सहायता प्रदान करता है।
- इसका उद्देश्य राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप वर्ष 2047 तक राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को उनके सामाजिक-आर्थिक विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करना है।
- इस मिशन को 2022-23 से 2024-25 की अवधि के लिये 237.5 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय के साथ मंजूरी प्रदान की गई है।
- मिशन के क्रियान्वयन हेतु नीति आयोग में एक राज्य आर्थिक एवं परिवर्तन इकाई (सेतु) का गठन किया गया है।
- संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी (मिशन निदेशक) की अध्यक्षता वाली इस इकाई में निदेशक, सहायक निदेशक, नवाचार प्रमुख तथा युवा पेशेवरों की एक टीम सम्मिलित है।
- SSM, सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के स्थानीयकरण प्रयासों को सुदृढ़ करने में सहायक सिद्ध होगा, जिससे बहुआयामी गरीबी को कम करने में मदद मिलेगी।

पीएम गतिशक्ति योजना के तहत रेलवे अवसंरचना परियोजनाएँ | मध्य प्रदेश | 04 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने पीएम गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के तहत मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में दो प्रमुख रेलवे बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को मंजूरी दी है, जिनकी संयुक्त अनुमानित लागत 3,399 करोड़ रुपए है।
मुख्य बिंदु
- रेलवे परियोजनाओं के बारे में:
- इन परियोजनाओं की कुल लंबाई लगभग 176 किमी. होगी, जो महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के चार ज़िलों में फैली होंगी।
- इनका कार्य वित्तीय वर्ष 2029-30 तक पूरा होना निर्धारित है।
- इन परियोजनाओं का उद्देश्य कनेक्टिविटी को बढ़ावा देना, यात्रियों और माल के आवागमन को सुचारू बनाना तथा क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा देना है।
- ये परियोजनाएँ "न्यू इंडिया" की परिकल्पना के अनुरूप हैं, जो क्षेत्रीय विकास को प्रोत्साहित करके और रोज़गार बढ़ाकर स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भर नाने का लक्ष्य रखती हैं।
- गाँवों और स्थानीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव:
- विस्तारित रेलवे क्षमता से 784 गाँवों को लाभ मिलने की उम्मीद है, जिससे लगभग 19.74 लाख लोगों की आबादी सीधे तौर पर प्रभावित होगी।
- ये गलियारे कोयला, सीमेंट, क्लिंकर, जिप्सम, फ्लाई ऐश, कंटेनर, कृषि उपज और पेट्रोलियम उत्पादों जैसी प्रमुख वस्तुओं के परिवहन के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- इस पहल से कुशल और अकुशल दोनों प्रकार के रोज़गार के अवसर सृजित होंगे जिससे ग्रामीण आजीविका में योगदान मिलेगा।
- माल ढुलाई क्षमता और आर्थिक लाभ:
- इन परियोजनाओं से प्रति वर्ष 18.40 मिलियन टन (MTPA) अतिरिक्त माल ढुलाई का भार संभालने का अनुमान है।
- उन्नत माल ढुलाई से आपूर्ति शृंखला को अनुकूलित करने, रसद लागत को कम करने और क्षेत्र में आर्थिक विकास को गति देने में मदद मिलेगी।
- पर्यावरणीय प्रभाव:
- नई रेल लाइनों से तेल आयात में 20 करोड़ लीटर की कमी आने की उम्मीद है।
- इससे CO₂ उत्सर्जन में भी 99 करोड़ किलोग्राम की कमी आएगी, जो 4 करोड़ पेड़ लगाने के बराबर है।
- यह टिकाऊ बुनियादी ढाँचे और कम कार्बन अर्थव्यवस्था के प्रति भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।
पीएम गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान
- परिचय:
- अक्तूबर 2021 में शुरू किया गया PM गतिशक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान 100 लाख करोड़ रुपए की एक परिवर्तनकारी पहल है, जिसका उद्देश्य अगले पाँच वर्षों में भारत के बुनियादी ढाँचे में क्रांतिकारी बदलाव लाना है।
- इसे BISAG-N (भास्कराचार्य राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुप्रयोग एवं भू-सूचना विज्ञान संस्थान) द्वारा डिजिटल मास्टर प्लानिंग टूल के रूप में विकसित किया गया है।
- इस योजना का उद्देश्य परियोजनाओं को तेज़ी से पूरा करना, समयसीमा को कम करना तथा अंतरमंत्रालयी बाधाओं को दूर करके भारत की वैश्विक स्पर्द्धा को बढ़ाना है।
- PM गतिशक्ति का विज़न एक विश्वस्तरीय बुनियादी ढाँचा विकसित करना है, जो जीवन को आसान बनाए, आर्थिक विकास को बढ़ावा दे और भारतीय व्यवसायों को अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाए।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- डिजिटल एकीकरण : इसे एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है, जिसे 16 मंत्रालयों के प्रयासों को एकीकृत करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, ताकि सभी क्षेत्रों में निर्बाध बुनियादी अवसंरचना परियोजना और कार्यान्वयन सुनिश्चित किया जा सके।
- बहु-क्षेत्रीय सहयोग : इसमें सागरमाला परियोजना, भारतमाला परियोजना,अंतर्देशीय जलमार्ग, शुष्क बंदरगाह और उड़ान सहित कई प्रमुख कार्यक्रमों से बुनियादी अवसंरचनात्मक पहलों को शामिल किया गया है।
- आर्थिक क्षेत्र : आर्थिक उत्पादकता को बढ़ावा देने के लिये टेक्सटाइल क्लस्टर, फार्मास्युटिकल हब, रक्षा गलियारे और कृषि क्षेत्र जैसे प्रमुख आर्थिक क्षेत्रों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: BiSAG-N द्वारा विकसित उन्नत स्थानिक नियोजन उपकरण और इसरो सैटेलाइट मानचित्रण, नियोजन और प्रबंधन के लिये डेटा-संचालित अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA)
- इसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं और यह सार्वजनिक क्षेत्र के निवेश के लिये प्राथमिकताएँ निर्धारित करती है।
- यह एक एकीकृत आर्थिक नीति ढाँचा विकसित करने के लिये आर्थिक प्रवृत्ति की निरंतर समीक्षा करती है तथा विदेशी निवेश सहित आर्थिक क्षेत्र में नीतियों एवं गतिविधियों की देखरेख करती है, जिसके लिये उच्च स्तरीय निर्णय लेने की आवश्यकता होती है।
पवित्र बुद्ध अवशेषों को श्रद्धांजलि | उत्तर प्रदेश | 04 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय संग्रहालय (नई दिल्ली) में एक श्रद्धा समारोह आयोजित किया गया जहाँ भक्तगण बुद्ध के पवित्र अवशेषों को अंतिम श्रद्धांजलि देने के लिये एकत्र हुए, इससे पहले कि वे उत्तर प्रदेश के सारनाथ में मूलगंध कुटी विहार मंदिर में पुनः प्रतिष्ठापित होने के लिये सारनाथ लौटें।
मुख्य बिंदु
- अवशेषों के बारे में:
- ये अवशेष उत्तर प्रदेश के सारनाथ स्थित मूलगंध कुटी विहार से संबंधित हैं, यह विहार महाबोधि सोसाइटी द्वारा संचालित है, जिसकी स्थापना अंगारिका धर्मपाल ने की थी।
- अवशेषों की खुदाई 1927–1931 के दौरान नागार्जुनकोंडा (आंध्र प्रदेश) में एच. लॉन्गहर्स्ट द्वारा की गई थी।
- इन अवशेषों को 27 दिसंबर, 1932 को राय बहादुर दयाराम साहनी ने भारत के वायसराय की ओर से महाबोधि सोसाइटी को सौंपा था।
- सारनाथ का आध्यात्मिक महत्त्व:
- सारनाथ को बौद्ध धर्म में, विशेषकर 21वीं सदी में, सर्वाधिक पूजनीय तीर्थ स्थलों में से एक माना जाता है।
- सारनाथ में ही गौतम बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के बाद अपना पहला उपदेश दिया था, जिसके बाद धर्मचक्र प्रवर्तन हुआ था।
- सारनाथ को संघ का जन्मस्थान भी माना जाता है- जो बुद्ध के शिष्यों और अनुयायियों का समुदाय है।
- ऐसा माना जाता है कि सम्राट अशोक ने बुद्ध के प्रथम उपदेश की स्मृति में 249 ईसा पूर्व में सारनाथ में धमेख स्तूप का निर्माण कराया था।
- 12वीं शताब्दी में राजा गोविंद चंद्र की पत्नी द्वारा सारनाथ में धर्म-चक्र-जिन विहार मठ का निर्माण कराया गया, जिससे इसकी आध्यात्मिक विरासत और भी समृद्ध हुई।
अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC)
- यह सबसे बड़ा धार्मिक बौद्ध संघ है।
- इस संघ का उद्देश्य वैश्विक मंच पर बौद्ध धर्म की भूमिका का निर्माण करना है, ताकि बौद्ध धर्म की विरासत को संरक्षित करने, ज्ञान साझा करने और मूल्यों को बढ़ावा देने में मदद मिल सके तथा वैश्विक वार्ता में सार्थक भागीदारी के साथ बौद्ध धर्म का संयुक्त प्रतिनिधित्व किया जा सके।
- नवंबर 2011 में नई दिल्ली में ‘वैश्विक बौद्ध मंडली’ (GBC) की मेज़बानी की गई थी, जहाँ उपस्थित लोगों ने सर्वसम्मति से एक अंतर्राष्ट्रीय अंब्रेला निकाय- अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध परिसंघ (IBC) के गठन के प्रस्ताव को अपनाया।
- मुख्यालय: दिल्ली (भारत)

पारसनाथ पहाड़ी | झारखंड | 04 Jun 2025
चर्चा में क्यों?
झारखंड उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को पारसनाथ पहाड़ी पर मांस, शराब और मादक पदार्थों की बिक्री तथा सेवन पर पहले से लागू प्रतिबंध को और सख्ती से लागू करने का निर्देश दिया है। पारसनाथ पहाड़ी जैन और संथाल आदिवासी समुदाय दोनों के लिये पवित्र स्थल है।
मुख्य बिंदु
- पारसनाथ पर्वत का महत्त्व:
- यह पर्वत जैनों द्वारा पारसनाथ तथा संथाल समुदाय द्वारा मरांग बुरू (अर्थात् “महान पर्वत”) के रूप में जाना जाता है।
- जैनियों के लिये: यह वह स्थान है जहाँ पार्श्वनाथ सहित 24 तीर्थंकरों में से 20 ने निर्वाण प्राप्त किया था। पहाड़ी पर अनेक जैन मंदिर और धाम स्थित हैं।
- संथालों के लिये: मरांग बुरू को सर्वोच्च प्राणवादी देवता और न्याय का आसन माना जाता है। पहाड़ी पर स्थित जुग जाहेर थान (पवित्र उपवन) संथालों का सबसे पवित्र धोरोम गढ़ (धार्मिक स्थल) है।
- लो बिर बैसी, जो कि संथाल समुदाय की पारंपरिक जनजातीय परिषद है, पर्वत की तलहटी में ग्रामों के बीच के विवादों को सुलझाने के लिये बैठक आयोजित करती है।
- वर्ष 1855 का संथाल हुल, जिसका नेतृत्व सिद्धू और कान्हू मुर्मू ने किया था, मरांग बुरू से ही शुरू हुआ एक महत्त्वपूर्ण जनजातीय विद्रोह था।
- पारसनाथ पहाड़ी विवाद:
- एक प्रमुख विवाद सेंदरा उत्सव को लेकर है, जो संथाल समुदाय द्वारा पहाड़ी पर आयोजित एक पारंपरिक अनुष्ठानिक शिकार है।
- यह प्रथा, जो संथाल लोगों के लिये एक संस्कार मानी जाती है, जैन समुदाय के अहिंसा और शाकाहार के मूल्यों के बिल्कुल विपरीत है, जिसके कारण संथालों और जैनियों के बीच कानूनी संघर्ष उत्पन्न हुआ।
- संथाल:
- संथाल जनजाति भारत की सबसे बड़ी आदिवासी समुदायों में से एक है, जो मुख्यतः झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा तथा असम में निवास करती है।
- वे संथाली भाषा बोलते हैं, जो संविधान की आठवीं अनुसूची में मान्यता प्राप्त है और जिसकी अपनी लिपि ओलचिकी है, जिसे पंडित रघुनाथ मुर्मू ने विकसित किया था।
- नृत्य (एनेज) और संगीत (सेरेंग) उनके उत्सवों तथा सामाजिक आयोजनों में सांस्कृतिक अभिव्यक्ति का मुख्य आधार हैं।