भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में परिवर्तन | 05 Jun 2025

यह एडिटोरियल 04/06/2025 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित What needs to be done to end plastic pollution पर आधारित है। इस लेख में भारत की सक्रिय प्लास्टिक अपशिष्ट नीतियों को उस वैश्विक प्रवृत्ति के परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया है जिसमें प्लास्टिक उपयोग तीव्र गति से बढ़ रहा है, किंतु यह भी दर्शाता है कि नीति के क्रियान्वयन में अब भी गंभीर अंतराल बने हुए हैं। यह लेख इस बात पर बल देता है कि वास्तविक पर्यावरणीय प्रभाव सुनिश्चित करने के लिये नीति और कार्यान्वयन के बीच सामंजस्य आवश्यक है, जिसे जीवन-चक्र आधारित तथा चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है।

प्रिलिम्स के लिये:

प्लास्टिक के प्रकार और उनके उपयोग, विश्व पर्यावरण दिवस, प्रोजेक्ट REPLAN, SDG 12, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, बहुस्तरीय प्लास्टिक, स्मार्ट सिटी मिशन, माइक्रोप्लास्टिक, इंडिया प्लास्टिक पैक्ट, स्वच्छ भारत मिशन 

मेन्स के लिये:

भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यढाँचे के तहत प्रमुख प्रावधान और संस्थागत तंत्र, भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यढाँचे की प्रभावशीलता को कम करने वाले कारक

जैसा कि विश्व पर्यावरण दिवस हमें पृथ्वी के प्रति हमारी सामूहिक ज़िम्मेदारी का स्मरण कराता है, वैश्विक स्तर पर प्लास्टिक की खपत इस वर्ष पाँच सौ मिलियन टन से अधिक होने की संभावना है—जो केवल 12 महीनों में ही 30% की वृद्धि दर्शाती है। भारत ने वर्ष 2024 तक अपने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों को अद्यतन करके प्रगतिशील विधायी कदम उठाए हैं, जो देश को कई देशों से आगे रखता है। हालाँकि, महत्त्वपूर्ण कार्यान्वयन चुनौतियाँ बनी हुई हैं, जिनमें अपर्याप्त संग्रह और पुनर्चक्रण अवसंरचना, व्यापक जागरूकता की कमी एवं अकुशल निपटान प्रथाएँ शामिल हैं, जिसके कारण प्लास्टिक का दहन और अनुपचारित निस्तारण कर दिया जाता है। भारत की वैश्विक सतत् विकास लक्ष्यों को प्रभावित करने की विशिष्ट स्थिति के लिये अत्यंत आवश्यक है कि वह चक्रीय सिद्धांतों पर आधारित जीवन-चक्र दृष्टिकोण को अपनाये तथा नीतिगत दृष्टिकोण एवं ज़मीनी कार्यान्वयन के बीच सेतु स्थापित करते हुए एक समग्र जनआंदोलन का निर्माण करे।

भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यढाँचे के अंतर्गत प्रमुख प्रावधान और संस्थागत तंत्र क्या हैं?

  • ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016: स्रोत पर अपशिष्ट पृथक्करण, निर्माता उत्तदायित्व और अपशिष्ट संग्रहण के लिये उपयोगकर्त्ता शुल्क पर ध्यान केंद्रित किया गया, जिससे वैज्ञानिक अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को सुनिश्चित किया जा सके।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016: प्लास्टिक उत्पादकों के लिये विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) की शुरुआत की गई, जिसके तहत प्लास्टिक कैरी बैग की मोटाई बढ़ाकर 50 माइक्रोन कर दी गई। इसके क्रियान्वयन में ग्रामीण क्षेत्रों सहित प्लास्टिक अपशिष्ट के पृथक्करण और उचित निपटान को अनिवार्य बनाया गया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2018: गैर-पुनर्चक्रणीय बहुस्तरीय प्लास्टिक (MLP) को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया और CPCB के तहत उत्पादकों के लिये पंजीकरण प्रणाली शुरू की गई, जिससे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में जवाबदेही बढ़ गई।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021: वर्ष 2022 तक एकल-उपयोग वाले प्लास्टिक (SUP) पर प्रतिबंध लगाया गया और प्लास्टिक बैग की मोटाई बढ़ाकर 120 माइक्रोन कर दी गई। पैकेजिंग अपशिष्ट के लिये EPR नियमों को सख्त किया गया, पुनर्चक्रण को बढ़ावा दिया गया और पुन: उपयोग के लिये डिज़ाइन तैयार किया गया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022: गैर-अनुपालन के लिये पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के साथ अनिवार्य पुनर्चक्रण और पुन: उपयोग लक्ष्य निर्धारित किया गया। प्लास्टिक रिकवरी और पुन: उपयोग के लिये एक चक्रीय अर्थव्यवस्था उपागम को बढ़ावा दिया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2024: निर्माताओं के लिये पंजीकरण, रिपोर्टिंग और प्रमाणन आवश्यकताओं को पुनःपरिभाषित किया गया। बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक के लिये प्रमाणन की शुरुआत की गई और उपभोक्ता-पूर्व प्लास्टिक अपशिष्ट की रिपोर्टिंग अनिवार्य की गई।
  • एकल-उपयोग प्लास्टिक के लिये राष्ट्रीय डैशबोर्ड: SUP पर एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू किया गया, साथ ही नागरिकों के लिये अवैध प्लास्टिक गतिविधियों की रिपोर्ट करने और अनुपालन की निगरानी करने के लिये एक शिकायत निवारण ऐप भी शुरू किया गया।
  • इंडिया प्लास्टिक पैक्ट: भारत का पहला प्लास्टिक समझौता, जिसका उद्देश्य मूल्य शृंखला में प्लास्टिक प्रयोग में कमी, पुनःउपयोग और पुनर्चक्रण करना है तथा पुनर्चक्रण को बढ़ावा देने की दिशा में हितधारकों को एक साथ लाना है।
  • प्रोजेक्ट REPLAN: खादी और ग्रामोद्योग आयोग ने REPLAN की शुरूआत की, जिसमें प्लास्टिक बैग के लिये संधारणीय विकल्प पेश किया गया, कपड़े के थैलों के माध्यम से प्लास्टिक के उपयोग को कम किया गया।

कौन-से कारक भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कार्यढाँचे की प्रभावशीलता को कमज़ोर कर रहे हैं?

  • अपशिष्ट संग्रहण और पुनर्चक्रण के लिये अपर्याप्त बुनियादी अवसंरचना: यद्यपि शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को 100% अपशिष्ट पृथक्करण और मटेरियल रिकवरी फैसिलिटीज़ (MRF) तक पहुँच सुनिश्चित करने का दायित्व सौंपा गया है, लेकिन अधिकांश बुनियादी अवसंरचना अपर्याप्त है या अकुशल तरीके से प्रबंधित है। 
    • परिणामस्वरूप, अनौपचारिक क्षेत्र 60% से अधिक प्लास्टिक रीसाइक्लिंग का प्रबंधन करता है, लेकिन औपचारिक प्रणालियों में मान्यता और एकीकरण का अभाव है।
    • हालिया आँकड़ों से पता चलता है कि भारत में प्रतिदिन मुक्त होने वाले प्लास्टिक अपशिष्ट (26,000 टन) का केवल 8-10% ही पुनर्चक्रित हो पाता है, शेष को या तो जला दिया जाता है या लैंडफिल और जलमार्गों में डाल दिया जाता है। 
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन कानूनों का कमज़ोर प्रवर्तन: यद्यपि भारत ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (PWM) नियम (2016) और उसके बाद के संशोधनों को लागू किया है, फिर भी इनका प्रवर्तन कमज़ोर बना हुआ है, विशेषकर स्थानीय स्तर पर। 
    • एकल-उपयोग प्लास्टिक (SUP) पर प्रतिबंध के नियमों का प्रायः उल्लंघन किया जाता है, तथा गैर-अनुपालन व्यापक रूप से होता है। 
    • उदाहरण के लिये, महाराष्ट्र में समुद्र तटों पर 80% से अधिक प्लास्टिक मलबे में अभी भी प्रतिबंधित SUP शामिल हैं, जो इन प्रतिबंधों को प्रभावी ढंग से लागू करने में विफलता को दर्शाता है।
      • उदाहरण के लिये, एकल-उपयोग प्लास्टिक पर देशव्यापी प्रतिबंध के बावजूद, 120 माइक्रोन से कम के कैरी बैग की बिक्री जारी है, आँकड़ों से पता चलता है कि वर्ष 2023 में 775,577 किलोग्राम प्रतिबंधित प्लास्टिक ज़ब्त किया गया, लेकिन व्यापक बाज़ार अभी भी यह व्याप्त है। 
  • प्लास्टिक के विकल्पों में अपर्याप्त विकल्प और नवाचार: हालाँकि भारत ने प्लास्टिक प्रयोग को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने का प्रयास किया है, लेकिन शोध से पता चलता है कि प्लास्टिक के विकल्पों का बाज़ार सीमित है तथा लागत प्रभावी एवं व्यापक रूप से उपलब्ध विकल्प बहुत कम हैं। 
    • मध्य प्रदेश में साल-पत्तों से बनी प्लेटें एक सफल विकल्प हैं, लेकिन ऐसे समाधान पूरे देश में उपलब्ध नहीं हैं। 
    • वैकल्पिक उद्योगों को प्रोत्साहित करने में विफलता का अर्थ है कि प्लास्टिक की खपत में वृद्धि जारी है तथा प्लास्टिक अपशिष्ट में वार्षिक रूप से केवल 9% की वृद्धि हो रही है।
  • खंडित विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रणाली: भारत में EPR प्रणाली, हालाँकि अग्रणी है, लेकिन कमज़ोर अनुपालन निगरानी और स्व-रिपोर्टिंग पर निर्भरता के कारण बहुत हद तक अकुशल है।
    • उत्पादकों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने द्वारा उत्पादित प्लास्टिक अपशिष्ट के बराबर मात्रा में प्लास्टिक एकत्र करें तथा उसका पुनर्चक्रण करें, लेकिन तृतीय पक्ष द्वारा ऑडिटिंग और डेटा पारदर्शिता के अभाव के कारण परिणाम निम्न स्तर पर पहुँच गए हैं।
    • हालिया रिपोर्टों से पता चलता है कि केवल कुछ उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों ने ही EPR लक्ष्यों का पालन किया है तथा 70% से अधिक पंजीकृत कंपनियाँ प्लास्टिक संग्रहण एवं पुनर्चक्रण लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रही हैं। 
  • जन जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन में कमी: व्यापक जन जागरूकता का अभाव भारत के प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन को कमज़ोर करने वाला एक अन्य महत्त्वपूर्ण कारक है। 
    • हालाँकि स्वच्छ भारत मिशन जैसे छिटपुट अभियान चलाए जा रहे हैं, लेकिन वे समुदायों को शामिल करने और दीर्घकालिक व्यवहार परिवर्तन को बढ़ावा देने में बहुत हद तक विफल रहे हैं।
    • प्लास्टिक पर राष्ट्रीय प्रतिबंध के बावजूद, क्षेत्र सर्वेक्षणों से पता चलता है कि वर्ष 2023 में प्लास्टिक प्रतिबंध के प्रति जनता का पालन केवल 50-60% था और प्लास्टिक के हानिकारक पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूकता भी कम थी। 
      • दिल्ली से प्राप्त आँकड़ों से पता चलता है कि प्रतिदिन 690 टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जो दर्शाता है कि साधारण जागरूकता अभियानों से उपभोक्ता की आदतों में बदलाव लाने में सीमित सफलता मिली है। 
  • शासन और नीति कार्यान्वयन में विखंडन: भारत का प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन स्थानीय नगर निकायों से लेकर राज्य और राष्ट्रीय एजेंसियों तक कई स्तरों पर विखंडित शासन से ग्रस्त है।
    • भारत के अपशिष्ट क्षेत्र की विविधतापूर्ण प्रकृति, जिसमें औपचारिक और अनौपचारिक दोनों तरह के हितधारक शामिल हैं, नीति कार्यान्वयन में भ्रम एवं विलंब का कारण बनती है।
    • उदाहरण के लिये, पुणे और छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर जैसी नगरपालिकाओं ने प्रगति की है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर समन्वय का प्रायः अभाव रहता है तथा स्थानीय निकाय केंद्रीय समर्थन के बिना रणनीतियों को लागू करने में असमर्थ रहते हैं। 
      • चूँकि 60% रीसाइक्लिंग का काम अनौपचारिक श्रमिकों द्वारा किया जाता है, इसलिये औपचारिक प्रणालियों से उनका अपवर्जन प्रभावशीलता में बाधा डालता है और शासन को जटिल बनाता है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण अवसंरचना: केवल बड़े पैमाने पर केंद्रीकृत अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों पर निर्भर रहने के बजाय, समुदाय या वार्ड स्तर पर मटेरियल रिकवरी फैसिलिटीज़ (MRF) जैसे विकेंद्रीकृत, स्थानीयकृत अवसंरचना के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
    • इन MRF को आधुनिक छंटाई तकनीकों जैसे AI-संचालित छंटाई मशीनों से लैस किया जाना चाहिये, जिससे प्लास्टिक को अन्य प्रकार के अपशिष्ट से पृथक् करना आसान हो जाएगा। 
    • इससे केवल परिवहन लागत कम होगी, बल्कि प्रसंस्करण में भी तेज़ी आएगी और पुनर्चक्रण दर भी बढ़ेगी।
  • सूक्ष्म पृथक्करण के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी में वृद्धि: स्थानीय अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ाने का एक महत्त्वपूर्ण तरीका समुदायों में सूक्ष्म स्तर पर पृथक्करण को बढ़ावा देना है।
    • इसमें घरों और स्थानीय व्यवसायों को अपशिष्ट को उत्पन्न होने के स्थान पर ही पृथक् करने के लिये प्रोत्साहित करना शामिल है, विशेष रूप से प्लास्टिक, खाद्य अपशिष्ट एवं गैर-पुनर्चक्रणीय पदार्थों को। 
    • स्थानीय अपशिष्ट संग्रहण प्रणालियों को प्रोत्साहित किया जा सकता है, इसके लिये उचित पृथक्करण का लगातार पालन करने वालों को पुरस्कार या मान्यता (इंदौर मॉडल) दी जा सकती है, जिससे प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के लिये समुदाय-संचालित दृष्टिकोण तैयार हो सकेगा।
  • प्रौद्योगिकी अंगीकरण के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी: रीसाइक्लिंग बुनियादी अवसंरचना में सुधार के लिये, सरकार को उन्नत छंटाई प्रौद्योगिकियों और अपशिष्ट-से-ऊर्जा संयंत्र प्रणालियों के विकास के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • सरकार प्लास्टिक अपशिष्ट को उच्च गुणवत्ता वाले 3D प्रिंटिंग फिलामेंट में परिवर्तित करने वाली सुविधाएँ विकसित करके 3D प्रिंटिंग के लिये कच्चे माल के रूप में प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग को प्रोत्साहित कर सकती है।
    • अपशिष्ट प्रबंधन क्षेत्र में स्वच्छ-तकनीक स्टार्टअप के लिये सरकारी प्रोत्साहन और सब्सिडी संधारणीय समाधानों में वृद्धि को बढ़ावा दे सकती है।
      • वर्ष 2016 में भारत सरकार ने सड़क निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग को अनिवार्य बनाने की घोषणा की थी, जिसके बाद से इस तकनीक का उपयोग करके 100,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का निर्माण किया गया है, जो सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 
  • व्यवसायों के लिये चक्रीय अर्थव्यवस्था-आधारित प्रोत्साहन: भारत उन व्यवसायों के लिये वित्तीय प्रोत्साहन की पेशकश करके एक चक्रीय अर्थव्यवस्था मॉडल को लागू कर सकता है जो पुनर्नवीनीकृत सामग्री का उपयोग करते हैं या पुन: प्रयोज्य पैकेजिंग का उत्पादन करते हैं। 
    • इसमें कर छूट, क्रेडिट या क्लोज़्ड-लूप उत्पादन प्रणाली के अंगीकरण के लिये अनुदान शामिल हो सकते हैं। 
    • व्यवसायों को 'क्रैडल-टू-क्रैडल' तक के दृष्टिकोण को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करने से संसाधन दक्षता सुनिश्चित होगी, जबकि संधारणीय प्लास्टिक उपयोग और अपशिष्ट में कमी की दिशा में उद्योग-व्यापी बदलाव को बढ़ावा मिलेगा।
  • राष्ट्रीय प्लास्टिक अपशिष्ट जागरूकता और शिक्षा अभियान: प्लास्टिक के पर्यावरणीय प्रभावों और अपशिष्ट पृथक्करण के महत्त्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये, शहरी एवं ग्रामीण दोनों आबादी को लक्षित करते हुए व्यापक राष्ट्रव्यापी शिक्षा अभियान शुरू किये जाने चाहिये।
    • इन अभियानों को व्यवहार परिवर्तन पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये, जिसमें संधारणीय उपभोग और जिम्मेदार निपटान प्रथाओं के महत्त्व को शामिल किया जाना चाहिये। स्कूल-आधारित कार्यक्रम भी कम उम्र में अपशिष्ट प्रबंधन की संस्कृति उत्पन्न कर सकते हैं।
  • प्लास्टिक के विकल्पों के लिये विनियमित बाज़ार: भारत को पादप-आधारित बायोप्लास्टिक्स और कंपोस्टेबल पैकेजिंग जैसी सामग्रियों के उत्पादन को प्रोत्साहित करके प्लास्टिक के विकल्पों के लिये एक विनियमित बाजार के विकास की सुविधा प्रदान करनी चाहिये। 
    • बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक विकल्पों के अनुसंधान और विकास पर केंद्रित नवाचार केंद्र या इनक्यूबेटर स्थापित किया जाना चाहिये।
      • ये केंद्र वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और उद्यमियों को एक साथ लाकर नई सामग्रियों की खोज़ कर सकते हैं, जैसे कि पादप-आधारित प्लास्टिक या समुद्री शैवाल या मशरूम से बने प्लास्टिक जैसे पदार्थ, जो पर्यावरण में विघटित हो सकते हैं।
  • प्रौद्योगिकी के माध्यम से प्लास्टिक प्रतिबंधों का सशक्त प्रवर्तन: प्रवर्तन के लिये अधिक तकनीक-संचालित दृष्टिकोण अपनाया जाना चाहिये, जिसमें वास्तविक काल में प्लास्टिक के उपयोग और बिक्री पर नज़र रखने के लिये डेटा एनालिटिक्स और AI-संचालित निगरानी का उपयोग शामिल है।
    • नागरिकों के लिये अवैध प्लास्टिक गतिविधियों की रिपोर्ट करने हेतु मोबाइल ऐप विकसित किये जा सकते हैं तथा नियामकों और जनता को जोड़ने वाले एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से दंड का प्रावधान किया जा सकता है।
      • इससे निगरानी बढ़ेगी और उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित होगी।
  • कचरा बीनने वालों को औपचारिक प्रणालियों में शामिल करना: कचरा बीनने वालों को, जो वर्तमान में रीसाइक्लिंग में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, औपचारिक रूप से अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली में शामिल किया जाना चाहिये। 
    • इसमें उन्हें कानूनी मान्यता, स्वास्थ्य लाभ और उचित वेतन संरचना प्रदान करना शामिल है। 
    • अनौपचारिक क्षेत्र को सशक्त बनाकर और उन्हें औपचारिक रीसाइक्लिंग शृंखलाओं में एकीकृत करके, भारत संग्रहण दक्षता में उल्लेखनीय सुधार कर सकता है तथा पर्यावरण में प्लास्टिक उत्सर्जन/रिसाव को कम कर सकता है।
  • प्लास्टिक ऑफसेट कार्यक्रमों के लिये प्लास्टिक क्रेडिट का कार्यान्वयन: भारत प्लास्टिक क्रेडिट प्रणाली शुरू करने के लिये प्रयास शुरू कर सकता है, जिससे व्यवसायों को सत्यापित प्लास्टिक रिकवरी और रीसाइक्लिंग कार्यक्रमों से क्रेडिट खरीदकर अपने प्लास्टिक फूटप्रिंट को ऑफसेट करने में सहायता मिल सके। 
    • इससे कंपनियों को प्लास्टिक अपशिष्ट पुनर्प्राप्ति में निवेश करने तथा नवीन अपशिष्ट प्रबंधन पहलों को समर्थन देने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा। 
    • प्लास्टिक क्रेडिट की शुरूआत से प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने में निजी क्षेत्र की भागीदारी को भी बढ़ावा मिल सकता है।
  • लघु एवं मध्यम उद्यमों (SME) के लिये प्लास्टिक अपशिष्ट विनियमन को सख्त करना: लघु और मध्यम उद्यमों (SME) को प्लास्टिक के उपयोग से स्थायी विकल्पों की ओर बढ़ने में मदद करने के लिये एक केंद्रित प्रयास होना चाहिये। सरकारी कार्यक्रम इन व्यवसायों को सब्सिडी, प्रशिक्षण और प्रौद्योगिकी सहायता प्रदान कर सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे अपने संचालन से समझौता किए बिना पर्यावरण के अनुकूल प्रथाओं को अपनाते हैं।
    • SME के लिये प्लास्टिक अपशिष्ट विनियमों के अनुपालन की प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने से राष्ट्रीय प्लास्टिक न्यूनीकरण लक्ष्यों में उनकी भागीदारी को सुगम बनाया जा सकेगा।

निष्कर्ष: 

विकेंद्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण को लागू करना और सूक्ष्म पृथक्करण के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देना SDG 12: जिम्मेदार उपभोग और उत्पादन को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण है। नवाचार के लिये सार्वजनिक-निजी भागीदारी को प्रोत्साहित करना और चक्रीय अर्थव्यवस्था-आधारित प्रोत्साहन स्थापित करना भारत के संधारणीय प्लास्टिक प्रबंधन में बदलाव को गति दे सकता है। ये प्रयास भारत के अपशिष्ट को कम करने, पुनर्चक्रण को बढ़ाने और पर्यावरणीय संवहनीयता को बढ़ावा देने के लक्ष्यों के अनुरूप हैं।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

प्रश्न. भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन में चुनौतियों का परीक्षण कीजिये। इन चुनौतियों का समाधान करने और संवहनीयता को बढ़ावा देने के लिये भारत एक चक्रीय अर्थव्यवस्था दृष्टिकोण को प्रभावी ढंग से किस प्रकार लागू कर सकता है?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न 1. भारत में निम्नलिखित में से किसमें एक महत्त्वपूर्ण विशेषता के रूप में ‘विस्तारित उत्पादक दायित्व’ आरंभ किया गया था?   (2019)

(a) जैव चिकित्सा अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 1998
(b) पुनर्चक्रित प्लास्टिक (निर्माण और उपयोग) नियम, 1999
(c) ई-अपशिष्ट (प्रबंधन और हस्तन) नियम, 2011
(d) खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011

उत्तर: (c)

प्रश्न 2. पर्यावरण में निर्मुक्त हो जाने वाली ‘सूक्ष्ममणिकाओं (माइक्रोबीड्स)’ के विषय में अत्यधिक चिंता क्यों है?    (2019)

(a) ये समुद्री पारितंत्रों के लिये हानिकारक मानी जाती हैं।
(b) ये बच्चों में त्वचा कैंसर होने का कारण मानी जाती हैं।
(c) ये इतनी छोटी होती हैं कि सिंचित क्षेत्रों में फसल पादपों द्वारा अवशोषित हो जाती हैं।
(d) अक्सर इनका इस्तेमाल खाद्य-पदार्थों में मिलावट के लिये किया जाता है।

उत्तर: (a)

प्रश्न 3. राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एन.जी.टी.) किस प्रकार केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) से भिन्न है?  (2018)

  1. एन.जी.टी. का गठन एक अधिनियम द्वारा किया गया है जबकि सी.पी.सी.बी. का गठन सरकार के कार्यपालक आदेश से किया गया है। 
  2. एन.जी.टी. पर्यावरणीय न्याय उपलब्ध कराता है और उच्चतर न्यायालयाें में मुकदमाें के भार को कम करने में सहायता करता है जबकि सी.पी.सी.बी. झरनाें और कुँओं की सफाई को प्रोत्साहित करता है, तथा देश में वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने का लक्ष्य रखता है। 

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a)    केवल 1   
(b)    केवल 2
(c)    1 और 2 दोनों   
(d)    न तो 1, न ही 2

उत्तर: (b)



मेन्स  
प्रश्न 1. निरंतर उत्पन्न किये जा रहे फेंके गए ठोस कचरे की विशाल मात्राओं का निस्तारण करने में क्या-क्या बाधाएँ हैं? हम अपने रहने योग्य परिवेश में जमा होते जा रहे जहरीले अपशिष्टों को सुरक्षित रूप से किस प्रकार हटा सकते हैं?   (2018)