भारत का आर्थिक दृष्टिकोण | 20 Oct 2023

यह एडिटोरियल 17/10/2023 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “India’s economy, on the upswing” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई कि पश्चिम एशिया में संघर्ष के बावजूद भारत चार कारकों—लगभग सामान्य मानसून, पूंजीगत व्यय पर सरकार के बल देने, विश्वसनीय उधारी में वृद्धि और नई कंपनियों के पंजीकरण की सुदृढ़ स्थिति—के आधार पर अनुमान से अधिक तेज़ गति से विकास करने की संभावना रखता है।

प्रिलिम्स के लिये:

जीडीपी डिफ्लेटर, सांकेतिक जीडीपी, मानसून, अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों, प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि, जन धन योजना, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना (PLI), चरणबद्ध विनिर्माण कार्यक्रम (PMP)

मेन्स के लिये:

भारत की जीडीपी वृद्धि, आर्थिक वृद्धि को गति देने वाले कारक, जीडीपी वृद्धि को मज़बूत और सतत् बनाने हेतु उठाए जा सकने वाले कदम

हाल की रिपोर्टों के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने वर्ष 2023-24 के लिये भारत की जीडीपी वृद्धि का पूर्वानुमान बढ़ाकर 6.3% कर दिया है, जो अप्रैल में इसके पूर्व के अनुमान से 40 आधार अंक अधिक है। हालाँकि, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने अपना अनुमान 6.5% पर अपरिवर्तित बनाये रखा है। पश्चिम एशिया में हालिया भू-राजनीतिक तनाव के बावजूद ऐसा माना जा रहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अभी भी अनुमान से अधिक तेज़ गति से विकास कर सकती है। पूरे वर्ष के लिये विकास अनुमान लगभग 6.7% रहने की उम्मीद है।

RBI के विकास अनुमानों को पार करने की क्या संभावना है?

  • जबकि RBI ने 6.5% की वृद्धि का अनुमान किया है, नवीनतम प्रमुख संकेतकों पर नज़र डालें तो प्रकट होता है कि अर्थव्यवस्था के इससे अधिक तेज़ गति से विकास करने की संभावना है।
  • दीर्घकालिक रुझानों से पता चलता है कि जब भी किसी तिमाही में तेज़ी दिखाने वाले प्रमुख संकेतकों का प्रतिशत 70% की सीमा को पार कर जाता है, तब जीडीपी वृद्धि का प्रतिशत आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाता है।
    • वर्तमान में यह 80% के स्तर पर है, जिससे वित्त वर्ष 2014 की दूसरी तिमाही में विकास दर 6.5% से अधिक होने की संभावना बढ़ गई है।
  • सांकेतिक जीडीपी वृद्धि 8-8.5% की सीमा में हो सकती है और चूँकि जीडीपी डिफ्लेटरवर्तमान में 1.5-2% के स्तर पर है, 6.5% या उससे अधिक की वृद्धि प्राप्त करने योग्य प्रतीत होती है।

आर्थिक आशावाद को प्रेरित करने वाले प्रमुख कारक कौन-से हैं?

  • मानसून: मानसून के मौसम के दौरान कुल वर्षा उम्मीद से 6% कम रही (अगस्त में 36% कम वर्षा के कारण), लेकिन इनका स्थानिक वितरण व्यापक रूप से समान रहा। 36 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में से 29 में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश हुई।
    • SBI मानसून प्रभाव सूचकांक—जो स्थानिक वितरण पर विचार करता है, का मूल्य 89.5 रहा, जो वर्ष 2022 में पूर्ण मौसम सूचकांक मूल्य 60.2 से व्यापक रूप से बेहतर है।
  • पूंजीगत व्यय पर निरंतर बल: चालू वर्ष (2023) के पहले पाँच माह के दौरान, बजटीय लक्ष्य के प्रतिशत के रूप में राज्यों का पूंजीगत व्यय 25% रहा, जबकि केंद्र के लिये यह 37% था।
    • लगभग सभी राज्य जैसे व्यय करने की होड़ में हैं, जिसमें आंध्र प्रदेश सबसे आगे है, जो बजट राशि का 51% तक व्यय कर रहा है।
  • ई कंपनियों का पंजीकरण: नई कंपनियों का सुदृढ़ पंजीकरण मज़बूत विकास इरादों को दर्शाता है। वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में लगभग 93,000 कंपनियाँ पंजीकृत हुईं, जबकि पाँच वर्ष यह संख्या 59,000 रही थी।
    • यह देखना दिलचस्प है कि नई कंपनियों का औसत दैनिक पंजीकरण वर्ष 2018-19 में 395 से बढ़कर वर्ष 2023-24 में 622 (58% की वृद्धि के साथ) हो गया।
  • क्रेडिट वृद्धि: सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों (ASCB) की क्रेडिट वृद्धि (वर्ष-दर-वर्ष) वर्ष 2022 की शुरुआत से गति पकड़ रही है। सितंबर माह तक कुल जमा में 13.2% और क्रेडिट में 20% की वृद्धि दर्ज की गई। उम्मीद है कि आने वाले माहों में त्योहारी मौसम के कारण क्रेडिट मांग मज़बूत बनी रहेगी।

बैंकिंग क्षेत्र में क्रेडिट वृद्धि के पीछे कौन-से कारण हैं?

  • क्रेडिट में उल्लेखनीय वृद्धि: मार्च में समाप्त हुए नौ वर्ष की अवधि में, भारत में बैंकों (ASCB) की परिसंपत्ति और देनदारी, दोनों में 186 लाख करोड़ रुपए की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है ।
    • पिछले दशक की तुलना में यह वृद्धि उल्लेखनीय रूप से उच्च रही जहाँ 119 लाख करोड़ रुपए का वृद्धिशील विकास देखा गया।
    • यदि यह रुझान वर्ष 2023-24 में जारी रहता है तो चालू दशक के लिये कुल वृद्धि 225 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच सकती है, जो पिछले दशक से 1.9 गुना अधिक वृद्धि को दर्ज करेगी।
  • अर्थव्यवस्था का औपचारिकरण: क्रेडिट में वृद्धि का श्रेय पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था के औपचारिकरण को दिया जाता है। कोई क्रेडिट इतिहास नहीं रखने वाले लोग भी तेज़ी से बैंकिंग प्रणाली के साथ एकीकृत हो रहे हैं।
    • पिछले नौ वर्षों में शामिल हुए नए क्रेडिट खातों में से लगभग 40% ऐसे व्यक्तियों के हैं जिनका कोई पूर्व क्रेडिट इतिहास नहीं था।
      • यह समूह वृद्धिशील क्रेडिट वृद्धि में कम से कम 10% का योगदान देता है।
  • सरकारी पहलें: प्रधानमंत्री स्ट्रीट वेंडर आत्मनिर्भर निधि (पीएम स्वनिधि) और प्रधानमंत्री जन धन योजना जैसे कार्यक्रमों ने उन परिवारों तक वित्तीय पहुँच बढ़ाने में भूमिका निभाई है जो पहले औपचारिक बैंकिंग क्षेत्र से बाहर थे।
    • इस तरह के परिवारों की आकांक्षाओं के साथ ये पहलें निरंतर क्रेडिट वृद्धि में योगदान दे रही हैं।

इस वृद्धि को और अधिक ठोस एवं संवहनीय बनाने के लिये कौन-से कदम उठाये जा सकते हैं?

  • जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाना: भारत में एक बड़ी और युवा आबादी मौजूद है जो अर्थव्यवस्था के लिये एक विशाल संभावित कार्यबल प्रदान कर सकती है। हालाँकि, इसके लिये पर्याप्त रोज़गार सृजन करने, शिक्षा एवं कौशल की गुणवत्ता में सुधार करने और श्रम बल भागीदारी बढ़ाने (विशेषकर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने) की भी आवश्यकता है।
  • निजी निवेश को बढ़ावा देना: निजी निवेश आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक है, क्योंकि यह उत्पादकता, नवाचार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाता है। सरकार ने कारोबार सुगमता को बेहतर बनाने, कॉर्पोरेट टैक्स को कम करने, क्रेडिट गारंटी प्रदान करने और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को आकर्षित करने के लिये कई पहलें की हैं।
  • हालाँकि, भारत में व्यापार करने की लागत और जोखिम को कम करने के लिये भूमि, श्रम एवं लॉजिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में और अधिक सुधारों की आवश्यकता है।
  • प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाना: भारत को अपने निर्यात में विविधता लाकर, अपने बुनियादी ढाँचे में सुधार कर, नवाचार एवं डिजिटलीकरण को बढ़ावा देकर और क्षेत्रीय एवं वैश्विक मूल्य शृंखलाओं के साथ एकीकरण कर वैश्विक बाज़ार में अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने की ज़रूरत है।
  • हरित विकास को बढ़ावा देना: भारत अपने जलवायु परिवर्तन लक्ष्यों के एक अंग के रूप में अपनी कार्बन तीव्रता को कम करने और अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को बढ़ाने की प्रतिबद्धता प्रकट की है। सरकार ने हरित अवसंरचना परियोजनाओं को वित्तपोषित करने के लिये ‘ग्रीन बॉण्ड’ भी पेश किया है।
    • हालाँकि वायु प्रदूषण, जल की कमी, अपशिष्ट प्रबंधन और जैव विविधता हानि जैसी पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के लिये और अधिक प्रयासों की आवश्यकता है, क्योंकि ये भारत के विकास और कल्याण के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं।
  • अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनाए रखना: भारत एक स्थिर एवं निम्न मुद्रास्फीति दर बनाए रख सकता है, जो आत्मविश्वास और निवेश को बढ़ावा दे सकता है। भारत उत्पादक क्षेत्रों, विशेषकर लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये पर्याप्त तरलता और ऋण उपलब्धता भी सुनिश्चित कर सकता है। भारत बचत और निवेश को सुविधाजनक बनाने के लिये अपने वित्तीय बाज़ार और संस्थान भी विकसित कर सकता है।
  • वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ एकीकरण बढ़ाना: भारत व्यापार बाधाओं को कम कर, अपनी निर्यात टोकरी में विविधता लाकर और अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाकर वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ अपना एकीकरण बढ़ा सकता है। भारत क्षेत्रीय और द्विपक्षीय व्यापार समझौते भी संपन्न कर सकता है जो उसके उत्पादों और सेवाओं के लिये नए बाज़ार एवं अवसर सृजित कर सकते हैं।
  • प्रमुख क्षेत्रों को बढ़ावा देना: भारत उन प्रमुख क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा दे सकता है जिनमें विकास, रोज़गार सृजन और नवाचार की उच्च क्षमता है, जैसे विनिर्माण क्षेत्र, विभिन्न सेवाएँ, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा।

निष्कर्ष

वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये भारत की आर्थिक संभावनाएँ आशाजनक हैं। अनुकूल मानसून पैटर्न, पूंजीगत व्यय की वृद्धि, नई कंपनियों के पंजीकरण की सुदृढ़ स्थिति और निरंतर क्रेडिट वृद्धि सहित विभिन्न कारक इस सकारात्मक दृष्टिकोण में योगदान कर रहे हैं। इसके अलावा, विभिन्न सरकारी पहलों ने अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाने में भूमिका निभाई है और अभी तक वंचित रहे वर्गों तक वित्तीय पहुँच का विस्तार किया है। भारतीय अर्थव्यवस्था की निरंतर सुदृढ़ एवं संवहनीय वृद्धि सुनिश्चित करने के लिये राजकोषीय, मौद्रिक, व्यापार, औद्योगिक और संस्थागत नीतियों को शामिल करने वाले एक रणनीतिक दृष्टिकोण का विकास करना महत्त्वपूर्ण है। यह व्यापक रणनीति भारत की विशाल आर्थिक क्षमता को आगे और उजागर कर सकती है तथा समृद्धि की दिशा में इसकी यात्रा का समर्थन कर सकती है।

अभ्यास प्रश्न: वित्तीय वर्ष 2023-24 के लिये भारत के आशावादी आर्थिक दृष्टिकोण में योगदान देने वाले प्रमुख कारकों की चर्चा कीजिये। देश की आर्थिक वृद्धि एवं संवहनीयता को आगे और बढ़ाने में सरकार की नीतियाँ और विभिन्न पहलें किस प्रकार योगदान कर सकती हैं?

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निरपेक्ष तथा प्रति व्यक्ति वास्तविक GNP में वृद्धि आर्थिक विकास की ऊँची स्तर का संकेत नहीं करती, यदि: (2018)

(a) औद्योगिक उत्पादन कृषि उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(b) कृषि उत्पादन औद्योगिक उत्पादन के साथ-साथ बढ़ने में विफल रह जाता है।
(c) निर्धनता और बेरोज़गारी में वृद्धि होती है।
(d) निर्यात की अपेक्षा आयात तेज़ी से बढ़ता है।

उत्तर: (c)


प्रश्न. किसी दिये गए वर्ष में भारत के कुछ राज्यों में आधिकारिक गरीबी रेखाएँ अन्य राज्यों की तुलना में उच्चतर हैं क्योंकि: (2019)

(a) गरीबी की दर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।
(b) कीमत- स्तर अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(c) सकल राज्य उत्पाद अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है।
(d) सार्वजनिक वितरण की गुणवत्ता अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है।

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. संभाव्य सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) को परिभाषित कीजिये और उसके निर्धारकों की व्याख्या कीजिये। वे कौन से कारक हैं जो भारत को अपनी संभाव्य जी.डी.पी. को साकार करने से रोकते हैं? (2020)

प्रश्न. भारत की सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.) के वर्ष 2015 के पूर्व तथा वर्ष 2015 के बाद परिकलन विधि में अंतर की व्याख्या कीजिये। (2021)