भारत में बागवानी क्षेत्र | 24 Feb 2024

प्रिलिम्स के लिये:

उद्यान कृषि, पोमोलॉजी, ओलेरीकल्चर, आर्बोरीकल्चर, आभूषणात्मक, पुष्पों की खेती, लैंडस्केप, बागवानी, एकीकृत बागवानी विकास मिशन, हरित क्रांति - कृष्णोन्नति योजना, राष्ट्रीय बागवानी मिशन, उत्तर पूर्व और हिमालयी राज्यों के लिये बागवानी मिशन, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड, केंद्रीय बागवानी संस्थान, भारत डिजिटल कृषि पारिस्थितिकी तंत्र (IDEA), बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB), कृषि अवसंरचना कोष, बीज प्रौद्योगिकी

मेन्स के लिये:

बागवानी और अर्थव्यवस्था में इसका योगदान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में भारत में आहार संबंधी प्राथमिकताओं में महत्त्वपूर्ण बदलाव देखा गया है जिसमें कैलोरी सेवन के साथ-साथ पोषण आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है।

  • जनसंख्या में वृद्धि के साथ बदलती आहार संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप उद्यान कृषि/बागवानी कृषि (Horticulture) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

उद्यान कृषि क्या है?

  • उद्यान कृषि (Horticulture), कृषि की वह शाखा है जो खाद्यान्न, औषधीय प्रयोजनों और शृंगारिक महत्त्व के लिये मनुष्यों द्वारा प्रत्यक्ष रूप से उपयोग किये जाने वाले सघन रूप से संवर्द्धित पौधों से संबंधित है।
  • यह सब्ज़ियों, फलों, फूलों, जड़ी-बूटियों, आभूषणात्मक अथवा विदेशी पौधों की कृषि, उत्पादन और बिक्री है।
  • हॉर्टिकल्चर शब्द लैटिन शब्द Hortus (उद्यान) और Cultūra (कृषि) से मिलकर बना है।
  • एल.एच.बेली को अमेरिकी उद्यान कृषि का जनक माना जाता है और एम.एच.मैरीगौड़ा को भारतीय उद्यान कृषि का जनक माना जाता है।
  • वर्गीकरण: 
    • पोमोलॉजी (Pomology): फल और अखरोट की फसल का रोपण, कटाई, भंडारण, प्रसंस्करण और विपणन।
    • ओलरीकल्चर (Olericulture): सब्ज़ियों का उत्पादन और विपणन।
    • आर्बोरिकल्चर (Arboriculture): अलग-अलग पेड़ों, झाड़ियों या अन्य बारहमासी लकड़ी के पौधों का अध्ययन, चयन और देखभाल।
    • सजावटी बागवानी: इसके दो उपभाग हैं:
      • फ्लोरीकल्चर (Floriculture): फूलों की कृषि, उपयोग एवं विपणन।
      • लैंडस्केप बागवानी (Landscaping): बाह्य वातावरण को सुशोभित करने वाले पौधों का उत्पादन एवं विपणन।

भारत में बागवानी क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • भारत फलों और सब्ज़ियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • भारतीय बागवानी क्षेत्र कृषि सकल मूल्य वर्धित ( Gross Value Added - GVA) में लगभग 33% योगदान देता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • भारत वर्तमान में खाद्यान्नों की तुलना में अधिक बागवानी उत्पादों का उत्पादन कर रहा है, जिसमें 25.66 मिलियन हेक्टेयर बागवानी से 320.48 मिलियन टन और बहुत छोटे क्षेत्रों से 127.6 मिलियन हेक्टेयर खाद्यान्न का उत्पादन होता है।
  • बागवानी फसलों की उत्पादकता खाद्यान्नों की उत्पादकता (2.23 टन/हेक्टेयर के मुकाबले 12.49 टन/हेक्टेयर) की तुलना में बहुत अधिक है।
  • वर्ष 2004-05 से वर्ष 2021-22 के बीच बागवानी फसलों की उत्पादकता में लगभग 38.5% की वृद्धि हुई है।
  • खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, भारत कुछ सब्ज़ियों (अदरक तथा भिंडी) के साथ-साथ फलों (केला, आम तथा पपीता) के उत्पादन में अग्रणी है।
  • निर्यात के मामले में भारत सब्ज़ियों में 14वें और फलों में 23वें स्थान पर है, और वैश्विक बागवानी बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी मात्र 1% है।
    • भारत में लगभग 15-20% फल और सब्ज़ियाँ आपूर्ति शृंखला या उपभोक्ता स्तर पर बर्बाद हो जाती हैं, जो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (GHG) में योगदान करती हैं।

भारत में बागवानी क्षेत्र के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • जलवायु परिवर्तन सुभेद्यता:
    • अनियमित मौसम प्रणाली: तापमान, वर्षा एवं अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं में बदलाव बागवानी फसलों के लिये एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है, जिससे उत्पादकता कम हो जाती है और फसल को हानि पहुँचती है।
    • चरम घटनाएँ: सूखे, बाढ़ तथा चक्रवातों की बढ़ती आवृत्ति एवं तीव्रता बागवानी उत्पादन को बाधित करती है और साथ ही फसल की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती है।
  • जल प्रबंधन संबंधी मुद्दे:
    • जल की कमी:सिंचाई के जल तक सीमित पहुँच, अकुशल जल प्रबंधन प्रथाओं के साथ मिलकर, बागवानी फसलों के विकास में बाधा उत्पन्न करती है, विशेषकर जल-तनावग्रस्त क्षेत्रों में।
    • जल संसाधनों का अतिदोहन: अस्थिर भू-जल निष्कर्षण एवं अकुशल सिंचाई तकनीकों के कारण जल संसाधनों में कमी हो रही है, जिससे जल की कमी की समस्या बढ़ गई है।
  • कीट एवं रोग:
    • कीटनाशक प्रतिरोध: पारंपरिक कीटनाशकों के प्रति कीटों एवं रोगों की बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता के लिये एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) को विकसित करने एवं अपनाने की आवश्यकता है।
    • आक्रामक प्रजातियाँ: आक्रामक कीटों (जैसे रेगिस्तानी टिड्डियों) तथा रोगों के विस्तार एवं प्रसार बागवानी फसलों के लिये खतरा उत्पन्न करता है, जिसके लिये सतर्क निगरानी तथा प्रबंधन रणनीतियों की आवश्यकता होती है।
  • फसल कटाई के बाद के हानि तथा बुनियादी ढाँचे की बाधाएँ:
    • अपर्याप्त भण्डारण सुविधाएँ: उचित भंडारण अवसंरचना के अभाव के कारण फसल कटाई के बाद हानि होता है, जिससे बागवानी उत्पादों की शेल्फ लाइफ तथा बाज़ार मूल्य कम हो जाता है।
    • कोल्ड चेन तथा परिवहन चुनौतियाँ: अपर्याप्त कोल्ड चेन सुविधाओं और अपर्याप्त परिवहन नेटवर्क के कारण खराब होने वाली बागवानी वस्तुओं की बर्बादी होती है।

बागवानी क्षेत्र में सुधार कैसे किया जा सकता है?

  • जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को अपनाना:
    • बागवानी पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने के लिये जलवायु-लचीली फसल प्रजातियों तथा सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिये बढ़ावा देना।
    • बदलती जलवायु परिस्थितियों के लिये उपयुक्त सूखा-सहिष्णु एवं गर्मी प्रतिरोधी फसल प्रजातियों के अनुसंधान और विकास में निवेश करना।
  • कुशल जल प्रबंधन:
    • बागवानी में जल उपयोग दक्षता को अनुकूलित करने के लिये ड्रिप सिंचाई, वर्षा जल संचयन के साथ-साथ कुशल जल संरक्षित प्रौद्योगिकियों के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
    • जल की कमी के मुद्दों के समाधान के लिये जल प्रबंधन रणनीतियों जैसे जल मूल्य निर्धारण तंत्र और वाटरशेड प्रबंधन पहल को लागू करना।
  • एकीकृत कीट एवं रोग प्रबंधन:
    • एकीकृत कीट और रोग प्रबंधन (IPM) अभ्यासों को अपनाने पर बढ़ावा देना, जैविक नियंत्रण, सांस्कृतिक प्रथाओं और कीटनाशकों के विवेकपूर्ण उपयोग पर जोर देना।
    • कीटों और बीमारियों के प्रकोप की प्रभावी ढंग से निगरानी तथा प्रबंधन करने के लिये निगरानी तथा शीघ्र पहचान प्रणालियों को मज़बूत करना।
  • बुनियादी ढाँचे और मूल्य शृंखला विकास में निवेश:
    • फसल कटाई के बाद के नुकसान को कम करने और बागवानी करने वाले किसानों के लिये बाज़ार पहुँच में सुधार करने हेतु कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं, पैकहाउसों तथा परिवहन नेटवर्क का उन्नयन एवं विस्तार करना।
    • बागवानी मूल्य शृंखला की दक्षता और प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये बुनियादी ढाँचे के विकास में सार्वजनिक-निजी भागीदारी और निवेश की सुविधा प्रदान करना।
  • क्षमता निर्माण और ज्ञान हस्तांतरण:
    • बागवानी किसानों को आधुनिक कृषि तकनीकों, अच्छी कृषि पद्धतियों और बाज़ार-उन्मुख उत्पादन पर प्रशिक्षण तथा विस्तार सेवाएँ प्रदान करना।
    • बागवानी में सर्वोत्तम प्रथाओं और तकनीकी नवाचारों का प्रसार करने के लिये अनुसंधान संस्थानों, विश्वविद्यालयों तथा कृषि विस्तार एजेंसियों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना।

बागवानी में सुधार के लिये सरकारी पहल क्या हैं?

  • एकीकृत बागवानी विकास मिशन (MIDH):
    • परिचय: 
      • एकीकृत बागवानी विकास मिशन फल, सब्ज़ी, मशरूम, मसालों, फूल, सुगंधित पौधों, नारियल, काजू, कोको, बाँस आदि बागवानी क्षेत्र की फसलों के समग्र विकास हेतु एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
      • नोडल मंत्रालय: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय हरित क्रांति-कृषोन्‍नति योजना (Green Revolution - Krishonnati Yojana) के तहत एकीकृत बागवानी विकास मिशन (2014-15 से) लागू कर रहा है।
      • फंडिंग पैटर्न: इस योजना के तहत भारत सरकार पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को छोड़कर सभी राज्यों में विकास कार्यक्रमों के कुल परिव्यय का 60% योगदान करती है, जिसमें 40% हिस्सा राज्य सरकारों द्वारा दिया जाता है।
        • भारत सरकार उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालयी राज्यों के मामले में 90% योगदान करती है।
    • MIDH के अंतर्गत उप-योजनाएँ:
      • राष्ट्रीय बागवानी मिशन: इसे राज्य बागवानी मिशन (State Horticulture Mission) द्वारा 18 राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों के चयनित ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
      • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों के लिये बागवानी मिशन (HMNEH): इस योजना को पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों में बागवानी के समग्र विकास के लिये लागू किया जा रहा है।
      • केंद्रीय बागवानी संस्थान (CIH): इस संस्थान की स्थापना वर्ष 2006-07 में मेडी ज़िप हिमा (Medi Zip Hima), नगालैंड में की गई थी ताकि पूर्वोत्तर क्षेत्र में किसानों और खेतिहर मज़दूरों के क्षमता निर्माण तथा प्रशिक्षण के माध्यम से उन्हें तकनीकी ज्ञान प्रदान किया जा सके।
  • बागवानी क्लस्टर विकास कार्यक्रम:
    • परिचय:
      • यह एक केंद्रीय क्षेत्र का कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य चिह्नित उद्यान कृषि समूहों को विकसित करना और उन्हें विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना है।
      • उद्यान कृषि क्लस्टर' लक्षित उद्यान कृषि फसलों का एक क्षेत्रीय/भौगोलिक संकेंद्रण है।
      •   कार्यान्वयन: इसका कार्यान्वयन कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (National Horticulture Board- NHB) द्वारा किया जाता है। मंत्रालय ने 55 बागवानी/उद्यान समूहों की पहचान की है।
    • उद्देश्य:
      • CDP का लक्ष्य लक्षित फसलों के निर्यात में लगभग 20% सुधार करना और क्लस्टर फसलों की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ाने के लिये क्लस्टर-विशिष्ट ब्रांड बनाना है।
      • पूर्व-उत्पादन, उत्पादन, कटाई के बाद प्रबंधन, रसद, विपणन और ब्रांडिंग सहित भारतीय उद्यान क्षेत्र से संबंधित सभी प्रमुख मुद्दों का समाधान करना।
      • भौगोलिक विशेषज्ञता का लाभ उठाना और उद्यान समूहों के एकीकृत एवं बाज़ार आधारित विकास को बढ़ावा देना।
      • कृषि अवसंरचना कोष (Agriculture Infrastructure Fund) जैसी सरकार की अन्य पहलों के साथ तालमेल बिठाना।

निष्कर्ष:

  • मांग-संचालित उत्पादन, बढ़ी हुई उत्पादकता, प्रभावी ऋण, जोखिम प्रबंधन और बेहतर बाज़ार कनेक्शन प्राप्त करने के लिये, किसानों, सरकार, उपभोक्ताओं, उद्योग एवं शिक्षा/अनुसंधान को शामिल करते हुए बहु-हितधारक भागीदारी को सुदृढ़ करने की आवश्यकता है।
  • जैसा कि भारत फलों और सब्जियों (F&V) के लिये एक अग्रणी वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने का प्रयास कर रहा है, आगे का रास्ता सहयोगी प्रयासों और देश के छोटे पैमाने के किसानों के लिये ठोस आय एवं आजीविका की प्रगति को बढ़ावा देने हेतु सामूहिक समर्पण द्वारा निर्धारित किया जाएगा।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स: 

Q.1 बागवानी फार्मों के उत्पादन, उसकी उत्पादकता एवं आय में वृद्धि करने में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (एन.एच.एम.) की भूमिका का आकलन कीजिये। यह किसानों की आय बढ़ाने में कहाँ तक सफल हुआ है? (2018)

Q.2 फसल विविधता के समक्ष मौजूदा चुनौतियाँ क्या हैं? उभरती प्रौद्योगिकियाँ फसल विविधता के लिये किस प्रकार अवसर प्रदान करती है? (2021)

Q.3 भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि में आई विभिन्न प्रकारों की क्रांतियों को स्पष्ट कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार सहायता प्रदान की है? (2017)