पारिस्थितिकी-संहार को अपराधीकृत करने पर वैश्विक दबाव | 08 Sep 2023

प्रिलिम्स के लिये:

पारिस्थितिकी-संहार, माया स्थल, संयुक्त राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय, रोम संविधि, जैविक विविधता अभिसमय, जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय, वन्यजीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अभिसमय, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972, प्रतिपूरक वनीकरण कोष प्रबंधन एवं योजना प्राधिकरण, 2016 (CAMPA)

मेन्स के लिये:

भारत में पारिस्थितिकी-संहार स्वीकृति की वर्तमान स्थिति, पारिस्थितिकी-संहार के अपराधीकरण के पक्ष और विपक्ष में तर्क

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों? 

मेक्सिको में विवादास्पद माया ट्रेन परियोजना का उद्देश्य पर्यटकों को ऐतिहासिक माया स्थलों से जोड़ना है, जिससे इसके संभावित पर्यावरणीय और सांस्कृतिक प्रभाव पर चिंताएँ उत्पन्न हो रही हैं।

  • इस परियोजना से जुड़ी बहस "पारिस्थितिकी-संहार" की अवधारणा और पर्यावरण विनाश को अपराध घोषित करने के बढ़ते वैश्विक आंदोलन/संचार पर ध्यान केंद्रित करती है।

पारिस्थितिकी-संहार:

  • परिचय:  
    • पारिस्थितिकी-संहार, ग्रीक और लैटिन से लिया गया है, जिसका अनुवाद 'किसी के घर या 'पर्यावरण को खत्म करना' है।
    • हालाँकि वर्तमान में पारिस्थितिकी-संहार का कोई सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त कानूनी विवरण नहीं है, जून 2021 में स्टॉप इकोसाइड फाउंडेशन नामक एक गैर-सरकारी संगठन द्वारा बुलाए गए वकीलों के एक समूह ने एक परिभाषा तैयार की जो पर्यावरणीय विनाश को मानवता के खिलाफ अपराधों के समान दायरे में रखेगी।
    • उनके प्रस्ताव के अनुसार, पारिस्थितिकी-हत्या को "इस जागरूकता के साथ किये गए गैर-कानूनी या लापरवाह कार्यों के रूप में परिभाषित किया गया है कि पर्यावरण को गंभीर और व्यापक या स्थायी हानि होने की पर्याप्त संभावना मौजूद है।"
  • ऐतिहासिक संदर्भ:
    • वर्ष 1970 में जीवविज्ञानी आर्थर गैलस्टन पर्यावरणीय विनाश और नरसंहार (जिसे एक अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में मान्यता प्राप्त है) के बीच संबंध स्थापित करने वाले पहले व्यक्ति थे।
      • उन्होंने वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिकी सेना द्वारा एजेंट ऑरेंज, एक जड़ी-बूटी नाशक दवा के उपयोग को संबोधित करते हुए यह लिंक बनाया था।
    • स्वीडिश प्रधानमंत्री ओलोफ पाल्मे ने भी संयुक्त राष्ट्र में एक भाषण में इस अवधारणा के विषय में चर्चा की थी।
    • वर्ष 2010 में एक ब्रिटिश वकील ने संयुक्त राष्ट्र के अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) से आधिकारिक तौर पर पारिस्थितिक हत्या को अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में स्वीकार करने का आग्रह कर एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई
      • वर्तमान में ICC का रोम कानून चार प्रमुख अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय अपराध के रूप में संबोधित करता है: नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता का अपराध ।
      • युद्ध अपराधों से संबंधित प्रावधान एकमात्र कानून है जो अनुचित कार्य  करने वाले को पर्यावरण के विनाश के लिये ज़िम्मेदार ठहरा सकता है, लेकिन केवल तभी जब यह सशस्त्र संघर्ष के समय जान-बूझकर किया गया हो।

भारत में इकोसाइड स्वीकृति की वर्तमान स्थिति:

  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम कानून पर न तो हस्ताक्षर किये हैं और न ही इसकी पुष्टि की है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पारिस्थितिकी-हत्या को अपराध घोषित करने के प्रस्ताव पर कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं की है।
  • हालाँकि कुछ भारतीय अदालती फैसलों में लापरवाही से 'इकोसाइड' शब्द का उपयोग किया गया है, लेकिन इस अवधारणा को औपचारिक रूप से भारतीय कानून में एकीकृत नहीं किया गया है।
    • चंद्रा CFS और टर्मिनल ऑपरेटर्स प्राइवेट लिमिटेड बनाम सीमा शुल्क तथा अन्य आयुक्त (2015) के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने मूल्यवान वनों (Timbers) को हटाने से संबंधित पारिस्थितिकी-संहार की निरंतर एवं बेलगाम गतिविधियों पर ध्यान दिया।
    • टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ और अन्य (1995) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पर्यावरणीय न्याय प्राप्त करने के लिये मानवकेंद्रित दृष्टिकोण से पारिस्थितिक दृष्टिकोण में बदलाव की आवश्यकता पर ध्यान आकर्षित किया।

पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने के पक्ष में तर्क:

  • स्वयं में एक लक्ष्य के रूप में पर्यावरण की रक्षा: पारिस्थितिकी तंत्र प्रजातियों तथा अंतःक्रियाओं का जटिल जाल है जो लाखों वर्षों में विकसित हुआ है।
    • पर्यावरण की रक्षा करना अपने आप में एक लक्ष्य है, जो इन पारिस्थितिक तंत्रों की अखंडता और विकासवादी क्षमता को बनाए रखने के लिये उनकी प्राकृतिक अवस्था में उन्हें संरक्षित करने के महत्त्व को बढ़ावा देता है।
    • पारिस्थितिकी-संहार कानून, पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक कमी को पूरा करता है तथा पर्यावरण को सुरक्षा के योग्य इकाई के रूप में मान्यता देता है।
  • अंतर-पीढ़ीगत न्याय: अधिवक्ताओं का तर्क है कि पारिस्थितिकी-संहार को "जैवविविधता ऋण" के संचय के रूप में देखा जा सकता है जिसका भुगतान आने वाली पीढ़ियों को करना होगा।
    • पारिस्थितिकी-संहार को एक अपराध के रूप में मान्यता देकर समाज आने वाली पीढ़ियों के लिये एक सतत् तथा रहने योग्य ग्रह छोड़ने के अपने दायित्व को स्वीकार करता है।
  • जलवायु परिवर्तन शमन: आपराधिक कानून के माध्यम से पारिस्थितिक विनाश को संबोधित करना जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों को सीधे लक्षित करके अंतर्राष्ट्रीय जलवायु समझौतों के लिये एक महत्त्वपूर्ण पूरक के रूप में कार्य करता है।
    • बड़े पैमाने पर वनों की कटाई तथा अनियंत्रित जीवाश्म ईंधन निष्कर्षण जैसी सभी गतिविधियों को पारिस्थितिक विनाशकारी गतिविधियाँ माना जाता है।
    • पारिस्थितिकी-संहार का अपराधीकरण पर्यावरण संरक्षण में एक मज़बूत कानूनी आयाम जोड़ता है जो जलवायु को हानि पहुँचाने वाले कार्यों के लिये व्यक्तियों तथा संस्थाओं को उत्तरदायी बनाता है।

नोट: मार्च 2023 में जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) ने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई अभी भी अपर्याप्त है। बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का दहन, स्थलीय और जलीय वातावरण में प्लास्टिक एवं उर्वरकों के माध्यम से प्रदूषण तथा प्रजातियों की जान की हानि जैसी गतिविधियाँ सामूहिक रूप से एक नए भू-वैज्ञानिक युग का संकेत देती हैं जिसे एंथ्रोपोसीन के रूप में जाना जाता है।

  •   वैश्विक मान्यता और कानूनी कार्रवाई का विस्तार: इकोसाइड को 11 देशों में पहले से ही एक अपराध माना जाता है, 27 और देश इसी प्रकार के कानून पर विचार कर रहे हैं।
    •  इकोसाइड कानून न्याय के लिये शक्तिशाली आह्वान के रूप में भी काम कर सकते हैं, विशेषकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों के लिये जो विषम मौसम की घटनाओं का खामियाज़ा भुगत रहे हैं।
      •  वानुअतु और बारबुडा जैसे छोटे देश ICC से पर्यावरणीय अपराधों को अंतर्राष्ट्रीय कानून के उल्लंघन के रूप में वर्गीकृत करने का आग्रह कर रहे हैं।

पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने के विरुद्ध तर्क: 

  •  विकास बनाम पर्यावरण संरक्षण: पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करने के विरुद्ध एक प्रमुख तर्क विकास और पर्यावरण संरक्षण के बीच तनाव से संबंधित है।
    • आलोचकों का तर्क है कि पारिस्थितिकी-संहार को परिभाषित करना अनजाने में विकास लक्ष्यों को पर्यावरण संरक्षण के विरुद्ध खड़ा कर सकता है।
    • उदाहरण के लिये भारत में ग्रेट निकोबार परियोजना को स्वदेशी समुदायों और जैवविविधता को संभावित रूप से नुकसान पहुँचाने के लिये आलोचना का सामना करना पड़ा, जबकि सरकार ने इसका "समग्र विकास" की पहल के रूप में बचाव किया।
  • संप्रभुता में हस्तक्षेप: कुछ लोगों का तर्क है कि पारिस्थितिकी-संहार को अपराध घोषित करना किसी देश की संप्रभुता का उल्लंघन हो सकता है।
    • देश ऐसे कानूनों को अपनी पर्यावरण नीतियों और संसाधनों के प्रबंधन की क्षमता पर अतिक्रमण के रूप में देख सकते हैं, जिससे प्रतिरोध या गैर-अनुपालन हो सकता है।
  • वैज्ञानिक अनुसंधान पर भयावह प्रभाव: संभावित कानूनी नतीजों के डर से वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को ऐसे अध्ययन करने से रोका जा सकता है जिनमें पर्यावरणीय हेर-फेर या प्रयोग शामिल हों।
    • यह वैज्ञानिक प्रगति और जटिल पारिस्थितिक तंत्रों की समझ में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
  • प्रभावकारिता और प्रवर्तन चुनौतियाँ: कई आलोचक पर्यावरणीय क्षति को रोकने में पारिस्थितिकी- संहार को अपराध की श्रेणी में शामिल करने की प्रभावशीलता पर सवाल उठाते हैं।
    • उनका तर्क है कि मौजूदा पर्यावरण विनियम, यदि सख्ती से लागू किये जाएँ तो ये नए आपराधिक ढाँचा बनाने की तुलना में अधिक प्रभावी हो सकते हैं जिन्हें लागू करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

आगे की राह

  • एक मौलिक अनिवार्यता के रूप में पर्यावरण संरक्षण: चाहे पारिस्थितिकी-संहार को अपराध की श्रेणी में शामिल किया जाए या नहीं, लेकिन हमारा सर्वोपरि उद्देश्य हमेशा पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण होना चाहिये।
  • पारिस्थितिकी पुनर्प्राप्ति बॉण्ड: इस प्रकार के बॉण्ड की अवधारणा की शुरुआत भी एक अहम कदम साबित हो सकती है।
    • महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय प्रभाव वाली परियोजनाओं में शामिल कंपनियों को अपनी लाइसेंसिंग अथवा अनुमति प्रक्रिया के हिस्से के रूप में इन बॉण्डों को खरीदना अनिवार्य किया जा सकता है।
    • पर्यावरणीय क्षति की स्थिति में इन बॉण्ड से प्राप्त धनराशि का पारिस्थितिकी पुनर्प्राप्ति के लिये इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • अनिवार्य पर्यावरण शिक्षा: पर्यावरणीय अधिकारों और ज़िम्मेदारियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये स्कूलों और विश्वविद्यालयों में अनिवार्य पर्यावरण शिक्षा लागू करने की आवश्यकता है।
    • यह शिक्षा नागरिकों को पर्यावरण की सुरक्षा करने और पारिस्थितिकी-संहार से संबंधित चर्चाओं में शामिल होने के लिये सशक्त बनाएगी।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:  (2019)

  1. पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत को सशक्त करता है कि:
  2. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
  3. वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1       
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. सरकार द्वारा किसी परियोजना को अनुमति देने से पूर्व, अधिकाधिक पर्यावरणीय प्रभाव आकलन अध्ययन किये जा रहे हैं। कोयला गर्त-शिखरों (पिटहेड्स) पर अवस्थित कोयला-अग्नित तापीय संयंत्रों के पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा कीजिये। (2014)

प्रश्न. पर्यावरण प्रभाव आकलन (ई.आई.ए.) अधिसूचना, 2020 प्रारूप मसौदा मौजूदा ई.आई.ए. अधिसूचना, 2006 से कैसे भिन्न है? (2020)

प्रश्न. “भारत में आधुनिक कानून की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पर्यावरणीय समस्याओं का संविधानिकीकरण है।” सुसंगत वाद विधियों की सहायता से इस कथन की विवेचना कीजिये। (2022)