भारतीय हिमालयी क्षेत्र की भंगुरता | 21 Oct 2023

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR), संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP), तीस्ता नदी, पर्यावरण मंजूरी (EC), EIA 2006 अधिसूचना, ड्राफ्ट EIA 2020 अधिसूचना

मेन्स के लिये:

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) का कुप्रबंधन भारत के पर्यावरण और पारिस्थितिकी के लिये खतरा उत्पन्न करता है  

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सिक्किम में तीस्ता बाँध के टूटने से हिमाचल प्रदेश में बाढ़ और भूस्खलन की घटना देखी गई।

  • यह इस बात पर स्पष्ट प्रकाश डालता है कि हमारा विकास मॉडल पर्यावरण और पारिस्थितिकी, विशेषकर पर्वतीय भारतीय हिमालयी क्षेत्रों को किस प्रकार नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रहा है।

भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR)):  

  • यह भारत में उस पर्वतीय क्षेत्र को संदर्भित करता है जो देश के भीतर संपूर्ण हिमालय शृंखला को शामिल करता है। यह भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग जम्मू और कश्मीर से लेकर भूटान, नेपाल तथा तिब्बत (चीन) जैसे देशों की सीमा के साथ पूर्वोत्तर राज्यों तक विस्तृत है।
  • इसमें 11 राज्य (हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम, सभी पूर्वोत्तर राज्य और पश्चिम बंगाल) तथा 2 केंद्रशासित प्रदेश (जम्मू-कश्मीर व लद्दाख) शामिल हैं।

 भारतीय हिमालयी क्षेत्र से संबंधित मुद्दे: 

  • श्रेणीबद्ध दृष्टिकोण में खामियाँ:
    • भारतीय नियामक प्रणाली के श्रेणीबद्ध/ग्रेडेड दृष्टिकोण में निर्दिष्ट खामियाँ, जैसे कि मंत्रालय और विभाग इस बात पर ज़ोर देते हैं कि पारिस्थितिक महत्त्व के बावजूद IHR पर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता है
    • हिमालय मौसम की चरम  स्थिति, भूकंपीय गतिविधि और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से ग्रस्त है, फिर भी इस क्षेत्र में परियोजनाओं के लिये कोई अलग पर्यावरणीय मानक नहीं हैं।
  • विभिन्न EIA चरणों के कार्यान्वयन से संबद्ध मुद्दे:
    • पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया के सभी चरणों में स्क्रीनिंग से लेकर मूल्यांकन तक, परियोजना से जुड़ी आवश्यकताओं को क्षेत्र की पारिस्थितिक आवश्यकताओं के साथ संरेखित करके IHR की आवश्यकताओं को संबोधित करने की प्रक्रिया में भारी कमी है।
    • पर्वतीय क्षेत्रों में परियोजनाओं की विशिष्ट विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए इनसे संबंधित उत्तरदायित्वों में वृद्धि हेतु EIA अधिसूचना में विशिष्ट खंडों के समावेशन का भी अभाव है।
  • राष्ट्रीय स्तर के नियामक का अभाव:
    • EIA प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा राष्ट्रीय स्तर के नियामक की अनुपस्थिति है, जिसका सुझाव सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में लाफार्ज उमियम माइनिंग (पी) लिमिटेड और टी.एन. गोदावर्मन थिरुमुलपाद बनाम भारत संघ, 1995 मामले में दिया था।
    • वर्तमान में, EIA प्रक्रियाएँ परियोजना समर्थकों के पक्ष में हैं जिनमें संचयी प्रभावों पर व्यापक विचार की कमी है, विशेष रूप से IHR जैसे पहाड़ी पर्वतीय क्षेत्रों में।
  • EIA 2006 अधिसूचना में एकरूपता का मुद्दा: 
    • EIA 2006 अधिसूचना खनन, विद्युत उत्पादन और बुनियादी ढाँचे जैसे क्षेत्रों के आधार पर परियोजनाओं को वर्गीकृत करती है, लेकिन EIA प्राप्ति की आवश्यकता संबंधी सीमा पूरे देश में देश के लिये समान है।
    • यह समान दृष्टिकोण अपने पारिस्थितिक महत्त्व और नाजुकता के बावजूद भारतीय हिमालयी क्षेत्र (IHR) की आद्वितीय आवश्यकताओं एवं सुभेद्यताओं पर विचार करने में विफल रहता है।
  • ड्राफ्ट EIA 2020 अधिसूचना में मुद्दे:
    • EIA प्रक्रिया पिछले कुछ वर्षों में कई संशोधनों के साथ विकसित हुई है, EIA 2020 के मसौदे को  उद्योग समर्थक माना जा रहा है तथा इसमें पारिस्थितिक विचारों की उपेक्षा को लेकर चिंताएँ व्यक्त की गई हैं। EIA का उचित उपयोग पर्यावरण प्रशासन और सतत् विकास के लिये एक शक्तिशाली उपकरण हो सकता है।

IHR की पारिस्थितिक भंगुरता की सुरक्षा हेतु आवश्यक कदम:

  • विभेदित पर्यावरण मानक:
    • क्षेत्र की भंगुरता और असुरक्षा को ध्यान में रखते हुए विभेदित पर्यावरण मानक स्थापित किये जाने चाहिये।
      • इन मानकों को पर्यावरण प्रभाव आकलन (EIA) प्रक्रिया में शामिल किया जाना चाहिये, यह सुनिश्चित करते हुए कि IHR में परियोजनाएँ अधिक कड़े नियमों और जाँच के अधीन हैं।
  • सामरिक पर्यावरण आकलन (SEA):
    • नीति निर्माताओं को SEA को लागू करने पर विचार करना चाहिये, जो किसी क्षेत्र में विकास के संचयी प्रभाव का आकलन करता है।
    • SEA को निकासी प्रक्रिया में एकीकृत करने से विकास गतिविधियों के संभावित परिणामों का एक व्यापक दृष्टिकोण प्रदान किया जा सकता है।
  • स्थानीय समुदाय की भागीदारी:
    • इन समुदायों को अक्सर क्षेत्र की पारिस्थितिकी की गहरी समझ होती है और वे विकास के संभावित प्रभावों के विषय में बहुमूल्य सूचना प्रदान कर सकते हैं।
    • उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने से पारिस्थितिक रूप से अधिक सुदृढ़ और सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार परियोजनाएँ शुरू हो सकती हैं।
  • पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण:
    • विकास के लिये पारिस्थितिकी तंत्र-आधारित दृष्टिकोण लागू करना। यह पहचान करना कि IHR न केवल संसाधनों का एक स्रोत है बल्कि क्षेत्रीय और राष्ट्रीय पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

नीतियों को वनों, नदियों और जैवविविधता सहित पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा तथा बहाली को प्राथमिकता देनी चाहिये।

  • बुनियादी ढाँचे के विकास पर पुनर्विचार:
    • IHR में बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की योजना सावधानीपूर्वक बनाई जानी चाहिये। बाँधों, सड़कों और जलविद्युत संयंत्रों जैसी परियोजनाओं को पर्यावरण पर उनके प्रभाव को कम करने के लिये कठोर मूल्यांकन से गुज़रना चाहिये।
    • वैकल्पिक प्रौद्योगिकियों और मार्गों पर विचार करना जो कम विघटनकारी हों।
  • सीमा पार सहयोग:
    • हिमालय क्षेत्र कई देशों तक फैला हुआ है और पारिस्थितिक चुनौतियाँ राजनीतिक सीमाओं तक सीमित नहीं हैं। भारत को साझा पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान के लिये क्षेत्रीय सहयोग में शामिल होना चाहिये।
    • सहयोगात्मक प्रयास वायु और जल प्रदूषण जैसी सीमा पार चुनौतियों को कम करने में सहायता कर सकते हैं।
  • जन जागरूकता एवं शिक्षा:
    • IHR के पारिस्थितिक महत्त्व के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना।
    • शिक्षा और सहयोग लोगों, व्यवसायों तथा नीति निर्माताओं को अधिक ज़िम्मेदार निर्णय व व्यवहार अपनाने के लिये प्रभावित कर सकती है।
  • प्रकृति आधारित पर्यटन: 
    • संधारणीय एवं ज़िम्मेदारीपूर्ण पर्यटन प्रथाओं का समर्थन करना चाहिये जिससे पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभावों को कम करते हुए स्थानीय समुदायों के लिये आय उत्पन्न करने में सहायता मिलेगी।
    • इसमें इको-टूरिज़्म को बढ़ावा देना, वहन क्षमता सीमा लागू करना और पर्यटकों के बीच जागरूकता बढ़ाना शामिल हो सकता है।

पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना (EIA), 2020 

  • परिचय: 
  • कार्येत्तर मंज़ूरी:
    • कार्येत्तर मंज़ूरी का विचार मसौदा अधिसूचना में प्रस्तुत किया गया था, जो कुछ परियोजनाओं को मंज़ूरी के बिना परिचालन शुरू करने के बाद भी पर्यावरणीय मंज़ूरी लेने की अनुमति देगी। 
  • सार्वजनिक भागीदारी में कमी:
    • आलोचकों ने तर्क दिया कि मसौदा अधिसूचना ने सार्वजनिक परामर्श प्रक्रिया को कमज़ोर कर दिया है, जिससे संबंधित नागरिकों एवं समुदायों के लिये प्रस्तावित परियोजनाओं के संबंध में अपना मत तथा समस्याएँ व्यक्त करना अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है।
  • कुछ परियोजनाओं के लिये छूट:
    • मसौदा अधिसूचना में कुछ श्रेणियों की परियोजनाओं के लिये छूट का प्रस्ताव दिया गया है, जिससे उन्हें EIA प्रक्रिया को बायपास करने का विकल्प मिलेगा। 
  • परियोजना की वैधता का विस्तार:
    • इसने विभिन्न परियोजनाओं के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी की वैधता अवधि बढ़ाने का सुझाव दिया, जिससे पर्यावरणीय प्रभावों के बार-बार पुनर्मूल्यांकन की आवश्यकता कम हो जाएगी।
  • अनुपालन रिपोर्ट का कमज़ोर होना:
    • अनुपालन रिपोर्टों को कमज़ोर करने के बारे में चिंताएं देखी गईं, जो यह सुनिश्चित करती हैं कि परियोजनाओं को पर्यावरणीय स्थितियों और मानकों का पालन करना आवश्यक है।
    • संबंधित लोगों, विशेषज्ञों और पर्यावरण कार्यकर्ताओं सभी ने मसौदा अधिसूचना पर आपत्ति जताई एवं इसके मानकों पर संदेह जताया।

भारत में EIA:

  • परिचय:
    • पर्यावरणीय प्रभाव आकलन का उपयोग भारत में 20 साल से भी पहले किया गया था। इसकी शुरुआत 1976-77 में हुई जब योजना आयोग ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग से नदी-घाटी परियोजनाओं को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से देखने का अनुरोध किया था।
  • EIA 1994 अधिसूचना: 
    • वर्ष 1994 में तत्कालीन केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत किसी भी गतिविधि के विस्तार या आधुनिकीकरण या अनुसूची 1 में सूचीबद्ध नई परियोजनाओं की स्थापना के लिये पर्यावरणीय मंज़ूरी (EC) को अनिवार्य बनाते हुए एक EIA अधिसूचना जारी की।
  • EIA 2006 अधिसूचना: 
    • पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) ने सितंबर 2006 में नए EIA कानून को अधिसूचित किया।
    • यह अधिसूचना विभिन्न परियोजनाओं जैसे- खनन, थर्मल पावर प्लांट, नदी घाटी, बुनियादी ढाँचे (सड़क, राजमार्ग, पत्तन, बंदरगाह और हवाई अड्डे) और बहुत छोटी इलेक्ट्रोप्लेटिंग या फाउंड्री इकाइयों सहित उद्योगों के लिये पर्यावरण मंज़ूरी प्राप्त करना अनिवार्य बनाती है।
    • हालाँकि वर्ष 1994 की EIA अधिसूचना के विपरीत नए कानून ने परियोजना के आकार/क्षमता के आधार पर परियोजनाओं को मंज़ूरी देने का दायित्व राज्य सरकार पर डाल दिया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. जब आप हिमालय में यात्रा करेंगे, तो आप निम्नलिखित को देखेंगे: (2012)

  • गहरे खड्ड
  • U घुमाव वाले नदी मार्ग
  • समानांतर पर्वत श्रेणियाँ
  • भूस्खलन के लिये उत्तरदायी तीव्र ढाल प्रवणता

उपर्युक्त में से किसे हिमालय के युवा वलित पर्वत होने का प्रमाण कहा जा सकता है?

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1, 2 और 4
(c) केवल 3 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)


मेन्स:

प्रश्न. पश्चिमी घाट की तुलना में हिमालय में भूस्खलन की घटनाओं के प्रायः होते रहने के कारण बताइये।(2013)

प्रश्न. भू-स्खलन के विभिन्न कारणों और प्रभावों का वर्णन कीजिये। राष्ट्रीय भू-स्खलन जोखिम प्रबंधन रणनीति के महत्त्वपूर्ण घटकों का उल्लेख कीजिये। (2021)