आतंकवाद का मुकाबला और भारत की आंतरिक सुरक्षा की रक्षा | 14 Nov 2025
प्रिलिम्स के लिये: गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967, मल्टी-एजेंसी सेंटर, ऑपरेशन सिंदूर
मेन्स के लिये: सीमा पार आतंकवाद और छद्म युद्ध, शहरी आतंकवाद, भारत का आतंकवाद-रोधी सिद्धांत
चर्चा में क्यों?
दिल्ली के लाल किले के निकट हुए घातक कार विस्फोट ने भारत की आंतरिक सुरक्षा पर चिंताएँ फिर से बढ़ा दी हैं, जाँचकर्त्ताओं को इसमें संगठित आतंकवादी मॉड्यूल के शामिल होने का संदेह है।
- प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 के तहत दर्ज की गई है और यह घटना एक मज़बूत और समन्वित आतंकवाद-रोधी रणनीति की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
आतंकवाद किस प्रकार भारत की आंतरिक सुरक्षा हेतु खतरा बना हुआ है?
- सीमापार आतंकवाद और प्रॉक्सी युद्ध: पाकिस्तान जैसे राज्य अभिकर्त्ता लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे गैर-राज्य तत्त्वों के माध्यम से सीमापार आतंकवाद को जारी रखते हैं।
- इन समूहों ने कई हमलों को अंजाम दिया है, जैसे वर्ष 2001 का संसद हमला और वर्ष 2016 में जम्मू एवं कश्मीर के उरी में हुआ हमला।
- पाकिस्तान स्थित समूहों द्वारा छद्म युद्ध (Proxy War) एक सतत् खतरा बना हुआ है, जैसा कि 2025 के पहलगाम हमले से स्पष्ट है।
- ISI ने अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिये इस्लामी कट्टरपंथ और अलगाववादी भावनाओं का फायदा उठाकर, विशेष रूप से कश्मीर में युवाओं को कट्टरपंथी बनाने और भर्ती करने हेतु लंबे समय से धार्मिक उग्रवाद का इस्तेमाल किया है।
- चीन-पाकिस्तान गठजोड़ हाइब्रिड युद्ध के माध्यम से भारत के लिये रणनीतिक खतरा बना हुआ है।
- शहरी आतंकवाद: शहरी आतंकवाद बढ़ रहा है, शहरी केंद्र आतंकवादियों के लिये प्रमुख लक्ष्य बन गए हैं, जो बड़े पैमाने पर लोगों को हताहत करना, मनोवैज्ञानिक भय पैदा करना और व्यापक मीडिया का ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
- वर्ष 2008 के मुंबई आतंकवादी हमलों और अकेले हमले की घटनाओं में वृद्धि जैसे बड़े हमले नागरिक स्थानों को निशाना बनाने की ओर बढ़ते रुझान को दर्शाते हैं, जिससे शहरी क्षेत्र तेज़ी से असुरक्षित होते जा रहे हैं।
- अमोनियम नाइट्रेट विस्फोटकों का प्रयोग और शहरी गुमनामी भारत के नागरिक सुरक्षा ढाँचे की कमज़ोरियों को उजागर करती है।
- व्हाइट-कॉलर आतंकवाद, जिसमें शिक्षित पेशेवर अपनी तकनीकी विशेषज्ञता का उपयोग आतंकी गतिविधियों के लिये करते हैं, शहरी क्षेत्रों में अधिक मज़बूत आतंकवाद-रोधी ढाँचों की आवश्यकता को उजागर करता है।
- आंतरिक विद्रोह और जातीय-राष्ट्रवादी आंदोलन: भारत को स्थानीय शिकायतों से प्रेरित कई आंतरिक विद्रोहों का सामना करना पड़ रहा है।
- जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के समूह अक्सर बाहरी समर्थन के साथ अधिक स्वायत्तता या स्वतंत्रता चाहते हैं।
- इसी प्रकार माओवादी उग्रवाद (वामपंथी उग्रवाद) सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का फायदा उठाकर मध्य भारत के क्षेत्रों में अस्थिरता पैदा कर रहे हैं।
- साइबर आतंकवाद: आतंकवादी समूह भर्ती, वित्तपोषण, कट्टरता और योजना के लिये तेज़ी से प्रौद्योगिकी की ओर रुख कर रहे हैं।
- साइबर आतंकवाद भारत के महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के लिये एक बड़ा खतरा है, जबकि ऑनलाइन प्लेटफार्मों का उपयोग चरमपंथी विचारधाराओं को फैलाने हेतु किया जाता है।
- क्रिप्टोकरेंसी और डार्क वेब नेटवर्क के उपयोग से अधिकारियों के लिये आतंकवाद को समर्थन देने वाले वित्तीय प्रवाह पर नज़र रखना कठिन हो जाता है।
- संगठित अपराध: भारत में आतंकवाद को मादक पदार्थों की तस्करी, नकली मुद्रा और तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के माध्यम से वित्त पोषित किया जाता है।
- पाकिस्तान की ISI इन चैनलों का उपयोग आतंकवादी गतिविधियों को वित्तपोषित करने के लिये जानी जाती है, जबकि अफगानिस्तान और म्याँमार में मादक पदार्थ उत्पादन केंद्रों के निकट होने के कारण भारत से होकर ड्रग्स की आवाजाही आसान हो जाती है।
- समुद्री सुरक्षा और तटीय कमज़ोरियाँ: भारत की 7,500 किलोमीटर लंबी विस्तृत तटरेखा समुद्री आतंकवाद के प्रति संवेदनशील है।
- लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे समूह, ड्रग कार्टेल और तस्करी नेटवर्क के साथ मिलकर, अरब सागर के रास्ते भारत में घुसपैठ करने के लिये तटीय सुरक्षा की कमियों का फायदा उठाते हैं।
- वर्ष 2014 में PNS गाज़ी पनडुब्बी की घटना और भारतीय नौसेना द्वारा की गई घुसपैठ से हथियारों और विस्फोटकों की तस्करी के लिये भारतीय जलक्षेत्र में घुसपैठ के प्रयासों का पता चलता है।
भारत का आतंकवाद-रोधी सिद्धांत क्या है?
- भारत का नया आतंकवाद-रोधी सिद्धांत: ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रस्तुत भारत का आतंकवाद-रोधी सिद्धांत, पहले के संयम से अधिक दृढ़ और दंडात्मक सुरक्षा रुख की ओर एक निर्णायक बदलाव का प्रतीक है।
- यह तीन सिद्धांतों पर आधारित है: निर्णायक प्रतिशोध, परमाणु ब्लैकमेल के प्रति शून्य सहिष्णुता तथा आतंकवादियों और उनके राज्य प्रायोजकों के बीच कोई भेद नहीं।
- निर्णायक जवाबी कार्रवाई: इसका अर्थ है कि भारत किसी भी आतंकवादी हमले के बाद दृढ़तापूर्वक और अपनी शर्तों पर जवाबी कार्रवाई करेगा तथा ऐसे समूहों को समर्थन देने वाले राज्यों पर दबाव बढ़ाने के लिये आतंकवादी केंद्रों को उनके स्रोत पर ही निशाना बनाएगा।
- यह दृष्टिकोण पाकिस्तान और पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले जम्मू और कश्मीर (PoJK) में लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख ठिकानों पर हमलों में देखा गया।
- परमाणु ब्लैकमेल के प्रति शून्य सहिष्णुता: भारत परमाणु धमकियों से भयभीत हुए बिना, आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों पर कार्रवाई करेगा—चाहे वे तथाकथित परमाणु सुरक्षा कवच के भीतर ही क्यों न हों। ऐसा करके वह आत्मरक्षा के अपने अधिकार को रेखांकित करेगा और पहले अपनाए गए रणनीतिक संयम से आगे बढ़ेगा।
- आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के बीच कोई अंतर नहीं: भारत अब आतंकवादी समूहों और उन्हें आश्रय देने वाले या समर्थन देने वाले राज्यों दोनों को एक ही लक्ष्य मानता है।
- ऑपरेशन सिंदूर ने पाकिस्तान के भीतरी इलाकों में हमला करके इस बदलाव को प्रतिबिंबित किया, जिससे यह संकेत मिला कि राज्य समर्थित आतंकवाद का मुकाबला युद्ध की प्रत्यक्ष कार्रवाई के रूप में किया जाएगा।
- डोभाल सिद्धांत: राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल द्वारा विकसित यह सिद्धांत कठोर शक्ति, खुफिया तंत्र, कूटनीति और मनोवैज्ञानिक युद्ध को समाहित कर एक समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति का रूप देता है।
मूल सिद्धांत
- सक्रिय राष्ट्रीय रक्षा: भारत पहले हमला करने या निर्णायक रूप से जवाबी हमला करने के अधिकार पर ज़ोर देता है, जो वर्ष 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 के बालाकोट हवाई हमलों में परिलक्षित होता है।
- संपूर्ण सरकारी समन्वय: सैन्य, खुफिया, पुलिस और राजनयिक संस्थान एक एकीकृत ढाँचे के रूप में कार्य करते हैं।
- विकास से संबंधित सुरक्षा: सुरक्षा अभियानों को कल्याण और सुशासन संबंधी पहलों के साथ समन्वित किया जाता है, विशेष रूप से कश्मीर (अनुच्छेद 370 हटने के बाद) और वामपंथी उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में।
- रक्षात्मक-आक्रामक रणनीति: हमले की प्रतीक्षा करने के बजाय, भारत यह संदेश देता है कि वह प्रतिद्वंद्वियों की कीमत बढ़ाने हेतु योजनाबद्ध और सक्रिय आक्रामक कदम उठाने को तैयार है।
भारत का आतंकवाद-रोधी सुरक्षा ढाँचा
भारत की काउंटर-टेररिज़्म संरचना सशक्त कानूनों, विशेषीकृत एजेंसियों, समन्वित खुफिया प्रणालियों और ऐसे परिचालन बलों पर आधारित है जो आतंकवादी खतरों को रोकने, पहचानने तथा उनसे निपटने के लिये बनाए गए हैं।
कानूनी और नीतिगत ढाँचा
- विधिविरुद्ध क्रिया-कलाप (निवारण) अधिनियम, 1967 (UAPA): भारत का प्रमुख आतंकवाद-रोधी कानून, जो आतंकवादी संगठनों पर प्रतिबंध लगाने, संपत्ति ज़ब्त करने और संदिग्धों को निवारक रूप से हिरासत में लेने की अनुमति देता है।
- राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण अधिनियम, 2008: एक केंद्रीय अभिकरण (राष्ट्रीय अन्वेषण अभिकरण- NIA) की स्थापना का प्रावधान करता है जो राज्यों के बीच आतंकवाद-संबंधी अपराधों की जाँच करती है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 (NSA): ऐसे व्यक्तियों की निवारक हिरासत की अनुमति देता है जो राष्ट्रीय सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था के लिये खतरा बन सकते हैं।
मुख्य संस्थागत तंत्र
- राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय (NSCS): राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) के नेतृत्व में यह सुरक्षा, रणनीति और खुफिया समन्वय का संचालन करता है।
- मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC): खुफिया ब्यूरो (IB) के अंतर्गत एक रियल-टाइम इंटेलिजेंस-शेयरिंग प्लेटफॉर्म, जो केंद्र और राज्य की एजेंसियों को जोड़ता है।
- राष्ट्रीय तकनीकी अनुसंधान संगठन (NTRO): साइबर खतरों, उपग्रहों और सिग्नलों से संबंधित तकनीकी खुफिया जानकारी प्रदान करता है।
- रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA): सेना, नौसेना और वायुसेना की सैन्य खुफिया को एकीकृत करती है।
परिचालन बल और प्रतिक्रिया इकाइयाँ
- राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG): विशेष बल जो आतंकवाद-रोधी अभियानों और बंधक बचाव में विशेषज्ञ हैं, विशेषकर शहरी क्षेत्रों में तीव्र प्रतिक्रिया क्षमता के लिये जाना जाता है।
- केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPFs): CRPF, BSF, ITBP और CISF सीमा सुरक्षा, आंतरिक स्थिरता तथा महत्त्वपूर्ण परिसंपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं।
- एंटी-टेररिज़्म स्क्वाड (ATS): राज्य-स्तरीय इकाइयाँ जो स्थानीय आतंकवाद-रोधी अभियानों और खुफिया कार्यों में केंद्रीय एजेंसियों के साथ कार्य करती हैं।
- विशेष बल (Special Forces): पैरा SF, MARCOS और गरुड़ कमांडोज़ जैसे बल गुप्त मिशन, सीमा-पार कार्रवाई, एंटी-हाईजैक ऑपरेशन तथा उच्च-जोखिम वाले हमलों को अंजाम देते हैं।
खुफिया और निगरानी नेटवर्क
- खुफिया ब्यूरो (IB): भारत की घरेलू खुफिया एजेंसी, जो काउंटर-इंटेलिजेंस, घुसपैठ की पहचान और आंतरिक खतरों के आकलन पर कार्य करती है।
- अनुसंधान एवं विश्लेषण विंग (R&AW): बाहरी खुफिया एजेंसी, जो सीमा-पार आतंक नेटवर्क और राज्य-प्रायोजित खतरों पर ध्यान केंद्रित करती है।
- साइबर सुरक्षा प्रभाग: भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) और CERT-In के माध्यम से साइबर आतंकवाद, डिजिटल प्रोपेगैंडा और ऑनलाइन उग्रपंथ का मुकाबला करता है।
भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये एक व्यापक आतंकवाद-रोधी नीति बनाने हेतु किन उपायों की आवश्यकता है?
- खुफिया जानकारी और समन्वय को मज़बूत करना: MAC को एक वैधानिक, 24×7 राष्ट्रीय फ्यूजन सेंटर में विकसित किया जाए, जहाँ सभी एजेंसियों द्वारा अनिवार्य रूप से सूचनाओं और डेटा का साझा किया जाना सुनिश्चित हो।
- ऑनलाइन कट्टरपंथ और आतंकवादी समूहों की गतिविधियों सहित आतंकवादी गतिविधि पैटर्न का विश्लेषण और भविष्यवाणी करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और बड़े डेटा एनालिटिक्स को लागू करना ।
- आतंकवादी गतिविधियों के प्रारूप, जिसमें ऑनलाइन कट्टरपंथ और आतंकी संगठनों की डिजिटल सक्रियता भी शामिल है, का विश्लेषण और पूर्वानुमान के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और बिग डेटा एनालिटिक्स का उपयोग किया जाए।
- सीमा पार आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये पड़ोसी देशों, विशेष रूप से बांग्लादेश, श्रीलंका और अफगानिस्तान के साथ खुफिया समन्वय में सुधार करना।
- पुलिसिंग और फॉरेंसिक क्षमताओं का आधुनिकीकरण: राज्य पुलिस को आधुनिक निगरानी उपकरणों, साइबर-फॉरेंसिक, ड्रोन-डिटेक्शन सिस्टम और पूर्वानुमानित पुलिसिंग सॉफ्टवेयर से लैस करना।
- मुकदमों में तेज़ी लाने और दोषसिद्धि दर में सुधार लाने हेतु फास्ट-ट्रैक काउंटर टेररिज़्म कोर्ट स्थापित करना।
- वैश्विक मॉडलों (जैसे सिंगापुर, ब्रिटेन) के आधार पर एक राष्ट्रव्यापी काउंटर-रेडिकलाइज़ेशन फ्रेमवर्क विकसित करना।
- ऑपरेशन सिंदूर के बाद के सिद्धांत को संस्थागत रूप देना, सटीक हमलों, साइबर क्षमताओं और सूचना युद्ध उपकरणों के मिश्रण के साथ भारत की निवारक स्थिति को मज़बूत करना।
निष्कर्ष
आतंकवाद बाहरी राज्य-प्रायोजन, आंतरिक उग्रवाद और तकनीक के उपयोग के माध्यम से भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा बना हुआ है। साइबर आतंकवाद, शहरी हमले और भारत की सामाजिक-राजनीतिक विभाजनों का दुरुपयोग जैसी चुनौतियाँ निरंतर बढ़ रही हैं। इन बदलते खतरों से निपटने के लिये सैन्य, खुफिया और साइबर सुरक्षा प्रयासों को एकीकृत करने वाली एक समग्र रणनीति अत्यंत आवश्यक है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. शहरी आतंकवाद की बदलती प्रकृति पर चर्चा कीजिये और उच्च प्रभाव वाले हमलों से भारतीय शहरों को सुरक्षित करने हेतु संस्थागत उपायों का प्रस्ताव कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
- भारत के नए आतंकवाद-रोधी सिद्धांत के मुख्य सिद्धांत क्या हैं?
यह सिद्धांत निर्णायक प्रतिकार, परमाणु ब्लैकमेल के प्रति शून्य सहनशीलता और आतंकवादियों तथा उन्हें समर्थन देने वाले राज्यों के बीच कोई भेद न करने के सिद्धांत पर आधारित है। - भारत के विरुद्ध सीमा-पार आतंकवाद को मुख्य रूप से कौन-से समूह संचालित करते हैं?
लश्कर-ए-तैयबा (LeT) और जैश-ए-मोहम्मद (JeM) जैसे पाकिस्तान-आधारित समूह सीमा-पार आतंकवादी गतिविधियों का नेतृत्व जारी रखते हैं। - भारतीय शहर शहरी आतंकवाद के प्रति अधिक संवेदनशील क्यों हैं?
उच्च जनसंख्या घनत्व, हमलावरों के लिये गुमनामी, विस्फोटक सामग्री (जैसे अमोनियम नाइट्रेट) की आसान उपलब्धता और महत्त्वपूर्ण अवसंरचना पर जोखिम—ये सभी कारक शहरी क्षेत्रों को अधिक असुरक्षित बनाते हैं। - मल्टी-एजेंसी सेंटर (MAC) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
MAC का उद्देश्य विभिन्न एजेंसियों के बीच खुफिया जानकारी का आदान-प्रदान सुनिश्चित करना और वास्तविक समय में खतरे का आकलन करना है, हालाँकि मौजूदा समन्वय की कमी इसकी प्रभावशीलता को सीमित करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. 'हैंड-इन-हैंड 2007' संयुक्त आतंकवाद विरोधी सैन्य प्रशिक्षण भारतीय सेना के अधिकारियों और निम्नलिखित में से किस देश की सेना के अधिकारियों द्वारा आयोजित किया गया था? (2008)
(a) चीन
(b) जापान
(c) रूस
(d) संयुक्त राज्य अमेरिका
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न. भारत के समक्ष आने वाली आंतरिक सुरक्षा चुनौतियाँ क्या हैं? ऐसे खतरों का मुकाबला करने के लिये नियुक्त केंद्रीय खुफिया और जाँच एजेंसियों की भूमिका बताइये। (2023)
प्रश्न. भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिये बाह्य राज्य और गैर-राज्य कारकों द्वारा प्रस्तुत बहुआयामी चुनौतियों का विश्लेषण कीजिये। इन संकटों का मुकाबला करने के लिये आवश्यक उपायों की भी चर्चा कीजिये। (2021)
प्रश्न. जम्मू और कश्मीर में 'जमात-ए-इस्लामी' पर पाबंदी लगाने से आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं (ओ० जी० डब्ल्यू०) की भूमिका ध्यान का केंद्र बन गई है। उपप्लव (बगावत) प्रभावित क्षेत्रों में आतंकवादी संगठनों को सहायता पहुँचाने में भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं द्वारा निभाई जा रही भूमिका का परीक्षण कीजिये। भूमि-उपरि कार्यकर्त्ताओं के प्रभाव को निष्प्रभावित करने के उपायों की चर्चा कीजिये।
(2019)