भारत में शराब विनियमन | 23 Jun 2025

प्रिलिम्स के लिये:

मेथेनॉल, एथेनॉल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, सातवीं अनुसूची, नशीली दवाओं की मांग में कमी लाने हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना, राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति (2014), गैर-संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना एवं निगरानी ढाँचा, आबकारी अधिनियम, 1944, राष्ट्रीय आत्महत्या रोकथाम रणनीति (NSPS) 2022

मेन्स के लिये:

भारत में शराब के सेवन की समस्या, भारत में शराब के नियमन से संबंधित प्रावधान और चुनौतियाँ, मानव शरीर पर शराब के सेवन का प्रभाव।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

भारत में शराब के सेवन में लगातार वृद्धि हो रही है, जो कि स्वास्थ्य जोखिमों, हिंसा, अपराध, आत्महत्याओं और वित्तीय संकटों से संबंधित अच्छी तरह से प्रलेखित संबंधों के बावजूद, एक एकीकृत राष्ट्रीय रणनीति द्वारा अनियंत्रित है, जिससे एक व्यापक राष्ट्रीय शराब नियंत्रण नीति और कार्यक्रम की तत्काल आवश्यकता महसूस की जा रही है।

भारत में शराब सेवन के लिये मुख्य प्रेरक कारक क्या हैं?

  • भारत में शराब का प्रचलन: NFHS-5 के अनुसार, 10 से 75 वर्ष की आयु के 14.6% लोग (16 करोड़) भारत में शराब का सेवन करते हैं, जिसमें 23% पुरुष और 1% महिलाएँ शामिल हैं।
    • भारत 2.6 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- DALY) और 6.24 ट्रिलियन रुपए (2021) की सामाजिक लागत के साथ, भारी मात्रा में शराब सेवन के मामले में विश्व स्तर पर सबसे ऊपर है।
    • अधिक सेवन करने वाले राज्य: छत्तीसगढ़, त्रिपुरा, पंजाब, अरुणाचल प्रदेश, गोवा; हाई डिसऑर्डर प्रिवेलेंस (> 10%): त्रिपुरा, आंध्र प्रदेश, पंजाब, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश।
  • प्रमुख प्रेरक कारक:
    • बायोसाइकोसोशल/जैविक-मानसिक-समाजिक निर्धारक: शराब का उपयोग आनुवंशिक प्रवृत्ति द्वारा प्रेरित होता है, क्योंकि यह मस्तिष्क की पुरस्कार प्रणाली (brain’s reward system) को सक्रिय करता है, जिससे यह निकोटीन या कोकीन की तरह व्यसनकारी बन जाता है।
      • मनोवैज्ञानिक रूप से, इसका उपयोग दाब, दुश्चिंता से निपटने या उत्साह की तलाश के लिये किया जाता है। 
      • सामाजिक रूप से, शहरी जीवनशैली, साथियों का दबाव (peer pressure) और मीडिया में ग्लैमराइज़्ड चित्रण (glamorized media portrayals) जैसे कारकों ने इसके उपयोग को सामान्य बना दिया है।
    • वाणिज्यिक निर्धारक: शराब के उपयोग को सरोगेट विज्ञापन, प्रभावशाली विपणन और OTT कंटेंट के माध्यम द्वारा बढ़ावा दिया जाता है। 
      • पूर्व-मिश्रित पेय और स्वादयुक्त स्पिरिट जैसे उत्पाद नवाचार युवाओं को आकर्षित करते हैं। 
      • खुदरा दुकानों, ऑनलाइन डिलीवरी और आकर्षक पैकेजिंग के माध्यम से सुगम उपलब्धता दृश्यता को बढ़ाती है। निम्न लागत वाली भारतीय निर्मित भारतीय शराब (IMIL) ग्रामीण गरीबों को लक्षित करती है, जबकि बढ़ती शहरी आय सामर्थ्य बढ़ाती है।
    • नीतिगत अंतराल: विनियामक खामियाँ, उत्पाद शुल्क राजस्व पर राज्य की निर्भरता, तथा एकीकृत राष्ट्रीय नीति का अभाव हानिकारक शराब के उपभोग को अनियंत्रित रूप से जारी रहने में सक्षम बनाता है।

भारत में शराब के उपयोग से संबंधित प्रमुख नियम क्या हैं?

भारत में शराब विनियमन की प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • खंडित एवं असंगत नीतियाँ: शराब राज्य का विषय होने के कारण भिन्न-भिन्न नीतियाँ बनती हैं, कोई एकीकृत राष्ट्रीय ढाँचा नहीं है, जिसके कारण राज्यों एवं मंत्रालयों के बीच असंगत विनियमन, परस्पर विरोधी दृष्टिकोण और कमज़ोर समन्वय होता है।
    • इसके अलावा खराब निगरानी के कारण अवैध शराब व्यापार, नाबालिगों द्वारा शराब पीने तथा लाइसेंसिंग और मूल्य निर्धारण मानदंडों का गैर-अनुपालन, विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में, बढ़ जाता है।
  • राज्यों की राजस्व निर्भरता: शराब उत्पाद शुल्क पर उच्च राजस्व निर्भरता, जो GST के दायरे से बाहर है, राज्यों को सख्त विनियमन या निषेध पर शराब की बिक्री को प्राथमिकता देने के लिये प्रोत्साहित करती है। इससे राजकोषीय हितों और सार्वजनिक स्वास्थ्य उद्देश्यों के बीच टकराव उत्पन्न होता है, जिससे प्रभावी शराब नियंत्रण नीतियों में बाधा आती है।
  • विनियामक अंतराल और चोरी: सरोगेट विज्ञापन, सेलिब्रिटी समर्थन और डिजिटल प्रभावित विज्ञापन कानूनों में खामियों का फायदा उठाते हैं, जबकि ऑनलाइन वितरण प्रतिबंधों के बावजूद पहुँच को बढ़ाता है।
  • राजनीतिक-नौकरशाही गठजोड़: अवैध शराब व्यापार में राजनीतिक संरक्षण और नौकरशाही की मिलीभगत, भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी द्वारा समर्थित, प्रवर्तन को कमज़ोर करती है और तस्करों को दंड से मुक्ति के साथ काम करने की अनुमति देती है।
  • कम सार्वजनिक जागरूकता और स्वास्थ्य साक्षरता: मानसिक बीमारी, NCD, कैंसर और सामाजिक-आर्थिक नुकसान (जैसे गरीबी और घरेलू हिंसा) के साथ शराब के संबंध के बारे में सीमित जागरूकता विनियमन और व्यवहार परिवर्तन की सार्वजनिक मांग में बाधा डालती है।

भारत में शराब संबंधी संकट का प्रभावी रूप से समाधान करने के लिये क्या से उपाय किये जाने चाहिये?

  • वहनीयता: अत्यधिक उपभोग को हतोत्साहित करने हेतु उत्पाद शुल्क में वृद्धि की जाए, साथ ही यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि विशेष रूप से गरीब वर्गों में अवैध शराब की ओर रुझान न हो — इसके लिये आवश्यक सुरक्षा उपाय किये जाने चाहिये।
  • आवंटन: शराब कर से प्राप्त राजस्व को सार्वजनिक स्वास्थ्य, नशामुक्ति एवं पुनर्वास कार्यक्रमों के लिये विशेष रूप से आरक्षित किया जाना चाहिये, तथा पारदर्शी उपयोग सुनिश्चित किया जाना चाहिये ताकि धन का दुरुपयोग और कॉर्पोरेट प्रभाव से बचाव हो सके।
  • सुलभता: आवासीय क्षेत्रों, मॉल, फूड कोर्ट आदि में शराब की बिक्री पर प्रतिबंध लगाकर तथा Swiggy, Zomato, Blinkit जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से ऑनलाइन आपूर्ति को सीमित कर भौतिक एवं डिजिटल सुलभता को नियंत्रित किया जाना चाहिये, ताकि सामान्य उपभोग की प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जा सके।
  • विज्ञापन: सरोगेट (प्रतिनिधि) और सोशल मीडिया प्रभावकों (influencers) द्वारा संचालित प्रचार पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये, तथा सोशल मीडिया और OTT प्लेटफॉर्म पर शराब-संबंधी सामग्री के एल्गोरिदमिक प्रसार को नियंत्रित किया जाना चाहिये।
  • आकर्षण: शराब की आकर्षक और आकांक्षात्मक प्रभाव को कम करने हेतु साधारण पैकेजिंग, स्पष्ट स्वास्थ्य चेतावनियों को अनिवार्य किया जाए तथा दुकानों में होने वाले प्रचारात्मक प्रदर्शन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिये।
  • जागरूकता: तंबाकू नियंत्रण की सफलताओं से प्रेरणा लेते हुए राष्ट्रव्यापी जन-जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिये, जिनमें शराब और कैंसर, मानसिक रोग, घरेलू हिंसा और गरीबी के बीच संबंधों को उजागर किया जा सके। यह अभियान विशेष रूप से युवाओं और संवेदनशील समुदायों को लक्षित किये जाने चाहिये।
  • कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): डिजिटल भ्रामक जानकारी, प्रचार सामग्री और अवस्यकों को लक्षित करने वाली गतिविधियों का पता लगाने एवं उन्हें नियंत्रित करने के लिये AI उपकरणों का उपयोग किया जाना चाहिये। साथ ही, नीति उल्लंघनों की निगरानी और प्रवर्तन में भी इनका सहयोग लिया जाए।
  • राष्ट्रीय स्तर की नीति: एक राष्ट्रीय शराब नियंत्रण नीति एवं कार्यक्रम तैयार किया जाना चाहिये, जो समन्वित एवं जनस्वास्थ्य-केंद्रित दृष्टिकोण को सुनिश्चित करे। यह नीति लाभ के बजाय जनहित, राजस्व के बजाय रोकथाम, तथा अल्पकालिक राजकोषीय लाभ के बजाय दीर्घकालिक सामाजिक कल्याण को प्राथमिकता दे।

निष्कर्ष

भारत में बढ़ता हुआ शराब संकट खंडित राज्यीय नीतियों से आगे बढ़कर तत्काल एवं समन्वित कार्रवाई की मांग करता है। शराब की बढ़ती खपत और उससे संबंधित दुष्परिणामों पर अंकुश लगाने के लिये जनस्वास्थ्य और सामाजिक न्याय पर आधारित एक समग्र राष्ट्रीय शराब नियंत्रण नीति अत्यंत आवश्यक है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत में बढ़ती शराब की खपत जनस्वास्थ्य और शासन व्यवस्था के लिये गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न करती है। एक राष्ट्रीय शराब नियंत्रण नीति की आवश्यकता पर चर्चा कीजिये तथा इससे निपटने के लिये प्रमुख उपाय सुझाइए।

 UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. बिस्फिनॉल A (BPA), जो चिन्ता का कारण है, निम्नलिखित में से किस प्रकार के प्लास्टिक के उत्पादन में एक संरचनात्मक/मुख्य घटक है? (2021)

(a) निम्न घनत्व वाले पॉलिएथिलीन
(b) पॉलिकार्बोनेट
(c) पॉलिएथिलीन टेरेफ्थेलेट
(d)पॉलिविनाइल क्लोराइड

उत्तर: (b) 

प्रश्न. निम्नलिखित में से किसमें 'ट्राइक्लोसन' के विद्यमान होने की सर्वाधिक संभावना है, जिसके लंबे समय तक उच्च स्तर के प्रभावन में रहने को हानिकारक माना जाता है? (2021)

(a)खाद्य परिरक्षक
(b)फल पकाने वाले पदार्थ
c) पुनःप्रयुक्त प्लास्टिक के पात्र
(d)प्रसाधन सामग्री 

उत्तर: (d)