दलहन में आत्मनिर्भरता | 21 Jun 2025
प्रिलिम्स के लिये :दलहन, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), अल नीनो, दलहन में आत्मनिर्भरता मिशन, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान (पीएम-आशा) योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड, पीएम-आशा योजना, किसान उत्पादक संगठन (FPO), कृषि विज्ञान केंद्र (KVKs), इंटरक्रॉपिंग, ज़ीरो-टिल फार्मिंग। मेन्स के लिये:भारत के दालों के उत्पादन और आयात में रुझान, भारत के दालों के उत्पादन और आयात से संबंधित मुद्दे, दालों में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये आवश्यक उपाय। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) निर्धारित किये जाने के बावजूद अपर्याप्त खरीद के कारण किसान खुले बाज़ार में कम कीमत पर दालें बेचने को मज़बूर हैं।
- बाज़ार में आयात में रिकॉर्ड वृद्धि हुई है, जिससे घरेलू कीमतों में गिरावट आई है, परिणामस्वरूप दलहन का उत्पादन करने वाले किसानों को MSP खरीद में उपेक्षा का सामना करना पड़ रहा है, जो एक गंभीर संकट को दर्शाता है।
दलहन के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- दलहन फलीदार पौधों के खाद्य बीज हैं, जिनकी कटाई केवल उनके सूखे दानों के लिये की जाती है , और ये लेग्युमिनोसी (फैबेसी) परिवार से संबंधित हैं।
- दलहनों में प्रोटीन, फाइबर और पोषक तत्त्व अधिक होते हैं, वसा कम होती है, ये नाइट्रोजन-फिक्सिंग फसलों के रूप में कार्य करती हैं जो मिट्टी की उर्वरता में सुधार करती हैं, और सूखने पर इनका शेल्फ जीवन लंबा होता है।
- जलवायु परिस्थितियाँ: दलहन उत्पादन के लिये 20-27 डिग्री सेल्सियस तापमान, 25-60 से.मी. वर्षा और रेतीली-दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है तथा इनकी खेती वर्ष भर की जाती है।
- रबी दलहन (60% से अधिक योगदान): चना (काबुली चना), चना (देशी चना), मसूर (लेंस); इन फसलों को बुवाई के लिये हल्की सर्दी, वृद्धि के लिये ठंडा मौसम तथा कटाई के समय गर्म मौसम की आवश्यकता होती है।
- खरीफ दलहन: मूँग (हरी मूँग), उड़द (काली दाल), अरहर (तुअर); इन फसलों को पूरे वृद्धि चक्र के दौरान गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है।
- भारत की उत्पादन स्थिति: भारत विश्व स्तर पर दलहन का सबसे बड़ा उत्पादक (25%), उपभोक्ता (27%) और आयातक (14%) है। शीर्ष उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक हैं।
- दलहन खाद्यान्न क्षेत्र के 20% हिस्से को कवर करती हैं, लेकिन कुल उत्पादन में केवल 7–10% का योगदान देती हैं। इनमें चना (लगभग 40%) प्रमुख फसल है, इसके बाद तूर/अरहर (15–20%) और उड़द व मूँग (प्रत्येक 8–10%) का स्थान आता है।
- भारत की दलहन आयात स्थिति: वर्ष 2024-25 में भारत का दलहन आयात 7.3 मिलियन टन तक पहुँच गया, जिसकी कीमत 5.5 अरब अमेरिकी डॉलर रही, यह अब तक का सर्वाधिक आयात है, जिसने वर्ष 2016-17 के पिछले रिकॉर्ड 6.6 मिलियन टन और 4.2 अरब डॉलर को पार कर लिया।
- भारत के लिये दालों के प्रमुख स्रोत कनाडा, रूस, ऑस्ट्रेलिया, मोज़ाम्बिक, तंज़ानिया, म्याँमार और अमेरिका थे।
- वर्ष 2017-18 के बाद दलहन आयात औसतन 2.6 मिलियन टन (1.7 अरब डॉलर) तक घट गया था, लेकिन वर्ष 2023-24 में अल नीनो के कारण पड़े सूखे ने आत्मनिर्भरता को प्रभावित किया, जिससे उत्पादन घटकर 24.2 मिलियन टन रह गया। हालाँकि, 2024-25 में यह आंशिक रूप से सुधरकर 25.2 मिलियन टन तक पहुँच गया।
भारत में दलहनों के निम्न उत्पादन के प्रमुख कारण क्या हैं?
- न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और नीतिगत पक्षपात: सरकार की MSP नीति गेहूँ और चावल के पक्ष में है, जबकि जल, विद्युत और उर्वरकों पर दी जाने वाली सब्सिडी जल-प्रधान फसलों जैसे धान को प्रोत्साहित करती है। इससे किसान दलहनों की बजाय धान जैसी फसलों की कृषि ज्यादा करते हैं।
- गेहूँ और चावल की तरह दलहनों की सरकारी खरीद सुसंगत नहीं है, जिससे इसकी कृषि और हतोत्साहित होती है।
- जलवायु की अस्थिरता: दलहनों की कृषि अधिकतर वर्षा-आश्रित क्षेत्रों में होती है, जिससे यह मानसून वर्षा पर अत्यधिक निर्भर होती है।
- यह फसलें चरम मौसम की परिस्थितियों (जैसे अनावृष्टि, बेमौसम वर्षा, अनियमित मानसून) के प्रति कम सहनशील होती हैं और प्रायः क्षतिग्रस्त हो जाती हैं।
- कम उत्पादकता और स्थिर उपज दर: भारत में दलहनों की औसत उत्पादकता केवल 660 किग्रा/हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत 909 किग्रा/हेक्टेयर से काफी कम है। इसका कारण है—खराब बीज गुणवत्ता, उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYV) की कमी और उन्नत तकनीकों को अपनाने में बाधा।
- चावल और गेहूँ जैसे अनाजों की तुलना में दलहनों में अनुसंधान एवं विकास की वृद्धि धीमी रही है।
- विखंडित कृषि प्रणाली: अधिकांश दलहन किसान छोटे और सीमांत किसान हैं (जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम भूमि है)। इससे उनके पास आर्थिक पैमाने का लाभ नहीं होता और वे बेहतर बीज, सिंचाई व्यवस्था और उर्वरकों में निवेश नहीं कर पाते।
- मृदा और कीट संबंधी चुनौतियाँ: दलहन फसलें प्रोटीन, अमीनो एसिड तथा सूक्ष्म पोषक तत्त्वों से भरपूर होने के कारण कीटों को अधिक आकर्षित करती हैं, जिससे इनमें कीट और रोगों का प्रकोप अन्य फसलों की तुलना में अधिक होता है।
- उन्हें मृदा की लवणता, पोषक तत्त्वों की कमी और लागत की कमी के कारण फसल संरक्षण प्रौद्योगिकियों के सीमित उपयोग जैसी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है।
दलहन उत्पादन बढ़ाने हेतु भारत की क्या पहल हैं?
दलहन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?
- उत्पादकता में वृद्धि: बेहतर उपज और बेहतर पोषण के लिये उच्च उत्पादक, जलवायु-प्रतिरोधी एवं रोग-प्रतिरोधी किस्मों जैसे अरहर की संकर और जैव-सशक्त दलहन (जैसे आयरन युक्त मसूर) को बढ़ावा देना।
- प्रमुख दलहन उत्पादक राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र) में सूक्ष्म सिंचाई (ड्रिप/स्प्रिंकलर) का विस्तार करना और खरीफ के बाद की खाली पड़ी धान की भूमि का उपयोग दलहन उत्पादन के लिये करना।
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड, सेंसर-आधारित सिंचाई और AI-संचालित कीट प्रबंधन के माध्यम से परिशुद्ध कृषि (प्रिसिज़न फार्मिंग) को प्रोत्साहित करना।
- नीति एवं MSP सुधार: दालों की समय पर खरीद सुनिश्चित करके MSP खरीद को सुदृढ़ करना तथा अधिक किसानों को कवर करने के लिये पीएम-आशा योजना का विस्तार करना।
- दलहन को प्रोत्साहन देने के लिये जल-गहन फसलों (चावल, गन्ना) के लिये सहायता में कमी करके सब्सिडी को पुनः संतुलित करना तथा प्रोत्साहनों के माध्यम से धान-गेहूँ की एकल खेती से दालों और बाजरा की खेती में फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करना।
- भंडारण सुधार: दलहनों के फसलोत्तर क्षति (वर्तमान में 5-10%) को कम करने के लिये आधुनिक वेयरहाउसिंग, साइलो और हर्मेटिक भंडारण का विस्तार करना। साथ ही खेतों के नज़दीक मिनी दाल मिल्स, फोर्टिफिकेशन और पैकेजिंग को समर्थन देकर प्रसंस्करण अवसंरचना को सुदृढ़ करना।
- किसानों को मध्यस्थों से बचने में सहायता करने के लिये किसान उत्पादक संगठनों (FPO) को प्रोत्साहित करके प्रत्यक्ष बाज़ार संपर्क को बढ़ावा देना।
- अनुसंधान एवं विस्तार सेवाओं को बढ़ावा देना: बहुफसली खेती के लिये शीघ्र पकने वाली मूंग जैसी अल्पावधि, उच्च उपज वाली किस्मों को विकसित करने हेतु अनुसंधान एवं विकास निधि में वृद्धि करना।
- कृषि विज्ञान केंद्रों (KVK) का विस्तार किया जाए ताकि किसानों को अंतरफसल प्रणाली (जैसे कपास और दलहन), शून्य जुताई कृषि, तथा एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) में प्रशिक्षण दिया जा सके।
- बफर स्टॉक नीति: 2.5–3 मिलियन टन का गतिशील बफर स्टॉक बनाए रखा जाए ताकि मूल्य झटकों को कम किया जा सके। अधिशेष वाले वर्षों में आयात पर टैरिफ लगाकर उसे नियंत्रित किया जाए, जबकि कमी के समय आयात की अनुमति दी जाए।
निष्कर्ष
भारत के दलहन क्षेत्र को निम्न MSP पर खरीद, जलवायु असुरक्षा, और बढ़ते आयात जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद किसानों को नुकसान हो रहा है। आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये, नीति सुधार, बेहतर सरकारी खरीद, उच्च उपज वाली किस्मों पर अनुसंधान एवं विकास (R&D), और भंडारण अवसंरचना का विकास अत्यंत आवश्यक है। घरेलू प्रोत्साहनों के साथ आयात में संतुलन स्थापित करने से मूल्य स्थिरता, किसानों की आय में वृद्धि, और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: "दलहनों का सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद, भारत भारी मात्रा में आयात पर निर्भर है।" भारत के दलहन क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियों पर चर्चा कीजिये और आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उपाय सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में दालों के उत्पादन के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2020)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) मेन्सप्रश्न. भारत में स्वतंत्रता के बाद कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न प्रकार की क्रांतियों की व्याख्या कीजिये। इन क्रांतियों ने भारत में गरीबी उन्मूलन और खाद्य सुरक्षा में किस प्रकार मदद की है? (2017) |