नशीली दवाओं की लत और भारत | 26 Oct 2021

प्रिलिम्स के लिये: 

गोल्डन ट्रायंगल, गोल्डन क्रिसेंट, नार्को-समन्वय केंद्र, मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष

मेन्स के लिये: 

भारत में नशीली दवाओं की लत से संबंधित समस्या और सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सिफारिश की है कि 'मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष' का उपयोग केवल पुलिसिंग गतिविधियों के बजाय नशामुक्ति कार्यक्रमों के संचालन हेतु किया जाना चाहिये।

  • ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 में परिभाषित दवाओं की अल्प मात्रा को अपराध मुक्त करने का प्रस्ताव भी वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग को भेजा गया था।
    • इसे मंज़ूरी मिलने के पश्चात् व्यक्तिगत उपयोग के लिये अल्प मात्रा में नशीली दवाओं के साथ पकड़े गए व्यक्तियों पर मुकदमा चलाने और जेल भेजने के बजाय उन्हें पुनर्वास के लिये निर्देशित किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु

  • मादक पदार्थों के नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कोष
    • यह कोष ‘नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस’ (NDPS) अधिनियम, 1985 के प्रावधान के अनुसार बनाया गया था, जिसमें 23 करोड़ रुपए की राशि शामिल है।
    • NDPS अधिनियम के तहत ज़ब्त की गई किसी भी संपत्ति की बिक्री से प्राप्त आय, किसी व्यक्ति और संस्था द्वारा किये गए अनुदान तथा फंड के निवेश से होने वाली आय, फंड में शामिल की जाएगी।
    • अधिनियम के मुताबिक, इस फंड का उपयोग नशीले पदार्थों की अवैध तस्करी, नशा पीड़ित लोगों के पुनर्वास और नशीली दवाओं के दुरुपयोग को रोकने के लिये किया जाएगा।

Iran

  • भारत में नशीली दवाओं की लत:
    • भारत के युवाओं के बीच नशे की लत तेज़ी से फैल रही है।
      • भारत विश्व के दो सबसे बड़े अफीम उत्पादक क्षेत्रों (एक तरफ ‘गोल्डन ट्रायंगल’ और दूसरी तरफ ‘गोल्डन क्रिसेंट’) के बीच स्थित है।
      • ‘गोल्डन ट्रायंगल’ क्षेत्र में थाईलैंड, म्याँमार, वियतनाम और लाओस शामिल हैं।
      • ‘गोल्डन क्रिसेंट’ क्षेत्र में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान शामिल हैं।
      • वर्ल्ड ड्रग रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारत (विश्व में जेनेरिक दवाओं का सबसे बड़ा निर्माता) में प्रिस्क्रिप्शन वाली दवाओं और उनके अवयवों को मनोरंजक उपयोग के साधनों में तेज़ी से परिवर्तित किया जा रहा है।
      • भारत वर्ष 2011-2020 में विश्लेषण किये गए 19 प्रमुख डार्कनेट (काला बाज़ारी) बाज़ारों में बेची जाने वाली दवाओं के शिपमेंट से भी जुड़ा हुआ है।
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की ‘क्राइम इन इंडिया- 2020’ रिपोर्ट के अनुसार, NDPS अधिनियम के तहत कुल 59,806 मामले दर्ज किये गए थे।
    • सामाजिक न्याय मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) की 2019 में मादक द्रव्यों के सेवन की मात्रा पर जारी रिपोर्ट के अनुसार, 
      • भारत में 3.1 करोड़ भांग उपयोगकर्त्ता हैं (जिनमें से 25 लाख आश्रित उपयोगकर्त्ता थे)।
      • भारत में 2.3 करोड़ ओपिओइड उपयोगकर्त्ता हैं (जिनमें से 28 लाख आश्रित उपयोगकर्त्ता थे)।
  • अन्य संबंधित पहलें:
    • नार्को-समन्वय केंद्र: नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन नवंबर 2016 में किया गया था और "नारकोटिक्स नियंत्रण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता" योजना को पुनर्जीवित किया गया था।
    • जब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली: नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक नया सॉफ्टवेयर यानी जब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (SIMS) विकसित करने के लिये धन उपलब्ध कराया गया है जो नशीली दवाओं के अपराध और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करेगा।
    • नेशनल ड्रग एब्यूज़ सर्वे: सरकार एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की मदद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के रुझानों को मापने हेतु राष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग संबंधी सर्वेक्षण भी कर रही है।
      • प्रोजेक्ट सनराइज़: इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा 2016 में भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी प्रसार से निपटने के लिये शुरू किया गया था, खासकर ड्रग्स का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों के बीच।
    • NDPS अधिनियम: यह व्यक्ति को किसी भी मादक दवा या मनोदैहिक पदार्थ के उत्पादन, रखने, बेचने, खरीदने, परिवहन, भंडारण और/या उपभोग करने से रोकता है।
      • NDPS अधिनियम में अब तक तीन बार संशोधन किया गया है - 1988, 2001 और 2014 में।
      • यह अधिनियम पूरे भारत के साथ-साथ भारत के बाहर के सभी भारतीय नागरिकों और भारत में पंजीकृत जहाज़ो एवं विमानों पर कार्यरत सभी व्यक्तियों पर भी लागू होता है।
    • नशा मुक्त भारत: सरकार ने 'नशा मुक्त भारत' या ड्रग मुक्त भारत अभियान शुरू करने की भी घोषणा की है जो सामुदायिक आउटरीच कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
  • नशीली दवाओं के खतरे का मुकाबला करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय संधियाँ और सम्मेलन:

आगे की राह 

  • नशीली दवाओं के सेवन से जुड़े कलंक को समाप्त करने के लिये समाज को यह समझने की ज़रूरत है कि नशा करने वाले अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित होते हैं।
  • कुछ दवाएँ जिनमें 50% से अधिक अल्कोहल और ओपिओइड शामिल होता है, को सामान्य दवाओं के अंतर्गत शामिल किये जाने की आवश्यकता है। देश में नशीली दवाओं की समस्या पर अंकुश लगाने के लिये पुलिस अधिकारियों और आबकारी विभाग को सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।
  • बिहार में शराबबंदी जैसा राजनीतिक फैसला इसका दूसरा समाधान हो सकता है. जब लोग आत्म-नियंत्रण नहीं कर पाते हैं, तो राज्य को राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों (अनुच्छेद 47) के तहत कदम उठाना पड़ता है।
  • शिक्षा पाठ्यक्रम में मादक पदार्थों की लत, इसके प्रभाव और नशामुक्ति पर भी अध्याय शामिल होने चाहिये। उचित परामर्श एक अन्य विकल्प है।

स्रोत: द हिंदू