प्रिलिम्स फैक्ट्स (30 Jun, 2025)



19वाँ सांख्यिकी दिवस और PC महालनोबिस का योगदान

स्रोत: पी.आई.बी.

प्रशांत चंद्र महालनोबिस की 132 वीं जयंती के अवसर पर 29 जून को 19वाँ सांख्यिकी दिवस मनाया गया, जिसका विषय था 'राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के 75 वर्ष', जिसमें भारत की सांख्यिकीय प्रणाली को मज़बूत बनाने में राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (NSS) की महत्त्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डाला गया।

  • NSS के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में, सरकार ने GoIStat app लॉन्च किया, सांख्यिकी में उत्कृष्टता के लिये डॉ. प्रजामित्र भुयान को 2025 प्रो. सी.आर. राव पुरस्कार प्रदान किया और SDG राष्ट्रीय संकेतक फ्रेमवर्क प्रगति रिपोर्ट, 2025 जारी की।

राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस क्या है और PC महालनोबिस का योगदान क्या है?

  • राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस: वर्ष 2007 में भारत सरकार द्वारा शुरू किया गया, राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस 29 जून को प्रशांत चंद्र महालनोबिस को सम्मानित करने और नीति-निर्माण, विकास तथा शासन में सांख्यिकी की भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये मनाया जाता है।
  • PC महालनोबिस: PC महालनोबिस (1893-1972) एक प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक और सांख्यिकीविद् थे, उनका जन्म कलकत्ता (अब कोलकाता) में हुआ था। उनके प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:
    • महालनोबिस दूरी: यह बहुआयामी आँकड़ों में किसी बिंदु की औसत से दूरी को मापने का एक तरीका है।    
      • उदाहरण के लिये, चेहरे की पहचान में यह जाँचने में सहायता करता है कि कोई नया चेहरा किसी ज्ञात व्यक्ति से मेल खाता है या नहीं, यह देखकर कि वह औसत चेहरे से कितनी दूरी पर है।
    • भारतीय सांख्यिकी संस्थान: वर्ष 1931 में कोलकाता में स्थापित यह संस्थान सांख्यिकी, अर्थशास्त्र और डेटा विज्ञान के लिये एक वैश्विक केंद्र बन गया है।
      • उन्होंने वर्ष 1933 में पहली भारतीय सांख्यिकीय पत्रिका, 'सांख्य' की भी स्थापना की।
    • द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956–61): वर्ष 1955 में प्रधानमंत्री नेहरू द्वारा पी.सी. महालनोबिस को योजना आयोग में नियुक्त किया गया। उन्होंने औद्योगीकरण पर परामर्श दिया और महालनोबिस मॉडल के माध्यम से भारी उद्योगों पर विशेष ज़ोर दिया।
    • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण: इसे वर्ष 1950 में प्रोफेसर पी.सी. महालनोबिस की सिफारिश पर प्रारंभ किया गया था, जो उस समय मंत्रिमंडल के सांख्यिकी सलाहकार थे।
    • फेल्डमैन-महालनोबिस मॉडल: यह विकासशील देशों द्वारा अपनाई गई एक आर्थिक विकास रणनीति है, जो दीर्घकालिक आत्मनिर्भरता के लिये मज़बूत औद्योगिक आधार तैयार करने हेतु भारी उद्योगों (जैसे- इस्पात, मशीनरी और पूंजीगत वस्तुएँ) में निवेश को प्राथमिकता देती है।
  • राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण का परिचय: वर्ष 1950 से पूर्व राष्ट्रीय प्रतिरूप प्रतिदर्श संगठन (अब राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय) भारत भर में व्यापक स्तर पर प्रतिदर्श सर्वेक्षण आयोजित करता रहा है, जो सामान्यतः वर्षभर चलने वाले चरणों (राउंड्स) में किये जाते हैं।
    • यह संगठन देशव्यापी घरेलू सर्वेक्षणों, वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI), ग्रामीण और शहरी मूल्य आँकड़ों के माध्यम से डेटा एकत्र करता है तथा क्षेत्रफल एवं फसल के अनुमान संबंधी सर्वेक्षणों की निगरानी करके फसल आँकड़ों को सहयोग प्रदान करता है।
    • यह शहरी सर्वेक्षणों के लिये एक प्रतिदर्श संरचना भी बनाए रखता है।
  • MoSPI: सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय (MoSPI) की स्थापना 15 अक्तूबर, 1999 को एक स्वतंत्र मंत्रालय के रूप में की गई थी, जब सांख्यिकी विभाग एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन विभाग का विलय कर दिया गया। इस मंत्रालय के दो प्रमुख प्रभाग हैं — सांख्यिकी प्रभाग और कार्यक्रम क्रियान्वयन प्रभाग।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रश्न. भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?  (2019)

1. दूसरी पंचवर्षीय योजना से बुनियादी तथा पूंजीगत वस्तु उद्योगों के प्रतिस्थापन की दिशा में निश्चयात्मक ज़ोर दिया गया।
2. चौथी पंचवर्षीय योजना में संपत्ति तथा आर्थिक शक्ति के बढ़ते संकेंद्रण की पूर्व प्रवृत्ति के सुधार का उद्देश्य अपनाया गया।
3. पाँचवीं पंचवर्षीय योजना में, पहली बार, वित्तीय क्षेत्रक को योजना के अभिन्न अंग के रूप में शामिल किया गया।

नीचे दिये गये कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये।

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 3         
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (a)


प्रश्न: भारत की पंचवर्षीय योजनाओं के संदर्भ में, औद्योगीकरण के पैटर्न में बदलाव, भारी उद्योगों पर कमज़ोर और बुनियादी ढाँचे पर अधिक ज़ोर देना शुरू हुआ था: (2010)

(a) चौथी योजना
(b) छठी योजना 
(c) आठवीं योजना  
(d) दसवीं योजना 

उत्तर: (b)


भारत-दक्षिण अफ्रीका पनडुब्बी सहयोग समझौते

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

भारत और दक्षिण अफ्रीका ने जोहान्सबर्ग में आयोजित 9वीं संयुक्त रक्षा समिति (JDC) बैठक के दौरान पनडुब्बी सहयोग पर दो समझौतों पर हस्ताक्षर किये।

भारत-दक्षिण अफ्रीका संयुक्त रक्षा समिति (JDC)

  • यह एक द्विपक्षीय संस्थागत तंत्र है, जिसकी स्थापना वर्ष 2000 में रक्षा सहयोग पर हस्ताक्षरित समझौता ज्ञापन (MoU) के तहत रक्षा संबंधों को सुदृढ़ करने के उद्देश्य से की गई थी।
    • भारत और दक्षिण अफ्रीका के संबंध सामूहिक उपनिवेश-विरोधी संघर्ष में निहित हैं और दोनों देशों के बीच औपचारिक रक्षा सहयोग की शुरुआत वर्ष 1996 में रक्षा उपकरणों पर एक MoU के माध्यम से हुई थी।
  • JDC की सह-अध्यक्षता दोनों देशों के रक्षा सचिव करते हैं और यह एक उच्च स्तरीय मंच के रूप में कार्य करता है, जहाँ वर्तमान सहयोग की समीक्षा की जाती है तथा रक्षा नीति, सैन्य प्रशिक्षण, रक्षा उत्पादन एवं अनुसंधान जैसे क्षेत्रों में आपसी रुचि के नए आयामों की पहचान की जाती है।
  • यह समिति रक्षा सहयोग एवं अधिग्रहण से संबंधित दो उप-समितियों की निगरानी भी करती है और संरचित संवाद, समुद्री सुरक्षा तथा अफ्रीका में भारत की रणनीतिक पहुँच को भी सुदृढ़ करने में सहायक होती है।

दक्षिण अफ्रीका

  • यह अफ्रीका का सबसे दक्षिणी देश है, जिसकी सीमा नामीबिया, बोत्सवाना, ज़िम्बाब्वे (उत्तर), मोज़ाम्बिक, इस्वातिनी (उत्तर-पूर्व और पूर्व) और लेसोथो (एन्क्लेव) से लगती है।
  • इसकी तीन राजधानियाँ हैं: प्रिटोरिया (कार्यकारी), केप टाउन (विधायी), ब्लोमफोंटेन (न्यायिक)।
  • दक्षिण अफ्रीका की समुद्री सीमाएँ हिंद महासागर और अटलांटिक महासागर दोनों से मिलती हैं।
    • इसकी प्रमुख भौगोलिक विशेषताओं में ड्राकेंसबर्ग पर्वत, लिम्पोपो और ऑरेंज नदियाँ तथा हाइवेल्ड (घास के मैदान वाला पठार), बुशवेल्ड (वृक्षों से युक्त मैदान) और ग्रेट एस्कार्पमेंट (पहाड़ी किनारा) जैसी भू-आकृतियाँ शामिल हैं।

अफ्रीका के समर्थन में भारत की पहलें

  • बुनियादी अवसरंचना और प्रशिक्षण सहयोग: भारत ने ग्रामीण प्रौद्योगिकी पार्क, खाद्य परीक्षण प्रयोगशालाएँ, व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किये हैं; साथ ही फसल प्रसंस्करण, खाद निर्माण, सिंचाई एवं कृषि यंत्रीकरण में प्रशिक्षण प्रदान किया है।
  • त्रिपक्षीय सहयोग: अफ्रीकी देशों में कृषि विशेषज्ञों को तैनात करने तथा खाद्य सुरक्षा एवं सिंचाई योजना का समर्थन करने के लिये FAO, USAID और SITA (अफ्रीका के लिये भारत की व्यापार प्राथमिकताओं का समर्थन) के साथ साझेदारी की गई।
  • 3A फ्रेमवर्क: यह फ्रेमवर्क अफ्रीका की स्थानीय परिस्थितियों के अनुरूप किफायती, उपयुक्त और अनुकूलनीय कृषि प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देता है।

South_Africa

India-Africa_Key_Facts

और पढ़ें: भारत-अफ्रीका साझेदारी का विकास 


इलायची थ्रिप्स हेतु जैव पीड़कनाशक

स्रोत: पी.आई.बी.

चर्चा में क्यों?

ICAR-भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान (ICAR-IISR), कोझिकोड ने इलायची के बगानों को प्रभावित करने वाले प्रमुख कीट, इलायची थ्रिप्स, पर प्रभावी नियंत्रण के लिये एंटोमोपैथोजेनिक कवक (entomopathogenic fungus) लेकैनिसिलियम साइलियोटे (Lecanicillium psalliotae) का उपयोग करते हुए एक पर्यावरण अनुकूल जैव पीड़कनाशक विकसित किया है।

लेकैनिसिलियम साइलियोटे-आधारित जैव पीड़कनाशक क्या है?

  • परिचय: लेकैनिसिलियम साइलियोटे का उपयोग करके एक दानेदार जैव पीड़कनाशक विकसित किया गया है, जो इलायची थ्रिप्स (साइकोथ्रिप्स कार्डामोमी) से पृथक किया गया एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला एंटोमोपैथोजेनिक कवक है।
    • यह कीटों की बाहरी परत को भेदकर उनके शरीर के भीतर पोषण ग्रहण करता है, जिससे यह लार्वा, प्यूपा और वयस्क कीटों पर प्रभावी नियंत्रण प्रदान करता है। यह संपर्क में आने पर कार्य करता है तथा ब्यूवेरिया बेसियाना एवं मेटारिज़ियम एनीसोप्लिया जैसे व्यापक रूप से प्रयुक्त जैव कीट नियंत्रण समूह का हिस्सा है।
  • प्रयोग और लाभ: इस जैव पीड़कनाशक को खेत की खाद (FYM) के साथ मिलाकर पौधों की जड़ों के आस-पास 3 या 4 बार डाला जाता है।
    • यह लागत प्रभावी है, रासायनिक कीटनाशकों पर निर्भरता को कम करता है तथा जड़ों की वृद्धि और मृदा में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता को बढ़ावा देता है।
  • महत्त्व: यह पर्यावरण के अनुकूल और विष-रहित है, जिससे पर्यावरणीय प्रभाव और स्वास्थ्य जोखिम कम होते हैं। यह एकीकृत कीट प्रबंधन (IPM) रणनीतियों का समर्थन करता है, संधारणीय कृषि को बढ़ावा देता है और इलायची जैसे निर्यातोन्मुख फसलों में अंतर्राष्ट्रीय अवशेष मानकों का पालन सुनिश्चित करता है।

नोट:

  • दानेदार जैव पीड़कनाशक ऐसे प्रारूप होते हैं जिनमें सक्रिय घटक, जो सामान्यतः सूक्ष्मजीवों या पौधों जैसे प्राकृतिक स्रोतों से प्राप्त होते हैं, को ठोस कणों (ग्रैन्यूल्स) में समाहित या उन पर लेपित किया जाता है ताकि उनका प्रयोग सरल हो और वे नियंत्रित रूप से प्रभाव छोड़ें।

Biopesticides

इलायची से संबंधित मुख्य तथ्य क्या हैं?

  • परिचय: इलायची (Elettaria cardamomum), जिसे लोकप्रिय रूप से "मसालों की रानी" कहा जाता है, एक अत्यधिक सुगंधित मसाला है जो ज़िंजिबरेसी (अदरक) से संबंधित है।
  • जलवायु संबंधी परिस्थितियाँ: इलायची को 1500–4000 मिमी वर्षा, 10°C से 35°C तापमान तथा 600–1500 मीटर की ऊँचाई की आवश्यकता होती है।
    • यह अम्लीय, दोमट और ह्यूमस-समृद्ध मृदा में अच्छी तरह उगती है, जिसकी pH सीमा 5.0 से 6.5 होनी चाहिये।
  • उत्पादन: वर्ष 2025 तक, शीर्ष इलायची उत्पादक देश ग्वाटेमाला (प्रथम), भारत (द्वितीय) और श्रीलंका (तृतीय) हैं। 
    • भारत में केरल इलायची उत्पादन में लगभग 58% का योगदान करता है, जबकि कर्नाटक और तमिलनाडु अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य हैं।
  • नव-चिह्नित प्रजातियाँ: एलेटेरिया फेसिफेरा (पेरियार टाइगर रिज़र्व, इडुक्की) और एलेटेरिया ट्यूलिपिफेरा (अगस्त्यमलाई पहाड़ियाँ, तिरुवनंतपुरम और मुन्नार, इडुक्की)।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. लाइकेन, जो एक नम्न चट्टान पर भी पारिस्थितिक अनुक्रम को प्रारम्भ करने में सक्षम हैं, वास्तव में किनके सहजीवी साहचर्य हैं? (2014)

(a) शैवाल और जीवाणु
(b) शैवाल और कवक
(c) जीवाणु और कवक
(d) कवक और मॉस

उत्तर: (b)


प्रश्न. निम्नलिखित जीवों पर विचार कीजिये: (2013)

  1. एगैरिकस
  2. नॉस्टॉक
  3. स्पाइरोगाइरा

उपर्युक्त में से कौन-सा/से जैव उर्वरक के रूप में प्रयुक्त होता है/होते हैं?

(a) 1 और 2
(b) केवल 2
(c) 2 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)


जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के लिये CRISPR प्रौद्योगिकी

स्रोत: पी.आई.बी

विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (DST) के तहत बोस संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक नया CRISPR-dCas9-आधारित आणविक उपकरण विकसित किया है जो ताप तनाव तथा रोगाणु हमलों के प्रति पौधों की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है।

CRISPR-dCas9-आधारित आणविक उपकरण

  • CRISPR-dCas9: यह CRISPR-Cas9 जीन-संपादन उपकरण का संशोधित संस्करण है। इस संस्करण में Cas9 प्रोटीन को निष्क्रिय कर दिया गया है, जिसका अर्थ है कि यह अब DNA को काट नहीं सकता है। हालाँकि यह अभी भी विशिष्ट DNA अनुक्रमों को खोजने और उनसे जुड़ने हेतु एक गाइड RNA (gRNA) का उपयोग करता है।
    • जहाँ CRISPR-Cas9 डीएनए को विभाजित कर जीन में परिवर्तन करता है, वहीं CRISPR-dCas9 बिना विभाजन के कार्य करता है। इसके विपरीत, यह DNA को बदले बिना विशिष्ट जीन को सक्रिय या निष्क्रिय कर, एक जीन स्विच की तरह कार्य करता है।
    • इससे विशिष्ट जीनों की सक्रियता को सुरक्षित रूप से नियंत्रित किया जा सकता है, जैसे कि पौधों में तनाव-प्रतिक्रिया जीन केवल आवश्यकता पड़ने पर सक्रिय होते हैं, जिससे ऊर्जा की बचत होती है और दक्षता में सुधार होता है।
  • कार्य प्रणाली: पौधों को अक्सर अत्यधिक मौसम या रोगाणुओं के हमलों के कारण तनाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी उत्पादकता और वृद्धि कम हो जाती है। 
  • CRISPR-dCas9, यह पौधों को तनाव की स्थिति में ही प्रतिक्रिया करने में मदद करता है। यह टमाटर प्रोटीन (NACMTF3) से एक ट्रांसमेम्ब्रेन (TM) डोमेन का उपयोग करता है, जिससे संशोधित प्रोटीन, dCas9 को सामान्य परिस्थितियों में नाभिक के बाहर रखा जा सके
    • तनाव के दौरान (जैसे गर्मी या रोगाणु का हमला ), ™ डोमेन dCas9 जारी करता है, जो फिर नाभिक में प्रवेश करता है और विशिष्ट रक्षा जीन को सक्रिय करता है।
      • रोगाणुओं के हमले (जैसे स्यूडोमोनास सिरिंज ) के तहत यह CBP60g और SARD1 प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया जीन को सक्रिय करता है, प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं को बढ़ाता है तथा गर्मी के तनाव के तहत यह NAC2 एवं HSFA6b को सक्रिय करता है, जिससे जल प्रतिधारण, पत्ती की हरियाली और ताप सहिष्णुता में सुधार होता है 
  • अनुप्रयोग: टमाटर, आलू और तंबाकू पर परीक्षण करने पर इसने टमाटर के पौधों में उच्चतम प्रभावशीलता दिखाई।

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और पढ़ें: कस्टमाइज़्ड बेस एडिटिंग का पहला सफल प्रयोग


कोल्हापुरी चप्पल

स्रोत: द हिंदू

GI-टैग प्राप्त कोल्हापुरी चप्पलों से अत्यधिक समानता को लेकर आलोचना का सामना करने के बाद इटली की लग्जरी फैशन ब्रांड प्राडा ने स्वीकार किया है कि उसके पुरुषों के फुटवियर डिज़ाइन की प्रेरणा पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित फुटवियर से ली गई थी। कारीगरों का तर्क है कि यह सांस्कृतिक विनियोग और GI टैग का उल्लंघन है।

  • फैशन में सांस्कृतिक विनियोग वह स्थिति होती है जब डिज़ाइनर किसी अन्य संस्कृति के तत्त्वों का उपयोग बिना श्रेय दिये या यह दावा करते हुए करते हैं कि उन्हें उसके स्रोत की जानकारी नहीं थी।

कोल्हापुरी चप्पल

  • उत्पत्ति एवं भौगोलिक क्षेत्र: यह कोल्हापुर (महाराष्ट्र) और सांगली, सतारा और सोलापुर जैसे आस-पास के ज़िलों में हस्तनिर्मित है। इसकी परंपरा 12वीं–13वीं शताब्दी से जुड़ी हुई है तथा प्रारंभ में इसे राजघरानों के लिये बनाया जाता था।
  • कारीगरी: इसे गाय, भैंस या बकरी की वनस्पति- टैंन चमड़े से बनाया जाता है और यह पूरी तरह हस्तनिर्मित होती है तथा इसमें कीलों एवं सिंथेटिक घटक का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • डिज़ाइन विशेषताएँ: इसे इसकी टी-स्ट्रैप आकृति, बारीक बुनाई और खुले पंजे वाले डिज़ाइन के लिये जाना जाता है, जो प्रायः टैन या गहरे भूरे रंगों में उपलब्ध होता है।
  • GI टैग मान्यता: इसे वर्ष 2019 में भौगोलिक संकेतक (GI) का दर्जा प्रदान किया गया, जिसमें महाराष्ट्र और कर्नाटक के आठ ज़िले शामिल हैं।

Kolhapuri_Chappals

GI टैग

  • GI टैग उन उत्पादों की पहचान करता है जिनकी उत्पत्ति किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र से होती है और यह सुनिश्चित करता है कि केवल उस क्षेत्र के अधिकृत उपयोगकर्त्ता ही उस नाम का प्रयोग कर सकें।
    • यह नकल के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है, इसकी वैधता 10 वर्षों के लिये होती है और इसका पर्यवेक्षण वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) द्वारा किया जाता है।

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