डेली न्यूज़ (24 Feb, 2021)



गो इलेक्ट्रिक अभियान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने भारत में ई-मोबिलिटी और ईवी चार्जिंग (EV Charging) अवसंरचना के साथ इलेक्ट्रिक कुकिंग के लाभों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिये "गो इलेक्ट्रिक अभियान' की  शुरुआत की है।  

प्रमुख बिंदु: 

गो इलेक्ट्रिक अभियान:

  • विशेषताएँ: 
    • देश को 100% ई-मोबिलिटी और स्वच्छ एवं सुरक्षित ई-कुकिंग की ओर ले जाना। 
    • राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाना और देश की आयात निर्भरता (खनिज तेल के संदर्भ में) को कम करना।
    • कम कार्बन अर्थव्यवस्था के मार्ग पर आगे बढ़ना, जिससे देश और ग्रह को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचाया जा सके।
  • कार्यान्वयन:
    • केंद्रीय ऊर्जा मंत्रालय के तत्त्वावधान में ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (BEE) को सार्वजनिक चार्जिंग, ई-मोबिलिटी और इसके पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देने के लिये जागरूकता अभियान चलाने का उत्तरदायित्त्व सौंपा गया है। 

ई-मोबिलिटी (E-Mobility) :

  • संक्षिप्त परिचय: 
    • ई-मोबिलिटी विद्युत् ऊर्जा स्रोतों (जैसे कि राष्ट्रीय ग्रिड) की बाहरी चार्जिंग क्षमता से ऊर्जा का उपयोग करते हुए वर्तमान में प्रचलित कार्बन उत्सर्जक जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करने में सहायता करती है।
      • वर्तमान में भारत केवल परिवहन के लिये 94 मिलियन टन तेल और पेट्रोलियम उत्पादों का उपयोग करता है परंतु वर्ष 2030 तक इसके दोगुना होने की उम्मीद है।
      • जीवाश्म ईंधन के मामले में भारत का वर्तमान आयात बिल 8 लाख करोड़ रुपए का है।
    • इसमें पूरी तरह से इलेक्ट्रिक, पारंपरिक हाइब्रिड, प्लग-इन हाइब्रिड के साथ-साथ हाइड्रोजन-ईंधन चालित वाहनों का उपयोग शामिल है।
    • भारत सरकार ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने और इनके विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये कई पहलों की शुरुआत की है। फेम (FAME) इंडिया योजना ऐसी ही एक पहल है। 
  • वैकल्पिक ईंधन के रूप में इलेक्ट्रिक ईंधन: 
    • इलेक्ट्रिक ईंधन जीवाश्म ईंधन का एक प्रमुख विकल्प है।
    • पारंपरिक ईंधन की तुलना में इलेक्ट्रिक ईंधन की लागत और उत्सर्जन कम होता है तथा यह स्वदेशी भी है। 
    • सार्वजनिक परिवहन का विद्युतीकरण न केवल किफायती होता है, बल्कि पर्यावरण के अनुकूल भी है।
    • राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में 10,000 इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग से ही प्रतिमाह 30 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है।
  • हरित हाइड्रोजन (Green Hydrogen): 
    • व्यावसायिक वाहनों में ग्रीन हाइड्रोजन का प्रयोग एक बड़ा परिवर्तनकारी कदम हो सकता है जो कच्चे तेल की आवश्यकता और इसके आयात को हर संभव तरीके से समाप्त करने में सहायता करेगा।
      • ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन अक्षय ऊर्जा और इलेक्ट्रोलिसिस [जल (H2O) को विभाजित करने हेतु] का उपयोग करके किया जाता है। यह ग्रे हाइड्रोजन और ब्लू हाइड्रोजन से अलग होता है:
        • ग्रे हाइड्रोजन का उत्पादन मीथेन से होता है और यह वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन करती है।
        • ब्लू हाइड्रोजन: इस प्रकार की हाइड्रोजन उत्पादन प्रक्रिया के तहत उत्सर्जित गैसों को संरक्षित कर उन्हें भूमिगत रूप से संग्रहीत किया जाता है ताकि वे जलवायु परिवर्तन का कारक न बनें।
    • इसके अलावा बसों जैसे भारी वाहनों के लिये ग्रीन हाइड्रोजन एकआदर्श विकल्प है।
    • कृषि अपशिष्ट और बायोमास से उत्पन्न हरित ऊर्जा के उपयोग से देश भर के किसानों को लाभ होगा।
    • भारत में सौर ऊर्जा कीमतों के कम होने के कारण केंद्रीय नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा देश में सस्ती लागत पर हरित हाइड्रोजन का उत्पादन किया जा सकता है।

इलेक्ट्रिक कुकिंग:

  • इंडक्शन कुकिंग को बढ़ावा देकर सरकार को ऊर्जा पहुँच में सुधार लाने की अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने में सहायता मिलेगी।
  • सैद्धांतिक रूप से यदि इलेक्ट्रिक चूल्हों का इस्तेमाल किया जाता है, तो सार्वभौमिक विद्युतीकरण को सार्वभौमिक स्वच्छ कुकिंग में बदला जा सकता है।
  • बिजली आधारित समाधान (उपकरणों के संदर्भ में) का एक लाभ यह है कि इसके तहत शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में सौर ऊर्जा का लाभ उठाया जा सकता है।

ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency)

  • ऊर्जा दक्षता ब्यूरो की स्थापना भारत सरकार द्वारा ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, 2001 के उपबंधों के अंतर्गत 1 मार्च, 2002 को की गई थी।
  • यह भारतीय अर्थव्यवस्था की ऊर्जा की अत्यधिक मांग को कम करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ विकासशील नीतियों और रणनीतियों के निर्माण में सहायता करता है।
  • प्रमुख कार्यक्रम: राज्य ऊर्जा दक्षता सूचकांक, प्रदर्शन और व्यापार (पैट) योजना, मानक और लेबलिंग कार्यक्रम, ऊर्जा संरक्षण भवन संहिता।

स्रोत: पीआईबी


पारंपरिक उद्योगों के उन्‍नयन एवं पुनर्निर्माण के लिये कोष की योजना (SFURTI)

हाल ही में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय ने MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये 18 राज्यों में विस्तृत 50 कारीगर आधारित स्फूर्ति (SFURTI) क्लस्टर्स का उद्घाटन किया।

  • MSME मंत्रालय पारंपरिक उद्योगों और कारीगरों को समूहों में संगठित करने और उनकी आय को बढ़ाने के लिये ‘स्कीम ऑफ फंड फॉर रिजनरेशन ऑफ ट्रेडिशनल इंडस्ट्रीज़’ (Scheme of Fund for Regeneration of Traditional Industries- SFURTI) को लागू कर रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • MSME मंत्रालय ने क्लस्टर विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2005 में इस योजना को प्रारंभ किया।
  • SFURTI क्लस्टर दो प्रकार के होते हैं- नियमित क्लस्टर (500 कारीगर), जिनको 2.5 करोड़ रुपए तक की सरकारी सहायता दी जाती है। मेजर (Major) क्लस्टर (500 से अधिक कारीगर) जिनको 5 करोड़ रुपए तक की सरकारी सहायता प्रदान की जाती है।
  • मंत्रालय कॉमन सुविधा केंद्र (Common Facility Centers- CFCs) के माध्यम से बुनियादी ढाँचे की स्थापना, नई मशीनरी की खरीद, कच्चे माल के बैंक, डिज़ाइन हस्तक्षेप, बेहतर पैकेजिंग, बेहतर कौशल और क्षमता विकास आदि सहित विभिन्न प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है। 
  • इसके अतिरिक्त यह योजना हितधारकों की सक्रिय भागीदारी के साथ ‘क्लस्टर गवर्नेंस सिस्टम’ को मज़बूत करने पर केंद्रित है, ताकि वे उभरती चुनौतियों और अवसरों का आकलन करने में सक्षम हों और प्रतिक्रिया दे सकें।
    • इसे नवीन और पारंपरिक कौशल, उन्नत प्रौद्योगिकियों, उन्नत प्रक्रियाओं, बाज़ार समझ और सार्वजनिक-निजी भागीदारी के नए मॉडल के निर्माण के माध्यम से शुरू किया जाता है, ताकि धीरे-धीरे क्लस्टर-आधारित पारंपरिक उद्योगों के समान मॉडल को दोहराया जा सके।

MSME क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये अन्य नवीन पहलें:

  • उद्योग आधार ज्ञापन (UAM): यह भारत में MSMEs के लिये व्यवसाय करने में आसानी प्रदान हेतु सरल एक-पृष्ठ का पंजीकरण फॉर्म है।
  • नवाचार, ग्रामीण उद्योग और उद्यमिता को बढ़ावा हेतु एक योजना (ASPIRE):  यह योजना ‘कृषि आधारित उद्योग में स्टार्ट अप के लिये फंड ऑफ फंड्स’, ग्रामीण आजीविका बिज़नेस इनक्यूबेटर (LBI), प्रौद्योगिकी व्यवसाय इनक्यूबेटर (TBI) के माध्यम से नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देती है।
  • क्रेडिट गारंटी फंड योजना: ऋण के आसान प्रवाह की सुविधा के लिये MSMEs को दिये गए संपार्श्विक मुक्त ऋण हेतु गारंटी कवर प्रदान किया जाता है।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह नए सूक्ष्म उद्यमों की स्थापना और ग्रामीण एवं देश के शहरी क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये एक क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना है।
  • प्रौद्योगिकी उन्नयन के लिये क्रेडिट लिंक्ड कैपिटल सब्सिडी स्कीम (CLCSS): CLCSS का उद्देश्य संयंत्र और मशीनरी की खरीद के लिये 15% पूंजी सब्सिडी प्रदान करके सूक्ष्म और लघु उद्यमों (MSE) को प्रौद्योगिकी उन्नयन की सुविधा प्रदान करना है।

स्रोत- पीआइबी


पशुपालन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में उत्पन्न विभिन्न प्रकार की नीतिगत चिंताओं और कृषि कानूनों पर चल रही चर्चाओं ने उत्पादकता स्तरों को बढ़ावा देने तथा उत्पादन क्षेत्र (विशेष रूप से पशुपालन क्षेत्र) में  व्याप्त अंतराल को भरने के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश की तरफ ध्यान आकर्षित किया है।

  • इस क्षेत्र के अधिकांश प्रतिष्ठान ग्रामीण भारत में केंद्रित हैं, इसलिये इस क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक प्रासंगिकता को कम नहीं माना जा सकता है।

प्रमुख बिंदु

पशुपालन के विषय में:

  • पशुपालन से तात्पर्य पशुधन को बढ़ाने और इनके चयनात्मक प्रजनन से है। यह एक प्रकार का पशु प्रबंधन तथा देखभाल है, जिसमें लाभ के लिये पशुओं के आनुवंशिक गुणों एवं व्यवहारों को विकसित किया जाता है।
  • बड़ी संख्या में किसान अपनी आजीविका के लिये पशुपालन पर निर्भर हैं। इससे ग्रामीण आबादी के लगभग 55% लोगों को आजीविका मिलती है।
  • भारत में विश्व का सबसे अधिक पशुधन है।
    • भारत में 20वीं पशुधन जनगणना (20th Livestock Census) के अनुसार, देश में कुल पशुधन आबादी 535.78 मिलियन है। इस पशुधन जनगणना में वर्ष 2018 की जनगणना की तुलना में 4.6% की वृद्धि हुई है।
  • पशुपालन से बहुआयामी लाभ होता है।
    • उदाहरण के लिये डेयरी किसानों के विकास के साथ वर्ष 1970 में शुरू हुए ऑपरेशन फ्लड (Operation Flood) ने दूध उत्पादन और ग्रामीण आय में वृद्धि की तथा उपभोक्ताओं के लिये एक उचित मूल्य सुनिश्चित किया।

महत्त्व:

  • इसने महिलाओं के सशक्तीकरण में महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया है और समाज में उनकी आय तथा भूमिका बढ़ी है।
  • यह छोटे और सीमांत किसानों की आजीविका के जोखिम को कम करता है, विशेष रूप से भारत के वर्षा-आधारित क्षेत्रों में।
  • यह गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों में समानता और आजीविका के दृष्टिकोण पर केंद्रित है।
  •  सरकार का  लक्ष्य वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना है, जिसके अंतर्गत अंतर-मंत्रालयी समिति ने आय के सात स्रोतों में से एक के रूप में पशुधन की पहचान की है।

चुनौतियाँ:

  • बेहतर प्रजनन गुणवत्ता वाले साँड़ों (Bull) की अनुपलब्धता।
    • कई प्रयोगशालाओं द्वारा उत्पादित वीर्य की खराब गुणवत्ता।
  • चारे की कमी और पशु रोगों का अप्रभावी नियंत्रण।
  • स्वदेशी नस्लों के लिये क्षेत्र उन्मुख संरक्षण रणनीति की अनुपस्थिति।
  • किसानों के पास उत्पादकता में सुधार के लिये आवश्यक कौशल, गुणवत्ता युक्त सेवाओं और अवसंरचना ढाँचे की कमी।

इस क्षेत्र को बढ़ावा देने हेतु सरकार की पहलें:

  • पशुपालन अवसंरचना विकास कोष (AHIDF):
    • AHIDF के विषय में: यह सरकार द्वारा जारी किया गया पहला बड़ा फंड है, जिसमें किसान उत्पादक संगठन (Farmer Producer Organization), निजी डेयरी उद्यमी, व्यक्तिगत उद्यमी और इसके दायरे में आने वाले अन्य हितधारक शामिल हैं।
    • लॉन्च: जून 2020
    • फंड: इसे 15,000 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ स्थापित किया गया है।
    • उद्देश्य: डेयरी प्रसंस्करण, मूल्य संवर्द्धन और पशु चारा, बुनियादी ढाँचा में निजी निवेश को बढ़ावा देना।
    • आला उत्पादों (Niche Product) के निर्यात को बढ़ाने के लिये संयंत्र (Plant) स्थापित करने हेतु प्रोत्साहन दिया जाएगा।
      • एक आला उत्पाद का उपयोग विशिष्ट उद्देश्य के लिये किया जाता है। सामान्य उत्पादों की तुलना में आला उत्पाद अक्सर ( हमेशा नहीं) महँगे होते हैं।
    • यह विभिन्न क्षमताओं के पशुचारा संयंत्रों के स्थापना में भी सहयोग करेगा, जिसमें खनिज मिश्रण संयंत्र, सिलेज मेकिंग इकाइयाँ और पशुचारा परीक्षण प्रयोगशाला की स्थापना शामिल है।
  • राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम:
    • इस कार्यक्रम का उद्देश्य 500 मिलियन से अधिक पशुओं, जिनमें भैंस, भेड़, बकरी और सूअर शामिल हैं, का 100% टीकाकरण करना है।
  • राष्ट्रीय गोकुल मिशन:
    • यह मिशन देश में वैज्ञानिक और समेकित तरीके से स्‍वदेशी गोवंश (Domestic Bovines) नस्‍लों के संरक्षण तथा संवर्द्धन हेतु प्रारंभ किया गया है।
    • इसके अंतर्गत देशी गोवंश के दुग्ध उत्पादन को बढ़ाकर इन्हें किसानों हेतु और अधिक लाभदायक बनाना है।
  • राष्ट्रीय पशुधन मिशन:
    • इस मिशन को वर्ष 2014-15 में लॉन्च किया गया।
    • इस मिशन का उद्देश्य पशुधन उत्पादन प्रणालियों में मात्रात्मक और गुणात्मक सुधार सुनिश्चित करना तथा सभी हितधारकों की क्षमता में सुधार करना है।
  • राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम:
    • इस कार्यक्रम के अंतर्गत मादा नस्लों में गर्भधारण के नए तरीकों का सुझाव दिया जाएगा।
    • इसमें कुछ लैंगिक बीमारियों के प्रसार को रोकना भी शामिल है, ताकि नस्ल की दक्षता में वृद्धि की जा सके।

आगे की राह

  • यदि भारत में महामारी प्रेरित आर्थिक मंदी में पशुपालन क्षेत्र में समय पर निवेश किया जाता है तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था को अत्यधिक लाभ हो सकता है।
  • पशुपालन क्षेत्र से जलवायु परिवर्तन और रोज़गार से संबंधित लाभ जुड़े हैं। यदि इस क्षेत्र में प्रसंस्करण इकाइयों को अधिक ऊर्जा-कुशल बनाया जाता है, तो ये कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकते हैं।

स्रोत: द हिंदू


IIT परिषद की सिफारिशें

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रौद्योगिकी संस्थान (Institute of Technology- IIT) परिषद द्वारा IITs को अधिक स्वायत्तता प्रदान करने के लिये चार कार्य समूहों का गठन किया गया है।

  • यह निर्णय राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy) की सिफारिश के आधार पर लिया गया है।
  • IITs द्वारा उसी प्रकार की स्वायत्तता की मांग की जा रही है जिस प्रकार की  स्वायत्तता भारतीय प्रबंधन संस्थानों (IIMs) को प्राप्त है।

प्रमुख बिंदु:

IIT परिषद के बारे में: 

  • सदस्य और प्रमुख:
    • IIT परिषद की अध्यक्षता शिक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।
    • इसमें सभी IITs के निदेशक और प्रत्येक IIT के बोर्ड ऑफ गवर्नर (Board of Governor- BoG) के अध्यक्ष शामिल हैं।
  • उद्देश्य:
    • प्रवेश मानकों, पाठ्यक्रमों की अवधि, डिग्री और अन्य ‘अकादमिक डिस्टिंक्शन’ (Academic Distinctions) पर सलाह देना। 
    • कैडर, भर्ती के तरीकों और सभी IITs कर्मचारियों की सेवा शर्तों के बारे में नीति निर्धारित करना।

  • परिषद के कार्य समूह:
    • समूह-1: ग्रेडेड ऑटोनॉमी, सशक्त और जवाबदेह बोर्ड ऑफ गवर्नर और निदेशक 
    • समूह-2: IITs के निर्देशन हेतु प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को तैयार करना।
    • समूह-3: एकेडमिक सीनेट/शैक्षणिक प्रबंधकारिणी समिति में सुधार और उसका पुनर्गठन।
    • समूह-4: धन जुटाने के तरीकों का नवीनीकरण। 

अन्य सिफारिशें:

  • प्रौद्योगिकी का उपयोग:
  • कर्मचारियों की संख्या में कमी करना:
    • निचले स्तर पर IIT कर्मचारियों की संख्या को कम करना। 
      • वर्तमान में IITs इस प्रकार से कार्य कर रहे हैं कि प्रत्येक दस छात्रों हेतु एक संकाय सदस्य (One Faculty Member) और प्रत्येक दस संकायों के लिये  उनके पास 11 कर्मचारियों हेतु पूर्व-अनुमोदन (Pre-Approval) होता है।
  • अनुसंधान और विकास प्रदर्शनी:
    • IIT द्वारा उद्योगों हेतु किये जाने वाले अनुसंधान कार्य को प्रदर्शित करने के उद्देश्य से आईआईटी अनुसंधान और विकास प्रदर्शनियों का आयोजन करना
  • विकास योजनाएंँ:
    • शोध सहयोग को बढ़ावा देने के लिये संस्थान एवं उद्योगों के बीच शोध से संबंधित प्राध्यापकों की अंतरणीयता (Mobility) में सुधार हेतु IITs द्वारा संस्थान विकास योजनाएँ (Institute Development Plans) विकसित करने की सिफारिश की गई है।

स्वायत्तता की आवश्यकता:

  • बेहतर निर्णय लेना:
    • प्रशासनिक और वित्तीय स्वायत्तता संस्थानों को छात्रों और संगठन के हित में महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने में मदद करती है।
      • स्वायत्तता के अभाव के चलते अधिकांश निर्णय नौकरशाहों द्वारा लिये जाते हैं, जिनके पास तकनीकी संस्थानों से संबंधित निर्णय लेने हेतु आवश्यक तकनीकी ज्ञान का अभाव होता है।
    • रचनात्मक निर्णय केवल शिक्षाविदों और विशेषज्ञों द्वारा लिये जा सकते हैं, जबकि IITs को पूर्ण स्वायत्तता नहीं प्राप्त है, उन्हें आंशिक स्वतंत्रता दी गई है।
    • हाल ही में IITs में आरक्षण को बेहतर ढंग से लागू करने के उपायों की सिफारिश हेतु नियुक्त एक विशेषज्ञ पैनल ने प्रस्ताव दिया है कि  IITs को संकाय की नियुक्तियों के लिये जातिगत आरक्षण से छूट मिलनी चाहिये क्योंकि वे राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान हैं।
  • ज़िम्मेदारियों में बढ़ोतरी :
    • स्वायत्तता का अभाव न केवल हस्तक्षेप कीअनुमति प्रदान करता है, बल्कि ज़िम्मेदारियों का वितरण भी करता है। यह अनिवार्य रूप से यथास्थिति को बनाए रखने में मदद करता है जो वर्तमान भारत में वांछनीय/आवश्यक नहीं है।
    • स्वायत्तता के चलते इन संस्थानों का अपनी नीतियों और उनके संचालन पर पूर्ण नियंत्रण होगा, साथ ही इनके द्वारा प्रदान किये जाने वाले मूल्यों की ज़िम्मेदारी भी इन्ही पर होगी।

स्रोत: द हिंदू


कार्बन वाॅच एप: चंडीगढ़

चर्चा में क्यों?

हाल ही में चंडीगढ़ ने ‘कार्बन वाॅच’ नाम से एक मोबाइल एप्लीकेशन लॉन्च किया है, इसका उद्देश्य एक व्यक्ति के कार्बन फुटप्रिंट का आकलन करना है। इसके साथ ही चंडीगढ़ इस तरह की पहल शुरू करने वाला पहला केंद्रशासित प्रदेश/राज्य बन गया है। 

  • कार्बन फुटप्रिंट का आशय किसी विशेष मानवीय गतिविधि द्वारा वातावरण में जारी ग्रीनहाउस गैसों, विशेष रूप से कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा से है।

प्रमुख बिंदु

एप्लीकेशन के बारे में

  • यह एप्लीकेशन मुख्य तौर पर व्यक्तिगत कार्यों पर ध्यान केंद्रित करेगा और इसमें कुल चार श्रेणियों यथा- जल, ऊर्जा, अपशिष्ट उत्पादन और परिवहन से संबंधित विवरण के आधार पर कार्बन फुटप्रिंट की गणना की जाएगी।
  • यह उत्सर्जन के राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय औसत स्तर एवं व्यक्तिगत उत्सर्जन से संबंधित सूचना प्रदान करेगा। 
  • यह आम लोगों को उनके कार्बन फुटप्रिंट से संबंधित सूचनाएँ प्रदान करने के साथ-साथ कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के तरीकों पर भी सुझाव देगा।
  • यह लोगों को उनकी विशिष्ट जीवनशैली के कारण होने वाले उत्सर्जन, प्रभाव और उससे निपटने के लिये संभावित उपायों के बारे में भी जागरूक करेगा।

कार्बन फुटप्रिंट

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट जीवाश्म ईंधन के कारण उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा पर आम लोगों की गतिविधियों के प्रभाव को मापने का एक उपाय है, इसे CO2 उत्सर्जन के भार के रूप में व्यक्त किया जाता है।
  • आमतौर पर इसे प्रतिवर्ष उत्सर्जित CO2 (टन में) के रूप में मापा जाता है। यह एक ऐसी मात्रा है जिसके लिये CO2 समतुल्य गैसें (मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसें) पूरक के रूप में कार्य कर सकती हैं।
  • इस अवधारणा को किसी एक व्यक्ति, एक परिवार, एक घटना, एक संगठन, यहाँ तक ​​कि एक संपूर्ण राष्ट्र पर लागू किया जा सकता है।

कार्बन फुटप्रिंट बनाम इकोलॉजिकल फुटप्रिंट

  • कार्बन फुटप्रिंट, इकोलॉजिकल फुटप्रिंट से अलग होता है। जहाँ एक ओर कार्बन फुटप्रिंट उन गैसों के उत्सर्जन को मापता है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देती हैं, वहीं इकोलॉजिकल फुटप्रिंट ‘बायो-प्रोडक्टिव स्पेस’ के उपयोग को मापने पर केंद्रित है।

उच्च कार्बन फुटप्रिंट का प्रभाव

  • जलवायु परिवर्तन को उच्च कार्बन फुटप्रिंट का महत्त्वपूर्ण प्रभाव माना जा सकता है। ग्रीनहाउस गैसें, चाहे वे प्राकृतिक हों अथवा मानव निर्मित, पृथ्वी को और अधिक गर्म करने में योगदान देती हैं।
    • वर्ष 1990 से वर्ष 2005 तक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 31 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि वर्ष 2008 से उत्सर्जन ने विकिरण वार्मिंग में 35 प्रतिशत की वृद्धि की है। 
    • विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से 2011-2020 अब तक का सबसे गर्म दशक था।
  • संसाधनों का ह्रास: वनों की कटाई से लेकर एयर कंडीशनिंग के उपयोग तक अत्यधिक कार्बन फुटप्रिंट व्यापक पैमाने पर संसाधनों के ह्रास में योगदान देते हैं। 

कार्बन फुटप्रिंट कम करने के उपाय

  • 4A [उपयोग के लिये मना करना (Refuse) कम करना (Reduce), पुन: उपयोग (Reuse) तथा पुनर्चक्रण (Recycle)] की अवधारणा को अपनाना इस दिशा में महत्त्वपूर्ण साबित हो सकता है।
  • सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, अधिक कुशलता से  वाहन चलाना अथवा यह सुनिश्चित करना कि वर्तमान वाहन ठीक स्थिति में रहें।
  • व्यक्ति और कंपनियाँ द्वारा कार्बन क्रेडिट खरीदकर अपने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में कुछ कमी की जा सकती है, उनके द्वारा खरीदे गए कार्बन क्रेडिट का उपयोग वृक्षारोपण या नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित परियोजनाओं में निवेश के लिये किया जा सकता है।
  • पेरिस समझौते जैसे जलवायु परिवर्तन कन्वेंशनों के कार्यान्वयन और जलवायु परिवर्तन से संबंधित भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही पहलों में और तेज़ी लाने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


परमाणु निरीक्षण पर IAEA - ईरान समझौता

चर्चा में क्यों?

ईरान ने एक समझौते के तहत अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को अपने परमाणु कार्यक्रम तक सीमित पहुँच की इजाज़त दे दी है। 

  • दिसंबर 2020 में संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा प्रतिबंधों में ढील न दिये जाने पर ईरान की संसद ने कुछ निरीक्षणों को निलंबित करने की मांग करते हुए एक कानून पारित किया।

प्रमुख बिंदु:

  • व्यापक सुरक्षा उपायों के तहत IAEA का अधिकार और दायित्व यह सुनिश्चित करना है कि इस क्षेत्र में सभी परमाणु सामग्री पर सुरक्षा उपायों को लागू किया गया है तथा वह पुष्टि करे कि यह सामग्री अनन्य उद्देश्य के लिये राज्य के अधिकार क्षेत्र या नियंत्रण में है और ऐसी सामग्री को परमाणु हथियारों या अन्य नाभिकीय विस्फोटकों के निर्माण में प्रयोग नहीं किया जाएगा।
  • परमाणु अप्रसार संधि के तहत सुरक्षा उपायों के अतिरिक्त IAEA को कोई अनुमति नहीं दी जाएगी।
  • ईरान कुछ स्थलों पर स्थापित निगरानी कैमरों की फुटेज की ‘रियल टाइम एक्सेस’ देने से इनकार कर देगा और अगर तीन महीने के भीतर प्रतिबंध नहीं हटाया जाता है तो वह इन्हें डिलीट कर देगा।

समझौते का महत्त्व:

  • यह निश्चित रूप से ईरान की परमाणु गतिविधियों और वर्ष 2015 के परमाणु समझौते को नए प्रकार से लागू करने के प्रयासों पर बढ़ते संकट को कम करेगा।
  • यह वर्ष 2020 में पारित एक नए ईरानी कानून के प्रभाव को काफी कम कर देता है, जिससे IAEA की कार्य करने की क्षमता में गंभीर बाधा उत्पन्न हो रही थी।

वर्ष 2015 का परमाणु समझौता:

  • वर्ष 2015 में  ईरान ने वैश्विक शक्तियों P5 + 1 के समूह (संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, चीन, रूस और जर्मनी) के साथ अपने परमाणु कार्यक्रम से संबंधित दीर्घकालिक समझौते पर सहमति व्यक्त की।
  • इसे संयुक्त व्यापक कार्रवाई योजना (Joint Comprehensive Plan Of Action-JCPOA) और सामान्यतः 'ईरान परमाणु समझौता' के नाम से जाना जाता है।
  • इस समझौते के तहत ईरान ने प्रतिबंधों को हटाने और वैश्विक व्यापार तक पहुँच स्थापित करने के बदले अपनी परमाणु गतिविधियों पर अंकुश लगाने की सहमति व्यक्त की।
  • इस समझौते के तहत ईरान को शोध के लिये थोड़ी मात्रा में यूरेनियम जमा करने की अनुमति दी गई लेकिन यूरेनियम के संवर्द्धन पर प्रतिबंध लगा दिया गया, जिसका उपयोग रिएक्टर ईंधन और परमाणु हथियार बनाने के लिये किया जाता है।
  • ईरान को एक भारी जल-रिएक्टर (Heavy-Water Reactor) के निर्माण की भी आवश्यकता थी, जिसमें ईंधन के रूप में प्रयोग करने हेतु भारी मात्रा में प्लूटोनियम (Plutonium) की आवश्यकता के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय निरीक्षण की अनुमति देना भी आवश्यक था।

nuclear-programme

वर्ष 2018 में समझौते से अमेरिका का अलग होना:

  • मई 2018 में अमेरिका ने इस समझौते को दोषपूर्ण बताते हुए इससे अलग हो गया और ईरान पर प्रतिबंध बढ़ाने शुरू कर दिये।
  • प्रतिबंधों को कड़ा कर दिये जाने के बाद से ईरान प्रतिबंधों में राहत का रास्ता खोजने के लिये शेष हस्ताक्षरकर्त्ताओं पर दबाव बनाने हेतु अपनी कुछ प्रतिबद्धताओं का लगातार उल्लंघन कर रहा है।
  • अमेरिका ने कहा कि वह सभी देशों को ईरान से तेल खरीदने से रोकने और नए परमाणु समझौते हेतु दबाव बनाने के लिये ईरान को मजबूर करने का प्रयास करेगा।

IAEA का पक्ष:

  • वर्ष 2018 में अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, ईरान के यूरेनियम और भारी जल के भंडार के साथ-साथ इसके द्वारा अतिरिक्त प्रोटोकॉल का कार्यान्वयन, समझौते के अनुरूप था।

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी

  • इसे संयुक्त राष्ट्र के अंदर व्यापक रूप से दुनिया में  ‘शांति और विकास हेतु संगठन’ के रूप में जाना जाता है, IAEA परमाणु क्षेत्र में सहयोग के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय केंद्र है।

स्थापना:

  • IAEA की स्थापना वर्ष 1957 में परमाणु प्रौद्योगिकी के विविध उपयोगों से उत्पन्न आशंकाओं और खोजों की प्रतिक्रिया में की गई थी।

मुख्यालय: वियना (ऑस्ट्रिया)

उद्देश्य:

  • यह एजेंसी अपने सदस्य राज्यों और कई भागीदारों के साथ परमाणु प्रौद्योगिकियों के सुरक्षित, निश्चिंत और शांतिपूर्ण उपयोग को बढ़ावा देने के लिये काम करती है।
    • वर्ष 2005 में एक सुरक्षित और शांतिपूर्ण दुनिया के निर्माण में इसके योगदान के लिये IAEA को नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

कार्य:

स्रोत- द हिंदू


नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़

चर्चा में क्यों?

हाल ही में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कैंसर, मधुमेह, हृदय रोगों एवं स्ट्रोक की रोकथाम और नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS) के साथ ‘नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़’ (NAFLD) के एकीकरण को लेकर परिचालन दिशा-निर्देश जारी किये हैं।

  • NPCDCS को राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) के तहत लागू किया जा रहा है। इसे गैर-संचारी रोगों (NCD) की रोकथाम और नियंत्रण हेतु वर्ष 2010 में शुरू किया गया था।

प्रमुख बिंदु

नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़ (NAFLD)

  • इसका आशय फैटी लीवर के माध्यमिक कारणों जैसे- हानिकारक शराब का उपयोग, वायरल हैपेटाइटिस की अनुपस्थिति में यकृत में वसा का असामान्य संचय है।
    • फैटी लिवर की स्थिति तब उत्पन्न होती है, जब यकृत कोशिकाओं में बहुत अधिक वसा एकत्रित हो जाती है।
  • यह एक गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि यह यकृत की कई अन्य बीमारियों को जन्म देता है, जिसमें सामान्य नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर (NAFL- साधारण फैटी लिवर) से लेकर ज़्यादा गंभीर नॉन-अल्कोहलिक स्टेटोहैपेटाइटिस (NASH), सायरोसिस और यहाँ तक कि लिवर कैंसर आदि शामिल हैं। 
    • स्टेटोहैपेटाइटिस, यकृत में वसा संचय के साथ-साथ उसमें सूजन को संदर्भित करता है।
    • सिरोसिस(Cirrhosis) यकृत रोग की जटिलता है, जिसमें यकृत कोशिकाओं की स्थायी क्षति शामिल होती है 
  • ‘नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़’ (NAFLD) भविष्य में हृदय रोगों, टाइप-2 मधुमेह और अन्य उपापचयी सिंड्रोम जैसे- उच्च रक्तचाप, मोटापा, डिस्लिपिडीमिया, ग्लूकोज़ इनटॉलेरेंस आदि के जोखिम को गंभीर रूप से बढ़ा देता है।

NAFLD के जोखिम: 

  • उच्च मृत्यु दर:
    • पिछले दो दशकों में NASH का वैश्विक बोझ दोगुना से अधिक हो गया है। वर्ष 1990 में NASH के कारण सिरोसिस के 40 लाख प्रचलित मामले देखने को मिले हैं, जो वर्ष 2017 में बढ़कर 94 लाख हो गए।
  • मोटापे और मधुमेह से ग्रसित व्यक्तियों के लिये खतरा:  
    • एक अध्ययन के अनुसार, भारत की 9 से 32 प्रतिशत तक आबादी में ‘नॉन-एल्कोहलिक फैटी लिवर डिज़ीज़’ (NAFLD) का प्रसार है, इसमें भी सबसे अधिक प्रसार उच्च वज़न वाले और मधुमेह या पूर्व-मधुमेह से पीड़ित लोगों में है।
  • लाइलाज:
    • एक बार जब बीमारी उत्पन्न हो जाती है, तो इसका कोई विशिष्ट इलाज उपलब्ध नहीं है, स्वस्थ जीवन शैली और वज़न घटाने जैसे उपायों आदि के माध्यम से NAFLD के कारण होने वाली मृत्यु और रुग्णता पर कुछ हद तक काबू करने का प्रयास किया जाता है।

सरकार द्वारा उठाए गए कदम:

  • विभिन्न स्तरों पर व्यावहारिक परिवर्तन, शीघ्र निदान और क्षमता निर्माण को प्रोत्साहित कर NAFLD को रोकने और नियंत्रित करने हेतु NPCDCS कार्यक्रम के अनुरूप रणनीति तैयार करना।
  • आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat scheme) के तहत कैंसर, मधुमेह और उच्च रक्तचाप की जाँच को बढ़ावा देना। 
  • ‘ईट राइट इंडिया’ और ‘फिट इंडिया मूवमेंट’ के साथ स्वास्थ्य निवारक/निरोधक नैदानिक इलाज (Diagnostic Cure to Preventive Health) के सरकार के दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना है।

स्रोत: पी.आई.बी  


भारत-मालदीव

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में भारत और मालदीव ने 50 मिलियन अमेरिकी डाॅलर के रक्षा क्षेत्र से जुड़े एक लाइन ऑफ क्रेडिट समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

  • भारत के विदेश मंत्री की मालदीव यात्रा के दौरान इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए।

Maldives

प्रमुख बिंदु:

लाइन ऑफ क्रेडिट: 

  • समुद्री निगरानी में मालदीव के रक्षा बलों की क्षमता बढ़ाने हेतु भारत के समर्थन और सहयोग के लिये अप्रैल 2013 में मालदीव सरकार के अनुरोध तथा अक्तूबर 2015 एवं मार्च 2016 में इस अनुरोध को दोहराए जाने के बाद इस समझौते पर हस्ताक्षर किये गए हैं।
  • इसे भारत और मालदीव के रणनीतिक हितों की कुंजी के रूप में देखा जा रहा है, विशेष रूप से वर्तमान में जब हिंद महासागर क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप में वृद्धि देखी गई है।

डॉकयार्ड्स बनाने में सहायता: 

  • माले के उत्तर-पश्चिम में कुछ मील की दूरी पर उथुरु थिला फालु (Uthuru Thila Falhu- UTF) नौसेना बेस पर भारत की सहायता से एक डॉकयार्ड का निर्माण किया जाएगा, जो मालदीव की रक्षा क्षमताओं को मज़बूत करेगा।
    • यह समझौते पर वर्ष 2016 में मालदीव के तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन अब्दुल गयूम की भारत यात्रा के दौरान हस्ताक्षर किये गए जो कि रक्षा कार्य योजना का हिस्सा है।
  • भारत और मालदीव के बीच सिफावारु (Sifavaru) में एक मालदीव नेशनल डिफेंस फोर्स कोस्ट गार्ड हार्बर विकसित करने तथा इसे समर्थन प्रदान करने और इसके रखरखाव के लिये एक समझौते पर भी हस्ताक्षर किये गए, जो दोनों देशों के बीच मज़बूत होते सुरक्षा सहयोग का संकेत देता है।
    • भारत इस बंदरगाह के लिये आवश्यक बुनियादी ढाँचे (जैसे- संचार संसाधनों और रडार सेवाओं) के विकास में सहायता प्रदान करने के साथ ही प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा।

आतंकवाद का मुकाबला:

  • दोनों देशों ने शीघ्र ही ‘जॉइंट वर्किंग ग्रुप ऑन काउंटर टेररिज़्म, काउंटरिंग वायलेंट एक्सट्रीमिज़्म एंड डी-रेडिकलाइजेशन’ (Joint Working Group on Counter Terrorism, countering Violent Extremism and De-radicalisation) की बैठक आयोजित करने पर प्रतिबद्धता व्यक्त की।

अवसंरचना परियोजनाओं की समीक्षा: 

  • भारतीय विदेश मंत्री ने इस यात्रा के दौरान ‘नेशनल कॉलेज ऑफ पुलिसिंग एंड लॉ एनफोर्समेंट स्टडीज़’ सहित कई भारत समर्थित बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की समीक्षा की। 

बहुपक्षीय निकायों में सहयोग:

  • इस यात्रा के दौरान भारतीय विदेश मंत्री और मालदीव की ओर से उनके समकक्ष अब्दुल्ला शाहिद ने संयुक्त राष्ट्र महासभा और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसे बहुपक्षीय निकायों में सहयोग बढ़ाने पर चर्चा की।
    • मालदीव ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता के लिये समर्थन का आश्वासन दिया।
    • भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 76वें सत्र की अध्यक्षता के लिये मालदीव की उम्मीदवारी के समर्थन की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

पुलिस सुधार में सहयोग: 

  • दोनों पक्षों ने प्रशिक्षण प्रबंधन और प्रशिक्षकों तथा प्रशिक्षुओं के आदान-प्रदान में सहयोग एवं सहभागिता बढ़ाने के लिये पुलिस संगठनों के बीच संपर्क को संस्थागत बनाने की प्रगति को रेखांकित किया।

भारत-मालदीव संबंध: 

  • भारत के लिये मालदीव का भू-सामरिक महत्त्व:   
    • इस द्वीप शृंखला के दक्षिणी और उत्तरी भाग में दो महत्त्वपूर्ण ‘सी लाइन्स ऑफ कम्युनिकेशन’  (Sea Lines Of Communication- SLOCs) स्थित हैं।
    • ये SLOC पश्चिम एशिया में अदन और होर्मुज़ की खाड़ी तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री व्यापार प्रवाह के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
    • भारत के विदेशी व्यापार का लगभग 50% और इसकी ऊर्जा आयात का 80% हिस्सा अरब सागर में इन SLOCs से होकर गुज़रता है।
  • महत्त्वपूर्ण समूहों का हिस्सा:  इसके अलावा भारत और मालदीव दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) और दक्षिण एशिया उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग (एसएएसईसी) के सदस्य है।

भारत और मालदीव के बीच सहयोग:

  • रक्षा सहयोग: दशकों से भारत ने मालदीव की मांग पर उसे तात्कालिक आपातकालीन सहायता पहुँचाई है। 
    • वर्ष 1988 में जब हथियारबंद आतंकवादियों ने राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गय्यूम के खिलाफ तख्तापलट की कोशिश की, तो भारत ने ‘ऑपरेशन कैक्टस’ (Operation Cactus) के तहत पैराट्रूपर्स और नेवी जहाज़ों को भेजकर वैध सरकार को पुनः बहाल किया।
    • भारत और मालदीव ‘एकुवेरिन’ (Ekuverin) नामक एक संयुक्त सैन्य अभ्यास का संचालन करते हैं।
  • आपदा प्रबंधन: वर्ष 2004 में सुनामी और इसके एक दशक बाद मालदीव में पेयजल संकट कुछ अन्य ऐसे मौके थे जब भारत ने उसे आपदा सहायता पहुँचाई।
    •  मालदीव, भारत द्वारा अपने सभी पड़ोसी देशों को उपलब्ध कराई जा रही COVID-19 सहायता और वैक्सीन के सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक रहा है।
    • COVID-19 महामारी के कारण वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के अवरुद्ध रहने के दौरान भी भारत ने मिशन सागर (SAGAR) के तहत मालदीव को महत्त्वपूर्ण वस्तुओं की आपूर्ति जारी रखी।
  • नागरिक संपर्क: मालदीव के छात्र भारत के शैक्षिक संस्थानों में शिक्षा प्राप्त करते हैं और भारत द्वारा विस्तारित उदार वीज़ा-मुक्त व्यवस्था का लाभ लेते हुए मालदीव के मरीज़ उच्च कोटि की स्वास्थ्य सेवाएँ प्राप्त करने के लिये भारत आते हैं।
  • आर्थिक सहयोग: पर्यटन, मालदीव की अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार है। वर्तमान में मालदीव कुछ भारतीयों के लिये एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और कई अन्य भारतीय वहाँ  रोज़गार के लिये जाते हैं।
    • एक द्वीपीय देश के रूप में मालदीव की भौगोलिक सीमाओं को देखते हुए भारत ने इस राष्ट्र को आवश्यक वस्तुओं के निर्यात के मामले में प्रतिबंधों में छूट दी है।

चुनौतियाँ और तनाव:  

  • राजनीतिक अस्थिरता: भारत की सुरक्षा और विकास पर मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता का संभावित प्रभाव, एक बड़ी चिंता का विषय है।
    • गौरतलब है कि फरवरी 2015 में आतंकवाद के आरोपों में मालदीव के विपक्षी नेता मोहम्मद नशीद की गिरफ्तारी और इसके बाद के राजनीतिक संकट ने भारत की नेबरहुड पाॅलिसी के लिये वास्तव में एक कूटनीतिक संकट खड़ा कर दिया था।
  • कट्टरपंथ: मालदीव में पिछले लगभग एक दशक में इस्लामिक स्टेट (आईएस) जैसे आतंकवादी समूहों और पाकिस्तान स्थित मदरसों तथा जिहादी समूहों की ओर झुकाव वाले नागरिकों की संख्या में वृद्धि हुई है।
    • राजनीतिक अस्थिरता और सामाजिक-आर्थिक अनिश्चितता इस द्वीपीय राष्ट्र में इस्लामी कट्टरपंथ के उदय को बढ़ावा देने वाले मुख्य कारक हैं।
    • यह पाकिस्तानी आतंकी समूहों द्वारा भारत और भारतीय हितों के खिलाफ आतंकवादी हमलों के लिये मालदीव के सुदूर द्वीपों को एक लॉन्च पैड के रूप में उपयोग करने की संभावना को जन्म देता है।
  • चीनी पक्ष:  हाल के वर्षों में भारत के पड़ोस में चीन के सामरिक दखल में वृद्धि देखने को मिली है। मालदीव दक्षिण एशिया में  चीन की ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स’ (String of Pearls) रणनीति का एक महत्त्वपूर्ण घटक बनकर उभरा है।
    • चीन-भारत संबंधों की अनिश्चितता को देखते हुए मालदीव में चीन की रणनीतिक उपस्थिति चिंता का विषय है।
    • इसके अलावा मालदीव ने भारत के साथ सौदेबाज़ी के लिये 'चाइना कार्ड' का उपयोग शुरू कर दिया है।

आगे की राह

  • भारत और मालदीव के बीच रक्षा सहयोग मालदीव के आस-पास वाले क्षेत्रों में संपर्क/आवागमन के महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग के साथ ही चीन की समुद्री एवं नौसैनिक गतिविधियों पर नज़र रखने के संदर्भ में भारत की क्षमता में वृद्धि करेगा।
  • सरकार की "नेबरहुड फर्स्ट पॉलिसी" के अनुसार, मालदीव जैसे स्थिर, समृद्ध और शांतिपूर्ण देश के विकास के लिये भारत एक प्रतिबद्ध भागीदार बना हुआ है।

स्रोत: द हिंदू