डेली न्यूज़ (12 Aug, 2019)



सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत लोगों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा ने सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत लोगों की बेदखली) संशोधन विधेयक, 2019 (The Public Premises (Eviction of Unauthorised Occupants) Amendment Bill, 2019) पारित किया है। उल्लेखनीय है कि कुछ दिन पूर्व ही यह विधेयक लोकसभा द्वारा भी पारित हो चुका है।

प्रमुख बिंदु

  • यह नया संशोधन विधेयक सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत व्यवसायों का निष्कासन) अधिनियम, 1971 में संशोधन करता है।
  • यह अधिनियम कुछ मामलों में सार्वजनिक परिसरों में अनधिकृत रूप से रहने वालों को बेदखल करने का प्रावधान करता है।

विधेयक के प्रावधान:

  • आवासीय व्यवस्था: इसके अंतर्गत 'आवासीय सुविधा/आवास पर कब्ज़ा' को परिभाषित किया गया है।
    • लाइसेंस निश्चित कार्यकाल या अवधि के लिये दिया जाना चाहिये विशेषकर तब तक जब तक व्यक्ति के पास कार्यालय है।
    • केंद्र, राज्य या केंद्रशासित प्रदेश सरकार या एक वैधानिक प्राधिकरण द्वारा बनाए गए नियमों के तहत कब्ज़े की अनुमति दी जानी चाहिये (जैसे संसद, सचिवालय, या केंद्र सरकार की कंपनी, या राज्य सरकार से संबंधित परिसर)।
  • बेदखली के लिये नोटिस: इस विधेयक में आवासीय सुविधा से बेदखल करने की प्रक्रिया का प्रावधान है।
    • आवासीय संपत्ति पर अनधिकृत कब्ज़े की स्थिति में किसी व्यक्ति को लिखित नोटिस जारी करने के लिये एक संपत्ति अधिकारी (केंद्र सरकार के एक अधिकारी) की आवश्यकता होती है।
    • नोटिस के जवाब में व्यक्ति को तीन कार्य दिवसों के भीतर उसके खिलाफ बेदखली आदेश क्यों नहीं दिया जाना चाहिये, इसका कारण बताना अनिवार्य होगा।
  • बेदखली का आदेश: नोटिस में दिये गए कारण पर विचार करने और किसी भी अन्य पूछताछ के बाद ही संपत्ति अधिकारी निष्कासन का आदेश देगा।
    • यदि व्यक्ति आदेश का पालन करने में विफल रहता है तो संपत्ति अधिकारी ऐसे व्यक्ति को आवासीय सुविधा से बेदखल कर सकता है और आवास पर अधिकार कर सकता है।
    • इस प्रयोजन के लिये संपत्ति अधिकारी द्वारा आवश्यकता पड़ने पर बल प्रयोग भी किया जा सकता है।
  • नुकसान का भुगतान: यदि आवासीय व्यवस्था के तहत अनधिकृत कब्ज़े को लेकर व्यक्ति अदालत में संपत्ति अधिकारी द्वारा पारित निष्कासन आदेश को चुनौती देता है, तो उसे हर महीने उचित हर्जाना देना होगा।

स्रोत: PRS


सरकारी क्षेत्र के बैंकों के मूल्यांकन की योजना

चर्चा में क्यों?

भारतीय बैंकिंग प्रणाली में सरकारी क्षेत्र के बैंकों (Public Sector Banks-PSBs) की हिस्सेदारी में जारी गिरावट को दूर करने के लिये वित्त मंत्रालय ने एक विस्तृत कार्रवाई की योजना तैयार की है जिसके तहत वित्त मंत्रालय शाखा, क्षेत्र, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर कुल 16 प्रदर्शन संकेतकों के माध्यम से PSBs की निगरानी करेगा।

PSBs का बाज़ार हिस्सा घट रहा है जबकि निजी क्षेत्र के बैंक बढ़ रहे हैं:

  • दिसंबर 2018 के अंत तक PSBs अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों के कुल बकाया ऋण के 63 प्रतिशत हिस्से के लिये उत्तरदाई थे।
  • इसके अलावा गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (Non-Banking Financial Companies-NBFCs) उच्च ब्याज़ दरों के बावजूद बैंकों से उधार लेकर ग्राहकों को आकर्षित करने में सक्षम हैं।
  • 16 प्रदर्शन संकेतक:
आधारभूत संरचना के लिये ऋण कृषि क्षेत्र
नीली अर्थव्यवस्था या ब्लू इकॉनमी हाउसिंग सेक्टर
सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्यम स्टैंड-अप इंडिया योजना
शिक्षा निर्यात
ग्रीन इकॉनमी स्वच्छता गतिविधियाँ
वित्तीय समावेशन महिला सशक्तीकरण
प्रत्यक्ष लाभ अंतरण डिजिटल अर्थव्यवस्था
ATM का उपयोग और प्रदर्शन कॉर्पोरेट सोशल रेस्पोंसिबिलिटी

  • इसके बाद बैंकों का 18 सार्वजनिक बैंकों के औसत के आधार पर मूल्यांकन किया जाएगा और यदि उन्हें इसमें सुस्त पाया गया तो उनके प्रदर्शन में सुधारने करने के लिये विभिन्न स्तरों पर परामर्श के बाद विशिष्ट कार्रवाई की जाएगी।

action plan
स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


त्रिपुरा के साथ शांति समझौता

चर्चा में क्यों?

भारत सरकार, त्रिपुरा और साबिर कुमार देबबर्मा के नेतृत्‍व में नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (NLFT-SD) के बीच 10 अगस्त, 2019 को एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये गए।

पृष्ठभूमि

  • यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय सीमापार स्थित अपने शिविरों से हिंसा फैलाने जैसी गतिविधियों में शामिल रहा है।
  • वर्ष 2005 से 2015 की अवधि के दौरान NLFT ने तकरीबन 317 उग्रवादी घटनाओं को अंजाम देते हुए हिंसक कार्रवाई की, जिसमें कई सुरक्षा बलों और नागरिकों की जान गई।
  • वर्ष 2015 में NLFT के साथ शांति वार्ता शुरू हुई, तब कहीं जाकर वर्ष 2016 के बाद से इस संगठन ने कोई हिंसक कार्रवाई नहीं की है।
  • इस शांति वार्ता का परिणाम यह हुआ है कि NLFT (SD) हिंसा के मार्ग को छोड़ने, मुख्यधारा में शामिल होने और भारत के संविधान का पालन करने के लिये सहमत हो गया है।
  • संगठन ने अपने 88 सदस्‍यों के हथियार सहित आत्मसमर्पण करने पर भी सहमति जताई है।

आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास योजना, 2018

Surrender-cum-Rehabilitation Scheme 2018

    • आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों को गृह मंत्रालय की आत्मसमर्पण-सह-पुनर्वास योजना, 2018 के अनुसार आत्मसमर्पण लाभ दिया जाएगा।
    • त्रिपुरा राज्य सरकार आत्मसमर्पण करने वाले कैडरों को आवास, भर्ती और शिक्षा जैसी सुविधाएँ उपलब्‍ध कराने में मदद करेगी।
  • राज्‍य में उग्रवादियों ने समर्पण-सह-पुनर्वास की एक नई विशेष योजना बनाई गई है और 1 दिसंबर, 2012 से कार्यान्वित है।
  • इस योजना के तहत लाभों/प्रोत्‍साहनों में 2.5 लाख रुपए का तात्‍कालिक अनुदान, 36 महीनों के लिये 4000 रुपए प्रतिमाह की दर से मासिक वृत्ति, समर्पित हथियारों के लिये प्रोत्‍साहन, समर्पण करने वाले उग्रवादियों को व्‍यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाना और समर्पण करने वाले उग्रवादियों के लिये पुनर्वास शिविरों का लगाया जाना शामिल है।
  • इसके बाद भारत सरकार ने ‘प्रभावित क्षेत्रों में वामपंथी उग्रवादियों की आत्‍मसमर्पण-सह-पुनर्वास योजना’ के लिये दिशा-निर्देशों में संशोधन भी किया जो 1 अप्रैल, 2013 से प्रभावी हुआ।
  • संशोधित नीति के पुनर्वास पैकेज में अन्‍य सहूलियतों के अलावा ऊँचे कैडर वाले उन LWE के लिये 2.5 लाख रुपए और मध्‍यम/निचले कैडर वाले उन LWE के लिये 1.5 लाख रुपए का अनुदान तत्‍काल दिया जाता है, जो संबंधित राज्‍य सरकार के समक्ष आत्‍मसमर्पण करते हैं।
  • इसके अलावा, आत्‍मसमर्पण करने वाले LWE को व्‍यावसायिक प्रशिक्षण के वास्‍ते अगले तीन वर्षों के दौरान 4,000 रुपए की धनराशि हर महीने दी जाएगी।

नोट: NLFT पर वर्ष 1997 से गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम [Unlawful Activities (Prevention) Act] के तहत प्रतिबंध लगा हुआ है।

त्रिपुरा: एक नज़र में

  • राजधानी- अगरतला
  • मुख्य भाषा- बांग्ला और कोकबरोक
  • कुल क्षेत्रफल 10,491.69 वर्ग किमी.
  • क्षेत्रफल की दृष्टि से त्रिपुरा देश का दूसरा सबसे छोटा राज्य है, साथ ही जनसंख्या के आधार पर यह पूर्वोत्तर का दूसरा बड़ा राज्य है।
  • राज्य की सीमाएँ मिज़ोरम, असम तथा बांग्लादेश से लगी हुई हैं। उत्तर, दक्षिण तथा पश्चिम में यह बांग्लादेश से घिरा है तथा इसके कुल सीमा क्षेत्र का 84 फीसदी अर्थात् 856 किलोमीटर क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय सीमा के रूप में है।
  • त्रिपुरा रियासत ने 15 अक्तूबर, 1949 को भारत संघ के साथ विलय पत्र पर हस्ताक्षर किये। 21 जनवरी, 1972 को इसे पूर्ण राज्य का दर्ज़ा दिया गया।

स्रोत: pib


ग्राम पंचायतों का डिजिटलीकरण

चर्चा में क्यों?

केंद्र सरकार ने 16 प्रमुख मंत्रालयों के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श के बाद पीपुल्स प्लान अभियान शुरू करने का फैसला किया है। जिसका उद्देश्य देश की प्रत्येक ग्राम पंचायत हेतु एक विकास योजना तैयार करनी है।

प्रमुख बिंदु:

  • पीपुल्स प्लान अभियान को सबकी योजना सबका विकास के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस अभियान का लक्ष्य देश की ग्राम पंचायतों हेतु एक विकास योजना को तैयार करके उसे एक ऐसी वेबसाइट पर रखना है, जहाँ पर कोई भी व्यक्ति स्वच्छ भारत मिशन, प्रधानमंत्री सड़क योजना और प्रधानमंत्री आवास योजना जैसी सरकार की प्रमुख योजनाओं की स्थिति देख सके।
  • ग्राम पंचायत विकास योजनाओं के तहत प्रत्येक ग्राम पंचायत में स्वास्थ्य, स्वच्छता, शिक्षा, कृषि, आवास, सड़क, पेयजल, विद्युतीकरण, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम और सामाजिक कल्याण जैसे 48 आवश्यक संकेतकों की श्रेणी रखी गई है।
  • प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिये 100 अंकों का मानक रखा गया है जिसमें से आर्थिक गतिविधियों के लिये 40 अंक तथा बुनियादी ढाँचे और मानव विकास के लिये 30- 30 अंक निर्धारित किये गए हैं।
  • 48 संकेतकों का डेटा जनगणना 2011 और सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना 2011 पर आधारित होगा।digital Gram Panchayat
  • प्रत्येक ग्राम पंचायत का स्कोर स्थानीय आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को दर्शाएगा, उदाहरण के लिये सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जल संरक्षण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाएगी।
  • इस रैंकिंग के भीतर समाज में सबसे वंचित और पीड़ित परिवारों को विशेष प्राथमिकता देकर सामाजिक समावेशन का प्रयास किया जाएगा।
  • पिछले वर्ष ग्राम पंचायतों के कई संकेतकों में काफी सुधार हुआ है लेकिन ज़्यादातर राज्य 100 अंको की तुलना में 41 से 50 के बीच ही अंक प्राप्त कर पाए हैं।
  • देश की कुल ग्राम पंचायतों में से केवल 0.1%और 0.6% ग्राम पंचायतें ही क्रमशः 91-100 और 81-90 के बीच का उच्च स्कोर प्राप्त कर सकी हैं।
  • सर्वेक्षण में केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश शीर्ष स्कोरर रहे वहीं झारखंड, असम, बिहार और मध्य प्रदेश का स्कोर निम्नतम रहा था।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सौर तापीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?

राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान (National Institute of Solar Energy- NISE) और संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (United Nations Industrial Development Organization- UNIDO) ने सौर तापीय ऊर्जा क्षेत्र के विभिन्न स्तरों के लाभार्थियों लिये कौशल विकास कार्यक्रम शुरू करने हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये हैं।

प्रमुख बिंदु

  • यह समझौता पहले से क्रियान्वित MNRE-GEF-UNIDO परियोजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य CST (Concentrated Solar Thermal Energy Technologies) में तकनीकी जनशक्ति के क्षमता निर्माण और कौशल विकास को बढ़ावा देना है। इसका उपयोग पारंपरिक जीवाश्म ईंधन जैसे-कोयला, डीज़ल, भट्टी का तेल आदि को स्थानांतरित करने के लिये किया जा रहा है।
  • GEF-UNIDO परियोजना को MNRE के सहायता कार्यक्रम के पूरक के तौर पर तैयार किया गया है ताकि CST प्रौद्योगिकी से जुड़े अवरोधों, क्षमता निर्माण, बाज़ार और वित्तीय बाधाओं को दूर किया जा सके तथा इसके विषय में जागरूकता फैलाई जा सके।
  • परियोजना की अवधि जनवरी 2015 से दिसंबर 2019 तक है।
  • वर्तमान में वाणिज्यिक और औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिये विभिन्न केंद्रित तकनीकों का या तो विकास किया गया है या वे विकास के अधीन हैं।
  • ऐसी औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिये जहाँ 80 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान की आवश्यकता होती है, सौर कलेक्टरों (Solar Collectors) जैसे कि परवलयिक गर्त (Parabolic Trough) या डिश कलेक्टरों पर ध्यान केंद्रित करना, गैर-इमेजिंग सांद्रता (Non-Imaging Concentrators) या एक रैखिक फ्रेसेल सिस्टम (Linear Fresnel System) का उपयोग करना आवश्यक है।
  • सौर सांद्रता के कार्यान्वयन के लिये अच्छी संभावनाएँ प्रकट करने वाले उद्योग खाद्य प्रसंस्करण, कागज़ एवं लुगदी, उर्वरक, ब्रुअरीज़, इलेक्ट्रोप्लेटिंग, फार्मास्युटिकल, टेक्सटाइल, रिफाइनरीज, रबर और अलवणीकरण क्षेत्र हैं।

संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन

(United Nations Industrial Development Organization)

  • संयुक्त राष्ट्र महासभा (United Nations General Assembly) ने वर्ष 1966 में UNIDO की स्थापना के लिये प्रस्ताव पारित किया।
  • यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है जो गरीबी में कमी लाने, समावेशी वैश्वीकरण और पर्यावरणीय स्थिरता के लिये औद्योगिक विकास को बढ़ावा देती है।
  • 1 अप्रैल 2019 तक 170 देश UNIDO के सदस्य हैं।
  • इसका मुख्यालय ऑस्ट्रिया के वियना में है।

राष्ट्रीय सौर ऊर्जा संस्थान

(National Institute of Solar Energy- NISE)

  • NISE नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable-MNRE) की एक स्वायत्त संस्था है, जो सौर ऊर्जा के क्षेत्र में शीर्ष राष्ट्रीय अनुसंधान एवं विकास (R&D) संस्था है।
  • भारत सरकार ने राष्ट्रीय सौर मिशन को लागू करने में मंत्रालय की सहायता करने और अनुसंधान, प्रौद्योगिकी एवं अन्य संबंधित कार्यों के समन्वय के लिये सितंबर 2013 में MNRE के तहत 25 साल पुराने सौर ऊर्जा केंद्र (Solar Energy Centre-SEC) को एक स्वायत्त संस्थान में परिवर्तित किया।
  • यह गुरुग्राम, हरियाणा में स्थित है।

स्रोत: pib


जुलाई 2019 अभी तक का सबसे गर्म महीना

चर्चा में क्यों?

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization-WMO) ने घोषणा की कि जब से मौसम विश्लेषण का कार्य शुरू हुआ है, तब से अभी तक के सबसे गर्म महीने का रिकॉर्ड तोड़ते हुए जुलाई 2019 संभवतः सबसे गर्म महीने रहा है।

क्या प्रवृत्ति देखने को मिली है?

  • WMO और कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम (Copernicus Climate Change Programme) के नए आँकड़ों के विश्लेषण से यह जानकारी मिलती है कि अभी तक के सबसे गर्म महीने के तौर पर जुलाई 2016 को रिकॉर्ड किया गया था और जुलाई 2019 तकरीबन इसके बराबर रहा।

कोपर्निकस क्लाइमेट चेंज प्रोग्राम (Copernicus Climate Change Programme) का संचालन यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फोरकास्ट (European Centre for Medium-Range Weather Forecasts) द्वारा किया जाता है।

  • जुलाई 2019 में तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से लगभग 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
  • पेरिस समझौते के अनुसार, 21वीं सदी के औसत तापमान में औद्योगीकरण के पूर्व के वैश्विक तापमान के स्तर की तुलना में, 2°C से अधिक की वृद्धि नहीं होने दी जाएगी। इसके साथ ही सदस्यों द्वारा यह प्रयास किया जाएगा कि वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को 1.5 °C तक सीमित रखा जाए।

Copernicus Climate

यह चिंता का विषय क्यों है:

  • हाल के सप्ताहों में दुनिया भर में असाधारण गर्मी का मौसम देखने को मिला, कई यूरोपीय देशों में उच्च तापमान दर्ज किया गया।
  • असाधारण गर्मी के साथ-साथ ग्रीनलैंड, आर्कटिक और यूरोपीय ग्लेशियरों पर बर्फ के पिघलने की घटना भी सामने आई।
  • आर्कटिक में लगातार दूसरे माह जारी रही भयावह वनाग्नि में वृहद स्तर पर वनों को क्षति पहुँची, वनाग्नि (Forest Fires) से जहाँ एक ओर प्राकृतिक संसाधनों को क्षति पहुँचती है वहीं दूसरी ओर बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) भी उत्सर्जित होती है जिसका प्रत्यक्ष रूप से जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव पड़ता है।
  • यह जलवायु परिवर्तन की वास्तविकता है। यदि समय रहते इस विषय में कठोर कार्यवाही नहीं की गई, तो भविष्य के इसके बहुत भयावह परिणाम सामने आएंगे।

इस वर्ष नई दिल्ली से लेकर एंकरेज (Anchorage), अलास्का तक, पेरिस से लेकर सेंटियागो, एडिलेड (Adelaide), दक्षिण ऑस्ट्रेलिया से लेकर आर्कटिक सर्कल तक उच्च तापमान के रिकॉर्ड टूटते हुए नज़र आए हैं। यदि वर्तमान में जलवायु परिवर्तन पर कठोर कार्रवाई नहीं की जाती हैं, तो ये चरम मौसमी घटनाएँ केवल एक या दो दिन की बात नहीं बल्कि एक कठोर, नियमित, स्थिर वास्तविकता का रूप धारण कर लेंगी। इस संदर्भ में यदि हेनरी डेविड थॉरो के इस वाक्य पर विचार किया जाए कि "खुदा का शुक्र है कि इंसान उड़ नहीं सकते, और आसमान और धरती दोनों को ही बर्बाद नहीं कर सकते" तो यह बताना निरर्थक होगा कि जलवायु परिवर्तन का संकट मानव के जीवन को किस हद तक नुकसान पहुँचा सकता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


SPIT SEQ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मेडिटेनोम लैब्स द्वारा SPIT SEQ नामक परीक्षण प्रणाली विकसित की गई है जो तपेदिक के बैक्टीरिया में मौजूद हर उत्परिवर्तन का विस्तृत विश्लेषण करेगी।

प्रमुख बिंदु:

  • भारत में तपेदिक की मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंस (Multi-Drug Resistant) की संख्या विश्व में सबसे ज़्यादा है।
  • इस परीक्षण के माध्यम से डॉक्टरों को तपेदिक के रोगी के लिये सटीक दवा चुनने में कम समय लगेगा जबकि आमतौर पर इस प्रक्रिया में एक महीने का समय लगता है।
  • यह परीक्षण माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium Tuberculosis) के पूरे जीनोम अनुक्रमण पर आधारित है, यह अनुक्रमण बैक्टीरिया के कारण जारी रहता है।

माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस

(Mycobacterium Tuberculosis)

  • माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस रोग पैदा करने वाला एक बैक्टीरिया है, इससे तपेदिक या क्षय रोग (T.B.) होता है।
  • वर्ष 1882 में इसकी खोज सर्वप्रथम रॉबर्ट कोच ने की थी।
  • यह एक खतरनाक बैक्टीरिया है, जो स्तनधारी जीवों के फेफड़ों को प्रभावित करता है।
  • जीनोम परियोजना के अंतर्गत वर्ष 1998 में इसके जीनोम अनुक्रम का पता लगा था।
  • यह परीक्षण बैक्टीरिया के जीनोम उत्परिवर्तन का आकलन करने में डॉक्टर की सहायता करता है जिससे तपेदिक के रोगियों को ज़्यादा सटीक दवाएँ उपलब्ध कराई जा सकती है।
  • प्रत्यक्ष संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (Whole Genome Sequencing) 10 दिनों में सभी तपेदिक प्रतिरोधी दवाओं के उत्परिवर्तन की समीक्षा करता है।

जीनोम अनुक्रमण

(Genome Sequencing)

  • जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) के तहत DNA अणु के भीतर न्यूक्लियोटाइड के सटीक क्रम का पता लगाया जाता है।
  • इसके अंतर्गत DNA में मौजूद चारों तत्त्वों- एडनीन (A), ग्वानीन (G), साइटोसीन (C) और थायमीन (T) के क्रम का पता लगाया जाता है।
  • DNA अनुक्रमण विधि से लोगों की बीमारियों का पता लगाकर उनका समय पर इलाज करना और साथ ही आने वाली पीढ़ी को रोगमुक्त करना संभव है।
  • WHO की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2017 में 2.7 मिलियन तपेदिक के मामले ज्ञात थे।
  • सबसे चिंताजनक तथ्य यह है कि कुल वैश्विक स्तर में से भारत में तपेदिक से 27% मौतें होती हैं।

माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस धीमी गति से बढ़ता है, इससे इसके स्पष्टीकरण में 6-8 सप्ताह का समय लग जाता है और टीबी निदान के साथ ही दवा प्रतिरोध परीक्षण में भी देरी हो जाती है। SPIT SEQ परीक्षण के माध्यम से 10 दिनों के अंदर परीक्षण करके तपेदिक रोगियों का बेहतर इलाज किया जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू (बिज़नेस लाइन)


बकरीद क्या है?

संदर्भ

भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित कई देशों में 12 अगस्त को ईद-उल-अज़हा अथवा बकरीद के रूप में मनाया जा रहा है।

ईद-उल-अज़हा

  • ईद-उल-अज़हा (Id–ul–Azha) अथवा ईद-उल-जुहा को इस्लाम धर्म के पैगंबर हज़रत इब्राहिम (Prophet Hazrath Ibrahim) द्वारा बलिदान के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हर साल मुसलमानों द्वारा 10वें इस्लामी महीने ज़िलहज (Zilhaj) पर मनाया जाता है। ईद उल ज़ुहा को बकरीद भी कहा जाता है।
  • बकरीद के पर्व का मुख्य उद्देश्य लोगों में जनसेवा और अल्लाह की सेवा के भाव को जगाना है। बकरीद का यह पर्व इस्लाम के पाँचवें सिद्धांत हज़ को भी मान्यता देता है। इस्लाम के पाँच सिद्धांतों में से एक है हज़। हज यात्रा पूरी होने की खुशी में ईद-उल-जुहा का त्योहार मनाया जाता है।
  • अंग्रेज़ी कैलेंडर की तुलना में इस्लामिक कैलेंडर थोड़ा छोटा होता है। इसमें 11 दिन कम माने जाते हैं।

क्या है मान्यता?

  • एक रात हज़रत इब्राहिम ने सपने में देखा कि वह अपने इकलौते पुत्र इस्माइल की बलि दे रहे हैं। यह एक सपना था और वास्तव में यह अल्लाह का एक आदेश था जिसमें पिता और पुत्र दोनों से बलिदान की मांग की गई थी।
  • हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे हज़रत इस्माइल (वह भी एक पैगंबर थे) की सलाह ली, जिन्होंने आसानी से अपनी सहमति दे दी।
  • ज़िलहज के 10वीं दिन प्रकृति ने एक अद्भुत दृश्य देखा जहाँ एक पिता अपने खुदा की आज्ञाकारिता में अपने पुत्र के बलिदान की तैयारी कर रहा था। लेकिन जैसे ही हज़रत इस्माइल अपने पुत्र को कुर्बान करने वाले थे अल्लाह ने उनके पुत्र की जगह एक दुंबे को रख दिया। इसका सीधा सा अर्थ यह था कि अल्लाह सिर्फ उनकी परीक्षा ले रहा था।

स्रोत: द हिंदू


सिंचाई प्रतिरूप और मानसून

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई ने पता लगाया है, कि सिंचाई प्रतिरूप मानसूनी वर्षा को प्रभावित कर रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • पहली बार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मुंबई के शोधकर्त्ताओं ने बताया है कि बेहतर सिंचाई नीति के माध्यम से वायुमंडलीय प्रतिक्रिया के साथ ही भारत में मानसूनी वर्षा को तीव्र किया जा सकता है।
  • शोधकर्त्ताओं ने बताया कि, उत्तर-पश्चिमी भारत में गर्मियों में मानसूनी वर्षा में परिवर्तन और सितंबर महीने में मध्य भारत में अत्यधिक वर्षा को सिंचाई प्रतिरूप प्रभावित कर रहा है।
  • सितंबर के महीने में कृषि भूमि अत्यधिक सिंचित होती है और फसलें परिपक्व होती हैं, जिसके परिणामस्वरूप वायुमंडल में अधिक नमी विद्यमान रहती है।
  • इससे पहले भी कई अध्ययनों से पता चला था कि सिंचाई भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावित करती है।
  • लेकिन IIT मुंबई, नॉर्थवेस्ट पैसिफिक नेशनल लेबोरेटरी ( Pacific Northwest National Laboratory ) और ओक रिज नेशनल लेबोरेटरी (Oak Ridge National Laboratory ) के शोधकर्त्ताओं ने पहली बार स्पष्ट किया कि सिंचाई प्रबंधन में किसी बदलाव से वातावरण में नमी की मात्र में भी बदलाव होता है।

भूमि-सतह मॉडल:

  • सिंचाई की मानसूनी वर्षा की भूमिका के रूप में शोधकर्त्ताओं ने भूमि-सतह मॉडल का एक मॉड्यूल विकसित किया है। यह भारत की स्थानीय मिट्टी, सिंचाई और कृषि पैटर्न को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
  • सामान्यतः मिट्टी में नमी कम होने के कारण सिंचाई की जाती है लेकिन भारत में अनियंत्रित सिंचाई होती है।
  • भारत का लगभग 50% फसल क्षेत्र धान से आच्छादित है, जहाँ खेतों को जलमग्न स्थिति में रखा जाता है। इसलिये धान के फसल क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा का प्रतिरूप अन्य जगहों से भिन्न होता है।
  • सिंचाई प्रतिरूप के साथ-साथ तापमान और वाष्पीकरण भी मानसून को प्रभावित करता है।

वातावरण की प्रतिक्रिया के अध्ययन में मिट्टी की नमी को उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिये। भारत में उपयोग किये जाने वाले किसी भी भूमि-सतह मॉडल हेतु भारत की स्थानीय सिंचाई और कृषि प्रणाली को ध्यान में अवश्य रखना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


NSIL के लिये पहला अनुबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) की नव निर्मित दूसरी वाणिज्यिक शाखा न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited-NSIL) ने अपना पहला अनुबंध प्राप्त किया है।

  • एक निजी अमेरिकी अंतरिक्ष सेवा प्रदाता ‘स्पेसफ्लाइट’ ने इसरो के लघु उपग्रह लॉन्च वाहन (Small Satellite Launch Vehicle-SSLV) के साथ यह अनुबंध किया है।

लघु उपग्रह प्रमोचन वाहन

(Small Satellite Launch Vehicle-SSLV)

  • SSLV सबसे छोटा वाहन है जिसका वज़न केवल 110 टन है।
  • PSLV या GSLV जैसे प्रमोचन/लॉन्च वाहनों के लिये आवश्यक 70 दिनों के विपरीत इसे एकीकृत (Integrate) करने में केवल 72 घंटे का समय लगेगा।
  • लागत प्रभावी: इसकी लागत लगभग 30 करोड़ रुपए होगी।
  • यह ऑन-डिमांड वाहन होगा।
  • SSLV एक बार में कई सूक्ष्म उपग्रहों को लॉन्च करने में सक्षम है और यह मल्टीपल ऑर्बिटल ड्रॉप-ऑफ (Multiple Orbital Drop-Offs) को भी समर्थन देता है।
  • SSLV 500 किलोग्राम तक के वज़न वाले उपग्रहों को पृथ्वी की निम्न कक्षा यानी Low Earth Orbit-LEO में ले जा सकता है, जबकि PSLV 1,000 किलोग्राम तक के वज़न वाले उपग्रहों को प्रक्षेपित कर सकता है।

लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) क्या है?

  • पृथ्वी की सतह के 160 किमी. से 2000 किमी. की परिधि को लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit) कहते हैं। इस कक्षा में मौसम, निगरानी करने वाले उपग्रह और जासूसी उपग्रहों को स्थापित किया जाता है।
  • पृथ्वी की सतह से सबसे नज़दीक होने की वज़ह से इस कक्षा में किसी उपग्रह को स्थापित करने के लिये कम ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
  • इस कक्षा की खास बातविशेषता यह भी है कि इसमें अधिक शक्तिशाली संचार प्रणाली को भी स्थापित किया जा सकता है। ये उपग्रह जिस गति से अपनी कक्षा में घूमते हैं उनका व्यवहार भू-स्थिर (जिओ-स्टेशनरी) की तरह ही होता है।
  • लो अर्थ ऑर्बिट के बाद मीडियम अर्थ (इंटरमीडिएट सर्कुलर) ऑर्बिट और उसके बाद पृथ्वी की सतह से 35,786 किलोमीटर पर हाई अर्थ (जिओसिंक्रोनस) ऑर्बिट है।
  • इसरो का SSLV मूल रूप से जुलाई 2019 में अपनी पहली विकास उड़ान भरने वाला था, लेकिन इसे वर्ष 2019 के अंत तक दाल दिया गया है।

न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड

  • हाल ही में न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (New Space India Limited-NSIL) का आधिकारिक रूप से बंगलूरु में उद्घाटन किया गया है। गौरतलब है कि न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) की एक वाणिज्यिक शाखा है।
  • अंतरिक्ष के क्षेत्र में ISRO द्वारा की गई अनुसंधान और विकास गतिविधियों के व्यावसायिक उपयोग हेतु न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड को 100 करोड़ रुपए की अधिकृत शेयर पूंजी (पेड-अप कैपिटल 10 करोड़ रुपए) के साथ 6 मार्च, 2019 को शामिल किया गया था।
  • यह ‘एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन’ के बाद इसरो की दूसरी व्यावसायिक शाखा है। एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन को मुख्य रूप से वर्ष 1992 में इसरो के विदेशी उपग्रहों के वाणिज्यिक प्रक्षेपण की सुविधा हेतु स्थापित किया गया था।

उद्देश्य

  • NSIL का उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रमों में उद्योग की भागीदारी को बढ़ाना है।
  • NSIL अंतरिक्ष से संबंधित सभी गतिविधियों को एक साथ लाएगा और संबंधित प्रौद्योगिकियों में निजी उद्यमशीलता का विकास करेगा।

NSIL का उत्तरदायित्व

  • टेक्नोलॉजी ट्रांसफर मैकेनिज़्म के माध्यम से लघु उपग्रह प्रमोचन वाहन (Small Satellite Launch Vehicle-SSLV) और ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचन वाहन (Polar Satellite Launch Vehicle-PSLV) का निर्माण और उत्पादन।
  • यह उभरती हुई वैश्विक वाणिज्यिक SSLV बाज़ार की मांग को भी पूरा करेगा, जिसमें उपग्रह निर्माण और उपग्रह-आधारित सेवाएँ प्रदान करना शामिल है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रजनन दर पर राज्य संस्कृति का प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जारी प्रजनन दर से संबंधित आँकड़ों में सामने आया है कि उच्च शिक्षा के साथ कुल प्रजनन दर (Total Fertility Rate-TFR) का संबंध काफी जटिल होता है और कई बार राज्य की संस्कृति प्रजनन दर को ज़्यादा प्रभावित करती है।

प्रमुख बिंदु:

  • यह एक सामान्य धारणा है कि महिलाओं का शैक्षिक स्तर जितना अधिक होता है प्रजनन दर उतनी ही कम होती है।
  • अध्ययनकर्त्ताओं के अनुसार, किसी भी राज्य की संस्कृति का असर TFR पर भी देखने को मिलता है। उदाहरणस्‍वरूप तमिलनाडु की कम पढ़ी-लिखी महिलाओं के बीच कुल प्रजनन दर उत्तर प्रदेश की पढ़ी-लिखी महिलाओं के बीच प्रजनन दर से कम है।

कुल प्रजनन दर का आशय अपने जीवनकाल में एक महिला से पैदा होने वाले बच्चों की औसत संख्या से होता है।

क्या TFR पर राज्य की संस्कृति का शिक्षा से अधिक प्रभाव है?

  • विशेषज्ञों के अनुसार, यह पैटर्न उच्च प्रजनन दर वाले राज्यों में ज़्यादा स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। हालाँकि प्रजनन दर पर वर्ष 2017 के आँकड़ों में यह पाया गया है कि कम प्रजनन दर वाले राज्यों में भी यह पैटर्न काफी प्रबल है।
  • उदाहरण के लिये बिहार, जो कि एक अधिक प्रजनन दर वाला राज्य है, में उन महिलाओं का TFR 4.4 था जिन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी जबकि इसके विपरीत अनपढ़ महिलाओं में यह संख्या मात्र 3.7 ही पाई गई। इसी प्रकार ओडिशा, जो कि कम प्रजनन दर वाला राज्य है, में अनपढ़ महिलाओं का TFR 2 था जबकि प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त महिलाओं में यह दर 3.6-3.5 के आस-पास थी।
  • यदि अखिल भारतीय स्तर की बात करें तो उन महिलाओं का TFR 3.1 था जिन्होंने प्राथमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त की थी, जबकि अनपढ़ महिलाओं का TFR 2.9 था। इसके अलावा अखिल भारतीय स्तर पर औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाली महिलाओं में यह दर थोड़ी कम अर्थात् 2.4 ही पाई गई।
  • इस संदर्भ में कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रभाव मात्र इसलिये दिखाई दे रहा है, क्योंकि देश में निरक्षरों की संख्या में गिरावट आ रही है और उनका सैंपल आकार काफी छोटा हो गया है। इस आधार पर वे लोग इस पैटर्न या प्रभाव को प्रवृत्ति मानने से इनकार करते हैं।

स्रोत: टाइम्स ऑफ इंडिया


अपशिष्ट की डंपिंग और दहन- सर्वाधिक प्रदूषणकारी गतिविधियाँ

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB) के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (Delhi NCR) में प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत अपशिष्ट की खुले में डंपिंग (Dumping) और दहन (Burning) हैं।

प्रमुख बिंदु

  • CPCB ने PWD, CPWD, DDA, DMRC, DSIIDC, NDMC, जैसी एजेंसियों से अगस्त और सितंबर के महीने के दौरान अपशिष्ट की खुले में डंपिंग और दहन के विरुद्ध मुहिम चलाने का निर्देश दिया है।
  • CPCB के अनुसार, सभी एजेंसियों द्वारा वायु प्रदूषण से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिये उठाए गए कदमों का बारीकी से निरीक्षण किया जाएगा और यदि एजेंसियों द्वारा सही कदम नहीं उठाए गए हों तो ऐसी स्थिति में उनके खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार कार्रवाई की जा सकती है।
  • सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग, वन विभाग, दिल्ली पुलिस, फरीदाबाद नगर निगम आदि ने सोशल मीडिया पर की गई शिकायतों के निपटारे हेतु अब तक किसी भी नोडल ऑफिसर की नियुक्ति नहीं की है।

ठोस कचरे की वर्तमान स्थिति

  • मेगासिटी के अधिकांश डंपिंग साइट्स अपनी क्षमता और 20 मीटर की अनुमेय ऊँचाई की सीमा से परे पहुँच गए हैं। अनुमानतः भारत में 10,000 हेक्टेयर से अधिक शहरी भूमि इन डंपसाइटों में बंद हैं।
  • भारतीय शहरों में प्रति व्यक्ति अपशिष्ट उत्पादन प्रति दिन 200 ग्राम से 600 ग्राम तक होता है।
  • नगरपालिका के कचरे का केवल 75-80% एकत्रित किया जाता है और केवल 22-28% कचरे का प्रसंस्करण और उपचार किया जाता है।

प्रभाव

  • खुले में डंप किये गए कचरे से मीथेन का उत्सर्जन होता है, जो सूर्य की गर्मी को अवशोषित कर वातावरण को गर्म करता है और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है।
  • लीचेट (Leachate) जो कचरे से निकलने वाला एक काले रंग का तरल है, 25 से 30 साल की अवधि में धीरे-धीरे विघटित हो जाता है और फिर मृदा और भूजल को दूषित करता है।

लीचेट

  • लीचेट काले रंग का, दुर्गंध युक्त, विषैला तरल पदार्थ है जो लैंडफिल (कूड़े का ढेर) में कचरे के सड़ने से निकलता है,
  • इसमें कवक और बैक्टीरिया के अलावा हानिकारक रसायन भी मौज़ूद होते हैं।
  • यह लैंडफिल के तल पर जमा हो जाता है तथा भूजल को दूषित करने वाली मिट्टी के माध्यम से नीचे की ओर रिसकर चला जाता है।
  • यह सतह के जल को भी दूषित करता है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

(Central Pollution Control Board- CPCB)

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
  • इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
  • यह बोर्ड क्षेत्र निर्माण के रूप में कार्य करने के साथ-साथ पर्यावरण (सुरक्षा) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के अंतर्गत पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी उपलब्ध कराता है।
  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के प्रमुख कार्यों को जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 तथा वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के तहत वर्णित किया गया है।

आगे की राह

  • यद्यपि ऐसे बहुत से उपाय हैं जिनका इस्तेमाल करके कुछ हद तक इस समस्या को और अधिक भयावह रूप धारण से बचाया जा सकता है। यथा; घरों से निकलने वाले अपशिष्ट पदर्थों को अलग-अलग वर्गों में विभाजित किया जाना चाहिये। कागज़, प्लास्टिक, ग्लास जैसी वस्तुओं को एक अलग थैले में रखा जाना चाहिये जबकि दूसरे अन्य कचरों को अलग।
  • उल्लेखनीय है कि ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम (Solid Waste Management Rules), 2016 के अनुसार, भारत के प्रत्येक नागरिक द्वारा अपने घरों से निकलने वाले कचरे को सूखे कचरे (recyclable) एवं गीले कचरे (compostable) तथा आरोग्यकर कचरे (disposable diapers and sanitary napkins) के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये।
  • वस्तुतः गीले कचरे के रूप में वर्गीकृत कचरे को जितना जल्द हो सकें, किसी खुले स्थान पर फैला दिया जाना चाहिये ताकि पर्याप्त मात्र में हवा एवं प्रकाश की मौजूदगी के द्वारा इसका भली– भाँति निस्तारण किया जा सके।
  • इस प्रकार के कचरे के ढेर को दो मीटर से अधिक की ऊँचाई तक ही रखा जाता है, साथ ही इसे एक हफ्ते में कम से कम चार बार उल्टा जाता है। ऐसा करने का उद्देश्य यह होता है कि कचरे के ढेर के लगभग प्रत्येक हिस्से को हवा एवं सूर्य का प्रकाश मिल सकें, जिससे कि यह जल्द से जल्द निस्तारित हो सकें, ठीक उसी तरह से जैसे घने वनों में गिरने वाली पत्तियों का ढेर मात्र हवा एवं प्रकाश के सम्पर्क में आने से ही अपघटित हो जाता है।
  • विभिन्न जैवोपचार (Bioramidiation) विधियों का प्रयोग कर नही अपशिष्ट निपटान किया जा सकता है।

निष्कर्ष

स्पष्ट है कि अपशिष्ट प्रसंस्करण के माध्यम से जहाँ एक ओर पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सकता है वहीं दूसरी और निरंतर नए स्थानों की खोज संबंधी परेशानी से भी बचा जा सकता है।

स्रोत: टाइम्स ऑफ़ इंडिया


बीजों के एकरूप प्रमाणन की आवश्यकता

चर्चा में क्यों?

आगामी संसद के शीतकालीन सत्र में यह उम्मीद की जा रही है कि बीज अधिनियम, 1966 को प्रतिस्थापित कर बीजों के एकरूप प्रमाणन (Uniform Certification) को अनिवार्य किया जाएगा।

प्रमुख बिंदु :

  • गौरतलब है कि भारत में बिकने वाले सभी बीजों में से आधे से अधिक बीज किसी भी उचित परीक्षण संस्था द्वारा प्रमाणित नहीं किये गए हैं और अक्सर वे खराब गुणवत्ता के होते हैं।
  • कृषि मंत्रालय के आधिकारिक बयान के अनुसार, यदि ऐसा होता है तो भारत में कृषि उत्पादकता में लगभग 25 प्रतिशत की वृद्धि होगी।

क्या इस परिवर्तन की आवश्यकता है?

अधिनियम को लागू हुए लगभग 53 वर्ष से भी अधिक समय बीत चुका है और इस अवधि में कृषि तकनीक तथा प्रौद्योगिकी में भी काफी परिवर्तन आया है, इसी के साथ किसानों की अपेक्षाओं में भी काफी बदलाव देखने को मिले हैं। इन्हीं कारणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि आधी सदी पहले लागू किये गए कानूनों को तत्काल संशोधित किये जाने की आवश्यकता है।

क्या परिवर्तन किया जाएगा?

  • इस परिवर्तन का मुख्य उद्देश्य गुणवत्ता विनियमन की प्रक्रिया में एकरूपता सुनिश्चित करना है। वर्ष 1966 का बीज अधिनियम अग्रलिखित वाक्य से शुरू होता है- “बिक्री के उद्देश्य से कुछ बीजों की गुणवत्ता को विनियमित करने के लिये एक अधिनियम” - और इस नए विधेयक का उद्देश्य इस वाक्य से “कुछ” शब्द को हटाकर इसके स्थान पर देश में बेचे जाने वाले तथा आयात व निर्यात किये जाने वाले सभी बीजों को शामिल करना है।
  • आँकड़ों के अनुसार, देश में आवश्यक बीजों में से 30 प्रतिशत बीज किसानों द्वारा खुद ही अपनी फसलों से बचाए जाते हैं, परंतु बाकी बचे हुए बीजों, जो संभवतः बाज़ार से खरीदे जाते हैं, में से मात्र 45 प्रतिशत बीज ही ऐसे हैं जो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research) द्वारा प्रमाणित होते हैं।
  • अन्य 55 प्रतिशत बीज, जो कि प्राइवेट कंपनियों द्वारा बेचे जाते हैं, अधिकतर प्रमाणित नहीं होते हैं। सरकार का उद्देश्य इसी श्रेणी को समाप्त करना है और सभी बीजों की प्रमाणिकता को अनिवार्य बनाना है।
  • इस नए विधेयक में कानून का पालन न करने पर लगाए जाने वाले जुर्माने की राशि को भी बढ़ा दिया गया है। पूर्व में यह राशि 500 रुपए (न्यूनतम) से 5000 रुपए (अधिकतम) तक थी, परंतु अब इसे बढ़ाकर अधिकतम 5 लाख रुपए करने पर विचार किया जा रहा है।
  • इसके अलावा केंद्र सरकार पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बीजों को बारकोड करने के लिये एक सॉफ्टवेयर की शुरुआत करने पर भी विचार कर रही है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद

(Indian Council of Agricultural Research)

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद भारत सरकार के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है जिसकी स्थापना 16 जुलाई, 1929 को की गई थी।
  • स्थापना के समय इसका नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च था जिसे पूर्व में परिवर्तित कर दिया गया।
  • कृषि अनुसंधान परिषद का मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।
  • देश भर में फैले 101 भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थानों और 71 कृषि विश्वविद्यालयों सहित यह विश्व में सर्वाधिक विस्तृत राष्ट्रीय कृषि पद्धति है।

स्रोत: द हिंदू


आर्थिक सुस्ती से निपटने के लिये प्रोत्साहन पैकेज

चर्चा में क्यों?

हाल के दिनों में कई आर्थिक संकेतकों ने यह स्पष्ट किया है कि भारत आर्थिक मंदी की ओर बढ़ रहा है, और देश की शहरी तथा ग्रामीण मांग में लगातार कमी आ रही है।

  • उदाहरणस्वरूप देश का ऑटोमोबाइल सेक्टर लंबे समय से मांग में गिरावट का सामना कर रहा है और इस सेक्टर में बड़े पैमाने पर नौकरियों के जाने का खतरा भी मंडरा रहा है। एक अनुमान के मुताबिक यदि देश की आर्थिक स्थिति लगातार ऐसी ही बनी रहती है तो इस सेक्टर में तक़रीबन 10 लाख नौकरियों के जाने का खतरा है।
  • इस आर्थिक मंदी से निपटने तथा देश की वृद्धि दर को बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार अब प्रोत्साहन पैकेज (Stimulus Package) लाने पर विचार कर रही है।

इस आर्थिक सुस्ती के क्या कारण हैं?

  • इक्विटी बाज़ारों और बैंकिंग क्षेत्र में नीति संबंधी अनिश्चिताओं तथा गलत धारणाओं के कारण निवेश पूर्णतः रुक गया है और पहले से निवेशित राशि बाज़ार से बाहर निकाली जा रही है।
  • वैश्विक स्तर पर व्यापार तनाव (अमेरिका-चीन का व्यापार युद्ध) बढ़ने के कारण घरेलू आर्थिक गतिविधियों में और अधिक कमी आने तथा मंदी के तेज़ होने की संभावनाएँ हैं।
  • इस कमज़ोर आर्थिक परिदृश्य को देखते हुए उद्योग क्षेत्र ने वैश्विक और घरेलू मंदी के बीच निवेश चक्र शुरू करने के लिये 1 ट्रिलियन रुपए के प्रोत्साहन पैकेज की मांग की है।
  • सरकार ने भी इस बात को महसूस किया है कि कठोर राजकोषीय नीति देश के आर्थिक विकास के लिये चिंता का विषय बनी हुई है और अकेले मौद्रिक नीति आर्थिक विकास को बढ़ाने के लिये पर्याप्त नहीं है।
    • इसलिये सरकार ने कर में कटौती सहित कई अन्य ऐसे कदम उठाए हैं जो देश की आर्थिक स्थिति को सुधारने में मददगार हो सकते हैं।

आर्थिक सुस्ती से निपटने हेतु प्रयास :

  • इस संदर्भ में सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय किये जा रहा है :
    • उद्योगों को दिये जा रहे प्रोत्साहन पैकेज में अगले पॉंच वर्षों में 100 ट्रिलियन का इन्फ्रास्ट्रक्चर निवेश शामिल होगा।
    • ऑटोमोबाइल सेक्टर सहित कई विशिष्ट क्षेत्रों को GST में राहत प्रदान करने पर विचार किया जा रहा है ताकि इन क्षेत्रों में मांग को और अधिक बढ़ाया जा सके।
    • सीमा पार से होने वाले व्यापार पर लालफीताशाही की प्रवृत्ति को दूर करने और कारोबार के लिये उचित माहौल तैयार करने के प्रयास लगातार जारी हैं।

Reversing The slowdown

महत्त्व :

  • इससे पहले राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (Fiscal Responsibility and Budget Management Act-FRBM Act) ने सरकार को राजकोषीय नीति को आगे बढ़ाने से रोक रखा था।
  • परंतु अब सरकार इस अधिनियम के बचाव खंड (Escape Clause) का सहारा लेते हुए राजकोषीय घाटे को 50 बेसिस पॉइंट तक विचलित करने पर विचार कर रही है।
    • यह सरकार को एक वित्तीय वर्ष में अतिरिक्त 1.15 ट्रिलियन खर्च करने का अधिकार दे सकता है।
  • बचाव खंड (Escape Clause) : एन.के. सिंह की अध्यक्षता में गठित FRBM Act की समीक्षा समिति ने बचाव खंड (Escape Clause) का सुझाव दिया था, यह खंड सकल घरेलू उत्पाद के 0.5 प्रतिशत पॉइंट तक विचलन की अनुमति देता है।

स्रोत: लाइव मिंट


स्तनपान पर स्वास्थ्य मंत्रालय का रिपोर्ट कार्ड

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय(Union Health Ministry) द्वारा जारी एक रिपोर्ट-कार्ड के अनुसार, स्तनपान के मामले में उत्तर प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उत्तराखंड और पंजाब की स्थिति काफी निराशाजनक है।

प्रमुख बिंदु

  • मंत्रालय के अनुसार, इन राज्यों में जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान कराने, छह महीने तक के लिये विशेष स्तनपान और छह से नौ महीने तक के पूरक स्तनपान कराने की दर अत्यंत कम है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर प्रदेश राज्य स्तनपान की दर के मामले में सबसे निचले स्थान पर है। राज्य के मेरठ, बिजनौर, शाहजहाँपुर, गौतम बुद्ध नगर, गोंडा, इटावा और महामाया नगर ऐसे ज़िले हैं जहाँ बच्चे के जन्म के बाद पहले एक घंटे के दौरान स्तनपान कराने की दर बहुत कम हैं।
  • इस रिपोर्ट कार्ड के अनुसार, मिज़ोरम, सिक्किम, ओडिशा और मणिपुर राज्य स्तनपान दर के मामले में शीर्ष पर हैं।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (world Health Organization-WHO) के अनुसार, यदि स्तनपान में लगभग सार्वभौमिक स्तर पर वृद्धि होती है, तो हर साल लगभग 8,20,000 बच्चों की जान बचाई जा सकती है। इसमें बड़ी संख्या 6 महीने से कम आयु के बच्चे शामिल हैं।

Scaling up breastfeeding

1 से 7 अगस्त, 2019 तक विश्व स्तनपान सप्ताह (World Breastfeeding Week) का आयोजन किया गया। इस वर्ष विश्व स्तनपान सप्ताह की थीम ‘माता-पिता को सशक्त बनाना, स्तनपान को सक्षम करना (Empower Parents. Enable Breastfeeding) थी।

क्यों आवश्यक है स्तनपान?

  • यह माँ और बच्चे दोनों के बेहतर स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है।
  • यह प्रारंभिक अवस्था में दस्त और तीव्र श्वसन संक्रमण जैसे रोगों को रोकता है और इससे शिशु मृत्यु दर में कमी आती है।
  • यह माँ में स्तन कैंसर, अंडाशय के कैंसर, टाइप 2 मधुमेह (Diabities) और हृदय रोग होने के खतरे को कम करता है।
  • यह नवजात को मोटापे से संबंधित रोगों, मधुमेह/डायबिटीज़ से बचाता है और IQ बढ़ाता है।

निष्कर्ष: अपर्याप्त स्तनपान मानव की स्वास्थ्य प्रणाली पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। अतः सभी माताओं को घर, घर के बाहर और कार्यस्थलों पर स्तनपान कराने के लिये अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने की तत्काल आवश्यकता है।

स्रोत : द हिंदू


SBM 2.0

चर्चा में क्यों?

SBM 2.0 के तहत राज्यों को राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण प्रारंभ करने का आदेश दिया गया है।

स्वच्छ भारत मिशन:

  • स्वच्छ भारत मिशन को वर्ष 2014 में शुरू किया गया था इसका उद्देश्य अक्तूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच मुक्त बनाना था।
  • सरकार इस कार्यक्रम में IEC (Information, Education and Communication) रणनीति के माध्यम से बड़े स्तर पर सार्वजनिक वित्त का प्रयोग कर रही है साथ ही राजगीर प्रशिक्षण इत्यादि पहलों के माध्यम से खुले में शौच मुक्त हेतु संकल्पित है।
  • ऑक्सफोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट ने सरकार को IEC से BCC (Behaviour Change Communication) दृष्टिकोण अपनाने की सलाह दी है।
  • जहाँ IEC शौचालयों के उपयोग करने की जानकारी एकत्र करता है वहीं BCC शौचालयों का उपयोग क्यों नहीं किया जा रहा है जैसे अंतर्निहित कारकों की समीक्षा भी करता है।
  • SBM 2.0 के तहत खुले में शौच मुक्त (Open defecation free-ODF) कार्यक्रम की स्थिरता के लिये चार स्तंभों पर प्रकाश डाला गया है-
    • ODF पर सतत् निवेश।
    • मल कीचड़ उपचार संयंत्र (Faecal Sludge Treatment Plant) की प्रत्येक ज़िले में स्थापना जिससे मल कीचड़ को ठीक से प्रबंधित किया जा सके।
    • प्रत्येक ग्राम पंचायत में प्लास्टिक कचरा प्रबंधन।
    • गाँवों में ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन हेतु बुनियादी सुविधा।

राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण:

(National Annual Rural Sanitation Survey- NARSS)

  • राष्ट्रीय वार्षिक ग्रामीण स्वच्छता सर्वेक्षण शौचालयों तक पहुँच और उपयोग को ट्रैक करता है जिससे स्वच्छ भारत मिशन की स्थिरता को सुनिश्चित किया जा सके।
  • इस सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2018-19 तक लगभग 93.1% ग्रामीण परिवारों की शौचालयों तक पहुँच है जिनके द्वारा 96.5% शौचालयों का निरंतर उपयोग किया जा रहा है।
  • NARSS एक तृतीय पक्षीय सर्वेक्षण है जो विश्व बैंक की सहायता से स्वतंत्र सत्यापन एजेंसी द्वारा किया जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


Rapid Fire करेंट अफेयर्स 12 अगस्त

  • रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में स्वदेशीकरण को प्रोत्साहित करने के लिये रक्षा खरीद परिषद (Defence Acquisition Council-DAC) ने हाल ही में अपनी बैठक में भारतीय नौसेना के लिये स्वदेशी सॉफ्टवेयर डिफाइंड रेडियो (SDR टेक्टिकल) तथा अगली पीढ़ी की मेरीटाइम मोबाइल तटीय बैटरी (NGMMCB लंबी दूरी) की खरीद की मंज़ूरी दी। SDR एक जटिल और अत्याधुनिक संचार प्रणाली है, जिसे देश में ही DRDO, BEL तथा वेपन इलेक्ट्रानिक्स सिस्टम इंजीनियरिंग स्टैब्लिशमेंट (WESE) द्वारा डिज़ाइन और विकसित किया गया है। यह प्रणाली सूचना साझा करने, सहयोग तथा उच्च गति डेटा के माध्यम से परिस्थितिजन्य जागरूकता में सहायक है और जैम-रोधी क्षमता के साथ वायस कम्युनिकेशन हासिल कर सकती है। अगली पीढ़ी की मेरीटाइम तटीय बैटरी को ज़मीन-से- ज़मीन पर मार करने वाली क्रूज़ मिसाइल सुपरसोनिक ब्रह्मोस के साथ लैस कर तटों पर तैनात किया जाएगा। NGMMCB भारत और रूस के संयुक्त उद्यम ब्रह्मोस एरोस्पेस प्राइवेट लिमिटेड द्वारा विकसित और निर्मित है। स्वदेश में विकसित ये दोनों उपकरण अगली पीढ़ी के हैं और सरकार के मेक इन इंडिया कार्यक्रम को प्रोत्साहित करेंगे। विदित हो कि रक्षा खरीद में व्यावसायिक सुगम्यता पर फोकस को जारी रखते हुए DAC ने रक्षा खरीद प्रक्रिया में वर्ष 2016 में संशोधन को भी मंज़ूरी दी थी।
  • आयकर विभाग ने स्टार्टअप कंपनियों को राहत देते हुए उनके आकलन और जाँच नियमों में छूट देने का फैसला किया है। इसके तहत उन स्टार्टअप कपंनियों से अतिरिक्त कर की मांग नहीं की जाएगी जिन्हें उद्योग संवर्द्धन एवं आतंरिक व्यापार विभाग (DPIIT) से मान्यता मिली हुई है। यह छूट उन मामलों में लागू होगी जहाँ जाँच आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(7b) तक सीमित है और आम बोलचाल की भाषा में जिसे ऐंजल टैक्स कहा जाता है। विदित हो कि गैर-सूचीबद्घ कंपनियों द्वारा शेयर जारी करके जुटाई गई पूंजी पर लगने वाला आयकर ऐंजल टैक्स कहलाता है। यह उन मामलों में लगता है जहाँ शेयर की कीमत उचित बाज़ार मूल्य से ज़्यादा मानी जाती है। जो स्टार्टअप कंपनियाँ DPIIT से मान्यता प्राप्त नहीं हैं, उनके आकलन अधिकारी को ऐंजल टैक्स सहित किसी भी मुद्दे की जाँच या सत्यापन करने के लिये अपने वरिष्ठ अधिकारियों की अनुमति लेनी होगी। इस वर्ष के बजट में यह कहा गया था कि सभी ज़रूरी जानकारी देने वाली स्टार्टअप कंपनियों को मूल्यांकन में किसी तरह की जाँच का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • सूचना तथा प्रसारण मंत्रालय ने ‘रोज़गार समाचार’ का इलेक्ट्रॉनिक संस्करण ई-रोज़गार समाचार शुरू किया है। इसका उद्देश्य युवाओं को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों सहित सरकारी क्षेत्र में रोज़गार के अवसरों के बारे में जानकारी देना है। इसमें करियर पर केंद्रित विशेषज्ञों के लेखों के ज़रिये विभिन्न क्षेत्रों में दाखिले और रोज़गार के अवसरों के बारे में सूचना दी जाएगी। रोज़गार समाचार पत्र का इलेक्ट्रॉनिक संस्करण युवाओं के सूचना के इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों की ओर बढ़ रहे रुझान की चुनौती को पूरा करेगा। इसका मूल्य प्रिंट संस्करण की लागत का 75% है और ई-संस्करण का वार्षिक शुल्क 400 रुपए है। आपको बता दें रोज़गार समाचार एम्प्लॉयमेंट न्यूज़ (अंग्रेज़ी) का हिंदी संस्करण है। एम्प्लॉयमेंट न्यूज़ भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय का फ्लैगशिप साप्ताहिक रोज़गार समाचार पत्र है। इसे वर्ष 1976 में देश के बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार के अवसरों की जानकारी उपलब्ध कराने के लिये शुरू किया गया था। यह अंग्रेजी (एम्प्लॉयमेंट न्यूज़), हिंदी (रोज़गार समाचार) और उर्दू (रोज़गार समाचार) में प्रकाशित होता है। इसमें मंत्रालयों/विभागों/कार्यालयों/संगठनों/स्वायत्त इकाइयों/ सोसायटियों/केंद्रीय, राजकीय एवं केंद्रशासित प्रदेशों के तहत आने वाले सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों; सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों/आरआरबी/यूपीएससी/एसएससी/ संवैधानिक एवं वैधानिक निकायों और केंद्र/राज्य सरकारों के विश्वविद्यालयों/कॉलेजों अथवा यूजीसी/एआईसीटीई से मान्यता प्राप्त संस्थानों में होने वाली रिक्तियों की जानकारी दी जाती है।
  • 66वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई है। बेस्ट हिंदी फिल्म का अवॉर्ड 'अंधाधुन' को दिया गया है। आयुष्मान खुराना और तब्बू स्टारर इस फिल्म का निर्देशन श्रीराम राघवन ने किया है। इसके अलावा फिल्म 'पद्मावत' को बेस्ट कोरियोग्राफी और इसी फिल्म के लिये बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवॉर्ड संजय लीला भंसाली को मिला है। बेस्ट एंटरटेनमेंट फिल्म का अवॉर्ड 'बधाई हो' को दिया गया है। बेस्‍ट एक्‍टर अवॉर्ड आयुष्‍मान खुराना (बधाई हो) और विकी कौशल (उड़ी: द सर्जिकल स्‍ट्राइक) को तथा बेस्‍ट एक्‍ट्रेस अवॉर्ड कीर्ति सुरेश (महानती) को मिला है। मोस्ट फिल्म फ्रेंडली स्टेट के लिये उत्तराखंड को अवॉर्ड दिया गया है। आपको बता दें कि वैसे तो हर साल राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों का ऐलान अप्रैल में किया जाता है, लेकिन इस साल लोकसभा चुनावों के मद्देनजर इसकी घोषणा को टाल दिया गया था। भारत सरकार के फिल्म समारोह निदेशालय द्वारा दिये जाने वाले राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों की शुरुआत वर्ष 1954 में की गई थी।
  • मणिपुर सरकार ने 9 साल की लड़की एलंगबाम वैलेंटिना को राज्य का ग्रीन एम्बेसडर नियुक्त किया है, जो पेड़ काटे जाने पर रोने लगी थी और उसके रोने का वीडियो वायरल हुआ था। पाँचवीं कक्षा में पढ़ने वाली वैलेंटिना ने चार साल पहले घर से लगी सड़क के पास नदी के किनारे दो गुलमोहर के पेड़ लगाए थे, जिनके प्रति उसे लगाव था। लेकिन नदी के किनारे की सड़क को चौड़ा करने के लिये इन पेड़ों को काट दिया गया, जिसके कारण वह रोने लगी। पेड़ों के प्रति इस लड़की के प्रेम ने कई लोगों का ध्यान खींचा, जिसमें राज्य के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह भी शामिल थे। वैलेंटिना राज्य के लोगों के लिये एक उदाहरण बन सकती है, इसलिये उन्होंने उसे ग्रीन एम्बेसडर बनाने का फैसला किया, ताकि राज्य के लोग वैलेंटिना का अनुसरण कर प्रकृति की रक्षा करें।