डेली न्यूज़ (12 Feb, 2022)



काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान

प्रिलिम्स के लिये:

काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान, कार्बन सिंक।

मेन्स के लिये:

काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के शुद्ध कार्बन उत्सर्जक बनने का कारण।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रकाशित एक शोध से पता चला है कि असम का काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान जितना कार्बन अवशोषित करता है, उससे कहीं अधिक कार्बन उत्सर्जित कर रहा है।

  • इस शोध के अनुसार, जैसे-जैसे पृथ्वी गर्म होगी काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान की कार्बन अवशोषित करने की क्षमता और कम होती जाएगी।
    • इससे पहले यह पाया गया था कि अमेज़न वर्षावन  कार्बन अवशोषित करने की तुलना में अधिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित कर रहे हैं।
  • शोधकर्ताओं ने पाया कि काज़ीरंगा द्वारा प्री-मानसून सीजन- मार्च, अप्रैल और मई के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड की सबसे अधिक मात्रा को अवशोषित किया गया है।
  • एक जंगल या जंगल में उपस्थित पेड़ प्रकाश संश्लेषण हेतु कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग करते है तथा श्वसन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं।

 काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान एक शुद्ध कार्बन उत्सर्जक के रूप में:

  • अद्वितीय मिट्टी:
    • इस क्षेत्र की मिट्टी में बैक्टीरिया की एक बड़ी आबादी पाई जाती है जो श्वसन के दौरान कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ते हैं।
  • प्रकाश संश्लेषण में कमी:
    • बादल छाए रहने के कारण मानसून के दौरान पेड़ पर्याप्त मात्रा में प्रकाश संश्लेषण नहीं कर पाते है। इसलिये वनों की कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता भी कम हो जाती है।
    • मानसून के बाद और सर्दियों के महीनों के दौरान स्थिति सामान्य रहती है, जिससे जंगल शुद्ध कार्बन उत्सर्जक बन जाता है।
  • वाष्पित जल से कम वर्षा:
    • वैज्ञानिकों ने वाष्पित जल में समस्थानिकों का विश्लेषण किया और जंगल में मौजूद जल एवं कार्बन चक्रों के बीच एक मज़बूत संबंध पाया।
    • मानसून से पूर्व के महीनों में वाष्पित जल से होने वाली वर्षा में कमी की प्रवृत्ति देखी जाती है जो उच्चतम कार्बन अवशोषण के लिये ज़िम्मेदार हैं।
      • वाष्पोत्सर्जन एक प्रक्रिया है जिसमें पौधों के रंध्रों के माध्यम से जल वाष्प की क्षति होती है।
      • पत्तियों के आंतरिक भाग में कार्बन डाइऑक्साइड के प्रवेश करने और प्रकाश संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन के बाहर निकलने के लिये रंध्रों के खुलने की प्रक्रिया (Stomatal Openings) का होना आवश्यक है।

काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से संबंधित प्रमुख बिंदु:

  • अवस्थिति: यह असम राज्य में स्थित है और 42,996 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है। 
    • यह ब्रह्मपुत्र घाटी बाढ़ के मैदान में एकमात्र सबसे बड़ा अविभाजित और प्रतिनिधि क्षेत्र है।
  • वैधानिक स्थिति:
    • इस उद्यान को वर्ष 1974 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था।
    • इसे वर्ष 2007 में टाइगर रिज़र्व घोषित किया गया। 
  • अंतर्राष्ट्रीय स्थिति:
  • जैव विविधता:
    • विश्व में सर्वाधिक एक सींग वाले गैंडे काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में ही पाए जाते हैं।
      • गैंडो की संख्या के मामले में असम के काज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के बाद पोबितोरा (Pobitora) वन्यजीव अभयारण्य का दूसरा स्थान है, जबकि पोबितोरा अभयारण्य विश्व में गैंडों की उच्चतम जनसंख्या घनत्व वाला अभयारण्य है।
    • काज़ीरंगा में संरक्षण प्रयासों का अधिकांश ध्यान 'चार बड़ी ' प्रजातियों- राइनो, हाथी, रॉयल बंगाल टाइगर और एशियाई जल भैंस पर केंद्रित है।
    • काज़ीरंगा में भारतीय उपमहाद्वीप में पाए जाने वाले प्राइमेट्स की 14 प्रजातियों में से 9 का निवास भी है।
  • नदियाँ और राजमार्ग:
    • इस उद्यान क्षेत्र से राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-37 गुज़रता है।
    • उद्यान में लगभग 250 से अधिक मौसमी जल निकाय (Water Bodies) हैं, इसके अलावा डिपहोलू नदी (Dipholu River ) इससे होकर गुज़रती है।

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स्रोत: डाउन टू अर्थ


आयकर अधिनियम में संशोधन के माध्यम से पूर्वव्यापी कराधान

प्रिलिम्स के लिये:

पूर्वव्यापी कर, बजट, उपकर, अधिभार, आयकर अधिनियम और इसमें संशोधन, वित्त अधिनियम।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, वित्तीय नीति, आईटी अधिनियम एवं इसमें संशोधन, पूर्वव्यापी कराधान।

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय बजट 2022-23 के माध्यम से ‘आयकर अधिनियम-1961’ में कुछ संशोधन प्रस्तुत किये गए हैं, जो पूर्वव्यापी रूप से प्रभावी होंगे।

‘पूर्वव्यापी कर’ का अर्थ

  • ‘पूर्वव्यापी कर’ का आशय कर के पारित होने की तारीख की पूर्व अवधि से लागू कर से है। यह अतीत में किये गए लेन-देन पर एक नया या अतिरिक्त शुल्क हो सकता है।
  • मूलतः पूर्वव्यापी कर का आशय ऐसी स्थिति में समायोजन करना है, जब अतीत एवं वर्तमान में नीतियाँ इतनी अधिक भिन्न होती हैं कि पुरानी नीति के तहत पहले भुगतान किया गया कर काफी कम होता है। पूर्वव्यापी कर मौजूदा नीति के तहत कर लगाकर उस स्थिति को ठीक कर सकता है।
  • पूर्वव्यापी कराधान किसी भी देश को कुछ उत्पादों, वस्तुओं या सेवाओं पर कर लगाने को लेकर एक नियम पारित करने की अनुमति देता है। यह किसी भी कानून के पारित होने की तारीख की पूर्व अवधि से कंपनियों से शुल्क लेता है। 
  • वे देश अपनी कराधान नीतियों में किसी भी विसंगति को ठीक करने के लिये इस प्रकार के नियमों का उपयोग करते हैं, जिन्होंने अतीत में कंपनियों को इस तरह की खामियों का फायदा उठाने की अनुमति दी थी।
  • भारत के अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, नीदरलैंड और बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया एवं इटली सहित कई देशों में पूर्वव्यापी कराधान व्यवस्था लागू है।

आयकर अधिनियम में प्रमुख संशोधन:

उपकर और अधिभार के बारे में पूर्वव्यापी परिवर्तन:

  • परिवर्तन:
    • आयकर अधिनियम में पूर्वव्यापी संशोधन करते हुए बजट में स्पष्ट किया गया है कि उपकर एवं अधिभार को व्यय के रूप में कटौती हेतु दावा करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, यह नियम वर्ष 2005-06 से पूर्वव्यापी रूप से लागू होगा। ज्ञात हो कि इससे पूर्व कंपनियों और व्यवसायों द्वारा कानूनी अस्पष्टता का सहारा लेकर अनुचित लाभ लिया जा रहा था।
    • पिछले वर्षों में न्यायालय के कुछ निर्णयों का हवाला देते हुए कर विभाग ने उपकर को व्यय के रूप में पेश करने में करदाताओं का समर्थन किया था, कर विभाग ने कहा कि इस विसंगति को ठीक करने के लिये पूर्वव्यापी संशोधन किया जा रहा है।
      • यह संशोधन 1 अप्रैल, 2005 से भूतलक्षी प्रभाव से लागू होगा और तद्नुसार निर्धारण वर्ष 2005-06 और उसके बाद के निर्धारण वर्षों के संबंध में लागू होगा।
      • यह परिवर्तन निर्धारण वर्ष 2005-06 से किया जा रहा है क्योंकि वित्त अधिनियम, 2004 द्वारा पहली बार शिक्षा उपकर लाया गया था।
  • महत्त्व:
    • अदालत के फैसलों ने आयकर और शिक्षा उपकर के बीच अंतर स्पष्ट किया तथा 'शिक्षा उपकर' के लिये एक विशिष्ट अस्वीकृति के अभाव में अदालतों ने कई मामलों में इसे करदाताओं के लिये उपयुक्त माना।
    • न्यायालय द्वारा फैसलों के प्रभाव को खत्म करने और कानून के उद्देश्य के खिलाफ उन पर विचार करने के लिये आयकर कानून में एक स्पष्ट संशोधन पेश किया गया है, जिसमें कहा गया है कि आयकर पर किसी भी अधिभार या शिक्षा उपकर को व्यवसाय के रूप में अनुमति नहीं दी जाएगी।

उपकर (Cess):

  • उपकर या सेस करदाता द्वारा अदा किये जाने वाले मूल कर (Tax) पर लगाया गया एक अतिरिक्त कर होता है।
  • उपकर मुख्यतः राज्य या केंद्र सरकार द्वारा किसी विशेष उद्देश्य के लिये फंड एकत्रित करने हेतु लागू किया जाता है। 
  • उपकर सरकार के लिये राजस्व का स्थायी स्रोत नहीं होता है, निर्धारित लक्ष्य या उद्देश्य के पूरा होने के बाद इसे बंद कर दिया जाता है । 
  • गौरतलब है कि उपकर को सरकार द्वारा प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष कर दोनों पर लागू किया जा सकता है। 

अधिभार:

  • यह किसी मौजूदा कर में जोड़ा जाता है और वस्तु या सेवा के घोषित मूल्य में शामिल नहीं होता है।
  • यह अतिरिक्त सेवाओं के लिये या बढ़ी हुई वस्तु मूल्य के निर्धारण की लागत पर लगाया जाता है।

पूर्वव्यापी रूप से किये गए अन्य संशोधन:

  • परिवर्तन:
    • सरकार द्वारा अप्रैल 2020 से पूर्वव्यापी प्रभाव से चिकित्सा उपचार और कोविड-19 की वजह से हुई मृत्यु के कारण प्राप्त राशि में छूट की अनुमति दी गई है।
      • किसी व्यक्ति द्वारा अपने परिवार के किसी सदस्य की चिकित्सा या उपचार पर किये गए किसी भी वास्तविक खर्च पर शर्तों के अधीन, जैसा कि इस संबंध में केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित किया गया है, कोविड-19 से संबंधित किसी भी बीमारी के संबंध में प्राप्त कोई भी राशि, ऐसे व्यक्ति की आय नहीं होगी। 
    • इसने मृत व्यक्ति के परिवार के किसी सदस्य को मृत व्यक्ति के नियोक्ता से (सीमा के बिना) या किसी अन्य व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति से प्राप्त राशि जो 10 लाख रुपए से अधिक न हो, पर छूट प्रदान की है, जहांँ ऐसे व्यक्ति की मृत्यु का कारण कोविड-19 से संबंधित बीमारी हो और ऐसे व्यक्ति की मृत्यु की तारीख से बारह माह के भीतर भुगतान राशि प्राप्त की गई हो।
      • व्यक्तिगत रूप से डॉक्टरों को प्राप्त उपहार तथा मुफ्त उपहार आयकर अधिनियम के तहत व्यावसायिक व्यय के रूप में नहीं माने जाएंगे।
  • महत्त्व: 
    • इसमें स्पष्ट किया गया है कि भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002 के प्रावधानों के उल्लंघन में विभिन्न लाभ प्रदान करने में किया गया कोई भी खर्च कानून के तहत अस्वीकार्य होगा।
    • यह कदम फार्मा कंपनियों को चिकित्सा पेशेवरों को मुफ्त उपहार देने से हतोत्साहित करेगा और वे कर भुगतान करते समय इन खर्चों की कटौती के रूप में दावा नहीं कर पाएंगे।

कंपनियों हेतु फंडिंग के स्रोतों से संबंधित बदलाव:

  • चुनौतियाँ:
    • सरकार ने आईटी कानून में बदलाव किया है, जिसने कर विभाग द्वारा लेनदार को धन प्राप्ति के  स्रोत के संबंध में पूछताछ करने हेतु मार्ग प्रशस्त किया है।
    • इस प्रावधान में प्राप्तकर्त्ता द्वारा ऋण लेने और उधार से संबंधित धन के स्रोत की जानकारी को केवल तभी मान्य समझा जाएगा जब प्राप्तकर्त्ता द्वारा धन के स्रोत की जानकारी दी जाएगी
  • महत्त्व:
    • यह व्यवसायों के वित्तपोषण विशेष रूप से स्टार्टअप्स पर प्रभाव डाल सकता है, यदि लेनदार एक वेंचर कैपिटल फंड्स नहीं है (वेंचर कैपिटल फंड्स सेबी के साथ एक पंजीकृत कंपनी होती है)।
      • इससे पहले यदि किसी कंपनी में फर्जी प्रविष्टियाँ होती थीं, तो करदाता केवल PAN और लेनदार के अन्य वित्तीय विवरण प्रदान करता था जो कर विभाग के लिये पर्याप्त था।
      • अब आय का सही स्रोत और इस राशि को प्रदान करने के लिये निवल मूल्य की जानकारी प्राप्तकर्त्ता को ही देनी होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


पुलिस सुधारों पर संसदीय पैनल की रिपोर्ट

प्रिलिम्स के लिये:

संसदीय स्थायी समिति, पुलिस सुधार समिति।

मेन्स के लिये:

पुलिस सुधार, पुलिस बलों से संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति द्वारा पुलिस-प्रशिक्षण, आधुनिकीकरण और सुधारों पर एक रिपोर्ट पेश की गई है। रिपोर्ट में आवश्यक सुधार और पुलिस बलों के सामने आने वाली चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।

प्रमुख बिंदु 

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • महिलाओं का कम प्रतिनिधित्व: पुलिस बल में महिलाओं के कम प्रतिनिधित्व पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए रिपोर्ट में केंद्र को सुझाव दिया गया है कि राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में महिलाओं का 33% प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने हेतु एक रोडमैप तैयार किया जाए।
    • पुलिस में महिलाओं की नियुक्ति पुरुषों के रिक्त पदों को परिवर्तित करने के स्थान पर अतिरिक्त पद सृजित करके की जा सकती है।
    • पुलिस बल में उच्च महिला प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने से पुरुष-महिला पुलिस संख्या अनुपात में सुधार करने में भी मदद मिलेगी।
    • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को महिलाओं को महत्त्वपूर्ण चुनौती वाले कार्य सौंपने चाहिये। साथ ही रिपोर्ट में प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम एक महिला पुलिस थाने की सिफारिश की गई है।
  • पुलिसकर्मियों में तनाव प्रबंधन: रिपोर्ट में योग, व्यायाम, परामर्श और उपचार के माध्यम से पुलिसकर्मियों को तनाव मुक्त करने में मदद हेतु ऑफलाइन और ऑनलाइन मॉड्यूल की सिफारिश की है। 
  • कानून प्रवर्तन और इन्वेस्टीगेशन विंग का पृथक्करण: इसने जवाबदेही सुनिश्चित करने और अपराधों की जांँच में पुलिस की स्वायत्तता बढ़ाने हेतु जांँच को कानून और व्यवस्था से अलग करने का आह्वान किया। 
    • इससे विशेषज्ञता और व्यावसायिकता को बढ़ावा मिलेगा, जांँच में तेज़ी आएगी और दोष सिद्ध करना आसान होगा।
  • वर्चुअल ट्रायल: विशेष रूप से उच्च जोखिम वाले समूहों के संदर्भ में पैनल ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से वर्चुअल ट्रायल का समर्थन किया। 
    • इससे विचाराधीन कैदियों को न्यायालय तक ले जाने के लिये पुलिस बल की कम आवश्यकता होगी और संसाधनों की भी बचत होगी।
  • पुलिस की खराब स्थिति को संबोधित करते हुए समिति ने पुलिसकर्मियों के लिये खराब आवास पर निराशा व्यक्त की और आवास के लिये धन के आवंटन की सिफारिश की है।
    • 21वीं सदी में भी भारत में विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और पंजाब जैसे संवेदनशील राज्यों में कई पुलिस स्टेशनों में टेलीफोन सुविधा या उचित वायरलेस कनेक्टिविटी नहीं है।
  • लोगों के अनुकूल पुलिस व्यवस्था: पुलिस व्यवस्था पारदर्शी, स्वतंत्र, जवाबदेह और लोगों के अनुकूल होनी चाहिये।
  • कानून का ढिलाई से कार्यान्वयन: समिति द्वारा चिंता व्यक्त की गई है कि 15 वर्षों के बाद भी केवल 17 राज्यों ने या तो मॉडल पुलिस अधिनियम, 2006 को ही अपनाया है, या मौजूदा अधिनियम में संशोधन किया है।
    • पुलिस सुधारों की प्रगति धीमी रही है।
    • यह सिफारिश की गई है कि जो राज्य आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में अग्रणी हैं या पिछड़ रहे हैं,  गृह मंत्रालय उन राज्यों के बारे में जानकारी सार्वजनिक डोमेन में डाल सकता है 
  • सामुदायिक पुलिस: सामुदायिक पुलिस को बढ़ावा दिया जाना चाहिये क्योंकि इसमें पुलिस और समुदायों के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास शामिल होता है जहाँ अपराध व अपराध से संबंधित समस्याओं को हल करने के लिये दोनों मिलकर कार्य कर सकते हैं।
  • सीमा पुलिस प्रशिक्षण: राज्य पुलिस और केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को घुसपैठ, ड्रोन के इस्तेमाल और मादक पदार्थों की तस्करी पर खुफिया जानकारी जुटाने के लिये सीमावर्ती इलाकों में रहने वाले लोगों के साथ प्रशिक्षण और संपर्क करने की सलाह देनी चाहिये।
  • एंटी-ड्रोन टेक्नोलॉजी का पूल: ड्रोन हेतु पैनल ने गृह मंत्रालय को "जल्द-से-जल्द" एंटी-ड्रोन तकनीक का एक केंद्रीय पूल बनाने और सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों तक इसकी पहुँच प्रदान करने का निर्देश दिया है। 
  • वित्त के उपयोग में कमी : समिति ने पाया कि पुलिस आधुनिकीकरण के लिये राज्यों द्वारा वित्त के उपयोग में कमी की पहचान की जानी चाहिये।
    • समिति ने सुझाव दिया कि गृह मंत्रालय को एक समिति के गठन पर विचार करना चाहिये जो खराब प्रदर्शन करने वाले राज्यों का दौरा कर योजनाबद्ध तरीके से वित्त का उपयोग करने में उनकी सहायता कर सके।

पुलिस सुधार का अर्थ: 

  • पुलिस सुधारों का उद्देश्य पुलिस संगठनों के मूल्यों, संस्कृति, नीतियों और प्रथाओं को बदलना है।
  • यह पुलिस को लोकतांत्रिक मूल्यों, मानवाधिकारों और कानून के शासन के सम्मान के साथ कर्तव्यों का पालन करने की परिकल्पना करता है।
  • इसका उद्देश्य पुलिस सुरक्षा क्षेत्र के अन्य हिस्सों, जैसे कि अदालतों और संबंधित विभागों, कार्यकारी, संसदीय या स्वतंत्र अधिकारियों के साथ प्रबंधन या निरीक्षण ज़िम्मेदारियों में सुधार करना भी है।
  • पुलिस व्यवस्था भारतीय संविधान की अनुसूची 7 की राज्य सूची के अंतर्गत आती है।

पुलिस सुधार पर समितियाँ/आयोग

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पुलिस बलों से संबंधित मुद्दे:

  • औपनिवेशिक विरासत: देश में पुलिस प्रशासन की व्यवस्था और भविष्य में किसी भी विद्रोह की स्थिति को रोकने के लिये वर्ष 1857 के विद्रोह के पश्चात् अंग्रेज़ों द्वारा वर्ष 1861 का पुलिस अधिनियम लागू किया गया था।
  • राजनीतिक अधिकारियों के प्रति जवाबदेही बनाम परिचालन स्वतंत्रता: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (2007) ने उल्लेख किया है कि राजनीतिक कार्यपालिका द्वारा अतीत में राजनीतिक नियंत्रण का दुरुपयोग पुलिसकर्मियों को अनुचित रूप से प्रभावित करने और व्यक्तिगत या राजनीतिक हितों की सेवा करने के लिये किया गया है।
  • मनोवैज्ञानिक दबाव: भारतीय पुलिस बल में प्रायः निचली रैंक के पुलिसकर्मियों को अक्सर उनके वरिष्ठों द्वारा मौखिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है या वे अमानवीय परिस्थितियों में काम करते हैं।
  • जनधारणा: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग के मुताबिक, वर्तमान में पुलिस-जनसंपर्क के प्रति एक असंतोषजनक स्थिति है, क्योंकि लोग पुलिस को भ्रष्ट, अक्षम, राजनीतिक रूप से पक्षपातपूर्ण और अनुत्तरदायी मानते हैं।
  • अतिभारित बल: वर्ष 2016 में स्वीकृत पुलिस बल अनुपात प्रति लाख व्यक्तियों पर 181 पुलिसकर्मी था, जबकि वास्तविक संख्या 137 थी।
    • संयुक्त राष्ट्र द्वारा प्रति लाख व्यक्तियों पर 222 पुलिस के अनुशंसित मानक की तुलना में यह बहुत कम है।
  • कांस्टेबुलरी से संबंधित मुद्दे: राज्य पुलिस बलों में कांस्टेबुलरी का गठन 86% है और इसकी व्यापक ज़िम्मेदारियाँ हैं।
  • अवसंरचनात्मक मुद्दे: आधुनिक पुलिस व्यवस्था के लिये मज़बूत संचार सहायता, अत्याधुनिक या आधुनिक हथियारों और उच्च स्तर की गतिशीलता आवश्यक  है।
    • हालाँकि वर्ष 2015-16 की CAG ऑडिट रिपोर्ट में राज्य पुलिस बलों में हथियारों की कमी पाई गई है। 
    • साथ ही ‘पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो’ ने भी राज्य बलों के पास आवश्यक वाहनों के स्टॉक में 30.5% की कमी का उल्लेख किया है।
  • सुझाव:
    • पुलिस बलों का आधुनिकीकरण: पुलिस बलों के आधुनिकीकरण (MPF) की योजना 1969-70 में शुरू की गई थी और पिछले कुछ वर्षों में इसमें कई संशोधन हुए हैं।
      • हालाँकि सरकार द्वारा स्वीकृत वित्त का पूरी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है।
      • MPF योजना की परिकल्पना में शामिल हैं:
        • आधुनिक हथियारों की खरीद
        • पुलिस बलों की गतिशीलता
        • लॉजिस्टिक समर्थन, पुलिस वायरलेस का उन्नयन आदि
        • एक राष्ट्रीय उपग्रह नेटवर्क
    • राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता: सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक प्रकाश सिंह मामले (2006) में सात निर्देश दिये जहाँ पुलिस सुधारों के मामले में अभी भी काफी काम करने की ज़रूरत है।
      • हालाँकि राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण इन निर्देशों को कई राज्यों में अक्षरश: लागू नहीं किया गया।

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  • आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधार: पुलिस सुधारों के साथ-साथ आपराधिक न्याय प्रणाली में भी सुधार की आवश्यकता है। इस संदर्भ में मेनन और मलीमथ समितियों (Menon and Malimath Committees) की सिफारिशों को लागू किया जा सकता है। कुछ प्रमुख सिफारिशें इस प्रकार हैं:
    • दोषियों के दबाव के कारण मुकर जाने वाले पीड़ितों को मुआवज़ा देने के लिये एक कोष का निर्माण करना।
    • देश की सुरक्षा को खतरे में डालने वाले अपराधियों से निपटने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर अलग प्राधिकरण की स्थापना।
    • संपूर्ण आपराधिक प्रक्रिया प्रणाली में पूर्ण सुधार।

स्रोत : द हिंदू


न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये कॉलेजियम प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली, भारत के मुख्य न्यायाधीश।

मेन्स के लिये:

कॉलेजियम प्रणाली का विकास और इसकी आलोचना।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति मुनीश्वर नाथ भंडारी को मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की सिफारिश की है।

कॉलेजियम प्रणाली और इसका विकास:

  • यह न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण की प्रणाली है, जो संसद के किसी अधिनियम या संविधान के प्रावधान द्वारा स्थापित न होकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
  • कॉलेजियम प्रणाली का विकास:
    • प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): 
      • इसने यह निर्धारित किया कि न्यायिक नियुक्तियों और तबादलों पर भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) के सुझाव की "प्रधानता" को "ठोस कारणों" से अस्वीकार किया जा सकता है।
      • इस निर्णय ने अगले 12 वर्षों के लिये न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका पर कार्यपालिका की प्रधानता स्थापित कर दी है।
    • दूसरा न्यायाधीश मामला (1993):
      • सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट करते हुए कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत की कि "परामर्श" का अर्थ वास्तव में "सहमति" है। 
      • इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह CJI की व्यक्तिगत राय नहीं होगी, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों के परामर्श से ली गई एक संस्थागत राय होगी।
    • तीसरा न्यायाधीश मामला (1998):
      • राष्ट्रपति द्वारा जारी एक प्रेज़िडेंशियल रेफरेंस (Presidential Reference) के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पाँच सदस्यीय निकाय के रूप में कॉलेजियम का विस्तार किया, जिसमें CJI और उनके चार वरिष्ठतम सहयोगी शामिल होंगे।

कॉलेजियम प्रणाली का प्रमुख:

  • सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम की अध्यक्षता CJI द्वारा की जाती है और इसमें सर्वोच्च न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • एक उच्च न्यायालय के कॉलेजियम का नेतृत्व उसके मुख्य न्यायाधीश और उस न्यायालय के चार अन्य वरिष्ठतम न्यायाधीश करते हैं।
    • उच्च न्यायालय के कॉलेजियम द्वारा नियुक्ति के लिये अनुशंसित नाम CJI और सर्वोच्च न्यायालय के कॉलेजियम के अनुमोदन के बाद ही सरकार तक पहुँचते हैं।
  • उच्च न्यायपालिका के न्यायाधीशों की नियुक्ति कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से ही की जाती है और इस प्रक्रिया में सरकार की भूमिका कॉलेजियम द्वारा नाम तय किये जाने के बाद की प्रक्रिया में ही होती है।

विभिन्न न्यायिक नियुक्तियों के लिये निर्धारित प्रक्रिया:

  • भारत का मुख्य न्यायाधीश (CJI):
    • CJI और सर्वोच्च न्यायालय के अन्य जजों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
    • अगले CJI के संदर्भ में निवर्तमान CJI अपने उत्तराधिकारी के नाम की सिफारिश करता है।
    • हालाँकि वर्ष 1970 के दशक के अतिलंघन विवाद के बाद से व्यावहारिक रूप से इसके लिये वरिष्ठता के आधार का पालन किया जाता है। 
  • सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश ::
    • सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के लिये नामों के चयन का प्रस्ताव CJI द्वारा शुरू किया जाता है।
    • CJI कॉलेजियम के बाकी सदस्यों के साथ-साथ उस उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश से भी परामर्श करता है, जिससे न्यायाधीश पद के लिये अनुशंसित व्यक्ति संबंधित होता है।   
    • निर्धारित प्रक्रिया के तहत परामर्शदाताओं को लिखित रूप में अपनी राय दर्ज करानी होती है और इसे फाइल का हिस्सा बनाया जाना चाहिये।
    • इसके पश्चात् कॉलेजियम केंद्रीय कानून मंत्री को अपनी सिफारिश भेजता है, जिसके माध्यम से  इसे राष्ट्रपति को सलाह देने हेतु प्रधानमंत्री को भेजा जाता है।
  • उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश के लिये:
    • उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति इस आधार पर की जाती है कि मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त होने वाला व्यक्ति संबंधित राज्य से न होकर किसी अन्य राज्य से होगा।
    • यद्यपि उनके चयन का निर्णय कॉलेजियम द्वारा लिया जाता है।  
    • उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की सिफारिश CJI और दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों वाले एक कॉलेजियम द्वारा की जाती है। 
    • हालाँकि इसके लिये प्रस्ताव को संबंधित उच्च न्यायालय के निवर्तमान मुख्य न्यायाधीश द्वारा अपने दो वरिष्ठतम सहयोगियों से परामर्श के बाद पेश किया जाता है।
    • यह सिफारिश मुख्यमंत्री को भेजी जाती है, जो इस प्रस्ताव को केंद्रीय कानून मंत्री को भेजने के लिये राज्यपाल को सलाह देता है।
  • कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना:
    • स्पष्टता एवं पारदर्शिता की कमी।
    • भाई-भतीजावाद जैसी विसंगतियों की संभावना।
    • सार्वजनिक विवादों में उलझना।
    • कई प्रतिभाशाली कनिष्ठ न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं की अनदेखी।
  • नियुक्ति प्रणाली में सुधार हेतु किये गए प्रयास:
    • इसे 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग' (99वें संशोधन अधिनियम, 2014 के माध्यम से) द्वारा प्रतिस्थापित करने के प्रयास में वर्ष 2015 में न्यायालय ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिये खतरा है।

आगे की राह 

  • कार्यपालिका और न्यायपालिका को शामिल करते हुए रिक्तियों को भरना एक सतत् और सहयोगी प्रक्रिया है और इसके लिये कोई समय-सीमा नहीं हो सकती है। हालांँकि यह एक स्थायी, स्वतंत्र निकाय के बारे में सोचने का समय है जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने हेतु पर्याप्त सुरक्षा उपायों के साथ प्रक्रिया को संस्थागत बनाने के लिये न्यायिक प्रधानता की गारंटी देता है लेकिन न्यायिक विशिष्टता की नहीं।
  • इसे स्वतंत्रता सुनिश्चित करनी चाहिये, विविधता को प्रतिबिंबित करना चाहिये, पेशेवर क्षमता और अखंडता का प्रदर्शन करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस 


प्रधानमंत्री पोषण योजना

प्रिलिम्स के लिये:

पीएम-पोषण योजना की विशेषताएँ, एनीमिया मुक्त भारत अभियान, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA), 2013, प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), पोषण अभियान।

मेन्स के लिये:

बाल पोषण से संबंधित मुद्दे और इस संदर्भ में उठाए गए कदम, सरकार द्वारा बाल पोषण में सुधार हेतु शुरू की गई पहल।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों/केंद्रशासित प्रदेशों के प्रशासनों से प्रधानमंत्री पोषण योजना के तहत बाजरा को शामिल करने की संभावना तलाशने का अनुरोध किया है। अधिमानतः उन ज़िलों में जहाँ बाजरा को सांस्कृतिक तौर पर भोजन के रूप में स्वीकृत किया गया है।

  • नीति आयोग ने भी चावल और गेहूँ से हटकर मध्याह्न भोजन कार्यक्रम (अब पीएम पोषण योजना) में बाजरा को शामिल करने की संभावनाएँ तलाशने को कहा है।

बाजरा के फायदे:

  • बाजरा या पोषक अनाज जिसमें ज्वार (Jowar), बाजरा (Bajra) और रागी (Ragi) शामिल हैं, खनिजों और बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन (B-complex Vitamins) के साथ-साथ प्रोटीन तथा एंटीऑक्सिडेंट (Antioxidants) से भरपूर होते हैं, जो उन्हें बच्चों के पोषण संबंधी परिणामों में सुधार के लिये एक आदर्श विकल्प बनाते हैं।
  • बाजरे से जुड़े बहुआयामी लाभ पोषण सुरक्षा, खाद्य प्रणाली सुरक्षा और किसानों के कल्याण से संबंधित मुद्दों के समाधान में मदद कर सकते हैं।
  • इसके अलावा बाजरे की कई अनूठी विशेषताएँ उसे एक उपयुक्त फसल बनाती हैं जो भारत की विविध कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल है।
  • भारत ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष के रूप में घोषित करने के लिये एक प्रस्ताव पेश किया जिसे संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया है।

प्रधानमंत्री पोषण योजना:

  • सितंबर 2021 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1.31 ट्रिलियन रुपए के वित्तीय परिव्यय के साथ सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में भोजन उपलब्ध कराने के लिये प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण या पीएम-पोषण को मंज़ूरी दी।
  • इस योजना ने स्कूलों में मध्याह्न भोजन के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम या मध्याह्न भोजन योजना (Mid-day Meal Scheme) की जगह ले ली।
  • इसे पाँच वर्ष (2021-22 से 2025-26) की शुरुआती अवधि के लिये लॉन्च किया गया है।

प्रधानमंत्री पोषण योजना की विशेषताएँ:

  • कवरेज:
    • प्राथमिक (1-5) और उच्च प्राथमिक (6-8) स्कूली बच्चे वर्तमान में प्रत्येक कार्य दिवस में 100 ग्राम और 150 ग्राम खाद्यान्न प्राप्त करते हैं, ताकि उनकी न्यूनतम 700 कैलोरी की पूर्ति सुनिश्चित की जा सके।
    • इसमें प्री-प्राइमरी कक्षाओं के बालवाटिका (3-5 वर्ष आयु वर्ग के बच्चे) के छात्र भी शामिल हैं।
  • पोषाहार उद्यान:
    • स्थानीय आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के लिये "स्कूल पोषण उद्यान" के माध्यम से स्थानीय रूप से उगाए जाने वाले पोषक खाद्य पदार्थों के उपयोग को प्रोत्साहित किया जाएगा तथा योजना के कार्यान्वयन में किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और महिला स्वयं सहायता समूहों की भागीदारी को भी प्रोत्साहित किया जाएगा।
  • पूरक पोषण:
    • नई योजना में आकांक्षी ज़िलों और एनीमिया के उच्च प्रसार वाले बच्चों के लिये पूरक पोषण का भी प्रावधान है।
      • यह गेहूँ, चावल, दाल और सब्जियों के लिये धन उपलब्ध कराने हेतु केंद्र सरकार के स्तर पर मौजूद सभी प्रतिबंध और चुनौतियों को समाप्त करता है।
      • वर्तमान में यदि कोई राज्य मेनू में दूध या अंडे जैसे किसी भी घटक को जोड़ने का निर्णय लेता है, तो केंद्र अतिरिक्त लागत वहन नहीं करता है लेकिनअब वह प्रतिबंध हटा लिया गया है।
  • तिथि भोजन अवधारणा:
    • तिथि भोजन एक सामुदायिक भागीदारी कार्यक्रम है जिसमें लोग विशेष अवसरों/त्योहारों पर बच्चों को विशेष भोजन प्रदान करते हैं।
  • प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT):
    • केंद्र ने राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में योजना के तहत काम करने वाले रसोइयों और सहायकों को मुआवज़ा प्रदान करने हेतु प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (DBT) प्रणाली पर स्विच करने का निर्देश दिया है।
    • यह सुनिश्चित करेगा कि ज़िला प्रशासन और अन्य अधिकारियों के स्तर पर कोई भ्रष्टाचार न हो।
  • पोषण विशेषज्ञ:
    • प्रत्येक स्कूल में एक पोषण विशेषज्ञ नियुक्त किया जाना है, जिसकी ज़िम्मेदारी यह सुनिश्चित करना है कि स्कूल में ‘बॉडी मास इंडेक्स’ (BMI), वज़न और हीमोग्लोबिन के स्तर जैसे स्वास्थ्य पहलुओं पर ध्यान दिया जाए।
  • योजना का सामाजिक ऑडिट:
    • योजना के क्रियान्वयन का अध्ययन करने हेतु प्रत्येक राज्य के हर स्कूल के लिये योजना का सोशल ऑडिट कराना भी अनिवार्य किया गया है, जो अब तक सभी राज्यों द्वारा नहीं किया जा रहा था।

बाज़रे को शामिल करने की आवश्यकता:

  • बच्चों में कुपोषण और एनीमिया:
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS)-5 के अनुसार, भारत में पिछले कुछ वर्षों में मामूली सुधार के बावजूद स्टंटिंग का उच्च स्तर बना हुआ है।
    • वर्ष 2019-21 में पाँच वर्ष से कम उम्र के 35.5% बच्चे स्टंटिंग से प्रभावित थे और 32.1% बच्चे कम वज़न की समस्या से पीड़ित थे।
  • वैश्विक पोषण रिपोर्ट-2021:
    • वैश्विक पोषण रिपोर्ट (GNR, 2021) के अनुसार, भारत ने एनीमिया और वेस्टिंग पर कोई प्रगति नहीं की है।
      • 5 साल से कम उम्र के 17% से अधिक भारतीय बच्चे चाइल्ड वेस्टिंग से प्रभावित हैं।
      • NFHS 2019-21 के आँकड़ों से पता चलता है कि एनीमिया की सबसे अधिक वृद्धि 6-59 महीने की उम्र के बच्चों में हुई, यह NFHS-4 (2015-16) में 58.6% के स्तर पर था और NFHS-5 में 67.1% पर पहुँच गया।
    • मानव पूंजी सूचकांक:
      • मानव पूंजी सूचकांक में भारत 174 देशों में 116वें स्थान पर है।
        • मानव पूंजी में ज्ञान, कौशल और स्वास्थ्य शामिल होता है, ताकि लोग समाज के उत्पादक सदस्यों के रूप में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकें।
  • संबंधित पहलें:

आगे की राह

  • बच्चों के पोषण से संबंधित इस डेटा को देखते हुए गर्भावस्था से लेकर पाँच वर्ष की आयु तक स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रमों के अभिसरण पर ज़ोर देना अनिवार्य है।
  • एक सुनियोजित एवं प्रभावी सामाजिक और व्यवहार परिवर्तन संचार (SBCC) रणनीति का निर्माण करना आवश्यक है, क्योंकि लोगों का व्यवहार, समाज तथा पारिवारिक परंपराओं पर निर्भर करता है।
  • कुपोषण को दूर करने के लिये कार्यक्रमों की प्रभावी निगरानी एवं क्रियान्वयन और राष्ट्रीय विकास एजेंडे में बाल कुपोषण में कमी को प्राथमिकता देना समय की आवश्यकता है।

स्रोत: पी.आई.बी.


वन ओशन समिट

प्रिलिम्स के लिये:

वन ओशन समिट, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, विश्व महासागर दिवस, महासागरों का दशक, जलवायु परिवर्तन।

मेन्स के लिये:

संरक्षण, पर्यावरण प्रदूषण और गिरावट, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, महासागरों का महत्त्व, महासागरों के संरक्षण हेतु उठाए गए कदम।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने वन ओशन समिट के उच्च-स्तरीय सत्र को संबोधित किया।

  • वन ओशन समिट का आयोजन फ्राँस द्वारा संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक के सहयोग से फ्राँस के ब्रेस्ट में किया गया।
  • इस शिखर सम्मेलन के उच्च स्तरीय सत्र को जर्मनी, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण कोरिया, जापान, कनाडा सहित कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों व शासनाध्यक्षों ने संबोधित किया। 

महासागरों का महत्त्व:

  • महासागर हमारे ग्रह की सतह के 70% से अधिक भाग पर मौजूद हैं फिर भी अक्सर यह देखा जाता है कि प्रमुख यूरोपीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों के दौरान इनके बारे में कोई चर्चा नहीं की जाती है।
  • महासागर प्रमुख पर्यावरणीय संतुलनों (विशेष रूप से जलवायु) के नियामक, संसाधनों के प्रदाता, व्यापार को सहज बनाने वाले महत्त्वपूर्ण घटक और देशों तथा मानव समुदायों के बीच की एक आवश्यक कड़ी हैं।
  • हालाँकि विभिन्न प्रकार के दबावों जैसे- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव, प्रदूषण या समुद्री संसाधनों के अत्यधिक दोहन के चलते इनके सामने भी गंभीर खतरे की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
  • अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को संगठित करने और समुद्र पर ऐसे दबावों को कम करने के लिये ठोस कार्रवाई के प्रयास में फ्राँस ने महासागरों को समर्पित ‘वन प्लेनेट समिट’ आयोजित करने का निर्णय लिया है।

Atlantic-Ocean

‘वन ओशन समिट’ का लक्ष्य:

  • वन ओशन समिट का लक्ष्य सामुद्रिक मुद्दों पर अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की महत्त्वाकांक्षा के सामूहिक स्तर को ऊपर उठाना है।
    • सम्मेलन के दौरान अवैध रूप से मछली पकड़ने, शिपिंग को डिकार्बोनाइज़ करने और प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने की दिशा में प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।
    • उच्च समुद्रों के शासन में सुधार करने और अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान के समन्वय के प्रयासों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया।

शिखर सम्मेलन में भारत का रुख:

  • भारत हमेशा से एक समुद्री सभ्यता रही है। भारत के प्राचीन ग्रंथ और साहित्य समुद्री जीवन समेत महासागरों द्वारा प्रदत्त उपहारों का वर्णन करते हैं
  • भारत की सुरक्षा और समृद्धि महासागरों से जुड़ी हुई है। ''भारत-प्रशांत महासागर पहल'' (Indo-Pacific Oceans Initiative) में समुद्री संसाधनों को एक प्रमुख स्तंभ के रूप में शामिल किया गया है।
  • सम्मेलन के दौरान भारत ने फ्राँस की पहल ‘राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे जैव विविधता पर उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन' (High Ambition Coalition on Biodiversity Beyond National Jurisdiction) का समर्थन किया।
  • भारत एकल उपयोग प्लास्टिक (सिंगल यूज़ प्लास्टिक) को समाप्त करने के लिये प्रतिबद्ध है।
    • इसी प्रतिबद्धता को पूरा करते हुए भारत के तीन लाख युवाओं ने लगभग 13 टन प्लास्टिक कचरा एकत्र किया है।
  • भारत ने एकल उपयोग प्लास्टिक पर एक वैश्विक पहल शुरू करने के लिये फ्राँस का समर्थन किया तथा इस पहल से जुड़ने के संकेत दिये।
    • हाल ही में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2021 को अधिसूचित किया है। यह नियम सिंगल यूज़ प्लास्टिक से निर्मित उन विशिष्ट वस्तुओं को प्रतिबंधित करता है जिनकी वर्ष 2022 तक "उपयोगिता कम और अपशिष्ट क्षमता बहुत अधिक" है।
    • भारत सरकार द्वारा देश की नौसेना को इस साल समुद्र से प्लास्टिक कचरे को साफ करने के लिये 100 जहाज़-दिवस का योगदान करने का भी निर्देश दिया है।

महासागरों की सुरक्षा हेतु अन्य वैश्विक पहल:

  • संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन: वर्ष 2017 में संयुक्त राष्ट्र के महासागर सम्मेलन ने महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों के संरक्षण व सतत् उपयोग के लिये कार्रवाई करने की मांग की।
    • अगला सम्मेलन वर्ष 2022 में आयोजित किया जाएगा।
  • सतत् विकास के लिये महासागर विज्ञान का एक दशक: समुद्र के स्तर में गिरावट के चक्र को उलटने के प्रयासों का समर्थन करने और दुनिया भर में महासागर हितधारकों को एक सामान्य ढाँचा प्रदान करने  हेतु सतत् विकास (2021-2030) के महासागर विज्ञान के एक दशक की घोषणा की गई है जो यह सुनिश्चित करेगा कि महासागर विज्ञान महासागर के सतत् विकास के लिये बेहतर परिस्थितियों को बनाने में देशों का पूरी तरह से समर्थन कर सकता है।
  • विश्व महासागर दिवस: प्रतिवर्ष 8 जून को विश्व महासागर दिवस मनाया जाता है जो हमारे रोज़मर्रा के जीवन में महासागरों की भूमिका के प्रति जागरूकता फैलाने और महासागर की रक्षा करने तथा समुद्री संसाधनों का सतत् उपयोग करने हेतु प्रेरक कार्रवाई के लिये संयुक्त राष्ट्र दिवस है।
  • भारत-नॉर्वे महासागर वार्ता: वर्ष 2019 में भारत और नॉर्वे की सरकारों ने एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर भारत-नॉर्वे महासागर वार्ता की स्थापना की और महासागरों पर अधिक निकटता से कार्य करने पर सहमति जताई।
  • इंडो-पैसिफिक ओशन इनिशिएटिव (IPOI): यह देशों के लिये एक खुली गैर-संधि आधारित पहल है जो इस क्षेत्र में आम चुनौतियों के सहकारी और सहयोगी समाधान हेतु मिलकर कार्य करती है।
    • IPOI सात स्तंभों- समुद्री सुरक्षा, समुद्री पारिस्थितिकी, समुद्री संसाधन, क्षमता निर्माण और संसाधन साझा करना, आपदा ज़ोखिम न्यूनीकरण एवं प्रबंधन विज्ञान, प्रौद्योगिकी तथा शैक्षणिक सहयोग व व्यापार संपर्क एवं समुद्री परिवहन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये मौजूदा क्षेत्रीय वास्तुकला और तंत्र पर आधारित है।
  • ग्लोलिटर पार्टनरशिप प्रोजेक्ट: इसे अंतर्राष्ट्रीय समुद्री संगठन (IMO) और यूएन (FAO) के खाद्य और कृषि संगठन ने शुरू किया है तथा यह नॉर्वे सरकार द्वारा प्रारंभिक रूप से वित्तपोषित है। इसका उद्देश्य शिपिंग और मत्स्य पालन से समुद्री प्लास्टिक कूड़े के उत्पादन को रोकना और कम करना है।

स्रोत: पी.आई.बी.


राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये: 

राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली, व्यापार सुगमता

मेन्स के लिये: 

व्यापार सुगमता में राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में जम्मू-कश्मीर राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली (National Single Window System- NSWS) में शामिल होने वाला पहला केंद्रशासित प्रदेश बन गया। 

  • केंद्रशासित प्रदेश में व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business- EoDB) की दिशा में यह एक बड़ा कदम है।
  • NSWS इंडिया इंडस्ट्रियल लैंड बैंक (IILB) से जुड़ा हुआ है, जो जम्मू-कश्मीर के 45 औद्योगिक पार्कों की मेज़बानी करता है। इससे निवेशकों को जम्मू-कश्मीर में उपलब्ध भू-खंड खोजने में मदद मिलेगी।

क्या है राष्ट्रीय एकल खिड़की प्रणाली?

  • इस प्लेटफॉर्म को सितंबर 2021 में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा शुरू किया गया था।
  • यह एक डिजिटल प्लेटफॉर्म है जो निवेशकों को उनकी व्यावसायिक आवश्यकताओं के अनुसार अनुमोदन के लिये आवेदन करने हेतु गाइड के रूप में कार्य करता है। 
  • यह सूचना एकत्र करने और विभिन्न हितधारकों से मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये निवेशकों की अलग-अलग प्लेटफॉर्मों/कार्यालयों का दौरा करने की समस्या को दूर कर व्यवसाय पंजीकरण की प्रक्रिया को आसान बनाता है।

महत्त्व:

  • यह राज्य और केंद्र सरकार से अनुमोदन प्राप्त करने हेतु "वन स्टॉप शॉप" के रूप में काम करेगा तथा पारिस्थितिकी तंत्र को पारदर्शिता, जवाबदेही और अनुक्रियाशीलता प्रदान करेगा।
  • यह व्यवसायों को उन सभी अनुमोदनों के विवरण के साथ-साथ एक सामान्य पंजीकरण फॉर्म, दस्तावेज़ भंडार और ई-संचार मॉड्यूल के विवरण के बारे में सूचित करने के लिये अनुमोदन के बारे में जानें (Know Your Approvals- KYA) जैसी सेवा भी प्रदान करेगा।
  • यह अन्य योजनाओं जैसे- मेक इन इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन’ योजना (PLI) आदि को मज़बूती प्रदान करेगा।

व्यापार सुगमता (EoDB) में सुधार हेतु अन्य पहलें:

  • केंद्रीय बजट भाषण 2020 में निवेश निकासी प्रकोष्ठ (Investment Clearance Cell-ICC) की घोषणा की गई थी।
    • ICC पूर्व-निवेश परामर्श सहित निवेशकों को "अंत तक" सुविधा और समर्थन, भूमि बैंकों से संबंधित जानकारी और केंद्र एवं राज्य स्तर पर मंज़ूरी की सुविधा प्रदान करेगा। सेल को एक ऑनलाइन डिजिटल पोर्टल के माध्यम से संचालित करने का प्रस्ताव दिया गया है।
  • कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत दिवाला और दिवालियापन संहिता (IBC) तथा गैर-अपराधीकरण में संशोधन।
  • मध्यम आकार की कंपनियों के लिये निगम कर को 30% से घटाकर 25% किया गया है।
  • कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (MCA) ने MCA21 परियोजना शुरू की है, जो कॉर्पोरेट संस्थाओं, पेशेवरों और आम जनता के लिये सेवाओं तक आसान व सुरक्षित पहुँच को सक्षम बनाता है।
  • केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (CBIC) ने कागज़ रहित प्रसंस्करण, सहायक दस्तावेज़ो को अपलोड करने और सीमा पार व्यापार की सुविधा हेतु ई-संचित (ई-स्टोरेज एवं अप्रत्यक्ष कर दस्तावेज़ो का कम्प्यूटरीकृत संचालन) सुविधा शुरू की है।
  • करदाताओं हेतु ई-मूल्यांकन योजना

स्रोत: पी.आई.बी.