भारत और इज़रायल ने द्विपक्षीय निवेश समझौते (BIA) पर हस्ताक्षर किये
चर्चा में क्यों?
भारत और इज़रायल ने एक नई द्विपक्षीय निवेश संधि पर हस्ताक्षर किये हैं, जिससे इज़रायल भारत के नए निवेश संधि मॉडल को अपनाने वाला पहला OECD देश बन गया है।
- यह भारत और इज़राइल के बीच 1996 में हस्ताक्षरित पुराने द्विपक्षीय निवेश समझौते (BIT) का स्थान लेता है, जिसे वर्ष 2017 में समाप्त कर दिया गया था।
द्विपक्षीय निवेश समझौता (BIA) क्या है?
- परिचय: द्विपक्षीय निवेश समझौता (BIA) दो देशों के बीच एक-दूसरे के क्षेत्रों में विदेशी निजी निवेश को बढ़ावा देने एवं उसकी सुरक्षा करने के लिये कानूनी समझौते हैं।
- BIT निवेशकों को अधिकार प्रदान करते हैं, जिससे उन्हें निवेशक-राज्य विवाद निपटान (ISDS) तंत्र के माध्यम से, या गृह राज्यों को राज्य-दर-राज्य विवाद निपटान के माध्यम से उपाय प्राप्त करने की अनुमति मिलती है।
- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के अनुच्छेद 38(1)(a) के तहत अंतर्राष्ट्रीय दायित्वों के प्राथमिक स्रोत के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- भारत का BIT विकास: पुराने मॉडल BIT (1993) को नए मॉडल BIT (2015) द्वारा प्रतिस्थापित किया गया और हाल ही में उज़्बेकिस्तान (2024), UAE (2024) और किर्गिज़स्तान (2025) के साथ BIT पर हस्ताक्षर किये गए।
- भारत-इज़राइल BIT की मुख्य विशेषताएँ:
- निवेश में वृद्धि: यह समझौता वर्तमान में लगभग 800 मिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के द्विपक्षीय निवेश को और बढ़ाने की संभावना रखता है।
- संतुलित निवेशक संरक्षण: यह समझौता निवेशकों को सरकार द्वारा उनकी संपत्तियों के अधिग्रहण (Expropriation) या राष्ट्रीयकरण (Nationalization) के जोखिम से सुरक्षा प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करता है कि यदि ऐसी कोई कार्रवाई की जाती है, तो निवेशकों को न्यायसंगत और शीघ्र मुआवजा दिया जाए।
- विवाद समाधान: इसमें विवादों के निपटारे के लिये मध्यस्थता आधारित प्रणाली (Arbitration-Based Mechanism) शामिल है, जो एक स्थिर और विश्वसनीय निवेश माहौल को बढ़ावा देती है।
- पारदर्शिता और पूर्वानुमान: सरकारों को स्पष्ट और पूर्वानुमान योग्य निवेश नीतियाँ व विनियम बनाए रखने की आवश्यकता होती है, जिससे अनिश्चितता में कमी आती है और निवेशकों का विश्वास मज़बूत होता है।
मॉडल BIT 2015
- परिभाषा और संरक्षण: यह समझौता निवेश को उस उद्यम के रूप में परिभाषित करता है जिसे निवेशक द्वारा मेज़बान देश के घरेलू कानूनों के अनुसार ईमानदारी से स्थापित, संगठित और संचालित किया गया हो।
- प्रत्येक पक्ष को निवेश और निवेशकों को पूर्ण संरक्षण तथा सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता है।
- यह सुनिश्चित करता है कि विदेशी निवेशकों को घरेलू कंपनियों के समान व्यवहार दिया जाए।
- यह मेज़बान देश की विदेशी निवेश पर नियंत्रण रखने की क्षमता को सीमित करता है।
- अपवर्जन खंड (Exclusions Clause): यह सरकारी खरीद, कराधान, सब्सिडी, अनिवार्य लाइसेंस और राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे क्षेत्रों को द्विपक्षीय निवेश समझौते (BIT) की बाध्यताओं से बाहर रखता है।
- ISDS प्रणाली: इसके तहत विदेशी निवेशकों को अंतर्राष्ट्रीय निवेश विवाद समाधान (ISDS) प्रक्रिया अपनाने से पहले कम-से-कम 5 वर्षों तक स्थानीय उपायों (Local Remedies) को पूरी तरह उपयोग करना अनिवार्य है।
समय के साथ भारत और इज़रायल के बीच द्विपक्षीय संबंध कैसे विकसित हुए हैं?
- राजनयिक संबंध: यद्यपि भारत ने वर्ष 1950 में इज़रायल को आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी थी, लेकिन दोनों देशों ने 29 जनवरी, 1992 को ही पूर्ण राजनयिक संबंध स्थापित किये।
- आर्थिक संबंध: भारत और इज़रायल के बीच द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2023-24 में 6.53 बिलियन अमेरिकी डॉलर (रक्षा को छोड़कर) तक पहुँच गया, जिसमें भारत व्यापार अधिशेष बनाए रखेगा।
- नवाचार और प्रौद्योगिकी: भारत-इज़राइल औद्योगिक अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार निधि (I4F) (2023-2027) जैसी पहलों का उद्देश्य संयुक्त अनुसंधान तथा तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देना है।
- क्षेत्रीय सहयोग: भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका को शामिल करते हुए I2U2 साझेदारी ने क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत करने के लिये वर्ष 2022 में अपना पहला शिखर सम्मेलन आयोजित किया।
- रक्षा सहयोग: भारत इज़रायल से हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देशों में से एक है, जो इज़रायल की वार्षिक हथियार निर्यात का लगभग 40% का योगदान देता है।
- दोनों देशों ने बराक-8 मिसाइल प्रणाली का संयुक्त विकास किया है, और भारत नियमित रूप से इज़रायल के हाइफा बंदरगाह पर रुकता है।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रम: सहयोग सांस्कृतिक आदान-प्रदान कार्यक्रमों, स्वास्थ्य और चिकित्सा सहयोग तथा कृषि एवं जल संसाधन प्रबंधन पर समझौता ज्ञापनों तक विस्तारित है।
भारत के BIT ढाँचे के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं, तथा उनके समाधान के लिये उपाय सुझाइये?
चुनौतियाँ |
सुझाए गए उपाय |
"निवेश" और प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय कानून (Customary International Law - CIL) जैसे शब्दों में अस्पष्टता के कारण विवाद उत्पन्न होते हैं। |
"निवेश" और "प्रचलित अंतर्राष्ट्रीय कानून (CIL)" जैसे शब्दों को स्पष्ट तथा सटीक रूप से परिभाषित करना चाहिये, ताकि कानूनी अस्पष्टताओं को कम किया जा सके। |
स्थानीय उपायों को पूर्ण रूप से अपनाने की अनिवार्यता के कारण विवाद समाधान में देरी होती है। |
निवेशकों को प्रारंभ में ही स्थानीय न्यायालयों या अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता में से किसी एक का चयन करने की अनुमति दी जानी चाहिये। |
सर्वाधिक वरीयता प्राप्त राष्ट्र (MFN) और निष्पक्ष एवं समतामूलक व्यवहार (FET) को बाहर रखने से निवेशकों का विश्वास कम हो जाता है। |
MFN और FET प्रावधानों को ऐसे सुरक्षा उपायों के साथ शामिल किया जाए, जो संधि दुरुपयोग (Treaty Shopping) को रोकें, जबकि गैर-भेदभाव (Non-Discrimination) सुनिश्चित किया जा सके। |
ICSID कन्वेंशन से बहिष्कृत किये जाने से विदेशी निवेशकों के लिये प्रवर्तन विकल्प सीमित हो जाते हैं। |
ICSID (अंतर्राष्ट्रीय निवेश विवाद निपटान केंद्र) का हस्ताक्षरकर्ता बनना चाहिये ताकि निवेशकों के विश्वास को बढ़ाया जा सके और एक वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त विवाद समाधान प्रणाली प्रदान की जा सके। |
निष्कर्ष:
इज़राइल के साथ हाल ही में हस्ताक्षरित द्विपक्षीय निवेश समझौता (BIT) भारत की बदलती रणनीति को रेखांकित करता है, क्योंकि इज़राइल पहला OECD देश बन गया है जिसने भारत के नए संधि मॉडल को अपनाया है। यह समझौता व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने का लक्ष्य रखता है, जिससे निवेशकों को अधिक स्पष्टता तथा सुरक्षा मिले, साथ ही भारत का विनियमन का अधिकार भी बना रहे।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स
प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है? (2018)
(a) चीन
(b) इज़राइल
(c) इराक
(d) यमन
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न. “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2018)
पंजाब में बाढ़ संकट
प्रिलिम्स के लिये: पंजाब की नदियाँ, BBMB, धुस्सी बाँध, IPCC AR6, MSP, C-FLOOD प्रणाली, भुवन प्लेटफॉर्म, कृषि विज्ञान केंद्र।
मेन्स के लिये: पंजाब में बाढ़ के कारण, शासन और बुनियादी ढाँचे की भूमिका, सतत् बाढ़ प्रबंधन के उपाय।
चर्चा में क्यों?
पंजाब (पाँच नदियों की भूमि) पिछले 40 वर्षों में आई सबसे भीषण बाढ़ों में से एक का सामना कर रहा है, जिसमें सभी 23 ज़िले, 3.8 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और 11.7 लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि भूमि नष्ट हो गई है।
- इससे पंजाब में निरंतर और व्यापक बाढ़ तथा उससे संबंधित मुद्दों पर बहस छिड़ गई है।
पंजाब में बाढ़ के क्या कारण हैं?
प्राकृतिक कारण
- भारी मानसून वर्षा: जलग्रहण क्षेत्रों (हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, पंजाब) में भारी वर्षा, बादल फटने से और भी बढ़ जाती है, जिससे नदियों का जलस्तर अचानक बढ़ जाता है।
- भूगोलिक संवेदनशीलता: पंजाब को तीन स्थायी नदियाँ- रावी, ब्यास और सतलुज- साथ ही मौसमी घटक घग्गर और छोटे सहायक नाले (चोई) द्वारा सिंचित किया जाता है।
- ये नदियाँ राज्य को उर्वर बनाती हैं (भारत के लगभग 20% गेहूँ और 12% चावल का उत्पादन केवल 1.5% भूमि क्षेत्र से), जिससे इसे “भारत की अन्न भंडार” की उपाधि मिली है, परन्तु यह बाढ़ के प्रति संवेदनशील भी बनाता है।
- इससे पहले वर्ष 1955, 1988, 1993, 2019 और 2023 में बड़ी बाढ़ आई थी।
- जलवायु परिवर्तन: तीव्र और अनियमित वर्षा के कारण मौसम के पैटर्न में बदलाव आया है, जिसने मानसून को कृषि मित्र से विनाशकारी शक्ति में बदल दिया है, जैसा कि IPCC AR6 के निष्कर्षों में दर्शाया गया है।
मानव-प्रेरित कारक
- बाँध प्रबंधन के मुद्दे: भाखड़ा (सतलुज), पोंग (ब्यास), और थीन/रंजीत सागर (रावी) बाँध भारी वर्षा (वर्ष 2025 में 45% अधिक वर्षा) के दौरान पानी छोड़ते हैं, अक्सर समय पर समन्वय और चेतावनी के बिना।
- वर्ष 2025 में, अभूतपूर्व अंतर्वाह (पौंग में वर्ष 2023 की तुलना में 20% अधिक) के कारण अचानक पानी छोड़ा गया, जिससे निचले क्षेत्रों में बाढ़ आ गई।
- अपर्याप्त बाढ़ कुशन: भाखड़ा-ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB) की जुलाई–अगस्त में सिंचाई और विद्युत उत्पादन के लिये जलाशय स्तर उच्च बनाए रखने की आलोचना की जाती है, जिससे अगस्त–सितंबर में भारी वर्षा के लिये पर्याप्त आरक्षित जल नहीं रहता।
- बैराज विफलताएँ: अगस्त 2025 में, रावी पर माधोपुर बैराज के दो द्वार बाँध से अचानक पानी छोड़ने के बाद टूट गए।
- कमज़ोर तटबंध (धुस्सी बाँध): कमज़ोर रखरखाव और अवैध खनन के कारण बाढ़ सुरक्षा संरचनाएँ कमज़ोर हो गई हैं।
- वर्ष 2024 की बाढ़-तैयारी गाइडबुक को लागू करने में विफलता के कारण नहरों का रखरखाव नहीं हो पाया तथा जल निकासी प्रणालियां अवरुद्ध हो गईं, जिससे प्राकृतिक जल प्रवाह में बाधा उत्पन्न हुई।
- शासन संबंधी कमियाँ: केंद्र-नियंत्रित भाखड़ा ब्यास प्रबंधन बोर्ड (BBMB), पंजाब की सिंचाई प्राधिकरणों और आपदा प्रतिक्रिया एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी।
- दक्षिणी पंजाब के मालवा क्षेत्र में निम्नस्तरीय निकासी तंत्र और लगातार हो रही स्थानीय वर्षा ने गंभीर जलभराव की स्थिति उत्पन्न कर दी है।
- अनियंत्रित विकास: बाढ़ मैदानों और नदी तटों पर अवैध निर्माण तथा वनों की कटाई ने प्राकृतिक बाढ़ अवरोधकों को कमज़ोर कर दिया है।
- सर्वोच्च न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने अवैध वनोंन्मूलन को बाढ़ और भूस्खलन का एक कारण माना है।
पंजाब में बाढ़ प्रबंधन के सामने मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?
शासन संबंधी मुद्दे (Governance Issues)
- केंद्रीकृत नियंत्रण: प्रमुख केंद्र-नियंत्रित बाँध सिंचाई और ऊर्जा को प्राथमिकता देते हैं, जिससे बाढ़ प्रबंधन उपेक्षित रहता है और पंजाब का प्रभाव सीमित हो जाता है।
- 2022 संशोधन: गैर-पंजाब/हरियाणा अधिकारियों को BBMB के शीर्ष पदों पर नियुक्त करने की अनुमति ने राज्य-केंद्र संबंधों को और अधिक तनावपूर्ण बना दिया है।
- प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण: सरकारें प्रायः बाढ़ आने के बाद ही कार्रवाई करती हैं, बजाय इसके कि तटबंध सुदृढ़ीकरण या नदियों की सफाई जैसी रोकथामात्मक उपायों में निवेश करें।
अवसंरचना संबंधी कमियाँ (Infrastructure Deficiencies)
- कमज़ोर तटबंध: अवैध रेत खनन और खराब रखरखाव वाले निकासी तंत्र, विशेषकर दक्षिणी पंजाब में, जलभराव की समस्या को और बढ़ाते हैं।
- निवेश की कमी: तटबंधों के सुदृढ़ीकरण और नदियों की सफाई के लिये 4,000–5,000 करोड़ रुपए की आवश्यकता है, लेकिन वित्तीय बाधाओं के कारण यह कार्य अधूरा है।
- जलवायु अस्थिरता: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित अनियमित मानसून और अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ मौजूदा बाढ़ प्रबंधन रणनीतियों को चुनौती देती हैं।
पंजाब में बाढ़ ने किस तरह किया प्रभावित?
- कृषि पर विनाशकारी प्रभाव: 4 लाख एकड़ से अधिक कृषि भूमि जलमग्न हो गई, धान और बासमती जैसी फसलों की गुणवत्ता प्रभावित हुई, जिससे इनके दाम MSP से कम मिलने की आशंका है।
- बाढ़ के बाद की चुनौतियों में भूमि अपरदन, गादीकरण (गाद का जमाव) और नई फसल बोने में कठिनाइयाँ शामिल हैं, जो भारत की अन्न भंडार के रूप में पंजाब की भूमिका को खतरे में डालती हैं।
- आर्थिक प्रभाव: फसल के नुकसान और भूमि की घटती गुणवत्ता के कारण किसान वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं, जिससे वर्तमान कृषि ऋण में वृद्धि हुई है।
- सड़कें और सिंचाई तंत्र जैसी बुनियादी ढाँचे को हुए नुकसान की मरम्मत के लिये भारी लागत की आवश्यकता है, जिससे राज्य के संसाधनों पर दबाव बढ़ गया है।
- सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट: बाढ़ का पानी, विशेषकर लुधियाना की बुद्धा दरीया जैसी प्रदूषित नदियों से आया, “ब्लैक फ्लड” बन गया, जिसमें औद्योगिक प्रदूषक और अशुद्ध कचरा शामिल था, जिससे हैजा, टाइफॉयड, हेपेटाइटिस-A, डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों के फैलने का खतरा बढ़ गया।
- दीर्घकालिक भूजल प्रदूषण और मृदा की गुणवत्ता में गिरावट गंभीर पर्यावरणीय खतरे उत्पन्न करती हैं।
- सामाजिक और मानवीय प्रभाव: कई व्यक्तियों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया गया है, लेकिन विस्थापित परिवारों को भोजन, आश्रय और सुरक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें विशेष रूप से महिलाएँ और बच्चे जोखिम में हैं।
क्या उपाय किये जा सकते हैं?
- वैज्ञानिक बाँध प्रबंधन: BBMB के “रूल कर्व” (भंडारण और जल रिलीज़ नीतियाँ) को जलवायु पूर्वानुमान को शामिल करते हुए संशोधित करना और पर्याप्त बाढ़ सुरक्षात्मक उपाय (बाढ़ कुशन) सुनिश्चित करना।
- तटबंधों को सुदृढ़ करना: धुस्सी बाँध (मृदा के तटबंध) में निवेश करना, अवैध खनन रोकना (सैटेलाइट निगरानी के माध्यम से) और निकासी तंत्र (Drainage Networks) को आधुनिक बनाना।
- समेकित बाढ़ प्रबंधन: बाँध से पानी छोड़ने के मामले में केंद्र-राज्य सरकारों के बीच समन्वय में सुधार करना तथा पारदर्शी संचार माध्यम स्थापित करना।
- ग्राम-स्तरीय पूर्वानुमान के लिये सी-फ्लड प्रणाली को अपनाना तथा इसे NRSC के भुवन प्लेटफॉर्म के माध्यम से मौसम विज्ञान (Meteorological) और जलविज्ञान (Hydrological) डेटा के साथ एकीकृत करना।
- समुदाय-केंद्रित तैयारी: कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से बाढ़ पूर्वानुमान, डिजिटल अलर्ट और ग्राम-स्तरीय आपदा योजनाओं और दत्तक क्षमता निर्माण का विस्तार करना।
- स्थानीय निगरानी, पूर्व चेतावनी प्रणाली, और मॉक ड्रिल्स के माध्यम से शून्य हानि दृष्टिकोण (Zero Casualty Approach) को लागू करना।
- जलवायु-लचीला बुनियादी ढाँचा: शहरी जल निकासी प्रणालियों का निर्माण, आर्द्रभूमि को पुनर्स्थापित करना तथा अतिरिक्त प्रवाह को अवशोषित करने के लिये नदी की सफाई करना।
- अत्यधिक वर्षा की घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिये बाढ़ पूर्वानुमान में जलवायु मॉडल को एकीकृत करना।
- बाढ़-प्रतिरोधी फसलों को बढ़ावा देना और बाढ़-प्रवण खरीफ फसलों पर निर्भरता कम करने के लिये कृषि में विविधता लाना।
निष्कर्ष
पंजाब की भौगोलिक स्थिति इसे स्वाभाविक रूप से बाढ़-प्रवण बनाती है, लेकिन खराब बाँध प्रबंधन, कमज़ोर तटबंध और प्रशासनिक कमियों के कारण प्राकृतिक आपदाएँ मानव-निर्मित आपदाओं में बदल जाती हैं। जीवन, कृषि और भारत के खाद्यान्न भंडार के रूप में पंजाब की भूमिका की रक्षा के लिये वैज्ञानिक जल विनियमन, सुदृढ़ बुनियादी ढाँचे और पारदर्शी शासन की ओर बदलाव आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. पंजाब में बारहमासी नदियाँ बहने के बावजूद, यहाँ बार-बार बाढ़ आती है। पंजाब में बाढ़ के प्राकृतिक और मानव-जनित कारणों पर चर्चा कीजिये और प्रभावी बाढ़ प्रबंधन के उपाय सुझाइये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. सिंधु नदी प्रणाली के संदर्भ में निम्नलिखित चार नदियों में से तीन नदियाँ इनमें से किसी एक नदी में मिलती हैं जो सीधे सिंधु से मिलती है। निम्नलिखित में से वह नदी कौन-सी है जो सीधे सिंधु से मिलती है? (2021)
(a) चिनाब
(b) झेलम
(c) रावी
(d) सतलुज
उत्तर: (d)
व्याख्या:
- झेलम नदी पाकिस्तान में झांग के निकट चिनाब नदी से मिलती है।
- रावी नदी सराय सिद्धू के पास चिनाब नदी से मिलती है।
- सतलुज नदी पाकिस्तान में चिनाब नदी से मिलती है। इस प्रकार, सतलुज नदी में रावी, चिनाब और झेलम नदियों का संयुक्त जल प्रवाह होता है। यह मिथनकोट से कुछ किलोमीटर ऊपर सिंधु नदी में मिल जाती है।
मेन्स’
प्रश्न. शहरी क्षेत्रों में बाढ़ एक उभरती हुई जलवायु-प्रेरित आपदा है। इस आपदा के कारणों की चर्चा कीजिये। पिछले दो दशकों में, भारत में आयी ऐसी दो प्रमुख बाढ़ों की विशेषताओं का उल्लेख कीजिये। भारत की उन नीतियों और ढाँचों का वर्णन कीजिये जिनका उद्देश्य ऐसी बाढ़ों से निपटना है। (2024)
प्रश्न. नदियों को आपस में जोड़ना सूखा, बाढ़ और बाधित जल-परिवहन जैसी बहु-आयामी अंतर्संबंधित समस्याओं का व्यवहार्य समाधान दे सकता है। आलोचनात्मक परिक्षण कीजिये। (2020)
प्रश्न. भारत में दशलक्षीय नगरों जिनमें हैदराबाद एवं पुणे जैसे स्मार्ट सिटीज़ भी सम्मिलित हैं, में व्यापक बाढ़ के कारण बताइये। स्थायी निराकरण के उपाय भी सुझाइए। (2020)