भारत-फिलीपींस संबंध रणनीतिक साझेदारी तक उन्नत
प्रिलिम्स के लिये: पारस्परिक कानूनी सहायता संधि, ब्रह्मोस मिसाइल, सूचना संलयन केंद्र-हिंद महासागर क्षेत्र, आसियान
मेन्स के लिये: भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और दक्षिण-पूर्व एशिया में इसकी रणनीतिक पहुँच, हिंद-प्रशांत क्षेत्र में नियम-आधारित व्यवस्था को बढ़ावा देने में भारत की भूमिका, भारत-आसियान संबंध
चर्चा में क्यों?
वर्ष 2025 में फिलीपींस के राष्ट्रपति की भारत की राजकीय यात्रा के दौरान भारत और फिलीपींस ने अपने संबंधों को रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया।
- इस यात्रा ने वर्ष 1952 की मैत्री संधि को पुनः पुष्टि दी और रक्षा, व्यापार, समुद्री सुरक्षा, प्रौद्योगिकी तथा जन-से-जन संपर्क जैसे क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया।
फिलीपींस के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के मुख्य परिणाम क्या हैं?
- रणनीतिक साझेदारी की घोषणा: भारत और फिलीपींस ने औपचारिक रूप से रणनीतिक साझेदारी स्थापित की है, जिससे द्विपक्षीय संबंधों और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग को सुदृढ़ किया गया है।
- कार्य योजना (2025–2029): इस साझेदारी को दिशा देने के लिये एक विस्तृत कार्य योजना अपनाई गई है, जिसका फोकस रक्षा, व्यापार, प्रौद्योगिकी, समुद्री सहयोग, संपर्क और जलवायु परिवर्तन जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर है।
- दूतावास और कानूनी सहयोग: फिलीपींस ने भारतीय पर्यटकों को वीज़ा-मुक्त प्रवेश की अनुमति दी है। भारत ने फिलीपीनी नागरिकों को अगस्त 2025 से एक वर्ष के लिये मुफ्त ई-टूरिस्ट वीज़ा प्रदान किया है।
- दोनों देशों ने आपराधिक मामलों में परस्पर कानूनी सहायता संधि (MLAT) और दंडित व्यक्तियों के हस्तांतरण की संधि को अंतिम रूप दिया।
- आपराधिक मामलों में MLATs द्विपक्षीय संधियाँ होती हैं, जिन्हें देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सहायता प्रदान करने के लिये किया जाता है।
- दंडित व्यक्तियों के हस्तांतरण की संधि के तहत, फिलीपींस में भारतीय कैदी (और इसके विपरीत) अपनी शेष सजा अपने परिवारों के निकट अपने देश में काट सकेंगे, जिससे उनके सामाजिक पुनर्वास में सहायता मिलेगी।
- बुनियादी ढांचा और निवेश सहयोग: फिलीपींस ने भारत को बड़े बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं में भागीदारी के लिये आमंत्रित किया है तथा भारत ने समन्वित विकास के लिये गति शक्ति प्लेटफ़ॉर्म साझा करने की पेशकश की है।
- भारत फिलीपींस को उसके स्वयं के सॉवरेन डेटा क्लाउड इंफ्रास्ट्रक्चर की स्थापना में समर्थन देगा और समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिये देश को सूचना संलयन केंद्र – हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) में शामिल होने के लिये आमंत्रित किया है।
भारत–फिलीपींस संबंधों का समय के साथ विकास
- राजनीतिक और राजनयिक जुड़ाव: भारत और फिलीपींस ने वर्ष 1949 में राजनयिक संबंध स्थापित किये थे। फिलीपींस, वर्ष 2024–27 के लिये आसियान-भारत संवाद समन्वयक (Dialogue Coordinator) है, जो क्षेत्रीय सहयोग में विश्वास और समन्वय को दर्शाता है।
- आर्थिक और व्यापार सहयोग: आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के समर्थन से द्विपक्षीय व्यापार में निरंतर वृद्धि हुई है, वर्ष 2020–21 में 2.03 अरब डॉलर से बढ़कर 2023–24 में 3.53 अरब डॉलर हो गया है, जिसमें भारत का व्यापार अधिशेष बना हुआ है।
- भारत फिलीपींस को दवाएँ, इंजीनियरिंग उत्पाद, चावल और ऑटो पार्ट्स निर्यात करता है, जबकि भारत सेमीकंडक्टर्स, ताँबा और खाद्य से जुड़ी सामग्रियाँ आयात करता है।
- भारत, फिलीपींस को दवाओं का प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है, जो उसके कुल फार्मा आयात का लगभग 12% योगदान देता है।
- रक्षा: वर्ष 2006 में एक रक्षा समझौता ज्ञापन के परिणामस्वरूप संयुक्त रक्षा सहयोग समिति का गठन हुआ।
- वर्ष 2022 में, भारत ने फिलीपीन नौसेना को ब्रह्मोस मिसाइलों की आपूर्ति के लिये एक समझौते पर हस्ताक्षर किये, जो दक्षिण पूर्व एशिया के लिये भारत का पहला बड़ा रक्षा निर्यात होगा।
- जुलाई 2025 में, भारत और फिलीपींस ने विवादित दक्षिण चीन सागर में अपना पहला संयुक्त नौसैनिक अभ्यास किया।
- फिलीपींस ने भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के दावे का समर्थन किया है तथा गैर-स्थायी सदस्यता के प्रयासों में भी भारत का साथ दिया है। भारत ने बदले में फिलीपींस के 2027–28 के लिए समर्थन की घोषणा की है।
भारत-फिलीपींस संबंधों का क्या महत्त्व है?
- सामरिक संरेखण: फिलीपींस दक्षिण चीन सागर के चौराहे पर स्थित है, जो भारत-प्रशांत सुरक्षा और वैश्विक व्यापार मार्गों के लिये महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है।
- भारत की एक्ट ईस्ट पॉलिसी और क्षेत्रों में सुरक्षा और विकास के लिये पारस्परिक और समग्र उन्नति (महासागर) विजन के हिस्से के रूप में, फिलीपींस एक स्वतंत्र, खुले और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था को बनाए रखने के लिये एक प्रमुख भागीदार है।
- भारत और फिलीपींस, दोनों ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र के लोकतंत्र, दक्षिण चीन सागर में चीन की कार्रवाइयों को लेकर चिंतित हैं। भारत संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून सम्मेलन, 1982 का समर्थन तथा चीन के नाइन-डैश लाइन के दावों के विरुद्ध फिलीपींस का समर्थन करता है।
- आसियान संबंध: फिलीपींस आसियान (दक्षिण-पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) का एक प्रभावशाली सदस्य है। द्विपक्षीय संबंधों में गहराई आने से दक्षिण-पूर्व एशिया में भारत की उपस्थिति मज़बूत होती है।
- आर्थिक क्षमता: भारत एक बड़ा बाज़ार, आईटी, फार्मा, फिनटेक में निवेश के अवसर और बुनियादी ढाँचे और ऊर्जा में साझेदारी प्रदान करता है।
- भारत फिलीपींस के लिये एक पायलट सॉवरेन डेटा क्लाउड इन्फ्रास्ट्रक्चर का समर्थन कर रहा है, जिससे उसकी डिजिटल स्वायत्तता और साइबर क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा।
- विशेष तकनीक और उत्पाद: फिलीपींस समुद्री शैवाल (सीवीड) की खेती में अपनी विशेषज्ञता के लिये जाना जाता है, जिसे भारत भविष्य में पोषण संबंधी उद्देश्यों के लिये अपनाने की योजना बना रहा है।
भारत-फिलीपींस संबंधों में चुनौतियाँ क्या हैं?
- चीन की संवेदनशीलताएँ और क्षेत्रीय तनाव: चीन के विरोध के बीच, दक्षिण चीन सागर में भारत और फिलीपींस के बीच नौसैनिक संबंध।
- बीजिंग ऐसे प्रयासों को प्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में देखता है, जिससे भू-राजनीतिक तनाव की आशंका बढ़ जाती है और यह फिलीपींस की भारत, अमेरिका और चीन के बीच संतुलन साधने की नीति की परीक्षा बन सकता है।
- सीमित आर्थिक एकीकरण: भारत-फिलीपींस व्यापार में वृद्धि हो रही है, किंतु यह अब भी अपेक्षाकृत कमज़ोर बना हुआ है। इसका कारण प्राथमिक व्यापार समझौते (Preferential Trade Agreement) की धीमी वार्ताएँ, कम निवेश और कमज़ोर कनेक्टिविटी है।
- सहयोग में कार्यान्वयन संबंधी कमियाँ: डिजिटल और समुद्री क्षेत्रों में समझौतों के बावजूद, प्रगति धीमी हो सकती है क्योंकि इसमें संस्थागत क्षमताओं की कमी, प्राथमिकताओं में अंतर और क्षेत्रीय अस्थिरता जैसी बाधाएँ मौजूद हैं।
भारत-फिलीपींस संबंधों को मज़बूत करने के लिये क्या किया जा सकता है?
- रक्षा क्षमता निर्माण को प्राथमिकता देना: भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) के तहत सहयोग को विस्तार देना चाहिये और फिलीपींस की आवश्यकताओं के अनुरूप नौसैनिक उपकरणों के संयुक्त विकास को आगे बढ़ाना चाहिये, ताकि दीर्घकालिक रणनीतिक पारस्परिक निर्भरता को प्रोत्साहित किया जा सके।
- PTA वार्ताओं में तेज़ी लाना: फार्मा, इलेक्ट्रॉनिक्स, डिजिटल सेवाओं और प्रसंस्कृत खाद्य क्षेत्र पर विशेष ध्यान देते हुए PTA को शीघ्र अंतिम रूप देना वास्तविक आर्थिक गहराई को प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
- जन-सामान्य के बीच संपर्क का विस्तार करना: भारत को विशेष रूप से STEM एवं चिकित्सा जैसे क्षेत्रों में अधिक विश्वविद्यालय छात्रवृत्तियाँ प्रदान करनी चाहिये, जहाँ भारत की सॉफ्ट पावर की विशेष पहचान है।
फिलीपींस
- दक्षिण-पूर्व एशिया में स्थित एक द्वीपसमूह, फिलीपींस में 7,641 द्वीप हैं जिनकी सीमाएँ फिलीपीनी सागर (पूर्व), दक्षिण चीन सागर (पश्चिम) और सेलेब्स सागर (दक्षिण) से लगती हैं।
- लूज़ोन और मिंडानाओ इसके दो सबसे बड़े द्वीप हैं, तथा मनीला इसकी राजधानी है।
- माउंट एपो (2,954 मीटर), जो मिंडानाओ में स्थित है, देश की सबसे ऊँची चोटी है और एक सक्रिय ज्वालामुखी भी है।
- फिलीपींस प्रशांत रिंग ऑफ फायर में स्थित है। यहाँ उष्णकटिबंधीय जलवायु पाई जाती है और यह देश विश्व के प्रमुख जैव विविधता हॉटस्पॉट्स में से एक है।
निष्कर्ष
भारत-फिलीपींस संबंध तभी प्रगाढ़ होंगे जब भारत को चीन या अमेरिका के विकल्प के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे देश के रूप में देखा जाएगा जो प्रासंगिक, विश्वसनीय और सम्मानजनक समाधान प्रदान करता है। इस दृष्टिकोण में परिवर्तन के लिये केंद्रित दृष्टि, तीव्र गति और निरंतर सक्रिय सहभागिता आवश्यक है।
दृष्टि मेन्स परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत और फिलीपींस ने हाल ही में अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक उन्नत किया है। भारत की की हिंद-प्रशांत रणनीति के संदर्भ में इस कदम के महत्त्व पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
प्रिलिम्स:
प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2018)
- ऑस्ट्रेलिया
- कनाडा
- चीन
- भारत
- जापान
- यू.एस.ए.
उपर्युत्त में से कौन-कौन आसियान (ASEAN) के ‘मुत्त व्यापार भागीदारों’ में से हैं?
(a) 1, 2, 4 और 5
(b) 3, 4, 5 और 6
(c) 1, 3, 4 और 5
(d) 2, 3, 4 और 6
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न. शीतयुद्धोत्तर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य के संदर्भ में भारत की पूर्वोन्मुखी नीति के आर्थिक और सामरिक आयामों का मूल्यांकन कीजिये। (2016)
भारतीय आयात पर अमेरिकी टैरिफ
प्रिलिम्स के लिये: भारत-अमेरिका व्यापार संबंध, भारत पर टैरिफ, द्विपक्षीय व्यापार समझौता, भारत-रूस रक्षा संबंध
मेन्स के लिये: भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों पर अमेरिकी टैरिफ नीति के निहितार्थ।
चर्चा में क्यों?
अमेरिका ने भारत पर अतिरिक्त टैरिफ लगाते हुए कहा है कि “नई दिल्ली के रूस से कच्चा तेल खरीदना जारी रखने” के कारण यह कदम उठाया गया है। अब भारत और ब्राज़ील उन देशों में शामिल हो गए हैं, जिन पर अमेरिका द्वारा सबसे अधिक (50%) टैरिफ लगाया गया है।
- भारत, द्विपक्षीय व्यापार समझौते (Bilateral Trade Agreement) के तहत वार्ता करते हुए, इस निर्णय के प्रभाव का मूल्यांकन कर राष्ट्रीय हितों की रक्षा कर रहा है। भारत ने अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) की दोहरी नीति की आलोचना की है, जो स्वयं रूसी वस्तुओं का आयात करते हैं लेकिन भारत की तेल खरीद को निशाना बना रहे हैं।
- इसके अलावा, भारत ने अपनी ऊर्जा नीति को राष्ट्रीय सुरक्षा का विषय बताते हुए इसका बचाव किया है, और यह स्पष्ट किया है कि तेल आयात बाज़ार आधारित कारकों और 1.4 अरब लोगों की ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकताओं से प्रेरित हैं।
अमेरिका द्वारा भारत पर टैरिफ लगाने के पीछे क्या कारण थे?
- उच्च टैरिफ और अवरोध: अमेरिका ने भारत द्वारा लगाए गए उच्च टैरिफ (High Tariffs) और कुछ गैर-शुल्कीय अवरोधों (Non-Tariff Barriers) को लेकर चिंता व्यक्त की है, विशेष रूप से दवाइयों, इलेक्ट्रॉनिक्स और कृषि क्षेत्र में। अमेरिका का कहना है कि ये बाधाएँ बाज़ार पहुँच (Market Access) में असंतुलन उत्पन्न करती हैं।
- रूसी तेल और रक्षा उपकरणों की खरीद: अमेरिका ने भारत द्वारा रूसी तेल और सैन्य उपकरणों की लगातार खरीद पर भी चिंता जताई है और संकेत दिया है कि यह प्रतिबंधों के प्रवर्तन (Sanctions Enforcement) को प्रभावित करता है, जिसके चलते संभावित कदम उठाए जा सकते हैं।
- भारत के साथ अमेरिका का व्यापार घाटा: अमेरिका ने भारत के साथ अपने निरंतर बने हुए लगभग 45 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को रेखांकित किया है, जो व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिये टैरिफ लगाने की उसकी रणनीति को प्रभावित करता है।
- रुकी हुई व्यापार वार्ताएँ: कई दौर की बातचीत के बावजूद, भारत और अमेरिका व्यापार समझौते तक नहीं पहुँच पाए हैं। अमेरिका ने इस बात पर चिंता जताई है कि भारत कृषि और डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों को उदार बनाने (Liberalization) में अत्यधिक सतर्कता बरत रहा है।
भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों की मुख्य विशेषताएँ:
- वर्ष 2024-25 में, अमेरिका लगातार चौथे वर्ष भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार बना रहा तथा दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार $131.84 बिलियन तक पहुँच गया।
- भारत ने वर्ष 2025 की पहली छमाही में अमेरिका से कृषि आयात में 49.1% की वृद्धि दर्ज की, जो $1,693.2 मिलियन तक पहुँच गया है, जबकि अमेरिका को भारतीय कृषि निर्यात 24.1% बढ़कर $3,472.7 मिलियन हो गया है।
- वित्त वर्ष 2023-24 में अमेरिका से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) का प्रवाह $4.99 बिलियन रहा, जिससे अमेरिका भारत का तीसरा सबसे बड़ा FDI स्रोत बन गया है।
- वर्ष 2024 में दोनों देशों ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (SMEs) पर सहयोग बढ़ाने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये, जो नवाचार और विकास को प्रोत्साहित करने वाले क्षेत्रों में पारस्परिक रुचि को दर्शाता है।
- ऊर्जा और स्वच्छ वायु अनुसंधान केंद्र (Centre for Research on Energy and Clean Air) के अनुसार, दिसंबर 2022 से जून 2025 के बीच यूरोपीय संघ (EU) रूस से तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) का सबसे बड़ा खरीदार रहा (51%) और पाइपलाइन गैस (37%) भी सबसे ज्यादा EU ने ही खरीदी। वहीं, चीन ने रूस के कच्चे तेल के 47% निर्यात की खरीद की, उसके बाद भारत (38%), यूरोपीय संघ (6%) और तुर्किये (6%) का स्थान रहा।
अमेरिकी टैरिफ का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
- तेल आयात: भारत अपने कच्चे तेल का 88% आयात करता है, जिसका एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा (35% से अधिक कच्चा तेल) रूस से आता है, जो अमेरिकी टैरिफ निर्णय को प्रभावित करने वाला एक कारक है, क्योंकि भारत अपनी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये सस्ती ऊर्जा की तलाश कर रहा है, साथ ही अपने ऊर्जा स्रोत में भू-राजनीतिक विचारों को संतुलित कर रहा है।
- निर्यात और प्रमुख क्षेत्रों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव: अमेरिकी टैरिफ का सीधा असर भारत के अमेरिका को होने वाले कुल निर्यात के लगभग 10% पर पड़ेगा, जिससे प्रतिवर्ष लगभग 87 बिलियन डॉलर मूल्य की वस्तुओं पर असर पड़ेगा।
- सबसे अधिक जोखिम वाले क्षेत्रों में इलेक्ट्रॉनिक्स (विशेष रूप से स्मार्टफोन), फार्मास्यूटिकल्स, कपड़ा, परिधान, रत्न और आभूषण तथा ऑटोमोबाइल घटक शामिल हैं।
- अतिरिक्त टैरिफ से अमेरिका को भारत के 65% निर्यात पर असर पड़ सकता है, जिसमें कपड़ा, रत्न, जूते, रसायन और मशीनरी जैसे क्षेत्र शामिल हैं।
- आर्थिक विकास और नौकरियों पर दबाव: अर्थशास्त्रियों ने भारत की GDP वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव का अनुमान लगाया है, एशियाई विकास बैंक ने अपनी जुलाई 2025 की रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2025-26 के पूर्वानुमान को 6.7% से घटाकर 6.5% कर दिया है।
- विश्लेषकों ने निर्यात से जुड़े उद्योगों, विशेषकर वस्त्र और आभूषणों में रोज़गार की कमी की चेतावनी दी है, जो श्रम-गहन और बिक्री के लिये अमेरिकी बाज़ार पर बहुत अधिक निर्भर हैं।
- लागत प्रतिस्पर्द्धात्मकता में कमी: भारत के उत्पाद अब वियतनाम (केवल 20% अमेरिकी टैरिफ का सामना कर रहे), इंडोनेशिया और जापान जैसे अन्य एशियाई देशों की तुलना में कम प्रतिस्पर्द्धी हैं।
- यह तुलनात्मक नुकसान अमेरिकी खरीदारों को भारतीय वस्तुओं के स्थान पर कम टैरिफ वाले देशों से वस्तुएँ खरीदने के लिये प्रेरित कर सकता है, जिससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में अग्रणी "चीन प्लस वन" विनिर्माण केंद्र के रूप में भारत की स्थिति को खतरा हो सकता है।
- अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में व्यवधान: इस कदम से राजनयिक संबंधों में तनाव उत्पन्न होगा और भारत को अमेरिका से प्राथमिक व्यापार सुविधा मिलने की उम्मीदें भी धूमिल होंगी। यह भारत को बातचीत में तेज़ी लाने या और अधिक व्यापार रियायतें देने के लिये मज़बूर कर सकता है।
- यह गतिरोध भारत की आर्थिक नीतियों, कृषि बाज़ार तक पहुँच और रूस के साथ संबंधों को लेकर व्यापक असहमति का भी संकेत देता है, जिससे भविष्य के सौदे और अधिक अनिश्चित हो जाते हैं।
- वित्तीय बाज़ार और व्यवसाय प्रभाव: भारतीय शेयर बाज़ारों ने शुरुआत में इस घोषणा पर नकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की तथा 40 से अधिक भारतीय सूचीबद्ध निर्यात-केंद्रित कंपनियों के शेयर मूल्यों में भारी गिरावट आई।
- निर्यातकों को टैरिफ का कुछ हिस्सा स्वयं वहन या लागत को आगे बढ़ाना पड़ सकता है, जिससे मांग और लाभ मार्जिन में कमी आ सकती है।
भारत पर अमेरिकी टैरिफ के प्रभाव को कम करने के लिये क्या उपाय किये जा सकते है?
- वार्ता में तेज़ी लाना: भारत सरकार पहले से ही अमेरिका के साथ व्यापार वार्ता को गहन कर रही है तथा उसने एक "निष्पक्ष, संतुलित और पारस्परिक रूप से लाभकारी" समझौता सुनिश्चित करने के लिये प्रतिबद्धता का संकेत दिया है।
- दोनों सरकारों ने अगस्त में वार्ता के अतिरिक्त दौर निर्धारित किये हैं।
- वार्ता में तेज़ी लाने और सामरिक समझौते (कृषि और एमएसएमई जैसे मूल हितों को खतरे में डाले बिना) की संभावना तलाशने से आने वाले महीनों में टैरिफ को वापस लेने या कम करने में मदद मिल सकती है।
- निर्यात बाज़ारों में विविधता: भारतीय नीति-निर्माता और उद्योग जगत के नेता अन्य प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ व्यापार संबंधों का विस्तार करने के लिये सक्रिय रूप से कार्य कर रहे हैं। यूरोपीय संघ, खाड़ी देशों, EFTA और पूर्वी एशियाई ब्लॉक के साथ मुक्त व्यापार समझौतों में तेज़ी लाने से भारतीय व्यवसायों को अमेरिकी खरीदारों पर अपनी निर्भरता कम करने और खोई हुई माँग की भरपाई करने में मदद मिल सकती है।
- घरेलू प्रतिस्पर्द्धात्मकता और उत्पाद मूल्य में वृद्धि: उद्योग विशेषज्ञ संरचनात्मक सुधारों, उत्पादकता बढ़ाने और भारतीय उत्पादों को वैश्विक स्तर पर अधिक प्रतिस्पर्द्धी बनाने के लिये नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने की सलाह देते हैं।
- इसमें वस्त्र, अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग), इलेक्ट्रॉनिक्स और औषधि (फार्मास्यूटिकल्स) क्षेत्रों में मूल्य शृंखला (वैल्यू चेन) में ऊपर की ओर बढ़ना शामिल है, ताकि शुल्क (टैरिफ) लगे होने के बावजूद भारतीय निर्यात गुणवत्ता, तकनीक या विशिष्ट लाभों के कारण आकर्षक बने रहें।
- कमजोर क्षेत्रों का समर्थन और संरक्षण: सरकार ने वस्त्र, ऑटो पार्ट्स, रत्न एवं आभूषण और MSME जैसे प्रमुख निर्यात क्षेत्रों के संरक्षण पर ज़ोर दिया है।
- संभावित उपायों में लक्षित सब्सिडी, निर्यात शुल्क की शीघ्र वापसी, निर्यात ऋण और विपणन सहायता शामिल हैं ताकि तत्काल प्रभाव को कम किया जा सके और व्यवसायों को मांग में आई गिरावट से उबरने में मदद मिल सके।
- रणनीतिक विविधीकरण: भारत को रूसी कच्चे तेल पर अपनी निर्भरता को कम करते हुए मध्य पूर्व और अफ्रीका जैसे क्षेत्रों से आयात में विविधता लानी चाहिये और किसी एक आपूर्तिकर्त्ता पर अत्यधिक निर्भरता से बचना चाहिये।
- यह परिवर्तन घरेलू स्रोतों को समर्थन देगा, जिसका उद्देश्य आपूर्ति शृंखला की स्थिरता को मज़बूत करना और अधिक सतत् ऊर्जा प्रथाओं में निवेश को आकर्षित करना है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न. भारत से आयात पर अमेरिका द्वारा शुल्क लगाने के निर्णय के निहितार्थों का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। इन शुल्कों के नकारात्मक प्रभाव को कम करने हेतु भारत को किन उपायों को अपनाना चाहिये? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रश्न. भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है, जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट कर सके।' उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये। (2019)
LPG के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBTL) योजना
चर्चा में क्यों?
भारत की रसोई गैस के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBTL) योजना, जिसे प्रत्यक्ष हस्तांतरित लाभ (PAHAL) योजना के नाम से भी जाना जाता है, के माध्यम से 4.08 करोड़ से अधिक डुप्लीकेट, फर्जी या निष्क्रिय एलपीजी (तरलीकृत पेट्रोलियम गैस) कनेक्शनों को ब्लॉक, निलंबित या निष्क्रिय कर दिया गया है।
LPG के लिये प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBTL) क्या है?
- DBTL: पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा वर्ष 2015 में LPG सब्सिडी को सीधे उपभोक्ताओं के बैंक खातों में स्थानांतरित करने, पारदर्शिता सुनिश्चित करने और रिसाव को कम करने के लिये DBTL शुरू किया गया था।
- DBTL के अंतर्गत, अब सभी LPG सिलेंडर गैर-सब्सिडी दरों पर बेचे जाते हैं तथा सब्सिडी राशि सिलेंडर की डिलीवरी के बाद लाभार्थियों को भेजी जाती है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- प्रत्यक्ष लाभ: सब्सिडी स्वचालित रूप से आधार ट्रांसफर कंप्लायंट (ATC) या बैंक ट्रांसफर कंप्लायंट (BTC) मोड के माध्यम से उपयोगकर्त्ता के खाते में जमा हो जाती है। इससे डायवर्जन और फर्जी कनेक्शन समाप्त हो जाते हैं और उपभोक्ता के अधिकारों की रक्षा होती है।
- उपभोक्ता सशक्तीकरण: उपयोगकर्त्ता पात्रता के आधार पर सब्सिडी लेने/छोड़ने का विकल्प चुन सकते हैं।
- कुशल वितरण: पारदर्शिता में सुधार और LPG आपूर्ति को सुव्यवस्थित करता है।
- पात्रता: पंजीकृत LPG उपभोक्ता होना चाहिये तथा आयकर अधिनियम, 1961 के अनुसार आवेदक और उसके पति/पत्नी की संयुक्त कर योग्य आय पिछले वित्तीय वर्ष में 10,00,000 रुपए से अधिक नहीं होनी चाहिये।
- उपलब्धियाँ: जुलाई 2024 तक, 30.19 करोड़ से अधिक LPG उपभोक्ता PAHAL योजना में पंजीकृत हो चुके हैं। वर्ष 2024–25 में 194 करोड़ गैस रिफिल वितरित की गईं, जिनमें केवल 0.08% शिकायतें दर्ज हुईं, जो योजना की दक्षता को दर्शाता है।
- सक्रिय LPG उपभोक्ताओं में से 92.44% का आधार सिस्टम में दर्ज है। DBTL उपभोक्ताओं में से 86.78% आधार-ट्रांसफर कम्प्लायंट के अनुरूप हैं।
- रिसर्च एंड डेवलपमेंट इनिशिएटिव (RDI) द्वारा की गई एक तृतीय-पक्ष मूल्यांकन में पाया गया कि 90% से अधिक उपभोक्ता PAHAL की सब्सिडी प्रणाली से संतुष्ट हैं। रिपोर्ट में बेहतर लक्षित लाभ, सशक्त शिकायत निवारण प्रणाली और व्यापक सुरक्षा जागरूकता की सिफारिश की गई है।
भारत की कल्याणकारी योजनाओं की वितरण प्रणाली प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली के माध्यम से कैसे बेहतर हुई है?
- DBT और रिसाव पर नियंत्रण: भारत की प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली ने ₹3.48 लाख करोड़ की बचत की है, जो लाभ वितरण में रिसाव पर नियंत्रण के माध्यम से संभव हुआ। इसके परिणामस्वरूप, वर्ष 2009 से 2024 के बीच सब्सिडी व्यय कुल सरकारी खर्च के 16% से घटकर 9% रह गया है।
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लाभार्थी कवरेज: DBT के अंतर्गत लाभार्थियों की संख्या 16 गुना बढ़ी है, वर्ष 2014 में 11 करोड़ से बढ़कर वर्ष 2024 में 176 करोड़ हो गई। यह वृद्धि JAM ट्रिनिटी (जन धन, आधार, मोबाइल) जैसी डिजिटल अवसंरचना की मदद से संभव हुई है।
- DBT में नकद हस्तांतरण (जैसे प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-KISAN), पेंशन और छात्रवृत्तियाँ) के साथ-साथ वस्तु आधारित सहायता (जैसे सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न और उर्वरक सब्सिडी) दोनों शामिल हैं।
- लाभार्थी कवरेज और DBT बचत के बीच 0.71 का मज़बूत सकारात्मक सहसंबंध पाया गया है, जो दर्शाता है कि जैसे-जैसे कवरेज में वृद्धि हुई, बचत भी बढ़ी।
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सब्सिडी व्यय और कल्याण दक्षता के बीच नकारात्मक सहसंबंध (-0.74) यह दर्शाता है कि DBT ने रिसाव और अपव्यय को घटाकर दक्षता बढ़ाई है।
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वेलफेयर एफिशिएंसी इंडेक्स (WEI): ब्लूक्राफ्ट डिजिटल फाउंडेशन का WEI प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) की सफलता को मापता है, जिसमें DBT बचत (50% भार), सब्सिडी में कमी (30% भार), और लाभार्थी वृद्धि (20% भार) शामिल है। यह वर्ष 2014 में 0.32 से बढ़कर 2023 में 0.91 हो गया, जो बेहतर दक्षता और समावेशन को दर्शाता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण प्रणाली ने भारत की कल्याणकारी वितरण प्रणाली को किस प्रकार नया रूप दिया है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न
मेन्स
प्रश्न. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण योजना के माध्यम से सरकारी प्रदेय व्यवस्था में सुधार एक प्रगतिशील कदम है, किंतु इसकी अपनी सीमाएँ भी हैं। टिप्पणी कीजिये। (2022)