डेली न्यूज़ (06 Nov, 2020)



करतारपुर साहिब गुरुद्वारे का प्रबंधन

प्रिलिम्स के लिये

गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर गलियारा

मेन्स के लिये 

करतारपुर गलियारा और भारत-पाक रिश्तों पर उसका प्रभाव

चर्चा में क्यों?

भारत ने गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर (GADSK) का प्रबंधन एक गैर-सिख समुदाय के ट्रस्ट को स्थानांतरित करने के पाकिस्तान के निर्णय की निंदा करते हुए कहा है कि यह निर्णय पूर्णतः सिख समुदाय की धार्मिक भावनाओं के विरुद्ध है।

प्रमुख बिंदु

  • पाकिस्तान सरकार द्वारा जारी आधिकारिक आदेश के मुताबिक, ‘हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड’ (Evacuee Trust Property Board-ETPB) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर के प्रबंधन और रखरखाव के लिये ‘प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट’ (PMU) नाम से एक स्व-वित्तपोषित निकाय का गठन किया गया है।
    • इस तरह पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के प्रबंधन और रखरखाव की ज़िम्मेदारी को पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी से लेकर हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड को स्थानांतरित कर दी है, जो कि एक गैर-सिख निकाय है।

हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड’ (ETPB)

  • ‘हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड’ (ETPB) पाकिस्तान सरकार द्वारा गठित एक वैधानिक निकाय है, जिसका गठन वर्ष 1960 में किया गया था।
  • इस बोर्ड का मुख्य कार्य पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के धार्मिक स्थलों और ऐसे शैक्षिक, धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट की संपत्ति का प्रबंधन करना है, जिन्हें विभाजन के बाद भारत में पलायन करने वाले हिंदू और सिख समुदाय के लोगों द्वारा छोड़ दिया गया था।

चिंताएँ

  • कई सिख नेताओं ने चिंता ज़ाहिर करते हुए कहा है कि पाकिस्तान सरकार का यह निर्णय सिख तीर्थस्थलों से जुड़ी 'मर्यादा' (Maryada) अथवा ‘आचार संहिता’ के विरुद्ध है।
  • पाकिस्तान सरकार के इस निर्णय को एक धर्म विशेष के लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता के विरुद्ध भी देखा जा सकता है। ध्यातव्य है कि पाकिस्तान के करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब दुनिया भर के लाखों लोगों के लिये एक पूजनीय स्थल है और प्रत्येक वर्ष हज़ारों की संख्या में सिख तीर्थयात्री यहाँ आते हैं।
  • कई लोगों ने इस बात को लेकर भी चिंता व्यक्त की है कि पाकिस्तान सरकार द्वारा गठित नई प्रबंधन इकाई में सिख समुदाय के प्रतिनिधित्त्व का अभाव है।
    • हालाँकि पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने स्पष्ट किया है कि गुरुद्वारे के बाहर निर्माण, रखरखाव और सुरक्षा की व्यवस्था हिजरती ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ETPB) द्वारा की जाएगी, जबकि सिख गुरुद्वारे के अंदर अनुष्ठानों से संबंधित संपूर्ण व्यवस्था अभी भी पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के नियंत्रण में ही है।

गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर (GADSK)

  • गुरुद्वारा दरबार साहिब, करतारपुर रावी नदी के तट पर पाकिस्तान के नरोवाल ज़िले में स्थित है और पाकिस्तान में भारत-पाकिस्तान सीमा से लगभग 3-4 किमी. दूर है।
  • सिख धर्म का यह महत्त्वपूर्ण स्थल भारत के गुरदासपुर ज़िले में डेरा बाबा नानक से लगभग 4 किमी. दूर और पाकिस्तान के लाहौर से लगभग 120 किमी. उत्तर-पूर्व में स्थित है।
  • इस धर्मस्थल का निर्माण उस स्थान की याद में किया गया था जहाँ सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी ने अपनी मृत्यु (वर्ष 1539) से पूर्व 18 वर्ष बिताए थे। यही कारण है कि यह स्थान सिख धर्म के अनुयायियों के लिये काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
    • गुरुद्वारा दरबार साहिब को गुरुद्वारा ननकाना साहिब (गुरुद्वारा जन्म स्थान) के बाद सिख धर्म का दूसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है।
    • गुरुद्वारा ननकाना साहिब भी पाकिस्तान में ही स्थित है और इससे सिख धर्म के प्रवर्तक गुरु नानक देव जी की जन्मस्थली के रूप में जाना जाता है।
  • करतारपुर में मौजूद वर्तमान गुरुद्वारे को 19वीं सदी में महाराजा रणजीत सिंह द्वारा बनवाया गया था, क्योंकि वर्ष 1515 में गुरु नानक द्वारा स्थापित मूल निवास स्थान (गुरुद्वारा) रावी नदी में आई एक बाढ़ के कारण बह गया था। 

करतारपुर गलियारा

  • बीते वर्ष नवंबर माह में एक ऐतिहासिक पहल के तहत गुरदासपुर ज़िले में डेरा बाबा नानक को पाकिस्तान के गुरुद्वारा करतारपुर साहिब से जोड़ने वाले एक गलियारे की शुरुआत की गई थी।
  • अधिकांश जानकार इस गलियारे को भारत-पाकिस्तान के मध्य सांस्कृतिक रिश्ते को मज़बूत करने के एक नए अवसर के तौर पर देख रहे थे।
  • उम्मीद के मुताबिक यह गलियारा दोनों देशों के नागरिकों के मध्य संपर्क को बढ़ाएगा, जिससे दोनों देशों के लोगों को प्रेम, सहानुभूति और आध्यात्मिक विरासत के अदृश्य धागों के माध्यम से जुड़ने का अवसर मिलेगा।
  • हालाँकि इसी वर्ष मार्च माह में कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए करतारपुर गलियारा को बंद कर दिया गया था।

महत्त्व

  • सिख समुदाय खासतौर पर भारत में रहने वाले सिख समुदाय के लोगों द्वारा लंबे समय से गुरुद्वारा दरबार साहिब के लिये गलियारे की शुरुआत करने की मांग की जा रही थी, ताकि भारत से आने वाले तीर्थयात्रियों के लिये करतारपुर साहिब पहुँचना आसान और तुलनात्मक रूप से सस्ता हो जाए।

स्रोत: द हिंदू


SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम संबंधी दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये

SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम

मेन्स के लिये

न्यायालय के हालिया दिशा-निर्देश, SC/ST समुदाय से संबंधित अपराध से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक हालिया निर्णय में कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत केवल इस तथ्य के आधार पर कि पीड़ित अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, कोई अपराध तब तक स्थापित नहीं होता, जब तक कि यह सिद्ध न हो जाए कि पीड़ित को केवल इसलिये अपमानित किया गया, क्योंकि वह किसी जाति विशिष्ट से संबंधित है।

प्रमुख बिंदु

  • इस प्रकार न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव के नेतृत्त्व वाली खंडपीठ ने SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 (1) (x) और 3 (1) (e) के तहत आरोपी व्यक्ति के विरुद्ध लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया, जबकि इससे पूर्व उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने आरोपियों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने से इनकार कर दिया था।

न्यायालय का निर्णय

  • अधिनियम के प्रावधानों का उल्लेख करते हुए सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ ने कहा कि SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत तब तक किसी व्यक्ति के अपमान को अपराध नहीं माना जाएगा, जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि पीड़ित व्यक्ति को अनूसूचित जाति अथवा जनजाति से संबंधित होने के कारण अपमानित किया गया।
  • अदालत ने उल्लेख किया कि धारा 3 (1) (r) के तहत किसी भी कृत्य को अपराध घोषित करने हेतु आवश्यक है कि-
    • ऐसा कृत्य अनुसूचित जाति (SC) या अनुसूचित जनजाति (ST) के किसी सदस्य को अपमानित करने के इरादे से सार्वजनिक रूप से दृश्य किसी भी स्थान पर जान-बूझकर किया गया हो।
  • यहाँ न्यायालय ने सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान को भी परिभाषित करने का प्रयास किया है। वर्ष 2008 के स्वर्ण सिंह वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस तथ्य पर विचार किया था कि ‘सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान’ किसे माना जाएगा। इस वाद में न्यायालय ने ‘सार्वजनिक स्थान’ और ‘सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान’ के बीच अंतर किया था।
    • न्यायालय ने कहा था कि यदि किसी अपराध को घर की इमारत से बाहर जैसे- लॉन आदि में किया गया हो और उस क्षेत्र को घर की सीमा के बाहर से देखा जा सकता हो तो इस स्थिति में लॉन को सार्वजनिक रूप से दृश्य स्थान माना जाएगा।

SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम

  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग सदियों से शोषण और अत्याचार का सामना कर रहे हैं और मौजूदा समय में भी ऐसी कई घटनाएँ देखी जा सकती हैं, जहाँ किसी व्यक्ति का उत्पीड़नकेवल इसलिये  किया जाता है, क्योंकि वह किसी एक जाति विशिष्ट से संबंधित है।
  • इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 1989 में अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम पारित किया था।

प्रावधान

  • SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 में अलग-अलग तरह के ऐसे 22 कृत्यों को अपराध के तौर पर सूचीबद्ध किया गया है, जिनके कारण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित किसी व्यक्ति को अपमान का सामना करना पड़ता हो अथवा उसके स्वाभिमान या सम्मान को ठेस पहुँचती हो।
  • इसके अंतर्गत किसी व्यक्ति के साथ भेदभाव करना, कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग और किसी व्यक्ति के आर्थिक, लोकतांत्रिक एवं सामाजिक अधिकारों का उल्लंघन करना शामिल है।
  • इस तरह SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम के माध्यम से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से संबंधित लोगों को सामाजिक विकलांगता जैसे- किसी स्थान पर जाने से रोकना, द्वेषपूर्ण अभियोजन और आर्थिक शोषण आदि से सुरक्षा प्रदान करना है।
  • साथ ही ऐसे मामलों के लिये इस कानून के तहत विशेष न्यायालय बनाए जाते हैं जो ऐसे प्रकरण में तुरंत निर्णय लेते हैं।
  • इस कानून के तहत महिलाओं के विरुद्ध अपराधों में पीड़ित को राहत राशि देने और अलग से मेडिकल जाँच की भी व्यवस्था है।

उद्देश्य

  • इस अधिनियम को सदियों से अपमान और उत्पीड़न का सामना कर रहे समाज के कमज़ोर एवं संवेदनशील वर्ग की सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में सुधार के उद्देश्य से अधिनियमित किया गया था।
  • अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के लोगों को उनके अधिकारों से वंचित रखा गया है और तमाम तरह के कानूनों के बावजूद इन समुदायों के लोगों को कई स्तरों पर शोषण और भेदभाव का सामना करना पड़ता है।

SC/ST समुदाय से संबंधित अपराध और अधिनियम का दुरुपयोग

  • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों की मानें तो देश में प्रत्येक 15 मिनट में किसी अनुसूचित जाति समुदाय के व्यक्ति के विरुद्ध अपराध की घटना होती है।
  • वर्ष 2007 और वर्ष 2017 के बीच अनुसूचित जाति के लोगों के विरुद्ध होने वाले अपराधों में 66 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई थी।
  • हालाँकि आँकड़े यह भी बताते हैं कि किस तरह से इस अधिनियम का दुरुपयोग किया जा रहा है, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के ही आँकड़े बताते हैं कि वर्ष 2016 की पुलिस जाँच में अनुसूचित जाति को प्रताड़ित किये जाने के 5347 झूठे मामले सामने आए, जबकि अनुसूचित जनजाति के कुल 912 मामले झूठे पाए गए।
    • किंतु यहाँ इस बात पर ध्यान देना भी आवश्यक है कि ये झूठे मामले कुल मामलों का क्रमशः 9 प्रतिशत और 10 प्रतिशत ही हैं, यानी अधिनियम के तहत दर्ज किये गए 10 मामलों में से केवल 1 मामला ही झूठा दर्ज होता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


वर्चुअल ग्लोबल इनवेस्टर राउंडटेबल

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष

मेन्स के लिये:

देश में निवेश हेतु भारत सरकार के प्रयास 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने देश में निवेश आकर्षित करने के उद्देश्य से ‘वर्चुअल ग्लोबल इन्वेस्टर राउंडटेबल’ (Virtual Global Investor Roundtable- VGIR) की अध्यक्षता की। 

प्रमुख बिंदु:

  • VGIR प्रमुख वैश्विक संस्थागत निवेशकों, भारतीय उद्योगपतियों और भारत सरकार एवं वित्तीय बाज़ार नियामकों के शीर्ष नीति निर्धारकों के बीच एक विशेष वार्ता प्रक्रिया है। 
  • इसका आयोजन भारत सरकार के वित्त मंत्रालय और राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष (National Investment and Infrastructure Fund- NIIF) ने संयुक्त रूप से किया था। 
  • इस वार्ता प्रक्रिया में भारत में आर्थिक एवं निवेश के दृष्टिकोण से संरचनात्मक सुधारों को गति देने और वर्ष 2024-25 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के भारत सरकार के दृष्टिकोण के बारे में चर्चा की गई।

विशेषताएँ:

राष्ट्रीय निवेश एवं अवसंरचना कोष

(National Investment and Infrastructure Fund- NIIF):

  • राष्ट्रीय निवेश और अवसंरचना कोष (NIIF) देश में अवसंरचना क्षेत्र की वित्तीय समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करने वाला और वित्तपोषण सुनिश्चित करने वाला भारत सरकार द्वारा निर्मित  एक कोष है।
  • NIIF की स्थापना 40,000 करोड़ रुपए की मूल राशि के साथ की गई थी, जिसमें आंशिक वित्तपोषण निजी निवेशकों द्वारा किया गया था।
  • इसका उद्देश्य अवसंरचना परियोजनाओं का वित्तपोषण करना है, जिसमें अटकी हुई परियोजनाएँ शामिल हैं।
  • NIIF में 49% हिस्सेदारी भारत सरकार की है तथा शेष हिस्सेदारी विदेशी और घरेलू निवेशकों की है।
  • केंद्र की अति महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी के साथ NIIF को भारत का अर्द्ध-संप्रभु धन कोष माना जाता है।
  • अपने तीन फंडों- मास्टर फंड, फंड ऑफ फंड्स और स्ट्रैटेजिक फंड से परे यह 3 बिलियन डॉलर से अधिक की पूंजी का प्रबंधन करता है।
  • इसका पंजीकृत कार्यालय नई दिल्ली में है।

स्रोत: पीआईबी


भारतीयों का न्यूनतम बॉडी मास इंडेक्स

प्रिलिम्स के लिये:

बॉडी मास इंडेक्स

मेन्स के लिये:

बॉडी मास इंडेक्स

चर्चा में क्यों?

द लांसेट पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, 200 देशों में 19 वर्षीय लड़कियों और लड़कों के ‘बॉडी मास इंडेक्स’ में भारत क्रमशः नीचे से तीसरे और पाँचवें स्थान पर है।

प्रमुख बिंदु:

  • द लांसेट’ एक साप्ताहिक विशिष्ट-समीक्षा करने वाली सामान्य चिकित्सा पत्रिका है। यह दुनिया के सबसे पुराने और सबसे प्रसिद्ध सामान्य चिकित्सा पत्रिकाओं में से एक है।
  • अध्ययन में 200 देशों के 19 वर्षीय किशोरों के बीएमआई का तुलनात्मक विश्लेषण किया गया है।

बॉडी मास इंडेक्स (BMI)

  • बीएमआई या 'बॉडी मास इंडेक्स' की गणना किसी व्यक्ति की ऊँचाई और वज़न के आधार पर की जाती है। इसके लिये व्यक्ति के वज़न को (किग्रा. में), ऊँचाई (मीटर में) के वर्ग से विभाजित किया जाता है। 

फार्मूला: वज़न (किग्रा.) / [ऊँचाई (मीटर)]2

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के दिशा-निर्देशों के अनुसार, सामान्य बीएमआई 18.5 से 24.9 के बीच रहता है। 
  • यदि बीएमआई 25 या अधिक हो तो उसे अधिक वज़न (Overweight) के रूप में और यह 30 या उससे अधिक हो तो मोटापे (Obesity) के रूप में जाना जाता है।

भारत में बीएमआई की स्थिति:

BMI

  • भारत में 19 वर्षीय लड़कों का बीएमआई 20.1 है। भारतीय लड़कियों के लिये भी औसत बीएमआई लड़कों के समान 20.1 है। 
  • भारत में 19 वर्षीय लड़कों की औसत ऊँचाई 166.5 सेमी. है, वहीं यह लड़कियों के लिये 155.2 सेमी. है। 
  • भारत में औसत बीएमआई जहाँ 'कुक आइलैंड्स' (29.6 ) की तुलना में बहुत कम है, वहीं यह इथियोपिया (19.2) से कुछ ही अधिक है।

भारत में कम बीएमआई के कारण:

  • भारत जैसे विकासशील देशों में पोषण संबंधी दोहरा बोझ देखने को मिलता है, अर्थात् जहाँ एक तरफ अतिपोषण की स्थिति पाई जाती है, वहीं दूसरी ओर कुपोषण की समस्या भी देखने को मिलती है। 
  • भारत में विकसित देशों की तुलना में मोटापे तथा अधिक वज़न की समस्या कम देखने को मिलती है।
  • इसके अनेक कारण हो सकते हैं जैसे- एपीजेनेटिक (बिना गुणसूत्रों में परिवर्तन के आनुवंशिकी में बदलाव), डाइटरी इनटेक में बदलाव, पारिवारिक पृष्ठभूमि, मानसिकता, पैतृक व्यवस्था, शिक्षा प्रणाली, व्यवसाय, आय का स्तर आदि।

आगे की राह: 

  • बच्चों और किशोरों में अधिक वज़न और मोटापे की वृद्धि को रोकने के लिये भारत में नियमित आहार प्रदान करने और पोषण आधारित सर्वेक्षण किये जाने की आवश्यकता है। 
  • अधिक वज़न और मोटापा आगे जाकर इंसुलिन प्रतिरोध, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, सीवीडी (Cardiovascular Disease) स्ट्रोक और कुछ कैंसर जैसे कई चयापचय विकारों में वृद्धि का कारण बनता है। इन जोखिमयुक्त कारकों में बढ़ोतरी होने पर स्वास्थ्य स्थिति के संदर्भ में गंभीरता से विचार किये जाने की आवश्यकता है, ताकि समय रहते समस्या का समाधान किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


टेलीकॉम क्षेत्र के लिये लाइसेंसिंग प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण

मेन्स के लिये

राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 के प्रमुख बिंदु

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कई टेलीकॉम ऑपरेटरों ने सामूहिक रूप से विभिन्न श्रेणियों जैसे- बुनियादी संरचना, नेटवर्क, सेवा आदि के लिये अलग-अलग लाइसेंस व्यवस्था शुरू करने के कदम का विरोध किया है।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications) ने बताया कि राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति, 2018 के अंतर्गत शुरू किये गए 'प्रोपेल इंडिया (Propel India)’  मिशन में निवेश और नवाचार को प्रोत्साहित करने तथा ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस’ को बढ़ावा देने के लिये लाइसेंसिंग और नियामक व्यवस्था में सुधार की परिकल्पना की गई है।
  • विभिन्न श्रेणियों के लिये अलग-अलग लाइसेंस व्यवस्था की शुरुआत इस रणनीति को पूरा करने के लिये बनाए गए एक्शन प्लान में से एक है।
  • भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India) ने टेलीकॉम ऑपरेटरों से अनुरोध किया कि वे संभावित लाभ और उपायों पर जानकारी दें।

वर्तमान लाइसेंसिंग नियम:

  • भारत में टेलीकॉम लाइसेंस मुख्य रूप से भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 और भारतीय वायरलेस टेलीग्राफ अधिनियम, 1933  के तहत प्रदान किया जाता  है।
  • ये अधिनियम केंद्र सरकार को विशेष अधिकार प्रदान करते हैं जिससे  टेलीग्राफ और वायरलेस टेलीग्राफ संबंधित उपकरण की स्थापना, रखरखाव और काम करने तथा इससे जुड़ी गतिविधियों के लिये लाइसेंस प्रदान किया जाता है।
    • वर्ष 1885 का अधिनियम "टेलीग्राफ" को किसी भी उपकरण, यंत्र, सामग्री  के रूप में परिभाषित करता है। "टेलीग्राफ" किसी भी प्रकार के चिह्नों, संकेतों, लेखन, चित्र और ध्वनियों के प्रसारण के लिये रेडियो तरंगों, हर्ट्ज़ियन तरंगों, गैल्वेनिक, विद्युत या चुंबकीय तारों का उपयोग करने में सक्षम है।
  • नवंबर 2003 में यूनीफाइड एक्सेस सर्विस लाइसेंस (Unified Access Service License) शासन के समक्ष पेश किया गया था जो एक एक्सेस सेवा प्रदाता (Access Service Provider) को किसी भी तकनीक का उपयोग करके एक ही लाइसेंस के तहत फिक्स्ड (Fixed) या मोबाइल से संबंधित या दोनों सेवाओं के उपयोग की अनुमति देता है। यह वर्ष 2013 में अस्तित्व में आया।
  • जून 2012 में लाइसेंसिंग ढाँचे को सरल बनाने और सेवाओं तथा सेवा क्षेत्रों में न नेशन-वन लाइसेंसके निर्माण के प्रयास के उद्देश्य से राष्ट्रीय दूरसंचार नीति जारी की गई थी।

चयनित मुद्दे:

  • नेटवर्क लाइसेंस को अलग करने से लाइसेंसिंग शासन में अनिश्चितता आएगी और नेटवर्क क्षेत्र में भविष्य में होने वाले निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
    • नेटवर्क और सेवा के लिये लाइसेंस मिलना, नेटवर्क में निवेश करने वाले ऑपरेटर को स्पष्टता और निश्चितता प्रदान करता है।
  • इस तरह के किसी भी बदलाव के लिये व्यावसायिक मॉडलों को फिर से संगठित करना होगा जो कि प्रतिकूल होगा।
  • मौजूदा लाइसेंसिंग व्यवस्था के तहत एकीकरण की प्रक्रिया को पूरा किया जाना बाकी है। 

लागू करने से संबंधित सुझाव:

  • मौजूदा लाइसेंस की वैधता तक लाइसेंस का कोई अनिवार्य स्थानांतरण नहीं होना चाहिये।
  • विशेष रूप से पिछले 10 वर्षों में किये गए निवेश के लिये एक स्पष्ट मुआवज़े से संबंधित कार्यप्रणाली की गणना की जानी चाहिये।
  • दूरसंचार क्षेत्र के खराब वित्तीय स्वास्थ्य के अंतर्निहित मुद्दे का समाधान किया जाना चाहिये।
    • टेलीकॉम इंफ्रास्ट्रक्चर को मज़बूत करना जिसके लिये भारी फंड जुटाने की आवश्यकता होगी। अगले 2-3 वर्षों में अनुमानित रूप से 2,00,000 करोड़।
  • सरकार द्वारा प्रोत्साहन प्रदान करने, नियामक लागत को कम करने, मौजूदा सेवा प्रदाताओं को उचित नीति और वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करने की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • दूरसंचार सेवा प्रदाताओं द्वारा असमूहीकरण (Unbundling) को ‘न तो आवश्यक और न ही वांछनीय’ कहा गया है।
  • ऐसे बदलावों की आवश्यकता है, जिनके लिये व्यावसायिक मॉडल को उस समय फिर से आकार देना पड़ता है जब मौजूदा निवेश पहले से पूरी तरह से पुनर्प्राप्त नहीं होते हैं।
  • इसलिये एक अन्य लाइसेंसिंग ढाँचे की सिफारिश या इसे लागू करने के बजाय इस क्षेत्र में मौजूद अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने की आवश्यकता है ताकि अस्पष्टता और अतिरिक्त चुनौतियों का सामना किया जा सके।

दूरसंचार आयोग

  • भारत सरकार ने दूरसंचार से संबंधित विभिन्न पहलुओं के समाधान के लिये भारत सरकार की प्रशासनिक और वित्तीय शक्तियों सहित दूरसंचार आयोग की स्थापना 11 अप्रैल, 1989 की अधिसूचना द्वारा की।
  • आयोग एक अध्यक्ष, चार पूर्णकालिक सदस्य,जो कि दूरसंचार विभाग में भारत सरकार के पदेन सचिव हैं और चार अंशकालिक सदस्य, जो कि संबंधित विभागों में भारत सरकार के सचिव हैं,से मिलकर बना है।

स्रोत: द हिंदू