2023-24 के लिये वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI)
प्रिलिम्स के लिये: उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय, औद्योगिक उत्पादन सूचकांक, उत्पादन से जुड़ी पहल
मेन्स के लिये: भारत का औद्योगिक विकास, भारत के विनिर्माण और औद्योगिक क्षेत्र में अवसर और चुनौतियाँ।
चर्चा में क्यों?
सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने 2023-24 के लिये वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI) जारी किया है।
2023-24 के लिये वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI) की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
- सकल मूल्य संवर्द्धन (GVA): इसमें 11.89% की वृद्धि हुई, जो कि आउटपुट (5.80%) और इनपुट (4.71%) दोनों से अधिक है, जिससे बेहतर दक्षता तथा उच्च मूल्य सृजन का पता चलता है।
- GVA के संदर्भ में शीर्ष उद्योग: विकास का नेतृत्व मूल धातुओं, मोटर वाहनों, रसायनों, खाद्य उत्पादों और फार्मास्यूटिकल्स द्वारा किया गया, जो उद्योग निर्यात-उन्मुख और श्रम-प्रधान दोनों हैं।
- इन क्षेत्रों ने कुल औद्योगिक उत्पादन में लगभग 48% का योगदान दिया।
- GVA द्वारा शीर्ष 5 राज्य: महाराष्ट्र (16%), गुजरात (14%), तमिलनाडु (10%), कर्नाटक (7%) और उत्तर प्रदेश (7%)।
- GVA के संदर्भ में शीर्ष उद्योग: विकास का नेतृत्व मूल धातुओं, मोटर वाहनों, रसायनों, खाद्य उत्पादों और फार्मास्यूटिकल्स द्वारा किया गया, जो उद्योग निर्यात-उन्मुख और श्रम-प्रधान दोनों हैं।
- रोज़गार: रोज़गार में वर्ष-दर-वर्ष 5.92% की वृद्धि दर्ज की गई, जो दर्शाता है कि औद्योगिक वृद्धि ने रोज़गार के अवसरों में रूपांतरण किया है। इस क्षेत्र ने पिछले एक दशक (2014-15 से 2023-24) के दौरान 50 लाख से अधिक (कुल 57 लाख) नई नौकरियाँ प्रदान की हैं।
- औसत वेतन (Average Emoluments) में 5.6% की वृद्धि हुई, जो कि उत्पादन वृद्धि के अनुरूप रही। हालाँकि वेतन में हुई बढ़ोतरी अब भी कुल सकल मूल्यवर्द्धन (GVA) की वृद्धि से पीछे है।
- रोज़गार के मामले में तमिलनाडु, गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक शीर्ष 5 राज्य हैं।
उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI)
- सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) ASI का संचालन करता है तथा सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय इसकी कवरेज और डेटा गुणवत्ता सुनिश्चित करता है।
- ASI के अंतर्गत कारखाना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत पंजीकृत कारखाने, बीड़ी एवं सिगार श्रमिक अधिनियम, 1966 के अंतर्गत बीड़ी एवं सिगार इकाइयाँ, केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (CEA) के साथ पंजीकृत नहीं होने वाले विद्युत उपक्रम तथा राज्य सरकारों द्वारा बनाए गए प्रतिष्ठानों के व्यवसाय रजिस्टर (BRE) में सूचीबद्ध 100 या अधिक कर्मचारियों वाले बड़े प्रतिष्ठान आते हैं।
- ASI में प्रयुक्त प्रमुख अवधारणाएँ एवं परिभाषाएँ:
- सकल मूल्यवर्द्धन (GVA): उत्पादन प्रक्रिया द्वारा सृजित अतिरिक्त मूल्य। इसकी गणना कुल उत्पादन में से कुल आगत के मूल्य को घटाकर की जाती है।
- कुल वेतन और भत्ते (Total Emoluments): यह मज़दूरी, सैलरी और बोनस सहित सभी प्रकार के भुगतान का योग होता है।
भारत के औद्योगिक क्षेत्र के लिये अवसर और चुनौतियाँ क्या हैं?
अवसर |
चुनौतियाँ |
अखिल भारतीय औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) ने अगस्त 2025 में वर्ष-दर-वर्ष 4.0% की वृद्धि दर्ज की। सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की 17% हिस्सेदारी आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने के अवसर पैदा करती है। |
रसद, विद्युत, जल, बंदरगाह और भंडारण संबंधी कमियाँ रसद लागत में कमी के बावजूद दक्षता में बाधा डालती हैं। |
भारत ने वित्त वर्ष 2024-25 में 81.04 बिलियन अमरीकी डॉलर का सकल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित किया, जिसमें विनिर्माण FDI में 18% की वृद्धि हुई, जिससे भारत एक वैश्विक निवेश केंद्र के रूप में स्थापित हुआ। |
सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) को बढ़ते वाणिज्यिक ऋण जोखिम के बावजूद ऋण अंतराल और उच्च उधारी लागत का सामना करना पड़ रहा है। |
प्रमुख उद्योगों (इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मा, ऑटोमोटिव, वस्त्र) में तीव्र आधुनिकीकरण से उच्च मूल्य संवर्द्धन और वैश्विक नेतृत्व के अवसर उपलब्ध होते हैं। |
चीन और वियतनाम जैसे कम लागत वाले उत्पादक भारतीय निर्माताओं के लिये चुनौती बने हुए हैं, सीमित अनुसंधान एवं विकास तथा कमज़ोर डिज़ाइन क्षमताएँ वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को बाधित करती हैं। MSME के बीच उद्योग 4.0 को असमान रूप से अपनाना तथा स्वचालन से रोज़गार विस्थापन की चिंताएँ विकास को सीमित कर रही हैं। |
उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI), GST सुधार, राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन और पीएम मित्र पार्क जैसी पहल परिचालन को बढ़ाने तथा निवेश आकर्षित करने के अवसर पैदा करती हैं। |
गैर-टैरिफ बाधाएँ, मुक्त व्यापार समझौते (FTA) की सावधानी और बढ़ते टैरिफ (जैसे, भारतीय निर्यात पर अमेरिका का 50%) प्रतिस्पर्द्धात्मकता को प्रभावित करते हैं। |
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से कार्यबल का कौशल उन्नयन तथा युवा-केंद्रित नीतियाँ समावेशी रोज़गार सृजन को बढ़ावा दे रही हैं। |
कार्यबल का केवल 4.7% ही औपचारिक रूप से प्रशिक्षित है, शैक्षणिक प्रशिक्षण और औद्योगिक आवश्यकताओं के बीच असंतुलन उन्नत प्रौद्योगिकियों को अपनाने में बाधा डालता है। |
हरित विनिर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और नेट-ज़ीरो लक्ष्य नवाचार और वैश्विक बाज़ार संरेखण के लिये अवसर प्रस्तुत करते हैं। |
डीकार्बोनाइज़ेशन, नेट-ज़ीरो प्रतिबद्धताएँ, इथेनॉल सम्मिश्रण और वैश्विक हरित मानकों के अनुपालन से उत्पादन लागत में वृद्धि होती है। |
भारत में औद्योगिक क्षेत्र की गति को कौन-से उपाय मज़बूत कर सकते हैं?
- रणनीतिक औद्योगिक गलियारे और स्मार्ट सिटीज़: स्मार्ट सिटीज़ के साथ राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा कार्यक्रम का विस्तार करने से कनेक्टिविटी बढ़ती है, रसद लागत कम होती है और संतुलित क्षेत्रीय औद्योगिक विकास के लिये निवेश आकर्षित होता है।
- मिशन-संचालित क्षेत्रीय विकास: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन (NMM), मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत पहलों का लाभ उठाकर इलेक्ट्रॉनिक्स, EV बैटरी, फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र एवं नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- ये मिशन नीतिगत स्पष्टता, राजकोषीय प्रोत्साहन और वैश्विक संबंध प्रदान करते हैं।
- कौशल विकास और कार्यबल की तैयारी: PMKVY, स्किल इंडिया और क्षेत्रीय कौशल पहल जैसे कार्यक्रम तकनीकी विशेषज्ञता में अंतर को कम करते हुए उन्नत विनिर्माण हेतु कार्यबल को तैयार करते हैं।
- वित्तीय समावेशन और MSME समर्थन: क्रेडिट गारंटी फंड योजना के माध्यम से ऋण तक पहुँच में वृद्धि, तेज़ी से GST रिफंड और स्टार्टअप प्रोत्साहन यह सुनिश्चित करते हैं कि MSME अपने संचालन को बढ़ा सकें, नवाचार कर सकें और वैश्विक मूल्य शृंखलाओं में सम्मिलित हो सकें।
- संधारणीयता और हरित विनिर्माण: नवीकरणीय ऊर्जा के अपनाने को बढ़ावा देना, सर्कुलर अर्थव्यवस्था के अभ्यास को प्रोत्साहित करना और वैश्विक मानकों (जैसे, यूरोपीय संघ (EU) द्वारा एक कार्बन सीमा समायोजन तंत्र – (CBAM)) का पालन करना, भारत को पर्यावरण-सचेत निर्माता के रूप में स्थापित करता है और निर्यात क्षमता को सुदृढ़ करता है।
- सौर पीवी मॉड्यूल और हरित हाइड्रोजन मिशन के लिये PLI योजना औद्योगिक विकास को संधारणीयता के साथ संरेखित करने के उदाहरण हैं।
- व्यापार सुगम्यता और वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाएँ: मुक्त व्यापार समझौतों (FTA) में सुधार करना, गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना और जापान की परस्पर जुड़ी कंपनियों के क्लस्टर-आधारित औद्योगिकीकरण से प्राप्त पाठों को एकीकृत करना, भारत की निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता और मूल्य शृंखला एकीकरण को मज़बूत कर सकता है।
निष्कर्ष
जैसे ही भारत वर्ष 2047 तक 35 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य रखता है, सुधारों, PLI, राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन और कौशल पहलों द्वारा संचालित विनिर्माण इसका विकास इंजन बनेगा। मज़बूत गति, लचीली आपूर्ति शृंखलाएँ और अनुकूल वैश्विक पुनर्संरेखण भारत को केवल “विश्व की फैक्ट्री” ही नहीं, बल्कि नवाचार और औद्योगिक नेतृत्व का वैश्विक केंद्र बनने की स्थिति में लाते हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के संदर्भ में भारत के विनिर्माण क्षेत्र के अवसरों और चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. वार्षिक उद्योग सर्वेक्षण (ASI) क्या है?
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा संचालित ASI, पंजीकृत कारखानों, विद्युत उपक्रमों और बड़े प्रतिष्ठानों से संबंधित औद्योगिक आँकड़ों का प्रमुख स्रोत है।
2. ASI 2023-24 में GVA वृद्धि क्या थी?
सकल मूल्यवर्द्धन में 11.89% की वृद्धि हुई, जो मूल धातुओं, मोटर वाहनों, रसायनों, खाद्य उत्पादों और फार्मास्यूटिकल्स के कारण हुई।
3. 2023-24 में औद्योगिक जीवीए में कौन से राज्य अग्रणी रहे?
महाराष्ट्र (16%), गुजरात (14%), तमिलनाडु (10%), कर्नाटक (7%) और उत्तर प्रदेश (7%) शीर्ष प्रदर्शनकर्ता रहे।
4. भारत के औद्योगिक क्षेत्र के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
प्रमुख चुनौतियों में अवसंरचना की खामियाँ, कौशल की कमी, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) के लिये ऋण सीमाएँ, वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा, संधारणीयता अनुपालन और उच्च अमेरिकी टैरिफ तथा यूरोपीय संघ के CBAM जैसे व्यापार अवरोध शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. 'आठ मूल उद्योगों के सूचकांक (इंडेक्स ऑफ एट कोर इंडस्ट्रीज़)' में निम्नलिखित में से किसको सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है? (2015)
(a) कोयला उत्पादन
(b) विद्युत् उत्पादन
(c) उर्वरक उत्पादन
(d) इस्पात उत्पादन
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न.1 "सुधारोत्तर अवधि में सकल-घरेलू-उत्पाद (जी.डी.पी.) की समग्र संवृद्धि में औद्योगिक संवृद्धि दर पिछड़ती गई है।" कारण बताइये। औद्योगिक-नीति में हाल में किये गए परिवर्तन औद्योगिक संवृद्धि दर को बढ़ाने में कहॉं तक सक्षम हैं ? (2017)
प्रश्न.2 सामान्यतः देश कृषि से उद्योग और बाद में सेवाओं को अंतरित होते हैं पर भारत सीधे ही कृषि से सेवाओं को अंतरित हो गया है। देश में उद्योग के मुकाबले सेवाओं की विशाल संवृद्धि के क्या कारण हैं? क्या भारत सशक्त औद्योगिक आधार के बिना एक विकसित देश बन सकता है? (2014)
भारत में बेरोज़गारी के जाल का निराकरण
प्रिलिम्स के लिये: अल्प-रोज़गार, सकल घरेलू उत्पाद, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (MGNREGA), आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, बेरोज़गारी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, MSME, स्टार्टअप इंडिया, उत्पादन-संबद्ध प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ
मेन्स के लिये: भारत में बेरोज़गारी की स्थिति, बेरोज़गारी के कारण और परिणाम, रोज़गार के लिये सरकारी पहलें और बेरोज़गारी का निराकरण करने हेतु आवश्यक उपाय।
चर्चा में क्यों?
एक अग्रणी वैश्विक वित्तीय सेवा फर्म के अनुसार, भारत को इसके युवा वर्ग हेतु पर्याप्त रोज़गार सृजित करने और अल्प-रोज़गार की समस्या का समाधान करने के लिये लगभग दोगुनी गति (लगभग 12%) से विकास करना अत्यावश्यक है, जबकि इसकी तुलना में, RBI ने वित्त वर्ष 2025 के लिये केवल 6.5% GDP संवृद्धि का अनुमान लगाया है, जो 10-वर्ष के औसत 6.1% से थोड़ा अधिक है, जो विकास-रोज़गार के बीच महत्त्वपूर्ण अंतराल को उजागर करता है।
भारत में बेरोज़गारी की स्थिति क्या है?
- परिचय: बेरोज़गारी का तात्पर्य ऐसी स्थिति से है, जब कोई व्यक्ति जो बेरोज़गार है और रोज़गार की तलाश में है, उसे कार्य का अवसर नहीं मिलता। बेरोज़गारी किसी भी अर्थव्यवस्था की स्थिति का एक प्रमुख संकेतक है। इसकी गणना इस प्रकार की जाती है:
- बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल) × 100
- कुल श्रम बल में कार्य में नियोजित और बेरोज़गार दोनों प्रकार के व्यक्तियों को शामिल किया जाता है, जबकि वे लोग जो न तो नियोजित हैं और न ही रोज़गार की तलाश में हैं—जैसे विद्यार्थी—इसमें शामिल नहीं हैं।
- बेरोज़गारी दर = (बेरोज़गार श्रमिकों की संख्या/कुल श्रम बल) × 100
- भारत में बेरोज़गारी की स्थिति:
- युवाओं में उच्च बेरोज़गारी: नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, भारत की समग्र बेरोज़गारी दर घटकर 5.1% हो गई, लेकिन 15-29 वर्ष के युवाओं में यह दर 14.6% के उच्च स्तर पर बनी रही।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 के अनुसार भारत में प्रत्येक तीन में से एक बेरोज़गार व्यक्ति युवा वर्ग से है।
- तुलनात्मक संदर्भ: एशिया में युवा बेरोज़गारी दर 16% है, जो अमेरिका की 10.5% से अधिक है और भारत, चीन, तथा इंडोनेशिया में युवाओं के सामने सबसे अधिक रोज़गार संबंधी चुनौतियाँ हैं।
- युवाओं में उच्च बेरोज़गारी: नवीनतम आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) के अनुसार, भारत की समग्र बेरोज़गारी दर घटकर 5.1% हो गई, लेकिन 15-29 वर्ष के युवाओं में यह दर 14.6% के उच्च स्तर पर बनी रही।
- बेरोज़गारी के प्रकार:
भारत में बेरोज़गारी के क्या कारण हैं?
- जनसांख्यिकीय दबाव: विश्व बैंक चेतावनी देता है कि भारत सहित दक्षिण एशिया अपनी जनसांख्यिकीय लाभांश का पूरी तरह लाभ नहीं उठा पा रहा है, क्योंकि वर्ष 2000–2023 के दौरान रोज़गार केवल 1.7% वार्षिक बढ़ा, जबकि कार्य-आयु जनसंख्या में 1.9% की वृद्धि हुई, जिससे रोज़गार अंतर बढ़ गया।
- कौशल बेमेल: केवल 4.7% भारतीय श्रम शक्ति ने औपचारिक कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है, जिसके परिणामस्वरूप कार्यबल का पूरा उपयोग नहीं हो पा रहा है। उद्योग-संबंधी कौशल में शिक्षा प्रणाली की कमी ने उच्च बेरोज़गारी के साथ-साथ प्रतिभा की कमी का विरोधाभास उत्पन्न किया है।
- शिक्षित युवा अक्सर शारीरिक श्रम या फैक्ट्री और निर्माण जैसे ब्लू-कॉलर कार्यों के बजाय कार्यालयीन और प्रबंधकीय जैसे वाइट-कॉलर नौकरियों को प्राथमिकता देते हैं, जिससे उच्च शिक्षित बेरोज़गारी उत्पन्न होती है।
- बेरोज़गारी विकास: भारत की 6.5–7.8% की आर्थिक वृद्धि पर्याप्त रोज़गार सृजन नहीं कर रही है, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में, क्योंकि भारत का केवल 1.8% वैश्विक निर्यात हिस्सा विनिर्माण रोज़गार को सीमित करता है।
- लैंगिक असमानता: शहरी महिलाओं में बेरोज़गारी दर (आयु 15–29 वर्ष) 25.7% है, जो पुरुषों की 15.6% दर से कहीं अधिक है और यह कार्यबल में भागीदारी के सामाजिक और संरचनात्मक अवरोधों को उजागर करती है।
- आगामी तकनीकी व्यवधान: स्वचालन और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उदय से भारत में 69% तक नौकरियों को खतरा है (विश्व बैंक), विशेषकर विनिर्माण, डेटा एंट्री और ग्राहक सेवा क्षेत्रों में, जिससे पुनःकौशल विकास और नीतिगत अनुकूलन अत्यंत आवश्यक हो जाता है।
- मौसमी रोज़गार और कृषि पर निर्भरता: वर्ष 2022–23 में, भारत की लगभग 45.76% श्रम शक्ति कृषि और संबंधित क्षेत्रों में थी, जो मुख्यतः मौसमी और कम वेतन वाली नौकरियाँ प्रदान करती थी, जबकि सीमित गैर-कृषि अवसरों ने ग्रामीण अल्परोज़गार और प्रवासन दबाव को और बढ़ा दिया।
बेरोज़गारी अर्थव्यवस्था और समाज को कैसे प्रभावित करती है?
- आर्थिक निष्क्रियता: बेरोज़गारी से GDP का नुकसान और मानव पूंजी की बर्बादी होती है, जिससे मांग कम होती है और घटते उपभोक्ता खर्च के कारण व्यवसायों में और कटौती करने का चक्र बन जाता है।
- गरीबी और असमानता में वृद्धि: बेरोज़गारी सीधे गरीबी का कारण बनती है और आय अंतर को बढ़ाती है, क्योंकि स्थिर आय के बिना परिवार बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये संघर्ष करते हैं।
- सामाजिक अस्थिरता: उच्च बेरोज़गारी, विशेषकर युवाओं में, व्यापक निराशा और अलगाव के कारण सामाजिक अशांति, अपराध और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देती है।
- मानसिक स्वास्थ्य और कौशल में कमी: लंबे समय तक बेरोज़गारी रहने से व्यक्ति में मानसिक तनाव और कौशल में कमी उत्पन्न हो जाती है, जिससे समय के साथ उसकी रोज़गार क्षमता और आत्म-सम्मान दोनों प्रभावित होते हैं।
- सरकार पर राजकोषीय बोझ: बेरोज़गारी के कारण कल्याणकारी लाभों पर सरकारी खर्च बढ़ जाता है, जबकि कर राजस्व में कमी आती है, जिससे राजकोषीय घाटा और अधिक बढ़ जाता है।
रोज़गार सृजन के लिये भारत द्वारा उठाए गए कदम
- पीएम-दक्ष (प्रधानमंत्री दक्षता और कुशलता संपन्न हितग्राही)
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना (MGNREGA)
- स्टार्ट अप इंडिया योजना
- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन (SMILE)
- PM स्वनिधि योजना: यह योजना स्ट्रीट वेंडर्स को COVID-19 से प्रभावित उनके व्यवसायों को दोबारा शुरू करने के लिये बिना गारंटी कार्यशील पूंजी ऋण प्रदान करती है।
- PM विश्वकर्मा योजना: गुरु-शिष्य परंपरा को बढ़ावा देते हुए पारंपरिक कारीगरों को अंत तक सहायता प्रदान करती है।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020: युवाओं की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के लिये कक्षा 9 से व्यावसायिक शिक्षा शुरू की गई।
- दीन दयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (DAY-NRLM): स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से ग्रामीण गरीब महिलाओं को सशक्त बनाना, स्थायी आजीविका को बढ़ावा देना।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना: युवाओं की रोज़गार क्षमता में सुधार के लिये उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करती है।
भारत में बेरोज़गारी से निपटने के लिये किन सुधारों की आवश्यकता है?
- श्रम-प्रधान विनिर्माण को बढ़ावा देना: व्यापार समझौतों के माध्यम से निर्यात प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करते हुए वस्त्र, परिधान, चमड़ा, खाद्य प्रसंस्करण और इलेक्ट्रॉनिक्स असेंबली जैसे उच्च रोज़गार गुणक क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना।
- कौशल अंतराल को कम करना: शिक्षा को बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाते हुए व्यावसायिक और व्यावहारिक कौशल (जैसे AI, डेटा एनालिटिक्स, IoT) को सम्मिलित किया जाए तथा भविष्य के लिये तैयार कार्यबल हेतु प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसे पुनः कौशल (Reskilling) और उन्नत कौशल (Upskilling) कार्यक्रमों का विस्तार किया जाना चाहिये।
- MSME को समर्थन: MSME के लिये ऋण तक पहुँच को आसान बनाना और अनुपालन को कम करना, साथ ही स्टार्टअप इंडिया, मेंटरशिप, पेटेंट समर्थन तथा एक मज़बूत उद्यम पूंजी इकोसिस्टम के माध्यम से स्टार्ट-अप को बढ़ावा देना।
- कृषि में अल्परोज़गारी की समस्या का समाधान: कृषि आधारित उद्योगों, खाद्य प्रसंस्करण और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में विविधता लाना तथा पशुपालन, मत्स्यन एवं मधुमक्खी पालन जैसी वैकल्पिक आजीविका को मज़बूत करना।
- रणनीतिक सरकारी पहल: बुनियादी ढाँचे (सड़क, रेलवे, बंदरगाह, आवास) में सार्वजनिक निवेश को बनाए रखना और विनिर्माण को बढ़ावा देने तथा रोज़गार सृजन के लिये उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाओं जैसी प्रमुख योजनाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
निष्कर्ष
भारत में बेरोज़गारी, विशेषकर युवाओं एवं शहरी महिलाओं के बीच, बेरोज़गारी विहीन वृद्धि, कौशल असंतुलन, अल्प-रोज़गार और तकनीकी व्यवधान के कारण एक गंभीर चुनौती बनी हुई है। इस समस्या से निपटने के लिये उच्च सकल घरेलू उत्पाद वृद्धि, श्रम-प्रधान विनिर्माण, कौशल विकास, MSME समर्थन, ग्रामीण विविधीकरण और स्थायी रोज़गार तथा जनसांख्यिकीय लाभांश के इष्टतम उपयोग को सुनिश्चित करने वाली रणनीतिक सरकारी पहलों की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत में 'बेरोज़गारी विहीन वृद्धि' की परिघटना का समालोचनात्मक विश्लेषण कीजिये। आर्थिक वृद्धि को और अधिक रोज़गार-प्रधान बनाने के उपाय सुझाइये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. बेरोज़गारी क्या है?
बेरोज़गारी तब होती है जब प्रचलित मज़दूरी पर कार्य करने के इच्छुक और सक्षम व्यक्ति रोज़गार नहीं पा पाते।
2. 'बेरोज़गारी विहीन वृद्धि' का क्या अर्थ है?
बेरोज़गारी विहीन वृद्धि उस स्थिति को कहते हैं जहाँ अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ती है, लेकिन आनुपातिक रोज़गार के अवसर पैदा नहीं कर पाती, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में।
3. समग्र और युवा बेरोज़गारी दरों के बीच इतना बड़ा अंतर क्यों है?
भारत में कुल बेरोज़गारी 5.1% है, जबकि कौशल असंतुलन, तेज़ी से कार्यबल विस्तार और संगठित क्षेत्रों में प्रवेश स्तर पर अपर्याप्त रोज़गार सृजन के कारण युवा बेरोज़गारी 14.6% है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. प्रधानमंत्री MUDRA योजना का लक्ष्य क्या है? (2016)
(a) लघु उद्यमियों को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में लाना
(b) निर्धन कृषकों को विशेष फसलों की कृषि के लिये ऋण उपलब्ध कराना
(c) वृद्ध एवं निस्सहाय लोगों को पेंशन प्रदान करना
(d) कौशल विकास एवं रोज़गार सृजन में लगे स्वयंसेवी संगठनों का निधियन करना
उत्तर: (a)
प्रश्न: प्रच्छन्न बेरोज़गारी का आमतौर पर अर्थ होता है- (2013)
(a) बड़ी संख्या में लोग बेरोज़गार रहते हैं
(b) वैकल्पिक रोज़गार उपलब्ध नहीं है
(c) श्रम की सीमांत उत्पादकता शून्य है
(d) श्रमिकों की उत्पादकता कम है
उत्तर:(c)
मेन्स
प्रश्न: भारत में सबसे ज्यादा बेरोज़गारी प्रकृति में संरचनात्मक है। भारत में बेरोज़गारी की गणना के लिये अपनाई गई पद्धतियों का परीक्षण कीजिये और सुधार के सुझाव दीजिये। (2023)
प्रश्न. हाल के समय में भारत में आर्थिक संवृद्धि की प्रकृति का वर्णन अक्सर नौकरीहीन संवृद्धि के तौर पर किया जाता है। क्या आप इस विचार से सहमत हैं? अपने उत्तर के समर्थन में तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2015)
भारत में खाद्यान्न भंडारण
तीसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, भारत ने वर्ष 2024-25 के लिये 353.96 मिलियन टन का रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन प्राप्त किया है। इस अधिशेष को संरक्षित करने के लिये, फसलोपरांत होने वाले नुकसान को कम करने, सुरक्षित भंडारण सुनिश्चित करने और कीमतों को स्थिर रखने हेतु आधुनिक भंडारण अवसंरचना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
भारत में खाद्यान्न भंडारण प्रणाली क्या है?
- परिचय: भारत में खाद्यान्न भंडारण प्रणाली सुविधाओं एवं तंत्रों का एक नेटवर्क है, जिसे फसलोपरांत खाद्यान्नों को संरक्षित करने, कटाई के बाद होने वाले नुकसान को रोकने और उपभोक्ताओं तथा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के लिये पूरे वर्ष उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
- यह केंद्रीकृत, विकेंद्रीकृत और कोल्ड स्टोरेज अवसंरचनाओं को एकीकृत करता है। किसानों, राज्य एजेंसियों एवं बाज़ारों को जोड़ता है।
- उत्पादित खाद्यान्न का लगभग 60-70% छोटे किसानों द्वारा घरेलू स्तर पर मोराई और मड कोठी (Mud Kothi) जैसी पारंपरिक स्वदेशी भंडारण विधियों का उपयोग करके संग्रहीत किया जाता है।
भारत में भंडारण प्रणाली
- सरकारी भंडारण एजेंसियॉं:
- भारतीय खाद्य निगम (FCI): संसद के एक अधिनियम के माध्यम से वर्ष 1965 में स्थापित, FCI भारत में खाद्यान्न भंडारण के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख एजेंसी है।
- यह पूरे देश में साइलो, गोदामों और कवर एंड प्लिंथ (CAP) संरचनाओं सहित खाद्य भंडारण डिपो संचालित करता है।
- वर्तमान में, FCI और राज्य एजेंसियाँ 917.83 लाख मीट्रिक टन क्षमता का प्रबंधन करती हैं।
- केंद्रीय भंडारण निगम (CWC): भंडारण निगम अधिनियम, 1962 के तहत स्थापित CWC कृषि उपज और अन्य अधिसूचित वस्तुओं के भंडारण का प्रबंधन करता है।
- राज्य भंडारण निगम: ये निगम प्रत्येक राज्य के भीतर कुछ वस्तुओं के भंडारण को विनियमित करने के लिये संबंधित राज्य भंडारण अधिनियमों के तहत स्थापित किये जाते हैं।
- भारतीय खाद्य निगम (FCI): संसद के एक अधिनियम के माध्यम से वर्ष 1965 में स्थापित, FCI भारत में खाद्यान्न भंडारण के लिये ज़िम्मेदार प्रमुख एजेंसी है।
- निजी एजेंसियाँ:
- FCI भंडारण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये निजी मालिकों से भंडारण क्षमता भी किराए पर लेता है।
- अन्य हितधारक:
- अनाज प्रबंधन में प्रमुख योगदानकर्त्ताओं में भांडागारण विकास एवं विनियामक प्राधिकरण (WDRA), रेलवे और राज्यों के नागरिक आपूर्ति विभाग शामिल हैं।
खाद्यान्न भंडारण का महत्त्व
- कटाई के बाद के नुकसान को कम करना: उचित भंडारण मात्रा और गुणवत्ता को बनाए रखता है।
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना: सार्वजनिक वितरण प्रणाली और राष्ट्रीय आपात स्थितियों के लिये बफर स्टॉक बनाए रखता है।
- मूल्य स्थिरीकरण: रणनीतिक भंडारण अत्यधिक मूल्य उतार-चढ़ाव को रोकता है।
- किसानों की आय में वृद्धि: किसानों को संकटकालीन बिक्री से बचाते हुए, इष्टतम समय पर बिक्री करने में सक्षम बनाता है।
- खाद्य प्रसंस्करण और आपूर्ति शृंखला को मज़बूत करना: उद्योगों के लिये कच्चे माल की उपलब्धता और निर्यात क्षमता प्रदान करता है।
भारत ने खाद्यान्न भंडारण अवसंरचना को बढ़ाने के लिये क्या पहल की है?
- कृषि अवसंरचना कोष (AIF) की शुरुआत वर्ष 2020 में पूरे भारत में कृषि अवसंरचना को मज़बूत करने के लिये की गई थी।
- यह फसलोपरांत प्रबंधन अवसंरचना और व्यवहार्य कृषि परिसंपत्तियों हेतु व्यवहार्य परियोजनाओं में निवेश हेतु ऋणों पर ब्याज अनुदान तथा ऋण गारंटी सहायता के माध्यम से एक मध्यम-दीर्घकालिक ऋण वित्तपोषण सुविधा है।
- कृषि विपणन अवसंरचना (AMI) योजना, एकीकृत कृषि विपणन योजना (ISAM) का एक प्रमुख घटक है।
- इस योजना का उद्देश्य गोदामों और वेयरहाउसों के निर्माण तथा नवीनीकरण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करके ग्रामीण भारत में कृषि विपणन अवसंरचना को मज़बूत करना है।
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) एक व्यापक योजना है, जिसे खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के लिये आधुनिक बुनियादी अवसंरचना के निर्माण हेतु तैयार किया गया है, जिससे खेत से लेकर खुदरा तक एक सुचारू और कुशल आपूर्ति शृंखला बनाई जा सके।
- भंडारण क्षमता वृद्धि योजनाएँ
- आधुनिक भंडारण के लिये स्टील साइलो का निर्माण।
- निजी उद्यम गारंटी (PEG) योजना
- केंद्रीय क्षेत्र योजना ‘भंडारण एवं गोदाम’ (पूर्वोत्तर पर केंद्रित)
अनाज भंडारण को बनाए रखने में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं और उन्हें दूर करने के उपाय सुझाएँ?
चुनौतियाँ |
अनाज भंडारण बढ़ाने के उपाय |
उच्च फसलोपरांत हानि: भारत को प्रतिवर्ष अपने खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 22% (वर्ष 2022-23 में ~ 74 मिलियन टन) का नुकसान होता है। |
वैज्ञानिक भंडारण का विस्तार करना: साइलो और आधुनिक गोदामों का विस्तार करना (उदाहरण के लिये, बिहार में वर्ष 2025 में 50,000 मीट्रिक टन साइलो का उद्घाटन किया जाएगा)। |
भंडारण-विशिष्ट हानियाँ: लगभग 6.58% खाद्यान्न खराब भंडारण (कीट, कृंतक, आर्द्रता से क्षति) के कारण नष्ट हो जाते हैं। |
बेहतर फसलोपरांत प्रथाओं के माध्यम से नुकसान को कम करना: सुरक्षित आर्द्रता के स्तर को बनाए रखकर सुखाने, सफाई और विपणन के दौरान अनाज की हानि को रोकना। |
आर्थिक भार: वार्षिक भंडारण हानि 7,000 करोड़ रुपये आँकी गई है, जिसमें कीटों के कारण 1,300 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। |
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) को प्रोत्साहित करना: निजी निवेशकों को आकर्षित करने के लिये दीर्घकालिक भर्ती गारंटी प्रदान करके PEG योजना को मज़बूत करना। |
CAP भंडारण पर निर्भरता: पंजाब में लगभग 90% गेहूँ को कवर और प्लिंथ (CAP) के तहत संग्रहीत किया जाता है, जो अत्यधिक असुरक्षित है। |
प्राथमिक कृषि ऋण समितियों (PACS) को सशक्त बनाना: लगभग 13 करोड़ किसानों को लाभान्वित करने और पारदर्शिता में सुधार लाने के लिये लगभग 63,000 PACS के कम्प्यूटरीकरण में तेज़ी लाना। लक्षित योजनाओं के माध्यम से भंडारण की कमियों को दूर करने के लिये पूर्वोत्तर, पहाड़ी और जनजातीय क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना। |
निष्कर्ष
खाद्यान्न की कमी से खाद्यान्न अधिशेष तक भारत की यात्रा ने वैज्ञानिक भंडारण और वितरण को उत्पादन जितना ही महत्त्वपूर्ण बना दिया है। आधुनिक साइलो, PACS-आधारित गोदामों और कोल्ड चेन अवसंरचना के माध्यम से भंडारण को सुदृढ़ करने से न केवल फसलोपरांत होने वाले नुकसान में कमी आएगी, बल्कि मूल्य स्थिरता, खाद्य सुरक्षा एवं किसान कल्याण भी सुनिश्चित होगा।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये असली चुनौती अनाज उत्पादन की कमी नहीं, बल्कि खराब अनाज प्रबंधन है। टिप्पणी कीजिये। (250 शब्द) |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत में खाद्यान्न भंडारण अवसंरचना क्या है?
इसमें FCI गोदाम, PACS ग्राम भंडारण, स्टील साइलो और कोल्ड स्टोरेज सुविधाएँ शामिल हैं। इसका उद्देश्य अनाज को संरक्षित करना, फसलोपरांत होने वाले नुकसान को कम करना और खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
2. भंडारण प्रणालियों के प्रमुख प्रकार क्या हैं?
भारत में फलों, सब्जियों एवं डेयरी जैसी जल्दी खराब होने वाली वस्तुओं के लिये केंद्रीकृत भंडारण, विकेंद्रीकृत भंडारण और कोल्ड स्टोरेज उपलब्ध हैं।
3. PACS भंडारण में कैसे योगदान देते हैं?
PACS खेतों के पास ग्राम-स्तरीय भंडारण प्रदान करते हैं, जिससे किसानों को संकटकालीन बिक्री से बचने, बेहतर मूल्य प्राप्त करने और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के लिये परिवहन लागत कम करने में सहायता मिलती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
मेन्स
प्रश्न. भारत में कृषि उत्पादों के परिवहन और विपणन में मुख्य बाधाएँ क्या हैं? (2020)