डेली न्यूज़ (03 Sep, 2022)



भारत के मुख्य न्यायाधीश

Chief-Justice-of-India

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G20 शिक्षा मंत्रियों की बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

G20, अंतर्राष्ट्रीय संगठन, भारत और अंतर्राष्ट्रीय समूह।

मेन्स के लिये:

भारत की विदेश नीति, भारत की विदेश नीति में G20 का महत्त्व , अंतर्राष्ट्रीय समूहों पर वैश्विक घटनाओं की चुनौतियाँ।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिक्षा मंत्री ने बाली, इंडोनेशिया में G20 शिक्षा मंत्रियों की बैठक को संबोधित किया।

  • थीम: पुनर्प्राप्ति, पुनर्कल्पना और सशक्त पुनर्निर्माण (Recovery, Re-imagine and Rebuild Stronger)।

प्रमुख बिंदु

  • पारस्परिक अनुभवों को साझा करने और नए विश्व के निर्माण के लिये मिलकर काम करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया, जिसमें शिक्षा आम चुनौतियों का सामना करने हेतु प्रयास प्रमुख बिंदु रहे।
  • राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, (NEP) पहुँच, समानता, गुणवत्ता, सामर्थ्य और जवाबदेही के मूलभूत सिद्धांतों पर आधारित है, जो आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देने और G20 के साझा दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिये भारत का मार्गदर्शक है।
  • NEP, 2020 के कार्यान्वयन के माध्यम से अधिक लचीला और समावेशी शिक्षा एवं कौशल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण तथा प्रत्येक शिक्षार्थी की रचनात्मक क्षमता को साकार करने की दिशा में भारत की तीव्र प्रगति पर प्रकाश डाला गया।
  • भारत ने प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा को औपचारिक रूप देने, दिव्यांग बच्चों का समर्थन करने, डिजिटल एवं मल्टी-मोडल सीखने को बढ़ावा देने, लचीले प्रवेश-निकास मार्ग, कौशल के साथ शिक्षा को एकीकृत करने पर विशेष ज़ोर दे रहा है, जो सीखने के परिणामों में सुधार की कुंजी हैं।

G20 समूह:

  • परिचय:
    • यह 19 देशों और यूरोपीय संघ (EU) का एक अनौपचारिक समूह है, जिसकी स्थापना वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा विश्व बैंक के प्रतिनिधियों के साथ हुई थी।
      • G20 के सदस्य देशों में अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कनाडा, चीन, यूरोपियन यूनियन, फ्राँस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, कोरिया गणराज्य, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं।
      • नाइजीरिया इसका 20वांँ सदस्य बनने वाला था लेकिन उस समय की राजनीतिक समस्याओं के कारण अंतिम समय में उसे इस विचार को त्यागना पड़ा।
    • G20 समूह में विश्व की प्रमुख उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्था वाले देश शामिल हैं जो दुनिया की आबादी का लगभग दो-तिहाई हिस्सा है।
  • G20 की कार्यप्रणाली:
    • जी-20 का कोई स्थायी मुख्यालय नहीं है और सचिवालय प्रत्येक वर्ष समूह की मेज़बानी करने वाले या अध्यक्षता करने वाले देशों के बीच रोटेट होता है।
    • सदस्यों को पांँच समूहों में बांँटा गया है (रूस, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की के साथ भारत समूह 2 में है)।
    • G20 एजेंडा जो अभी भी वित्तमंत्रियों और केंद्रीय राज्यपालों के मार्गदर्शन पर बहुत अधिक निर्भर करता है, को 'शेरपा' की निर्धारित प्रणाली द्वारा अंतिम रूप दिया जाता है, जो G20 नेताओं के विशेष दूत होते हैं।
      • वर्तमान में वाणिज्य और उद्योग मंत्री भारत के मौजूदा "G20 शेरपा" हैं।
    • G20 की एक अन्य विशेषता 'ट्रोइका' बैठकें हैं, जिसमें पिछले वर्ष, वर्तमान वर्ष और अगले वर्ष में G20 की अध्यक्षता करने वाले देश शामिल हैं। वर्तमान में ट्रोइका में इटली, इंडोनेशिया और भारत शामिल हैं।

G20-members

विगत वर्षों में G20 का विकास-क्रम:

  • वैश्विक वित्तीय संकट (2007-08) ने प्रमुख संकट प्रबंधन और समन्वय निकाय के रूप में G20 की प्रतिष्ठा को मज़बूत किया।
  • अमेरिका, जिसने 2008 में G20 की अध्यक्षता की थी, ने वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक को राष्ट्राध्यक्षों तक बढ़ा दिया, जिसके परिणामस्वरूप पहला G20 शिखर सम्मेलन हुआ।
  • वाशिंगटन डीसी, लंदन और पिट्सबर्ग में आयोजित शिखर सम्मेलनॉ ने कुछ सबसे टिकाऊ वैश्विक सुधारों हेतु परिदृश्य तैयार किया:
    • इसमें कर चोरी और परिहार से निपटने के प्रयास में राज्यों को ब्लैक लिस्ट करना, हेज़ फण्ड और रेटिंग एजेंसियों पर सख्त नियंत्रण का प्रावधान करना, वित्तीय स्थिरता बोर्ड को वैश्विक वित्तीय प्रणाली के लिये एक प्रभावी पर्यवेक्षी और निगरानी निकाय बनाना, असफल बैंकों के लिये सख्त नियमों का प्रस्ताव करना, सदस्यों को व्यापार आदि में नए अवरोध लगाने से रोकना आदि शामिल हैं।
  • कोविड-19 की दस्तक तक G20 अपने मूल मिशन से भटक चुका था तथा G20 के मूल लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाया।
    • G20 ने जलवायु परिवर्तन, नौकरियों और सामाजिक सुरक्षा के मुद्दों, असमानता, कृषि, प्रवास, भ्रष्टाचार, आतंकवाद के वित्तपोषण, मादक पदार्थों की तस्करी, खाद्य सुरक्षा और पोषण, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों जैसे मुद्दों को शामिल करने और सतत् विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिये अपने एजेंडे को विस्तृत करके खुद को फिर से स्थापित किया।
  • हाल के दिनों में G20 के सदस्यों ने महामारी के बाद सभी प्रतिबद्धताएँ पूरी की हैं, लेकिन यह बहुत कम है।
    • अक्तूबर 2020 में रियाद शिखर सम्मेलन में उन्होंने चार स्तंभों- महामारी से लड़ाई, वैश्विक अर्थव्यवस्था की सुरक्षा, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार व्यवधानों को संबोधित करने और वैश्विक सहयोग बढ़ाने को प्राथमिकता दी।
    • वर्ष 2021 में इटली ने कोविड-19 का मुकाबला करने, वैश्विक अर्थव्यवस्था में रिकवरी को तीव्र करने और अफ्रीका में सतत् विकास को बढ़ावा देने जैसे विषयों के लिये G20 विदेश मंत्रियों की बैठक की मेज़बानी की।

प्रश्न: निम्नलिखित में से किस एक समूह में चारों देश G20 के सदस्य हैं?

(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका और तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया और न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब और वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर और दक्षिण कोरिया

उत्तर: (a)

स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स


श्रीलंका को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा बेलआउट पैकेज़

प्रिलिम्स के लिये:

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), जीडीपी विकास दर, ट्रांस-शिपमेंट हब, तमिल समुदाय।

मेन्स के लिये:

श्रीलंका संकट और भारत पर इसके प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) ने श्रीलंका के साथ चार वर्ष की अवधि के लिये 2.9 बिलियन अमेरीकी डॉलर के बेलआउट पैकेज़  पर एक प्रारंभिक समझौते को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य संकटग्रस्त दक्षिण एशियाई राष्ट्र के लिये आर्थिक स्थिरता और ऋण स्थिरता को बहाल करना है।

श्रीलंका को प्रदान बेलआउट पैकेज़:

  • आवश्यकता:
    • 51 बिलियन अमेरीकी डॉलर के ऋण के साथ श्रीलंका का आर्थिक संकट के निम्नलिखित कारण हैं:
      • कोलंबो के चर्चों में अप्रैल 2019 के ईस्टर बम विस्फोट
      • किसानों के लिये निम्नतम कर दर और व्यापक सब्सिडी की सरकार की नीति।
      • वर्ष 2020 में कोविड -19 महामारी जिसने श्रीलंका में चाय, रबर, मसाले, वस्त्र और पर्यटन क्षेत्र के निर्यात को प्रभावित किया।
  • परिचय:
    • IMF पैकेज़ का भुगतान अगले चार वर्षों में किश्तों में किया जाना है, जो कि भारत द्वारा श्रीलंका को चार महीनों में प्रदान किये गए पैकेज़ से कम है।
    • पैकेज़ को IMF के निदेशक मंडल द्वारा अनुमोदित किया जाता है।
      • अनुमोदन श्रीलंका के अंतर्राष्ट्रीय लेनदारों पर निर्भर है - वाणिज्यिक ऋणदाता जैसे बैंक और परिसंपत्ति प्रबंधक, बहुपक्षीय एजेंसियाँ, साथ ही चीन, जापान और भारत सहित द्विपक्षीय लेनदारों ने अपने ऋण के पुनर्गठन के लिये सहमति व्यक्त की है।
  • संभावित लाभ:
    • क्रेडिट रेटिंग में सुधार:
      • यह पैकेज़ को प्राप्त करने वाले देश की क्रेडिट रेटिंग को बढ़ा सकता है और अंतर्राष्ट्रीय लेनदारों और निवेशकों के विश्वास को बढ़ावा दे सकता है जो कि किश्तों के मध्य अंतराल को बंद करने के लिये ब्रिज़ वित्तपोषण प्रदान करने के लिये निवेदन कर सकते हैं।
  • उद्देश्य:
    • कार्यक्रम का उद्देश्य वर्ष 2024 तक सकल घरेलू उत्पाद के 2.3% के प्राथमिक अधिशेष का लक्ष्य प्राप्त करना है।

श्रीलंका द्वारा अपनी अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु प्रयास:

  • राजस्व में वृद्धि:
    • देश के बजट का उद्देश्य सार्वजनिक ऋण को कम करके राजस्व को वर्ष 2021 के अंत में 8.2% से बढ़ाकर वर्ष 2025 तक सकल घरेलू उत्पाद का 15% करना है।
  • सेवानिवृत्ति की आयु कम की गई:
    • सरकारी और अर्द्ध-सरकारी संगठनों में सेवानिवृत्ति की आयु क्रमशः 65 और 62 से घटाकर 60 वर्ष कर दी गई है।
  • बैंकिंग क्षेत्र:
    • आर्थिक मंदी के कारण ऋणों की अदायगी न करने से उत्पन्न पुनर्पूंजीकरण आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कर्मचारियों और जमाकर्त्ताओं को स्टेट बैंकों में 20% शेयरधारिता की पेशकश की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF):

  • परिचय:
    • अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वैश्विक आर्थिक विकास और वित्तीय स्थिरता को बढ़ावा देता है, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को प्रोत्साहित करता है और गरीबी को कम करने का प्रयास करता है।
  • IMF द्वारा निर्धारित शर्तें:
    • परिचय:
      • जब कोई देश IMF से उधार लेता है, तो उसकी सरकार उन समस्याओं को दूर करने के लिए अपनी आर्थिक नीतियों को समायोजित करने के लिये सहमत होती है जिसके कारण उसे वित्तीय सहायता लेनी पड़ी।
        • ये नीतिगत समायोजन IMF ऋणों के लिये शर्तें हैं और यह सुनिश्चित करता है कि देश IMF को ऋण चुकाने में सक्षम होगा।
        • सशर्तता की यह ऋण प्रणाली मज़बूत और प्रभावी नीतियों के राष्ट्रीय स्वामित्त्व को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन की गई है।
      • सशर्तता देशों को राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय हानिकारक उपकरणों का सहारा लिये बिना भुगतान संतुलन की समस्याओं को हल करने में मदद करती है।
    • देश के प्राधिकारियों के साथ सहमत नीतिगत प्रतिबद्धताएंँ निम्नलिखित रूप ले सकती हैं:
      • पूर्व प्रतिक्रिया:
        • आईएमएफ द्वारा वित्तपोषण की मंज़ूरी मिलने या समीक्षा पूरी होने से पहले ये ऐसे कदम हैं जिन्हें कोई देश मानने के लिये सहमत होता है।
          • वे सुनिश्चित करते हैं कि एक कार्यक्रम में सफलता के लिये आवश्यक आधार होगा।
      • मात्रात्मक प्रदर्शन मानदंड (Quantitative performance criteria-QPCs):
        • IMF ऋण देने के लिये में व्यापक आर्थिक चर से संबंधित विशिष्ट, स्वीकार योग्य शर्तें हमेशा अपने नियंत्रण में रखता है।
          • इस तरह के चर में मौद्रिक और क्रेडिट समुच्चय, अंतर्राष्ट्रीय भंडार, राजकोषीय शेष तथा बाह्य उधार शामिल हैं।
      • सांकेतिक लक्ष्य (IT):
        • QPC के अलावा कार्यक्रम के उद्देश्यों को पूरा करने में प्रगति का आकलन करने के लिये मात्रात्मक संकेतकों हेतु सांकेतिक लक्ष्य निर्धारित किया जा सकता है।
      • संरचनात्मक बेंचमार्क (Structural benchmarks-SB):
        • ये सुधार के उपाय हैं जो अक्सर गैर-मात्रात्मक होते हैं लेकिन कार्यक्रम के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं और कार्यक्रम कार्यान्वयन का आकलन करने हेतु बेंचमार्क के रूप में अभिप्रेत होते हैं

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष प्रश्न:

प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किस मुद्रा को IMF के SDR के बास्केट में शामिल करने का प्रस्ताव रखा है? (2016)

(a) रूबल
(b) रैंड
(c) भारतीय रुपया
(d) रॅन्मिन्बी

उत्तर : d

व्याख्या:

  • विशेष आहरण अधिकार को अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund-IMF) द्वारा वर्ष 1969 में अपने सदस्य देशों के लिये अंतर्राष्ट्रीय आरक्षित संपत्ति के रूप में बनाया गया था।
  • SDR का मूल्य, बास्केट ऑफ करेंसी में शामिल मुद्राओं के औसत भार के आधार पर किया जाता है। इस बास्केट में पाँच देशों की मुद्राएँ शामिल हैं- अमेरिकी डॉलर (Dollar), यूरोप का यूरो (Euro), चीन की मुद्रा रॅन्मिन्बी (Renminbi), जापानी येन (Yen), ब्रिटेन का पाउंड (Pound)।
  • चीनी रॅन्मिन्बी को 1 अक्तूबर, 2016 को मुद्राओं की टोकरी में जोड़ा गया था। अतः विकल्प (d) सही है।

प्रश्न: विश्व बैंक और IMF, जिन्हें सामूहिक रूप से ब्रेटन वुड्स नाम से जाने वाली संस्थाएँ, विश्व की आर्थिक और वित्तीय व्यवस्था की संरचना का समर्थन करने वाले दो अंतर-सरकारी स्तंभ हैं। पृष्ठीय रूप में, विश्व बैंक और IMF कई सामान्य विशेषताओं को प्रदर्शित करते हैं, फिर भी उनकी भूमिका, कार्य और अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (मुख्य परीक्षा,2013)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना

प्रिलिम्स के लिये:

स्किल इंडिया मिशन, राष्ट्रीय कौशल विकास निगम, पूर्व सीख को मान्यता/रिकग्निशन ऑफ प्रायर लर्निंग।

मेन्स के लिये:

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना और इसका महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में शिक्षा मंत्रालय ने लोकसभा को सूचित किया कि वर्ष 2021-22 के दौरान प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) योजना के तहत 3 लाख से अधिक महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है।

प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY):

  • पृष्ठिभूमि:
    • सरकार द्वारा वर्ष 2015 में कौशल भारत मिशन शुरू किया गया था, जिसके तहत प्रमुख रूप से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) चलाई गई है।
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2022 तक भारत में 40 करोड़ से अधिक लोगों को विभिन्न कौशलों में प्रशिक्षित करना है एवं समाज में बेहतर आजीविका और सम्मान के लिये भारतीय युवाओं को व्यावसायिक प्रशिक्षण व प्रमाणन प्रदान करना है।
    • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के मार्गदर्शन में राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा PMKVY का कार्यान्वयन किया गया है।
  • PMKVY 1.0:
    • प्रारंभ: भारत की सबसे बड़ी कौशल प्रमाणन योजना ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ 15 जुलाई, 2015 (विश्व युवा कौशल दिवस) को शुरू की गई थी।
    • उद्देश्य: युवाओं को मुफ्त लघु अवधि का कौशल प्रशिक्षण प्रदान करना एवं मौद्रिक पुरस्कार के माध्यम से कौशल विकास को प्रोत्साहित करना।
    • मुख्य घटक: लघु अवधि का प्रशिक्षण, विशेष परियोजनाएँ, पूर्व शिक्षण को मान्यता, कौशल और रोज़गार मेला आदि
    • परिणाम: वर्ष 2015-16 में 19.85 लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया था।
  • PMKVY 2.0:
    • कवरेज: PMKVY 2.0 को भारत सरकार के अन्य मिशनों जैसे- मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्वच्छ भारत आदि के साथ संयुक्त रूप से लॉन्च किया गया था।
    • बजट: 12,000 करोड़ रुपए।
    • दो घटकों के माध्यम से कार्यान्वयन:
      • केंद्र प्रायोजित केंद्र प्रबंधित (CSCM): यह घटक राष्ट्रीय कौशल विकास निगम द्वारा लागू किया गया था। PMKVY, वर्ष 2016-20 की अवधि के वित्तपोषण का 75% और संबंधित भौतिक लक्ष्यों को CSCM के तहत आवंटित किया गया है।
      • केंद्र प्रायोजित राज्य प्रबंधित (Centrally Sponsored State Managed-CSSM): यह घटक राज्य सरकारों द्वारा राज्य कौशल विकास मिशनों (State Skill Development Missions-SSDMs) के माध्यम से लागू किया गया था। PMKVY के तहत वर्ष 2016-20 की अवधि के वित्तपोषण का 25% और संबंधित भौतिक लक्ष्यों को CSSM के तहत आवंटित किया गया है।
    • परिणाम: PMKVY 1.0 और PMKVY 2.0 के तहत देश में एक बेहतर मानकीकृत कौशल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से 1.2 करोड़ से अधिक युवाओं को प्रशिक्षित/रोज़गार उन्मुख बनाया गया है।
  • PMKVY 3.0:
    • कवरेज: 717 ज़िलों, 28 राज्यों/आठ केंद्रशासित प्रदेशों में इसे लॉन्च किया गया। PMKVY 3.0 'आत्मनिर्भर भारत' की दिशा में एक कदम है।
    • कार्यान्वयन: इसे राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों और ज़िलों से अधिक ज़िम्मेदारियों और समर्थन के साथ अधिक विकेन्द्रीकृत संरचना में लागू किया जाएगा।
      • राज्य कौशल विकास मिशन (SSDM) के मार्गदर्शन में ज़िला कौशल समितियाँ (DSCs) ज़िला स्तर पर कौशल अंतराल को दूर करने और मांग का आकलन करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगी।
    • विशेषताएँ:
      • इसमें 948.90 करोड़ रुपए के परिव्यय के साथ वर्ष 2020-2021 की योजना अवधि में आठ लाख उम्मीदवारों के प्रशिक्षण की परिकल्पना की गई है।
      • यह प्रशिक्षुओं पर अधिक ध्यान केंद्रित करेगा। नए युग और उद्योग 4.0 रोज़गार भूमिकाओं के क्षेत्रों में कौशल विकास को बढ़ावा देकर मांग-आपूर्ति के अंतर को कम करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
      • यह युवाओं के लिये उद्योग से जुड़े अवसरों का लाभ उठाने के लिये प्रारंभिक स्तर पर व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार करेगा।
      • प्रशिक्षण के लिये ‘बॉटम-अप’ दृष्टिकोण अपनाते हुए यह उन रोज़गार भूमिकाओं की पहचान करेगा जिनकी स्थानीय स्तर पर मांग है और युवाओं को इन अवसरों (वोकल फॉर लोकल) से जोड़ते हुए उन्हें कौशल प्रदान करेगा।
      • यह बेहतर प्रदर्शन करने वाले राज्यों को अतिरिक्त आवंटन उपलब्ध कराकर राज्यों के मध्य स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रश्न. 'पूर्व शिक्षा योजना की मान्यता' का उल्लेख कभी-कभी समाचारों में किस संदर्भ में किया जाता है? (2017)

(a) पारंपरिक चैनलों के माध्यम से निर्माण श्रमिकों द्वारा अर्जित कौशल का प्रमाणन।
(b) दूरस्थ शिक्षा कार्यक्रमों के लिये विश्वविद्यालयों में व्यक्तियों का नामांकन करना।
(c) कुछ सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में ग्रामीण और शहरी गरीबों के लिये कुछ कुशल नौकरिांयाँ आरक्षित करना।
(d) राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के तहत प्रशिक्षुओं द्वारा अर्जित कौशल को प्रमाणित करना।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE), भारत सरकार ने वर्ष 2015 में प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) की शुरुआत की। इस कौशल प्रमाणन योजना का उद्देश्य बड़ी संख्या में भारतीय युवाओं को उद्योग-प्रासंगिक कौशल प्रशिक्षण लेने में सक्षम बनाना था जो उन्हें बेहतर आजीविका हासिल करने में मदद करेगा।
  • PMKVY के एक घटक के रूप में शुरू की गई पूर्व शिक्षा की मान्यता (RPL) प्रमुख तौर पर मूल्यांकन प्रक्रिया को संदर्भित करती है जिसका उपयोग किसी व्यक्ति के मौजूदा कौशल, ज्ञान और अनुभव का मूल्यांकन करने हेतु किया जाता है जो औपचारिक, गैर-औपचारिक या अनौपचारिक शिक्षा द्वारा प्राप्त किया जाता है, न कि राष्ट्रीय कौशल विकास कार्यक्रम के तहत।
  • इसके तीन उद्देश्य हैं: देश के गैर-विनियमित कार्यबल की दक्षताओं को मानकीकृत राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे (NSQF) के साथ संरेखित करना। किसी व्यक्ति के रोज़गार के अवसरों को बढ़ाने के साथ-साथ उच्च शिक्षा के लि वैकल्पिक मार्ग प्रदान करना। ज्ञान के कुछ रूपों को दूसरों पर विशेषाधिकार प्रदान किये बिना असमानताओं को कम करने के अवसर प्रदान करना।

अतः विकल्प (a) सही है।


प्रश्न. प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)

  1. यह श्रम और रोज़गार मंत्रालय की प्रमुख योजना है।
  2. यह अन्य बातों के अलावा सॉफ्ट स्किल्स, उद्यमिता, वित्तीय और डिजिटल साक्षरता में प्रशिक्षण भी प्रदान करेगा।
  3. इसका उद्देश्य देश के अनियमित कार्यबल की दक्षताओं को राष्ट्रीय कौशल योग्यता ढाँचे के अनुरूप बनाना है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

स्रोत:पी.आई.बी.


सिविल सेवक और डिजिटल साक्षरता

मेन्स के लिये:

सिविल सेवकों के लिये डिजिटल साक्षरता का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में माइक्रोसॉफ्ट ने भारत के सिविल सेवकों को भविष्य में सशक्त बनाने हेतु कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) और क्षमता निर्माण आयोग (CBC) के साथ भागीदारी की है।

  • 'माइक्रोसॉफ्ट डिजिटल उत्पादकता कौशल में MSDE द्वारा क्षमता निर्माण' परियोजना के तहत साझेदारी का उद्देश्य भारत सरकार (GoI) के लगभग 2.5 मिलियन सिविल सेवकों की कार्यात्मक कंप्यूटर साक्षरता को बढ़ाना है।
  • यह परियोजना मिशन कर्मयोगी के अनुरूप है।

डिजिटल साक्षरता

  • डिजिटल साक्षरता का आशय उन तमाम तरह के कौशलों के एक समूह से है, जो इंटरनेट का प्रयोग करने और डिजिटल दुनिया के अनुकूल बनने के लिये आवश्यक हैं।
  • चूँकि प्रिंट माध्यम का दायरा धीरे-धीरे सिकुड़ता जा रहा है और ऑनलाइन उपलब्ध जानकारियों का दायरा व्यापक होता जा रहा है, इसलिये ऑनलाइन उपलब्ध जानकारी को समझने के लिये डिजिटल साक्षरता आवश्यक है।
  • जिन लोगों और छात्रों में डिजिटल साक्षरता कौशल की कमी है, उन्हें जल्द ही ऑनलाइन उपलब्ध जानकारी तक पहुँच प्राप्त करने में कठिनाई हो सकती है।

सिविल सेवकों हेतु डिजिटल साक्षरता का महत्त्व:

  • कुशल और प्रभावी नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने के लिये:
    • डिजिटल साक्षरता समाज के कमज़ोर और वंचित वर्गों को कुशल और प्रभावी नागरिक केंद्रित सेवाएँ प्रदान करने के लिये भारत के सिविल सेवकों को सशक्त बनाएगी।
    • यह उन्हें अंतिम बिंदु तक सामाजिक कल्याण संबंधी सेवाएँ प्रदान करने में सक्षम बनाएगा।
  • योग्यता अंतराल में कमी लाना:
    • पेशेवर स्तर पर माइक्रोसॉफ्ट ऑफिस टूल्स, जैसे वर्ड, एक्सेल और पावरपॉइंट प्रेज़ेटेशन पर काम करते समय सिविल सेवकों के मध्य विभिन्न भूमिकाओं में पहचाने जाने वाले प्रमुख योग्यता अंतरालों में से एक डिजिटल उत्पादकता अनुप्रयोग कौशल की कमी है। इसलिये डिजिटल सशक्तीकरण, योग्यता अंतराल को कम करने में योगदान देगा।

भविष्य के सिविल सेवकों हेतु आवश्यक दक्षताएँ:

  • विभिन्न क्षेत्रों में एकीकृत रूपरेखा:
    • वर्तमान में सार्वजनिक क्षेत्र, निजी क्षेत्र और नागरिक समाज में एकीकृत ढाँचे का अभाव है।
    • जबकि सिविल सेवकों को जिन तकनीकी दक्षताओं की आवश्यकता होती है, वे निजी क्षेत्र में आवश्यक तकनीकी दक्षताओं के समान होती हैं जबकि डिजिटल शासन क्षमताएँ पूरी तरह से भिन्न होती हैं।
    • जनता के कल्याण हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence-AI) के उपयोग के क्रम में एक साझा भाषा और समझ की आवश्यकता है।
  • डिजिटल समाधानों में वृद्धि:
    • बुनियादी ढाँचे की कमी के कार सार्वजनिक सेवाओं में डिजिटल समाधानों को बढ़ाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
    • कभी-कभी, निजी क्षेत्र के समाधान सार्वजनिक क्षेत्र के लिये उपयुक्त नहीं होते हैं। इसलिये सार्वजनिक क्षेत्र के लिये प्रौद्योगिकी डिज़ाइन करने की आवश्यकता है।
  • सहयोग के अंतर को समाप्त करना:
    • सरकार को कभी भी एकल इकाई के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये, बल्कि एक-दूसरे के साथ संवाद करने के लिये प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
    • इसके अतिरिक्त मौजूदा संस्थानों को शामिल करने और उस चक्र को फिर से शुरू करने के बजाय सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

स्रोत: इंडिया टुडे


मोटे अनाजों को बढ़ावा

प्रिलिम्स के लिये:

मोटे अनाज और उसका उत्पादन

मेन्स के लिये:

मोटे अनाज का महत्त्व, मोटे अनाज के उपयोग और विशेषताएँ, सरकारी हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग (DFPD) द्वारा वर्ष 2022-2023 के लिये खरीफ उपज की खरीद पर चर्चा के लिये एक बैठक आयोजित की गई।

  • भारत सरकार ने मोटे अनाजों के उत्पादन और उपभोग को प्रोत्साहन देने पर विचार किया है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन ने गेहूँ और धान की खेती को प्रभावित किया है।
  • खरीफ फसल बाज़ार से मोटे अनाज की खरीद का लक्ष्य दोगुना हुआ, राशन में मोटे अनाज की अधिक संभावना नजर आ रही है।

मोटे अनाज:

  • परिचय:
    • मोटे अनाज पारंपरिक रूप से देश के अल्प संसाधन वाले कृषि-जलवायु क्षेत्रों में उगाए जाते हैं।
      • कृषि-जलवायु क्षेत्र, फसलों और किस्मों की एक निश्चित श्रेणी के लिये उपयुक्त प्रमुख जलवायु के संदर्भ में भूमि की एक इकाई है।
    • ज्वार, बाजरा, मक्का, जौ, फिंगर (Finger) बाजरा और अन्य कुटकी (Small Millets) जैसे कोदो (Kodo), फॉक्सटेल (Foxtail) , प्रोसो (Proso) और बार्नयार्ड (Barnyard) एक साथ मोटे अनाज कहलाते हैं।
      • ज्वार, बाजरा, मक्का और छोटे बाजरा (बार्नयार्ड बाजरा, प्रोसो बाजरा, कोदो बाजरा और फॉक्सटेल बाजरा) को पोषक-अनाज भी कहा जाता है।
  • महत्त्व:
    • मोटे अनाज पोषक तत्वों से भरपूर सामग्री के लिये जाने जाते हैं और इसमें सूखा सहिष्णु, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति अनुकूलन आदि जैसी विशेषताएँ विद्यमान होती हैं।
    • मानव उपभोग के लिये भोजन, पशु और मुर्गीयों के लिये चारा और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिये सूखा प्रवण क्षेत्रों में उनकी खेती, ईंधन और औद्योगिक उपयोग के रूप में इनका उपयोग सामान्य है।
      • उनका पौष्टिक मूल्य कुपोषण से निपटने के लिये एक उत्कृष्ट उपकरण के रूप में कार्य करता है।
    • यह अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों में रोज़गार-सृजन में सहायता करता है, जहाँ अन्य वैकल्पिक फसलें सीमित हैं और इन फसलों का उपयोग आकस्मिक फसल के रूप में किया जाता है।
  • मोटे अनाज उत्पादक राज्य:
    • कर्नाटक, राजस्थान, पुद्दुचेरी, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि।
  • मोटे अनाज के उपयोग:
    • चारा:
      • कुछ उत्तरी राज्यों जैसे हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ज्वार और बाजरा की खेती मुख्य रूप से चारे के उद्देश्य से की जाती है।
    • औद्योगिक उत्पाद:
      • चारा: माल्टिंग, उच्च फ्रुक्टोज सिरप, स्टार्च, गुड़, बेकरी आदि में उपयोग किया जाता है।
      • बाजरा: शराब बनाने/माल्टिंग, स्टार्च, बेकरी, पोल्ट्री और पशु आहार में प्रयुक्त।
      • मक्का: शराब बनाने, स्टार्च, बेकरी, मुर्गी पालन और पशु चारा, जैव-ईंधन में उपयोग किया जाता है।
    • चारा/फीड का स्रोत (Source of Feed):
      • पशुओं के लिये मोटे अनाज और पोल्ट्री फीड की मांग बढ़ रही है।
      • भारत में चारा की आवश्यकताएँ सामान्य रूप से बेकार अनाज से पूरी की जाती हैं और विशेष रूप से मोटे अनाज से बनाई जाती हैं।
      • पोल्ट्री फीड में मक्का आवश्यक कार्बोहाइड्रेट स्रोत है।

सरकार का मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रण:

  • जलवायु परिवर्तन:
    • जलवायु परिवर्तन ने देश में गेहूँ और धान के उत्पादन को प्रभावित किया है, जो मोटे अनाज पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता को दर्शाता है।
      • गेहूँ और धान की खेती अनिश्चित मौसम स्वरुप के कारण देश की खाद्य ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं होगी।
  • मानसून:
    • अनियमित मानसून ने वर्ष 2022 के खरीफ मौसम की उपज के लिये सरकार की चिंता बढ़ा दी है।
      • वर्ष 2022 में ज़्यादातर इलाकों में धान और दलहन की बुआई बुरी तरह प्रभावित हुई है।
  • मोटे अनाज का उत्पादन वृद्धि:
    • मोटे अनाज की बुवाई वर्ष 2022 में 17.63 मिलियन हेक्टेयर में की गई है, जबकि वर्ष 2021 में 16.93 मिलियन हेक्टेयर में मोटे अनाज की बुवाई की गई थी।
    • वर्तमान में देश में लगभग 50 मिलियन टन मोटे अनाज का उत्पादन होता है।
      • मक्का और बाजरा सबसे ज़्यादा उगाया जाता है।
  • संपोषणीय फसल:
    • मोटे अनाज में सूखा सहिष्णुता, प्रकाश-असंवेदनशीलता और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीला आदि जैसी विशेषताएँ होती हैं।
  • खेती की कम लागत:
    • ग्रीष्मकालीन धान की खेती की तुलना में खेती की लागत कम है और सिंचाई के लिये कम मात्रा में जल की आवश्यकता होती है।

मोटे अनाज की सहायता हेतु सरकार की पहल:

  • ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (Initiative for Nutritional Security through Intensive Millet Promotion-INSIMP):
    • सरकार ने बाजरा को पौष्टिक अनाज के रूप में बढ़ावा देने के लिये राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत वर्ष 2011-12 में 300 करोड़ रुपए के आवंटन की घोषणा की।
    • इस योजना का उद्देश्य देश में बाजरा के बढ़े हुए उत्पादन को उत्प्रेरित करने के लिये दृश्य प्रभाव के साथ एकीकृत तरीके से उचित उत्पादन और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन करना है।
  • न्यूनतम समर्थन मूल्य में वृद्धि:
    • सरकार ने बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की है, जो किसानों के लिये बड़े मूल्य प्रोत्साहन के रूप में देखा जा सकता है।
  • निवेश सहायता:
    • सरकार द्वारा किसानों को बीज किट और निवेश लागत उपलब्ध कराई गई है, किसान उत्पादक संगठनों के माध्यम से मूल्य शृंखला का निर्माण किया गया है और मोटे अनाजों की बिक्री को बढ़ावा देने हेतु विपणन क्षमता का समर्थन किया गया है।
  • बाजरा का अंतर्राष्ट्रीय वर्ष:
    • संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2023 को अंतर्राष्ट्रीय बाजरा वर्ष (International Year of Millets) के रूप में मनाने के भारत के प्रस्‍ताव को स्‍वीकृति दी है।
    • भारत ने वर्ष 2018 को "बाजरा के राष्ट्रीय वर्ष (National Year Of Millets)" के रूप में मनाया।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल' के संदर्भ में निम्नलिखित कथन में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2016)

  1. इस पहल का उद्देश्य उचित उत्पादन और कटाई के बाद की तकनीकों का प्रदर्शन करना और मूल्यवर्द्धन तकनीकों को समेकित तरीके से क्लस्टर दृष्टिकोण के साथ प्रदर्शित करना है।
  2. इस योजना में गरीब, छोटे, सीमांत और आदिवासी किसानों की बड़ी हिस्सेदारी है।
  3. इस योजना का एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य वाणिज्यिक फसलों के किसानों को पोषक तत्त्वों और सूक्ष्म सिंचाई उपकरणों के आवश्यक आदानों की निःशुल्क किट देकर बाजरा की खेती में स्थानांतरित करने के लिये प्रोत्साहित करना है।

नीचे दिये गए कूट का उपयोग करके सही उत्तर का चयन कीजिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 2
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • ‘गहन बाजरा संवर्द्धन के माध्यम से पोषण सुरक्षा हेतु पहल (INSIMP)' योजना का उद्देश्य देश में बाजरा के बढ़े हुए उत्पादन को उत्प्रेरित करने हेतु दृश्य प्रभाव के साथ एकीकृत तरीके से बेहतर उत्पादन और कटाई के बाद की प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित करना है। बाजरा के उत्पादन में वृद्धि के अलावा योजना, प्रसंस्करण और मूल्य संवर्द्धन तकनीकों के माध्यम से बाजरा आधारित खाद्य उत्पादों व उपभोक्ता मांग उत्पन्न करने की उम्मीद है। अत: कथन 1 सही है।
  • मोटे अनाज की चार श्रेणियों - ज्वार, बाजरा, रागी और कुटकी (Small Millets) के लिये चयनित ज़िलों के कॉम्पैक्ट ब्लॉकों में प्रौद्योगिकी प्रदर्शन आयोजित किये जाएंगे। इस योजना में गरीब, छोटे, सीमांत और आदिवासी किसानों की बड़ी हिस्सेदारी है। अत: कथन 2 सही है।
  • वाणिज्यिक फसलों के किसानों को बाजरा की खेती में स्थानांतरित करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिये ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। अत: कथन 3 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (c) सही उत्तर है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ