भारत में गंगा नदी बेसिन का पहला डिजिटल प्रतिरूप | उत्तराखंड | 25 Nov 2025
चर्चा में क्यों?
IIT दिल्ली ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (NMCG) के सहयोग से भारत में गंगा नदी बेसिन का प्रथम डिजिटल प्रतिरूप (Digital Twin), जो एक उच्च परिशुद्धता वाली आभासी प्रतिकृति है, विकसित करने हेतु कार्य प्रारंभ कर दिया है।
मुख्य बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- IIT दिल्ली संपूर्ण गंगा बेसिन का एक डिजिटल ट्विन मॉडल तैयार करेगा, जो एक वास्तविक-समय, डेटा-आधारित वर्चुअल सिमुलेशन होगा, जिसमें यमुना, कोसी, घाघरा, गंडक तथा सोन जैसे प्रमुख उपनदियों को भी शामिल किया जायेगा।
- यह मॉडल जल विज्ञान, प्रदूषण भार, नदी की आकृति-विज्ञान, भूमि-उपयोग, भूजल परस्पर क्रिया तथा जलवायु प्रभावों को एकीकृत करेगा तथा बेसिन का सतत् 3D डिजिटल प्रतिरूप उपलब्ध कराएगा।
- यह प्रणाली रिमोट सेंसिंग, GIS, IoT सेंसर, उपग्रह-डेटा, मशीन लर्निंग तथा नदी-प्रवाह मॉनिटरिंग का उपयोग कर पर्यावरणीय परिवर्तनों तथा आपदा परिदृश्यों का पूर्वानुमान प्रदान करेगी।
- लाभ:
- उत्तराखंड तथा सिंधु-गंगा के मैदानों के लिये बाढ़ पूर्वानुमान को बेहतर बनाएगा, जिसमें निर्वहन, वर्षा-पैटर्न तथा हिमनद-गलन का मॉडलिंग सम्मिलित होगा।
- वास्तविक-समय में प्रदूषण मॉनिटरिंग सक्षम होगी ताकि बिंदु-स्रोत निर्वहन, औद्योगिक अपशिष्ट, सीवेज लोड तथा मौसमी परिवर्तन का पता लगाया जा सके।
- नदी-सफाई, नदी प्रबंधन, आर्द्रभूमि संरक्षण और जैवविविधता मूल्यांकन सहित नमामि गंगे हस्तक्षेपों के लिये वैज्ञानिक सहायता प्रदान करना।
- नदी तल पर अवैध गतिविधियों, रेत खनन स्थलों और अतिक्रमणों की पहचान करने में सहायता प्रदान करेगा।
- शहरी नियोजन, सीवेज-बुनियादी ढाँचे, जलाशय संचालन और जलवायु अनुकूलन में राज्यों को समर्थन प्रदान करेगा।
- डिजिटल प्रतिरूप के बारे में:
- डिजिटल प्रतिरूप एक भौतिक प्रणाली (जैसे, नदी, शहर, मशीन या पारिस्थितिकी तंत्र) की आभासी, रियल टाइम डिजिटल प्रतिकृति है।
- यह लाइव डेटा का उपयोग करके लगातार अद्यतन करता है, जिससे सिमुलेशन, भविष्यवाणी और निर्णय लेने में सुविधा होती है।
- इसके अनुप्रयोग स्मार्ट शहर, सिंचाई, परिवहन नेटवर्क, नदी प्रबंधन, जलवायु मॉडलिंग और अवसंरचना योजना जैसे क्षेत्रों में व्यापक हैं।
हायली गुब्बी ज्वालामुखी | राष्ट्रीय करेंट अफेयर्स | 25 Nov 2025
चर्चा में क्यों?
इथियोपिया में स्थित हायली गुब्बी ज्वालामुखी में भयंकर विस्फोट हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप हजारों मीटर ऊँचाई तक राख के विशाल गुबार उठे। इन राख कणों का एक भाग भारतीय वायुक्षेत्र में प्रवेश कर गया है, जिसके कारण विमानन-संबंधी चेतावनी जारी की गई है।
मुख्य बिंदु
- हायली गुब्बी ज्वालामुखी के बारे में:
- यह ज्वालामुखी उत्तरी-पूर्वी इथियोपिया के अफार क्षेत्र में स्थित है और दानाकिल डिप्रेशन का हिस्सा है, जो पृथ्वी के सबसे गर्म तथा सबसे निम्न स्थलों में से एक है।
- यह विस्फोट महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि अफार क्षेत्र से प्राप्त भूवैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर ऐसा माना जाता है कि यह ज्वालामुखी लगभग 12,000 वर्षों के बाद सक्रिय हुआ है।
- यह विस्फोट पूर्वी अफ्रीकी दरार प्रणाली (EARS) की भूवैज्ञानिक अस्थिरता को रेखांकित करता है, जहाँ सक्रिय ज्वालामुखी, दरार-विस्फोट तथा विस्तृत रेखाएँ सामान्य हैं।
- यह विश्व की अत्यंत विवर्तनिक रूप से सक्रिय दरार प्रणालियों में से एक है, जहाँ अरब, न्युबियन और सोमाली विवर्तनिक प्लेटें अपसरण कर रही हैं।
- इस क्षेत्र की विशेषता बेसाल्टिक लावा, फिशर प्रणालियाँ और महाद्वीपीय विखंडन प्रक्रिया से संबद्ध लगातार भूकंपीय गतिविधियाँ हैं।
ज्वालामुखीय राख और विमानन जोखिम
- ज्वालामुखीय राख अत्यंत सूक्ष्म, घर्षणकारी चट्टानी तथा काँचीय कणों से बनी होती है, जो जेट इंजनों के भीतर प्रवेश कर पिघल सकती है और गंभीर क्षति पहुँचा सकती है।
- जब राख पिघलकर टरबाइन ब्लेड पर पुनः जम जाती है तो जेट इंजन बंद हो सकते हैं।
