खेजड़ी वृक्षों की कटाई | राजस्थान | 24 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान के थार रेगिस्तान, विशेषकर बीकानेर ज़िले में एक गंभीर पर्यावरणीय संघर्ष उभरकर सामने आया है, जहाँ सौर ऊर्जा कंपनियाँ भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया में सदियों पुराने खेजड़ी वृक्षों की कटाई कर रही हैं।
‘हरियाली’ (पर्यावरण संरक्षण) और ‘हरित ऊर्जा’ (सौर ऊर्जा विकास) के मध्य उत्पन्न इस संघर्ष ने स्थानीय किसानों एवं पर्यावरणविदों के व्यापक विरोध प्रदर्शनों को जन्म दिया है, जो कठोर वृक्ष संरक्षण कानूनों की माँग कर रहे हैं।
मुख्य बिंदु
खेजड़ी वृक्ष के बारे में:
- खेजड़ी या खेजरी (Prosopis cineraria), जिसे राजस्थान में शमी के नाम से भी जाना जाता है, एक कठोर, सूखा-प्रतिरोधी वृक्ष है, जो रेगिस्तानी पर्यावरण में अस्तित्व के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
- राजस्थान के पश्चिमी ज़िलों के खेतों में सैकड़ों वर्ष पुराने खेजड़ी वृक्ष आसानी से मिल जाते हैं।
- खेजड़ी के पत्ते, जिन्हें स्थानीय रूप से 'लूक' कहा जाता है, ऊँट, बकरी, भेड़ आदि जैसे पालतू पशुओं के लिये पौष्टिक आहार के रूप में उपयोग किये जाते हैं।
मान्यता:
- खेजड़ी को वर्ष 1983 में आधिकारिक तौर पर राजस्थान का राज्य वृक्ष घोषित किया गया था।
- इसके साथ ही राज्य सरकार ने इसकी सुरक्षा हेतु प्रतिबंध लगाए, जिनमें राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1965 तथा राजस्थान वन अधिनियम, 1953 के तहत खेजड़ी वृक्ष की कटाई पर प्रतिबंध शामिल है।
सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्व:
- वर्ष 1730 ई. में, जोधपुर से लगभग 26 किमी दक्षिण-पूर्व में स्थित एक छोटा-सा गाँव भारत के प्रथम और तीव्र पर्यावरण संरक्षण आंदोलनों में से एक का केंद्र बना।
- इस आंदोलन के 'शहीद' (विशेष रूप से अमृता देवी) बिश्नोई समुदाय के सदस्य थे, जिन्होंने खेजड़ी वृक्षों की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।
- 1970 के दशक में यह बलिदान चिपको आंदोलन की प्रेरणा बना।
संरक्षण के लिये वैकल्पिक रणनीतियाँ:
- पर्यावरणविदों का तर्क है कि सौर ऊर्जा का उत्पादन ऐसे विकल्पों के माध्यम से भी किया जा सकता है, जिनके लिये वृहद स्तर पर वनों की कटाई आवश्यक नहीं है।
- उदाहरणस्वरूप, सौर पैनलों की स्थापना छतों, सरकारी भवनों अथवा नहरों की सतह पर पर की जा सकती है (जैसे पंजाब में सफलतापूर्वक लागू परियोजनाएँ)।
- हालाँकि ये उपाय महँगे सिद्ध हो सकते हैं, किंतु ये इस क्षेत्र की जैवविविधता संरक्षण में सहायक सिद्ध होंगे।
राजस्थान शहरी गैस वितरण (CGD) नीति 2025 | राजस्थान | 24 Jul 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान मंत्रिमंडल ने राजस्थान शहरी गैस वितरण (CGD) नीति 2025 को मंज़ूरी दे दी, जिसका उद्देश्य राज्य में गैस-आधारित ऊर्जा ढाँचे को सशक्त करना है।
मुख्य बिंदु
राजस्थान शहरी गैस वितरण (CGD) नीति 2025
- परिचय:
- इस नीति को जनता को स्वच्छ, सुरक्षित और पर्यावरण अनुकूल प्राकृतिक गैस की आपूर्ति को सुविधाजनक बनाने हेतु डिज़ाइन किया गया है, साथ ही यह राज्य में कार्बन उत्सर्जन में कमी लाने में भी सहायक होगी।
- नीति की समयावधि:
- यह नीति 31 मार्च, 2029 तक अथवा इसके स्थान पर कोई अन्य नीति लागू होने तक प्रभावी रहेगी।
- यह पाँच वर्ष की वैधता सरकार को मध्यावधि समीक्षा और आवश्यकता पड़ने पर सुधार हेतु रूपरेखा प्रदान करती है।
- एकल खिड़की प्रणाली:
- कार्यान्वयन तंत्र के एक भाग के रूप में एक समर्पित CGD पोर्टल विकसित किया जाएगा। यह डिजिटल मंच सभी आवेदनों के प्रबंधन, अनुमोदन की स्थिति पर निगरानी तथा हितधारकों को आवश्यक जानकारी प्रदान करने हेतु एकल-खिड़की प्रणाली के रूप में कार्य करेगा।
- इस पोर्टल से पारदर्शिता, जवाबदेही और परिचालन गति में सुधार होने, नौकरशाही संबंधी देरी समाप्त होने तथा अधिक व्यापार-अनुकूल वातावरण को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- महत्त्व:
- अवसंरचना निवेश: इस नीति के कार्यान्वयन से CGD अवसंरचना में निवेश वृद्धि होगी, जिससे इस क्षेत्र में सतत् विकास को प्रोत्साहन मिलेगा।
- PNG और CNG नेटवर्क का विस्तार: यह नीति पाइप्ड नेचुरल गैस (PNG) तथा कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) नेटवर्क के विस्तार में सहायक सिद्ध होगी, विशेष रूप से छोटे शहरों एवं शहरी क्षेत्रों में, जहाँ वर्तमान में इन सुविधाओं की सीमित पहुँच है।
- सरलीकृत विनियामक प्रक्रियाएँ: नीति में CGD कंपनियों हेतु सरलीकृत और समयबद्ध प्रक्रियाओं का प्रावधान किया गया है, जिससे गैस अवसंरचना की स्थापना एवं संचालन के लिये आवश्यक अनुमतियाँ, भूमि आवंटन तथा सरकारी अनुमोदन की प्रक्रिया सुव्यवस्थित की जा सके।
- पर्यावरणीय एवं आर्थिक प्रभाव: यह नीति आवासीय, औद्योगिक एवं परिवहन क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस के उपयोग को बढ़ावा देने के राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप है।
- उद्देश्य:
- वर्तमान में वंचित क्षेत्रों में प्राकृतिक गैस की पहुँच बढ़ाकर इसका उद्देश्य पर्यावरणीय स्थिरता को प्रोत्साहित करना, जन स्वास्थ्य में सुधार करना तथा ऊर्जा अवसंरचना में आर्थिक निवेश को आकर्षित करना है।