त्वरित उपयोग अनुमोदन: COVID-19 टीका

चर्चा में क्यों?

हाल ही में तीन वैक्सीन निर्माताओं ने अपने COVIID -19 टीकों के लिये त्वरित उपयोग की मंज़ूरी हेतु केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (Central Drug Standard Control Organisation- CDSCO) को आवेदन किया है।

  • निर्माता जिस वैक्सीन के लिये अनुमोदन की मांग कर रहे हैं वे अभी परीक्षण के अधीन है।

प्रमुख बिंदु:

  • COVID -19 टीकों के लिये निर्माता:
    • कोविशील्ड: पुणे स्थित सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया।
      • तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है।
    • कोवैक्सीन:  हैदराबाद की कंपनी भारत बायोटेक।
      •  तीसरे चरण का परीक्षण चल रहा है।
    • BNT162b2: BioNTech के सहयोग से अमेरिकी कंपनी फाइज़र द्वारा।
      • भारत में अब तक कोई परीक्षण नहीं हुआ।
  • भारत में टीकों के अनुमोदन के लिये विनियामक प्रावधान:
    • नई दवाओं और टीकों के नैदानिक परीक्षण तथा उनके अनुमोदन का कार्य औषधि और नैदानिक परीक्षण नियम, 2019 ( Drugs and Clinical Trials Rules, 2019) द्वारा नियंत्रित होते हैं।
  • आपातकालीन प्रावधान:
    • भारतीय नियमों में आपातकालीन उपयोग अनुमोदन का प्रावधान नहीं है, हालाँकि 2019 के नियम कई परिस्थितियों में जैसे- मौजूदा महामारी के लिये "त्वरित अनुमोदन प्रक्रिया"  प्रदान करते हैं।
    • ऐसी स्थितियों में नैदानिक परीक्षणों के तहत रहने वाली एक औषधि को मंजूरी देने का प्रावधान है, बशर्ते औषधि का सार्थक चिकित्सीय लाभ की हो।
    • किसी नई औषधि को उस स्थिति में त्वरित अनुमोदन प्रदान किया जा सकता है यदि वह एक गंभीर या जीवन को खतरे में डालने वाले रोग या देश के लिये विशेष रूप से प्रासंगिक रोग और चिकित्सा आवश्यकताओं को पूरा करती हो।
    • एक नई औषधि या टीके के लिये अनुमोदन हेतु विचार किया जा सकता है यदि इसके चरण- II परीक्षण से भी असाधारण प्रभावशीलता की सूचना मिलती है।
    • ऐसे मामलों में चरण- II परीक्षण के बाद भी अतिरिक्त अध्ययन की आवश्यकता हो सकती है।
    • नैदानिक परीक्षणों के अंतर्गत रहने वाली औषधियों या टीकों को दी गई मंज़ूरी अस्थायी होती है, और केवल एक वर्ष के लिये वैध है।

नैदानिक परीक्षण:

  • नैदानिक परीक्षण का अभिप्राय किसी भी दवा की नैदानिक विशेषताओं की खोज करने अथवा मानवीय स्वास्थ्य पर उस विशिष्ट दवा के प्रभावों को स्पष्ट करने का एक व्यवस्थित अध्ययन है।

नैदानिक परीक्षण के चरण:

  • इसका उद्देश्य यह निर्धारित करना है कि क्या नया यौगिक रोगी के शरीर द्वारा सहन और अनुमानित तरीके से व्यवहार कर सकता है।
  • प्रथम चरण या नैदानिक फार्माकोलॉजी परीक्षण या "पहले मनुष्य में" अध्ययन: इस चरण में  औषधि को किसी डॉक्टर की देख-रेख में वालंटियर की न्यूनतम संख्या (प्रत्येक खुराक के लिये सूचीबद्ध वालंटियर में से कम-से-कम 2) को दिया जाता है।
    • नैदानिक परीक्षण चार चरणों में किये जाते हैं।
  • द्वितीय चरण या समन्वेशी परीक्षण: इस चरण के दौरान औषधि को इसके प्रभाव को निर्धारित करने और अस्वीकार्य दुष्प्रभावों की जाँच करने के लिये 3 से 4 केंद्रों में लगभग 10-12 सूचित रोगियों के समूह को दिया जाता है।.
  • तृतीय चरण या पुष्टिकरण परीक्षण: इसका उद्देश्य एक बड़ी संख्या में रोगियों में दवा की प्रभावकारिता और सुरक्षा के बारे में पर्याप्त प्रमाण प्राप्त करना है, आमतौर पर एक मानक दवा की तुलना में। इस चरण में समूह 1000-3000 विषयों के मध्य होता है।
  • चतुर्थ चरण या विपणन के बाद का चरण: औषधि को डॉक्टरों को उपलब्ध कराने के बाद निगरानी का चरण है, जो इसे निर्धारित करना शुरू करते हैं। किसी भी अप्रत्याशित दुष्प्रभाव की पहचान करने में मदद करने के लिये हजारों रोगियों पर औषधि के प्रभावों की निगरानी की जाती है।

भारत में नियामक तंत्र:

केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (CDSCO)

  • CDSCO स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अंतर्गत स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय का राष्ट्रीय नियामक प्राधिकरण (NRA) है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • देश भर में इसके छह ज़ोनल कार्यालय, चार सब-ज़ोनल कार्यालय, तेरह पोर्ट ऑफिस और सात प्रयोगशालाएँ हैं।
  • विज़न: भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा करना और उसे बढ़ावा देना।
  • मिशन: दवाओं, सौंदर्य प्रसाधन और चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा, प्रभावकारिता  तथा गुणवत्ता बढ़ाकर सार्वजनिक स्वास्थ्य की सुरक्षा करना।
  • ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940 एंड रूल्स 1945 (The Drugs & Cosmetics Act,1940 and rules 1945) के तहत CDSCO दवाओं के अनुमोदन, क्लिनिकल परीक्षणों के संचालन, दवाओं के मानक तैयार करने, देश में आयातित दवाओं की गुणवत्ता पर नियंत्रण और राज्य दवा नियंत्रण संगठनों को विशेषज्ञ सलाह प्रदान करके ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के प्रवर्तन में एकरूपता लाने के लिये उत्तरदायी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस