भारी धातु प्रदूषण को कम करने में स्पंज की भूमिका | 25 Dec 2025

स्रोत: पी. आई. बी.

भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा किये गए एक हालिया अध्ययन में सुंदरबन डेल्टा में पाए जाने वाले ताजे पानी के स्पंजों को भारी धातु प्रदूषण का पता लगाने और उसे कम करने के प्राकृतिक साधन के रूप में पहचाना गया है, जो जैव-संकेतक (बायोइंडिकेटर) और जैव-उपचार (बायोरेमेडिएशन) के कारक के रूप में उनकी दोहरी क्षमता को उजागर करता है।

सारांश

  • सुंदरबन में पाए जाने वाले ताजे पानी के स्पंज भारी धातुओं को जैव-संचित (bioaccumulate) करने की असाधारण क्षमता दिखाते हैं, जिससे वे विश्वसनीय जैव-संकेतक (बायोइंडिकेटर) बनते हैं।
  • प्रदूषण की पहचान और जैव-उपचार में उनकी दोहरी भूमिका विषैली धातु प्रदूषण के प्रबंधन के लिये एक टिकाऊ, पारिस्थितिकी-आधारित दृष्टिकोण प्रदान करती है।

स्पंज क्या होते हैं?

  • परिचय: स्पंज सरल, जलीय प्राणी है जो पोरिफेरा (Porifera) संघ से संबंधित होते हैं। ये पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे प्राचीन और आदिम बहुकोशिकीय जीवों में से हैं, जिनका जीवाश्म रिकॉर्ड 60 करोड़ वर्ष से भी अधिक पुराना है।
  • स्पंज की मुख्य विशेषताएँ:
    • वास्तविक ऊतकों या अंगों का अभाव: इनमें तंत्रिका तंत्र, मांसपेशियाँ या पाचन तंत्र जैसी जटिल शरीर प्रणालियाँ नहीं होतीं
    • फिल्टर-फीडिंग तंत्र: ये अपने शरीर की सतह पर मौजूद अनेक छिद्रों (ओस्टिया) के माध्यम से पानी को खींचते हैं। कोआनोसाइट्स (कॉलर कोशिकाएँ) नामक विशेष कोशिकाएँ पानी से बैक्टीरिया, प्लव्कजन और जैविक कणों को फँसाकर ग्रहण करती हैं, फिर यह ऑस्कुला के माध्यम से बाहर निकाल दिया जाता है।
    • कंकाल: इनमें खनिज स्पिक्यूल्स (जैसे सिलिका, कैल्शियम कार्बोनेट) और/या स्पोंजिन नामक रेशेदार प्रोटीन से बना सरल कंकाल होता है।
    • आवास: अधिकांश स्पंज समुद्री वातावरण में पाए जाते हैं, लेकिन कुछ प्रजातियाँ ताजे पानी में भी रहती हैं (जैसे सुंदरबन में अध्ययन की गई प्रजातियाँ)।
    • सहजीवी संबंध: स्पंज विभिन्न सूक्ष्मजीव समुदायों (बैक्टीरिया, आर्किया) का आवास होते हैं, जो पोषण, रासायनिक सुरक्षा और हालिया शोध के अनुसार जैव-उपचार (बायोरिमेडिएशन) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारी धातु प्रदूषण को कम करने में भूमिका: स्पॉन्ज विषैले धातुओं जैसे आर्सेनिक, सीसा और कैडमियम को अपने अंदर जमा करने में सक्षम होते हैं, और ये धातुएँ आसपास के पानी की तुलना में कहीं अधिक केंद्रित हो जाती हैं। स्पॉन्ज इन धातुओं को अपनी सतह से चिपकाकर या अपने छिद्रयुक्त संरचना में फँसा कर निकालते हैं।

Sponges

भारी धातुएँ क्या हैं?

  • परिचय: भारी धातु ऐसे तत्त्वों का समूह हैं जिनका परमाणु भार और घनत्व अधिक होता है, सामान्यतः 5 g/cm³ से अधिक। भारी धातुओं के सामान्य उदाहरण हैं— सीसा (Pb), आर्सेनिक (As), कैडमियम (Cd) आदि।
  • विशेषताएँ:
    • विषाक्तता: ये बहुत कम मात्रा में भी हानिकारक होती हैं और जीवित जीवों में जमा होकर विषाक्तता या अन्य स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न कर सकती हैं।
    • स्थायित्व: कई भारी धातुएँ आसानी से विघटित नहीं होतीं और लंबे समय तक पर्यावरण में बनी रहती हैं
    • बायोएक्यूमुलेशन: पौधे और जानवर इन्हें अवशोषित कर लेते हैं, जिससे ये खाद्य शृंखला में जमा होती जाती हैं और उच्च स्तर के जीवों के ऊतकों में अधिक मात्रा में संचित हो सकती हैं।
  • प्रमुख स्रोत:

भारत में क्षेत्रीय भारी धातु संदूषण:

राज्य/क्षेत्र  

प्रमुख संदूषक

प्रभावित क्षेत्र

रिपोर्ट किये गए स्वास्थ्य प्रभाव

पश्चिम बंगाल और बिहार

आर्सेनिक, कैडमियम


नदिया ज़िला, कोलकाता

आर्सेनिकोसिस (त्वचा के घाव), दीर्घकालिक फेफड़ों की बीमारी, परिधीय न्यूरोपैथी, श्वसन क्षमता में कमी

पंजाब

सेलेनियम, यूरेनियम, बेरियम


होशियारपुर, नवांशहर, मालवा, लुधियाना

बाल झड़ना, नाखूनों में परिवर्तन, ‘लहसुन जैसी’ साँस, अंगों की कार्यक्षमता में समस्या (यकृत/किडनी), DNA नुकसान, स्तन कैंसर का बढ़ा जोखिम

उत्तर प्रदेश

हेक्सावैलेंट क्रोमियम (Cr VI), आर्सेनिक, सीसा

कानपुर, बलाई

जठरांत्रीय परेशानी, त्वचा में असामान्यताएँ, आँखों में शिकायतें

मध्य प्रदेश

पारा, औद्योगिक प्रदूषक

सिंगरौली, रतलाम, मलांजखंड कंपकंपाहट, पेट में दर्द, श्वसन समस्याएँ, मसूड़ों की समस्याएँ

ओडिशा

लोहा, औद्योगिक भारी धातुएँ

कियोंझर, टालचर, गंजाम तीव्र श्वसन संक्रमण, जलजनित रोग

दिल्ली और  NCR

सीसा, एल्युमिनियम

यमुना नदी बेसिन उच्च रक्त सीसा स्तर (माताओं/बच्चों में), कमज़ोरी, दुश्चिंता, उच्च रक्तचाप, तंत्रिका विषाक्तता

कर्नाटक

चाँदी, कैडमियम

बंगलूरू 

गुर्दे (किडनी) की कार्यक्षमता में कमी, बालों में भारी धातु संचयन

बायोएक्यूमुलेशन

  • बायोएक्यूमुलेशन उस धीरे-धीरे होने वाली प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें हानिकारक और स्थायी विषैले पदार्थ, जैसे भारी धातुएँ, एक एकल जीव के शरीर में जमा हो जाते हैं, जब पर्यावरण, जल, वायु या भोजन उसकी मेटाबोलिज़्म या उत्सर्जन क्षमता से अधिक हो जाता है।
    • बायोमैग्निफिकेशन के विपरीत, जो आहार शृंखला में विभिन्न स्तरों पर होता है, बायोएक्यूमुलेशन व्यक्तिगत स्तर पर होता है और बायोमैग्निफिकेशन को उत्प्रेरित करता है।
    • एक प्रमुख उदाहरण है जलीय प्रणाली में मिथाइलमर्करी (Methylmercury)। औद्योगिक प्रदूषण से उत्पन्न अकार्बनिक पारा जलीय वातावरण में मिथाइलमर्करी में परिवर्तित हो जाता है, जो मछलियों और शेलफिश में जमा हो जाता है।
    • शिकार करने वाली मछलियाँ (जैसे टूना, स्वॉर्डफिश) इसमें उच्च स्तर दिखाती हैं, जिससे मानव उपभोक्ताओं के लिये न्यूरोलॉजिकल नुकसान का जोखिम उत्पन्न होता है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. स्वच्छ जल का स्पंज भारी धातु प्रदूषण के प्रभावी जैव-संकेतक क्यों होते हैं?
इनकी फिल्टर-फीडिंग आदत और उच्च जैव-संचयन क्षमता के कारण आर्सेनिक, सीसा तथा कैडमियम जैसी धातुओं का पता कम पर्यावरणीय सांद्रता पर भी लगाया जा सकता है।

2. बायोएक्यूमुलेशन, बायोमैग्निफिकेशन से कैसे अलग है?
बायोएक्यूमुलेशन एक ही जीव के भीतर होता है, जबकि बायोमैग्निफिकेशन में आहार शृंखला के विभिन्न पोषण स्तरों के साथ विषाक्त पदार्थों की सांद्रता बढ़ती जाती है।

3. भारी धातु विषाक्तता से होने वाली दो प्रसिद्ध बीमारियों के नाम और उनके कारण बताइये।
मिनमाटा रोग मरकरी के कारण होता है और इटाई-इटाई रोग कैडमियम के कारण होता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रश्न. प्रदूषण की समस्याओं का समाधान करने के संदर्भ में जैवोपचारण (बायोरेमीडिएशन) तकनीक के कौन-सा/से लाभ है/हैं ? (2017)

  1. यह प्रकृति में घटित होने वाली जैवनिम्नीकरण प्रक्रिया का ही संवर्द्धन कर प्रदूषण को स्वच्छ करने की तकनीक है। 
  2.  कैडमियम और लेड जैसी भारी धातुओं से युक्त किसी भी संदूषक को सूक्ष्मजीवों के प्रयोग से जैवोपचारण द्वारा सहज और पूरी तरह उपचारित किया जा सकता है। 
  3.  जैवोपचारण के लिये विशेषतः अभिकल्पित सूक्ष्मजीवों को सृजित करने हेतु आनुवंशिक इंजीनियरी (जेनेटिक इंजीनियरिंग) का उपयोग किया जा सकता है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये :

(a) केवल 1 

(b) केवल 2 और 3

(c) केवल 1 और 3 

(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (c)