भविष्य के लिये कुशल कार्यशक्ति हेतु कौशल विकास | 14 May 2025
यह एडिटोरियल 12/05/2025 को ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में प्रकाशित “ITI upscaling project: Plugging the skill gap” पर आधारित है। लेख में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत में पारंपरिक कार्यशालाओं से आधुनिक विनिर्माण की ओर बदलाव के लिये कुशल कार्यबल की आवश्यकता है, जिसके कारण सरकार ने 60,000 करोड़ रुपए की उन्नयन योजना के माध्यम से कौशल अंतर को कम करने और उद्योग संरेखण को बढ़ाने के लिये औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITI) का पुनर्गठन किया है।
प्रिलिम्स के लिये:कौशल भारत मिशन, प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY), श्रम बल भागीदारी, इंडिया स्किल्स रिपोर्ट- 2025, गतिशीलता भागीदारी समझौते (MPA), पूर्व शिक्षण को मान्यता (RPL), राष्ट्रीय प्रशिक्षुता संवर्द्धन योजना (NAPS), PM विश्वकर्मा, कौशल भारत डिजिटल हब, SWAYAM, ब्लॉकचेन मेन्स के लिये:भारत के आर्थिक विकास और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिये कौशल अंतर को कम करना |
भारत एक ऐसे महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है, जहाँ उसके युवा कार्यबल को आधुनिक अर्थव्यवस्था की मांगों को पूरा करने के लिये कौशल से सुसज्जित करना आवश्यक है। जहाँ पारंपरिक कार्यशालाओं का स्थान कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), रोबोटिक्स और सतत् प्रौद्योगिकियों में विशेषज्ञता की मांग वाले उद्योग ले रहे हैं, वहीं कौशल की कमी बनी हुई है। सरकार की हालिया पहलें, जैसे औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थानों (ITIs) का उन्नयन और स्किल इंडिया मिशन, इन अंतरालों को कम करने का लक्ष्य रखते हैं। उद्योग-अनुरूप प्रशिक्षण पर ध्यान केंद्रित करने और सार्वजनिक-निजी साझेदारी को बढ़ावा देकर, ये प्रयास एक ऐसे कार्यबल का निर्माण करना चाहते हैं जो भारत की आर्थिक वृद्धि एवं वैश्विक प्रतिस्पर्द्धा को गति दे सके।
भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के लिये कौशल विकास क्यों महत्त्वपूर्ण है?
- वर्तमान रोज़गार दरें: भारत के स्नातक कौशल सूचकांक 2025 के अनुसार, भारत बढ़ते कौशल अंतराल का सामना कर रहा है, वर्ष 2024 में स्नातक रोज़गार दर सिर्फ 42.6% होगी।
- यह अंतर शैक्षिक परिणामों और उद्योगों की आवश्यकताओं, विशेष रूप से कार्यबल में प्रवेश करने वाले नए स्नातकों के बीच गंभीर असंतुलन को दर्शाता है।
- युवा कौशल अंतराल: भारत की 65% से अधिक जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु की है, फिर भी उनमें से अनेक में आवश्यक, उद्योग-प्रासंगिक कौशल का अभाव है।
- जबकि, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, भारत के युवा कार्यबल का केवल 4.4% औपचारिक रूप से तथा 16.6% अनौपचारिक रूप से प्रशिक्षित है।
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) जैसी पहल इन अंतरालों को दूर करने का प्रयास कर रही हैं, लेकिन जो पढ़ाया जाता है और उद्योग की मांग के बीच का अंतर अभी भी महत्त्वपूर्ण बना हुआ है।
- भारत का जनसांख्यिकीय लाभ: भारत की 28 वर्ष की औसत आयु आर्थिक विकास के लिये एक स्पष्ट लाभ है, जो एक युवा और गतिशील कार्यबल प्रदान करती है।
- हालाँकि, इस जनसांख्यिकीय लाभांश का लाभ उठाने के लिये, यह महत्त्वपूर्ण है कि युवाओं को तेजी से विकसित हो रहे रोज़गार बाज़ार की मांगों को पूरा करने के लिये सही कौशल से लैस किया जाए।
- आर्थिक विकास के बीच कौशल अंतराल: सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक होने के बावजूद, भारत को कौशल की भारी कमी का सामना करना पड़ रहा है जो इसकी विकास क्षमता में बाधा डाल रही है।
- लगभग 65% कंपनियाँ कौशल अंतराल की रिपोर्ट करती हैं, जो उन्हें प्रभावी ढंग से विस्तार और नवाचार करने से रोकता है, जिससे भारत की आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बाधित होती है।
- अल्प-रोज़गार और बेरोज़गारी दर: भारत के शिक्षित कार्यबल का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा कौशल असंतुलन के कारण अल्प-रोज़गार या बेरोज़गार बना हुआ है।
- आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 के अनुसार 50% से अधिक स्नातक और 44% स्नातकोत्तर निम्न कौशल वाली नौकरियों में कार्य कर रहे हैं, जिससे उनके करियर की वृद्धि और आर्थिक गतिशीलता सीमित हो रही है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता बनाए रखने के लिये भारत को अत्यधिक कुशल कार्यबल की आवश्यकता है।
- कुशल श्रम शक्ति वाले देश अधिक विदेशी निवेश आकर्षित करते हैं तथा कौशल विकास कार्यक्रम यह सुनिश्चित करने में मदद करते हैं कि भारत के युवा वैश्विक बाज़ारों में योगदान देने के लिये तैयार हों।
- भारत में कौशल अंतर के कारण प्रमुख क्षेत्रों को सहायता प्रदान करने के लिये चीनी तकनीशियनों के लिये अल्पकालिक वीज़ा स्वीकृत करने हेतु एक पोर्टल की आवश्यकता है।
- कौशल विकास का आर्थिक प्रभाव: कुशल श्रम उत्पादकता को बढ़ाता है, जो प्रत्यक्ष रूप से सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि में योगदान प्रदान करता है।
- कौशल विकास में निवेश करके भारत श्रम शक्ति भागीदारी में सुधार कर सकता है, उत्पादकता बढ़ा सकता है तथा विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक विकास को गति दे प्रदान कर सकता है, जिससे उच्च मज़दूरी और बेहतर रोज़गार सुरक्षा प्राप्त हो सकती है।
- क्षेत्रीय विकास और कौशल मांग: भारत कौशल रिपोर्ट 2025 में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा, इंजीनियरिंग और नवीकरणीय ऊर्जा को भारतीय प्रतिभा के लिये उच्च मांग वाले क्षेत्रों के रूप में पहचाना गया है।
- क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा विज्ञान और स्वचालन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियाँ भारत के कार्यबल विकास प्रयासों के लिये केंद्रीय हैं।
- भारतीय श्रमिकों के लिये अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता: कौशल विकास कार्यक्रम, विशेष रूप से गतिशीलता साझेदारी समझौते (MPA), भारतीय श्रमिकों के लिये वैश्विक रोज़गार बाज़ारों तक पहुँच को सुगम बनाते हैं।
- फ्राँस और जर्मनी जैसे देशों के साथ ये समझौते यह सुनिश्चित करते हैं कि भारतीय श्रमिक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त कौशल हासिल करें, जिससे वे वैश्विक श्रम बाज़ार में अधिक प्रतिस्पर्द्धी बन सकें।
भारत में प्रभावी कौशल विकास में बाधा उत्पन्न करने वाली प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- प्रशिक्षण की गुणवत्ता: भारत के कौशल विकास कार्यक्रम संस्थानों में निरंतर गुणवत्ता की कमी से ग्रस्त हैं।
- प्रशिक्षण केंद्रों (ITI) में बुनियादी ढाँचे, प्रशिक्षकों और संसाधनों के मामले में काफी भिन्नता होती है, जिससे कौशल विकास पहलों की प्रभावशीलता कम हो जाती है।
- उद्योग-अकादमिक संबंधों का अभाव: शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के बीच पर्याप्त सहयोग का अभाव है, जिसके कारण कौशल असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
- PMKVY और स्किल इंडिया जैसी पहलों के अंतर्गत कई पाठ्यक्रम वर्तमान उद्योग की मांग के अनुरूप नहीं हैं, जिससे स्नातक कार्यबल के लिये तैयार नहीं हो पाते।
- उद्योग साझेदारी के अभाव में, भारतीय संस्थान परीक्षाओं और पाठ्यक्रम पूरा करने पर अधिक ध्यान देते हैं तथा गुणात्मक कौशल विकास की उपेक्षा करते हैं।
- इसके विपरीत, अमेरिका में नेशनल साइंस फाउंडेशन और यूरोपीय संघ में होराइज़न यूरोप जैसे मॉडल शिक्षा जगत और उद्योग के बीच सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
- कौशल विकास कार्यक्रमों में महिलाओं की कम भागीदारी: सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं और अपर्याप्त सहायता प्रणालियों के कारण कौशल विकास कार्यक्रमों में महिलाओं की भागीदारी सीमित बनी हुई है।
- यद्यपि PMKVY जैसे कार्यक्रमों से महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, फिर भी उच्च कौशल वाले क्षेत्रों में लैंगिक असमानता बनी हुई है।
- बुनियादी ढाँचे की कमी: आधुनिक बुनियादी ढाँचे की कमी, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण तक पहुँच को सीमित करती है।
- दूरदराज के क्षेत्रों में प्रशिक्षण केंद्रों में अक्सर आवश्यक संसाधनों की कमी होती है, जिससे इन क्षेत्रों के युवाओं के लिये प्रभावी कौशल विकास प्राप्त करना मुश्किल हो जाता है।
- मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन: प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से प्रदान किये जाने वाले कौशल और उद्योगों द्वारा अपेक्षित कौशल के बीच एक बड़ा अंतर है।
- AI, साइबर सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, जिसे मौजूदा कार्यक्रम प्रभावी ढंग से पूरा करने में विफल रहते हैं।
- इसके अलावा, बड़ी संख्या में ITI में आवश्यक मशीनरी चलाने के लिये प्रशिक्षित प्रशिक्षकों का अभाव है।
- AI, साइबर सुरक्षा और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल की आवश्यकता होती है, जिसे मौजूदा कार्यक्रम प्रभावी ढंग से पूरा करने में विफल रहते हैं।
- अनौपचारिक कौशल की अपर्याप्त मान्यता: भारत के अनौपचारिक कार्यबल में कुशल होने के बावजूद, उनकी विशेषज्ञता को औपचारिक मान्यता नहीं मिल पाती है।
- पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) कार्यक्रम
- पूर्व शिक्षण की मान्यता (RPL) जैसी पहल अनौपचारिक कौशल को प्रमाणित करने के लिये कार्य कर रही हैं, लेकिन पहुँच और कार्यान्वयन सीमित है।
- प्रशिक्षुता और कार्यस्थल पर प्रशिक्षण का अभाव: जर्मनी जैसे अन्य देशों की तुलना में भारत में प्रशिक्षुता मॉडल अविकसित है।
- जबकि राष्ट्रीय प्रशिक्षु संवर्द्धन योजना (NAPS) जैसे कार्यक्रम प्रशिक्षुता के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने में उद्योग की अनिच्छा समग्र प्रभाव को सीमित करती है।
प्रमुख कौशल विकास योजनाएँ और पहल
- कौशल भारत मिशन
- प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY)
- प्रधानमंत्री राष्ट्रीय शिक्षुता संवर्द्धन योजना (PM-NAPS)
- इंडिया स्किल्स एक्सेलेरेटर (ISA)
- जन शिक्षण संस्थान (JSS) योजना
- प्रधानमंत्री कौशल केंद्र (PMKK)
- PM विश्वकर्मा योजना
- SANKALP (आजीविका संवर्द्धन हेतु कौशल अधिग्रहण और ज्ञान जागरूकता)
- STRIVE (औद्योगिक मूल्य संवर्द्धन हेतु कौशल सुदृढ़ीकरण)
- दीन दयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्य योजना (DDU-GKY)
- पूर्व शिक्षण को मान्यता (RPL)
कौशल विकास को बढ़ावा देने में सरकारी पहल कितनी प्रभावी रही हैं?
- सरकारी हस्तक्षेप और पहल: भारत सरकार ने कौशल की कमी से निपटने के लिये स्किल इंडिया और PMKVY सहित कई पहल शुरू की हैं।
- इन कार्यक्रमों का लक्ष्य अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रशिक्षण दोनों हैं, जिनका उद्देश्य कार्यबल को उद्योग-प्रासंगिक कौशल से सुसज्जित करना है।
- हालाँकि, उनकी समग्र प्रभावशीलता खराब उद्योग संरेखण और असंगत प्रशिक्षण गुणवत्ता जैसी चुनौतियों से सीमित है।
- पुनर्गठित कौशल भारत कार्यक्रम: भारत की कौशल विकास प्रणाली को एकाकी दृष्टिकोण के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिससे कार्यक्रमों का प्रभाव सीमित हो गया है।
- उद्योग-अकादमिक क्षेत्र में समन्वय की कमी के कारण प्रभावी कौशल और रोज़गारपरकता में बाधा उत्पन्न हुई है, जिसके कारण अधिक एकीकृत और उद्योग-संरेखित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- कौशल भारत कार्यक्रम के पुनर्गठन में PMKVY 4.0, PM-NAPS और JSS जैसे प्रमुख घटकों को शामिल किया गया है।
- इस समग्र योजना का उद्देश्य प्रशिक्षण को उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप बनाना तथा संरचित कौशल विकास और अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता पहलों के माध्यम से रोज़गार क्षमता को बढ़ाना है।
- निम्न प्लेसमेंट दर: PMKVY और कौशल भारत मिशन ने पूरे भारत में लाखों व्यक्तियों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित किया है।
- हालाँकि, 31.55 मिलियन उम्मीदवारों के नामांकन के बावजूद, PMKVY-प्रशिक्षित व्यक्तियों में से केवल 18% को ही रोज़गार मिल पाया है।
- यह निम्न प्लेसमेंट दर प्रशिक्षण कार्यक्रमों और वास्तविक उद्योग आवश्यकताओं के बीच बेहतर संरेखण की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
- प्रशिक्षुता प्रशिक्षण और DBT: PM-NAPS के तहत प्रशिक्षुता कार्यक्रमों में वृद्धि हुई है, वित्त वर्ष 2024-25 में 2,77,036 प्रशिक्षुओं को शामिल किया गया है। जुलाई 2024 तक प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले प्रशिक्षुओं की कुल संख्या 7.46 लाख है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली में भी उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, जिसके तहत DBT के माध्यम से प्रशिक्षुओं को 122.36 करोड़ रुपये वितरित किये गए।
- हालाँकि, उच्च प्रशिक्षण लागत और संभावित क्षति की चिंता के कारण उद्योग प्रशिक्षुओं को नियुक्त करने में हिचकिचाते हैं।
- यह सीमित भागीदारी युवाओं के लिये वास्तविक रूप से विश्व के प्रशिक्षण अवसरों को बढ़ाने में योजना की समग्र प्रभावशीलता को कम करती है।
- महिलाओं की भागीदारी में वृद्धि: PMKVY और JSS जैसे सरकारी कार्यक्रमों ने कौशल विकास पहलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है।
- यद्यपि प्रशिक्षित महिलाओं की संख्या में वृद्धि हुई है, फिर भी लैंगिक समावेशिता एक चुनौती बनी हुई है, विशेष रूप से प्रौद्योगिकी और विनिर्माण जैसे उच्च-कौशल क्षेत्रों में, जहाँ महिलाओं की भागीदारी अभी भी कम है।
- क्षेत्र-विशिष्ट पहल: सरकार का ध्यान क्षेत्र-विशिष्ट कौशल कार्यक्रमों जैसे पीएम विश्वकर्मा, पर है, जिसका उद्देश्य पारंपरिक कौशल का आधुनिकीकरण करना है।
- ये कार्यक्रम उभरती प्रौद्योगिकियों को शामिल करते हैं तथा यह सुनिश्चित करते हैं कि श्रमिक कृत्रिम बुद्धि, नवीकरणीय ऊर्जा तथा हरित प्रौद्योगिकियों जैसे क्षेत्रों में विरासत कौशल और भविष्य के लिये तैयार क्षमताओं से सुसज्जित हों।
- कौशल विकास का डिजिटलीकरण: स्किल इंडिया डिजिटल हब ने ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के माध्यम से कौशल प्रशिक्षण तक पहुँच में काफी सुधार किया है।
- 60 लाख से अधिक शिक्षार्थियों के पंजीकृत होने के साथ, यह पहल कौशल विकास के लिए विस्तार योग्य समाधान प्रदान करती है, विशेष रूप से दूरदराज और वंचित समुदायों को लाभान्वित करते हुए उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा तक पहुंच को सर्वसुलभ बना रही है।
- गुणवत्ता आश्वासन और मान्यता: राष्ट्रीय कौशल योग्यता फ्रेमवर्क (NSQF) के साथ प्रमाणपत्रों को संरेखित करने से विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से अर्जित कौशल की औपचारिक मान्यता सुनिश्चित होती है।
- हालाँकि यह एक कदम आगे है, लेकिन इन प्रमाणपत्रों के महत्त्व को बढ़ाने के लिये और अधिक कार्य करने की आवश्यकता है, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्रों में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिये, जहाँ मान्यता एक चुनौती बनी हुई है।
- निजी क्षेत्र की भूमिका: कौशल विकास प्रयासों को बढ़ाने में निजी क्षेत्र की भागीदारी महत्त्वपूर्ण रही है, विशेष रूप से CSR कार्यक्रमों के माध्यम से।
- सरकार के साथ सहयोग से प्रशिक्षण की गुणवत्ता में सुधार हुआ है और यह सुनिश्चित किया गया है कि यह उद्योगों की मांगों को पूरा करे। इससे एक अधिक प्रभावी कौशल विकास पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण हो रहा है।
- कौशल विकास में तकनीकी नवाचार: स्वयं और कौशल भारत जैसे तकनीकी प्लेटफार्मों ने पूरे भारत में कौशल प्रशिक्षण तक पहुँच का विस्तार किया है।
- ये प्लेटफॉर्म व्यक्तिगत शिक्षण पथ बनाने के लिये AI और डेटा एनालिटिक्स का लाभ उठाते हैं, जिससे विविध पृष्ठभूमि के व्यक्तियों के लिये आज के रोज़गार हेतु प्रासंगिक कौशल हासिल करना आसान हो जाता है।
- वैश्विक मानकों पर भारत को कुशल बनाना: वैश्विक कौशल मानकों को पूरा करने के लिये भारत के प्रयासों को कौशल भारत अंतर्राष्ट्रीय केंद्रों और फ्राँस और जर्मनी जैसे देशों के साथ रणनीतिक समझौता ज्ञापनों में देखा जाता है।
- NSDC ने 131 से अधिक उद्योग साझेदारियाँ की हैं, जिससे 3.10 लाख से अधिक व्यक्ति लाभान्वित हुए हैं।
- स्किल इम्पैक्ट बॉण्ड जैसी पहलों ने प्रशिक्षण और नौकरी के लिये निजी क्षेत्र से धन आकर्षित किया है।
कौशल अंतर को कम करने और रोज़गार क्षमता बढ़ाने हेतु कौन-से सुधार आवश्यक हैं?
- बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल का बेहतर मानचित्रण: भारत के कौशल पारिस्थितिकी तंत्र को रोज़गार बाज़ार की आवश्यकताओं के साथ कौशल के बेहतर संरेखण की आवश्यकता है।
- क्षेत्र कौशल परिषदें (SSC) बाज़ार की मांग के अनुरूप कौशल का मानचित्रण करने में मदद कर सकती हैं, लेकिन प्रासंगिक प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिये सभी क्षेत्रों में अधिक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय कौशल विकास निगम (NSDC) द्वारा स्वायत्त, उद्योग-नेतृत्व वाली संस्थाओं के रूप में स्थापित SSS, NSQF के साथ संरेखित होते हैं तथा संबद्धता, मान्यता और प्रमाणन प्रक्रियाओं को मानकीकृत करते हैं।
- क्षेत्र कौशल परिषदें (SSC) बाज़ार की मांग के अनुरूप कौशल का मानचित्रण करने में मदद कर सकती हैं, लेकिन प्रासंगिक प्रशिक्षण सुनिश्चित करने के लिये सभी क्षेत्रों में अधिक समन्वित प्रयास की आवश्यकता है।
- उन्नत उद्योग-अकादमिक सहयोग: उद्योगों और शैक्षिक संस्थानों के बीच गहन सहयोग से यह सुनिश्चित होगा कि कौशल कार्यक्रम वर्तमान मांगों को पूरा करेंगे।
- उद्योगों और शिक्षा जगत के बीच संयुक्त प्रयासों से ऐसे पाठ्यक्रम तैयार होंगे, जो छात्रों को कार्यबल के लिये बेहतर ढंग से तैयार करेंगे।
- प्रशिक्षुता और कार्य-आधारित शिक्षा का विस्तार: वास्तविक दुनिया का अनुभव प्रदान करने के लिये प्रशिक्षुता के अवसरों का विस्तार करना महत्त्वपूर्ण है।
- प्रशिक्षुता अधिनियम में सुधारों से नियोक्ताओं को प्रशिक्षुता में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित (विशेष रूप से AI, नवीकरणीय ऊर्जा एवं साइबर सुरक्षा जैसे उच्च विकास वाले क्षेत्रों में) किया जाना चाहिये।
- लैंगिक समावेशिता पर ध्यान: महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिये, कौशल कार्यक्रमों को उन सामाजिक-सांस्कृतिक बाधाओं को दूर करना होगा, जो प्रशिक्षण तक महिलाओं की पहुँच को सीमित करती हैं।
- लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण केंद्र, कुशल कार्यक्रम और बाल देखभाल सुविधाएँ महिलाओं की अधिक भागीदारी सुनिश्चित करने में मदद करेंगी।
- डिजिटल कौशल और बुनियादी ढाँचे का विकास: भारत को AI और ब्लॉकचेन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में कौशल प्रशिक्षण प्रदान करने के लिये डिजिटल शिक्षण बुनियादी ढाँचे का विस्तार करना चाहिये।
- स्किल इंडिया डिजिटल प्लेटफॉर्म को और बेहतर बनाया जाए ताकि यह स्थानीय भाषाओं में, क्षेत्रीय ज़रूरतों के अनुरूप और अधिक आकर्षक शिक्षण सामग्री उपलब्ध करा सके।
- अनौपचारिक कौशल की मान्यता: सुधारों को अनौपचारिक क्षेत्र के कौशल को औपचारिक बनाने तथा मौजूदा विशेषज्ञता के लिये प्रमाणन प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इससे श्रमिकों को बेहतर नौकरियों तक पहुँच प्राप्त करने तथा उनकी वेतन संभावनाओं में सुधार करने में मदद मिलेगी, विशेष रूप से निर्माण जैसे क्षेत्रों में, जहाँ अनौपचारिक कौशल प्रचलित हैं।
- निजी क्षेत्र की भागीदारी: कर प्रोत्साहन, अनुदान और उद्योग-आधारित प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
- ये साझेदारियाँ यह सुनिश्चित करेंगी कि कौशल कार्यक्रम सतत् और वास्तविक समय की उद्योग आवश्यकताओं के अनुरूप हों।
- सॉफ्ट स्किल्स और व्यावसायिक तत्परता: व्यावसायिक शिक्षा में संचार, नेतृत्व और समस्या समाधान जैसे सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण को एकीकृत करना आवश्यक है।
- ये कार्यक्रम यह सुनिश्चित करेंगे कि स्नातक स्तर के रोज़गार के लिये तैयार हों और आधुनिक कार्यस्थल पर उत्कृष्टता प्राप्त कर सकें, जिससे उनकी रोज़गार क्षमता बढ़ सके।
निष्कर्ष:
भारत की कौशल विकास पहल उभरते उद्योग की मांगों के साथ कार्यबल को संरेखित करने में महत्त्वपूर्ण हैं। सरकार के रणनीतिक सुधार, निजी क्षेत्र की सक्रिय भागीदारी के साथ, कौशल अंतराल को कम और रोज़गार क्षमता को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक हैं। ये प्रयास भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश को साकार करने और सतत् आर्थिक विकास सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: भारत के कौशल विकास कार्यक्रमों को उभरती डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था की मांगों के साथ सुसंगत बनाने के समक्ष आने वाली चुनौतियों और संभावित समाधानों पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्स:प्रश्न 1. प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युत्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न 1. “भारत में जनांकिकीय लाभांश तब तक सैद्धांतिक ही बना रहेगा जब तक कि हमारी जनशक्ति अधिक शिक्षित, जागरूक, कुशल और सृजनशील नहीं हो जाती।” सरकार ने हमारी जनसंख्या को अधिक उत्पादनशील और रोज़गार-योग्य बनने की क्षमता में वृद्धि के लिये कौन-से उपाय किये हैं? |