प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन | 06 Jul 2022

यह एडिटोरियल 04/07/2022 को ‘द मिंट’ में प्रकाशित “Microbes that devour plastic offer hope for recycling plans” लेख पर आधारित है। इसमें प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन और संबंधित मुद्दों के बारे में चर्चा की गई है।

संदर्भ

प्लास्टिक उन सर्वाधिक दबावकारी पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है जिसका हम आज सामना कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि भारत सालाना लगभग 35 लाख टन प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पन्न कर रहा है।

  • नगर निकाय के ठोस अपशिष्ट, प्लास्टिक अपशिष्ट से लेकर ऑटोमोबाइल कचरे तक, देश में उत्पादित अपशिष्ट की मात्रा वर्ष 2025 तक 3 गुना हो जाने का अनुमान है। कुल प्लास्टिक के दसवें हिस्से से भी कम का पुनर्नवीनीकरण किया जाता है। प्लास्टिक अपशिष्ट में भारी मात्रा में रिसाव देश में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन हेतु विभिन्न प्रयासों के लिये एक प्रबल आह्वान की मांग रखता है।
  • इस संदर्भ में प्लास्टिक अपशिष्ट से जुड़े मुद्दों और समाधानों पर विचार करना प्रासंगिक होगा।

प्लास्टिक का महत्त्व

  • प्रतिरोधी, निष्क्रिय और हल्का होने के साथ प्लास्टिक कंपनियों, उपभोक्ताओं और समाज में अन्य लिंक्स के लिये कई लाभ प्रदान करता है। ऐसा इसकी निम्न लागत और बहुमुखी प्रकृति के कारण है।
  • चिकित्सा उद्योग में वस्तुओं को रोगाणुहीन या स्टेराइल (Sterile) रखने के लिये प्लास्टिक का उपयोग किया जाता है। सीरिंज और सर्जिकल इम्प्लेमेंट्स प्लास्टिक के बने होते हैं और एकल-उपयोग (Single-use) के रूप में व्यवहृत होते हैं।
  • मोटर वाहन उद्योग में इसने वाहनों के वजन में उल्लेखनीय कमी लाने, ईंधन की खपत को कम करने और इस प्रकार ऑटोमोबाइल के पर्यावरणीय प्रभाव को कम रखने का अवसर प्रदान किया है।
    • प्लास्टिक हेलमेट के रूप में हमारे सिर की रक्षा करते हैं, वे हमें हमारी कारों में सीटबेल्ट, ईंधन टैंक, विंडस्क्रीन और एयरबैग के रूप में सुविधा और सुरक्षा प्रदान करते हैं।

प्लास्टिक से संबद्ध वास्तविक समस्या कहाँ है?

  • ‘सिंगल यूज प्लास्टिक’:
    • प्लास्टिक का उत्पादन मुख्य रूप से कच्चे तेल, गैस या कोयले से होता है और कुल प्लास्टिक का लगभग 40% एकल उपयोग के बाद फेंक दिया जाता है।
      • प्लास्टिक के साथ हमारा संबंध अल्पकालिक आवश्यकता या उपयोग पर केंद्रित है। इनमें से कई उत्पाद, जैसे प्लास्टिक बैग और फूड रैपर का जीवनकाल मात्र कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों तक का होता है, फिर भी वे सैकड़ों वर्षों तक पर्यावरण में बने रह सकते हैं।
  • ‘माइक्रोप्लास्टिक्स’:
    • समुद्र, सूर्य की किरणें, हवा और लहरें प्लास्टिक अपशिष्ट को छोटे-छोटे कणों में तोड़ देती हैं, जो प्रायः एक इंच के पाँचवें हिस्से से भी छोटे होते हैं और माइक्रोप्लास्टिक कहे जाते हैं। ये जल-स्तंभ के सभी भागों में फैले हुए हैं और दुनिया के हर कोने में पाये गए हैं।
      • माइक्रोप्लास्टिक और सूक्ष्मतर टुकड़ों में विखंडित होते हुए ‘प्लास्टिक माइक्रोफाइबर’ का निर्माण करते हैं। ये खतरनाक रूप से नगरपालिका के पेयजल प्रणालियों में और हवा में बहते हुए पाये गए हैं।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन का कड़ाई से अनुपालन नहीं:
    • वैश्विक स्तर पर लगभग एक चौथाई प्लास्टिक अपशिष्ट का संग्रहण ही नहीं किया जाता।
      • कम समृद्ध देशों में अपशिष्ट प्लास्टिक को कभी-कभी खुले में जलाया जाता है जिससे हवा में जहरीले रसायन का उत्सर्जन होता है।

भारत में प्लास्टिक अपशिष्ट से संबंद्ध प्रमुख मुद्दे

  • प्रति व्यक्ति अधिक प्लास्टिक:
    • हमारे टूथब्रश से लेकर डेबिट कार्ड तक प्लास्टिक इतना सर्वव्यापी हो गया है कि विश्व के अधिकांश भागों की तरह भारत भी प्लास्टिक अपशिष्ट की बढ़ती मात्रा के निपटान के लिये संघर्ष कर रहा है। प्रतिदिन 10,000 टन से अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट का संग्रहण ही नहीं होता।
  • असंवहनीय पैकेजिंग:
    • भारत का पैकेजिंग उद्योग प्लास्टिक का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भारत में पैकेजिंग पर वर्ष 2020 के एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया कि अगले दशक में असंवहनीय पैकेजिंग (Unsustainable packaging) के कारण प्लास्टिक सामग्री मूल्य के लगभग 133 बिलियन डॉलर का नुकसान होगा।
      • अनसस्टेनेबल पैकेजिंग में सिंगल यूज प्लास्टिक के माध्यम से सामान्य पैकेजिंग करना शामिल है।
  • ऑनलाइन डिलीवरी:
    • ऑनलाइन रिटेल और फूड डिलीवरी ऐप की लोकप्रियता (यद्यपि बड़े शहरों तक सीमित) प्लास्टिक अपशिष्ट की वृद्धि में योगदान दे रही है।
    • भारत के सबसे बड़े ऑनलाइन फ़ूड डिलीवरी स्टार्टअप ‘स्विगी’ और ‘ज़ोमैटो’ कथित रूप से प्रति माह लगभग 28 मिलियन ऑर्डर की डिलीवरी करते हैं।
    • प्लास्टिक पैकेजिंग के अत्यधिक उपयोग के लिये ई-कॉमर्स कंपनियाँ भी निंदा का शिकार हो रही हैं।
  • खाद्य शृंखला में अवरोध:
    • प्रदूषणकारी प्लास्टिक प्लवक (Plankton) जैसे नन्हे जीवों को प्रभावित कर सकते हैं। जब ये जीव प्लास्टिक के अंतर्ग्रहण के कारण जहरीले बन जाते हैं तो इससे उन पर खाद्य के लिये निर्भर बड़े जीवों के लिये खाद्य संकट उत्पन्न होता है।
      • प्लास्टिक बैग्स और स्ट्रॉ जैसी बड़ी वस्तुएँ समुद्री जीवों के गले में फँस उनके लिये जीवन का संकट उत्पन्न कर सकती हैं, जबकि प्लास्टिक के छोटे टुकड़े (माइक्रोप्लास्टिक) समुद्री जीवों में जिगर, प्रजनन और जठरांत्र संबंधी क्षति का कारण बन सकते हैं। यह परिदृश्य प्रत्यक्षतः ‘नीली अर्थव्यवस्था’ (Blue economy) को प्रभावित कर सकता है।
  • मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2018 में एक चौंकाने वाला शोध प्रकाशित किया जहाँ पाया गया था कि 90% बोतलबंद जल में माइक्रोप्लास्टिक उपस्थित थे।
      • हम अपने कपड़ों के माध्यम से भी प्लास्टिक का अवशोषण करते हैं, जो 70% तक सिंथेटिक होते हैं और त्वचा के लिये सबसे नुकसानदेह फैब्रिक होते हैं।
      • खुली हवा में कचरा जलाने जैसे खराब कचरा प्रबंधन के कारण हम श्वसन से भी प्लास्टिक ग्रहण करते हैं।
      • मनुष्यों में प्लास्टिक विषाक्तता से हार्मोन संबंधी व्यवधान और प्रतिकूल प्रजनन एवं जन्म परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।

भारत प्लास्टिक अपशिष्ट संबंधी चिंताओं को कैसे संबोधित कर रहा है?

  • एकल उपयोग प्लास्टिक के उन्मूलन और प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन पर राष्ट्रीय डैशबोर्ड (National Dashboard on Elimination of Single Use Plastic and Plastic Waste Management):
    • भारत ने जून 2022 में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सिंगल यूज प्लास्टिक पर एक राष्ट्रव्यापी जागरूकता अभियान शुरू किया ।
    • नागरिकों को अपने क्षेत्र में सिंगल यूज प्लास्टिक की बिक्री/उपयोग/विनिर्माण को नियंत्रित करने और प्लास्टिक के खतरे से निपटने हेतु सशक्त बनाने के लिये ‘सिंगल यूज प्लास्टिक शिकायत निवारण’ के लिये एक मोबाइल ऐप भी लॉन्च किया गया।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन संशोधन नियम, 2022:
    • यह 1 जुलाई, 2022 से विभिन्न एकल उपयोग प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध आरोपित करता है।
    • इसने ‘विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व’ (Extended Producer Responsibility- EPR) को भी अनिवार्य बनाया है जिसमें उत्पादों के निर्माताओं के लिये उत्पादों के जीवनकाल के अंत में इन उत्पादों को एकत्र और संसाधित करने की जवाबदेही के साथ ‘सर्कुलरिटी’ की अवधारणा शामिल है।
  • इंडिया प्लास्टिक पैक्ट’:
    • यह एशिया में अपनी तरह का पहला प्रयास है। प्लास्टिक पैक्ट सामग्री की मूल्य शृंखला के भीतर प्लास्टिक को कम करने, पुन: उपयोग करने और पुनर्चक्रण करने के लिये हितधारकों को एक साथ लाने का एक महत्त्वाकांक्षी और सहयोगी पहल है।
  • ‘प्रकृति’ शुभंकर:
    • बेहतर पर्यावरण के लिये जीवन शैली में स्थायी रूप से अपनाए जा सकने वाले छोटे बदलावों के बारे में जनता के बीच जागरूकता प्रसार के उद्देश्य से ‘प्रकृति’ शुभंकर को लॉन्च किया गया है।
  • प्रोजेक्ट रिप्लान’:
    • खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा प्रोजेक्ट रिप्लान (REPLAN: REducing PLastic in Nature) लॉन्च किया गया है जिसका उद्देश्य अधिक संवहनीय विकल्प प्रदान कर प्लास्टिक थैलियों की खपत को कम करना है।

प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन के प्रभावी समाधान कौन-से हो सकते हैं?

  • ‘हॉटस्पॉट’ की पहचान:
    • प्लास्टिक के उत्पादन, उपभोग और निपटान से संबद्ध प्लास्टिक लीकेज के प्रमुख हॉटस्पॉट की पहचान करने से सरकारों को ऐसी प्रभावी नीतियाँ विकसित करने में मदद मिल सकती है जो प्रत्यक्ष रूप से प्लास्टिक की समस्या का समाधान करें।
  • विकल्पों की अभिकल्पना:
    • इस दिशा में पहला कदम होगा प्लास्टिक की उन वस्तुओं की पहचान करना जिन्हें गैर-प्लास्टिक, पुनर्चक्रण-योग्य या जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) सामग्री से बदला जा सकता है। उत्पाद डिज़ाइनरों के सहयोग से एकल उपयोग प्लास्टिक के विकल्पों और पुन: प्रयोज्य डिज़ाइन वस्तुओं का निर्माण किया जाना चाहिये।
      • ‘ऑक्सो-बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक’ (Oxo-biodegradable plastics) के उपयोग को बढ़ावा देना जो कि आम प्लास्टिक की तुलना में अल्ट्रा-वायलेट विकिरण और ऊष्मा से अधिक तीव्रता से विखंडित हो सकते हैं।
  • प्लास्टिक अपशिष्ट का अपघटन:
    • प्लास्टिक हमारे पारिस्थितिकी तंत्र में इतने अराजक तरीके से फैल गए हैं कि उनके अपघटन के लिये जीवाणु का उभार हुआ है।
      • जापान में खोजे गए प्लास्टिक खाने वाले जीवाणु को पॉलियेस्टर प्लास्टिक (खाद्य पैकेजिंग और प्लास्टिक की बोतलों में प्रयुक्त) के अपघटन के लिये संवर्द्धित और संशोधित किया गया है।
  • प्रौद्योगिकियों और नवाचारों के माध्यम से पुनर्चक्रण:
    • अपशिष्ट, विशेष रूप से प्लास्टिक मूल्यवान और एक उपयोगी संसाधन भी सिद्ध हो सकता है। पुनर्चक्रण, विशेष रूप से प्लास्टिक पुनर्चक्रण, एक ऐसी प्रणाली स्थापित करता है जो अपशिष्ट के लिये एक मूल्य शृंखला का निर्माण करता है।
    • मदुरै में अवस्थित त्यागराज कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग ने बेकार प्लास्टिक से टाइल और ब्लॉक बनाने का पेटेंट प्राप्त किया है।
      • ये टाइलें अत्यधिक भार सहन कर सकने में सक्षम हैं और इनका उपयोग भवन निर्माण सामग्री के रूप में किया जा सकता है।
  • प्लास्टिक मुक्त कार्यस्थल को बढ़ावा देना:
    • सभी खानपान गतिविधियों को एकल उपयोग प्लास्टिक के इस्तेमाल से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये।
      • कर्मियों और ग्राहकों को अपनी आदतों में सुधार करने के लिये प्रोत्साहित करने हेतु सभी एकल उपयोग वस्तुओं को पुन: प्रयोज्य वस्तुओं या अधिक संवहनीय एकल उपयोग विकल्पों के साथ प्रतिस्थापित किया जा सकता है।
  • प्लास्टिक प्रबंधन के लिये परिपत्र अर्थव्यवस्था:
    • परिपत्र अर्थव्यवस्था (Circular economy) सामग्री के उपयोग को कम कर सकती है, सामग्री को कम संसाधन गहन बनाने के लिये पुन:अभिकल्पित कर सकती है और नई सामग्री एवं उत्पादों के निर्माण के लिये अपशिष्ट का संसाधन के रूप में पुनः उपयोग कर सकती है।
      • परिपत्र अर्थव्यवस्था न केवल प्लास्टिक और कपड़ों की वैश्विक धाराओं पर लागू होती है, बल्कि सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकती है।
  • बहु-हितधारक सहयोग:
    • राष्ट्रीय और स्थानीय स्तर पर सरकारी मंत्रालयों को नीतियों के विकास, कार्यान्वयन और निरीक्षण में सहयोग करना चाहिये, जिसमें औद्योगिक फर्मों, गैर-सरकारी संगठनों और स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी भी संलग्न की जाए।

प्लास्टिक अपशिष्ट से निपटने के लिये वर्तमान वैश्विक पहलें

  • संकल्प:
    • वर्ष 2022 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (United Nations Environment Assembly) के भारत सहित 124 पक्षकार देशों ने एक समझौते के निर्माण के लिये एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किये, जो भविष्य में हस्ताक्षरकर्ताओं के लिये प्लास्टिक प्रदूषण के उन्मूलन हेतु उत्पादन से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के पूर्ण जीवन को संबोधित करना कानूनी रूप से बाध्यकारी बना देगा।
      • जुलाई 2019 तक 68 देशों में अलग-अलग प्रवर्तन स्तर के साथ प्लास्टिक बैग पर प्रतिबंध आरोपित किया गया था।
  • यूरोपीय संघ:
    • जुलाई 2021 में यूरोपीय संघ (EU) में ‘एकल उपयोग प्लास्टिक पर निर्देश’ (Directive on Single-Use Plastics) प्रभावी किया गया।
  • ‘क्लोजिंग द लूप’ (Closing the loop):
    • यह एशिया और प्रशांत क्षेत्र के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक आयोग (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific) की एक परियोजना है जो समस्या से निपटने के लिये अधिक आविष्कारशील नीति समाधान विकसित करने में शहरों की सहायता करती है।
  • वैश्विक पर्यटन प्लास्टिक पहल (Global Tourism Plastics initiative):
    • इसका उद्देश्य वर्ष 2025 तक कार्रवाई योग्य प्रतिबद्धताओं की एक शृंखला के माध्यम से पर्यटन क्षेत्र से प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना है।
      • यह पहल शत प्रतिशत प्लास्टिक पैकेजिंग को पुन: प्रयोज्य, पुनर्चक्रण योग्य या खाद निर्माण योग्य बनाने के लिये बढ़ावा देने हेतु मूल्य शृंखला को भी संलग्न करेगी और प्लास्टिक के लिये पुनर्चक्रण एवं खाद निर्माण दर को बढ़ाने में सहयोग करने तथा निवेश करने के लिये प्रतिबद्ध होगी।

अभ्यास प्रश्न: वर्तमान में प्लास्टिक हमारे समक्ष सर्वाधिक दबावकारी पर्यावरणीय मुद्दों में से एक बन गया है। देश में प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन से संबंधित वर्तमान परिदृश्य और प्राप्त किये जा सकने वाले लक्ष्यों के विवरण दीजिये।