भारत की रक्षा का आधुनिकीकरण | 08 May 2025

यह एडिटोरियल 06/05/2025 को लाइवमिंट में प्रकाशित “भारत की रक्षा नीति को 3.5-फ्रंट सुरक्षा चुनौती के लिये तैयार रहना चाहिये” पर आधारित है। यह लेख भारत के लिये घातक आतंकी हमले के बाद अपनी रक्षा रणनीति में सुधार करने की तत्काल आवश्यकता को सामने लाता है, आधुनिकीकरण, स्वदेशीकरण और उन्नत अनुसंधान एवं विकास पर ज़ोर देता है।

प्रारंभिक परीक्षा के लिये:

ऑपरेशन सिंदूर, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)-2020, ब्रह्मोस मिसाइल, iDEX योजना, रक्षा औद्योगिक गलियारा, डिफेंस स्पेस एजेंसी, सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची, INS विक्रांत, आत्मनिर्भर भारत, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, स्कैल्प क्रूज़ मिसाइल, हैमर प्रिसिज़न-गाइडेड बम, लोइटरिंग म्यूनिशन 

मुख्य परीक्षा के लिये:

भारत के रक्षा क्षेत्र में प्रमुख घटनाक्रम, भारत के रक्षा क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ।

भारत वर्तमान में पाकिस्तान के साथ एक गंभीर सैन्य गतिरोध में उलझा हुआ है , जिसकी शुरुआत पहलगाम कश्मीर में हुए एक आतंकवादी हमले से हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप 26 नागरिक हताहत हुए थे। जवाबी कार्रवाई में, भारत ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में कथित आतंकवादी बुनियादी ढाँचे को निशाना बनाते हुए " ऑपरेशन सिंदूर " शुरू किया। यह स्थिति भारत के लिये अपनी रक्षा रणनीति का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता को रेखांकित करती है , जिसमें उभरते खतरों से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये आधुनिकीकरण, स्वदेशीकरण और सुधारों पर ज़ोर दिया जाता है। रक्षा खर्च को बढ़ाना, विशेष रूप से अनुसंधान और विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना राष्ट्रीय सुरक्षा को मज़बूत करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम हैं ।

भारत के रक्षा क्षेत्र में प्रमुख घटनाक्रम क्या हैं? 

  • स्वदेशी रक्षा उत्पादन में वृद्धि: भारत ने रक्षा विनिर्माण में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने , आयात पर निर्भरता कम करने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जिसका उदाहरण सकारात्मक स्वदेशीकरण सूची है।
    • इस प्रयास ने राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास दोनों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है। 
    • वित्त वर्ष 2023-24 में, भारत का स्वदेशी रक्षा उत्पादन 1.27 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जो 2022-23 से 16.7% अधिक है। 
      • इसके अतिरिक्त, अब 65% रक्षा उपकरण भारत में ही निर्मित होते हैं, जो मेक इन इंडिया पहल की प्रभावशीलता को दर्शाता है।
  • रक्षा निर्यात विस्तार: भारत के रक्षा निर्यात क्षेत्र में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है, जिससे देश वैश्विक हथियार बाजार में एक प्रमुख अभिकर्त्ता के रूप में स्थापित हो गया है। 
  • भारत अब 100 से अधिक देशों को निर्यात करता है, जिनमें अमेरिका, फ्राँस और आर्मेनिया प्रमुख खरीदार हैं।
  • वित्त वर्ष 2023-24 में भारत का रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपए तक पहुँच गया, जो पिछले दशक की तुलना में निर्यात में 30 गुना वृद्धि दर्शाता है। 
    • सरकार ने वर्ष 2029 तक रक्षा निर्यात को 50,000 करोड़ रुपए तक पहुँचाने का लक्ष्य रखा है, जिससे उसका आर्थिक और सामरिक प्रभाव मजबूत होगा।
  • रक्षा अनुसंधान एवं विकास में तकनीकी प्रगति:  iDEX (रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार) और प्रौद्योगिकी विकास निधि (TDF) के माध्यम से तकनीकी नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने से भारत की तकनीकी आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिला है। 
    • ये कार्यक्रम स्टार्टअप्स और एमएसएमई को रक्षा अनुसंधान में संलग्न होने में सक्षम बनाते हैं, जिससे तेजी से स्वदेशीकरण को बढ़ावा मिलता है। 
    • फरवरी 2025 तक, 549 समस्या विवरण जारी किये गए, जिनमें 619 स्टार्टअप रक्षा अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के साथ सहयोग कर रहे हैं।
  • रक्षा औद्योगिक गलियारे (DIC) का विकास: भारत ने स्वदेशी रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने और विदेशी निवेश आकर्षित करने के लिये उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में दो रक्षा औद्योगिक गलियारे स्थापित किये हैं।
    • ये गलियारे उद्योगों को महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा और प्रोत्साहन प्रदान करते हैं, जिससे रक्षा विनिर्माण के लिये अनुकूल वातावरण तैयार होता है। 
    • इन कॉरिडोर में पहले ही 8,658 करोड़ रुपए से अधिक का निवेश किया जा चुका है। इन कॉरिडोर का लक्ष्य 53,439 करोड़ रुपए का संभावित निवेश आकर्षित करना है, जो इन्हें भारत के रक्षा औद्योगिक विस्तार के लिये महत्त्वपूर्ण बनाता है।
  • नवीनतम खरीद के साथ सशस्त्र बलों का आधुनिकीकरण: भारत उच्च तकनीक अधिग्रहण के साथ अपने सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (LCH) और उन्नत टोड आर्टिलरी गन सिस्टम (ATAGS) की खरीद शामिल है । 
    • मार्च 2025 में 156 LCH प्रचंड हेलीकॉप्टरों के लिये 62,700 करोड़ रुपए के अनुबंध पर हस्ताक्षर किये गए, जिससे भारत की हवाई क्षमताएँ मज़बूत होंगी।
    • भारतीय वायु सेना (IAF) ने उच्च परिशुद्धता वाले हथियारों को भी एकीकृत किया है, जैसे कि स्कैल्प क्रूज़ मिसाइल, हैमर प्रिसिज़न-गाइडेड बम,और लोइटरिंग म्यूनिशन, जिनका उपयोग ऑपरेशन सिंदूर में सटीक हमलों के लिये किया गया था, जिससे उच्च सटीकता और न्यूनतम संपार्श्विक क्षति सुनिश्चित हुई।
  • सामरिक रक्षा साझेदारी और वैश्विक कूटनीति: वैश्विक रक्षा निर्यातक के रूप में भारत की बढ़ती भूमिका को अमेरिका, फ्राँस और रूस जैसे देशों के साथ सामरिक साझेदारी का समर्थन प्राप्त है। 
    • इंडोनेशिया को 3,800 करोड़ रुपए मूल्य का ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात सौदा मिसाइल प्रणालियों में भारत की तकनीकी दक्षता को दर्शाता है ।
    • इसके अतिरिक्त, जापान, फिलीपींस और मलेशिया जैसे देशों के साथ बहुपक्षीय रक्षा अभ्यासों में भारत की भागीदारी वैश्विक सुरक्षा में एक भरोसेमंद साझेदार के रूप में इसकी स्थिति को और मज़बूत करती है। 
  • महत्त्वपूर्ण रक्षा प्लेटफार्मों का स्वदेशीकरण: भारत महत्त्वपूर्ण प्रणालियों के स्वदेशीकरण के माध्यम से विदेशी सैन्य प्लेटफार्मों पर अपनी निर्भरता को काफी हद तक कम कर रहा है। 
    • एक महत्त्वपूर्ण विकास आईएनएस विक्रांत है, जो भारत का पहला स्वदेशी विमानवाहक पोत है, जिसे वर्ष 2022 में नौसेना में शामिल किया जाएगा। जिसमें 76% स्वदेशी सामग्री है, जटिल नौसैनिक प्लेटफार्मों को डिज़ाइन और निर्माण करने की भारत की क्षमता को प्रदर्शित करता है।
    • इसके अतिरिक्त, भारतीय सेना द्वारा टी-90 भीष्म टैंक का ओवरहाल, अपने मौजूदा बेड़े के जीवन चक्र को बढ़ाने के लिये राष्ट्र की प्रतिबद्धता को उजागर करता है।
  • रक्षा परीक्षण अवसंरचना: भारत स्वदेशी प्रणालियों की विश्वसनीयता और प्रभावकारिता सुनिश्चित करने के लिये रक्षा उपकरणों के लिये अपने परीक्षण अवसंरचना को तेजी से बढ़ा रहा है। 
    • रक्षा परीक्षण अवसंरचना योजना (DTIS) का उद्देश्य पूरे भारत में अत्याधुनिक परीक्षण और प्रमाणन सुविधाएँ स्थापित करना है। 
    • फरवरी 2025 तक, 7 परीक्षण केंद्रों को मंज़ूरी दी गई, जो मानव रहित हवाई प्रणालियों और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है। 
      • बुनियादी ढाँचे में यह वृद्धि भारत को उन्नत परीक्षण करने और अंतर्राष्ट्रीय मानकों को पूरा करने में सक्षम बनाएगी, जिससे देश के आत्मनिर्भरता लक्ष्यों को समर्थन मिलेगा।

भारत के रक्षा क्षेत्र के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ कौन-सी हैं? 

  • प्रौद्योगिकीय अंतराल और आयात पर निर्भरता: स्वदेशीकरण में प्रगति के बावजूद, भारत का रक्षा क्षेत्र अभी भी स्वदेशी रूप से उच्च तकनीक प्रणालियों को विकसित करने में चुनौतियों का सामना कर रहा है। 
    • यह निर्भरता भारत के रक्षा क्षेत्र में पूर्ण आत्मनिर्भरता के लक्ष्य में बाधा डालती है। वर्ष 2023 तक, भारत के रक्षा खरीद बजट का 36% अभी भी विदेशी आयातों के लिये आवंटित किया जाता है, जिससे तकनीकी क्षमताओं में अंतर पर प्रकाश पड़ता है। 
  • रक्षा खरीद में नौकरशाही विलंब: भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया की अक्सर नौकरशाही अकुशलताओं के कारण धीमी गति के कारण आलोचना की जाती है, जिससे सशस्त्र बलों के आधुनिकीकरण में काफी विलंब होता है। 
    • अनुबंधों के अनुमोदन और उपकरणों की डिलीवरी के बीच लंबी समयावधि, परिचालन तत्परता और रणनीतिक योजना में बाधक है। 
    • इसने भारत की रक्षा खरीद को प्रभावित किया है तथा राफेल लड़ाकू विमानों और स्कॉर्पीन पनडुब्बियों जैसे पिछले सौदों में विलंब हुआ है।
  • आधुनिकीकरण के लिये रक्षा बजट आवंटन अपर्याप्त: यद्यपि रक्षा बजट में वृद्धि देखी गई है, फिर भी आधुनिक युद्ध की उभरती ज़रूरतों और रक्षा उद्योग के विकास को पूरा करने के लिये आवंटन अपर्याप्त है। 
    • रक्षा अनुसंधान एवं विकास के लिये प्रावधान बहुत कम है, डीआरडीओ को कुल रक्षा बजट का केवल 3.94% ही प्राप्त होता है।
    • वर्ष 2025-26 में रक्षा मंत्रालय ने ₹6.81 लाख करोड़ आवंटित किये हैं लेकिन केवल ₹1.8 लाख करोड़ सेना के आधुनिकीकरण के लिये है, जिससे आधुनिकीकरण की ज़रूरतों और उपलब्ध धन के बीच अंतराल पर प्रकाश पड़ता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी और सार्वजनिक-निजी सहयोग: यद्यपि रक्षा विनिर्माण में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है, फिर भी सार्वजनिक और निजी संस्थाओं के बीच मज़बूत सहयोग को बढ़ावा देने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं। 
    • रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र अभी भी अप्रभावी बना हुआ है, जिसमें सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयाँ प्रभावी हैं जबकि निजी क्षेत्र के हितधारकों को प्रमुख रक्षा परियोजनाओं तक पहुँचने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। 
    • तेलंगाना में JSW डिफेंस के ड्रोन निर्माण जैसे हालिया निवेश उत्साहजनक हैं, लेकिन कुल उत्पादन का केवल 21% ही निजी क्षेत्र से आता है, जो सीमित है। 
  • सीमित निर्यात बाज़ार और प्रतिस्पर्द्धात्मकता: रक्षा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि के बावजूद, भारत को संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन जैसे स्थापित हितधारकों से प्रतिस्पर्द्धा के कारण प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में प्रवेश करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • भारत का रक्षा निर्यात बढ़ रहा है, लेकिन मात्रा और प्रौद्योगिकी दोनों के मामले में यह अभी भी वैश्विक हितधारकों से कम है। 
    • फरवरी 2025 में इंडोनेशिया को ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात सौदा एक उल्लेखनीय उपलब्धि है, लेकिन भारत का समग्र रक्षा निर्यात 21,083 करोड़ रुपए है, जो अमेरिका और रूस जैसे प्रमुख निर्यातकों से काफी कम है। 
      • तेजस लड़ाकू विमान जैसी प्रणालियों के लिये प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय अनुबंध हासिल करने की धीमी गति, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने में भारत के संघर्ष को दर्शाती है।
  • साइबर और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध में भेद्यता: जैसे-जैसे युद्ध विकसित हो रहा है, साइबर सुरक्षा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध क्षमताओं की आवश्यकता भी बढ़ गई है। 
    • चीन जैसे प्रतिद्वंद्वियों की तुलना में भारत का वर्तमान साइबर सुरक्षा ढाँचा और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली अविकसित है।
    • भारत की साइबर सुरक्षा रणनीति, अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है। 
    • इसका एक प्रमुख उदाहरण वर्ष 2020 में मुंबई में भारत के पावर ग्रिड पर हुआ साइबर हमला है, जिसका श्रेय चीन समर्थित समूह को दिया जाता है।
  • बाधित आंतरिक सुरक्षा और उग्रवाद का खतरा: भारत को आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें उग्रवाद और सीमापार आतंकवाद शामिल है, विशेष रूप से जम्मू और कश्मीर तथा पूर्वोत्तर  जैसे क्षेत्रों में।
    • हाल ही में पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के साथ-साथ पूर्वोत्तर में जारी उग्रवाद के मुद्दे (जैसे मणिपुर में कुकी-मैती संघर्ष), भारत की आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों को रेखांकित करते हैं।
      • ये सुरक्षा मुद्दे उन संसाधनों को सीमित कर देते हैं जिन्हें अन्यथा पारंपरिक युद्ध के क्रम में सेना के आधुनिकीकरण के लिये समर्पित किया जा सकता था। 
  • एकीकृत रक्षा रणनीति का अभाव: भारत की रक्षा योजना, तीनों सशस्त्र बलों के बीच एकीकरण के अभाव से ग्रस्त है, जो अलग-अलग कार्य करते हैं। 
    • चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ पद के सृजन के बावजूद सेना, नौसेना और वायु सेना की रणनीतियों, संसाधनों और क्षमताओं में सामंजस्य स्थापित करने में चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
    • इन एकीकरण चुनौतियों का एक उल्लेखनीय उदाहरण एकीकृत थिएटर कमांड का विलंबित कार्यान्वयन है, जो सेवाओं के बीच संयुक्तता बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया एक प्रमुख सुधार है।

भारत अपने रक्षा क्षेत्र को और उन्नत करने के लिये क्या उपाय अपना सकता है? 

  • रक्षा प्रौद्योगिकी नवाचार पर अधिक बल: भारत को अपनी सैन्य क्षमताओं के आधुनिकीकरण के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्वांटम कंप्यूटिंग और स्वायत्त प्रणालियों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिये।
    • समर्पित अनुसंधान केंद्रों की स्थापना करके तथा अग्रणी वैश्विक प्रौद्योगिकी कंपनियों के साथ सहयोग को बढ़ावा देकर, भारत प्रमुख रक्षा प्रौद्योगिकियों में स्वदेशी विकास को गति दे सकता है। 
    • इससे विदेशी आपूर्तिकर्त्ताओं पर निर्भरता कम होगी और साइबर युद्ध, निर्देशित युद्ध सामग्री और अगली पीढ़ी की रडार प्रणालियों जैसे क्षेत्रों में भारत की प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ेगी।
  • सामरिक रक्षा पारिस्थितिकी तंत्र सहयोग: रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र उपक्रमों (डीपीएसयू), निजी कंपनियों तथा शिक्षाविदों के बीच निर्बाध एकीकरण, नवाचार को बढ़ावा देने और उत्पादन दक्षता सुनिश्चित करने के लिये अत्यंत आवश्यक है।
    • सार्वजनिक-निजी नवाचार प्रयोगशालाओं जैसे सहयोगी मंचों की स्थापना से नये रक्षा उत्पादों के विकास में तेजी लाई जा सकती है।
    • साथ ही, खरीद अनुबंधों और प्रारंभिक वित्तपोषण तक आसान पहुँच के माध्यम से रक्षा स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये, जिससे जमीनी स्तर पर नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
  • व्यापक रक्षा कौशल विकास कार्यक्रम:स्वदेशी रक्षा उत्पादन में निरंतर वृद्धि के लिये उच्च-स्तरीय कुशल कार्यबल का विकास अत्यंत आवश्यक है।
    • भारत को विशेष रक्षा प्रशिक्षण संस्थान स्थापित करने चाहिये तथा कौशल विकास के लिये वैश्विक रक्षा निगमों के साथ सहयोग को प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • शीर्ष स्तरीय शैक्षणिक संस्थानों के साथ साझेदारी में एक समर्पित "रक्षा प्रतिभा अकादमी" की स्थापना, रक्षा आवश्यकताओं के अनुरूप इंजीनियरों, तकनीशियनों एवं साइबर विशेषज्ञों की एक सशक्त शृंखला तैयार कर सकती है।
      • ऐसी पहल उन्नत कौशल में अंतर को दूर करेगी तथा अनुसंधान एवं विकास क्षमताओं को बढ़ाएगी।
  • कुशल रक्षा खरीद: भारत को सशस्त्र बलों के समयबद्ध आधुनिकीकरण में बाधा बनने वाली देरी और अकुशलता को दूर करने हेतु अपनी खरीद प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करना चाहिये।
    • यह लक्ष्य तीव्र एवं अधिक पारदर्शी अनुमोदन तंत्र लागू करने से प्राप्त किया जा सकता है, जैसे सम्पूर्ण खरीद चक्र को डिजिटल बनाना।
    • साथ ही, रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (डीएपी) में "वैश्विक खरीद" की अपेक्षा "भारतीय खरीद" को प्राथमिकता देने से घरेलू रक्षा उद्योग को प्राथमिकता मिल सकेगी, जिससे डिलीवरी की समयसीमा में सुधार तथा गुणवत्ता नियंत्रण बेहतर होगा।।
  • रक्षा निर्यात चैनलों और कूटनीति को सशक्त करना: भारत को नये बाज़ारों की पहचान कर, राजनयिक संबंधों को मजबूत बनाकर एवं अंतर्राष्ट्रीय रक्षा निविदाओं तक आसान पहुँच सुनिश्चित करके अपनी रक्षा निर्यात रणनीति को सुदृढ़ बनाना चाहिये। 
    • अफ्रीका, दक्षिण-पूर्व एशिया और लैटिन अमेरिका के देशों के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाने से भारत के रक्षा उत्पादों के लिये नए रास्ते खुल सकते हैं।
    • भारत बहुपक्षीय रक्षा मंचों का लाभ उठाकर स्वयं को उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकियों के एक विश्वसनीय निर्यातक के रूप में स्थापित कर सकता है, जिससे उसका भू-राजनीतिक प्रभाव और अधिक बढ़ जाएगा।
  • रक्षा नवाचार क्षेत्रों की स्थापना: भारत को उच्च तकनीक सैन्य नवाचारों पर केंद्रित समर्पित रक्षा नवाचार क्षेत्र (Defence Innovation Zones - DIZ) की स्थापना करनी चाहिये।।
    • ये क्षेत्र अगली पीढ़ी की प्रणालियों—जैसे ड्रोन, साइबर रक्षा समाधान एवं उपग्रह प्रौद्योगिकियों—के विकास हेतु केंद्रित केन्द्र के रूप में कार्य करेंगे। 
    • ये स्टार्टअप्स एवं स्थापित कंपनियों को संयुक्त समाधानों पर कार्य करने हेतु प्रेरित करेंगे, क्षेत्रीय नवाचार को बढ़ावा देंगे तथा अनुसंधान परियोजनाओं हेतु कर प्रोत्साहन एवं वित्तपोषण प्रदान करेंगे। 
  • उन्नत साइबर सुरक्षा और डिजिटल रक्षा ढाँचा: बढ़ते साइबर खतरों से निपटने के लिये भारत को सैन्य नेटवर्क एवं महत्वपूर्ण ढाँचों की रक्षा हेतु एक समर्पित राष्ट्रीय रक्षा साइबर कमांड (NDCC) की स्थापना करनी चाहिये।
    • यह कमान अनुकूलित साइबर सुरक्षा उपायों के निर्माण, एआई-आधारित रणनीतियों के एकीकरण और वैश्विक साइबर सुरक्षा फर्मों के साथ साझेदारी को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगी।
    • साथ ही, भारत को सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों में साइबर युद्ध सिमुलेशन को शामिल करना चाहिये ताकि कर्मियों को वास्तविक समय के साइबर हमलों से निपटने हेतु प्रशिक्षित किया जा सके।
  • अंतर्राष्ट्रीय साझेदारों के साथ रक्षा-औद्योगिक सहयोग को मजबूत करना: भारत को रक्षा प्रणालियों , विशेष रूप से एयरोस्पेस, जहाज़ निर्माण और उन्नत मिसाइल प्रौद्योगिकियों के  सह-विकास में तेजी लाने के लिये विदेशी रक्षा कंपनियों के साथ अपने सहयोग को गहन बनाना चाहिये।
    • अंतर्राष्ट्रीय OEMs (मूल उपकरण निर्माताओं) के साथ संयुक्त उद्यम, न केवल महत्त्वपूर्ण तकनीकी विशेषज्ञता लायेंगे बल्कि प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों के माध्यम से भारत को अत्याधुनिक तकनीकों तक पहुँच भी प्रदान करेंगे।

निष्कर्ष: 

भारत की उभरती रक्षा स्थिति महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों और दबावपूर्ण चुनौतियों दोनों को दर्शाती है। आतंकवाद जैसे बाहरी खतरों की तात्कालिकता और समन्वय एवं प्रौद्योगिकी में आंतरिक अंतराल साहसिक सुधारों की मांग करते हैं। त्वरित स्वदेशीकरण, सुव्यवस्थित खरीद प्रक्रिया और एकीकृत रणनीतिक योजना अब अनिवार्य हैं। भविष्य के लिये तैयार सेना को नवाचार, आत्मनिर्भरता और वैश्विक साझेदारी पर आधारित होना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न: 

भारत का रक्षा आयातक से उभरते हुए रक्षा विनिर्माता की दिशा में परिवर्तन, राष्ट्रीय सुरक्षा एवं विदेश नीति में एक रणनीतिक पुनःसंतुलन को दर्शाता है। हालिया नीतिगत पहलों तथा चुनौतियों के संदर्भ में इस परिवर्तन का विवेचन कीजिये।

                                       

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

  1. दूरदराज के क्षेत्रों में स्थानीय आबादी के उत्थान के लिये उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने हेतु सेना द्वारा चलाए जाने वाले अभियानों को कहा जाता है: (2024)

(a) ऑपरेशन संकल्प

(b) ऑपरेशन मैत्री

(c) ऑपरेशन सद्भावना

(d) ऑपरेशन मदद

उत्तर:C


मेन्स 

प्रश्न: “भारत में सीमा पार से बढ़ते आतंकवादी हमले और पाकिस्तान द्वारा कई सदस्य देशों के आंतरिक मामलों में बढ़ता हस्तक्षेप SAARC (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के भविष्य के लिये अनुकूल नहीं है।” उपयुक्त उदाहरणों के साथ समझाएँ। (2016)

प्रश्न: आतंकवादी हमलों के खिलाफ सशस्त्र कार्रवाई के संबंध में अक्सर 'हॉट परस्यूट' और 'सर्जिकल स्ट्राइक' शब्दों का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसी कार्रवाइयों के रणनीतिक प्रभाव पर चर्चा करें। (2016)