भारत–अफ्रीका सहयोग का विस्तार और सुदृढ़ीकरण | 23 Dec 2025
यह एडिटोरियल 22/12/2025 को द हिंदू में प्रकाशित “Unlocking the potential of India-Africa economic ties” शीर्षक वाले लेख पर आधारित है। इस लेख के तहत भारत–अफ्रीका संबंधों में अभिसरण और तनाव के प्रमुख क्षेत्रों को रेखांकित किया गया है तथा आगामी दशक में व्यापार, निवेश एवं विकास सहयोग को गहन करने हेतु एक रणनीतिक रोडमैप प्रस्तुत किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये: भारत–अफ्रीका सहयोग, G20, अफ्रीकी संघ, ITEC, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA), चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI), ग्लोबल साउथ, अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र
मेन्स के लिये: भारत-अफ्रीका संबंध, सहयोग के प्रमुख क्षेत्र और मतभेद के बिंदु, संबंधों को मज़बूत करने के उपाय।
भारत और अफ्रीका के बीच संबंधों का एक गहरा ऐतिहासिक आधार रहा है, जो औपनिवेशिक-विरोधी एकजुटता, साउथ-साउथ कोऑपरेशन एवं मज़बूत जन-स्तरीय संपर्कों से आकार ग्रहण करता रहा है। समकालीन दौर में, अफ्रीका अपनी रणनीतिक स्थिति, जनांकिकीय लाभांश, संसाधन क्षमता और बढ़ते भू-राजनीतिक महत्त्व के कारण भारत की विदेश नीति का एक केंद्रीय स्तंभ बन गया है। भारत-अफ्रीका द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक हो चुका है, हालाँकि यह चीन-अफ्रीका व्यापार (200 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक) की तुलना में काफी कम है, जो इस क्षेत्र में विद्यमान अंतर तथा अवसर दोनों को रेखांकित करता है। पारस्परिक सम्मान, गैर-हस्तक्षेप, क्षमता निर्माण और विकास साझेदारी के सिद्धांतों से प्रेरित होकर, भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक अफ्रीका के साथ व्यापार को दोगुना करना है तथा स्वयं को एक निवल रूप से लेन-देन आधारित भागीदार के बजाय एक दीर्घकालिक, जन-केंद्रित भागीदार के रूप में स्थापित करना है।
समय के साथ भारत-अफ्रीका संबंध किस प्रकार विकसित हुए हैं?
- प्राचीन और प्रारंभिक ऐतिहासिक संपर्क: भारत-अफ्रीका संबंध प्राचीन काल से ही विकसित हुए हैं, जिसका प्रमुख आधार हिंद महासागर के माध्यम से समुद्री व्यापार रहा है।
- पश्चिमी तट, विशेषकर गुजरात और कोंकण क्षेत्र के भारतीय व्यापारियों के अफ्रीका के पूर्वी तट (वर्तमान केन्या, तंज़ानिया और मोज़ाम्बिक) के साथ नियमित वाणिज्यिक संबंध थे।
- मानसूनी पवन प्रणाली का उपयोग करते हुए भारतीय व्यापारी वस्त्र, मसाले और मनके (beads) के बदले अफ्रीका से सोना, हाथीदाँत और लकड़ी जैसे उत्पाद प्राप्त करते थे।
- ये संबंध मुख्यतः शांतिपूर्ण और पारस्परिक लाभ पर आधारित थे, जिनके परिणामस्वरूप सांस्कृतिक आदान-प्रदान हुआ। इसने स्वाहिली सभ्यता को भाषा, स्थापत्य और सामाजिक प्रथाओं के स्तर पर प्रभावित किया।
- महत्त्वपूर्ण रूप से, ये प्रारंभिक संपर्क वाणिज्यिक और सांस्कृतिक प्रकृति के थे, न कि विजय या क्षेत्रीय नियंत्रण से प्रेरित।
- औपनिवेशिक काल के दौरान: इस काल में भारत और अफ्रीका दोनों यूरोपीय औपनिवेशिक प्रभुत्व के अधीन आ गये, जिससे शोषण और नस्लीय भेदभाव का एक साझा अनुभव विकसित हुआ।
- बड़ी संख्या में भारतीयों को अनुबंधित श्रमिकों, व्यापारियों और लिपिकों के रूप में विशेष रूप से दक्षिणी एवं पूर्वी अफ्रीका ले जाया गया, जिससे वहाँ स्थायी भारतीय प्रवासी समुदायों का निर्माण हुआ।
- यह चरण राजनीतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण रहा, क्योंकि दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी का नस्लीय भेदभाव के विरुद्ध संघर्ष (वर्ष 1893–वर्ष 1914) न केवल भारतीय राष्ट्रवाद को बल्कि अफ्रीकी प्रतिरोध आंदोलनों को भी गहराई से प्रभावित करता है।
- औपनिवेशिक अनुभव ने साम्राज्यवाद-विरोध, समानता और आत्मसम्मान पर आधारित एक साझा राजनीतिक चेतना को जन्म दिया, जिसने स्वतंत्रता के बाद भारत और अफ्रीकी देशों के बीच एकजुटता की नींव रखी।
- उत्तर-औपनिवेशिक सहभागिता: स्वतंत्रता के पश्चात भारत और नव-स्वतंत्र अफ्रीकी राष्ट्रों ने साझा साम्राज्यवाद-विरोधी संघर्षों एवं समान विकासात्मक चुनौतियों के आधार पर घनिष्ठ संबंध स्थापित किये। भारत ने अफ्रीकी उपनिवेशवाद-उन्मूलन का प्रबल समर्थन किया तथा पूरे महाद्वीप में मुक्ति आंदोलनों को कूटनीतिक एवं नैतिक समर्थन प्रदान किया।
- बांडुंग में एशियाई-अफ्रीकी सम्मेलन (1955) एवं गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) जैसे मंचों ने भारत और अफ्रीकी देशों को शीत युद्ध की शक्ति-गुटबंदी से बाहर रणनीतिक स्वायत्तता, शांति व सहयोग की खोज में भारत और अफ्रीकी राज्यों को एक साथ लाने में अहम भूमिका निभाई।
- स्वतंत्रता के प्रारंभिक दशकों में भारत–अफ्रीका संबंधों का केंद्र व्यापार की बजाय क्षमता निर्माण और जन-केंद्रित सहयोग रहा। भारत ने कृषि, स्वास्थ्य, प्रशासन और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में तकनीकी सहायता, छात्रवृत्तियाँ एवं व्यावसायिक सहयोग प्रदान किया।
- यद्यपि इस चरण में आर्थिक आदान-प्रदान सीमित रहा, फिर भी इसने पारस्परिक विश्वास की एक सुदृढ़ आधारशिला रखी, जिसने आगे चलकर गहन आर्थिक और रणनीतिक सहभागिता को संभव बनाया।
भारत-अफ्रीका संबंधों में प्रमुख अभिसरण क्षेत्र कौन-से हैं?
- व्यापार और आर्थिक सहयोग: भारत-अफ्रीका व्यापार में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, द्विपक्षीय व्यापार सत्र 2024-25 में 100 अरब अमेरिकी डॉलर को पार कर गया है तथा भारत अफ्रीका में शीर्ष पाँच निवेशकों में से एक बन गया है।
- भारत का लक्ष्य मूल्यवर्द्धन, प्रौद्योगिकी आधारित कृषि, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और सेवाओं पर ध्यान केंद्रित करके वर्ष 2030 तक व्यापार को दोगुना करना है।
- भारत के निर्यात में औषधियाँ, मशीनरी, वस्त्र और ऑटोमोबाइल शामिल हैं, जबकि अफ्रीका कच्चे तेल, खनिज एवं कृषि उत्पादों की आपूर्ति करता है।
- विकासात्मक साझेदारी और क्षमता निर्माण: विकास सहयोग भारत–अफ्रीका अभिसरण का एक केंद्रीय क्षेत्र बना हुआ है।
- भारत ने अवसंरचना, जल आपूर्ति और औद्योगिक परियोजनाओं के लिये अफ्रीकी देशों को रियायती ऋण लाइनें (LOC) प्रदान की हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत ने गिनी गणराज्य में कोनाक्री जलापूर्ति परियोजना हेतु 170 मिलियन अमेरिकी डॉलर की ऋण रेखा (LoC) प्रदान की।
- भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलनों के दौरान भारत ने व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना तथा लघु एवं मध्यम उद्यमों (SMEs) के समर्थन सहित महत्त्वपूर्ण वित्तीय और तकनीकी सहयोग की प्रतिबद्धता व्यक्त की है।
- भारत ने अवसंरचना, जल आपूर्ति और औद्योगिक परियोजनाओं के लिये अफ्रीकी देशों को रियायती ऋण लाइनें (LOC) प्रदान की हैं।
- शिक्षा और मानव संसाधन विकास: शैक्षणिक और कौशल विकास सहयोग भारत-अफ्रीका संबंधों का केंद्र बिंदु है।
- भारतीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग (ITEC) जैसे कार्यक्रमों व छात्रवृत्ति योजनाओं ने कृषि, स्वास्थ्य सेवा एवं प्रशासन जैसे क्षेत्रों में हज़ारों अफ्रीकी पेशेवरों को प्रशिक्षित किया है।
- अफ्रीका में भारतीय संस्थानों की स्थापना जैसी पहल (उदाहरण के लिये, ज़ांज़ीबार में IIT मद्रास परिसर) लोगों के बीच एवं संस्थागत संबंधों को मज़बूत करती हैं।
- प्रौद्योगिकी और डिजिटल सहयोग: भारत ने दूरसंचार शिक्षा और दूरसंचार चिकित्सा के लिये पैन-अफ्रीकी ई-नेटवर्क जैसी परियोजनाओं के माध्यम से डिजिटल सहयोग को बढ़ावा दिया है तथा डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना सहयोग की संभावनाओं का अन्वेषण कर रहा है।
- उदाहरण के लिये, नामीबिया भारत की UPI को आधिकारिक तौर पर अपनाकर अपनी संप्रभु भुगतान प्रणाली बनाने वाला पहला अफ्रीकी देश है।
- इसके अलावा, हाल ही में भारत ने इथियोपिया के विदेश मंत्रालय के लिये एक नया अत्याधुनिक डेटा सेंटर स्थापित करने पर सहमति जताई है।
- इस तरह की पहल शासन, कनेक्टिविटी और नवोन्मेष में साझा प्रौद्योगिकी समाधानों को बढ़ावा देती है।
- स्वास्थ्य और औषधियाँ: भारत का औषधि उद्योग अफ्रीकी देशों को सस्ती दवाओं और टीकों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्त्ता है।
- कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत ने वन अर्थ वन हेल्थ जैसी पहलों के तहत टीकों की आपूर्ति की, जिससे स्वास्थ्य कूटनीति को मज़बूती मिली तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य सहयोग में सद्भावना का निर्माण हुआ।
- भारत के फार्मा निर्यात का लगभग 20% हिस्सा अफ्रीकी देशों को जाता है, ऐसे में भारतीय फार्मा कंपनियाँ अफ्रीका में चिकित्सा सुविधाओं के उत्थान के लिये महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं।
- सामरिक और समुद्री सुरक्षा सहयोग: कई अफ्रीकी नौसेनाओं की भागीदारी वाले अफ्रीका-भारत प्रमुख समुद्री सहयोग (AIKEYME) जैसे संयुक्त रक्षा प्रयासों एवं समुद्री अभ्यासों के माध्यम से सामरिक अभिसरण बढ़ा है, जिससे हिंद महासागर में अंतर-संचालनीयता और क्षेत्रीय सुरक्षा में वृद्धि हुई है।
- ऊर्जा, स्वच्छ प्रौद्योगिकी और सतत विकास: भारत और अफ्रीका दोनों ऊर्जा सुरक्षा एवं नवीकरणीय ऊर्जा पहलों पर मिलकर काम कर रहे हैं, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन के तहत सहयोग एवं ग्रीन हाइड्रोजन व स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में साझा लक्ष्य शामिल हैं। यह सहयोग सतत विकास लक्ष्यों और पारस्परिक विकास रणनीतियों के अनुरूप है।
- वैश्विक स्तर पर समर्थन और बहुपक्षीय सहयोग: भारत और अफ्रीका प्रायः संयुक्त राष्ट्र सुधारों, जलवायु वार्ताओं और ग्लोबल साउथ के प्रतिनिधित्व जैसे वैश्विक मुद्दों पर एकमत होते हैं। भारत ने वैश्विक संस्थानों में अफ्रीकी भागीदारी बढ़ाने का समर्थन किया है, जिसमें G20 जैसे मंचों में अफ्रीकी संघ की आवाज़ को बुलंद करने के लिये अनुशंसा करना भी शामिल है।
भारत-अफ्रीका संबंधों की संभावनाओं को सीमित करने वाले प्रमुख अवरोध क्या हैं?
- व्यापार असंतुलन और सीमित बाज़ार पैठ: भारत का निर्यात फार्मास्यूटिकल्स और परिष्कृत पेट्रोलियम जैसे कुछ क्षेत्रों में केंद्रित है, जबकि मूल्यवर्द्धित विनिर्माण एवं सेवाओं में पैठ सीमित बनी हुई है।
- अफ्रीकी बाज़ारों में प्रायः भारतीय कंपनियों को चीनी कंपनियों की तुलना में पैमाने, गति और वित्तपोषण के मामले में कम प्रतिस्पर्द्धी माना जाता है।
- भारत वैश्विक IT क्षेत्र में एक महाशक्ति होने के बावजूद, अफ्रीका में इसकी डिजिटल सेवाओं की पहुँच इसकी क्षमता की तुलना में अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है।
- हालाँकि भारत ने हाल ही में कुछ समझौतों पर हस्ताक्षर किये हैं (जैसे कि दिसंबर 2025 में इथियोपिया के साथ रणनीतिक साझेदारी), उच्च श्रेणी की मशीनरी और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का निर्यात अभी भी कम है।
- विकास परियोजनाओं का धीमा कार्यान्वयन: भारत की ऋण रेखाएँ (LOC) अधोसंरचना और क्षमता निर्माण पर केंद्रित हैं, लेकिन प्रक्रियात्मक जटिलता, भूमि संबंधी मुद्दों एवं कमज़ोर स्थानीय क्षमता के कारण कई परियोजनाओं में विलंब होता है।
- धीमा कार्यान्वयन परियोजनाओं की दृश्यता और प्रभाव को कम करता है जिससे सद्भावना के बावजूद अफ्रीकी भागीदारों में निराशा उत्पन्न होती है।
- भारत द्वारा मोज़ाम्बिक में मापुटो बिजली परियोजना के लिये दी जाने वाली 250 मिलियन डॉलर की ऋण राशि, जो पहली बार 2012 में प्रस्तावित की गई थी, कई वर्षों तक प्रशासनिक जटिलताओं में फँसी रही और इसमें कोई खास प्रगति नहीं हुई, जिसके कारण पूरी तरह से पुन: निविदा प्रक्रिया शुरू करनी पड़ी।
- दूसरी ओर, अदीस अबाबा–जिबूती रेलवे परियोजना को चीन एक्ज़िम बैंक के बड़े क्रेता-ऋण और चीनी ठेकेदारों के माध्यम से शीघ्रता से पूरा किया गया, जिसे चीन द्वारा बड़े, तीव्र और वित्तपोषित अधोसंरचना के निर्माण के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया जाता है।
- संस्थागत गति का अभाव: भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (IAFS) जैसे संस्थागत कार्यढाँचे वर्ष 2015 के बाद से नियमित रूप से आयोजित नहीं किये गए हैं, जिससे निरंतरता और उच्च स्तरीय राजनीतिक भागीदारी कमज़ोर हो गई है।
- यह अंतर अन्य साझेदारों द्वारा अधिक बार किये जाने वाले संस्थागत जुड़ावों के विपरीत है और भारत की विदेश नीति के कार्यक्रम में अफ्रीका पर रणनीतिक ध्यान को कम करता है।
- लॉजिस्टिक्स एवं संपर्क संबंधी अवरोध: सीमित प्रत्यक्ष शिपिंग मार्गों, उच्च वस्तु परिवहन लागत एवं कमज़ोर हवाई संपर्क जैसी लगातार बनी रहने वाली लॉजिस्टिक्स संबंधी चुनौतियाँ लेनदेन लागत को बढ़ाती हैं तथा भारत और अफ्रीका के बीच व्यापार, निवेश व जन-जन संपर्क में बाधा डालती हैं।
- ये संरचनात्मक लागतें अनेक अफ्रीकी बाज़ारों में भारतीय वस्तुओं और सेवाओं को कम प्रतिस्पर्द्धी बना देती हैं।
- लाल सागर में जारी संघर्ष ने वर्ष 2024 और 2025 के दौरान भारत-अफ्रीका व्यापार की लॉजिस्टिक्स को गंभीर रूप से बाधित कर दिया है, क्योंकि जहाज़ों को स्वेज़ नहर के स्थान पर केप ऑफ गुड होप मार्ग अपनाना पड़ रहा है।
- परिणामस्वरूप, भारत से अफ्रीकी बाज़ारों तक सामान्यतः 20–22 दिनों की यात्रा अब 30–35 दिनों में पूरी हो रही है जो आपूर्ति समय में लगभग 50% की वृद्धि को दर्शाता है।
- अफ्रीका के कुछ हिस्सों में सुरक्षा और राजनीतिक अस्थिरता: साहेल और हॉर्न ऑफ अफ्रीका जैसे क्षेत्रों में चल रहे संघर्ष, तख्तापलट एवं सुरक्षा चुनौतियाँ भारतीय निवेश, परियोजनाओं की निरंतरता तथा भारतीय प्रवासियों की सुरक्षा के लिये जोखिम उत्पन्न करती हैं।
- उदाहरण के लिये, भारत को सूडान में चल रहे संघर्ष के कारण 3,000 से अधिक भारतीयों को वहाँ से निकालने के लिये ऑपरेशन कावेरी शुरू करना पड़ा।
- ये अस्थिर वातावरण निजी क्षेत्र की गहन भागीदारी को बाधित करते हैं और कार्यान्वयन को धीमा करते हैं।
- वैश्विक शासन कार्यढाँचों में अल्प-प्रतिनिधित्व: यद्यपि भारत वैश्विक संस्थानों में अफ्रीका की आवाज़ को समर्थन देता है, फिर भी अफ्रीकी राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुधार संबंधी चर्चाओं और अन्य निर्णय लेने वाले निकायों में अल्प-प्रतिनिधित्व वाले बने हुए हैं।
- सुधार के मॉडल को लेकर मतभेद साझा वार्तात्मक स्थिति के निर्माण में बाधा उत्पन्न करते हैं। जहाँ भारत (G4 के हिस्से के रूप में) वीटो अधिकार सहित स्थायी सीटों की माँग करता है, वहीं अफ्रीकी संघ की एजुलविनी सहमति अफ्रीका के लिये वीटो अधिकार सहित कम-से-कम दो स्थायी सीटों एवं दो अतिरिक्त अस्थायी सीटों की माँग रखती है।
- इससे एक संयुक्त लेकिन अनसुलझी राजनयिक प्राथमिकता उत्पन्न होती है जहाँ दोनों क्षेत्र वैश्विक स्तर पर अधिक मुखरता चाहते हैं लेकिन संरचनात्मक बाधाओं को दूर करने के लिये संघर्ष करते हैं।
भारत-अफ्रीका व्यापार की अपार संभावनाओं को उजागर करने के लिये किन रणनीतिक सुधारों की आवश्यकता है?
- व्यापार अवरोधों को हटाना और संस्थागत व्यापार सहभागिता को गहरा करना: भारत को प्रमुख अफ्रीकी अर्थव्यवस्थाओं व क्षेत्रीय समूहों के साथ तरजीही व्यापार समझौतों (PTA) और व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौतों (CEPA) को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाकर टैरिफ एवं गैर-टैरिफ अवरोधों को दूर करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- अफ्रीकी क्षेत्रीय आर्थिक समुदायों और अफ्रीकी महाद्वीपीय मुक्त व्यापार क्षेत्र (AfCFTA) के साथ गहन जुड़ाव से भारतीय निर्यातकों को 1.4 अरब से अधिक लोगों के एकीकृत बाज़ार तक अभिगम्यता मिल सकती है।
- यह भारत से अफ्रीका के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को तदर्थ द्विपक्षीयता के बजाय संस्थागत आर्थिक कार्यढाँचे के माध्यम से जोड़ने, विकसित करने एवं पुनर्जीवित करने के आह्वान के अनुरूप है।
- वस्तु व्यापार से मूल्यवर्द्धित विनिर्माण साझेदारी की ओर संक्रमण: दूसरे स्तंभ को कम मूल्य वाली वस्तुओं के निर्यात (जैसे: पेट्रोलियम उत्पाद) से द्वि-पक्षीय मूल्यवर्द्धित व्यापार और संयुक्त विनिर्माण की ओर संक्रमण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- अफ्रीकी सरकारों द्वारा दिये गए प्रोत्साहनों के बावजूद, भारतीय कंपनियों ने अफ्रीका में विनिर्माण इकाइयाँ स्थापित करने के अवसरों का पूरी तरह से उपयोग नहीं किया है।
- उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करने से दोहरा रणनीतिक लाभ मिलता है, जिनमें अनुकूल टैरिफ व्यवस्थाओं के माध्यम से अमेरिकी बाज़ार तक तरजीही अभिगम्यता और अफ्रीका के विस्तृत उपभोक्ता एवं औद्योगिक बाज़ारों में सीधा प्रवेश शामिल हैं।
- भारत-अफ्रीका के आर्थिक संबंधों को अगले चरण तक ले जाने के लिये फार्मास्यूटिकल्स, ऑटोमोबाइल, कृषि-प्रसंस्करण, वस्त्र और हल्के विनिर्माण क्षेत्रों में आगे बढ़ना आवश्यक है।
- व्यापार वित्त के माध्यम से भारतीय लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये अफ्रीका की क्षमता को सशक्त बनाना: तीसरे स्तंभ में लघु एवं मध्यम उद्यमों के नेतृत्व वाली सहभागिता को प्राथमिकता दी जानी चाहिये, जहाँ अफ्रीका संतृप्त पश्चिमी बाज़ारों की तुलना में अधिक अवसर प्रदान करता है।
- हालाँकि, व्यापार वित्त, बीमा और जोखिम कम करने वाले साधनों तक सीमित अभिगम्यता लघु एवं मध्यम उद्यमों की भागीदारी को बाधित करती है।
- भारत को ऋण देने की सुविधा को बढ़ाना चाहिये, प्रक्रियाओं को सरल बनाना चाहिये और छोटे व्यवसायों के लिये इसकी अभिगम्यता में सुधार करना चाहिये।
- स्थानीय मुद्रा व्यापार, भारत-अफ्रीका संयुक्त बीमा पूल का निर्माण तथा मिश्रित वित्त तंत्र जैसे उपाय राजनीतिक एवं वाणिज्यिक जोखिमों को कम कर सकते हैं, जिससे बैंकों और MSME को अधिक सक्रिय रूप से भाग लेने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा।
- लॉजिस्टिक्स और कनेक्टिविटी लागत में कमी: चौथे स्तंभ के रूप में उच्च वस्तु परिवहन और लॉजिस्टिक्स लागतों को न्यूनतम करना चाहिये, जो प्रतिस्पर्द्धात्मकता को कमज़ोर करती हैं।
- भारत को बंदरगाह आधुनिकीकरण, हिन्टरलैंड कनेक्टिविटी और भारत-अफ्रीका के लिये समर्पित समुद्री गलियारों में निवेश करने की आवश्यकता है, जिन्हें सार्वजनिक-निजी भागीदारी का समर्थन प्राप्त हो। बेहतर शिपिंग लाइनें और हवाई कनेक्टिविटी से लेन-देन लागत कम होगी, व्यापार सुगम होगा तथा व्यावसायिक गतिशीलता बढ़ेगी। ये ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें भारत वर्तमान में अन्य वैश्विक साझेदारों से पीछे है।
- सेवा व्यापार और जन-जन संपर्कों का विस्तार: अंतिम स्तंभ में सेवाओं, डिजिटल व्यापार और मानव पूंजी विनिमय पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये। भारत को सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, पेशेवर सेवाओं और कौशल विकास में अपनी क्षमताओं का लाभ उठाकर अफ्रीका को सेवा निर्यात का विस्तार करना चाहिये।
- सेवाएँ उच्च-मूल्य व्यापार गुणक के रूप में कार्य करती हैं, जो वस्तुओं की माँग को प्रोत्साहित करती हैं तथा दीर्घकालिक आर्थिक एकीकरण को सुदृढ़ बनाती हैं।
- वर्तमान नीतिगत ढाँचे इस क्षमता को पूरी तरह से उपयोग में लाने के लिये अपर्याप्त हैं तथा पेशेवरों की सुगम आवाजाही, डिजिटल सेवाओं तथा संस्थागत साझेदारियों को सक्षम बनाने हेतु लक्षित सुधारों की आवश्यकता है।
निष्कर्ष:
भारत-अफ्रीका संबंध साझा विकास आकांक्षाओं और प्रबल राजनीतिक सद्भावना के कारण एक निर्णायक मोड़ पर हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा है, “अफ्रीका के लक्ष्य और उसका एजेंडा भारत की प्राथमिकता हैं।” वर्ष 2030 तक व्यापार को दोगुना करने के लिये वस्तु निर्यात से हटकर मूल्यवर्द्धित विनिर्माण, सेवाओं और लघु एवं मध्यम उद्यमों (MSME) के नेतृत्व में भागीदारी की ओर संक्रमण करना आवश्यक है। भारत की डिजिटल सेवाओं, स्वास्थ्य सेवा एवं कौशल विकास में मौजूद क्षमताओं का लाभ उठाने के साथ-साथ व्यापार बाधाओं को कम करना, लॉजिस्टिक्स व्यवस्था में सुधार करना और व्यापार वित्त का विस्तार करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। एक सुसंगत, बहु-आयामी दृष्टिकोण इस साझेदारी को समावेशी विकास के एक स्थायी इंजन में परिवर्तित कर सकता है।
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दृष्टि मेन्स प्रश्न: भारत की ग्लोबल साउथ कूटनीति में अफ्रीका का केंद्रीय स्थान है। भारत की विदेश नीति में अफ्रीका के महत्त्व पर चर्चा कीजिये तथा उन चुनौतियों का मूल्यांकन कीजिये जिनका निराकरण किये बिना इस संबंध को एक समग्र रणनीतिक साझेदारी में रूपांतरित नहीं किया जा सकता। |
प्रायः पूछे जाने वाले प्रश्न
प्रश्न 1. अफ्रीका भारत की विदेश नीति के लिये महत्त्वपूर्ण क्यों है?
अफ्रीका अपनी रणनीतिक भौगोलिक स्थिति, संसाधन-संभावनाओं, जनांकिकीय लाभांश तथा भारत की ग्लोबल साउथ और बहुपक्षीय कूटनीति में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका के कारण भारत की विदेश नीति के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 2. भारत–अफ्रीका संबंधों में अभिसरण के मुख्य क्षेत्र कौन-से हैं?
व्यापार, विकास सहयोग, क्षमता निर्माण, स्वास्थ्य, डिजिटल सेवाएँ, सुरक्षा सहयोग तथा बहुपक्षीय मंचों पर समन्वय।
प्रश्न 3. भारत–अफ्रीका संबंधों में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
व्यापार के सीमित पैमाने, परियोजनाओं के क्रियान्वयन में विलंब, लॉजिस्टिक बाधाएँ, चीन से प्रतिस्पर्द्धा तथा निजी क्षेत्र की सीमित भागीदारी।
प्रश्न 4. भारत वर्ष 2030 तक अफ्रीका के साथ व्यापार को किस प्रकार दोगुना कर सकता है?
व्यापार बाधाओं को कम करके, मूल्य-वर्द्धित विनिर्माण को प्रोत्साहित करके, MSME का समर्थन करके, लॉजिस्टिक अवसंरचना में सुधार करके तथा सेवा व्यापार का विस्तार करके।
प्रश्न 5. भारत की अफ्रीका के साथ साझेदारी को क्या विशिष्ट बनाता है?
इसकी विशिष्टता क्षमता निर्माण, पारस्परिक सम्मान, गैर-हस्तक्षेप और संसाधन-केंद्रित दृष्टिकोण के बजाय जन-केंद्रित विकास पर बल देने में निहित है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित में से किस समूह के सभी चारों देश G20 के सदस्य हैं? (2020)
(a) अर्जेंटीना, मेक्सिको, दक्षिण अफ्रीका एवं तुर्की
(b) ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, मलेशिया एवं न्यूज़ीलैंड
(c) ब्राज़ील, ईरान, सऊदी अरब एवं वियतनाम
(d) इंडोनेशिया, जापान, सिंगापुर एवं दक्षिण कोरिया
उत्तर: (a)
मेन्स
प्रश्न 1. “भारत-अफ्रीका डिजिटल साझेदारी आपसी सम्मान, सह-विकास और दीर्घकालिक संस्थागत साझेदारी प्राप्त कर रही है।” विस्तार से बताइये। (2025)
प्रश्न 2. “उभरती हुई वैश्विक व्यवस्था में, भारत द्वारा प्राप्त नव-भूमिका के कारण, उत्पीड़ित एवं उपेक्षित राष्ट्रों के मुखिया के रूप में दीर्घ काल से संपोषित भारत की पहचान लुप्त हो गई है।” विस्तार से समझाइये। (2019)
