एग्री-टेक और एग्री स्टार्टअप्स | 20 Apr 2022

यह एडिटोरियल ‘हिंदू बिजनेस लाइन’ में प्रकाशित “Unlocking the Potential of Agri-Tech” लेख पर आधारित है। इसमें कृषि-स्टार्टअप के महत्त्व और उनके समक्ष विद्यमान चुनौतियों के बारे में चर्चा की गई है।

कोविड-19 महामारी और यूक्रेन के युद्ध ने वैश्विक खाद्य प्रणाली को व्यापक रूप से अवरुद्ध किया है, जिसने भारत जैसे कृषि-केंद्रित देशों पर अधिक संवहनीय विकल्प प्रदान करने के लिये भारी दबाव का निर्माण किया है।

हालाँकि भारतीय कृषि की जटिलता को देखते हुए कोई एकल नीति या प्रौद्योगिकी कृषि क्षेत्र में सुधार ला सकने में सक्षम नहीं होगी।

सरकारी प्रोत्साहन और हस्तक्षेप के साथ नियमित डिजिटल रूपांतरण प्रयास भारत में कृषि मॉडल को मज़बूत कर सकते हैं। निवेश की आमद, एग्रीटेक स्टार्टअप्स (AgriTech startups) और नवाचार के संयोजन में वह क्षमता होगी जो भारतीय कृषि की गतिशीलता को बदल सकती है और एक भविष्योन्मुखी मॉडल का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।

एग्री-स्टार्टअप कृषि क्षेत्र में क्या भूमिका निभा रहे हैं?

  • आय की वृद्धि: भारत में लघु और सीमांत किसानों की स्थिति निराशाजनक रही है जहाँ वे निम्न आय, बढ़ते कर्ज और एकल-फसल संस्कृति, अनौपचारिक उधारदाता एवं उतार-चढ़ाव भरी उत्पादन कीमतों पर निर्भरता की स्थिति से जूझ रहे हैं।
    • जो किसान जलीय कृषि (aquaculture) या पशुपालन के क्षेत्र में उद्यम करना चाहते हैं, उनके पास उचित निवेश, विपणन चैनल और ज्ञान उपलब्ध नहीं है।
    • एग्रीटेक स्टार्टअप्स और डिजिटल टूल्स के आगमन के साथ कई भारतीय किसान कृषि विविधीकरण के साथ अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं।
  • कृषि विविधीकरण: एग्रीटेक स्टार्टअप किसानों को न्यूनतम स्थान और श्रम की आवश्यकता रखने वाले माइक्रो-फार्म इंस्टॉलेशन के साथ पशुधन पालन और जलीय कृषि को अपने मौजूदा कार्यों में एकीकृत करने हेतु सशक्त बना रहे हैं।
    • गैर-फसल विविधीकरण किसानों को वर्ष भर आय अर्जित करने एवं अपनी आय बढ़ाने, उत्पादकता एवं लाभप्रदता में सुधार लाने और संवहनीय कृषि प्रणालियों को अपनाने में मदद कर रहा है।
  • जागरूकता सृजन: इंटरनेट के बढ़ते प्रयोग के साथ एग्रीटेक स्टार्टअप कृषक समुदायों के बीच जागरूकता की वृद्धि कर रहे हैं और उन्हें व्यापारियों, खुदरा विक्रेताओं एवं निर्यातकों के नेटवर्क से जोड़ रहे हैं जहाँ उनकी उपज के लिये उच्च मूल्य प्राप्त होने के अवसर उपलब्ध होते हैं।
  • तकनीकी प्रगति: आपूर्ति शृंखला मंचों में तकनीकी प्रगति के परिणामस्वरूप पशुधन पालन और जलीय कृषि से संलग्न किसानों को उच्च गुणवत्तायुक्त लाइव इनपुट सामग्री की आपूर्ति मिल रही है।
  • ऋण संस्कृति में सुधार: फिनटेक और एग्रीटेक स्टार्टअप के उदय के साथ देश का ऋण परिदृश्य बदल रहा है।
    • सेवा से वंचित रहे लघु और सीमांत किसान अब औपचारिक संस्थानों से निम्न ब्याज दरों पर ऋण प्राप्त कर सकते हैं।
    • विभिन्न सरल वित्तपोषण विकल्पों और सरकारी पहलों ने किसानों पर ब्याज के बोझ को कम किया है।

एग्री-स्टार्टअप हेतु शुरू की गई प्रमुख पहलें 

  • वर्ष 2020 में भारतीय रिज़र्व बैंक ने बैंकों को निर्देश दिया कि वे कृषि-स्टार्टअप को प्रदत्त 50 करोड़ रुपए तक के ऋण को प्राथमिकता क्षेत्र ऋण (priority sector lending) के अंतर्गत देखें।
  • बजट 2022 में भारत के वित्त मंत्री ने कृषि-स्टार्टअप और ग्रामीण उद्यमों के लिये एक फंड की भी घोषणा की। कृषि उपज मूल्य शृंखला को बढ़ावा देने के लिये नाबार्ड के माध्यम से इस विशेष फंड को लॉन्च किया जाएगा ।
  • अंतर्राष्ट्रीय अर्द्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (International Crops Research Institute for Semi-Arid Tropics- ICRISAT) ने NIDHI-सीड सपोर्ट स्कीम (NIDHI-SSS) के तहत एग्रीटेक स्टार्ट-अप्स से आवेदन आमंत्रित किये हैं।
    • चयनित स्टार्ट-अप को 50 लाख रुपए तक की धनराशि प्राप्त होगी। सीड फंड उन्हें अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में तेज़ी लाने में सक्षम बनाएगा।

एग्री-स्टार्टअप से संबद्ध समस्याएँ

  • नवीनतम आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार 75 स्टार्टअप/’न्यू एज’ कंपनियों ने अप्रैल-नवंबर 2021 में आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (initial public offering- IPO) मार्ग से 89,066 करोड़ रुपये जुटाए जो एक दशक में जुटाई गई सर्वाधिक राशि है। हालाँकि इसमें कृषि स्टार्टअप्स की हिस्सेदारी नगण्य ही रही।
    • भारत में स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र कृषि और विनिर्माण के बजाय बिग डेटा, एडटेक, फिनटेक, लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति शृंखला गतिविधियों जैसी सेवाओं के पक्ष में अधिक झुका है।
  • जबकि स्टार्टअप्स के पास धन जुटाने के कई विकल्प उपलब्ध होते हैं, उनके आरंभिक चरण का महत्त्वपूर्ण वित्तपोषण आमतौर पर एंजेल निवेशकों (निजी इक्विटी और उद्यम पूंजी के रूप में) और सरकार (सीड कैपिटल के रूप में) से प्राप्त होता है।
    • जबकि उद्यम पूंजीपति स्टार्टअप्स के विघटनकारी व्यवसाय मॉडल, उच्च विकास क्षमता और त्वरित लाभ कमाने की उनकी क्षमता के कारण उनमें निवेश के लिये आकर्षण रखते हैं, कृषि-स्टार्टअप धन आकर्षित करने के मामले में पीछे ही रहे हैं।
  • भारत में 650 से अधिक स्टार्ट-अप हैं जो उद्योगों और वित्तीय संस्थानों के साथ साझेदारी में कृषि-तकनीकी नवाचारों की पेशकश करते हैं, हालाँकि छोटे किसानों को सेवा दे सकने और स्वयं की वितरण प्रणाली के निर्माण की बहुत अधिक लागत के कारण उनके पास पैमाने की कमी है।
    • जबकि स्टार्ट-अप उभरती प्रौद्योगिकियों में अच्छी विशेषज्ञता रखते हैं, उनके पास प्रायः अनुप्रयोग-स्तरीय क्षेत्र विशेषज्ञता का अभाव होता है।

कृषि-उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?

  • बैंकों से सीड कैपिटल: बैंकों से सीड कैपिटल और नाबार्ड जैसे संस्थानों द्वारा एग्री-स्टार्टअप  के लिये क्रेडिट प्लस सेवाओं का विस्तार करना एग्री-स्टार्टअप को भारत के स्टार्टअप पारितंत्र में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने हेतु मदद करने में दीर्घकालिक योगदान कर सकता है।
    • सरकार को कृषि-उद्यमियों के लिये ‘वित्तपोषण सुगमता’ भी सुनिश्चित करनी चाहिये ताकि लक्षित उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके।
  • कृषि के लिये ‘सेबी’: लघु एवं मध्यम उद्यमों के लिये स्टॉक एक्सचेंज की तरह ही कृषि-स्टार्टअप के लिये भी एक समर्पित एक्सचेंज स्थापित किया जा सकता है।
    • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) कृषि-स्टार्टअप को शेयर बाज़ारों में सूचीबद्ध करने के लिये उदार नियामक मानदंड निर्धारित कर सकता है।
    • यह कृषि-स्टार्टअप और ग्रामीण उद्यमों को बढ़ावा देने हेतु अत्यंत आवश्यक जोखिम पूंजी जुटाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • फील्ड विशेषज्ञों के साथ सहयोग: उद्यमी बाज़ार से पूंजी जुटाने में सफल होंगे यदि वे कृषि शोधकर्ताओं, वित्तीय विशेषज्ञों और प्रौद्योगिकी विज़ार्ड के साथ मिलकर कार्य करें।
    • कृषि-स्टार्टअप भारत में फल-फूल सकेंगे यदि वे एपीडा (APEDA), इंडियन चैंबर ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर, नैसकॉम जैसे उद्योग संगठनों से, विशेष रूप से लॉन्च से पहले प्रोटोटाइप के परीक्षण/सत्यापन के लिये जुड़े होंगे।
  • वित्तीय साक्षरता: कृषि-उद्यमियों को वित्तीय साक्षरता और शिक्षा प्रदान की जानी चाहिये क्योंकि स्टार्टअप की दुनिया डोमेन पेशेवरों और इंजीनियरों से भरी हुई है जो वित्त और निवेशकों के बारे में अधिक जानकारी नहीं रखते।
    • इसके अलावा, विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय कृषि विकास कोष (IFAD) जैसी अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां सामान्य रूप से सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की प्राप्ति और विशेष रूप से जलवायु कार्रवाई (SDG 13) के संदर्भ में कृषि-स्टार्टअप की सहायता करने के लिये तैयार हैं ।
      • जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन पर ध्यान केंद्रित करने का दृष्टिकोण रखने वाले कृषि-स्टार्टअप निकट भविष्य में सफल होने की अधिक संभावना रखते हैं।
  • सरकार की भूमिका: सरकार को कृषि-स्टार्टअप क्षेत्र में धन आकर्षित करने के लिये एक निवेशक-अनुकूल व्यवस्था का निर्माण करना चाहिये।
    • एंजेल निवेशकों, उद्यम पूंजीपतियों और निजी इक्विटी धारकों को कृषि-स्टार्टअप से बाहर निकलते समय कारोबार सुगमता प्रदान करने के अलावा पूंजीगत लाभ पर कर प्रोत्साहन दिया जा सकता है।

निष्कर्ष

बढ़ती आबादी, जलवायु परिवर्तन और खाद्य सुरक्षा संकट के साथ भारतीय कृषि के लिये बेहद आवश्यक है कि वह पारंपरिक औद्योगिक मॉडल से एक नए भविष्योन्मुखी एवं संवहनीय मॉडल की ओर आगे बढ़े। कृषि क्षेत्र में छोटे लेकिन नियमित परिवर्तन भारत के कृषक समुदाय को अगले स्तर तक ले जा सकते हैं। एग्रीटेक फर्मों, डिजिटल अवसंरचना और नवीन तकनीकों के लिये अधिकाधिक समर्थन एक डिजिटल एवं हरित कृषि मॉडल की शुरुआत कर सकता है।

अभ्यास प्रश्न: ग्रामीण भारत में जलवायु-स्मार्ट कृषि अभ्यासों के कार्यान्वयन हेतु कृषि-स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिये ठोस प्रयास किये जाने चाहिये ताकि राष्ट्र की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। चर्चा कीजिये।