वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021 | 04 Aug 2022

प्रिलिम्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972, CITES

मेन्स के लिये:

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2021 पारित किया, जो वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (CITES)  के कार्यान्वयन का प्रावधान करता है।

वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन विधेयक 2021:

  • परिचय:
    • इसे 17 दिसंबर, 2021 को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री द्वारा लोकसभा में प्रस्तावित किया गया था।
    • यह वन्य जीवन (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में संशोधन करता है।
    • विधेयक संरक्षित प्रजातियों की संख्या में वृद्धि और CITES को लागू करने का प्रयास करता है।
  • विशेषताएँ:
    • CITES:
      • वन्य जीवों एवं वनस्पतियों की लुप्तप्राय प्रजातियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर कन्वेंशन (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora-CITES) एक अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जिसका पालन राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण संगठन स्वैच्छिक रूप से करते हैं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि वन्य जीवों एवं वनस्पतियों के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण उनके अस्तित्त्व पर संकट न हो।
      • कन्वेंशन में शामिल विभिन्न प्रजातियों के आयात, निर्यात, पुनः निर्यात एवं प्रवेश संबंधी प्रक्रियाओं को लाइसेंसिंग प्रणाली के माध्यम से अधिकृत किया जाना आवश्यक है। यह जीवित जानवरों के नमूनों को संरक्षित और विनियमित करने का भी प्रयास करता है।
        • विधेयक CITES के इन प्रावधानों को लागू करने का प्रयास करता है।
    • प्राधिकरण:
      • विधेयक केंद्र सरकार को एक प्राधिकरण के गठन का प्रावधान करता है:
        • प्रबंधन प्राधिकरण, जो नमूनों के व्यापार के लिये निर्यात या आयात परमिट देता है।
          • अधिसूचित नमूने के व्यापार में संलग्न प्रत्येक व्यक्ति को लेनदेन का विवरण प्रबंधन प्राधिकरण को देना चाहिये।
          • विधेयक किसी भी व्यक्ति को नमूने की पहचान, चिह्न को संशोधित करने या हटाने से रोकता है।
        • वैज्ञानिक प्राधिकरण, जो व्यापार किए जा रहे नमूनों के अस्तित्व के प्रभाव से संबंधित पहलुओं पर सलाह देता है।
  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972:
    • वर्तमान में इस अधिनियम में विशेष रूप से संरक्षित पौधों (I), विशेष रूप से संरक्षित जानवरों (IV), और वार्मिन प्रजातियों (I) के लिये छह अनुसूचियाँ शामिल हैं।
      • यह विधेयक अनुसूचियों की कुल संख्या को छः से घटाकर चार कर देता है:
        • अनुसूची I में उन प्रजातियों को शामिल किया गया है, जिन्हें उच्चतम स्तर की सुरक्षा की आवश्यकता है।
        • अनुसूची II में उन प्रजातियों को शामिल किया गया है जिन्हें अपेक्षाकृत कम सुरक्षा की आवश्यकता है।
        • अनुसूची III सभी प्रकार के पौधों को शामिल किया गया है।
        • इस विधेयक में वर्मिन प्रजातियों को अनुसूची से हटा दिया गया है।
          • वर्मिन प्रजाति से तात्पर्य उन छोटे जानवरों से है जो बीमारियों का प्रसार करते हैं तथा खाद्य पदार्थों को नष्ट कर देते हैं
        • यह CITES के परिशिष्टों में सूचीबद्ध प्रजातियों हेतु एक नवीन  कार्यक्रम को भी सम्मिलित करता है।
  • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ:
    • यह केंद्र सरकार को आक्रामक विदेशी प्रजातियों के आयात, व्यापार या प्रसार को विनियमित या प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है।
      • आक्रामक विदेशी प्रजातियाँ पौधों या जानवरों की प्रजातियों को संदर्भित करती हैं जो भारत की मूल प्रजातियाँ नहीं हैं और जिनकी उपस्थिति से वन्यजीव या इसके आवास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है
    • केंद्र सरकार किसी अधिकारी को आक्रामक प्रजातियों को ज़ब्त करने और उनका निपटान करने के लिये अधिकृत कर सकती है।
  • अभयारण्यों का नियंत्रण:
    • अधिनियम मुख्य वन्यजीव अधिकारी को एक राज्य में सभी अभयारण्यों को नियंत्रित करने, प्रबंधित करने और बनाए रखने का कार्य सौंपता है।
    • मुख्य वन्यजीव अधिकारी की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती है।
      • यह विधेयक निर्दिष्ट करता है कि मुख्य अधिकारी की कार्रवाई अभयारण्य के लिये निर्धारित प्रबंधन योजनाओं के अनुसार होनी चाहिये।
        • इन योजनाओं को केंद्र सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार और मुख्य वन्यजीव अधिकारी द्वारा दिये गए अनुमोदन के अनुसार तैयार किया जाएगा।
        • विशेष क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाले अभयारण्यों के लिये, संबंधित ग्राम सभके साथ उचित परामर्श के बाद प्रबंधन योजना तैयार की जानी चाहिये।
        • विशेष क्षेत्रों में अनुसूचित क्षेत्र या वे क्षेत्र शामिल हैं जहाँ अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 लागू है।
        • अनुसूचित क्षेत्र आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र हैं, जहाँ मुख्य रूप से आदिवासी आबादी रहती है, जिसे संविधान की पाँचवीं अनुसूची के तहत अधिसूचित किया गया है।
  • संरक्षण रिज़र्व:
    • अधिनियम के तहत राज्य सरकारें वनस्पतियों और जीवों तथा उनके आवास की रक्षा के लिये राष्ट्रीय उद्यानों व अभयारण्यों के आस-पास के क्षेत्रों को संरक्षण रिज़र्व के रूप में घोषित कर सकती हैं।:
      • विधेयक केंद्र सरकार को भी एक संरक्षण रिज़र्व को अधिसूचित करने का अधिकार देता है।
  • दंड:
    • WPA अधिनियम,1972 अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने पर कारावास की सज़ा तथा जुर्माने का प्रावधान करता है।
      • विधेयक दंड के प्रावधानों में भी वृद्धि करता है।

उल्लंघन के प्रकार 

अधिनियम, 1972

विधेयक, 2021

सामान्य उल्लंघन

25,000 रुपए तक

1,00,000 रुपए तक

विशेष रूप से संरक्षित जानवर

कम-से-कम 10,000 रुपए

कम-से-कम 25,000 रुपए

वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972

  • वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 जंगली जानवरों और पौधों की विभिन्न प्रजातियों के संरक्षण, उनके आवासों के प्रबंधन एवं विनियमन तथा जंगली जानवरों, पौधों व उनसे बने उत्पादों के व्यापार पर नियंत्रण के लिये एक कानूनी ढाँचा प्रदान करता है।
  • अधिनियम में पौधों और जानवरों को भी सूचीबद्ध किया गया है, जिन्हें सरकार द्वारा विभिन्न प्रकार की सुरक्षा प्रदान कर निगरानी की जाती है।
  • इस अधिनियम में कई बार संशोधन किया गया है, अंतिम संशोधन वर्ष 2006 में किया गया था।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न : यदि किसी विशेष पौधे की प्रजाति को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची VI के तहत रखा गया है, तो इसका क्या निहितार्थ है? (2020)

(a) उस पौधे की खेती के लिये लाइसेंस की आवश्यकता होती है।
(b) ऐसे पौधे की खेती किसी भी परिस्थिति में नहीं की जा सकती है।
(c) यह आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल का पौधा है।
(d) ऐसा पौधा पारिस्थितिकी तंत्र के लिये आक्रामक और हानिकारक है।

उत्तर: (a)

व्याख्या:

  • वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 पौधों और जानवरों की प्रजातियों के संरक्षण के लिये अधिनियमित किया गया है। अधिनियम में जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों की सुरक्षा का प्रावधान है। इसमें छह अनुसूचियाँ हैं, जो अलग-अलग सुरक्षा प्रदान करती हैं।
    • अनुसूची I और अनुसूची II के भाग II पूर्ण संरक्षण प्रदान करते हैं, इनके तहत अपराधों को उच्चतम दंड निर्धारित किया जाता है।
    • अनुसूची III और अनुसूची IV में सूचीबद्ध प्रजातियाँ भी संरक्षित हैं, लेकिन उलंघन करने पर दंड का प्रावधान बहुत कम है।
    • अनुसूची V में वे जानवर शामिल हैं जिनका शिकार किया जा सकता है।
    • अनुसूची VI में निर्दिष्ट स्थानिक पौधों को खेती और रोपण से प्रतिबंधित किया गया है।
  • अनुसूची VI में पौधे:
    • बेडडोम्स साइकैड (साइकस बेडडोमी),
    • ब्लू वांडा (वांडा सोरुलेक),
    • कुथ (सौसुरिया लप्पा),
    • लेडीज़ स्लिपर ऑर्किड (पैपिओपेडिलम एसपीपी)
    • पिचर प्लांट (नेपेंथेस खासियाना),
    • रेड वांडा
  • हालाँकि आगे यह भी कहा गया है कि बिना लाइसेंस के निर्दिष्ट पौधों की खेती प्रतिबंधित है। अधिनियम की धारा 17सी के अनुसार, कोई भी व्यक्ति निर्दिष्ट पौधे की खेती नहीं करेगा, जब तक मुख्य वन्य जीव वार्डन या इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य अधिकारी द्वारा दिये गए लाइसेंस उपलब्ध न हो।

अतः विकल्प (a) सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस