निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास के लिये RDI योजना | 03 Jul 2025

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, डीप टेक, बौद्धिक संपदा, सेमीकंडक्टर, अटल इनोवेशन मिशन, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व, STEM शिक्षा, AI, IoT, ब्लॉकचेन।                       

मेन्स के लिये:

अनुसंधान विकास और नवाचार (RDI) योजना के प्रावधान, अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका, संबंधित चुनौतियाँ और उनके समाधान के उपाय।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 1 लाख करोड़ रुपए की अनुसंधान विकास और नवाचार (RDI) योजना को मंजूरी दी, जिसका उद्देश्य निजी क्षेत्र को बुनियादी अनुसंधान में निवेश करने के लिये प्रोत्साहित करना है, जिससे नवीन उत्पाद और प्रौद्योगिकियाँ विकसित होंगी।

अनुसंधान विकास एवं नवाचार (RDI) योजना क्या है?

  • परिचय: यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की एक पहल है, जिसका उद्देश्य नवीन प्रौद्योगिकियों और उत्पादों के विकास को बढ़ावा देने के लिये बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ावा देना है।
  • दायरा: यह जोखिम को कम करके और निजी अभिकर्त्ताओं को रियायती निधि प्रदान करके उभरते और रणनीतिक क्षेत्रों में अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देता है। निधियों का उपयोग चार प्रमुख तरीकों से किया जाएगा:
    • निजी अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार को बढ़ावा देना, विशेष रूप से जैव प्रौद्योगिकी, रोबोटिक्स, ड्रोन और जलवायु परिवर्तन जैसे उभरते क्षेत्रों में;
    • प्रौद्योगिकी तत्परता के उच्चतर स्तर को प्राप्त करने के उद्देश्य से परिवर्तनकारी परियोजनाओं को वित्तपोषित करना;
    • महत्त्वपूर्ण या रणनीतिक रूप से आवश्यक प्रौद्योगिकियों के अधिग्रहण का समर्थन करना; तथा
    • डीप टेक क्षेत्र में स्टार्टअप्स के लिये वैकल्पिक वित्तपोषण चैनल के रूप में डीप टेक फंड ऑफ फंड्स की स्थापना करना।
  • प्रशासन एवं शासन: प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में ANRF का शासी बोर्ड RDI योजना के लिये समग्र रणनीतिक दिशा प्रदान करेगा, जबकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग इसके कार्यान्वयन के लिये नोडल विभाग के रूप में कार्य करेगा।
    • ANRF के अंतर्गत एक विशेष प्रयोजन निधि (SPF) निधियों के संरक्षक के रूप में कार्य करेगी, जो मुख्य रूप से द्वितीय स्तर के निधि प्रबंधकों को दीर्घकालिक रियायती ऋण वितरित करेगी। 
      • ये प्रबंधक कम या शून्य ब्याज दर वाले ऋणों के माध्यम से अनुसंधान एवं विकास परियोजनाओं को वित्तपोषित करेंगे, स्टार्ट-अप के लिये इक्विटी समर्थन प्रदान करेंगे, तथा डीप-टेक या अन्य RDI-केंद्रित फंड्स ऑफ फंड्स (FoF) में योगदान दे सकते हैं।
  • वित्तपोषण संरचना: यह धनराशि केंद्रीय बजट के माध्यम से ANRF को 50 वर्ष के ब्याज मुक्त ऋण के रूप में आवंटित की जाएगी, जिसका उपयोग गुणक प्रभाव उत्पन्न करने के लिये किया जाएगा।
    • धन केवल एक निश्चित स्तर के विकास और बाज़ार क्षमता वाले उत्पादों को ही प्रदान किया जाएगा, जिसमें उच्च जोखिम वाली TRL-4 (तकनीकी तत्परता स्तर-4) परियोजनाएँ भी शामिल हैं, जिन्हें प्रायः वित्तीय सहायता का अभाव होता है।

नोट

  • भारत का अनुसंधान एवं विकास पर सकल व्यय (GERD) वर्ष 2011 में 60,196 करोड़ रुपए से बढ़कर वर्ष 2021 में 1.27 लाख करोड़ रुपए हो गया, लेकिन यह GDP का 0.64% ही है।
  • लक्ष्य यह है कि भारत का निजी क्षेत्र अंततः बुनियादी अनुसंधान में सरकारी वित्त पोषण से आगे निकल जाए, जैसा कि उन्नत प्रौद्योगिकी वाले देशों में देखा गया है।
  • पेटेंट फाइलिंग में भारत विश्व स्तर पर छठे स्थान पर है, वर्ष 2023 में 64,480 आवेदन हुए, जो वर्ष 2013-14 में 42,951 से अधिक है।

भारत में अनुसंधान एवं विकास में निजी क्षेत्र की भागीदारी के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?

  • निजी क्षेत्र द्वारा कम अनुसंधान एवं विकास व्यय: भारत का उद्योग जगत अनुसंधान एवं विकास में सकल घरेलू उत्पाद का केवल 0.2% निवेश करता है, जो अमेरिका (2.7%), दक्षिण कोरिया (3.9%) और UK (2.1%) से काफी कम है, क्योंकि कई व्यवसाय दीर्घकालिक अनुसंधान की तुलना में अल्पकालिक लाभ को प्राथमिकता देते हैं।
  • कमज़ोर उद्योग-अकादमिक सहयोग: अकादमिक क्षेत्र और उद्योग के बीच सहयोग विश्वास की कमी और दृष्टिकोण में असंगति के कारण बाधित होता है, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रायः सैद्धांतिक अनुसंधान पर केंद्रित रहते हैं जबकि उद्योग क्षेत्र व्यावसायिक रूप से तैयार समाधान चाहता है। 
    • इसके अतिरिक्त, बौद्धिक संपदा (IP) स्वामित्व पर विवाद प्रभावी साझेदारी में बाधा डालते हैं।
  • बाज़ार एवं वित्तपोषण चुनौतियाँ: कम वाणिज्यिक व्यवहार्यता, विशेष रूप से प्रारंभिक चरण या गहन तकनीक नवाचारों में, कॉर्पोरेट निवेश को बाधित करती है।
    • "वैली ऑफ डेथ" चरण (प्रौद्योगिकी तत्परता स्तर 3–6) — जब प्रौद्योगिकियाँ प्रयोगशाला से बाज़ार की ओर बढ़ती हैं — प्रायः अल्पवित्तपोषित रह जाता है और उपेक्षित कर दिया जाता है।
    • सार्वजनिक वित्तपोषण (जैसे, DST, MeitY योजनाएँ) पर भी अत्यधिक निर्भरता है, जबकि निजी कंपनियों को रक्षा और रणनीतिक अनुसंधान एवं विकास में प्रवेश संबंधी बाधाओं का सामना करना पड़ता है, जिसमें बड़े पैमाने पर DRDO का प्रभुत्व है।
  • अपर्याप्त IP संरक्षण और प्रवर्तन: लंबी पेटेंट स्वीकृतियाँ (3-6 वर्ष) और उच्च मुकदमेबाज़ी लागत नवाचार को बाधित करती हैं, जबकि कमज़ोर प्रवर्तन फार्मा जेनरिक और सॉफ्टवेयर पाइरेसी जैसे क्षेत्रों में राजस्व हानि का कारण बनती है।
  • कुशल अनुसंधान एवं विकास प्रतिभा की कमी: बेहतर अवसरों की तलाश में शीर्ष शोधकर्त्ताओं के विदेश जाने के कारण प्रतिभा पलायन जारी है, जबकि AI और उन्नत सामग्री जैसे क्षेत्रों में कौशल असंतुलन घरेलू अनुसंधान एवं विकास क्षमता को सीमित करता है।
    • इसके अतिरिक्त, उन्नत प्रयोगशालाओं (जैसे, सेमीकंडक्टर फैब्स, बायोटेक लैब्स) की स्थापना की उच्च लागत और सरकारी वित्त पोषित बुनियादी ढाँचे (जैसे, CSIR लैब्स ) तक सीमित पहुँच निजी क्षेत्र के अनुसंधान एवं विकास को और अधिक प्रतिबंधित करती है।
  • न्यून जोखिम लेने की प्रवृत्ति: असफलता का भय और पदानुक्रमित कार्यस्थल जैसी सांस्कृतिक बाधाएँ जोखिम लेने को हतोत्साहित करती हैं और शोधकर्त्ता की रचनात्मकता को क्षीण कर देती हैं।

निजी क्षेत्र भारत में अनुसंधान और नवाचार को कैसे बढ़ावा दे सकता है?

  • अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि: भारत का अनुसंधान एवं विकास व्यय अमेरिका (3.46%), जापान (3.30%), इज़राइल (5.56%), और दक्षिण कोरिया (4.93%) जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में काफी कम है। 
    • इस अंतर को कम करने के लिये, निजी कंपनियाँ अनुसंधान एवं विकास निवेश बढ़ा सकती हैं, विशेष रूप से फार्मा, IT, नवीकरणीय ऊर्जा और उन्नत विनिर्माण में, और IITs, IISc, NITs जैसे संस्थानों और CSIR, DRDO और ISRO जैसी प्रयोगशालाओं के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान में संलग्न हो सकती हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): कॉर्पोरेट्स सरकार के साथ मिलकर अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये संयुक्त नवाचार निधि (जैसे, अटल इनोवेशन मिशन, नेशनल रिसर्च फाउंडेशन) को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • वे प्रौद्योगिकी इन्क्यूबेटरों (जैसे, T-Hub, C-CAMP) में निवेश करके और कॉर्पोरेट एक्सेलेरेटर्स (जैसे, स्टार्टअप्स के लिये माइक्रोसॉफ्ट, गूगल लॉन्चपैड ) के साथ साझेदारी करके स्टार्टअप्स का समर्थन भी कर सकते हैं।
  • कॉर्पोरेट वेंचर कैपिटल (CVC): कॉर्पोरेट्स डीप-टेक स्टार्टअप्स (AI, बायोटेक, क्वांटम, स्पेस टेक) में निवेश कर सकते हैं और नवाचार और पैमाने में तीव्रता लाने के लिये मेंटरशिप, फंडिंग और वैश्विक बाज़ार तक पहुँच प्रदान कर सकते हैं।
  • नवप्रवर्तन को प्रोत्साहित करना: कॉरपोरेट क्षेत्र नवाचार को प्रोत्साहित करने हेतु विघटनकारी प्रौद्योगिकियों पर केंद्रित इन-हाउस नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित कर सकता है, और कर्मचारियों को पेटेंट दाखिल करने के लिये प्रेरित कर सकता है, जैसा कि बौद्धिक संपदा सृजन में विप्रो, HCL और बायोकॉन जैसे उदाहरणों में देखा गया है।
  • उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाना: निजी क्षेत्र के प्रमुख क्षेत्रों (जैसे कृषि, स्वास्थ्य सेवा, रसद) में AI, IoT और ब्लॉकचेन जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों को अपनाने को प्रोत्साहित किया जा सकता है।

निष्कर्ष

1 लाख करोड़ रुपए की RDI योजना निजी अनुसंधान एवं विकास को प्रोत्साहित करके भारत के नवाचार अंतर को पाटने के लिये एक परिवर्तनकारी पहल है। रणनीतिक वित्तपोषण, गहन तकनीक फोकस तथा संस्थागत समर्थन के साथ, इसका उद्देश्य अनुसंधान-संचालित अर्थव्यवस्था को उत्प्रेरित करना है। हालाँकि, निजी क्षेत्र की भागीदारी को सुधारों, साझेदारियों और नवाचार-अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से मज़बूत किया जाना चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न: भारत के नवाचार लक्ष्यों को प्राप्त करने में निजी क्षेत्र की क्या भूमिका है? RDI योजना के संदर्भ में परीक्षण कीजिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

प्रिलिम्स 

प्रश्न: राष्ट्रीय नवप्रवर्तन प्रतिष्ठान - भारत (नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन-इंडिया) (NIF) के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2015)

  1. NIF केन्द्रीय सरकार के अधीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
  2.  NIF अत्यंत उन्नत विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सहयोग से भारत की प्रमुख (प्रीमियर) वैज्ञानिक संस्थाओं में अत्यंत उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधान को मज़बूत करने की एक पहल है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(A) केवल 1
(B) केवल 2
(C) 1 व 2 दोनों
(D) न तो 1 और न ही 2

 उत्तर: (A) 


मेन्स

प्रश्न: भारतीय विश्वविद्यालयों में वैज्ञानिक अनुसंधान का स्तर गिरता जा रहा है क्योंकि विज्ञान में कैरियर उतना आकर्षक नहीं है जितना कि वह कारोबार, संव्यवसाय इंजीनियरिंग या प्रशासन में है और विश्वविद्यालय उपभोक्ता-उन्मुखी होते जा रहे हैं । समालोचनात्मक टिप्पणी कीजिये। (2014)