वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 | 14 Oct 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक, उष्णकटिबंधीय चक्रवात, चक्रवात फानी

मेन्स के लिये:

जलवायु परिवर्तन संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय पर्यावरण थिंक टैंक 'जर्मनवॉच' ने वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक 2021 (Global Climate Risk Index 2021) जारी किया।

  • यह इस सूचकांक का 16वाँ संस्करण है। यह प्रतिवर्ष प्रकाशित होता है।
  • बॉन और बर्लिन (जर्मनी) में स्थित जर्मनवाच एक स्वतंत्र विकास और पर्यावरण संगठन है जो सतत् वैश्विक विकास के लिये कार्यरत है।

Climate-Index

प्रमुख बिंदु

  • सूचकांक के बारे में :
    • सूचकांक इस बात का विश्लेषण करता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न मौसम संबंधित घटनाओं (तूफान, बाढ़, हीट वेव आदि) के प्रभावों से देश और क्षेत्र किस हद तक प्रभावित हुए हैं।
    • इसके अंतर्गत घातक मानवीय प्रभावों और प्रत्यक्ष आर्थिक नुकसान दोनों का विश्लेषण किया जाता है।
    • इसमें वर्ष 2019 के उपलब्ध नवीनतम आँकड़ों और 2000-2019 के दशक के आँकड़ों का विश्लेषण किया गया है।
    • वर्ष 2021 के सूचकांक में संयुक्त राज्य अमेरिका केआँकड़ों को शामिल नहीं किया गया है।
    • जलवायु जोखिम सूचकांक स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि किसी भी महाद्वीप या किसी भी क्षेत्र में बढ़ते जलवायु परिवर्तन के नतीजों को अब नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।
    • चरम मौसम की घटनाएँ सबसे गरीब देशों को अधिक प्रभावित करती हैं क्योंकि ये विशेष रूप से खतरे के हानिकारक प्रभावों के प्रति संवेदनशील होते हैं, इनकी प्रतिरोधी क्षमता कम होती है और इन्हें पुनर्निर्माण तथा पुनर्प्राप्ति के लिये अधिक समय की आवश्यकता हो सकती है।
    • जलवायु परिवर्तन से उच्च आय वाले देश भी प्रचंड रूप से प्रभावित हो रहे हैं। 

Country

  • वर्ष 2021 के प्रमुख निष्कर्ष:
    • मोज़ाम्बिक, ज़िम्बाब्वे और बहामास वर्ष 2019 में सबसे अधिक प्रभावित देश थे।
    • 2000 से 2019 की अवधि के लिये प्यूर्टो रिको, म्याँमार और हैती सर्वोच्च स्थान पर हैं।
    • तूफान और उनके प्रत्यक्ष प्रभाव- वर्षा, बाढ़ एवं भूस्खलन, वर्ष 2019 में नुकसान और क्षति के प्रमुख कारण थे।
    • वर्ष 2019 में दस सबसे अधिक प्रभावित देशों में से छह उष्णकटिबंधीय चक्रवातों से प्रभावित हुए थे। हाल के तकनीकों से पता चलता है कि वैश्विक औसत तापमान वृद्धि के प्रत्येक दसवें हिस्से के साथ गंभीर उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या में वृद्धि होगी।
    • वर्ष 2019 में चरम मौसमी घटनाओं के मात्रात्मक प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित दस में से आठ देश निम्न से निम्न-मध्यम आय वर्ग के हैं। इनमें से आधे सबसे कम विकसित देश हैं।
  • भारत की स्थिति:
    • भारत ने पिछले वर्ष की तुलना में अपनी रैंकिंग में सुधार किया है। वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक-2021 में भारत 7वें स्थान पर है, जबकि वैश्विक जलवायु जोखिम सूचकांक-2020 में भारत 5वें स्थान पर था।
    • भारतीय मानसून वर्ष 2019 में सामान्य अवधि से एक माह अधिक समय तक जारी रहा, इसके चलते अतिरिक्त बारिश के कारण काफी कठिनाई हुई। इस दौरान बारिश सामान्य से 110 फीसदी तक हुई, जो वर्ष 1994 के बाद सबसे अधिक है।
    • अधिक वर्षा के कारण आने वाली बाढ़ से लगभग 1800 लोगों की मौत हुई और लगभग 1.8 मिलियन लोगों को पलायन करना पड़ा।
    • कुल मिलाकर 11.8 मिलियन लोग तीव्र मानसून के मौसम से प्रभावित हुए थे और इससे अनुमानतः 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आर्थिक क्षति हुई।
    • भारत में कुल 8 उष्णकटिबंधीय चक्रवातआए, जिनमें से चक्रवात फानी (मई 2019) के कारण सबसे ज़्यादा नुकसान हुआ।
    • भारत में हिमालय के ग्लेशियर, समुद्र तट और रेगिस्तान ग्लोबल वार्मिंग से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
    • यह रिपोर्ट भारत में ग्रीष्म लहर की संख्या में वृद्धि, चक्रवातों की तीव्रता एवं आवृत्ति में वृद्धि और ग्लेशियरों के पिघलने की बढ़ी हुई दर की ओर भी इशारा करती है।
  • सुझाव:
    • वैश्विक कोविड-19 महामारी ने इस तथ्य को दोहराया है कि जोखिम और भेद्यता दोनों प्रणालीगत व परस्पर जुड़े हुए हैं। इसलिये विभिन्न प्रकार के जोखिमों (जलवायु, भू-भौतिकीय, आर्थिक या स्वास्थ्य संबंधी) से सबसे कमज़ोर लोगों की सुरक्षा करना महत्त्वपूर्ण है।
    • कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में अंतर्राष्ट्रीय जलवायु नीति प्रक्रिया बाधित होने के बाद दीर्घकालिक प्रगति एवं अनुकूलन के लिये वर्ष 2021 और 2022 में पर्याप्त वित्तीय समर्थन की उम्मीद है।
    • प्रक्रिया को प्रभावी बनाने के लिये निम्नलिखित कदम उठाए जाने की आवश्यकता है:
      • भविष्य में होने वाले नुकसान और क्षति के संबंध में कमज़ोर देशों को समर्थन प्रदान करने के बारे में निर्णय निरंतरता के आधार पर निर्धारित किया जाना है।
      • इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराने हेतु  आवश्यक कदम उठाना।
      • जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन हेतु उपायों के कार्यान्वयन को मज़बूत करना।
    • संभावित नुकसान को रोकने या कम करने के लिये प्रभावी जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन पर ध्यान देना।

स्रोत: द हिंदू