भारत में ESG पर्यवेक्षण | 11 Aug 2025

प्रिलिम्स के लिये: गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (SFIO), राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA), व्यावसायिक उत्तरदायित्व और स्थिरता रिपोर्ट, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व

मेन्स के लिये: ESG और सतत् आर्थिक विकास, ग्रीनवाशिंग, भारत के औद्योगिक क्षेत्रों में पर्यावरणीय शासन चुनौतियाँ।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

वित्त संबंधी संसदीय स्थायी समिति ने कॉरपोरेट कार्य मंत्रालय (MCA) को एक पृथक ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) पर्यवेक्षण निकाय स्थापित करने की सिफारिश की है। यह कदम ग्रीनवाशिंग को लेकर बढ़ती चिंताओं के बीच उठाया गया है।

ESG (पर्यावरण, सामाजिक और शासन) क्या है?

  • परिचय: ESG किसी संगठन के पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव का आकलन करने के मानकों को संदर्भित करता है।
  • भारत के लिये ESG का महत्त्व:
    • जलवायु: भारत बाढ़, हीटवेव और समुद्र-स्तर वृद्धि के प्रति संवेदनशील है (विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) के अनुसार, वर्ष 2024 में भारत में 366 दिनों में से 322 दिन चरम मौसमी घटनाएँ दर्ज की गईं)।
      • मज़बूत पर्यावरणीय प्रथाओं, स्वच्छ ऊर्जा का उपयोग और उत्सर्जन में कटौती करने वाली कंपनियाँ इन जोखिमों को कम कर सकती हैं।
    • सामाजिक: भारत गरीबी, असमानता और बुनियादी आवश्यकताओं की कमी जैसी सामाजिक चुनौतियों का सामना कर रहा है।
      • जो कंपनियाँ सामाजिक उत्तरदायित्व को प्राथमिकता देती हैं, वे सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन ला सकती हैं, तथा अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था का निर्माण कर सकती हैं।
    • शासन: पारदर्शिता और नैतिक आचरण पर आधारित मज़बूत कॉर्पोरेट गवर्नेंस विश्वास का पुनर्निर्माण करने, निवेश आकर्षित करने और स्थिर, सतत आर्थिक विकास को समर्थन देने में मदद करता है।
  • संसदीय स्थायी समिति की सिफारिशें: समिति ने MCA के भीतर एक ESG निरीक्षण निकाय बनाने की सिफारिश की है, जिससे कंपनियों द्वारा किये जाने वाले सतत् विकास के दावों की सत्यता सुनिश्चित की जा सके।
    • इस निकाय में धोखाधड़ी का पता लगाने, क्षेत्र-विशिष्ट ESG दिशानिर्देश निर्धारित करने और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को ESG प्रथाओं को अपनाने में मदद करने के लिये फोरेंसिक विशेषज्ञ होने चाहिये।
    • इसमें कंपनी अधिनियम, 2013 में संशोधन का प्रस्ताव है, ताकि ESG को निदेशकों का मुख्य कर्त्तव्य बनाया जा सके, तथा सटीक और सार्थक ESG कार्यों के लिये मज़बूत नियमों के साथ व्यापार रणनीति में स्थिरता को शामिल किया जा सके।
      • इसमें ग्रीनवाशिंग को रोकने के लिये मिथ्यापूर्ण ESG दावों के लिये कठोर एवं तीव्र दंड की भी मांग की गई है।
    • इसके अतिरिक्त, पैनल ने वित्तीय अपराधों से शीघ्र निपटने के लिए रणनीति विकसित करने तथा गंभीर धोखाधड़ी जाँच कार्यालय (SFIO) और राष्ट्रीय वित्तीय रिपोर्टिंग प्राधिकरण (NFRA) को मज़बूत करने का आग्रह किया है।
  • ESG से संबंधित भारत की पहल: भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने शीर्ष 1,000 सूचीबद्ध कंपनियों को बिज़नेस रिस्पॉन्सिबिलिटी एंड सस्टेनेबिलिटी रिपोर्टिंग (BRSR) फ्रेमवर्क के माध्यम से अपने ESG प्रदर्शन का खुलासा करना अनिवार्य कर दिया है।

ग्रीनवॉशिंग क्या है?

  • परिचय: ग्रीनवॉशिंग उस भ्रामक प्रथा को कहते हैं, जिसमें कंपनियाँ अपने उत्पादों के बारे में झूठे या बढ़ा-चढ़ाकर पर्यावरण संबंधी दावे करती हैं, ताकि यह गलत धारणा बनाई जा सके कि वे पर्यावरण के अनुकूल हैं।
    • इस रणनीति का उपयोग उन उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये किया जाता है जो सतत् और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं।
    • इसमें उत्पाद की पुनर्चक्रण-योग्यता, पर्यावरण-अनुकूल सामग्री और स्थिरता संबंधी प्रथाओं को लेकर झूठा विज्ञापन, अस्पष्ट लेबल या भ्रमित करने वाला संदेश शामिल होता है।
  • ग्रीनवॉशिंग के प्रचलन में योगदान देने वाले कारक:
    • बढ़ता पर्यावरण-उपभोक्तावाद: जलवायु परिवर्तन और प्रदूषण के प्रति बढ़ती जागरूकता, विशेषकर भारतीय युवाओं में, सतत् उत्पादों की मांग में तेज़ी लाई है।
      • इस रुझान का लाभ उठाने के लिये, कुछ ब्रांड बिना प्रमाणपत्र या वास्तविक सतत् प्रथाओं के, पर्यावरण-अनुकूल या प्राकृतिक जैसे अस्पष्ट शब्दों का उपयोग करते हैं।
    • कमज़ोर नियामक प्रवर्तन: भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) का इको-मार्क प्रमाणन उपभोक्ताओं को पर्यावरण-अनुकूल उत्पाद पहचानने में सहायता करता है, लेकिन इसका उपयोग अनिवार्य नहीं है और कई उत्पाद अब भी इस प्रमाणन से वंचित हैं।
      • प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियमों का उद्देश्य प्लास्टिक अपशिष्ट को कम करना है, लेकिन प्लास्टिक कटौती के दावों से संबंधित ग्रीनवाशिंग से पूरी तरह निपटना नहीं है।
      • ESG से संबंधित आवश्यकताएँ कई कानूनों और दिशानिर्देशों में बिखरी हुई हैं, लेकिन कोई एकीकृत अनुपालन ढाँचा मौजूद नहीं है।
        • झूठे ESG दावों पर सख्त दंड के अभाव से ग्रीनवॉशिंग के खिलाफ रोकथाम कमज़ोर पड़ती है।
    • सांस्कृतिक शोषण: भारत में कुछ कंपनियाँ आयुर्वेद या जैविक कृषि जैसी पारंपरिक प्रणालियों का उपयोग अपने उत्पादों को पर्यावरण-अनुकूल के रूप में बाज़ार में पेश करने के लिये करती हैं।
      • वे ‘प्राकृतिक’ या ‘आयुर्वेदिक’ जैसे लेबल का इस्तेमाल उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिये करती हैं, भले ही उनके कच्चे माल की प्राप्ति या उत्पादन के तरीके स्थाई न हों और पर्यावरण के लिये हानिकारक हों।
    • CSR और विपणन: कंपनियाँ प्राय: वृक्षारोपण जैसी प्रतीकात्मक CSR गतिविधियों को उजागर करती हैं, जबकि वे पर्यावरण के लिये  हानिकारक कार्यों को जारी रखती हैं, विशेषकर जीवाश्म ईंधन या भारी विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में।
  • ग्रीनवॉशिंग से संबंधित भारत की पहलें:
    • उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019: केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) भ्रामक पर्यावरणीय दावों को नियंत्रित करता है।
    • ग्रीन रेटिंग प्रोजेक्ट: विज्ञान एवं पर्यावरण केंद्र (CSE) के तहत, यह परियोजना उद्योगों को उनके पर्यावरणीय प्रदर्शन के आधार पर रेटिंग देती है।
    • भारतीय विज्ञापन मानक परिषद के दिशानिर्देश: ग्रीन दावों वाले विज्ञापन स्पष्ट, सटीक और भ्रामक नहीं होने चाहिये।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न.  ग्रीनवाशिंग जितना एक नियामक मुद्दा है, उतना ही एक नैतिक मुद्दा भी है। इस संदर्भ में, कॉर्पोरेट स्थिरता को बढ़ावा देने में पर्यावरण, सामाजिक और शासन की भूमिका पर चर्चा कीजिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित में कौन-सा एक ‘‘ग्रीनवाशिंग’’ शब्द का सर्वोत्तम वर्णन है? (2022)

(a) मिथ्या रूप से यह प्रभाव व्यक्त करना कि कंपनी के उत्पाद पारिस्थितिक-अनुकूली (ईको-फ्रेंडली) और पर्यावरणीय रूप से उपयुक्त हैं
(b) किसी देश के वार्षिक वित्तीय विवरणों में पारिस्थितिक/पर्यावरणीय लागतों को शामिल नहीं करना
(c) आधारिक संरचना विकसित करते समय अनर्थकारी पारिस्थितिक दुष्परिणामों की उपेक्षा करना
(d) किसी सरकारी परियोजना/कार्यक्रम में पर्यावरणीय लागतों के लिये अनिवार्य उपबंध करना

उत्तर: (a)