जैविक हथियार अभिसमय और जैव आतंकवाद | 05 Dec 2025

प्रिलिम्स के लिये: जैविक हथियार अभिसमय, सामूहिक विनाश के हथियार, इंटरपोल,  SCOMET लिस्ट।

मेन्स के लिये: जैविक हथियार अभिसमय (BWC) की क्षमताएँ और सीमाएँ, भारत की राष्ट्रीय जैव सुरक्षा संरचना, जैव प्रौद्योगिकी का विनियमन।

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

जैविक हथियार अभिसमय (BWC) की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री ने इस तर्क पर ज़ोर दिया कि विश्व अभी भी जैव-आतंकवाद से निपटने के लिये पर्याप्त रूप से तैयार नहीं है। उन्होंने गैर-राज्य कारकों से बढ़ते खतरों की ओर ध्यान आकर्षित किया तथा वैश्विक जैव-सुरक्षा ढाँचे को और मज़बूत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।

जैविक हथियार अभिसमय (BWC) क्या है?

  • परिचय: BWC का पूरा नाम है - “बैक्टीरियोलॉजिकल (जैविक) और विषाक्त हथियारों के विकास, उत्पादन एवं भंडारण व उनके विनाश के निषेध पर अभिसमय”। यह अभिसमय जैविक और विषाक्त हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, स्थानांतरण, भंडारण और उपयोग को प्रभावी रूप से प्रतिबंधित करता है।
    • BWC के अनुच्छेद 1 के अंतर्गत सामान्य उद्देश्य मानदंड यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी जैविक एजेंट, विषाक्त पदार्थों या संबंधित सामग्री जिसका शांतिपूर्ण, सुरक्षात्मक या रोग-निवारक उपयोग नहीं है, प्रतिबंधित माना जाएगा। इसमें किसी विशेष एजेंट या तकनीक की सूची देने के बजाय उद्देश्य-आधारित प्रतिबंध लागू होता है।
    • BWC वर्ष 1972 में हस्ताक्षर हेतु प्रस्तुत किया गया और वर्ष 1975 में प्रभाव में आया (भारत ने इसे 1974 में अनुमोदित किया)।
      • इस अभिसमय की हर पाँच वर्ष में समीक्षा की जाती है ताकि इसे विकसित हो रहे वैज्ञानिक, तकनीकी और सुरक्षा संबंधी चुनौतियों के अनुरूप ढाला जा सके।
    • BWC, वर्ष 1925 के जिनेवा प्रोटोकॉल का पूरक है, जिसने केवल जैविक हथियारों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाया था।
  • मुख्य विशेषताएँ: BWC जैविक और विषाक्त हथियारों को सूक्ष्मजीवों (जैसे वायरस, बैक्टीरिया और कवक) या जीवित जीवों द्वारा उत्पन्न टॉक्सिन के रूप में परिभाषित करता है, जिन्हें जानबूझकर मानव, जानवरों या पौधों में रोग उत्पन्न करने या इनकी मृत्यु के कारक के रूप में प्रसारित किया जाता है
    • यह पहली बहुपक्षीय निरस्त्रीकरण संधि है, जो संपूर्ण प्रकार के विनाशक हथियारों (WMD) पर प्रतिबंध लगाती है।
    • यह जैविक और विषाक्त हथियारों के विकास, उत्पादन, अधिग्रहण, भंडारण, स्थानांतरण और उपयोग को प्रतिबंधित करता है।
  • भारत और BWC: BWC के पूर्ण कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये भारत ने एक मज़बूत घरेलू नियामक ढाँचा स्थापित किया है जिसमें खतरनाक सूक्ष्मजीवों, आनुवंशिक रूपांतरित जीवों या कोशिकाओं के निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात एवं भंडारण के नियम, 1989, सामूहिक विनाश के हथियार और उनकी सामूहिक विनाश के हथियार एवं उनकी आपूर्ति प्रणाली (गैर-कानूनी गतिविधियाँ निषेध) अधिनियम, 2005 तथा विशेष रसायनों, जीवों, सामग्रियों, उपकरणों और प्रौद्योगिकियों (SCOMET) सूची के तहत निर्यात नियंत्रण शामिल हैं।
  • BWC में अंतराल: सदस्य देशों द्वारा संधि के दायित्वों का पालन सुनिश्चित करने के लिये कोई औपचारिक अनुपालन और सत्यापन तंत्र नहीं है।
    • BWC की कार्यान्वयन सहायता इकाई, जिसे प्रशासनिक और समन्वय संबंधी कार्यों को सॅंभालने के लिये स्थापित किया गया था, के पास सत्यापन की कोई शक्ति नहीं है। इस कारण यह अभिसमय रासायनिक हथियारों पर प्रतिबंध संगठन (OPCW) के अधीन रासायनिक हथियार अभिसमय की तरह किसी प्रवर्तन तंत्र के बिना रह जाता है।
    • वैज्ञानिक और तकनीकी विकासों को ट्रैक करने के लिये कोई संरचित प्रणाली नहीं है।
    • ये कमियाँ संधि में वैश्विक विश्वास को कमज़ोर करती हैं और जैव हथियारों के खिलाफ सामूहिक तैयारी को कम करती हैं।

जैव-आतंकवाद क्या है?

  • परिचय: इंटरपोल के अनुसार, जैव-आतंकवाद हानिकारक जैविक एजेंट या विषाक्त को जानबूझकर छोड़ने की क्रिया है, जिसका उद्देश्य रोग और भय फैलाना तथा राजनीतिक या सामाजिक उद्देश्यों के लिये सरकार या नागरिक आबादी पर दबाव डालना या उन्हें प्रभावित करना होता है।

जैव-आतंकवाद से जुड़ी चिंताएँ

  • उच्च जनहानि की संभावना: जैविक एजेंट तेज़ी से प्रसारित हो सकते हैं, बड़े पैमाने पर संक्रमण पैदा कर सकते हैं और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को प्रभावित कर सकते हैं।
    • कोविड-19 ने वैश्विक महामारी प्रतिक्रिया में बड़ी कमियाँ उजागर कीं, जिससे पता चला कि देश प्राकृतिक रोगजनकों के लिये तैयार नहीं था।
  • पहचान और स्रोत निर्धारण में कठिनाई: कई जैविक हमले प्राकृतिक रोग फैलाव के समान होते हैं, जिससे उन्हें जल्दी पहचानना या हमलावर की पहचान करना कठिन हो जाता है।
  • दोहरे उपयोग वाले शोध के जोखिम: जैव प्रौद्योगिकी, कृत्रिम जीवविज्ञान और आनुवंशिक इंजीनियरिंग में प्रगति का दुरुपयोग अधिक शक्तिशाली या प्रतिरोधी रोगजनक बनाने के लिये किया जा सकता है।
  • कम लागत, उच्च प्रभाव वाला खतरा: जैविक हथियारों का निर्माण नाभिकीय या रासायनिक हथियारों की तुलना में सस्ता है, जिससे यह गैर-राज्य कारकों के लिये आकर्षक बन जाता है।
  • मनोवैज्ञानिक और आर्थिक विघटन: भय, गलत सूचना और सार्वजनिक आतंक समाज को अस्थिर कर सकते हैं, आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान उत्पन्न कर सकते हैं तथा अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान पहुँचा सकते हैं।

जैव-सुरक्षा को मजबूत करने हेतु कौन-कौन से उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • राष्ट्रीय क्रियान्वयन ढाँचा: भारत ने एक व्यापक ढाँचा प्रस्तावित किया है, जिसमें उच्च-जोखिम वाले जैविक एजेंट, ड्यूल-यूज़ अनुसंधान की निगरानी, आवश्यक घरेलू रिपोर्टिंग और घटना-प्रबंधन तंत्र शामिल हैं।
  • जैव-फॉरेंसिक और उत्तरदायित्व: प्रकोपों के स्रोत की पहचान करने, जाँचों का समर्थन करने और जानबूझकर दुरुपयोग को रोकने के लिये वैज्ञानिक क्षमता का निर्माण।
  • ग्लोबल साउथ पर ध्यान: भारत यह स्पष्ट करता है कि भविष्य की जैव-सुरक्षा योजना में ग्लोबल साउथ के देशों को केंद्रीय स्थान दिया जाना चाहिये, क्योंकि ये देश सबसे अधिक संवेदनशील हैं और इन्हें टीके, दवाओं और तकनीक तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये।
  • ड्यूल-यूज़ दुविधा की निगरानी: टीके, निदान उपकरण या जैव ईंधन पर अनुसंधान का दुरुपयोग किया जा सकता है, इसलिये कड़ी नैतिक समीक्षा, निगरानी और नियामक जाँच आवश्यक हैं।
  • अनुच्छेद VII सहायता तंत्र: भारत (फ्राँस के साथ) ने एक वैश्विक डेटाबेस बनाने की सिफारिश की, ताकि किसी भी राज्य पक्ष को जैविक खतरों या संधि उल्लंघनों के समय पर सहायता प्रदान की जा सके
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत यह रेखांकित करता है कि जैविक खतरों का अकेले समाधान नहीं किया जा सकता और इसके लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है, विशेषकर क्षमता निर्माण, निगरानी और तकनीक साझा करने में।
    • जैव सुरक्षा पर कार्टाजेना प्रोटोकॉल, 2000 जैसे समझौते इसे समर्थन देते हैं, क्योंकि ये संशोधित जीवों के सुरक्षित प्रबंधन और परिवहन को बढ़ावा देते हैं, ताकि जैव-विविधता और मानव स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।
  • विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs): BWC के तहत विश्वास मज़बूत करने के लिये नियमित डेटा साझा करने, सुविधाओं की घोषणा और राष्ट्रीय विधानों के अद्यतन के माध्यम से पारदर्शिता में सुधार करना।

निष्कर्ष

जैव-आतंकवाद के बढ़ते जोखिम और BWC की मौजूदा कमियाँ यह संकेत देती हैं कि विश्व अभी पूरी तरह तैयार नहीं है। ऐसे में सख्त अनुपालन, सुदृढ़ निगरानी और ग्लोबल साउथ की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देने का भारत का प्रयास एक अधिक सुरक्षित तथा प्रभावी वैश्विक जैव-सुरक्षा प्रणाली के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाता है।

दृष्टि मेन्स प्रश्न:

प्रश्न. जैविक हथियार अभिसमय (BWC) की मुख्य कमियों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिये और 21वीं सदी की बायोटेक्नोलॉजी जोखिमों के प्रति इसे अधिक सक्षम बनाने हेतु आवश्यक सुधार का सुझाव दीजिये।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. जैविक हथियार अभिसमय (BWC) क्या है?
जैविक हथियार अभिसमय (BWC), जो वर्ष 1975 में लागू हुआ, जैविक और विषैले हथियारों के विकास, उत्पादन, भंडारण, स्थानांतरण तथा उपयोग पर प्रतिबंध लगाता है। इसके 189 सदस्य देश हैं तथा यह पूरे विनाशकारी हथियार (WMD) वर्ग पर प्रतिबंध लगाने वाली पहली बहुपक्षीय संधि है।

2. BWC को गंभीर कमियों वाला क्यों माना जाता है?
BWC में औपचारिक सत्यापन/अनुपालन तंत्र नहीं है, कोई स्थायी तकनीकी संस्था मौजूद नहीं है और तेज़ी से बढ़ती वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगतियों को निगरानी करने की संरचित व्यवस्था भी नहीं है। इन कमियों के कारण सामूहिक तैयारी कमज़ोर हो जाती है।

3. जैव-सुरक्षा को मज़बूत करने के लिये भारत ने कौन-कौन से प्रमुख उपाय प्रस्तावित किये हैं?
भारत ने राष्ट्रीय क्रियान्वयन ढाँचा प्रस्तावित किया है, जिसमें उच्च-जोखिम वाले एजेंटों की निगरानी, ड्यूल-यूज़ अनुसंधान का प्रशासन, घरेलू रिपोर्टिंग और घटना-प्रबंधन शामिल हैं। इसके अलावा भारत ने फ्राँस के साथ मिलकर अनुच्छेद VII सहायता डेटाबेस बनाने का भी सह-प्रस्ताव रखा है।

4. भारत घरेलू रूप से BWC की प्रतिबद्धताओं को लागू करने के लिये कौन से कानूनी साधनों का उपयोग करता है?
भारत निर्माण, उपयोग, आयात, निर्यात और भंडारण नियम (1989), विनाशकारी हथियार अधिनियम (WMD Act, 2005) और SCOMET सूची (जहाँ श्रेणी-2 में सूक्ष्मजीव और विष शामिल हैं) के माध्यम से निर्यात नियंत्रण का उपयोग करता है।

सारांश

  • जैविक हथियार अभिसमय (BWC) की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर भारत ने चेतावनी दी कि विश्व जैव-आतंकवाद के लिये अभी भी पूरी तरह तैयार नहीं है, खासकर गैर-राज्य कर्त्ताओं से बढ़ते जोखिमों के संदर्भ में।
  • BWC, जैविक और विषैले हथियारों पर प्रतिबंध लगाने के बावजूद, इसमें मुख्य कमियाँ हैं: कोई सत्यापन प्रणाली नहीं, कोई स्थायी तकनीकी संस्था नहीं और नई वैज्ञानिक प्रगतियों को ट्रैक करने की कोई व्यवस्था नहीं।
  • भारत ने भविष्य की जैव-सुरक्षा सुधारों में ग्लोबल साउथ को केंद्र में रखने का आग्रह किया और टीके, तकनीक तक समान पहुँच तथा अनुच्छेद VII के तहत मज़बूत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)

प्रीलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2020)

अंतर्राष्ट्रीय समझौता/सेट-अप           विषय 

1. अल्मा-अता की घोषणा         : लोगों की स्वास्थ्य देखभाल

2. हेग कन्वेंशन                       : जैविक और रासायनिक हथियार

3. तालानोआ संवाद                 : वैश्विक जलवायु परिवर्तन

4. अंडर 2 गठबंधन                 : बाल अधिकार 

उपर्युक्त युग्मों में से कौन-सा/से सही सुमेलित है/हैं?

(a) केवल 1 और 2 

(b) केवल 4 

(c) केवल 1 और  3

(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (c)


मेन्स

प्रश्न. आतंकवाद की महाविपत्ति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर चुनौती है। इस बढ़ते हुए संकट के नियंत्रण के लिये आप क्या-क्या हल सुझाते हैं? आतंकी निधियन के प्रमुख स्रोत क्या हैं? (2017)