भारत में भिक्षावृत्ति | 23 Sep 2025
प्रिलिम्स के लिये: भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, प्रथम सूचना रिपोर्ट, समवर्ती सूची, आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन, गरीबी, बेरोज़गारी
मेन्स के लिये: भिक्षावृत्ति, भारत में सामाजिक कल्याण हेतु विधिक ढाँचा, भिक्षावृत्ति का अपराधीकरण।
चर्चा में क्यों?
एम.एस. पैटर बनाम दिल्ली राज्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि कोई दान–परोपकार नहीं, बल्कि संवैधानिक न्यास (Constitutional Trust) हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 21 के तहत राज्य के उस दायित्व पर बल दिया, जिसके अंतर्गत गरिमापूर्ण जीवन की रक्षा करना सम्मिलित है, तथा यह सुनिश्चित करने हेतु निर्देश दिए कि संस्थाएँ इन अधिकारों का संरक्षण करें।
भारत में भिक्षावृत्ति पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी प्रमुख निर्देश क्या हैं?
- सुरक्षा एवं संरक्षण: महिलाओं और बच्चों के लिये अलग और सुरक्षित सुविधाएँ, जिनमें बाल देखभाल, परामर्श तथा शिक्षा शामिल हों।
- सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि बच्चों को भिक्षावृत्ति गृह में नहीं रखा जाना चाहिये बल्कि उन्हें किशोर न्याय (बालको की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत बाल कल्याण संस्थानों में भेजा जाना चाहिये।
- यह भारत की संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार कन्वेंशन (UNCRC) के तहत प्रतिबद्धताओं के अनुरूप है।
- स्वास्थ्य और कल्याण: प्रवेश के 24 घंटे के भीतर अनिवार्य स्वास्थ्य जाँच।
- आहार में पोषण स्तर की निगरानी के लिये डायटीशियन की नियुक्ति।
- संरचना और रखरखाव: प्रत्येक दो वर्ष में स्वतंत्र तृतीय-पक्ष द्वारा आधारभूत संरचना का ऑडिट।
- भीड़-भाड़ रोकने के लिये सख्त क्षमता सीमाएँ।
- समाज में पुनः एकीकरण के लिये व्यावसायिक प्रशिक्षण।
भारत में भिक्षावृत्ति से संबंधित कानूनी ढाँचा क्या है?
- वर्तमान कानूनी ढाँचा: भारत का संविधान केंद्र और राज्य सरकारों दोनों को समवर्ती सूची (सूची III, प्रविष्टि 15) के अंतर्गत आवारागर्दी (भिक्षावृत्ति सहित), खानाबदोश और प्रवासी जनजातियों पर कानून बनाने की अनुमति प्रदान करता है।
- भिक्षावृत्ति पर कोई केंद्रीय कानून नहीं है, इसके बजाय, कई राज्य और केंद्रशासित प्रदेश बॉम्बे भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम, 1959 का पालन करते हैं, जो भिखारी को भिक्षा मांगने वाले, बिक्री के लिये सामान पेश करने वाले या बेसहारा दिखने वाले व्यक्ति के रूप में परिभाषित करता है।
- न्यायिक रुख: हर्ष मंदर बनाम भारत संघ (2018) में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि बॉम्बे अधिनियम सम्मान के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन करता है और गरीबी को अपराध घोषित किये बिना उसका समाधान करने के महत्त्व को रेखांकित किया।
- वर्ष 2021 में, सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक स्थानों से भिखारियों को हटाने के लिये एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि भिक्षावृत्ति एक सामाजिक-आर्थिक मुद्दा है, आपराधिक नहीं।
- सरकारी प्रयास:
- SMILE: सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 2022 में शुरू की गई "स्माइल- आजीविका और उद्यम के लिये सीमांत व्यक्तियों हेतु समर्थन" (Support for Marginalized Individuals for Livelihood and Enterprise-SMILE) योजना का उद्देश्य 2026 तक "भिक्षा-मुक्त" भारत की दिशा में काम करते हुए, चिकित्सा देखभाल, शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण प्रदान करके भिखारियों का पुनर्वास करना है।
- SMILE के तहत 970 व्यक्तियों का पुनर्वास किया गया है, जिनमें 352 बच्चे शामिल हैं (वर्ष 2024 तक)।
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में लगभग 413670 भिखारी हैं। पश्चिम बंगाल में भिखारियों की संख्या सबसे अधिक है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और बिहार का स्थान है।
भारत में कौन-से कारक भिक्षावृत्ति हेतु उत्तरदायी हैं और समाज पर इसका क्या प्रभाव पड़ता है?
भिक्षावृत्ति में योगदान देने वाले कारक |
समाज पर प्रभाव |
आर्थिक कठिनाई: गरीबी, बेरोज़गारी और प्रवासन लोगों को भिक्षावृत्ति हेतु मजबूर करते हैं। |
सार्वजनिक स्वास्थ्य जोखिम : भिक्षावृत्ति वाले स्थानों पर स्वच्छता की कमी के कारण बीमारियों का प्रसार होता है। |
सामाजिक एवं सांस्कृतिक कारक: कुछ समुदायों में जाति व्यवस्था तथा वंशानुगत व्यवसाय भिक्षावृत्ति में योगदान करते हैं। |
अपराध और शोषण: संगठित भिक्षावृत्ति वाले गिरोह/समूह व्यक्तियों का शोषण करते हैं, जिसमें बाल तस्करी तथा बलात् श्रम शामिल है। |
शारीरिक एवं मानसिक दिव्यांगता: पुनर्वास एवं स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं की कमी के कारण दिव्यांगजन प्रायः भिक्षावृत्ति का सहारा लेते हैं। |
पर्यटन और शहरी प्रभाव: अत्यधिक भिक्षावृत्ति से पर्यटन, सुरक्षा और शहरी स्थानों के संबंध में लोगों की धारणा प्रभावित होती है। |
प्राकृतिक आपदाएँ: बाढ़, सूखा और भूकंप के कारण विस्थापन के चलते निर्धनता में वृद्धि होती है तथा भिक्षावृत्ति की प्रवृत्ति बढ़ती है। |
मानवाधिकार उल्लंघन: भिखारियों को प्रायः भिक्षावृत्ति विरोधी कानूनों के तहत गिरफ्तार तो किया जाता है लेकिन वैकल्पिक पुनर्वास उपलब्ध नहीं कराए जाते साथ ही, गरीब और हाशिये पर जीवन-यापन कर रहे लोगों को लक्षित किया जाता है। |
संगठित भिक्षावृत्ति वाले गिरोह: मानव तस्कर और आपराधिक समूह कमज़ोर व्यक्तियों का शोषण करते हैं, जिसमें सहानुभूति-प्रेरित दान प्राप्त करने के लिये बदले शिशुओं को मादक पदार्थ देना भी शामिल है। |
सार्वजनिक सेवाओं पर बोझ: भिक्षावृत्ति में संलग्न लोगों के कुपोषित होने के कारण स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों तथा सार्वजनिक कल्याण संसाधनों पर दबाव पड़ता है। |
भारत में भिक्षावृत्ति के मुद्दे को संबोधित करने के लिये क्या दृष्टिकोण होना चाहिये?
- आश्रय, कौशल विकास और MGNREGA तथा PMAY जैसी कल्याणकारी योजनाओं के साथ एकीकरण के माध्यम से पुनर्वास को दृढ़ करना।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के तहत भिक्षावृत्ति वाले गिरोह को समाप्त करने के लिये मानव तस्करी विरोधी कानूनों का सख्ती से पालन किया जाए, जिसमें पुलिस, गैर-सरकारी संगठनों (NGO) और बाल कल्याण संगठनों के बीच बेहतर समन्वय की आवश्यकता होगी।
- भिक्षुकों के लिये मोबाइल क्लीनिक और सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों में समावेशन के माध्यम से स्वास्थ्य और स्वच्छता की पहुँच में सुधार करना।
- सामाजिक जागरूकता और समावेशन को बढ़ावा देना चाहिये, ताकि कलंक कम हो और पुनर्वास में नागरिक समाज की भागीदारी प्रोत्साहित हो।
निष्कर्ष:
सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने यह स्पष्ट कर दिया है कि गरीबी को अपराध नहीं बनाया जा सकता तथा राज्य पर यह सकारात्मक, अपूरणीय दायित्व है कि वह ज़रूरतमंद व्यक्तियों की मदद करे। इस फैसले ने भारत भर के भिक्षुओं के लिये करुणा, सामाजिक न्याय और मानव गरिमा पर जोर देते हुए एक नया संवैधानिक दृष्टिकोण स्थापित किया है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. "भारत में भिक्षावृत्ति व्यक्तिगत विकल्प की बजाय सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और नीतिगत विफलताओं का प्रतिबिंब है।" भारत में भिक्षावृत्ति की समस्या का समाधान करने के लिये संभावित उपायों पर चर्चा कीजिये। |