एयरलाइंस की ग्रीनवॉशिंग और कार्बन प्रदूषण में योगदान | 22 Jun 2023

प्रिलिम्स के लिये:

ग्रीनवॉशिंग, कार्बन प्रदूषण में एयरलाइंस का योगदान, जलवायु परिवर्तन, GHG, पेरिस समझौता, SAF

मेन्स के लिये:

एयरलाइंस की ग्रीनवॉशिंग और कार्बन प्रदूषण में योगदान संबंधी चिंता

चर्चा में क्यों?

अमेरिका में डेल्टा एयरलाइंस के खिलाफ एक मुकदमा दायर किया गया है, जिसमें कंपनी पर अपने धारणीय प्रयासों और "हरित" एवं कार्बन-तटस्थ एयरलाइन होने के संदर्भ में झूठे व भ्रामक दावे करके ग्रीनवॉशिंग में शामिल होने का आरोप लगाया गया है।

  • एयरलाइन ने मार्च 2020 से कार्बन तटस्थ होने का दावा किया और यात्री उड़ानों/जहाज़ों से कार्बन उत्सर्जन की भरपाई करने की पेशकश की।
  • हालाँकि मीडिया रिपोर्टों और जाँचों ने डेल्टा की कार्बन उत्सर्जन कम करने की प्रक्रिया में खामियों और अशुद्धियों को उजागर किया है।

ग्रीनवॉशिंग: 

  • ग्रीनवॉशिंग शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1986 में एक अमेरिकी पर्यावरणविद् और शोधकर्त्ता जे वेस्टरवेल्ड द्वारा किया गया था।
  • ग्रीनवॉशिंग कंपनियों और सरकारों की गतिविधियों की एक विस्तृत शृंखला को पर्यावरण के अनुकूल के रूप में चित्रित करने का एक अभ्यास है, जिसके परिणामस्वरूप उत्सर्जन से बचा या इसे कम किया जा सकता है।
    • इनमें से कई दावे असत्यापित, भ्रामक या संदिग्ध होते हैं।
    • हालाँकि यह संस्था की छवि को बेहतर बनाने में मदद करता है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध लड़ाई में किसी प्रकार का विशेष सहयोग नहीं करता है।
    • शेल और BP जैसे तेल दिग्गजों तथा कोका कोला सहित कई बहुराष्ट्रीय निगमों को ग्रीनवॉशिंग के आरोपों का सामना करना पड़ा है। 
  • पर्यावरणीय गतिविधियों की एक पूरी शृंखला में ग्रीनवॉशिंग सामान्य बात है।
    • अक्सर विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों में वित्तीय प्रवाह के जलवायु सह-लाभों का सहारा लिया जाता है, जो कि कभी-कभी बहुत कम तर्कसंगत होते हैं, इन विकसित देशों के इस प्रकार के व्यवसाय निवेशों पर ग्रीनवॉशिंग का आरोप लगता रहता है। 
  • भारत में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत ग्रीनवॉशिंग को एक अनुचित व्यापार विधि माना जाता है, जो भ्रामक दावों पर रोक लगाता है लेकिन इन नियमों का कार्यान्वयन चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

कार्बन प्रदूषण में एयरलाइंस से संबंधित चिंताएँ: 

  • प्रमुख एयरलाइंस ग्रीनवॉशिंग में शामिल:
    • गार्जियन जाँच और ग्रीनपीस रिपोर्ट के अध्ययन से प्रमुख एयरलाइंस के कार्बन ऑफसेट प्रणाली में खामियाँ और धोखाधड़ी का पता चला है जिससे कार्बन उद्योगों की तटस्थता के दावे पर संदेह उत्पन्न हो गया है।
      • KLM (नीदरलैंड स्थित एयरलाइन) और रयान एयर (यूरोप), एयर कनाडा तथा स्विस एयरलाइंस सहित अन्य एयरलाइंस को पर्यावरण के अनुकूल होने के दावों के साथ ग्रीनवॉशिंग एवं ग्राहकों को गुमराह करने के आरोपों का सामना करना पड़ा है।
    • ये निष्कर्ष इंटरनेशनल एयर ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन की वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य प्रतिज्ञा की विश्वसनीयता के बारे में चिंताएँ बढ़ाते हैं जिसकी विशेषज्ञों ने ग्रीनवाशिंग अधिनियम के रूप में आलोचना की है।
  • कार्बन प्रदूषण में एयरलाइंस का महत्त्वपूर्ण योगदान:
    • अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, वर्ष 2021 में वैश्विक ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन में विमानन का हिस्सा 2% से अधिक था।
    • एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक विमानन उत्सर्जन 300-700% तक बढ़ सकता है।
      • मुंबई से लॉस एंजिल्स की एक यात्रा में 4.8 टन CO2 उत्पन्न होती है (6,00,000 स्मार्टफोन चार्ज करने के बराबर)।
  • ऑफसेट प्रणाली में ब्लाइंड स्पॉट:
    • कार्बन ऑफसेट की गणना के लिये सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त मानकों और ट्रैकिंग तंत्र की कमी है जिससे उत्सर्जन में कमी सुनिश्चित करना कठिन हो जाता है जो अन्यथा नहीं होता।
    • प्रमाणन संगठन कार्बन क्रेडिट के खरीदारों एवं विक्रेताओं को मिलाने में भूमिका निभाते हैं लेकिन भ्रामक परियोजनाओं और फैंटम क्रेडिट की अनुमति देने के लिये निरीक्षण एवं सत्यापन प्रक्रियाओं की आलोचना की गई है।

कार्बन क्रेडिट:

  • कार्बन क्रेडिट (कार्बन ऑफसेट) कंपनियों को तब प्राप्त होता है जब वे पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा दक्षता या नवीकरणीय ऊर्जा जैसी ऑफसेट परियोजनाओं में निवेश करते हैं जो वायुमंडल से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करते हैं या हटाते हैं।
  • ये क्रेडिट कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे इन पहलों के माध्यम से वायुमंडल से हटा दिया गया हो। 
  • प्रत्येक क्रेडिट एक मीट्रिक टन CO2 के बराबर है, जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है।
  • कंपनियाँ इन क्रेडिट का उपयोग हवाई जहाज़ यात्रा जैसे एक क्षेत्र में अपने कार्बन उत्सर्जन को ऑफसेट करने के लिये करती हैं, यह दावा करके कि वे कहीं और जैसे कि दूर के वर्षावनों में उत्सर्जन को कम कर रहे हैं।
    • वर्ष 2023 में मॉर्गन स्टेनली की एक रिपोर्ट के अनुसार, स्वैच्छिक कार्बन-ऑफसेट बाज़ार के वर्ष 2020 के 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2050 तक लगभग 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।

ग्रीनवॉशिंग कार्बन क्रेडिट को कैसे प्रभावित करती है?

  • अनौपचारिक बाज़ार:
    • सभी प्रकार की गतिविधियों के लिये क्रेडिट उपलब्ध हैं जैसे- पेड़ उगाने, एक निश्चित प्रकार की फसल उगाने, कार्यालय भवनों में ऊर्जा-कुशल उपकरण स्थापित करने के लिये।
      • ऐसी गतिविधियों के क्रेडिट अक्सर अनौपचारिक तृतीय-पक्ष कंपनियों द्वारा प्रमाणित किये जाते हैं और दूसरों को बेचे जाते हैं।
      • ऐसे लेन-देन को सत्यनिष्ठा की कमी और दोहरी गिनती के रूप में चिह्नित किया गया है।
  • विश्वसनीयता:
    • भारत या ब्राज़ील जैसे देशों ने क्योटो प्रोटोकॉल के तहत भारी मात्रा में कार्बन क्रेडिट जमा किया था और वे चाहते थे कि इन्हें पेरिस समझौते के तहत स्थापित किये जा रहे नए बाज़ार में स्थानांतरित किया जाए।
      • लेकिन कई विकसित देशों ने इसका विरोध किया, क्रेडिट की अखंडता पर सवाल उठाया और दावा किया कि वे उत्सर्जन में कटौती का सटीक प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
  • पारदर्शिता की कमी का कारण:
    • ग्रीनवॉशिंग से कार्बन ऑफसेट बाज़ार में पारदर्शिता की कमी हो सकती है।
    • कंपनियाँ उन परियोजनाओं के बारे में सीमित जानकारी प्रदान कर सकती हैं जिनका वे समर्थन करती हैं, जिससे उनके दावों को सत्यापित करना और वास्तविक पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना मुश्किल हो जाता है।
    • पारदर्शिता की यह कमी कार्बन क्रेडिट प्रणाली की विश्वसनीयता को कमज़ोर करती है।
  • वास्तविक उत्सर्जन कटौती से विचलन:  
    • ग्रीनवॉशिंग प्रथाएँ कार्बन उत्सर्जन को कम करने के वास्तविक प्रयासों से ध्यान भटका सकती हैं।
    • ऐसी कंपनियाँ जो अपने उत्सर्जन को कम करना चाहती हैं लेकिन परिचालन संबंधी बड़े बदलाव नहीं करना चाहती हैं अथवा अधिक पर्यावरण अनुकूल प्रथाओं को अपनाना नहीं चाहती हैं, वे सिर्फ कार्बन क्रेडिट पर निर्भर रहने में भरोसा करती हैं।
    • यह वास्तविक उत्सर्जन कटौती और निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन की दिशा में प्रगति को बाधित कर सकता है। 

आगे की राह 

  • कार्बन ऑफसेटिंग की जटिल प्रकृति और प्रभावी मानकों पर आम सहमति की कमी नियमों को लागू करने में चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है। इसलिये कार्बन ऑफसेट कार्यक्रमों के बेहतर विनियमन, पारदर्शिता और समझ की आवश्यकता है।
  • इन विकल्पों के सामने आने वाली बाधाओं के बावजूद सतत् विमानन ईंधन, हाइड्रोजन और पूर्ण-इलेक्ट्रिक प्रणोदन तकनीकों के माध्यम से वाणिज्यिक विमानन को डीकार्बोनीकृत करने की ओर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
  • पर्यावरणीय धारणीयता की ओर बढ़ते हुए विमानन के कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के लिये बेहतर विनियमन, जाँच प्रणाली और अधिक प्रभावशाली रणनीतियाँ विकसित करने की आवश्यकता है। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा "कार्बन क्रेडिट" के संबंध में सही नहीं है? (2011)

(a) क्योटो प्रोटोकॉल के संयोजन में कार्बन क्रेडिट प्रणाली की पुष्टि की गई थी।
(b) कार्बन क्रेडिट उन देशों अथवा समूहों को प्रदान किया जाता है जिन्होंने तय उत्सर्जन सीमा से ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम कर दिया है।
(c) कार्बन क्रेडिट प्रणाली का लक्ष्य कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन की वृद्धि को सीमित करना है।
(d) संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा समय-समय पर कार्बन क्रेडिट का आदान-प्रदान का मूल्य निर्धारित किया जाता है।

उत्तर: (d) 

स्रोत: द हिंदू