तीसरा संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन | 17 Jun 2025

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन, सतत् विकास लक्ष्य (SDG), तेल रिसाव, कोरल ब्लीचिंग, राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की जैव विविधता, जैविक विविधता पर कन्वेंशन, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैव विविधता ढाँचा, कोरल रीफ्स, मृत क्षेत्र, वधावन बंदरगाह, मैंग्रोव, महासागर धाराएँ, समुद्री संरक्षित क्षेत्र (MPA), माइक्रोबीड्स, पेरिस समझौता, समुद्री घास

मेन्स के लिये:

तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन के मुख्य परिणाम, महासागरों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ और उन्हें सुरक्षित रखने की आवश्यकता, महासागर स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये आवश्यक कार्य।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

फ्राँस के नीस में आयोजित, संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन (UNOC3), 2025 में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) 14 (जल के नीचे जीवन) के लिये वैश्विक प्रतिबद्धताओं को मज़बूत करते हुए "हमारा महासागर, हमारा भविष्य: त्वरित कार्रवाई के लिये एकजुट" घोषणा को अपनाया । 

  • आदिवासी नेताओं ने कमज़ोर समुदायों के लिये न्याय सुनिश्चित करने वाली एक बाध्यकारी प्लास्टिक संधि की मांग की, जिसे प्लास्टिक के उत्पादन से लेकर निपटान तक के नियंत्रण के लिये 95 देशों का समर्थन प्राप्त हुआ।
  • यह घोषणा जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता हानि और प्रदूषण जैसे त्रि-ग्रहीय संकट से निपटने का लक्ष्य रखती है, जो विश्व के महासागरों के लिये खतरा बना हुआ है।

त्रिग्रहीय संकट (ट्रिपल प्लैनेटरी क्राइसिस):

  • ट्रिपल प्लैनेटरी क्राइसिस तीन परस्पर जुड़े वैश्विक पर्यावरणीय खतरों अर्थात जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता हानि तथा प्रदूषण एवं अपशिष्ट को संदर्भित करता है।
    • जलवायु परिवर्तन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से प्रेरित है, जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग, चरम मौसमी घटनाएँ, समुद्र का बढ़ता स्तर तथा खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा उत्पन्न हो रहा है।
    • जैव विविधता की हानि वनों की कटाई, प्रदूषण, आवास विनाश और अत्यधिक दोहन के कारण होती है, जिससे बड़े पैमाने पर प्रजातियों का विलुप्त होना और पारिस्थितिकी तंत्र की कमज़ोरी जैसी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
    • प्लास्टिक, रसायनों और वायु/जल प्रदूषण से उत्पन्न प्रदूषण और अपशिष्ट मानव स्वास्थ्य, समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं तथा जलवायु और जैवविविधता और भी प्राभावित होते हैं।
  • ये संकट आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं, जलवायु परिवर्तन प्रजातियों के नुकसान बढ़ाता है, प्रदूषण जलवायु प्रभावों को बढ़ाता है तथा क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र कार्बन अवशोषण को कम कर देते हैं — इसलिये इनसे निपटने के लिये तत्काल, समन्वित और वैश्विक कार्रवाई की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन क्या है?

  • UNOC के बारे में: UNOC एक उच्च स्तरीय वैश्विक शिखर सम्मेलन है, जिसे SDG 14 (जल के नीचे जीवन) की दिशा में कार्रवाई में तेजी लाने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित किया गया है, जिसका उद्देश्य महासागरों, सागरों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और स्थायी उपयोग करना है।
  • विषय: महासागर के संरक्षण और सतत् उपयोग के लिये कार्रवाई में तेजी लाना और सभी हितधारकों को संगठित करना।    
  • उद्देश्य: इसका उद्देश्य जलवायु परिवर्तन (महासागर का गर्म होना, अम्लीकरण, समुद्री जल स्तर में वृद्धि), समुद्री प्रदूषण (प्लास्टिक, तेल रिसाव, रासायनिक अपशिष्ट), अत्यधिक मत्स्य संग्रहण और IUU (अवैध, अप्रतिबंधित, अनियमित) मत्स्य संग्रहण तथा जैव विविधता हानि (प्रवाल विरंजन, आवास विनाश) जैसी महत्त्वपूर्ण समुद्री चुनौतियों का समाधान करना है।
    • UNOC3 का उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र के 2015 SDG के अनुरूप एक अंतर्राष्ट्रीय समझौते के रूप में "नाइस महासागर समझौते" की स्थापना करना और उच्च समुद्रों को विनियमित करने के लिये 60 देशों से अनुसमर्थन प्राप्त करके राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैवविविधता पर समझौते (BBNJ समझौता) को आगे बढ़ाना था।
  • अतीत में प्रमुख परिणाम: 
    • वर्ष 2017 (न्यूयॉर्क): "कार्रवाई के लिये आह्वान" घोषणा: समुद्री प्रदूषण और अत्यधिक मत्स्य संग्रहण पर ध्यान केंद्रित।
    • वर्ष 2022 (लिस्बन): वर्ष 2030 तक 30% समुद्री संरक्षण (30x30 लक्ष्य) के लिये नवीनीकृत प्रतिबद्धताएँ।

तीसरे संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन के मुख्य परिणाम क्या हैं?

  • वैश्विक महासागर शासन को मज़बूत करना: घोषणापत्र में प्रमुख समझौतों के पूर्ण कार्यान्वयन का आग्रह किया गया, जिसमें जैवविविधता पर कन्वेंशन, कुनमिंग-मॉन्ट्रियल वैश्विक जैवविविधता रूपरेखा और राष्ट्रीय क्षेत्राधिकार से परे क्षेत्रों की समुद्री जैवविविधता पर समझौता (BBNJ) शामिल हैं।
  • जलवायु परिवर्तन और महासागर अम्लीकरण का समाधान: घोषणा में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, विशेष रूप से महासागर अम्लीकरण को कम करने हेतु वैश्विक स्तर पर प्रयासों को तेज़ करने का आह्वान किया गया। इसमें यह भी ज़ोर दिया गया कि अपरिहार्य जलवायु प्रभावों के प्रति अनुकूलन की आवश्यकता है, साथ ही समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जानी चाहिये।
    • सम्मेलन में प्लास्टिक प्रदूषण और इससे होने वाले पर्यावरणीय नुकसान पर चिंता व्यक्त की गई, साथ ही समुद्री प्रदूषण को रोकने और कम करने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की गई।
  • सतत् महासागर आधारित अर्थव्यवस्थाएँ: घोषणा में सतत् महासागरीय गतिविधियों की आर्थिक क्षमता को स्वीकार किया गया, विशेष रूप से छोटे द्वीपीय विकासशील राज्यों (SIDS) और अल्प विकसित देशों (LDCs) के लिये। इसमें महासागरीय संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन हेतु सतत् महासागर योजनाओं जैसे उपकरणों को प्रमुखता दी गई।
  • स्वदेशी ज्ञान और महासागर मानचित्रण: घोषणा पत्र में इस बात पर ज़ोर दिया गया कि महासागर संबंधी कार्य वैज्ञानिक अनुसंधान, पारंपरिक ज्ञान और स्वदेशी लोगों की विशेषज्ञता द्वारा निर्देशित होना चाहिये।
    • साथ ही राष्ट्रीय महासागर लेखांकन और समुद्री पारिस्थितिक तंत्रों के मानचित्रण के महत्त्व  को रेखांकित किया गया, ताकि नीतियों को बेहतर ढंग से तैयार किया जा सके।

UNOC3 में प्रमुख महासागर संरक्षण पहलों की घोषणा 

  • यूरोपीय आयोग: महासागर संरक्षण को बढ़ावा देने, समुद्री विज्ञान को प्रोत्साहित करने और सतत् मत्स्यन की प्रथाओं का समर्थन करने के लिये 1 बिलियन यूरो के निवेश की घोषणा की गई।
  • फ्रेंच पोलिनेशिया: विश्व का सबसे बड़ा समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाने का संकल्प लिया गया, जो इसके पूरे विशेष आर्थिक क्षेत्र (5 मिलियन वर्ग किलोमीटर) को कवर करेगा, ताकि समुद्री जैव विविधता की रक्षा की जा सके।
  • स्पेन: पाँच नए समुद्री संरक्षित क्षेत्रों के निर्माण की घोषणा की, जिससे इसके संरक्षित समुद्री क्षेत्रों के नेटवर्क को और सशक्त किया जाएगा।
  • इंडोनेशिया और विश्व बैंक: इंडोनेशिया में रीफ संरक्षण और पुनरुद्धार प्रयासों को वित्तपोषित करने के लिये एक नवीन वित्तीय उपकरण 'कोरल बॉण्ड' की शुरुआत की गई।
  • शांत महासागर के लिये उच्च महत्त्वाकांक्षा गठबंधन: पनामा और कनाडा के नेतृत्व में 37 देशों का यह गठबंधन जल के भीतर ध्वनि प्रदूषण से निपटने और समुद्री जीवन की रक्षा पर केंद्रित है।

ट्रिपल प्लैनेटरी संकट महासागरों और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्रों को किस प्रकार प्रभावित कर रहा है?

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: महासागर वैश्विक तापन से उत्पन्न अतिरिक्त ऊष्मा का 90% भाग अवशोषित कर लेते हैं, जिससे जल का तापीय विस्तार, लवणता में वृद्धि और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में विघटन होता है।
    • वे मानवजनित CO₂ उत्सर्जन का लगभग 23% अवशोषित करते हैं, जिससे महासागर पूर्व-औद्योगिक काल की तुलना में 30% अधिक अम्लीय हो गए हैं। यह परिवर्तन शैल-निर्माण करने वाले जीवों और प्रवाल भित्तियों के लिये हानिकारक है।
  • गर्म जल में ल भित्तियों का विनाश: तापमान में वृद्धि से प्रवाल विरंजन होता है, जिसमें प्रवाल अपने सहजीवी शैवाल (Zooxanthellae) को बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे श्वेत हो जाते हैं और प्रायः बड़ी मात्रा में मर जाते हैं।
  • समुद्री संसाधनों का अत्यधिक दोहन: अत्यधिक मत्स्यन से प्रमुख प्रजातियों की संख्या में भारी गिरावट आई है, जैसे कि वर्ष 2021 में केरल तट पर ऑयल सार्डिन की पकड़ में 75% की गिरावट देखी गई। वहीं वधावन पोर्ट जैसे परियोजनाओं की आलोचना हो रही हैं, क्योंकि ये मछुआरा समुदायों को विस्थापित करते हैं और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुँचाते हैं।
    • बॉटम ट्रॉलिंग (समुद्र तल पर जाल घसीटना) और समुद्र तल से धातुएँ निकालने की योजनाएँ प्रवाल भित्तियों, स्पंज जैसे निवास स्थलों और अब तक अज्ञात समुद्री प्रजातियों को नष्ट कर सकती हैं, जिससे समुद्र में धूल के बादल बनते हैं, जो विशाल क्षेत्रों में समुद्री जीवन को घुटन से मार सकते हैं।
  • प्लास्टिक एवं रासायनिक प्रदूषण: प्रतिवर्ष लाखों टन प्लास्टिक महासागरों में प्रवेश करता है, जिससे समुद्री जीवन को नुकसान पहुँचता है।
    • तेल रिसाव, जहाज़ दुर्घटनाएँ और औद्योगिक अपवाह विषैले रसायनों को समुद्र में छोड़ते हैं, जैसे हाल ही में कोच्चि तट के पास लाइबेरियाई ध्वज वाले एक जहाज़ के डूबने से क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता और आसपास के समुदायों को खतरा हुआ, जिसके चलते केरल सरकार ने इसे राज्य आपदा घोषित किया।
  • आवास विनाश: मैंग्रोव वनों, जो मछलियों के लिये मत्त्वपूर्ण तटीय प्रजनन स्थल होते हैं, को झींगा पालन और रिसॉर्ट्स के लिये साफ किया जा रहा है, जबकि तटीय विकास के कारण कछुओं के अंडे देने वाले समुद्र तटों पर होटल का निर्माण किया जा रहा है।

महासागरों की सुरक्षा की आवश्यकता क्यों है?

  • पारिस्थितिक और जैव विविधता का महत्त्व: फाइटोप्लांकटन, जो पृथ्वी के 50% से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करते हैं और प्लांकटन समुद्री खाद्य शृंखला की आधारशिला हैं, जो मछलियों, समुद्री स्तनधारियों तथा समुद्री पक्षियों को पोषण प्रदान करते हैं।
    • महासागर, जो पृथ्वी का सबसे बड़ा पारिस्थितिक तंत्र है, संपूर्ण  जीवन के लगभग 94% हिस्से और लगभग दस लाख ज्ञात प्रजातियों को आश्रय प्रदान करते हैं। प्रवाल भित्तियाँ और मैंग्रोव जैव विविधता के अत्यंत महत्त्वपूर्ण केंद्र  हैं। उदाहरण के लिये, महासागरीय धाराएँ पोषक तत्त्वों से समृद्ध जल को सतह पर लाकर न्यूफाउंडलैंड के ग्रैंड बैंक्स जैसे उपजाऊ मछली पकड़ने के मैदान का निर्माण करती हैं। 
  • जलवायु विनियमन: महासागर वैश्विक तापमान को नियंत्रित करते हैं और जलवायु संतुलन बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे गल्फ स्ट्रीम जैसी धाराओं के माध्यम से ऊष्मा को अवशोषित कर उसे पुनर्वितरित करते हैं।
    • महासागर जल चक्र को संचालित करते हैं, जिससे वर्षा, मानसून, मौसम प्रणाली प्रभावित होती हैं और मीठे जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। साथ ही महासागर विश्व का सबसे बड़ा कार्बन सिंक भी हैं, जो बड़ी मात्रा में CO₂ अवशोषित कर जलवायु परिवर्तन को कम करने में सहायक होते हैं।
  • आर्थिक एवं आजीविका सहायता: 3 बिलियन से अधिक लोग समुद्री खाद्य को प्रमुख प्रोटीन स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं। मत्स्य पालन और जलीय कृषि लाखों लोगों को रोज़गार प्रदान करती है, जबकि महाद्वीपीय शेल्फ में तेल और प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार पाए जाते हैं (जैसे – मैक्सिको की खाड़ी, फारस की खाड़ी, बॉम्बे हाई)।
    • महासागर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये 90% व्यापार को शिपिंग मार्गों के माध्यम से संभव बनाते हैं और कैरिबियन एवं भूमध्यसागर जैसे क्षेत्रों में अरबों डॉलर के तटीय पर्यटन को सहारा प्रदान करते हैं।
  • वैज्ञानिक एवं औषधीय महत्त्व: समुद्री जीवों ने चिकित्सा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति में योगदान दिया है, जैसे—कोरल और शैवाल से प्राप्त यौगिकों का उपयोग कैंसर-रोधी दवाओं के विकास में किया गया है।
    • गहरे समुद्र की खोज पृथ्वी की भूविज्ञान, जलवायु इतिहास और नए संसाधनों की संभावनाओं को समझने की क्षमता को बढ़ाती है।

महासागरीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिये किन कदमों की आवश्यकता है?

  • सरकारों एवं नीति निर्माताओं के लिये: 
    • समुद्री संरक्षित क्षेत्रों (MPA) का विस्तार: समुद्रों के 30% भाग को वर्ष 2030 तक संरक्षित करने के लक्ष्य (30x30 लक्ष्य) के तहत MPA का विस्तार किया जाना चाहिये, जैसा कि गैलापागोस समुद्री रिज़र्व में देखा गया है, जहाँ वन्य जीवों के पनपने के लिये औद्योगिक मछली पकड़ने पर प्रतिबंध है।
    • प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना: महासागरों में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये एकल-उपयोग प्लास्टिक को चरणबद्ध रूप से समाप्त करने, माइक्रोबीड्स और पुनः चक्रण न किये जा सकने वाले प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने हेतु वैश्विक प्लास्टिक संधि के मसौदे को अंतिम रूप देना आवश्यक है।
    • जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करना: CO₂ उत्सर्जन में कटौती हेतु पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करना और समुद्री अम्लीकरण को सीमित करने के लिये मैंग्रोव समुद्री घास जैसे नीले कार्बन पारिस्थितिक तंत्र को बढ़ावा देना आवश्यक है।
  • व्यवसायों एवं उद्योगों के लिये:
    • सतत् मत्स्य पालन: चयनात्मक मछली पकड़ने के उपकरणों (जैसे कि कछुए-सुरक्षित जाल) का उपयोग करना चाहिये, अत्यधिक दोहन की गई प्रजातियों जैसे ब्लूफिन टूना और शार्क से परहेज करना चाहिये तथा शैवाल-आधारित मछली जैसे पौधों पर आधारित समुद्री खाद्य विकल्पों को बढ़ावा देना चाहिये।
    • ग्रीन शिपिंग एवं पर्यटन: निम्न-गंधक ईंधनों और विद्युत संचालित बंदरगाह प्रणालियों को अपनाना चाहिये, साथ ही प्रवाल भित्तियों के लिये सुरक्षित सनस्क्रीन नीतियों (जैसे ऑक्सिबेन्ज़ोन पर प्रतिबंध) को लागू करना चाहिये।
    • चक्रीय अर्थव्यवस्था: खाद्य समुद्री शैवाल आवरण और मछली पकड़ने के जाल को कपड़ों में पुनर्चक्रित करने जैसे नवाचारों के साथ पैकेजिंग को पुनः डिजाइन करना ।
  • व्यक्तियों के लिए: टिकाऊ समुद्री भोजन चुनें (जैसे, मरीन स्टीवर्डशिप काउंसिल लेबल), एकल-उपयोग प्लास्टिक का त्याग करें (पुनः प्रयोज्य बोतलें, बैग, बर्तन ले जाएं), और समुद्र में कचरा जाने से रोकने के लिए समुद्र तट की सफाई में शामिल हों
  • स्वदेशी एवं स्थानीय ज्ञान: पालाऊ की बुल प्रणाली और हवाई की कापू प्रणाली जैसी पारंपरिक मछली पकड़ने की विधियों को अपनाकर तटीय समुदायों से सीखें , जो मछली भंडार की रक्षा करती हैं। 

निष्कर्ष

2025 के संयुक्त राष्ट्र महासागर सम्मेलन ने महासागरों को जलवायु परिवर्तन , प्रदूषण और अतिदोहन से बचाने के लिए वैश्विक प्रतिबद्धता को मजबूत किया । जबकि बीबीएनजे समझौते और 30x30 लक्ष्य जैसी नीतियां आशा प्रदान करती हैं, तत्काल, समावेशी और विज्ञान आधारित कार्रवाई - प्लास्टिक को समाप्त करने से लेकर स्वदेशी संरक्षकता को सशक्त बनाने तक - समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा , जैव विविधता , जलवायु स्थिरता और वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के लिए आजीविका सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है।

दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न:

प्रश्न: आज विश्व के महासागरों के सामने कौन से प्रमुख खतरे हैं? महासागरीय स्थिरता सुनिश्चित करने के उपाय सुझाएँ।

 यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न (PYQ)  

मेन्स

Q. तेल प्रदूषण क्या है? समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर इसके क्या प्रभाव हैं? भारत जैसे देश के लिए तेल प्रदूषण किस तरह से विशेष रूप से हानिकारक है? (2023)

Q. समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर 'मृत क्षेत्रों' के फैलने के क्या परिणाम होंगे? (2018).