प्रिलिम्स फैक्ट्स (30 Dec, 2025)



श्रीमंत शंकरदेव

स्रोत: TH

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय गृह मंत्री ने असम के नगाँव ज़िले में वैष्णव संत श्रीमंत शंकरदेव के जन्मस्थल बताद्रवा थान के पुनर्विकसित परिसर का उद्घाटन किया।

श्रीमंत शंकरदेव कौन थे?

  • परिचय: वे 15वीं -16वीं शताब्दी के भक्ति संत थे, जिनका असम के इतिहास, समाज, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं में उच्च स्थान है। उनके विविध योगदानों ने असमिया साहित्य और संस्कृति के एक नए युग को जन्म दिया, जिससे वे भारतीय भक्ति आंदोलन में एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति बन गए।
  • प्रारंभिक जीवन और पृष्ठभूमि: अक्तूबर, 1449 में शिरोमणि भुयान (जमींदार वर्ग) के परिवार में जन्मे, उन्होंने वर्ष 1481 में उत्तरी भारत की एक परिवर्तनकारी तीर्थयात्रा की और बदरिकाश्रम (बद्रीनाथ) में अपने पहले बोरगीत (भक्ति गीत) की रचना की।
    • उन्हें राजाओं और रूढ़िवादी वर्गों के कड़े विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण उन्हें बार-बार अपना स्थान बदलना पड़ा और अंततः वर्ष 1568 में उनका निधन हो गया।
  • दार्शनिक और धार्मिक योगदान: 15वीं शताब्दी में असम में नव-वैष्णव भक्ति आंदोलन के संस्थापक और प्रचारक।
    • उन्होंने एक-शरण-नाम-धर्म (जिसे महापुरुषीय धर्म भी कहा जाता है) की स्थापना की, जिसका केंद्रीय सिद्धांत एकमात्र ईश्वर विष्णु (कृष्ण स्वरूप) की उपासना करना और एक परम सत्ता में पूर्ण शरण लेना था।
    • भक्ति के नौ रूपों में से केवल दो पर ही ज़ोर दिया गया अर्थात् श्रवण (भगवान का नाम सुनना) और कीर्तन (भगवान का नाम जपना)
    • उन्होंने सार्वभौमिक भाईचारे का उपदेश दिया तथा असम के विविध समाज (कई जनजातियों, भाषाओं, समुदायों) को नव-वैष्णव विचारधारा के अंतर्गत एकजुट करने का प्रयास किया।
  • संस्थागत योगदान: उन्होंने नामघर (सामुदायिक प्रार्थना कक्ष) और सत्र (वैष्णव मठ) की स्थापना की, जो सामूहिक पूजा, सामाजिक समानता, नैतिक अनुशासन और कलाओं के केंद्र बन गए।
    • नामघरों ने विशेष रूप से सभी जातियों और समुदायों की भागीदारी की अनुमति दी, जिससे सामाजिक समावेशिता को बढ़ावा मिला।
  • साहित्यिक योगदान: उन्होंने वैष्णव धर्म के पवित्र ग्रंथों को सुलभ बनाने के लिये भागवत पुराण की बारह पुस्तकों में से आठ का ब्रजावली (असम में प्रचलित भाषा शैली) में अनुवाद किया, जिनमें से कृष्ण के बचपन को समेटने वाला आदि दशम सबसे लोकप्रिय है। 

कृति

विवरण

कीर्तन-घोषा (Kirtana-ghosha)

उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है। सामूहिक प्रार्थना हेतु भक्ति गीतों का संकलन; असम में पूज्य चार पवित्र ग्रंथों में से एक, जिसे नामघरों में प्रतिदिन गाया जाता है।

गुणमाला (Gunamala)

भागवत पुराण के सार को छह कीर्तनों में संक्षेपित किया गया, कहा जाता है कि इसकी रचना एक ही रात में हुई।

निमि नव सिद्धि संवाद (Nimi Nava Siddhi Samvada)

एक सैद्धांतिक/दर्शनात्मक ग्रंथ।

भक्ति प्रदीप (Bhakti Pradipa)

कृष्ण के अतिरिक्त अन्य देवताओं की पूजा का खंडन करता है।

भटिमास (Bhatimas)

गुरु या ईश्वर की स्तुति के लिये उनके द्वारा विकसित एक नवीन काव्य शैली।

हरिश्चंद्र-उपाख्यान, रुक्मिणी हरण काव्य

उनकी प्रारंभिक रचनाएँ।

  • कला और संस्कृति में योगदान:
    • अंकीय नाट (Ankiya Naats): एक-अंक के नाटक (जिसमें कोई भाग विभाजन नहीं होता) जो धार्मिक दर्शन, स्थानीय मनोरंजन और शास्त्रीय संस्कृत नाट्य तकनीकों का मिश्रण होते हैं। ये ब्रजावली में रचे गए हैं।
    • भाओना (Bhaona): अंकीय नाट का पारंपरिक रंगमंचीय प्रदर्शन, जो नामघर में मंचित किया जाता है।
    • सत्रिया नृत्य (Sattriya Dance): एक शास्त्रीय नृत्य रूप जिसमें ताल, प्रस्तुति और गायन के निर्धारित नियम होते हैं तथा इसे भाओना का हिस्सा बनकर प्रस्तुत किया जाता है।
    • बोरगीत (Borgeets): राग और ताल पर आधारित भक्ति गीत, जिनके साथ वाद्ययंत्रों का प्रयोग होता है। उन्होंने अनुमानित 240 बोरगीत रचे, जो आज भी जीवंत विरासत के रूप में जीवित हैं।
  • विरासत: उन्होंने जो संस्थाएँ (सत्र, नामघर) और सांस्कृतिक रूप (सत्रिया नृत्य, भाओना, बोरगीत, कीर्तन घोष) स्थापित किये, वे आज भी असम की पहचान के महत्त्वपूर्ण और जीवंत अंग बने हुए हैं, जो साहित्य, संगीत, रंगमंच, नृत्य तथा शिल्प को प्रोत्साहित करते हैं।

पहलू 

शैववाद

वैष्णववाद

नव-वैष्णववाद (एकसरण धर्म)

प्रमुख देवता

शिव (सर्वोच्च ब्रह्म, संहारक और परिवर्तनकर्त्ता के रूप में)

विष्णु (या कृष्ण/राम जैसे अवतार, रक्षक के रूप में)

कृष्ण (एकमात्र शरण, नारायण के साथ पहचान)

भौगोलिक प्रसार

 दक्षिण भारत, कश्मीर, नेपाल और उत्तरी भारत के कुछ हिस्सों में प्रचलित

पूरे भारत में व्यापक, विशेषकर उत्तर और पूर्व

मुख्यतः असम और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में

प्रमुख साधनाएँ

योग, ध्यान, तपस्या, तंत्र और लिंगम पूजा

भक्ति, मंदिर पूजा, अवतारों की कथाएँ

संगठित नाम-कीर्तन (गाना/जप), श्रवण (सुनना) तथा मूर्ति पूजा नहीं

दार्शनिक दृष्टिकोण

प्रायः अद्वैत या तांत्रिक; ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार पर ज़ोर

योग्य अद्वैत या द्वैत; भक्ति और प्रपत्ति (समर्पण) पर ज़ोर

एक देवता में विशिष्ट शरण (एकसरण); दास्य भाव में भक्ति तथा समानतावादी

संबद्ध व्यक्ति/ग्रंथ

आदि शंकर, विभिन्न आगम ग्रंथ

रामानुज, चैतन्य, माधव तथा भागवत जैसे पुराण

श्रीमंत शंकरदेव, माधवदेव तथा कीर्तन घोष जैसे ग्रंथ

सांस्कृतिक योगदान

मंदिर वास्तुकला, शैव सिद्धांत दर्शन

भक्ति काव्य, जन्माष्टमी जैसे त्योहार

सत्र (मठ), नामघर, बोरगीत गीत, अंकिया नाट नाटक, सत्रिया नृत्य 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

1. श्रीमंत शंकरदेव कौन थे?
वे 15वीं–16वीं सदी के असम के भक्तिकालीन संत, सामाजिक सुधारक और सांस्कृतिक बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे तथा नव-वैष्णववाद के संस्थापक थे।

2. नामघर और सत्र क्या हैं?
शंकरदेव द्वारा पूजा, सामाजिक समानता और कलाओं को बढ़ावा देने के लिये स्थापित सामुदायिक प्रार्थना हॉल (नामघर) और वैष्णव मठ (सत्र)।

3. शंकरदेव की प्रमुख साहित्यिक रचनाएँ कौन-सी हैं?
ब्रजावली में मुख्य रूप से भक्ति साहित्य को बढ़ावा देने वाली रचनाओं में कीर्तन-घोष, गुणमाला, भटिमास, हरिश्चंद्र-उपाख्यान और रुक्मिणी हरण काव्य शामिल हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)

प्रश्न. प्रसिद्ध सत्रिया नृत्य के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. सत्रिया संगीत, नृत्य और नाटक का एक संयोजन है।
  2.  यह असम के वैष्णवों की सदियों पुरानी जीवित परंपरा है।
  3.  यह तुलसीदास, कबीर और मीराबाई द्वारा रचित भक्ति गीतों के शास्त्रीय रागों एवं तालों पर आधारित है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b) 


प्रश्न. मध्यकालीन भारत के धार्मिक इतिहास के संदर्भ में, सूफी संत किस तरह के आचरण का निर्वाह करते थे? (2012)

  1. ध्यान साधना एवं श्वास नियमन।
  2.  एकांत में कठोर योगिक व्यायाम। 
  3.  श्रोताओं में आध्यात्मिक हर्षोन्माद उत्पन्न करने के लिये पवित्र गीतों का गायन  

निम्नलिखित कूट के आधार पर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)


पिनाका लंबी दूरी के गाइडेड रॉकेट

स्रोत: पीआईबी

भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित पिनाका लंबी दूरी मार्गदर्शित/गाइडेड रॉकेट (LRGR 120) का पहला उड़ान परीक्षण सफलतापूर्वक किया, जिसकी मारक दूरी लगभग 120 किलोमीटर है और इससे भारतीय सेना की तोपखाना (आर्टिलरी) की सटीक-स्ट्राइक क्षमता में वृद्धि हुई है।

  • इसकी प्रमुख विशेषताओं में शामिल हैं: यह एक मार्गदर्शित रॉकेट है जिसमें जड़त्व नेविगेशन (Inertial Navigation), मध्य-मार्ग अपडेट्स (Mid-Course Updates) और अंतिम मार्गदर्शन (Terminal Guidance) द्वारा उच्च सटीकता सुनिश्चित की जाती है। साथ ही, इसे मौजूदा पिनाका लांचर से लॉन्च किया जा सकता है, जो लागत-कुशल उन्नयन (Cost-Effective Upgrade) का मार्ग प्रदान करता है।

मार्गदर्शित पिनाका मिसाइल प्रणाली

  • परिचय: पिनाका मिसाइल प्रणाली, जिसका नाम भगवान शिव के धनुष पर रखा गया है, एक उच्च-सटीकता वाली बहु-नलिका रॉकेट लॉन्चर है जिसे रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) की आयुध अनुसंधान एवं विकास संस्था (ARDE) ने स्वदेशी रूप से विकसित किया है।
  • प्रमुख विशेषताएँ: यह प्रणाली उच्च गतिशीलता और त्वरित तैनाती क्षमताओं के लिये जानी जाती है। यह शत्रु लक्ष्यों पर अत्यधिक सटीकता के साथ तीव्र और सघन अग्नि प्रहार करने में सक्षम है।
  • प्रकार:
    • पिनाका मार्क I: प्रारंभिक संस्करण, जिसकी मारक दूरी लगभग 40 किमी. है।
    • पिनाका मार्क II: उन्नत संस्करण, जिसकी मारक दूरी 70-80 किमी. है, जिसे आगे बढ़ाकर 120 किमी. तथा अंततः 300 किमी. तक विस्तारित किया जा सकता है।
  • प्रक्षेपण क्षमता: इसे उन्नत लांचरों द्वारा सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है और यह एक ही सैल्वो में 12 रॉकेट दागने की क्षमता रखता है।

Pinaka_Missile

और पढ़ें: गाइडेड पिनाका हथियार प्रणाली


मानवीय मामलों के समन्वय के लिये संयुक्त राष्ट्र कार्यालय

स्रोत: DD 

संयुक्त राज्य अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र की मानवीय सहायता के लिये 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर देने की घोषणा की है, जबकि अमेरिकी प्रशासन कुल विदेशी सहायता में कटौती कर रहा है और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों पर सुधार के लिये दबाव भी बना रहा है।

  • यह प्रतिज्ञा अमेरिका के पूर्व वर्षों के योगदान (जो वार्षिक रूप से 17 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचते थे) की तुलना में काफी कम है, फिर भी प्रशासन के अनुसार यह अमेरिका को विश्व का सबसे बड़ा मानवीय दाता बनाए रखने के लिये पर्याप्त है।
  • यह राशि संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA) द्वारा प्रबंधित एक अम्ब्रेला फंड के माध्यम से प्रवाहित की जाएगी।
  • नई वित्तपोषण व्यवस्था का उद्देश्य अन्य विकसित देशों के साथ मानवीय बोझ को साझा करना तथा जवाबदेही और निगरानी को सुदृढ़ करना है।
  • यह नई फंडिंग रणनीति प्रारंभिक रूप से 17 संकटग्रस्त देशों पर केंद्रित होगी, जिनमें बांग्लादेश, हैती, सीरिया, यूक्रेन और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य शामिल हैं, जबकि सहायता के दुरुपयोग की आशंकाओं के कारण अफगानिस्तान तथा यमन को इसमें शामिल नहीं किया गया है।

संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA)

  • स्थापना: संयुक्त राष्ट्र मानवीय मामलों के समन्वय कार्यालय (OCHA) की स्थापना वर्ष 1991 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा की गई थी।
  • जनादेश: OCHA मानवीय कार्यकर्त्ताओं को एक साथ लाकर आपात स्थितियों में सुसंगत और समन्वित प्रतिक्रिया सुनिश्चित करता है तथा सामूहिक कार्रवाई के लिये एक सामान्य ढाँचा प्रदान करता है।
  • परिवर्तन: वैश्विक मानवीय समन्वय को मज़बूत करने के लिये OCHA ने संयुक्त राष्ट्र आपदा राहत समन्वयक कार्यालय (UNDRO) का स्थान लिया।
  • समन्वय: ऑन-साइट ऑपरेशंस समन्वय केंद्रों (OSOCC) के माध्यम से, OCHA अचानक उत्पन्न या तेज़ी से बदलती आपात स्थितियों में अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया का तत्काल समन्वय सुनिश्चित करता है।
  • वित्तपोषण: OCHA दो सह-फंडिंग तंत्रों का प्रबंधन करता है: केंद्रीय आपातकालीन प्रतिक्रिया कोष (CERF) जो पूरे विश्व में आपात स्थितियों के लिये है और कंट्री-बेस्ड पूल्ड फंड (CBPF) जो विशिष्ट देशों के लिये तैयार किये गए हैं।

और पढ़ें: संयुक्त राष्ट्र


भारत से निर्यातित उत्पादों पर टैरिफ (शुल्क) खत्म करेगा ऑस्ट्रेलिया

स्रोत: द हिंदू

भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौते (Ind-Aus ECTA) के तहत, ऑस्ट्रेलिया 1 जनवरी, 2026 से भारतीय निर्यात के 100% पर बिना शुल्क प्रवेश की सुविधा प्रदान करेगा, जो द्विपक्षीय व्यापार संबंधों में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि है।

  • ECTA, जो दिसंबर, 2022 से लागू है, एक प्रारंभिक लाभ समझौता था, जबकि भारत–ऑस्ट्रेलिया व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CECA) के लिये वार्ता वर्तमान में जारी है।
  • प्रभाव: तीन वर्षों में, ECTA ने निर्यात में सतत वृद्धि, व्यापक बाज़ार पहुँच और मज़बूत आपूर्ति शृंखला अनुकूलन सुनिश्चित किया है, जिससे निर्यातक, MSME, किसान एवं श्रमिक लाभान्वित हुए हैं।
  • वृद्धि: भारत का ऑस्ट्रेलिया को निर्यात वर्ष 2024–25 में 8% बढ़ा, जिससे व्यापार संतुलन में सुधार हुआ। निर्यात में निर्माण, रसायन, वस्त्र, प्लास्टिक, दवा, पेट्रोलियम उत्पाद और रत्न एवं आभूषण क्षेत्रों में मज़बूत बढ़त देखी गई।
  • कृषि को बढ़ावा: कृषि निर्यात में व्यापक विस्तार देखा गया, विशेष रूप से फल और सब्जियाँ, समुद्री उत्पाद, मसाले तथा कॉफी निर्यात में असाधारण वृद्धि हुई।
  • श्रम-प्रधान क्षेत्रों का समर्थन: पूर्ण टैरिफ हटाने से MSME, किसान और श्रम-प्रधान उद्योगों के लिये नए अवसर खुलने की उम्मीद है, जिससे रोज़गार तथा आय सृजन में वृद्धि होगी।
  • महत्त्व: ECTA ने आपूर्ति शृंखला की मज़बूती, बाज़ार विविधीकरण और भारत के इंडो-पैसिफिक आर्थिक एकीकरण को सुदृढ़ किया है।

और पढ़े: भारत-ऑस्ट्रेलिया आर्थिक सहयोग एवं व्यापार समझौता


राष्ट्र प्रेरणा स्थल

स्रोत: द हिंदू

प्रधानमंत्री ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 101वीं जयंती के अवसर पर लखनऊ में राष्ट्र प्रेरणा स्थल का उद्घाटन किया और इसे एकता, आत्मसम्मान तथा सेवा के आदर्शों को समर्पित किया।

  • बहु-नेतृत्व को समर्पित श्रद्धांजलि: यह स्थल अटल बिहारी वाजपेयी, पंडित दीनदयाल उपाध्याय और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को समर्पित है, जहाँ 65 फीट ऊँची कांस्य प्रतिमाएँ तथा कमल-आकार का संग्रहालय स्थापित किया गया है।
  • अटल बिहारी वाजपेयी: उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री के रूप में तीन बार सेवा दी—1996, 1998–1999 और 1999–2004। उन्हें पद्म विभूषण (1994) और भारत रत्न (2015) से सम्मानित किया गया। उनकी जन्म जयंती (25 दिसंबर) को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • पंडित दीनदयाल उपाध्याय: वे एक भारतीय राजनीतिज्ञ और RSS तथा भारतीय जनसंघ के विचारक थे, जिन्होंने अंत्योदय सर्वाधिक वंचित वर्गों के उत्थान पर ध्यान केंद्रित किया। उनका समग्र मानवतावाद का दर्शन सामाजिक न्याय और आत्मनिर्भरता पर ज़ोर देता था। उनकी जन्म जयंती (25 सितंबर) को अंत्योदय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी: वे एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे, कोलकाता विश्वविद्यालय के सबसे युवा उप-कुलपति (1934) और भारतीय जनसंघ (1951) के संस्थापक थे, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी में विकसित हुआ। उन्होंने अनुच्छेद 370 का खुले तौर पर विरोध किया, यह तर्क देते हुए कि एक राष्ट्र के दो संविधान, दो प्रमुख या दो ध्वज नहीं हो सकते। उन्हें अपनी तीव्र संसदीय बहसों के लिये जाना जाता था और इस कारण उन्हें ‘द लायन ऑफ पार्लियामेंट’ की उपाधि मिली।

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