प्रिलिम्स फैक्ट्स (24 Dec, 2025)



संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त

स्रोत: TH

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सर्वसम्मति से इराक के पूर्व राष्ट्रपति बरहम सालिह को संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) नियुक्त किया है। उनका पाँच वर्ष का कार्यकाल 1 जनवरी, 2026 से शुरू होगा और वे इटली के फिलिप्पो ग्रांडी का स्थान लेंगे।

  • सालिह 1970 के दशक के उत्तरार्द्ध के बाद से मध्य पूर्व से संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग के पहले प्रमुख हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में प्रतिनिधित्व के क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण विकास है।
  • UNHCR:  इसकी स्थापना वर्ष 1950 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा तीन साल के प्रारंभिक जनादेश के साथ की गई थी, वर्ष 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन द्वारा इसकी भूमिका को मज़बूत किया गया था तथा बाद में निरंतर वैश्विक विस्थापन के कारण यह एक स्थायी संस्था बन गई।
  • संगठनात्मक संरचना: UNHCR का मुख्यालय जिनेवा में है और यह एक कार्यकारी समिति और एक सचिवालय के माध्यम से संचालित होता है, जिसका नेतृत्व संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा चुने गए उच्चायुक्त करते हैं, साथ ही इसके क्षेत्रीय कार्यालय विश्व भर में स्थित हैं।
    • UNHCR को पूरी तरह से सरकारों, निजी वित्त पोषकों और संगठनों के स्वैच्छिक योगदान से वित्त पोषित किया जाता है।
  • दायित्व: UNHCR को विश्वभर में  शरणार्थियों, आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों (IDP) और राज्यविहीन व्यक्तियों की रक्षा और सहायता करने का दायित्व सौंपा गया है।
    • यह स्वैच्छिक प्रत्यावर्तन, स्थानीय एकीकरण या तीसरे देशों में पुनर्वास के माध्यम से स्थायी समाधान सुरक्षित करने के लिये कार्य करता है।
    • UNHCR शरणार्थियों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से गैर-वापसी के सिद्धांत को लागू करता है तथा आश्रय, भोजन, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मानवीय सहायता प्रदान करता है तथा राज्यविहीनता को कम करने के वैश्विक प्रयासों का नेतृत्व करता है।
  • मान्यता: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग (UNHCR) ने विश्व भर में शरणार्थियों की रक्षा के लिये वर्ष 1954 और 1981 में नोबेल शांति पुरस्कार जीता।
  • नानसेन शरणार्थी पुरस्कार: UNHCR का नानसेन शरणार्थी पुरस्कार, जिसकी स्थापना 1954 में हुई थी, शरणार्थियों और राज्यविहीन व्यक्तियों के प्रति असाधारण प्रतिबद्धता दिखाने वाले व्यक्तियों और संगठनों को सम्मानित करता है। 
    • यह पुरस्कार फ्रिड्टजोफ नानसेन की स्मृति में दिया जाता है, जो राष्ट्र संघ के अंतर्गत शरणार्थियों के लिए पहले उच्चायुक्त थे। यह पुरस्कार सबसे पहले 1954 में एलेनोर रूज़वेल्ट को प्रदान किया गया था।

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वर्ष 2027 की जनगणना में विमुक्त जनजातियों की गणना शामिल

स्रोत: ET

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने आगामी जनगणना 2027 में विमुक्त जनजातियों (Denotified Tribes—DNTs) को शामिल करने की सिफारिश की है। इससे स्वतंत्र भारत में पहली बार तथा औपनिवेशिक काल 1911 की जनगणना के बाद उनकी आधिकारिक गणना (Enumeration) की जाएगी।

  • उनकी अंतिम गणना 1911 की जनगणना में आपराधिक जनजातियों की औपनिवेशिक श्रेणी के तहत की गई थी। तब से किसी भी आधिकारिक जनगणना में उनकी जनसंख्या दर्ज नहीं की गई है।
  • विमुक्त जनजातियाँ: विमुक्त जनजातियाँ वे समुदाय थे जिन्हें दमनकारी आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 के तहत ‘आपराधिक जनजातियों’ के रूप में ब्रांडेड किया गया था, जिसे वर्ष 1949 में निरस्त कर दिया गया था।
    • उन्हें आपराधिक जनजातियाँ कहा जाता था क्योंकि ऐसा माना जाता था कि वे "गैर-जमानती अपराधों को व्यवस्थित रूप से अंजाम देने के आदी" थे।
  • वर्गीकरण संबंधी मुद्दे: इनमें से कई समुदायों को अनुसूचित जनजाति (ST), अनुसूचित जाति (SC) या अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है, जिससे वे आरक्षण लाभों और लक्षित कल्याणकारी योजनाओं के दायरे से बाहर रह जाते हैं।
  • सरकारी समितियों के निष्कर्ष: रेनके आयोग (2008) ने गैर-अधिसूचित जनजातियों की जनसंख्या लगभग 10-12 करोड़ होने का अनुमान लगाया था।
    • इडेट आयोग (2014) ने 1,200 से अधिक समुदायों को गैर-अधिसूचित, खानाबदोश और अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियों के रूप में पहचाना।
      • घुमंतू जनजातियाँ गतिशील जीवन शैली अपनाती हैं, वे पशुपालन, व्यापार या सेवाओं के माध्यम से आजीविका चलाने के लिये स्थायी बस्तियों के बिना समय-समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती रहती हैं। उदाहरण के लिये, बंजारा, रबारी
      • अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियाँ मौसमी प्रवास को आंशिक बसावट के साथ जोड़ती हैं, अक्सर पशुओं को मौसमी रूप से स्थानांतरित करते हुए एक आधार बनाए रखने का अभ्यास करती हैं, जैसे कि गद्दी, मालधारी
      • घुमंतू जनजातियाँ एक गतिशील जीवन-शैली अपनाती हैं। ये लोग पशुपालन, व्यापार या सेवाओं के माध्यम से आजीविका अर्जित करते हुए स्थायी बस्तियों के बिना समय-समय पर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होते रहते हैं, जैसे बंजारा और रबारी।
      • अर्द्ध-खानाबदोश जनजातियाँ मौसमी प्रवास को आंशिक स्थायित्व के साथ अपनाती हैं। वे प्रायः पशुओं के साथ ऋतु-आधारित आवागमन करते हुए किसी एक स्थान को आधार के रूप में बनाए रखती हैं, जैसे गद्दी और मालधारी।
  • DNT से संबंधित अन्य समितियाँ: 
    • अय्यंगार समिति (1949): इस समिति की सिफारिश के आधार पर आपराधिक जनजाति अधिनियम, 1871 को निरस्त कर दिया गया था।
    • लोकुर समिति (1965): इसने गैर-अधिसूचित और खानाबदोश समुदायों को अनुकूलित विकास योजनाओं के लिये एक अलग समूह के रूप में मानने की सिफारिश की।

और पढ़ें: विमुक्त जनजातियों से संबंधित चुनौतियाँ और विकास


राष्ट्रीय गणित दिवस

स्रोत: IE

भारत के महानतम गणितज्ञों में से एक श्रीनिवास रामानुजन की जयंती के उपलक्ष्य में 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस मनाया जाता है, उन्हें प्रायः ‘अनंत के रहस्यों का ज्ञाता’ कहा जाता है।

  • भारत की गणितीय विरासत को बढ़ावा देने के लिये इस दिवस की स्थापना वर्ष 2011 में की गई थी और वर्ष 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष घोषित किया गया था।
  • श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920) का जन्म तमिलनाडु के इरोड में हुआ था और उन्होंने बहुत कम उम्र से ही गणित की असाधारण समझ प्रदर्शित की थी।
    • उन्होंने किशोरावस्था में ही मौलिक गणितीय खोजें प्रस्तुत करना आरंभ कर दिया था, जो आगे चलकर ‘रामानुजन की प्रसिद्ध नोटबुक्स’ के रूप में जानी गईं। 
    • वे रॉयल सोसाइटी (यूके) के सबसे युवा फेलोज़ में शामिल हुए तथा वर्ष 1918 में इसके लिये चुने जाने वाले दूसरे भारतीय बने। साथ ही वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज के पहले भारतीय फेलो भी थे।

श्रीनिवास रामानुजन का योगदान

  • रामानुजन संख्या (1729): रामानुजन और जी.एच. हार्डी के संवाद से प्रसिद्ध हार्डी–रामानुजन संख्या 1729 सामने आई, जो वह सबसे छोटी संख्या है जिसे दो घनों के योग के रूप में दो भिन्न तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है।
    • 1³ + 12³ = 9³ + 10³ = 1729। यह संख्या फर्माट के अंतिम प्रमेय (1637) से जुड़ी तथाकथित ‘निकटतम चूक’ में रामानुजन की गहरी रुचि को दर्शाती है, जिसके अनुसार किसी भी दो घनों का योग किसी अन्य घन के बराबर नहीं हो सकता।
  • π के लिये अनंत शृंखला: π (पाई) के लिये उल्लेखनीय अनंत शृंखला विकसित की, जो आधुनिक उच्च-परिशुद्धता π गणना एल्गोरिदम का आधार बनती है।
  • सर्कल मेथड: जी.एच. हार्डी के साथ मिलकर ‘सर्कल मेथड’ का सह-विकास किया, जो एक महत्त्वपूर्ण सफलता थी तथा आगे चलकर वारिंग की परिकल्पना (Waring’s Conjecture) जैसी समस्याओं के समाधान में उपयोगी सिद्ध हुआ।
  • मॉक थीटा फलन: मॉड्यूलर रूपों में मॉक थीटा फलनों की अवधारणा प्रस्तुत की, जिनका महत्त्व कई दशकों बाद समझा गया। आज ये आधुनिक भौतिकी में, विशेषकर ब्लैक होल के माइक्रोस्टेट्स की गणना में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं, जहाँ ये कुछ ब्लैक होल के क्वांटम अवस्थाओं की संख्या निर्धारित करने में सहायक होते हैं।
  • रामानुजन थीटा फलन: उन्होंने जैकोबी थीटा फलन का विस्तार कर रामानुजन थीटा फलन को प्रस्तुत किया, जिसका वर्तमान में स्ट्रिंग सिद्धांत और सैद्धांतिक भौतिकी में व्यापक उपयोग होता है।
  • अन्य योगदान: उन्होंने हाइपरज्यामितीय श्रेणियों, एलिप्टिक समाकलों, अपसारी (डाइवर्जेंट) श्रेणियों तथा रीमैन ज़ीटा फलन के फलनात्मक समीकरणों में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
    • संख्या सिद्धांत, गणितीय विश्लेषण, अनंत श्रेणियाँ और सतत भिन्नों (continued fractions) के क्षेत्र में उन्होंने मौलिक और युगांतकारी योगदान किये।
  • विरासत: वर्ष 2005 में स्थापित स्त्र रामानुजन पुरस्कार, श्रीनिवास रामानुजन की मृत्यु के समय की उम्र को याद करते हुए, 32 वर्ष या उससे कम आयु के गणितज्ञों को प्रदान किया जाता है।
    • अमेरिका के डॉ. अलेक्जेंडर स्मिथ ने श्रीनिवास रामानुजन से प्रेरित होकर समरूप संख्या समस्याओं पर अपने कार्य के लिये वर्ष 2025 का सस्त्र रामानुजन पुरस्कार प्राप्त किया।

और पढ़ें: श्रीनिवास रामानुजन