प्रिलिम्स फैक्ट्स (01 Aug, 2025)



हॉट स्प्रिंग और जीवन की उत्पत्ति

स्रोत: DST

लद्दाख के पूगा घाटी हॉट स्प्रिंग में वैज्ञानिकों ने ट्रैवर्टीन (कैल्शियम कार्बोनेट) के भंडार की खोज की है, जो अमीनो एसिड, फैटी एसिड और फॉर्मामाइड जैसे कार्बनिक अणुओं की ट्रैपिंग में सक्षम है।

  • यह खोज इस सिद्धांत का समर्थन करती है कि जीवन की उत्पत्ति जियोथर्मल (भूतापीय) वातावरण में हुई होगी, जो प्रारंभिक पृथ्वी या मंगल ग्रह के समान है।
  • इस अध्ययन में GC-MS-MS, रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी, एक्स-रे डिफ्रैक्शन (XRD), इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोस्कोपी (IR), स्टेबल आइसोटोप जियोकेमिस्ट्री और माइक्रोस्कोपी जैसी तकनीकों का उपयोग किया गया है।
  • यह शोध पहले के सिलिका-आधारित उत्पत्ति सिद्धांतों को चुनौती प्रदान करता है, क्योंकि यह दर्शाता है कि कैल्शियम कार्बोनेट जैव-संकेतों (Biosignatures) को संरक्षित कर सकता है तथा एक प्रारंभिक-जीव रिएक्टर की तरह कार्य कर सकता है।
  • ये निष्कर्ष मंगल जैसे भू-भागों पर बायोसिग्नेचर का पता लगाने में मार्गदर्शन करके इसरो के खगोल-जैविक मिशनों में सहायता कर सकते हैं।

हॉट स्प्रिंग और गीज़र

  • हॉट स्प्रिंग भू-तापीय संरचनाएँ हैं जहाँ विवर्तनिक रूप से सक्रिय क्षेत्रों में गर्म भूजल सतह पर आता है। उदाहरण: मणिकरण (हिमाचल प्रदेश)।
  • दक्षिण-पूर्वी लद्दाख में स्थित पुगा घाटी भूतापीय गतिविधि, सल्फर स्प्रिंग्स और ऊर्जा क्षमता के लिये जानी जाती है।
  • गीज़र ज्वालामुखीय भूतापीय संरचनाएँ हैं जो भूमिगत गुहाओं में मैग्मा द्वारा भूजल के अति-गर्म होने पर गर्म पानी और भाप का विस्फोट करती हैं। उदाहरण: येलोस्टोन राष्ट्रीय उद्यान (अमेरिका)।

विशेषता

हॉट स्प्रिंग्स 

गीज़र

प्रवाहित जल

गर्म पानी लगातार बहता रहता है, बिना किसी विस्फोटक गतिविधि के।

गर्म पानी और भाप निश्चित अंतराल पर फव्वारे के रूप में बाहर निकलते हैं।

उदाहरण

येलोस्टोन पार्क (अमेरिका), बद्रीनाथ और मणिकरण (भारत)

ओल्ड फेथफुल गीज़र (हर एक घंटे में फूटता है), कुल लगभग 100 गीज़र मौजूद हैं।

स्वास्थ्य लाभ

नहाने के लिये बहुत लाभकारी होते हैं।

और पढ़ें: लद्दाख में भूतापीय ऊर्जा


RBI द्वारा AIF में निवेश हेतु नए मानदंड

स्रोत: TH

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) योजनाओं में विनियमित संस्थाओं (REs) द्वारा निवेश को सीमित करने के लिये नए मानदंड जारी किये हैं, ताकि एवरग्रीनिंग को रोका जा सके, सांद्रता जोखिम को कम किया जा सके और वित्तीय जोखिम प्रबंधन को बेहतर बनाया जा सके।

  • निवेश सीमा: किसी भी AIF योजना में सभी RE द्वारा कुल निवेश, कुल राशि के 20% तक सीमित है। कोई भी RE, AIF योजना की कुल राशि के 10% से अधिक निवेश नहीं कर सकता।
    • यदि कोई RE किसी AIF में 5% से अधिक का निवेश करता है, जिसका अपने स्वयं के देनदार (इक्विटी को छोड़कर) के लिये डाउनस्ट्रीम एक्सपोज़र है, तो उसे उस निवेश की कुल ऋण राशि को सुरक्षा जाल के रूप में अलग रखना होगा।
  • विनियमित संस्थाएँ: वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB), शहरी और सहकारी बैंक, अखिल भारतीय वित्तीय संस्थान और गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC), जिनमें हाउसिंग फाइनेंस कंपनियाँ भी शामिल हैं।
  • सेबी के साथ संरेखण: नए नियम RBI के मानदंडों को उचित परिश्रम और निवेश प्रथाओं पर भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) के मानकों के अनुरूप लाते हैं।
  • वैकल्पिक निवेश कोष: AIF भारत में एक निजी रूप से एकत्रित निवेश साधन है जो अनुभवी भारतीय या विदेशी निवेशकों से उनके लाभ के लिये एक निर्धारित नीति के अनुसार निवेश करने हेतु धन एकत्र करता है।
    • AIF में सेबी के म्यूचुअल फंड या सामूहिक निवेश योजना नियम 1999 के अंतर्गत विनियमित फंड शामिल नहीं हैं। 
      • यह छूट पारिवारिक ट्रस्टों, कर्मचारी कल्याण/ग्रैच्युटी ट्रस्टों और कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत आने वाली होल्डिंग कंपनियों पर भी लागू होती है।

AIF की श्रेणियाँ:

श्रेणी 

विवरण

श्रेणी I

ऐसे क्लोज़-एंडेड फंड जिनकी न्यूनतम अवधि 3 वर्ष होती है और जो स्टार्टअप या शुरुआती चरण के उपक्रमों में निवेश करते हैं जिन्हें आर्थिक रूप से वांछनीय माना जाता है, जैसे: 

  • वेंचर कैपिटल फंड्स 
  • एंजेल फंड्स 
  • एसएमई फंड्स आदि

श्रेणी II

ऐसे क्लोज़-एंडेड फंड जिनकी न्यूनतम अवधि 3 वर्ष होती है, और जो न तो श्रेणी I में आते हैं और न ही श्रेणी III में। उदाहरण: 

  • रियल एस्टेट फंड्स (RE Funds) 
  • प्राइवेट इक्विटी फंड्स (PE Funds) 
  • संकटग्रस्त परिसंपत्तियों के लिए फंड्स (Funds for Distressed Assets) आदि

श्रेणी III

ओपन-एंडेड या क्लोज़-एंडेड फंड्स जो जटिल ट्रेडिंग रणनीतियों का उपयोग करते हैं अल्पकालिक लाभ कमाने के उद्देश्य से। उदाहरण: 

  • हेज फंड्स 
  • पब्लिक इक्विटी में प्राइवेट निवेश (PIPE Funds) आदि

और पढ़ें: अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट फंड


पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों? 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) द्वारा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण (प्रदूषित स्थलों के प्रबंधन) नियम, 2025 अधिसूचित किये हैं।

  • ये नियम रासायनिक रूप से दूषित स्थलों की पहचान, मूल्यांकन और सुधार की प्रक्रिया को कानूनी रूप से संहिताबद्ध करते हैं।

पर्यावरण संरक्षण (दूषित स्थलों का प्रबंधन) नियम, 2025 के प्रमुख प्रावधान क्या हैं?

  • दूषित स्थल उन स्थानों को कहा जाता है जहाँ पूर्व में खतरनाक अपशिष्टों का निस्तारण किया गया हो, जिसके कारण मृदा, भूजल और सतही जल प्रदूषित हो गये हों।
    • उदाहरणों में पुराने लैंडफिल, रिसाव स्थल और रासायनिक अपशिष्ट डंपिंग शामिल हैं।
  • पहचान एवं रिपोर्टिंग तंत्र:
    • ज़िला प्रशासन को संदिग्ध प्रदूषित स्थलों पर अर्धवार्षिक रिपोर्ट राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड या नामित प्राधिकरण को सौंपनी चाहिये।
    • राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों या नामित विशेषज्ञ संस्थाओं को संदिग्ध स्थलों का प्रारंभिक आकलन 90 दिनों के भीतर करना होगा, जिसके पश्चात अगले 90 दिनों में विस्तृत जाँच की जानी चाहिये।
      • यदि किसी स्थल पर वर्ष 2016 के खतरनाक अपशिष्ट नियमों के तहत सूचीबद्ध 189 खतरनाक रसायनों में से कोई भी सुरक्षित सीमा से अधिक मात्रा में मौजूद है, तो उसे आधिकारिक तौर पर दूषित स्थल घोषित कर दिया जाता है।
      • ऐसे स्थलों के नाम और विवरण सार्वजनिक किये जाने चाहिये; प्रवेश पर प्रतिबंध लगाए जाने चाहिये।
  • उपचारात्मक नियोजन: एक संदर्भ संगठन (विशेषज्ञ निकाय) उस स्थल के लिये विशिष्ट उपचार योजना का मसौदा तैयार करेगा।
  • उत्तरदायित्व एवं लागत वसूली: ज़िम्मेदार के रूप में पहचाने गए प्रदूषक (प्रदूषक भुगतान सिद्धांत) सफाई की लागत वहन करेंगे।
    • यदि प्रदूषण करने वाले व्यक्तियों या इकाइयों का पता नहीं चल पाता या वे भुगतान करने में असमर्थ होते हैं, तो केन्द्र और राज्यों के बीच व्यय साझा करना अनिवार्य होता है।
  • आपराधिक दायित्व: प्रदूषण के कारण यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है या पर्यावरण को हानि पहुँचती है, तो भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अंतर्गत दंडात्मक कार्रवाई की जायेगी।
  • अपवर्जन: इन नियमों में रेडियोधर्मी अपशिष्ट, खान संचालन, समुद्री तेल प्रदूषण और ठोस अपशिष्ट डंपिंग से होने वाले प्रदूषण को शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि ये सभी पहले से ही अलग-अलग विशिष्ट विधियों के अंतर्गत विनियमित हैं।

पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986:

  • वर्ष 1986 का पर्यावरण संरक्षण अधिनियम (EPA), संसद द्वारा भोपाल गैस त्रासदी की पृष्ठभूमि में पारित किया गया था, जिसने पर्यावरण और जनस्वास्थ्य की सुरक्षा के लिये एक व्यापक कानून की तात्कालिक आवश्यकता को उजागर किया।
  • यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत लागू किया गया था, जो संसद को अंतर्राष्ट्रीय समझौतों के कार्यान्वयन के लिये कानून बनाने का अधिकार देता है। यह अधिनियम वर्ष 1972 के स्टॉकहोम सम्मेलन में की गई अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को पूरा करने के उद्देश्य से लाया गया था।
  • यह अधिनियम केंद्रीय सरकार को पर्यावरणीय प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और उस पर प्रतिक्रिया करने का अधिकार देता है। यह केंद्र को मानक निर्धारित करने, उत्सर्जन को नियंत्रित करने, प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को बंद करने तथा आवश्यक सेवाओं पर नियंत्रण करने की शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 48A राज्य को पर्यावरण, वनों और वन्यजीवों की रक्षा करने का निर्देश देता है, जबकि अनुच्छेद 51A भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य बनाता है कि वह प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और सुधार में योगदान दे।

  यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न: 

प्रिलिम्स

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:

पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 भारत सरकार को सशक्त करता है कि

  1. वह पर्यावरणीय संरक्षण की प्रक्रिया में लोक सहभागिता की आवश्यकता का और इसे हासिल करने की प्रक्रिया और रीति का विवरण दे।
  2.  वह विभिन्न स्रोतों से पर्यावरणीय प्रदूषकों के उत्सर्जन या विसर्जन के मानक निर्धारित करे।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट हिमगिरी

स्रोत: पीआईबी
हिमगिरी (यार्ड 3022), जो कि हिमगिरी श्रेणी (प्रोजेक्ट 17A) का तीसरा युद्धपोत है, कोलकाता स्थित गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स (GRSE) में निर्मित किया गया और इसे भारतीय नौसेना को सौंप दिया गया। यह भारत की युद्धपोत डिज़ाइन और निर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण उपलब्धि को दर्शाता है।

  • हिमगिरी पूर्ववर्ती INS हिमगिरी का एक आधुनिक संस्करण है, जो एक लिएंडर श्रेणी का फ्रिगेट था और 30 वर्षों की सेवा के बाद वर्ष 2005 में सेवामुक्त कर दिया गया था।
    • वर्तमान हिमगिरी को ब्रह्मोस एंटी-शिप और लैंड-अटैक क्रूज़ मिसाइलों, साथ ही बराक-8 एंटी-एयरक्राफ्ट मिसाइलों से लैस किया गया है, जो नौसैनिक आक्रमण तथा रक्षा क्षमताओं में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत है।
    • इससे पहले, INS नीलगिरी और INS उदयगिरी को भी प्रोजेक्ट 17A के तहत लॉन्च किया जा चुका है।
  • प्रोजेक्ट 17A (P17A) फ्रिगेट्स बहुउद्देश्यीय प्लेटफॉर्म हैं, जिन्हें वर्तमान और भविष्य की समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिये डिज़ाइन किया गया है।
    • P17A जहाज़ों में P17 (शिवालिक) श्रेणी की तुलना में उन्नत हथियार और सेंसर लगे हैं, जिनमें सुपरसोनिक सतह से सतह पर मार करने वाली मिसाइलें, मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइलें तथा रैपिड-फायर क्लोज-इन वेपन सिस्टम शामिल हैं।
    • P17A पोत एक संयुक्त डीजल या गैस (Combined Diesel or Gas) प्रणोदन प्रणाली से सुसज्जित हैं, जो प्रत्येक शाफ्ट पर कंट्रोलेबल पिच प्रोपेलर (CPP) को चलाती है, साथ ही इनमें अत्याधुनिक एकीकृत प्लेटफॉर्म प्रबंधन प्रणाली (Integrated Platform Management System - IPMS) भी लगी होती है।
    • प्रोजेक्ट 17A फ्रिगेट्स स्वदेशी पोत निर्माण, स्टेल्थ तकनीक और युद्ध क्षमताओं में उल्लेखनीय प्रगति का प्रतिनिधित्व करते हैं।