सस्टेनेबिलिटी नेक्सस के माध्यम से विकास पर पुनर्विचार
यह एडिटोरियल "द हिंदू बिज़नेस लाइन" में 23/09/2025 को प्रकाशित "ए 'नेक्सस' अप्रोच टुवर्ड्स सस्टेनेबिलिटी" लेख पर आधारित है। यह लेख वर्ष 2030 के SDG (सतत् विकास लक्ष्य) की ओर बढ़ते भारत द्वारा खाद्य सुरक्षा, जल और जैव-विविधता के बीच पेश आने वाली चुनौतियों (tradeoffs) को रेखांकित करता है। यह स्थिरता एवं समावेशी विकास के लिये कृषि, जल और पारिस्थितिकी तंत्र को जोड़ने वाले एकीकृत नेक्सस दृष्टिकोण को अपनाने पर ज़ोर देता है।
प्रिलिम्स के लिये: सतत् विकास लक्ष्य 2030, जैव-विविधता संरक्षण, नवीकरणीय ऊर्जा, PM E-ड्राइव, PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना, भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, नेशनल मिशन फॉर ग्रीन इंडिया, जल जीवन मिशन, नमामि गंगे मिशन, प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024, अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन, आपदा रोधी बुनियादी ढाँचे के लिये गठबंधन।
मेन्स के लिये: भारत द्वारा सतत् विकास और हरित विकास की दिशा में की गई प्रगति और भारत के हरित विकास एवं सततता की राह में आने वाली चुनौतियाँ।
भारत सतत् विकास लक्ष्य ,2030 की ओर अग्रसर है, जहाँ इसे पूर्ण होने में केवल 5 वर्ष शेष हैं, देश को विभिन्न SDG के बीच जटिल समन्वय प्रबंधन की एक गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ रहा है, जहाँ खाद्य सुरक्षा में प्रगति प्रायः जल संसाधनों और जैव-विविधता संरक्षण के लिये खतरा बनी हुई है। पारंपरिक विकास की रणनीतियाँ, जो वनों, कृषि और जल को अलग क्षेत्र मानती हैं, भारत के तेजी से बदलते परिदृश्य बढ़ते पर्यावरणीय दबावों के लिये अपर्याप्त सिद्ध हो रहे हैं। समाधान एक समेकित "नेक्सस दृष्टिकोण" को अपनाने में निहित है, जो जैव-विविधता, कृषि और जल के बीच जटिल संबंधों को स्वीकार करते हुए समानता, स्थिरता और सामुदायिक भागीदारी को प्राथमिकता देता है।
भारत ने स्थिरता और हरित विकास की दिशा में क्या प्रगति की है?
- नवीकरणीय ऊर्जा संक्रमण: भारत वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा क्रांति की अग्रिम पंक्ति में है। राष्ट्र ने अपनी नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता को तेजी से बढ़ाकर अपने जलवायु कार्रवाई लक्ष्यों का पुरजोर तरीके से पूरा करने का प्रयास किया है, जिससे यह स्वच्छ ऊर्जा तैनाती में एक वैश्विक नेता बन गया है।
- यह बड़े पैमाने पर सोलर एवं विंड प्रोजेक्ट्स द्वारा संचालित है, जिसने ग्रीन पॉवर को तीव्रता के साथ सस्ता और सुलभ बना दिया है।
- अक्तूबर 2024 तक भारत की कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 46.3%, अर्थात् 452.69 गीगावॉट में से 203.18 गीगावॉट, नवीकरणीय स्रोतों से प्राप्त हुआ।
- इसमें सौर ऊर्जा में एक ऐतिहासिक उछाल शामिल है, जिसकी स्थापित क्षमता नवंबर 2024 तक लगभग 94.16 गीगावॉट तक पहुँच गई है, जो वर्ष 2014 के बाद से 30 गुना से अधिक की वृद्धि को दर्शाता है।
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी को बढ़ावा: भारत वायु प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन आयात पर निर्भरता कम करने के लिये इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) की ओर तेजी से बढ़ रहा है।
- सरकार की EV अपनाने के लिये PM E-ड्राइव प्रोत्साहन योजना और चार्जिंग बुनियादी ढाँचे के विस्तार ने उद्योग के लिये एक अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र बनाया है।
- इस नीतिगत प्रयास से EV में तेजी से वृद्धि देखी गई है, जो छह वर्ष पहले मात्र 0.1% से बढ़कर वर्तमान में लगभग 5% हो गई है, जिसमें दोपहिया और तिपहिया वाहन अग्रणी हैं।
- एक ऐतिहासिक उपलब्धि में, PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना ने 7 लाख सोलर रूफटॉप सिस्टम लगाने में सहायता की, जिससे सतत् ऊर्जा को और मुख्यधारा में लाने में मदद मिली।
- सतत् कृषि और भूमि पुनर्स्थापना: भारत ने अपनी जैव-विविधता की रक्षा करने और कार्बन सिंक बढ़ाने के लिये सतत् कृषि और भूमि संरक्षण में उल्लेखनीय प्रगति की है।
- भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने वर्ष 2024 में 109 जलवायु-सहनशील बीज की किस्में लॉन्च कीं।
- सरकारी पहलें, जैसे कि नेशनल मिशन फॉर ग्रीन इंडिया, क्षरणशील वनों को बहाल करने और वन-कृषि को बढ़ावा देने पर केंद्रित हैं।
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट 2023 ने एक सकारात्मक रुझान को उज़ागर किया, जिसमें देश का कुल वन एवं वृक्ष आवरण उसके भू-क्षेत्र के 25.17% हिस्से में फैला हुआ है, जो पिछले वर्षों की तुलना में एक उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
- इस वृद्धि के कारण वर्ष 2005 के बाद से अनुमानित 2.29 अरब टन कार्बन सिंक की वृद्धि हुई है, जो भारत को वर्ष 2030 तक अतिरिक्त 2.5 से 3 अरब टन कार्बन सिंक बनाने के अपने लक्ष्य को पूरा करने की राह पर आगे बढ़ा रही है।
- व्यापक जल प्रबंधन: सतत् विकास के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में जलीय सुरक्षा को पहचानते हुए, भारत ने जल संरक्षण और उसके समान वितरण सुनिश्चित करने के लिये बड़े पैमाने पर पहलें लागू की हैं।
- जल जीवन मिशन का लक्ष्य सभी ग्रामीण परिवारों को व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है।
- इस मिशन में स्रोत स्थिरता उपायों को भी अनिवार्य किया गया है, जैसे कि वर्षा जल संचयन और ग्रे वाटर मैनेजमेंट।
- नमामि गंगे मिशन ने गंगा नदी के कायाकल्प में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जिससे इसके तटों पर स्थित प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों की अनुपालन स्थिति में सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप अपशिष्ट निर्वहन में उल्लेखनीय कमी आई है।
- जल जीवन मिशन का लक्ष्य सभी ग्रामीण परिवारों को व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना है।
- चक्रीय अर्थव्यवस्था और अपशिष्ट प्रबंधन: भारत अपशिष्ट प्रबंधन और सिंगल-यूज प्लास्टिक पर मज़बूत नीतियों को लागू करके एक चक्रीय अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है।
- प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन (संशोधन) नियम, 2024, प्लास्टिक अपशिष्ट का सामना करने और प्लास्टिक पैकेजिंग के लिये विस्तारित निर्माता उत्तरदायित्व (EPR) ढाँचे को मज़बूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- इस नीतिगत प्रयास के साथ-साथ, अपशिष्ट-से-ऊर्जा परियोजनाओं पर बढ़ते ध्यान एवं खतरनाक अपशिष्ट के पुनर्चक्रण और उपयोग में उल्लेखनीय वृद्धि ने इसे और पूरक बनाया है।
- भारत वर्तमान में गुरुग्राम में बंधवाड़ी संयंत्र विकसित कर रहा है, जो 25 मेगावाट की क्षमता के साथ भारत का सबसे बड़ा अपशिष्ट-से-ऊर्जा (WTE) संयंत्र होगा।
- हरित वित्त और नवाचार: भारत ने स्वयं को हरित वित्त के लिये एक आकर्षक गंतव्य के रूप में स्थापित किया है, साथ ही सतत् प्रौद्योगिकियों में नवाचार को सक्रिय रूप से बढ़ावा दिया है।
- सरकार ने अपने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की नीति को उदार बनाया है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिये स्वचालित मार्ग के तहत 100% FDI की अनुमति दी गई है, जिससे अरबों रुपए का निवेश आकर्षित हुआ है।
- नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में मार्च 2025 तक लगभग 12.67 अरब अमेरिकी डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) प्राप्त हुआ है।
- इस वित्तीय और नीतिगत समर्थन ने ग्रीन हाइड्रोजन जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के विकास को भी उत्प्रेरित किया है, जहाँ नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन ने वर्ष 2030 तक 5 मिलियन टन उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- वर्ष 2026 तक भारत के द्वारा कार्बन बाज़ार को कार्यान्वित करने की भी उम्मीद है, जिसके तहत 13 प्रमुख क्षेत्रों को अनिवार्य उत्सर्जन-तीव्रता लक्ष्य दिये जाएँगे।
- वैश्विक जलवायु नेतृत्व: भारत वैश्विक जलवायु वार्ताओं में एक निष्क्रिय प्रतिभागी से एक सक्रिय नेता बन गया है।
- COP26 में वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा करने और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) तथा आपदा सहनशील अवसंरचना गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों को लॉन्च करके, भारत ने वैश्विक सहयोग के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता दिखाई है।
- इस सक्रिय कूटनीति ने इसे जलवायु कार्रवाई और सतत् विकास के लिये एक विश्वसनीय आवाज़ बना दिया है।
- भारत के प्रयासों को वैश्विक मंच पर मान्यता मिली है, नीति आयोग SDG इंडिया इंडेक्स पर इसका समग्र स्कोर 2020-21 में सुधरकर 66 हो गया है और संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्य (SDG) सूचकांक पर इसकी रैंक वर्ष 2025 में पहली बार शीर्ष 100 में शामिल हुई (99वाँ स्थान)।
- COP26 में वर्ष 2070 तक शुद्ध-शून्य के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की घोषणा करने और अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) तथा आपदा सहनशील अवसंरचना गठबंधन (CDRI) जैसी पहलों को लॉन्च करके, भारत ने वैश्विक सहयोग के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता दिखाई है।
भारत के हरित विकास और स्थायित्व प्रयासों के समक्ष क्या चुनौतियाँ हैं?
- ग्रिड एकीकरण और संचरण संबंधी बाधाएँ: भारत की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता तीव्रता के साथ बढ़ रही है, मौज़ूदा विद्युत ग्रिड अवसंरचना अस्थिर सोलर एवं विंड एनर्जी के प्रवाह को संभालने के लिये तैयार नहीं है।
- इससे महत्त्वपूर्ण ग्रिड अस्थिरता और 'नियंत्रण' (कर्टेलमेंट) की स्थिति उत्पन्न होती है, जहाँ उत्पन्न नवीकरणीय ऊर्जा अपव्यय हो जाती है क्योंकि ग्रिड इसे अवशोषित नहीं कर सकता।
- इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (IEEFA) के अनुसार, संचरण में विलंब और विद्युत संबंधी खरीद समझौतों (PPA) की कमी के कारण वर्ष 2025 के मध्य तक 50 गीगावॉट से अधिक नवीकरणीय क्षमता अटकी हुई थी, जिससे राजस्थान जैसे राज्यों में प्रगति रुक गई है।
- कोयले पर उच्च निर्भरता: भारत की ऊर्जा सुरक्षा अभी भी काफी हद तक कोयले पर निर्भर है, जो विद्युत उत्पादन का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है।
- औद्योगिकीकरण और शहरी विकास के लिये देश की तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग कोयले से पूर्ण और त्वरित संक्रमण को कठिन बनाती है।
- हाल ही में, भारत के केंद्रीय कोयला और खान मंत्री ने सितंबर 2025 में कहा कि देश की विद्युत खपत में कोयले का योगदान लगभग 70% बना रहेगा, जिसकी वर्ष 2030 तक मांग बढ़कर लगभग 1.6 बिलियन टन तक पहुँचने का अनुमान है।
- यह निर्भरता भारत की जलवायु प्रतिबद्धताओं और वायु गुणवत्ता लक्ष्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा प्रस्तुत करती है।
- इलेक्ट्रिक व्हीकल अपनाने में चुनौतियाँ: सरकारी प्रोत्साहनों के बावज़ूद, इलेक्ट्रिक व्हीकल (EV) की ओर संक्रमण में महत्त्वपूर्ण चुनौतियाँ हैं, विशेष रूप से मज़बूत चार्जिंग अवसंरचना की कमी और उच्च प्रारंभिक लागत।
- हालाँकि दोपहिया और तिपहिया वाहनों में उल्लेखनीय स्वीकृति देखी गई है, पैसेंजर EV मार्केट अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है।
- टियर-2 और टियर-3 शहरों में बैटरियों की उच्च लागत, सार्वजनिक और निज़ी चार्जिंग स्टेशनों की अपर्याप्त संख्या के साथ मिलकर, संभावित खरीदारों को हतोत्साहित करती है।
- भारत को वर्ष 2030 तक कुल 3.9 मिलियन सार्वजनिक और अर्द्ध-सार्वजनिक चार्जिंग स्टेशनों की आवश्यकता होगी, जिसमें प्रत्येक 20 वाहनों पर 1 स्टेशन का अनुपात बनाए रखना होगा।
- विखंडित और अप्रभावी अपशिष्ट प्रबंधन: भारत को स्थायी और बढ़ते हुए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन संकट का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें अपशिष्ट का एक बड़ा हिस्सा अतिप्रवाहित लैंडफिल और खुले डंपों में समाप्त हो रहा है।
- अपशिष्ट पृथक्करण और प्लास्टिक प्रतिबंधों पर सरकारी नियमों के बावज़ूद, नागरिक जागरूकता की कमी, अपर्याप्त संग्रह अवसंरचना और सीमित प्रसंस्करण क्षमता के कारण कार्यान्वयन एक बड़ी चुनौती बना हुआ है।
- आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के अनुसार, 75-80% अपशिष्ट एकत्रित कर लिया जाता है, केवल 22-28% का ही वास्तव में प्रसंस्करण या उपचार किया जाता है, शेष पर्यावरण प्रदूषण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न करता है।
- जल संकट और प्रदूषण: जल प्रबंधन एक गंभीर चुनौती है, जहाँ अत्यधिक दोहन, अकुशल उपयोग और व्यापक प्रदूषण के संयोजन ने संसाधनों पर दबाव बना दिया है।
- कृषि क्षेत्र, जो भारत के जल उपभोग का 80% से अधिक है, गैर-संधारणीय भूजल दोहन पर बहुत अधिक निर्भर करता है, जिससे पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में जल स्तर में भारी कमी आई है।
- 60 करोड़ से अधिक भारतीय उच्च से अधिक जल दाब का सामना कर रहे हैं और सुरक्षित पेयजल की अपर्याप्तता के कारण प्रतिवर्ष 2,00,000 मौतें होती हैं। (इंटरनेशनल सेंटर फॉर सस्टेनेबिलिटी)
- सतत् कृषि की संवेदनशीलता: जलवायु परिवर्तन, खंडित भूमि जोत और रासायनिक आगतों पर अत्यधिक निर्भरता के कारण सतत् कृषि पद्धतियों को अपनाना कठिन हो रहा है।
- हरित क्रांति की विरासत के कारण मृदा अपरदन और जल प्रदूषण हुआ है, जबकि छोटे भूमि आकार किसानों के लिये परिशुद्ध कृषि जैसी नवीन प्रौद्योगिकी-गहन विधियों को अपनाना कठिन बना देते हैं।
- कृषि जनगणना 2015-16 के अनुसार भारत में भूमि जोतों का औसत आकार 1.08 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2010-11 की जनगणना में 1.15 हेक्टेयर से कम है।
- चिंता की बात यह है कि वर्ष 1997 के बाद से भारत का सूखा-प्रवण क्षेत्र 57% बढ़ गया है, जबकि वर्ष 2012 के बाद से भारी वर्षा की घटनाओं में लगभग 85% की वृद्धि हुई है। (विश्व बैंक)
- हरित क्रांति की विरासत के कारण मृदा अपरदन और जल प्रदूषण हुआ है, जबकि छोटे भूमि आकार किसानों के लिये परिशुद्ध कृषि जैसी नवीन प्रौद्योगिकी-गहन विधियों को अपनाना कठिन बना देते हैं।
- हरित वित्त में बाधाएँ: बढ़ती रुचि के बावज़ूद, भारत में हरित वित्त बाज़ार उच्च लागत, मानकीकृत मापदंडों की कमी और घरेलू निवेशकों में सीमित दीर्घकालिक रुचि से संबंधित महत्त्वपूर्ण बाधाओं का सामना करता है।
- विभिन्न सतत् परियोजनाओं, विशेष रूप से नवीकरणीय ऊर्जा और हरित बुनियादी ढाँचे में, लंबी परिपक्वता अवधि और जटिल जोखिम प्रोफाइल होती हैं, जो पारंपरिक ऋणदाताओं को हतोत्साहित करती हैं।
- हरित परियोजनाओं के लिये एक स्पष्ट वर्गीकरण का अभाव और ग्रीन बॉन्ड जारी करने की उच्च लागत, भारत के महत्त्वाकांक्षी जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये आवश्यक वित्तपोषण के पैमाने को सीमित करती रहती है, जिससे इसके हरित संक्रमण के लिये एक पर्याप्त वित्तीय अंतराल उत्पन्न हो रहा है।
- उदाहरण के लिये दिसंबर 2024 तक, भारत का सतत् ऋण (जिसमें ग्रीन, सोशल, सस्टेनेबिलिटी और सस्टेनेबिलिटी-लिंक्ड बॉन्ड शामिल हैं) 55.9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया था, फिर भी ग्रीन बॉन्ड अभी भी व्यापक बॉन्ड बाज़ार का केवल एक छोटा हिस्सा मात्र है।
भारत हरित विकास और स्थिरता की दिशा में प्रभावी ढंग से कैसे आगे बढ़ सकता है?
- नवीकरणीय ऊर्जा ग्रिड को विकेंद्रीकृत करना: एकल, केंद्रीकृत राष्ट्रीय ग्रिड के बजाय, भारत को वितरित, माइक्रो-ग्रिड्स के एक नेटवर्क के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो रूफटॉप सोलर और लघु-स्तरीय पवन जैसे स्थानीय नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को एकीकृत करते हों।
- यह विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण ऊर्जा की स्वतंत्रता को बढ़ाएगा, संचरण संबंधी हानियों को कम करेगा और स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाएगा।
- माइक्रो-ग्रिड्स के लिये नियामक ढाँचे को सरल बनाकर, सरकार निचले स्तर से ऊपर की ओर (बॉटम-अप) ऊर्जा संक्रमण को सक्षम कर सकती है, जो अधिक लचीला और वृहद् स्तरीय बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की बाधाओं के प्रति कम संवेदनशील है।
- कार्बन मूल्य और उत्सर्जन व्यापार प्रणाली लागू करना: प्रदूषण की पर्यावरणीय लागतों को आंतरिक बनाने के लिये भारत को प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों के लिये कार्बन मूल्य या कैप-एंड-ट्रेड जैसी बाज़ार-आधारित व्यवस्था शुरू करनी चाहिये।
- यह कंपनियों को उत्सर्जन कम करने के लिये प्रोत्साहित करेगा क्योंकि इससे स्वच्छ तकनीकों और उत्पादन प्रक्रियाओं में निवेश करना आर्थिक रूप से लाभप्रद हो जाएगा।
- एक अनुमेय और सुसंगत कार्बन मूल्य संकेत निज़ी क्षेत्र के नवाचार और निम्न-कार्बन समाधानों में निवेश को बढ़ावा देगा, जिससे आर्थिक विकास को उत्सर्जन से अलग करने में मदद मिलेगी।
- सर्कुलर इकोनॉमी के सिद्धांतों को अनिवार्य करना: भारत के अपशिष्ट संकट (Waste Crisis) को उस समय हल किया जा सकता है जब हम रैखिक "टेक-मेक-यूज़-डिस्पोज़" मॉडल से सर्कुलर इकोनॉमी की ओर बढ़ें।
- यह व्यापक नीतियों की आवश्यकता है जो उत्पाद के डिज़ाइन को दीर्घकालिकता, मरम्मत की क्षमता और पुनर्चक्रण के लिये अनिवार्य बनाती हैं।
- सभी उद्योगों में एक्सटेंडेड प्रोड्यूसर रेस्पॉन्सिबिलिटी (EPR) ढाँचे स्थापित करके, सरकार उत्पादकों को उनके उत्पादों के पूरे जीवनचक्र (स्रोत से लेकर निपटान तक) के लिये ज़िम्मेदार ठहरा सकती है।
- सतत् सार्वजनिक परिवहन में निवेश करना: शहरी वायु प्रदूषण और यातायात जाम को कम करने के लिये भारत को एकीकृत, निम्न-कार्बन सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को प्राथमिकता प्रदान करनी चाहिये और इसमें भारी निवेश करना चाहिये।
- यह केवल मेट्रो और बसों तक सीमित नहीं है; इसमें समर्पित बस रैपिड ट्रांज़िट (BRT) कॉरिडोर, इलेक्ट्रिक रिक्शा और साइकिल के माध्यम से अंतिम मील कनेक्टिविटी तथा पैदल चलने के अनुकूल शहरी योजना का नेटवर्क शामिल है।
- सार्वजनिक परिवहन को सुविधाजनक और विश्वसनीय बनाकर, सरकार निजी वाहनों पर निर्भरता और उनसे जुड़ी उत्सर्जन को निम्न कर सकती है।
- जलवायु-स्मार्ट कृषि को प्रोत्साहन प्रदान करना: खाद्य उत्पादन सुनिश्चित करने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण हेतु भारत को जलवायु-स्मार्ट कृषि (Climate-Smart Agriculture) को अपनाना चाहिये।
- इसमें संरक्षण ज़मीन, सेंसर तकनीक के साथ सटीक खेती और विविधतापूर्ण फसल प्रणाली जैसी प्रथाओं को प्रोत्साहन प्रदान करना शामिल है।
- किसानों को सतत् प्रथाओं के लिये सब्सिडी और प्रशिक्षण प्रदान करके, सरकार मृदा की गुणवत्ता सुधार सकती है, जल उपयोग कम कर सकती है और कृषि क्षेत्र को जलवायु संकटों के प्रति अधिक समुत्थानशील बना सकती है।
- ग्रीन फाइनेंस को मेनस्ट्रीम में लाना: भारत के जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये बड़े पैमाने पर पूंजी की आवश्यकता है, जिसे ग्रीन फाइनेंस (हरित वित्त) को एक मेनस्ट्रीम के निवेश विकल्प बनाकर प्राप्त किया जा सकता है।
- सरकार को यह स्पष्ट करना चाहिये कि कौन-सा प्रोजेक्ट "हरित (ग्रीन)" माना जाएगा और हरित बॉण्ड और ऋण पर कर प्रोत्साहन देना चाहिये।
- एक हरित निवेश बैंक (Green Investment Bank) स्थापित किया जा सकता है जो कम लागत वाली पूंजी उपलब्ध कराए और परियोजनाओं के जोखिम को कम करे, जिससे निजी और विदेशी निवेश आकर्षित हों तथा सतत् संक्रमण हेतु एक मज़बूत, दीर्घकालिक वित्तीय पारिस्थितिकी तंत्र तैयार हो।
- समग्र जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) सुनिश्चित करना: भारत को जल शासन में पारिस्थितिकी-आधारित दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, जिसमें नदियों, आर्द्रभूमियों और भूजल को एकीकृत प्रणालियों के रूप में देखा जाए, न कि पृथक संसाधनों के रूप में।
- इसके लिये ज़िला स्तर पर विकेंद्रीकृत जल बजटिंग, भूजल नियमों का सख्ती से पालन तथा ड्रिप सिंचाई जैसी जल-कुशल तकनीकों को प्रोत्साहन प्रदान करना आवश्यक है।
- शहरी क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन, अपशिष्ट जल पुनर्चक्रण और सतत् आपूर्ति के लिये “ब्लू-ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर (नील-हरित अवसंरचना)” अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- जल नीतियों में जलवायु समुत्थानशीलता समाहित करके, भारत जल उपयोग में समानता, दक्षता और सततता के बीच संतुलन स्थापित कर सकता है।
- “पर्यावरण के लिये जीवनशैली” जागरूकता को तेज़ करना: नीति और तकनीक के समान व्यवहारिक बदलाव भी उतने ही महत्त्वपूर्ण हैं।
- भारत सततता की दिशा में सांस्कृतिक बदलाव को प्रोत्साहन प्रदान कर सकता है, यदि पर्यावरण शिक्षा को प्रारंभिक स्तर से ही राष्ट्रीय पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।
- इस आंदोलन को संस्थागत रूप से स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसमें एक पाठ्यक्रम हो जो संसाधन संरक्षण, अपशिष्ट कमी और निम्न-कार्बन जीवनशैली के सिद्धांतों को सिखाए, जिससे नागरिकों को उनके दैनिक जीवन में सूचित, सतत् विकल्प बनाने के लिये सशक्त किया जा सके।
निष्कर्ष:
“सततता विकास और प्रकृति के बीच कोई विकल्प नहीं है, यह प्रकृति के साथ मिलकर बढ़ने की कला है।” भारत की हरित विकास और सततता की राह विकास को पारिस्थितिकीय संरक्षण, समानता और नवाचार के साथ संतुलित करने पर निर्भर करती है। समग्र समाधान, नेक्सस योजना, हरित वित्त और जलवायु-स्मार्ट प्रथाओं को अपनाकर, देश चुनौतियों को अवसर में बदल सकता है। इस यात्रा के लिये सामूहिक प्रयास, दृढ़ संस्थाएँ और व्यवहार में परिवर्तन आवश्यक हैं।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. भारत तीव्र आर्थिक विकास प्राप्त करने के साथ-साथ पर्यावरणीय सततता सुनिश्चित करने की आकांक्षा रखता है। इस परिप्रेक्ष्य में, भारत की हरित विकास यात्रा में मौजूद चुनौतियों की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये और विकास तथा सततता के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये प्रभावी उपाय सुझाइए। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स:
प्रश्न. हरित अर्थव्यवस्था पर कार्रवाई के लिये भागीदारी (पी.ए.जी.ई.), जो अपेक्षाकृत हरित एवं और अधिक समावेशी अर्थव्यवस्था की ओर देशों के संक्रमण में सहायता देने के लिये संयुक्त राष्ट्र की क्रियाविधि है, आविर्भूत हुई: (2018)
(a) जोहान्सबर्ग में 2002 के संधारणीय विकास के पृथ्वी शिखर-सम्मेलन में
(b) रियो डी जेनीरो में 2012 के संधारणीय विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में
(c) पेरिस में 2015 में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन में
(d) नई दिल्ली में 2016 के विश्व संधारणीय विकास शिखर-सम्मेलन में
उत्तर: (b)
प्रश्न. सतत् विकास को उस विकास के रूप में वर्णित किया जाता है जो भविष्य की पीढ़ियों की अपनी ज़रूरतों को पूरा करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की ज़रूरतों को पूरा करता है। इस परिप्रेक्ष्य में सतत् विकास की अवधारणा निम्नलिखित अवधारणाओं में से किसके साथ जुड़ी हुई है? (2010)
(a) सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण
(b) समावेशी विकास
(c) वैश्वीकरण
(d) वहन क्षमता
उत्तर: (d)
मेन्स
प्रश्न. "वहनीय (ऐफोर्डेबल), विश्वसनीय, धारणीय तथा आधुनिक ऊर्जा तक पहुँच संधारणीय (सस्टेनबल) विकास लक्ष्यों (एस. डी.जी.) को प्राप्त करने के लिये अनिवार्य है।" भारत में इस संबंध में हुई प्रगति पर टिप्पणी कीजिये।(2018)