भारत ने 80वें UNGA सत्र में संयुक्त राष्ट्र सुधारों की मांग की
प्रिलिम्स के लिये: संयुक्त राष्ट्र महासभा, G20, ब्रिक्स, अफ्रीकी संघ, अंतर-सरकारी वार्ता
मेन्स के लिये: संयुक्त राष्ट्र की संरचना और कार्यप्रणाली, संयुक्त राष्ट्र के समक्ष चुनौतियाँ, संयुक्त राष्ट्र सुधारों को आगे बढ़ाने में भारत की भूमिका
चर्चा में क्यों?
भारत के विदेश मंत्री ने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) के 80वें सत्र को संबोधित किया तथा संयुक्त राष्ट्र सुधार की आवश्यकता तथा संयुक्त राष्ट्र सुधारों को आगे बढ़ाने में अधिक ज़िम्मेदारियाँ उठाने के लिये भारत की तत्परता पर प्रकाश डाला।
संयुक्त राष्ट्र में सुधारों की क्या आवश्यकता है?
- निर्णय लेने में गतिरोध: संयुक्त राष्ट्र को प्राय: संघर्षों, सीमित संसाधनों और आतंकवाद के कारण निर्णय लेने में गतिरोध का सामना करना पड़ता है।
- पाँच स्थायी सदस्यों (P5) के पास वीटो पावर होने के कारण कोई भी देश प्रस्तावों को रोक सकता है, भले ही बहुमत उनका समर्थन करता हो, जैसा कि यूक्रेन में रूस और इज़राइल से संबंधित प्रस्तावों पर अमेरिका के साथ देखा गया है।
- पुराना और अप्रत्याशित: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद वर्ष 1945 की भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करती है, न कि 21वीं सदी की।
- भारत, ब्राज़ील, जर्मनी और जापान जैसी उभरती शक्तियों के पास स्थायी सदस्यता का अभाव है, जबकि वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधित्व कम है, जिससे संयुक्त राष्ट्र की वैधता सीमित हो रही है।
- आंतरिक मतभेदों और कमज़ोर शांति स्थापना जनादेश के कारण संयुक्त राष्ट्र को बड़े पैमाने पर संघर्षों को रोकने या हल करने में कठिनाई हो रही है। बोस्निया और रवांडा में ऐतिहासिक विफलताएँ तथा सीरिया, सूडान एवं म्याँमार में निष्क्रियता प्रणालीगत कमियों को उजागर करती हैं।
- वित्तीय निर्भरता: कुछ प्रमुख दाताओं, विशेष रूप से अमेरिका पर भारी निर्भरता, संयुक्त राष्ट्र की नीतियों और कार्यों को प्रभावित करने के लिये लाभ पैदा करती है, जिससे निष्पक्षता एवं वैश्विक विश्वास पर असर पड़ता है।
- प्रशासनिक मुद्दे: संयुक्त राष्ट्र की विशाल नौकरशाही संकटों पर प्रतिक्रिया देने में धीमी है तथा भ्रष्टाचार, निधि के दुरुपयोग और कदाचार से ग्रस्त है।
- उदाहरण के लिये, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) ने खरीद धोखाधड़ी और यौन कदाचार सहित 434 नई जाँचों की सूचना दी, जिससे विश्वसनीयता कम हुई।
- संप्रभुता का क्षरण: कुछ राष्ट्र संयुक्त राष्ट्र को संप्रभुता के लिये खतरा मानते हैं और तर्क देते हैं कि जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार या आव्रजन संबंधी प्रस्ताव राष्ट्रीय हितों पर भारी पड़ सकते हैं।
- यह आलोचना संयुक्त राष्ट्र के अधिकार और वैश्विक स्वीकृति को चुनौती देती है।
- वैश्विक और क्षेत्रीय संस्थाओं की प्रतिस्पर्द्धा: G20, ब्रिक्स और अफ्रीकी संघ जैसे संगठनों का उदय, संयुक्त राष्ट्र को दरकिनार करते हुए, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये वैकल्पिक एवं अधिक सक्रिय मंच उपलब्ध कराता है तथा सुधार की आवश्यकता को और अधिक रेखांकित करता है।
संयुक्त राष्ट्र सुधारों को आगे बढ़ाने में भारत क्या भूमिका निभा सकता है?
- सुरक्षा परिषद विस्तार: G4 समूह (भारत, ब्राज़ील, जर्मनी, जापान) के सदस्य के रूप में, भारत अफ्रीका, एशिया-प्रशांत, लैटिन अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के लिये छह नई स्थायी सीटों के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सदस्यता बढ़ाने का समर्थन करता है।
- यह पुरानी P5 संरचना को संबोधित करता है और प्रतिनिधित्व को 21वीं सदी की भू-राजनीति के अनुरूप बनाता है।
- ग्लोबल साउथ का समर्थन: विकासशील देशों के अभिकर्त्ता के रूप में भारत सतत् विकास, जलवायु न्याय और समान आर्थिक विकास जैसे प्रमुख मुद्दों पर प्रकाश डालकर ग्लोबल साउथ के हितों को प्राथमिकता देते हुए सुधारों को आगे बढ़ा सकता है।
- बहुपक्षवाद को बढ़ावा देना: महाशक्ति प्रतिस्पर्द्धा के युग में भारत तर्क और समझ का प्रतिनिधित्व कर सकता है, संघर्ष की बजाय कूटनीति को बढ़ावा देते हुए।
- भारत की तटस्थ भूमिका, जो सैन्य कार्रवाई की बजाय बातचीत को प्राथमिकता देती है, शांतिपूर्ण संघर्ष समाधान में इसकी भूमिका को रेखांकित करती है। संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में अपने योगदान के कारण, भारत UN निर्णय लेने की प्रक्रिया में अपनी अधिक प्रभावशाली भागीदारी का दावा मज़बूत करता है।
- आतंकवाद-रोधी ढाँचे को मज़बूत करना: आतंकवाद का प्रत्यक्ष सामना करने के बाद भारत संयुक्त राष्ट्र के आतंकवाद-रोधी ढाँचे को मज़बूत करने के प्रयासों का नेतृत्व कर सकता है, आतंकवाद पर एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का समर्थन कर सकता है और आतंकवादी समूहों को प्रायोजित या आश्रय देने वाले राज्यों के लिये जवाबदेही सुनिश्चित कर सकता है।
- ऐतिहासिक विश्वसनीयता और योगदान का लाभ उठाना: उपनिवेशवाद की समाप्ति, मानवाधिकार, रंगभेद विरोधी प्रयास, शांति स्थापना और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग में भारत का ट्रैक रिकॉर्ड संयुक्त राष्ट्र सुधारों में इसकी नेतृत्वकारी भूमिका को वैधता प्रदान करता है।
- वैश्विक नेतृत्व और सॉफ्ट पावर का प्रदर्शन: 177 सदस्य देशों के समर्थन से अपनाई गई अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस जैसी पहल, आम सहमति बनाने और बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने की भारत की क्षमता को सुदृढ़ करती है।
संयुक्त राष्ट्र में प्रभावी और समावेशी सुधार सुनिश्चित करने के लिये क्या कदम उठाए जा सकते हैं?
- पाठ-आधारित वार्ता: व्यापक ‘संवाद’ से आगे बढ़कर अंतर-सरकारी वार्ता (IGN) प्रक्रिया के तहत पाठ-आधारित वार्ता आयोजित की जाएँ, जिसमें स्पष्ट समयसीमा और वार्ता के चरण निर्धारित हों। प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की देरी द्वारा ठहराव को रोका जाए।
- वीटो के उपयोग में सुधार या सीमा: नरसंहार, युद्ध अपराध या मानवता के विरुद्ध अपराधों से संबंधित स्थितियों में वीटो के उपयोग पर बाध्यकारी प्रतिबंध लागू करना।
- यह अधिदेश दें कि वीटो से छूट के लिये बहुमत की आवश्यकता हो या महासभा को संदर्भित किया जाना चाहिये।
- सदस्यता को योगदान और भार-साझाकरण से जोड़ना: मूल्यांकन पैमानों और विशेषाधिकारों में सुधार करना, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, मानवीय सहायता या विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान देने वाले देशों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व मिले।
- ‘भुगतान करने की क्षमता’ के सिद्धांत को कायम रखना और विश्वसनीय योगदानकर्त्ताओं को अधिक संस्थागत प्रतिनिधित्व देकर पुरस्कृत करना।
- जवाबदेही, पारदर्शिता और निर्णय लेने की दक्षता में सुधार: प्रक्रियागत गतिरोध को रोकने के लिये प्रमुख संयुक्त राष्ट्र निकायों में मतदान नियमों में सुधार।
- प्रमुख कार्यक्रमों के लिये प्रदर्शन समीक्षा, लेखा परीक्षा और निर्णय-प्रभाव आकलन प्रकाशित करना।
- नए तंत्रों के माध्यम से ‘वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ’ को संस्थागत बनाना: संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न अंगों में ग्लोबल साउथ के समन्वय के लिये स्थायी मंच या कॉकस स्थापित करना, ताकि वे ब्लॉक के रूप में वार्ता कर सकें।
- संयुक्त राष्ट्र के निर्णय लेने में G4 या अफ्रीकी संघ जैसे गठबंधन मंचों को मज़बूत करना।
- गति निर्माण हेतु गठबंधनों का लाभ उठाना: संयुक्त राष्ट्र सुधार के लिये सर्वसम्मति का दबाव बनाने हेतु संयुक्त राष्ट्र से बाहर के मंचों (G20, BRICS, NAM, IBSA) का उपयोग करना। वीटो-प्रतिरोध के प्रभाव को सीमित करने के लिये मध्यम शक्तियों और छोटे देशों का समर्थन प्राप्त करना।
- प्रभुत्व और मुफ्त लाभ लेने से सुरक्षा सुनिश्चित करना: यदि किसी नए विशेषाधिकार का दुरुपयोग या प्रभुत्व देखा जाए तो उनके लिये ‘क्लॉबैक’ या सनसेट क्लॉज़ शामिल करना।
- यह सुनिश्चित किया जाए कि सुधार प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र चार्टर में शामिल हों, ताकि उन्हें मनमाने ढंग से रद्द न किया जा सके।
- सतत् समीक्षा और अनुकूलन तंत्र: शासन संरचनाओं की आवधिक समीक्षा (उदाहरण के लिये प्रत्येक 10 वर्षों में) स्थापित करना, जिसमें आवश्यक संशोधनों को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- बदलती भू-राजनीति के आलोक में अद्यतनों का प्रस्ताव करने हेतु घूर्णनशील सदस्यता के साथ एक स्थायी ‘संयुक्त राष्ट्र सुधार आयोग’ का गठन करना।
निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र को 21वीं सदी में प्रासंगिक बनाए रखने के लिये, सुधारों में ऐतिहासिक वैश्विक शक्तियों और उभरते राष्ट्रों के बीच शक्ति संतुलन स्थापित करना आवश्यक है। प्रभावी, समावेशी सुधार न केवल वैश्विक शासन को मज़बूत करेंगे, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और विकास चुनौतियों से निपटने में संयुक्त राष्ट्र की वैधता को भी बढ़ाएंगे।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. 21वीं सदी में संयुक्त राष्ट्र के सामने आने वाली चुनौतियों का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। भारत इन चुनौतियों से निपटने में किस प्रकार योगदान दे सकता है? |
1. संयुक्त राष्ट्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, मानवाधिकारों को बढ़ावा देना तथा वैश्विक स्तर पर सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।
2. संयुक्त राष्ट्र में सुधार की आवश्यकता क्यों है?
निर्णय लेने में गतिरोध, सुरक्षा परिषद में पुराना प्रतिनिधित्व, वित्तीय निर्भरता और नौकरशाही की अक्षमताओं को दूर करने के लिये।
3. संयुक्त राष्ट्र में विभेदित वीटो तंत्र क्या है?
महासभा में बहुमत के माध्यम से नरसंहार, युद्ध अपराध या मानवता के विरुद्ध अपराधों से संबंधित प्रस्तावों के लिये वीटो अधिलेखन प्रणाली।
4. संयुक्त राष्ट्र सुधारों में भारत क्या भूमिका निभा सकता है?
सुरक्षा परिषद के विस्तार का समर्थन करना, वैश्विक दक्षिण के हितों को बढ़ावा देना, आतंकवाद-रोधी ढाँचों का नेतृत्व करना और बहुपक्षीय कूटनीति का उपयोग करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न. ‘‘संयुक्त राष्ट्र प्रत्यय समिति (यूनाईटेड नेशंस क्रेडेंशियल्स कमिटी)’’ के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2022)
- यह संयुक्त राष्ट्र (UN) सुरक्षा परिषद द्वारा स्थापित समिति है और इसके पर्यवेक्षण के अधीन काम करती है।
- पारंपरिक रूप से प्रतिवर्ष मार्च, जून और सितंबर में इसकी बैठक होती है।
- यह महासभा को अनुमोदन हेतु रिपोर्ट प्रस्तुत करने से पूर्व सभी UN सदस्यों के प्रत्ययों का आकलन करती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 3
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) केवल 1 और 2
उत्तर: (a)
प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2009)
- संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) में 24 सदस्य देश शामिल हैं।
- यह 3 वर्ष की अवधि के लिये महासभा के दो-तिहाई बहुमत द्वारा चुनी जाती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (b)
मेन्स:
प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक परिषद (ECOSOC) के प्रमुख कार्य क्या हैं? इसके साथ संलग्न विभिन्न प्रकार्यात्मक आयोगों को स्पष्ट कीजिये। (2017)
प्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने की दिशा में भारत के समक्ष आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015)
भारत में कैंसर के मामलों में वृद्धि
चर्चा में क्यों?
लैंसेट की नवीनतम ग्लोबल बर्डन ऑफ डिज़ीज़ (Global Burden of Disease) रिपोर्ट के अनुसार, जहाँ वैश्विक स्तर पर कैंसर की घटनाएँ और मृत्यु दर में कमी आ रही है, वहीं भारत में इन मामलों में वृद्धि दर्ज की गई है। वर्ष 2023 में भारत में अनुमानित 15 लाख नए कैंसर मामले और 12 लाख से अधिक मौतें दर्ज की गईं।
कैंसर की वैश्विक स्थिति संबंधी प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक मामलों में वृद्धि: वैश्विक स्तर पर कैंसर की घटनाओं की दर 1990 में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 220.6 से घटकर वर्ष 2023 में 205.1 हो गई और वर्ष 2025 तक यह आँकड़ा 192.9 तक पहुँचने का अनुमान है। हालाँकि, जनसंख्या वृद्धि और उम्र बढ़ने के कारण वर्ष 2050 तक कैंसर के कुल मामलों और मृत्यु की संख्या में तीव्र वृद्धि की संभावना है।
- कैंसर दरों में प्रवृत्ति: भारत में कैंसर की घटनाओं की दर वर्ष 1990 में प्रति 1 लाख जनसंख्या पर 84.8 से बढ़कर वर्ष 2023 में 107.2 हो गई, जबकि इसी अवधि में मृत्यु दर 71.7 से बढ़कर 86.9 प्रति 1 लाख तक पहुँच गई।
- निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों पर असमान रोग भार: अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि भारत जैसे निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों (Low- and Middle-income Countries- LMIC) में कैंसर के नए मामलों में से आधे से अधिक और दो तिहाई मृत्यु होने का अनुमान है।
- परिवर्तनीय जोखिम कारक: वैश्विक स्तर पर लगभग 42% कैंसर मृत्यु तंबाकू, शराब, अस्वस्थ आहार और संक्रमण जैसे परिवर्तनीय जोखिम कारकों से जुड़ी हैं। भारत में इन कारकों से संबंधित मृत्यु की हिस्सेदारी लगभग 70% तक हो सकती है।
- भविष्य की भविष्यवाणी: रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2050 तक विश्वभर में लगभग 3.05 करोड़ नए कैंसर मामले सामने आ सकते हैं, जबकि कैंसर से होने वाली मृत्यु में 75% की वृद्धि होकर यह संख्या 1.86 करोड़ तक पहुँच सकती है। भारत में कैंसर से मृत्यु के प्रमुख कारण स्तन, फेफड़े, ग्रासनली/अन्ननली, मुख, गर्भाशय ग्रीवा, पेट और बड़ी आंत के कैंसर हैं।
भारत में कैंसर के मामलों में वृद्धि हेतु कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?
स्मरण सूत्र (Mnemonic): CANCER
- C – Changing Demographics- Ageing (जनसांख्यिकी में परिवर्तन- बुज़ुर्ग जनसंख्या में वृद्धि): भारत में जीवन प्रत्याशा और जनसंख्या दोनों में वृद्धि के कारण बुज़ुर्गों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है, जिससे कैंसर के प्रति संवेदनशील जनसंख्या भी बढ़ रही है। परिणामस्वरूप, प्रति 1 लाख जनसंख्या पर दर स्थिर रहने के बावजूद कुल मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है।
- लंबी जीवन प्रत्याशा ने गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases) की व्यापकता को बढ़ा दिया है, जिनमें कैंसर भी प्रमुख है।
- A – Adoption of Unhealthy Lifestyles (अस्वस्थ जीवनशैली को अपनाना): भारत में तंबाकू का अधिक उपयोग, अस्वास्थ्यकर आहार, निष्क्रिय (बैठे रहने वाली) जीवनशैली और शराब का सेवन फेफड़े, मुख, गला, ग्रासनली/अन्ननली, अग्न्याशय और यकृत के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- N – National Health System Deficiencies (राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली की कमियाँ): कैंसर का अधिकतर निदान देर से (तीसरे या चौथे चरण में) होता है। ऑन्कोलॉजिस्ट (कैंसर विशेषज्ञ) और रेडियोथेरेपी मशीनों की कमी, साथ ही भारी स्वास्थ्य व्यय के कारण उपचार में देरी, खराब परिणाम और कैंसर से मृत्यु दर में वृद्धि होती है।
- C – Carcinogenic Environmental Exposure (कार्सिनोजेनिक पर्यावरणीय संपर्क): बाहरी वायु प्रदूषण (PM2.5, Class I कार्सिनोजेन), ठोस ईंधन से होने वाला आंतरिक वायु प्रदूषण और औद्योगिक व रासायनिक संपर्क फेफड़े के कैंसर के जोखिम को बढ़ाते हैं।
- E – Economic Hardship from Treatment (उपचार से आर्थिक कठिनाई): कैंसर के उपचार सर्जरी, कीमोथेरपी और रेडियोथेरेपी की उच्च लागत स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच को सीमित करती है। इसके कारण कई लोग उपचार में देरी करते हैं या उपचार नहीं करवाते, जिससे कैंसर के मामले और मृत्यु दर बढ़ती है।
- R – Rising Infection-Linked Cancers (संक्रमण-संबंधित कैंसर में वृद्धि): संक्रमण कैंसर मामलों में वृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं, जिनमें ह्यूमन पैपिलोमावायरस (Human Papillomavirus- HPV), गर्भाशय ग्रीवा का कैंसर, हेपेटाइटिस B और C वायरस (यकृत का कैंसर) और H. Pylori (पेट का कैंसर) शामिल हैं।
कैंसर नियंत्रण हेतु भारत की पहल
भारत में बढ़ते कैंसर के भार से निपटने के लिये भारत क्या उपाय अपना सकता है?
स्मरण सूत्र (Mnemonic): CURE
- C – Control Carcinogens (कार्सिनोज़नों पर नियंत्रण): सिगरेट एवं अन्य तंबाकू उत्पाद अधिनियम (2003) को सुदृढ़ करना तथा तंबाकू पर कर बढ़ाना, तंबाकू के उपयोग को कम करके, नए उपयोगकर्त्ताओं को रोककर और रोकथाम, जागरूकता तथा उपचार कार्यक्रमों के लिये निधि जुटाकर कैंसर को नियंत्रित कर सकता है।
- U – Universal Vaccination & Screening (सार्वभौमिक टीकाकरण और स्क्रीनिंग): HPV (सर्वाइकल कैंसर) और हेपेटाइटिस B (लिवर कैंसर) का टीकाकरण सुनिश्चित करना तथा एस्बेस्टस एवं कीटनाशकों जैसे व्यावसायिक कार्सिनोजेन्स को नियंत्रित करना।
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों (PHC) को शामिल करके स्क्रीनिंग कार्यक्रमों को मज़बूत करना और शुरुआती पहचान तथा रेफरल के लिये ASHA और ANM कर्मियों का प्रशिक्षण देना।
- R – Robust Treatment Infrastructure (सुदृढ़ उपचार अवसंरचना): आयुष्मान भारत को सुदृढ़ करके सभी कैंसर देखभाल को शामिल करना और सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता बढ़ाना, अधिक तृतीयक देखभाल कैंसर केंद्र और उन्नत ऑन्कोलॉजी विभाग स्थापित करना, जिससे जेब से होने वाले व्यय कम हो।
- E – Evidence & Research (साक्ष्य और अनुसंधान): सटीक कैंसर डेटा के लिये राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम (NCRP) का विस्तार करना, स्वदेशी अनुसंधान को बढ़ावा देना और स्पष्ट लक्ष्यों के साथ एक सुदृढ़ राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण योजना लागू करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न. वैश्विक गिरावट के रुझान के बावजूद भारत में कैंसर के बढ़ते भार के कारणों का विश्लेषण कीजिये। |
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
1. भारत में कैंसर का वर्तमान भार कितना है?
भारत में वर्ष 2023 में अनुमानित 15 लाख नए मामले और 12 लाख से अधिक मृत्यु दर्ज की गईं, वैश्विक गिरावट के बावजूद घटनाओं और मृत्यु दर में वृद्धि हो रही है।
2. भारत में कैंसर के भार को बढ़ाने वाले प्राथमिक परिवर्तनीय जोखिम कारक क्या हैं?
प्रमुख परिवर्तनीय जोखिम कारकों में तंबाकू का सेवन, शराब का सेवन, अस्वास्थ्यकर आहार और संक्रमण (जैसे HPV और हेपेटाइटिस) शामिल हैं, जिनके भारत में कैंसर से होने वाली मृत्यु में 70% तक योगदान करने का अनुमान है।
3. भारत में कैंसर नियंत्रण के लिये प्रमुख राष्ट्रीय पहल क्या है?
इन पहलों में कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और स्ट्रोक की रोकथाम तथा नियंत्रण के लिये राष्ट्रीय कार्यक्रम (NPCDCS), राष्ट्रीय कैंसर ग्रिड एवं राष्ट्रीय कैंसर जागरूकता दिवस शामिल हैं।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. कैंसरग्रस्त ट्यूमर के उपचार के संदर्भ में, साइबरनाइफ नामक एक उपकरण चर्चा में रहा है। इस संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है? (2010)
(a) यह एक रोबोटिक इमेज गाइडेड सिस्टम है।
(b) यह विकिरण की अत्यंत सटीक डोज़ प्रदान करता है।
(c) इसमें सब-मिलीमीटर सटीकता प्राप्त करने की क्षमता है।
(d) यह शरीर में ट्यूमर के प्रसार को मैप कर सकता है।
उत्तर: (d)
प्रश्न. 'RNA अंतर्क्षेप [RNA इंटरफे्रेंस (RNAi)]' प्रौद्योगिकी ने पिछले कुछ वर्षों में लोकप्रियता हासिल कर ली है। क्यों? (2019)
- यह जीन अनभिव्यक्तीकरण (जीन साइलेंसिंग) रोगोपचारों के विकास में प्रयुक्त होता है।
- इसे कैंसर की चिकित्सा में रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।
- इसे हॉर्मोन प्रतिस्थापन रोगोपचार विकसित करने हेतु प्रयुक्त किया जा सकता है।
- इसे ऐसी फसल पादपों को उगाने के लिये प्रयुक्त किया जा सकता है, जो विषाणु रोगजनकों के लिये प्रतिरोधी हो।
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:
(a) 1, 2 और 4
(b) 2 और 3
(c) 1 और 3
(d) केवल 1 और 4
उत्तर: (a)
मेन्स:
प्रश्न. नैनोटेक्नोलॉजी से आप क्या समझते हैं और यह स्वास्थ्य क्षेत्र में कैसे मदद कर रही है? (2020)
प्रश्न. ल्यूकीमिया, थैलासीमिया, क्षतिग्रस्त कॉर्निया व गंभीर दाह सहित सुविस्तृत चिकित्सीय दशाओं में उपचार करने के लिये भारत में स्टैम कोशिका चिकित्सा लोकप्रिय होती जा रही है। संक्षेप में वर्णन कीजिये कि स्टैम कोशिका उपचार क्या होता है और अन्य उपचारों की तुलना में उसके क्या लाभ हैं ? (2017)