गंभीर आरोपों के तहत मंत्रियों को हटाना
प्रिलिम्स के लिये: मंत्रिपरिषद, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988।
मेंस के लिये: निर्वाचित प्रतिनिधियों का शासन और जवाबदेही, विधायी निगरानी में संसद और न्यायपालिका की भूमिका
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने गंभीर आपराधिक आरोपों में लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रहे केंद्रीय और राज्य मंत्रियों को हटाने के लिये लोकसभा में 130वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025 प्रस्तुत किया है।
130वाँ संविधान (संशोधन) विधेयक, 2025
- संशोधन: विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 75, 164 और 239AA में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है, जो क्रमशः केंद्रीय मंत्रिपरिषद, राज्य मंत्रिपरिषद तथा केंद्रशासित प्रदेशों के मंत्रियों से संबंधित हैं।
- मुख्य उपबंध: इस कानून के दायरे में मंत्री (मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री सहित) को भी शामिल किया जाएगा। पाँच वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराधों के लिये गिरफ्तारी के बाद लगातार 30 दिनों तक हिरासत में रखे गए व्यक्ति को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा हटाया जाएगा।
- हिरासत से रिहाई के बाद उसका निष्कासन प्रतिवर्ती हो सकता है अर्थात् वह पुनः पद धारण कर सकता है।
- उद्देश्य: संवैधानिक नैतिकता तथा सुशासन को कायम रखना, यह सुनिश्चित करना कि गंभीर आरोपों के तहत मंत्री पद पर बने न रह सकें और जनता का विश्वास बना रहे।
हिरासत में लिये गए मंत्रियों को पद से हटाने के लिये वर्तमान विधिक ढाँचा क्या है?
- गिरफ्तारी के बाद किसी मंत्री को स्वतः पद से नहीं हटाया जाता। लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (RPA) की धारा 8 के तहत, विधायकों (मंत्रियों सहित) को केवल दो साल या उससे अधिक की हिरासत वाले कुछ अपराधों हेतु दोषी ठहराए जाने पर ही अयोग्य ठहराया जाता है।
- RPA, 1951 की धारा 8(1) के तहत, यदि कोई विधायक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है और उसे केवल जुर्माने से दंडित किया जाता है, तो उसे छह वर्ष के लिये अयोग्य घोषित किया जाता है।
- यदि कारावास की सज़ा सुनाई जाती है, तो अयोग्यता संपूर्ण कारावास अवधि के साथ-साथ रिहाई के बाद छह वर्ष तक रहती है।
- मंत्रियों की योग्यताएँ विधायकों के समान ही होती हैं, यद्यपि उनके कर्तव्य भिन्न होते हैं।
- RPA, 1951 की धारा 8(1) के तहत, यदि कोई विधायक भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दोषी ठहराया जाता है और उसे केवल जुर्माने से दंडित किया जाता है, तो उसे छह वर्ष के लिये अयोग्य घोषित किया जाता है।
- निर्दोषता की धारणा दोषसिद्धि होने तक लागू होती है; केवल गिरफ्तारी के आधार पर किसी को पद से हटाया नहीं जाता।
मंत्रिस्तरीय जवाबदेही संबंधी प्रमुख न्यायिक घोषणाएँ
- पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन जनहित याचिका (2018): सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि वह संसद के प्रावधानों से परे अयोग्यता/निर्हरता हेतु कानून नहीं बना सकता या नए आधार नहीं जोड़ सकता। अयोग्यता पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने एक सख्त कानून की सिफारिश की जिसके तहत राजनीतिक दलों को जघन्य अपराधों के आरोपियों की सदस्यता रद्द करने तथा उन्हें टिकट देने से इनकार करने की आवश्यकता होगी।
- मनोज नरूला बनाम भारत संघ (2014): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले मंत्रियों की नियुक्ति पर विधि के तहत कोई रोक नहीं है, लेकिन प्रधानमंत्री को सलाह दी कि वे गंभीर या जघन्य अपराधों के आरोपी लोगों को चुनने से बचें।
- वी. सेंथिल बालाजी मामला: वर्ष 2025 में, सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु के मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को स्वतंत्रता या पद के बीच किसी एक का चयन करने का निर्देश दिया था, क्योंकि न्यायालय ने पाया था कि कथित नकद-के बदले-नौकरी घोटाले में जमानत के बाद उनकी पुनर्नियुक्ति से न्यायालय को गुमराह किया गया था।
- इसके बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया और उनकी जमानत जारी रही।
- अरविंद केजरीवाल केस (2024): सर्वोच्च न्यायालय ने अरविंद केजरीवाल को शराब नीति मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जमानत दे दी, उन्हें आधिकारिक कर्तव्यों से रोक दिया, त्याग-पत्र देने के लिये मजबूर नहीं किया गया, लेकिन बाद में उन्होंने स्वेच्छा से पद से त्याग-पत्र दे दिया।
- नए प्रावधानों की आवश्यकता क्यों है?
- राजनीति के आपराधिकरण से निपटना: कई निर्वाचित प्रतिनिधियों पर आपराधिक मामले लंबित रहते हैं। वर्तमान कानून केवल दोषसिद्धि के बाद ही उन्हें अयोग्य घोषित करते हैं, जिससे आरोपी मंत्री वर्षों तक पद पर बने रहते हैं और जनता का भरोसा कमज़ोर होता है।
- एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) 2025 की रिपोर्ट बताती है कि विश्लेषित विधायकों में से 45% ने आपराधिक मामलों की घोषणा की है, जिनमें से 29% पर हत्या, अपहरण और महिलाओं के खिलाफ अपराध जैसे गंभीर आरोप हैं।
- मंत्रियों की जवाबदेही मज़बूत करना: मंत्रियों के पास कार्यकारी शक्ति होती है और वे जाँच को प्रभावित कर सकते हैं।
- भारत में न्यायिक प्रक्रियाएँ धीमी हैं। जब तक दोषसिद्धि होती है, तब तक मंत्री दीर्घकालिक अवधि तक पद पर बने रह सकते हैं, जिससे जवाबदेही का उद्देश्य विफल हो जाता है।
- इसलिये आवश्यक है कि ऐसी व्यवस्था हो, जिससे गंभीर अपराधों में हिरासत में लिये गए मंत्री पद पर बने रहने से रोके जा सकें।
- शासन में जनता का विश्वास बढ़ाना: यह सुनिश्चित करना कि गंभीर आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों को अस्थायी रूप से हटा दिया जाए, सरकार की अखंडता की रक्षा करता है और नागरिकों को नैतिक शासन के बारे में आश्वस्त करता है।
- मंत्रिस्तरीय जवाबदेहिता को मज़बूत करने के लिये क्या उपाय आवश्यक हैं?
- कानूनी और संवैधानिक प्रावधानों को मजबूत करना: गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे मंत्रियों को हटाने अथवा निलंबित करने के लिये स्पष्ट नियम लागू करना, यहाँ तक कि जाँच या हिरासत के दौरान भी।
- विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) में विधायकों को तब अयोग्य घोषित करने का प्रस्ताव किया गया था, जब उन अपराधों के लिये आरोप सिद्ध हो जाते हैं, जिनमें पाँच वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है, पाँच वर्ष तक या रिहाई होने तक, जो भी पहले हो।
- चुनाव आयोग (2004) तथा विधि आयोग की 244वीं रिपोर्ट (2014) ने इस दृष्टिकोण का समर्थन किया।
- 244वीं विधि आयोग रिपोर्ट (2014) में प्रस्तावित किया गया था कि अयोग्यता तब होनी चाहिये जब न्यायालय द्वारा आरोप सिद्ध कर दिये जाएं, जिससे प्रथम दृष्टया न्यायिक संतुष्टि का संकेत मिलता हो कि मुकदमे के लिये पर्याप्त सामग्री उपलब्ध है।
- विधि आयोग की 170वीं रिपोर्ट (1999) में विधायकों को तब अयोग्य घोषित करने का प्रस्ताव किया गया था, जब उन अपराधों के लिये आरोप सिद्ध हो जाते हैं, जिनमें पाँच वर्ष तक कारावास की सजा हो सकती है, पाँच वर्ष तक या रिहाई होने तक, जो भी पहले हो।
- पारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया: सुनिश्चित करना कि राजनीतिक दल मंत्रियों का चयन करते समय उचित सावधानी बरतें तथा आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों से बचें।
- मंत्रिस्तरीय नियुक्तियों में सत्यनिष्ठा को प्राथमिकता देने के लिये प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों के लिये दिशानिर्देश लागू करें।
- संसदीय निगरानी: मंत्रियों के आचरण की निगरानी के लिये समितियों और आचार समितियों की भूमिका को मज़बूत करना। संसद में जाँच के लिये उनकी संपत्तियों, देनदारियों और लंबित मामलों का समय-समय पर प्रकटीकरण को अनिवार्य करना।
- नैतिक शासन एवं आचार संहिता: पारदर्शिता, सत्यनिष्ठा और जनता की सेवा पर ज़ोर देते हुए एक बाध्यकारी मंत्रिस्तरीय आचार संहिता लागू करना।
- राजनीतिक दलों को आंतरिक जवाबदेही तंत्र अपनाने और नैतिक मानकों को लागू करने के लिये प्रोत्साहित करना।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: संवैधानिक और कानूनी उपाय निर्दोषता की धारणा को संतुलित करते हुए मंत्रिस्तरीय जवाबदेहिता को किस प्रकार मज़बूत कर सकते हैं? |
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)
मेन्स
प्रश्न. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत किसी जनप्रतिनिधि को किन आधारों पर अयोग्य ठहराया जा सकता है? ऐसे व्यक्ति को अयोग्य ठहराए जाने के विरुद्ध उपलब्ध उपायों का भी उल्लेख कीजिये (2019)
प्रश्न. अक्सर कहा जाता है कि 'राजनीति' और 'नैतिकता' एक साथ नहीं चलते। इस बारे में आपकी क्या राय है? अपने उत्तर को उदाहरणों द्वारा पुष्ट कीजिये। (2013)
प्रश्न. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद या राज्य विधानमंडल के सदस्य के चुनाव से उत्पन्न विवादों के निपटारे की प्रक्रियाओं पर चर्चा कीजिये। वे कौन से आधार हैं जिन पर किसी निर्वाचित उम्मीदवार का चुनाव शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष के पास क्या उपाय उपलब्ध हैं? संबंधित न्याय दृष्टांतों का संदर्भ लीजिये। (2022)
भारत के चुनावी परिदृश्य में बदलाव
प्रिलिम्स के लिये: भारत निर्वाचन आयोग, पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, वीवीपीएटी, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1950, लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951, CAG, सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005, विधि आयोग।
मेन्स के लिये: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने में भारत के निर्वाचन आयोग की भूमिका, हालिया चुनावी सुधार और चुनावी अखंडता को मज़बूत करने के लिये आवश्यक अतिरिक्त उपाय।
चर्चा में क्यों?
भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने चुनावी प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने, पारदर्शिता बढ़ाने, मतदाता भागीदारी को सुदृढ़ करने और भारत के लोकतांत्रिक ढाँचे की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिये कई पहल की हैं।
भारत की चुनाव प्रक्रिया को मज़बूत करने के लिये कौन-से प्रमुख सुधार किये गए हैं?
- मतदाता सूची प्रबंधन: चुनाव आयोग ने 476 निष्क्रिय पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों (RUPPs) की पहचान की है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राजनीतिक दलों की सूची सटीक और अद्यतन बनी रहे।
- चार राज्यों में उपचुनावों से पहले विशेष संक्षिप्त संशोधन के माध्यम से मतदाता सूचियों को संशोधित किया गया, जो दो दशकों में इस तरह की पहली कवायद थी।
- इसके अलावा, बिहार में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई भी पात्र मतदाता छूट न जाए और कोई भी अपात्र नाम न रह जाए।
- देश भर में डुप्लिकेट EPIC (मतदाता) कार्ड समाप्त कर दिये गए, जिससे प्रत्येक मतदाता को एक विशिष्ट पहचान संख्या मिल गई और मतदाता सूचियों में त्रुटियाँ कम हो गईं।
- प्रौद्योगिकी-संचालित पारदर्शिता और निगरानी: चुनाव आयोग ने ECINET नामक एक वन-स्टॉप डिजिटल प्लेटफॉर्म लॉन्च किया है, जो निर्वाचकों, मतदाताओं, चुनाव अधिकारियों और राजनीतिक दलों द्वारा उपयोग किये जाने वाले 40 से अधिक अनुप्रयोगों और वेबसाइटों को एक साथ लाता है।
- निर्वाचन क्षेत्र स्तर पर चुनाव संबंधी डेटा को अधिक सुलभ बनाने के लिये डिजिटल इंडेक्स कार्ड और रिपोर्ट शुरू की गईं, जिससे सूचित निर्णय लेने में सहायता मिली।
- प्रमुख गतिविधियों पर नजर रखने तथा मतदान प्रक्रिया को सुचारू रूप से तथा बिना किसी उल्लंघन के संपन्न कराने के लिये मतदान केंद्रों की 100% वेबकास्टिंग लागू की गई।
- बूथ स्तर पर सुधार: क्षेत्र स्तर पर पारदर्शिता में सुधार लाने और चुनाव प्रक्रिया में जनता का विश्वास बढ़ाने के लिये बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO) को मानक फोटो पहचान पत्र जारी किये गए।
- मतदान केंद्रों पर मतदाताओं की संख्या 1,200 तक सीमित कर दी गई, जिससे भीड़ कम हुई, कतारें छोटी हुईं और ऊँची आवासीय परिसरों और सोसाइटियों में अतिरिक्त बूथ बनाने की अनुमति मिली।
- मतदाता सत्यापन और सटीकता: फॉर्म 17C (मतदान केंद्र पर दर्ज मतों का लेखा-जोखा) और EVM डेटा के बीच बेमेल के मामलों में, और जहाँ भी मॉक पोल डेटा मिटाया नहीं गया था, वहाँ VVPAT पर्ची की गिनती अनिवार्य रूप से लागू की गई, ताकि मतगणना की सटीकता और विश्वसनीयता सुनिश्चित की जा सके।
भारत की निर्वाचन प्रक्रिया के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- चुनाव व्यय में वृद्धि: चुनावों में वास्तविक व्यय और कानूनी रूप से निर्धारित सीमा के बीच का अंतर बढ़ता जा रहा है।
- उम्मीदवार और राजनीतिक दल अक्सर निर्धारित खर्च सीमा से अधिक व्यय कर देते हैं, जिससे व्यय की कम रिपोर्टिंग और छायात्मक वित्तपोषण (shadow financing) होता है।
- यह भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और काले धन के निर्माण में योगदान करता है।
- राजनीति का अपराधीकरण: कई आपराधिक पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवार चुनाव लड़ते और जीतते हैं, क्योंकि राजनीतिज्ञ-अपराधी संबंध धन एवं शक्ति पर आधारित होता है।
- वर्ष 2024 के लोकसभा चुनावों में, 543 नए निर्वाचित सांसदों में से 251 (46%) के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज हैं।
- मतदाता अधिकार हनन और मतदान प्रतिशत की समस्याएँ: सुदृढ़ चुनावी मशीनरी के बावजूद, नकली मतदान, मतदाता सूची में नाम न होना और नगरीय क्षेत्रों में कम मतदान जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं।
- आंतरिक प्रवासी, वरिष्ठ नागरिक और विशेष आवश्यकता वाले लोग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों का प्रयोग करने में बाधाओं का सामना करते हैं, जिससे समावेशिता अप्रभावी बन जाती है।
- फ्रीबीज़/मुफ्तखोरी की राजनीति और लोकलुभावन वादे: चुनावों के दौरान अस्थिर फ्रीबीज़/मुफ्त सुविधाओं की बढ़ती संस्कृति वित्तीय अनुशासन और ज़िम्मेदार शासन को अप्रभावी करती है।
- मतदाता दीर्घकालिक विकासात्मक एजेंडों की बजाय तात्कालिक लाभों से प्रभावित होते हैं।
- स्पष्ट दिशा-निर्देशों की अनुपस्थिति के कारण कल्याणकारी योजनाओं और वित्तीय लोकलुभावनवाद के बीच अंतर करना कठिन हो जाता है।
- चुनावी हिंसा और बूथ-स्तरीय संवेदनशीलताएँ: यद्यपि कम हुई है, फिर भी कभी-कभी हिंसा, मतदाताओं को डराने-धमकाने की घटनाएँ और बूथ-स्तरीय मतदान पैटर्न का खुलासा अभी भी होता है।
- संवेदनशील निर्वाचन क्षेत्रों में अपर्याप्त बूथ प्रबंधन स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को कमज़ोर करता है।
- टोटलाइज़र मशीनों की अनुपस्थिति समुदायों को चुनाव-परांत प्रतिशोध के खतरे के प्रति और अधिक असुरक्षित बनाती है।
- प्रौद्योगिकीय और साइबर खतरे: सोशल मीडिया पर डीपफेक, भ्रामक जानकारी और एल्गोरिदम-आधारित हेर-फेर का उभरना चुनावी निष्पक्षता के लिये एक नई तरह का खतरा प्रस्तुत करता है।
- मतदाता सूची में हेर-फेर: मतदाता सूची में छल-कपट के आरोप और विभिन्न राज्यों में दोहराए गए EPIC नंबर मतदाता सूची की विश्वसनीयता और जनविश्वास को कमज़ोर करते हैं।
- दल-आंतरिक लोकतंत्र की कमी: राजनीतिक दल अत्यधिक केंद्रीकृत एवं अपारदर्शी तरीके से कार्य करते रहते हैं, जहाँ वंशवादी प्रभुत्व, पारदर्शी उम्मीदवार चयन की कमी तथा जवाबदेही की दुर्बलता बनी रहती है।
- यह लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत है और वास्तविक नेतृत्व के उभरने में बाधा उत्पन्न करता है।
भारत के चुनावी प्रणाली को और अधिक सशक्त करने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- चुनावी वित्त सुधार: द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की सिफारिशानुसार वैध व्ययों की प्रतिपूर्ति सहित आंशिक राज्य वित्तपोषण लागू करना; निर्धारित सीमा से अधिक दान का अनिवार्य डिजिटल प्रकटीकरण सुनिश्चित करना; गुमनाम कॉर्पोरेट वित्तपोषण पर नियंत्रण हेतु प्रभावी विनियमन; सुदृढ़ CAG/ECI ऑडिट तंत्र की स्थापना तथा धनबल पर अंकुश और मतदाता विश्वास को प्रबल बनाने के लिये एक सार्वजनिक चुनाव व्यय पोर्टल की व्यवस्था करना।
- इसके अतिरिक्त, राजनीतिक दलों को सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अंतर्गत लाने पर भी विचार किया जाना चाहिये।
- आंतरिक पार्टी लोकतंत्र का संवर्द्धन: राजनीतिक दल लोकतंत्र की आधारशिला होते हैं, किंतु अधिकांश दल अब भी बंद, परिवार-प्रधान इकाइयों के रूप में कार्य करते हैं।
- कानून में नियमित आंतरिक चुनाव, पारदर्शी उम्मीदवार चयन प्रक्रिया और ऑडिटेड पार्टी संविधान को अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- इसके अतिरिक्त, विधि आयोग की वर्ष 1999 की रिपोर्ट ने आंतरिक पार्टी लोकतंत्र को सुनिश्चित करने हेतु एक नियामक ढाँचा प्रस्तावित किया था।
- डिजिटल अभियान और डीपफेक को विनियमित करना: सभी राजनीतिक विज्ञापनों में (प्रायोजक, वित्तपोषण स्रोत और भू-लक्ष्यीकरण) से संबंधित पहचान योग्य प्रकटीकरण लेबल को अनिवार्य किया जाए।
- वास्तविक समय में सोशल मीडिया को स्कैन करने के लिये एक राष्ट्रीय डीपफेक डिटेक्शन सेल (आईआईटी और सीईआरटी-इन के साथ) की स्थापना करनी चाहिये।
- अनुपालन न करने वाले प्लेटफॉर्म के लिये दंड के साथ सख्त निष्कासन प्रोटोकॉल लागू करना चाहिये। एल्गोरिथम संबंधी पूर्वाग्रह, डीपफेक और गलत सूचनाओं का मुकाबला करने के लिये मतदाता साक्षरता अभियान शुरू करना चाहिये।
- ECI को मज़बूत करना: चुनाव आयोग को पूर्ण वित्तीय स्वायत्तता दी जाए और उसका बजट सीधे भारत की संचित निधि से आवंटित किया जाए।
- स्थायी कर्मियों से युक्त क्षेत्रीय चुनाव आयोग प्रकोष्ठ, भारत के विशाल निर्वाचन क्षेत्रों में प्रभावी और सुदृढ़ निगरानी सुनिश्चित कर सकते हैं।
- संसदीय समितियों द्वारा चुनावी प्रक्रियाओं की नियमित निष्पादन लेखापरीक्षा से विश्वसनीयता बढ़ेगी तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों के संरक्षक के रूप में भारत निर्वाचन आयोग को मज़बूती मिलेगी।
- चुनावी प्रक्रिया की पवित्रता बनाए रखने, हितों के टकराव को समाप्त करने, केंद्र एवं राज्य सरकारों पर निर्भरता घटाने और स्वायत्तता व निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु ईसीआई को अधिकारियों का एक स्थायी एवं स्वतंत्र कैडर स्थापित करना चाहिये।
- निर्वाचन प्रक्रिया सुधार: बूथ-स्तरीय मतदान पैटर्न के खुलासे को रोकने के लिये पूरे देश में टोटलाइज़र मशीनों के उपयोग का विस्तार किया जाएगा, ताकि वोटों को बूथ स्तर पर मिश्रित किया जा सके।
- एक समान मतदाता सूची सुनिश्चित करनी चाहिये, आदर्श आचार संहिता का कड़ाई से पालन करना चाहिये तथा समान अवसर बनाए रखने और मतदाताओं का विश्वास बढ़ाने के लिये अभियान की अवधि को सीमित करना चाहिये।
- समकालिक एवं सतत् चुनावों की ओर: "एक राष्ट्र, एक चुनाव" की अवधारणा को स्थानीय और राज्य स्तर पर प्रायोगिक रूप से लागू किया जाए। दोहराव कम करने के लिये एक स्थायी राष्ट्रीय मतदाता सूची और एक समान मतदाता पहचान-पत्र लागू करने चाहिये।
- एक साथ होने वाले चुनावों से होने वाली बचत को शासन की ओर पुनर्निर्देशित करना चाहिये तथा धीरे-धीरे लागत-कुशल, समय-कुशल और शासन-अनुकूल चुनावों के लिये एक निश्चित चुनावी कैलेंडर लागू करना चाहिये।
निष्कर्ष
सुदृढ़ लोकतंत्र की आधारशिला उसकी चुनावी व्यवस्था की मज़बूती में निहित होती है। इसके लिये संस्थागत स्वतंत्रता को सशक्त बनाना, पारदर्शिता को बढ़ावा देना, मतदाता भागीदारी का विस्तार करना, दलों के भीतर लोकतांत्रिक मूल्यों को मज़बूत करना तथा आधुनिक तकनीक का समुचित उपयोग करना आवश्यक है। इन्हीं समग्र और सतत् प्रयासों के माध्यम से भारत अपनी चुनावी प्रणाली की अखंडता, विश्वसनीयता एवं निष्पक्षता सुनिश्चित कर सकता है तथा एक सशक्त और जीवंत लोकतंत्र की भावना को वास्तविक रूप में बनाए रख सकता है।
दृष्टि मुख्य परीक्षा प्रश्न: प्रश्न: “यद्यपि प्रक्रियागत सुधार आवश्यक हैं, किंतु भारतीय निर्वाचन आयोग की वास्तविक स्वायत्तता उसके कार्यपालिका से स्वतंत्र होने पर निर्भर करती है।” हालिया विवादों एवं स्वतंत्र निर्वाचन आयोग की आवश्यकता के संदर्भ में इस कथन की समालोचनात्मक समीक्षा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रिलिम्स
प्रश्न 1. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए: (2021)
- भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो प्रत्याशियों को किसी एक लोक सभा चुनाव में तीन निर्वाचन-क्षेत्रों से लड़ने से रोकता है।
- 1991 के लोक सभा चुनाव में श्री देवी लाल ने तीन लोक सभा निर्वाचन-क्षेत्रों से चुनाव लड़ा था।
- वर्तमान नियमों के अनुसार, यदि कोई प्रत्याशी किसी एक लोक सभा चुनाव में कई निर्वाचन- क्षेत्रों से चुनाव लड़ता है, तो उसकी पार्टी को उन निर्वाचन-क्षेत्रों के उप-चुनावों का खर्च उठाना चाहिए, जिन्हें उसने खाली किया है बशर्ते वह सभी निर्वाचन-क्षेत्रों से विजयी हुआ हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/कौन-से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 3
(d) 2 और 3
उत्तर: (b)
मेन्स
प्रश्न 1. विभिन्न समितियों द्वारा सुझाए गए, एवं "एक राष्ट्र-एक चुनाव" के विशिष्ट संदर्भ में, चुनाव सुधारों की आवश्यकता का परीक्षण कीजिये। (2024)
प्रश्न 2. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के अंतर्गत संसद अथवा राज्य विधायिका के सदस्यों के चुनाव से उभरे विवादों के निर्णय की प्रक्रिया का विवेचन कीजिये। किन आधारों पर किसी निर्वाचित घोषित प्रत्याशी के निर्वाचन को शून्य घोषित किया जा सकता है? इस निर्णय के विरुद्ध पीड़ित पक्ष को कौन-सा उपचार उपलब्ध है? वाद विधियों का संदर्भ दीजिये। (2022)
नशा मुक्त भारत
चर्चा में क्यों?
भारत नशीली दवाओं के बढ़ते दुरुपयोग के संकट से जूझ रहा है। इस समस्या के समाधान हेतु नशा मुक्त भारत अभियान की शुरुआत की गई थी और इसके क्रियान्वयन को अब पाँच वर्ष पूर्ण हो चुके हैं।
नशा मुक्त भारत अभियान
- परिचय: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय द्वारा 15 अगस्त 2020 को लॉन्च किया गया।
- इसका उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों और स्कूलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए मादक द्रव्यों के सेवन के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
- इसका लक्ष्य व्यसनग्रस्त आबादी की पहचान करना और परामर्श एवं उपचार सुविधाओं को मज़बूत करना है।
- शुरुआत में इसका ध्यान 272 संवेदनशील ज़िलों पर केंद्रित था, जिसे अब भारत के सभी ज़िलों तक विस्तारित कर दिया गया है।
- त्रि-आयामी रणनीति: आपूर्ति नियंत्रण, मांग में कमी एवं चिकित्सा उपचार।
- प्रमुख उपलब्धियाँ:
- जन जागरूकता (18.10 करोड़ से अधिक लोग, 4.85 लाख से अधिक संस्थान)
- युवा लामबंदी (1.67 करोड़ से अधिक छात्र, प्रतिज्ञा और कार्यक्रम)
- डिजिटल एवं तकनीकी एकीकरण (सोशल मीडिया, वेबसाइट, ऐप, जियो-टैगिंग)
- स्वयंसेवी नेटवर्क (20,000 से अधिक स्वयंसेवक)
- सामुदायिक पहुँच (अभियान, निगरानी, जागरूकता अभियान)
- सहयोग (आर्ट ऑफ़ लिविंग, ब्रह्माकुमारीज़, संत निरंकारी मिशन, राम चंद्र मिशन (दाजी), ISKCON आदि सहित आध्यात्मिक/सामाजिक संगठनों के साथ समझौता ज्ञापन)।
भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग की व्यापकता
- नशीली दवाओं की लत: भारत में लगभग 10 करोड़ लोग नशीले पदार्थों की लत से प्रभावित हैं (NCB डेटा)। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों में NDPS अधिनियम (2019-2021) के तहत सबसे अधिक FIR दर्ज़ की गईं।
- प्रमुख रूप से सेवन किये जाने वाले नशीले पदार्थ: पदार्थों के उपयोग की सीमा और पैटर्न पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण (2019) के अनुसार, 10-75 आयु वर्ग के लगभग 16 करोड़ लोग (14.6%) शराब का सेवन करते हैं, जबकि 3.1 करोड़ (2.8%) लोग भांग का सेवन करते हैं।
विश्व के 2 प्रमुख ड्रग उत्पादक क्षेत्र
- गोल्डन क्रीसेंट (अफ़गानिस्तान, ईरान, पाकिस्तान): जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात को प्रभावित करने वाला प्रमुख अफीम केंद्र।
- गोल्डन ट्राइंगल (लाओस, म्याँमार, थाईलैंड): प्रमुख हेरोइन उत्पादक क्षेत्र (म्याँमार वैश्विक आपूर्ति का लगभग 80%), जिसकी तस्करी का मार्ग भारत से होकर गुजरते हैं, जिससे यह एक संवेदनशील पारगमन और उपभोग क्षेत्र बन जाता है।
भारत में नशीली दवा नियंत्रण में प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- स्मरण-सूचक (Mnemonic): DOPE
- D – Dark Net & New Substances (डार्क नेट और नई नशीली दवाएँ): नई साइकोएक्टिव दवाओं (New Psychoactive Substances) का उदय और डार्कनेट तथा क्रिप्टोकरेंसी का उपयोग करके अवैध ऑनलाइन व्यापार।
- O – Organizational & Infrastructure Gaps (संगठनात्मक और अवसंरचनात्मक कमियाँ): प्रशिक्षित कर्मियों, फोरेंसिक लैब, पुनर्वास केंद्र और विशेष सुविधाओं की कमी।
- P – Poor Awareness & Prevention (जागरूकता और रोकथाम में कमी): शिक्षा का अपर्याप्त स्तर और ग्रामीण एवं युवाओं में संवेदनशील सामुदायिक जागरूकता।
- E – Exclusion & Stigma in Addiction Treatment (नशा उपचार में बहिष्कार और कलंक): सामाजिक कलंक और उच्च मांग के कारण पुनर्वास में कम भागीदारी, जिससे नियंत्रण प्रयास सीमित होते हैं।
भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग को समाप्त करने हेतु क्या उपाय किये जाने चाहिये?
- मेमनिक (Mnemonic): SAFE
- S – Strengthen Law Enforcement (कानून प्रवर्तन को सुदृढ़ करना): NDPS अधिनियम, 1985 तथा स्वापक औषधि और मनःप्रभावी पदार्थों में अवैध व्यापार की रोकथाम अधिनियम (PITNDPS), 1988 के प्रभावी कार्यान्वयन हेतु पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण, आधुनिक उपकरण, सशक्त खुफिया एवं निगरानी तंत्र तथा अंतर-एजेंसी समन्वय को बढ़ावा देना।
- A – Awareness & Prevention (जागरूकता एवं रोकथाम): उपचार एवं पुनर्वास सुविधाओं का विस्तार करना, नशीली दवाओं की मांग में कमी के लिये राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPDDR) का पालन करते हुए जागरूकता अभियान चलाना तथा पुनर्वास को प्रोत्साहित करना।
- F – Focus on Supply Reduction (आपूर्ति में कमी पर ध्यान केंद्रित करना): सीमा नियंत्रण को सुदृढ़ करना, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), बिग डेटा, ड्रोन, उपग्रह तथा ऑनलाइन नागरिक रिपोर्टिंग तंत्र जैसी उन्नत तकनीक का उपयोग करना; अवैध फसल उगाने वाले किसानों के लिये वैकल्पिक आजीविका को बढ़ावा देना (जैसे—झारखंड अफीम-प्रतिस्थापन योजना) तथा आपूर्ति शृंखलाओं को अवरुद्ध करना।
- E – Enhance International Cooperation (अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना): पड़ोसी देशों, UNODC तथा इंटरपोल के साथ सहयोग कर नशीली दवाओं की तस्करी का पता लगाना और उसे रोकना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)
प्रिलिम्स
प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
- भ्रष्टाचार के विरुद्ध संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCAC) का 'भूमि, समुद्र और वायुमार्ग से प्रवासियों की तस्करी के विरुद्ध एक प्रोटोकॉल' होता है।
- UNCAC अब तक का सबसे पहला विधितः बाध्यकारी सार्वभौम भ्रष्टाचार-निरोधी लिखत है।
- राष्ट्र-पार संगठित अपराध के विरुद्ध सयुंक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNTOC) की एक विशिष्टता ऐसे एक विशिष्ट अध्याय का समावेशन है, जिसका लक्ष्य उन संपत्तियों को उनके वैध स्वामियों को लौटाना है, जिनसे वे अवैध तरीके से ले ली गई थीं।
- मादक द्रव्य और अपराध विषयक संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) सयुंक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों द्वारा UNCAC और UNTOC दोनों के कार्यान्वयन में सहयोग करने के लिये अधिदेशित है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा सही है?
(a) केवल 1 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 2 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (c)
मेन्स:
प्रश्न. विश्व के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, गुपचुप धन विदेश भेजने और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों को रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (2018)
इक्वाडोर और पेरू
इक्वाडोर और पेरू की स्वदेशी समुदायों ने एक नए तेल समझौते का विरोध किया, यह कहते हुए कि इससे अमेज़न वर्षावनों में वनों की कटाई, नदी प्रदूषण, जैवविविधता की हानि और पारिस्थितिकीय क्षति का खतरा है।
अमेज़न वर्षावन
- परिचय: अमेज़न वर्षावन विश्व का सबसे बड़ा उष्णकटिबंधीय वर्षावन है, जो उत्तरी दक्षिण अमेरिका में अमेज़न नदी बेसिन के लगभग 6.7 मिलियन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है।
- लगभग 60% वर्षावन ब्राज़ील में है, जबकि शेष क्षेत्र बोलीविया, कोलंबिया, इक्वाडोर, गुयाना, पेरू, सूरीनाम, वेनेज़ुएला और फ्रेंच गुयाना के बीच विभाजित है, जिससे यह विश्व की सबसे बड़ी जल निकासी प्रणाली का निर्माण करता है।
- यह उत्तर में गुयाना हाइलैंड्स, पश्चिम में एंडीज पर्वत, दक्षिण में ब्राज़ीलियाई केंद्रीय पठार और पूर्व में अटलांटिक महासागर से घिरा हुआ है।
- पारिस्थितिकीय महत्त्व: यह विश्व के वर्षावनों की कुल मात्रा का आधे से अधिक क्षेत्र कवर करता है तथा जैवविविधता, कार्बन अवशोषण और जलवायु विनियमन के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- यद्यपि यह पृथ्वी की सतह का केवल 1% क्षेत्र घेरता है, यह वैश्विक वन्यजीव का लगभग 10% बनाए रखता है, जिसमें नदी डॉल्फिन और विश्व के 70% से अधिक जगुआर के आवास शामिल हैं।
इक्वाडोर
- इक्वाडोर (राजधानी क्वीटो) पश्चिमी दक्षिण अमेरिका में कोलंबिया और पेरू के बीच स्थित है। भूमध्य रेखा इससे होकर गुजरती है।
- एंडीज पर्वत शृंखला इक्वाडोर से होकर गुजरती है, जिसमें कोटोपैक्सी सबसे ऊँचा सक्रिय ज्वालामुखी है।
पेरू
- दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित, पेरू (राजधानी – लीमा) प्रशांत महासागर, एंडीज पर्वत और अमेज़न बेसिन को जोड़ता है।
- यह उत्तर में इक्वाडोर और कोलंबिया, पूर्व में ब्राज़ील तथा दक्षिण में बोलीविया और चिली से घिरा हुआ है।
- मुख्य जल निकासी में अमेज़न नदी और टिटिकाका झील (विश्व की सबसे ऊँचाई पर स्थित नौगम्य झील, जो बोलीविया के साथ साझा की जाती है) शामिल हैं।
- लगभग 60% पेरू क्षेत्र अमेज़न वन से आच्छादित है।
- अन्य विशेषताओं में अटाकामा मरुस्थल (दक्षिणी पेरू), नाज़्का रेखाएँ, हम्बोल्ट धारा और एल नीनो शामिल हैं।
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