भारत के खनन क्षेत्र में सुधार
प्रिलिम्स के लिये:खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम 2015, ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF), राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) 2019, PARIVESH पोर्टल, खनन प्रहरी ऐप, राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET), नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (NCMM), M-सैंड (निर्मित रेत), वन अधिकार अधिनियम, 2006, दुर्लभ मृदा तत्त्व (REE) मेन्स के लिये:भारत के खनन क्षेत्र में किये गए सुधार, भारत के खनन क्षेत्र का महत्त्व, दायरा और चुनौतियाँ। भारत के खनन क्षेत्र को सुदृढ़ करने के लिये आवश्यक कदम। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
मई 2025 में, भारत ने अपनी पहली पोटाश खदान (ब्लॉक) की नीलामी की, जो खनन क्षेत्र संबंधी सुधारों की दिशा में एक मील का पत्थर है और जिसका उद्देश्य भारत के खनन क्षेत्र में बदलाव लाना और आर्थिक विकास को गति प्रदान करना है।
भारत के खनन क्षेत्र में बदलाव लाने के लिये क्या सुधार किये गए हैं?
- कानूनी सुधार: खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन अधिनियम, 2015 ने विवेकाधीन प्रणाली को बदलने के लिये नीलामी आधारित आवंटन की शुरुआत की, कैप्टिव खदानों के लिये स्वचालित विस्तार सुनिश्चित किया और स्थानीय क्षेत्र के विकास के लिये ज़िला खनिज फाउंडेशन (DMF) का निर्माण किया गया।
- 2021 के संशोधन ने वाणिज्यिक कोयला खनन को सक्षम करने के लिये अंतिम उपयोग प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया, पट्टे की शर्तों को बढ़ाकर 50 वर्ष कर दिया और निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये अन्वेषण-सह-खनन (CEMP) के लिये एक समग्र लाइसेंस पेश किया।
- राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) 2019: राष्ट्रीय खनिज नीति (NMP) 2019 सतत् खनन, निजी क्षेत्र की भागीदारी, व्यापार करने में सुगमता, AI को अपनाने, ड्रोन, पारदर्शिता के लिये ब्लॉकचेन और मूल्य संवर्धन के लिये डाउनस्ट्रीम उद्योगों को प्रोत्साहन प्रदान करने पर केंद्रित है।
- कोयला क्षेत्र में सुधारों के तहत निजी कंपनियों को वाणिज्यिक कोयला खनन (2020) की अनुमति दी गई। स्वच्छ कोयला प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देने के लिये कोयला गैसीकरण और द्रवीकरण को प्रोत्साहित किया गया। साथ ही, पर्यावरणीय अनुमोदनों की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिये एकल-खिड़की प्रणाली (PARIVESH पोर्टल) शुरू की गई।
- तकनीकी प्रगति: उपग्रह इमेज़री अवैध खनन पर नज़र रखती है और अनुपालन सुनिश्चित करती है, जबकि खनन प्रहरी ऐप नागरिकों को ऐसी गतिविधियों की रिपोर्ट करने की सुविधा प्रदान करता है।
- राष्ट्रीय भूवैज्ञानिक डेटा भंडार (NGDR) सार्वजनिक पहुँच के लिये 12,000 से अधिक भूवैज्ञानिक रिपोर्ट निःशुल्क प्रदान करता है, जबकि ड्रोन सर्वेक्षण, माइनिंग टेनेमेंट सिस्टम (MTS) और फेसलेस फाइलिंग जैसी पहलें प्रभावशीलता और पारदर्शिता को बढ़ावा देती हैं।
- अन्वेषण सुधार: राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (NMET) अन्वेषण परियोजनाओं को वित्तपोषित करता है। इसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित किया गया है, जबकि एक्सप्लोरेशन लाइसेंस (EL) प्रणाली ने सूक्ष्म, MSME और स्टार्टअप्स के लिये नए अवसर उत्पन्न किये जाते हैं।
- नेशनल क्रिटिकल मिनरल्स मिशन (NCMM) की शुरुआत ऊर्जा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण खनिजों लिथियम, कोबाल्ट, निकल तथा दुर्लभ मृदा तत्त्वों की सुरक्षा और सुनिश्चित आपूर्ति को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से की गई है।
- अपतटीय खनिज खनन की शुरुआत की गई है, जिससे वैश्विक संसाधन आपूर्ति शृंखला में भारत की भूमिका का विस्तार हुआ है।
- सतत् खनन पहल: स्टार रेटिंग प्रणाली के माध्यम से खानों को सतत् खनन प्रथाओं के आधार पर मूल्यांकन किया जाता है। पर्यावरणीय पुनर्वास के लिये माइन क्लोजर प्लान को अनिवार्य किया गया है। इसके अतिरिक्त, नदी बालू खनन को कम करने के उद्देश्य से M-सैंड (विनिर्मित रेत) के उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है।
भारत के खनन क्षेत्र का क्या महत्त्व है?
- आर्थिक विकास चालक: भारत के खनन क्षेत्र ने वर्ष 2023–24 में सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 1.97% का योगदान दिया। इस क्षेत्र से नीलामी और रॉयल्टी के माध्यम से राज्यों को ₹4 लाख करोड़ की आय हुई, जिसका उपयोग अवसंरचना विकास और कल्याणकारी योजनाओं के लिये किया जाता है।
- ओडिशा ने 44.9% हिस्सेदारी के साथ अग्रणी स्थान प्राप्त किया, इसके बाद छत्तीसगढ़ (13.9%), झारखंड (4.1%) और महाराष्ट्र (3.9%) का स्थान रहा।
- औद्योगिक एवं अवसंरचना की आधारशिला: भारत ईंधन, धात्विक, अधात्विक, परमाणु, और अल्पखनिजों सहित कुल 95 खनिजों का उत्पादन करता है।
- धात्विक खनिज (90.3%) जैसे लौह अयस्क, बॉक्साइट और ताँबा इस्पात, एल्युमिनियम एवं इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योगों को समर्थन प्रदान करते हैं, जबकि अधात्विक खनिज (9.7%) जैसे चूना पत्थर और फॉस्फेट सीमेंट, उर्वरक एवं रासायनिक उद्योगों में सहायक होते हैं।
- रोजगार और ग्रामीण विकास: DMF ट्रस्ट खनन से प्राप्त राजस्व का उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा और खनन प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका को समर्थन देने के लिये करते हैं। वहीं, MSME और स्टार्टअप्स को दिये गए एक्सप्लोरेशन लाइसेंस खनिज-समृद्ध राज्यों में रोज़गार सृजन को बढ़ावा देते हैं।
- ऊर्जा संक्रमण: लिथियम, कोबाल्ट और दुर्लभ मृदा तत्त्वों जैसे आवश्यक खनिजों की खोज से EV बैटरियों, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और रक्षा तकनीक के लिये आयात निर्भरता में कमी आती है।
- पोटाश खनन से उर्वरक क्षेत्र में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा मिलता है, जिससे खाद्य सुरक्षा सुदृढ़ होती है।
- वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता: नीलामी सुधारों और अपतटीय खनन से निजी निवेश को प्रोत्साहन मिलता है, जिससे भारत को वैश्विक आवश्यक खनिज आपूर्ति शृंखला में एक सशक्त स्थान प्राप्त होता है।
- काबिल (KABIL) की विदेशी अधिग्रहण रणनीतियाँ (जैसे लिथियम के लिये अर्जेंटीना) भारत को रणनीतिक खनिज संसाधनों की आपूर्ति सुनिश्चित करती हैं।
भारत के खनन क्षेत्र में क्या चुनौतियाँ हैं?
- विनियामक एवं प्रशासकीय बाधाएँ: पर्यावरण, वन एवं वन्यजीव अनुमोदनों में देरी, साथ ही भूमि अधिग्रहण से जुड़े मुद्दे विशेषकर वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत आदिवासी अधिकारों तथा स्थानीय विरोध के कारण परियोजनाओं की गति को धीमा कर देते हैं।
- लौह अयस्क निर्यात पर प्रतिबंध और रॉयल्टी दरों में परिवर्तन जैसी लगातार होने वाले नीतिगत बदलावों से निवेशकों के लिये नियामकीय अनिश्चितता उत्पन्न होती है।
- अवैध एवं असंवहनीय खनन: कमज़ोर प्रवर्तन के कारण बड़े पैमाने पर अवैध खनन, विशेष रूप से झारखंड, राजस्थान और गोवा में तथा साथ ही रैट-होल माइनिंग जैसे अनियमित खनन के कारण वनों की कटाई, जल प्रदूषण और मृदा क्षरण होता है।
- राजनेताओं, नौकरशाहों और खनन माफियाओं का गठजोड़ भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है और कानूनी कार्यों को बाधित करता है।
- कम अन्वेषण: भारत की स्पष्ट भूवैज्ञानिक क्षमता (OGP) का केवल 10% ही अन्वेषण किया गया है, भारत में वैश्विक अन्वेषण बजट का 1% से भी कम खर्च किया गया है, जबकि स्वचालन, AI और ड्रोन सर्वेक्षणों की तुलना में अप्रचलित खनन तकनीकों पर निर्भरता दक्षता को कम करती है।
- रसद संबंधी बाधाएँ: खनन क्षेत्रों (जैसे, ओडिशा, छत्तीसगढ़) में खराब परिवहन संपर्क, बंदरगाह संबंधी बाधाएँ और विद्युत् की कमी के कारण लागत में वृद्धि होती है, जिससे खनन कार्यों में देरी और व्यवधान उत्पन्न होता है।
- महत्त्वपूर्ण खनिजों के लिये आयात पर निर्भरता: वर्ष 2020 में भारत ने अपने लिथियम, कोबाल्ट, निकल का 100% और ग्रेफाइट का 60% आयात किया, जो EV और नवीकरणीय ऊर्जा के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, और चीनी प्रसंस्कृत खनिजों पर भारी निर्भरता है।
- वर्ष 2025 में दुर्लभ मृदा तत्त्वों (REE) और चुंबकों पर चीन के निर्यात नियंत्रण से इन आयातों पर निर्भर भारतीय उद्योगों को बाधा पहुँचेगी।
- सामाजिक एवं पर्यावरणीय संघर्ष: नियमगिरि पहाड़ियों जैसे वन क्षेत्रों में खनन के कारण जनजातीय विस्थापन विरोधों का सामना करना पड़ता है, जल की कमी होती है और किसानों के साथ संघर्ष होता है, तथा सामुदायिक पुनर्वास के लिये DMF निधि का खराब कार्यान्वयन भी होता है।
- लगातार दुर्घटनाओं (जैसे, मेघालय में रैट-होल माइनिंग में मौतें ) के साथ खराब कार्य स्थितियाँ और कुशल श्रमिकों की कमी आधुनिक खनन प्रौद्योगिकी को अपनाने में बाधा डालती है।
भारत के खनन क्षेत्र को मज़बूत करने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- अन्वेषण एवं भूवैज्ञानिक डेटा को बढ़ावा देना: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) और राष्ट्रीय खनिज अन्वेषण ट्रस्ट (National Mineral Exploration Trust- NMET)) के लिये धन जुटाकर अन्वेषण हेतु बजट में वृद्धि करना तथा कर छूट एवं राजस्व-साझाकरण जैसे प्रोत्साहनों के माध्यम से निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देना।
- बुनियादी ढाँचा और रसद विकास: ओडिशा और झारखंड जैसे क्लस्टरों में बेहतर रेलवे, सड़क तथा पाइपलाइनों के साथ खदान से संयंत्र तक संपर्क को मज़बूत करना एवं खनिज निर्यात के लिये विजाग, पारादीप व मोरमुगाओ में बंदरगाह क्षमता का विस्तार करना।
- कोयला और लौह अयस्क के कुशल परिवहन के लिये समर्पित खनिज गलियारे तथा माल ढुलाई गलियारे विकसित करना।
- प्रौद्योगिकी और स्वचालन को अपनाना: बेहतर सर्वेक्षण के लिये AI, ड्रोन, उपग्रह इमेजिंग और भू-स्थानिक मानचित्रण को अपनाना तथा निवेशकों हेतु राष्ट्रीय खनिज डेटाबेस के साथ एक खुला डेटा पोर्टल बनाना।
- रिमोट-नियंत्रित ड्रिलिंग, शून्य-अपशिष्ट खनन को बढ़ावा देना तथा कोयला गैसीकरण, हाइड्रोजन-आधारित स्टील और नमकीन पानी से लिथियम निष्कर्षण जैसे स्वच्छ खनन के लिये अनुसंधान एवं विकास में निवेश करना।
- सतत् एवं उत्तरदायी खनन: जल पुनर्चक्रण, कार्बन-तटस्थ खनन और जैव-पुनर्ग्रहण के साथ पर्यावरण, सामाजिक एवं शासन (ESG) मानदंडों को लागू करना, भूमि बहाली के लिये खदान बंद करने हेतु धन सुनिश्चित करना तथा स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा एवं आजीविका पर प्रभावी DMF व्यय के माध्यम से समुदाय-केंद्रित खनन को बढ़ावा देना।
- अवैध खनन और भ्रष्टाचार से निपटना: विस्तारित उपग्रह निगरानी (खनन निगरानी प्रणाली) और खनन प्रहरी ऐप के साथ निगरानी को मज़बूत करना, अवैध खननकर्त्ताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों पर कठोर दंड लगाना तथा माफिया गतिविधियों को उजागर करने के लिये मुखबिरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- महत्त्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों पर ध्यान केंद्रित करना: अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण अमेरिका में लिथियम, कोबाल्ट एवं दुर्लभ मृदा परिसंपत्तियों के लिये वैश्विक साझेदारी सुनिश्चित करना, लिथियम व ग्रेफाइट के लिये घरेलू शोधन संयंत्र स्थापित करना तथा EV, सौर पैनलों एवं रक्षा तकनीक की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये राष्ट्रीय महत्त्वपूर्ण खनिज नीति को लागू करना।
निष्कर्ष
नीलामी, तकनीक अपनाने और महत्त्वपूर्ण खनिज सुरक्षा जैसे सुधारों से पुनर्जीवित भारत का खनन क्षेत्र आर्थिक विकास तथा आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देता है। हालाँकि, अवैध खनन, आयात निर्भरता और पर्यावरण संबंधी चिंताएँ जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। अन्वेषण, बुनियादी ढाँचे और स्थिरता में रणनीतिक निवेश खनन को पारिस्थितिक तथा सामाजिक समानता को संतुलित करते हुए विकसित भारत के एक स्तंभ में बदल सकता है।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: राष्ट्रीय आर्थिक, ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा हासिल करने में भारत के खनन क्षेत्र की भूमिका पर चर्चा कीजिये। सुधार किस तरह इसके योगदान को मज़बूत कर सकते हैं? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रिलिम्सप्रश्न. भारत में गौण खनिज के प्रबंधन के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)
उपर्युक्त में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 और 3 उत्तर: (a) प्रश्न. भारत में ज़िला खनिज फाउंडेशन का/के क्या उद्देश्य है/हैं? (2016)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. गोंडवानालैंड के देशों में से एक होने के बावजूद भारत के खनन उद्योग का देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में बहुत कम प्रतिशत योगदान है। चर्चा कीजिये। (2021) |
10वीं सतत् विकास रिपोर्ट 2025
प्रिलिम्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्य (SDG), सतत् विकास रिपोर्ट (SDR), ब्रुन्डलैंड आयोग रिपोर्ट, 1987, रियो पृथ्वी शिखर सम्मेलन, 1992, जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, सौभाग्य योजना, UNFCCC, ग्रीन बॉण्ड, संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, IMF। मेन्स के लिये:सतत् विकास लक्ष्य कार्यान्वयन की वर्तमान स्थिति, सतत् विकास लक्ष्य कार्यान्वयन में प्रगति और चुनौतियाँ, सतत् विकास लक्ष्य को पूर्णतः साकार करने हेतु आवश्यक कदम। |
स्रोत: इकॉनोमिक टाइम्स
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र के सस्टेनेबल डेवलपमेंट सॉल्यूशंस नेटवर्क की 10वीं सतत् विकास रिपोर्ट (SDR) 2025 के अनुसार, भारत ने सतत् विकास लक्ष्य (SDG) सूचकांक में 99वाँ स्थान प्राप्त किया है। यह पहली बार है जब भारत ने 167 देशों में से शीर्ष 100 में स्थान बनाया है और इसका स्कोर 67 रहा है।
- यह स्कोर 0 से 100 के पैमाने पर प्रगति को मापता है, जहाँ 100 का अर्थ है कि देश ने सभी 17 सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त कर लिया है और 0 का अर्थ है कि कोई प्रगति नहीं हुई है।
- यह सतत् विकास लक्ष्य (SDG) सूचकांक में इसकी पूर्ववर्ती रैंकिंग (जैसे, वर्ष 2024 में 109वीं, वर्ष 2023 में 112वीं) की तुलना में महत्त्वपूर्ण सुधार दर्शाता है।
10वीं सतत् विकास रिपोर्ट (SDR) 2025 के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- वैश्विक SDG प्रगति की स्थिति: आकलनों से पता चलता है कि केवल 17% सतत् विकास लक्ष्य (SDG) लक्ष्यों को वर्ष 2030 तक पूरा किया जा सकेगा, जो वैश्विक प्रगति में गंभीर मंदी को दर्शाता है।
- इस स्थिरता के पीछे सशस्त्र संघर्ष, संरचनात्मक कमज़ोरियाँ और सीमित वित्तीय संसाधन जैसी चुनौतियाँ हैं, जो SDG के प्रभावी क्रियान्वयन में लगातार बाधा बन रही हैं।
- शीर्ष प्रदर्शनकर्त्ता: नॉर्डिक देश सतत् विकास लक्ष्य रैंकिंग में शीर्ष पर हैं, जिनमें फिनलैंड (प्रथम), स्वीडन (द्वितीय) और डेनमार्क (तृतीय) शामिल हैं, विशेष रूप से, शीर्ष 20 देशों में से 19 यूरोपीय हैं।
- पूर्व और दक्षिण एशिया ने वर्ष 2015 के बाद से सबसे त्वरित क्षेत्रीय प्रगति दिखाई है। भारत बांग्लादेश (114वें) और पाकिस्तान (140वें) से आगे है, लेकिन भूटान (74वें), नेपाल (85वें), श्रीलंका (93वें) और मालदीव (53वें) से पीछे है।
- SDG में सफलताएँ और चुनौतियाँ: अधिकांश देशों ने बुनियादी सेवाओं और बुनियादी ढाँचे पर मज़बूत प्रगति की है, विशेष रूप से मोबाइल ब्रॉडबैंड एवं इंटरनेट उपयोग (SDG 9), विद्युत पहुँच (SDG 7) और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों एवं नवजात मृत्यु दर में कमी (SDG 3) के मामले में।
- हालाँकि, वर्ष 2015 के बाद से पाँच लक्ष्यों में उल्लेखनीय गिरावट देखी गई है: मोटापा दर (SDG 2), प्रेस स्वतंत्रता (SDG 16), नाइट्रोजन प्रबंधन (SDG 2), रेड लिस्ट इंडेक्स (SDG 15) और भ्रष्टाचार धारणा (SDG 16)।
- बहुपक्षवाद पर रैंकिंग: बारबाडोस, जमैका और त्रिनिदाद एवं टोबैगो संयुक्त राष्ट्र के बहुपक्षवाद के प्रति सबसे अधिक प्रतिबद्ध शीर्ष 3 देश हैं।
- G20 देशों में ब्राज़ील सर्वोच्च स्थान पर (25वें स्थान पर) है और आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD) देशों में चिली सबसे आगे (7वें स्थान पर) है, जबकि सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) के विरोध और पेरिस समझौते तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से हटने के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका लगातार दूसरे वर्ष सबसे अंतिम स्थान (193वें स्थान) पर है।
- सतत् विकास लक्ष्यों के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता: एजेंडा 2030 (2015–2025) के एक दशक बाद, संयुक्त राष्ट्र के 193 में से 190 सदस्य राष्ट्र स्वैच्छिक राष्ट्रीय समीक्षा (VNR) प्रक्रिया में भाग ले चुके हैं, जिसके माध्यम से उन्होंने सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) में हुई प्रगति और अपनी प्राथमिकताओं को साझा किया है।
- केवल हैती, म्याँमार और संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस प्रक्रिया में भाग नहीं लिया है।
- वैश्विक वित्तीय संरचना: रिपोर्ट ने खंडित वैश्विक वित्तीय संरचना (GFA) की आलोचना की है, तथा इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि पूंजी का प्रवाह असमान रूप से संपन्न राष्ट्रों की ओर होता है, जबकि उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं (EMDE) की उपेक्षा की जाती है।
सतत् विकास लक्ष्य क्या हैं?
- परिचय: सतत् विकास लक्ष्य (SDG) में कुल 17 परस्पर जुड़े लक्ष्य (169 लक्ष्य) शामिल हैं। इनका उद्देश्य गरीबी, असमानता, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणीय क्षरण जैसी प्रमुख वैश्विक चुनौतियों का समाधान करना है।
- इन्हें वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य राष्ट्रों द्वारा सतत् विकास के लिये 2030 एजेंडा के हिस्से के रूप में अपनाया गया था।
- उद्देश्य: सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) का उद्देश्य वैश्विक सहयोग के माध्यम से वर्ष 2030 तक शांति, समृद्धि और स्थायित्व को बढ़ावा देना है।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: सतत् विकास की अवधारणा को सबसे पहले 1987 की ब्रंटलैंड आयोग की रिपोर्ट में परिभाषित किया गया था, जिसमें इसे ऐसा विकास बताया गया जो भविष्य की पीढ़ियों की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
- वर्ष 2000 में गरीबी, भुखमरी, रोग, निरक्षरता, पर्यावरण क्षरण और लैंगिक असमानता से निपटने के लिये सहस्राब्दी विकास लक्ष्य (MDG) अपनाए गए थे, जिनमें 1990 के स्तर के आधार पर वर्ष 2015 के लिये लक्ष्य निर्धारित किये गए थे।
- वर्ष 2002 में रियो+10 के तहत जोहान्सबर्ग घोषणा के माध्यम से 1992 के रियो अर्थ समिट के परिणामों की समीक्षा की गई।
- वर्ष 2012 में रियो+20 समिट ने सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) तथा एक अधिक व्यापक वैश्विक विकास एजेंडा की नींव रखी।
- सतत् विकास लक्ष्य के मूल सिद्धांत:
- सार्वभौमिकता: यह सभी देशों- विकसित और विकासशील पर समान रूप से लागू होते हैं।
- एकीकरण: सभी लक्ष्य आपस में जुड़े हुए हैं; एक लक्ष्य में प्रगति से अन्य लक्ष्यों को भी बल मिलता है।
- किसी को पीछे न छोड़ना: यह हाशिये पर रह गए और कमज़ोर वर्गों को प्राथमिकता देता है।
- बहु-हितधारक दृष्टिकोण: इसमें सरकारों, व्यवसायों, नागरिक समाज और नागरिकों की सामूहिक कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
- निगरानी: वैश्विक सतत् विकास रिपोर्ट (GSDR) प्रत्येक 4 वर्षों में सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) की प्रगति का मूल्यांकन करती है।
- सहायक समझौते:
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु सेंडाई फ्रेमवर्क आपदा प्रतिरोधक क्षमता को सशक्त बनाती है।
- सतत् विकास के वित्तपोषण हेतु अदीस अबाबा एक्शन एजेंडा एक वैश्विक वित्तीय ढांचा प्रदान करती है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौता।
सतत विकास लक्ष्य (SDG) प्रदर्शन में भारत की बेहतर रैंकिंग में किन पहलों ने योगदान दिया है?
SDG |
लक्ष्य का शीर्षक |
प्रमुख सरकारी पहल |
SDG 1 |
शून्य गरीबी |
प्रधानमंत्री आवास योजना (PMAY) गरीबों के लिये किफायती आवास सुनिश्चित करने हेतु। मनरेगा ग्रामीण क्षेत्रों में सुनिश्चित रोज़गार उपलब्ध कराने हेतु। प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) वित्तीय समावेशन हेतु। |
SDG 2 |
शून्य भुखमरी |
कुपोषण की समस्या से निपटने के लिये पोषण अभियान। सब्सिडी वाले खाद्यान्न प्रदान करने के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA)। कोविड-19 के दौरान मुफ्त भोजन उपलब्ध कराने के लिये PM गरीब कल्याण अन्न योजना (PMGKAY)। |
SDG 3 |
अच्छा स्वास्थ्य एवं कल्याण |
शिशु एवं मातृ टीकाकरण के लिये मिशन इंद्रधनुष। प्रति परिवार ₹5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करने के लिये आयुष्मान भारत (PM-JAY)। बेहतर स्वास्थ्य के लिये राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) 2013। |
SDG 4 |
गुणवत्तापूर्ण शिक्षा |
समग्र स्कूली शिक्षा के लिये समग्र शिक्षा अभियान। डिजिटल और कौशल आधारित शिक्षा के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP), 2020। ऑनलाइन शिक्षा के लिये दीक्षा मंच। |
SDG 6 |
स्वच्छ जल एवं स्वच्छता |
स्वच्छ भारत मिशन ने खुले में शौच मुक्त (ODF) दर्जा प्राप्त करने में सहायता की। |
SDG 7 |
किफायती और स्वच्छ ऊर्जा |
LED बल्बों के वितरण हेतु उजाला योजना सर्वत्र बिजली की उपलब्धता हेतु सौभाग्य योजना |
SDG 8 |
सभ्य कार्य और आर्थिक वृद्धि |
मेक इन इंडिया से विनिर्माण को बढ़ावा मिला। स्टार्टअप इंडिया नवाचार को बढ़ावा देता है। कौशल भारत मिशन व्यावसायिक प्रशिक्षण प्रदान करता है। पीएम इंटर्नशिप योजना के तहत 5 वर्षों में 1 करोड़ छात्रों को इंटर्नशिप का अवसर दिया जाएगा। |
SDG 11 |
सतत् शहर और समुदाय |
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत 100 सतत् शहर विकसित किये जाएँगे। शहरी बुनियादी ढाँचे में सुधार हेतु AMRUT |
SDG 13 |
जलवायु कार्रवाई |
जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना (जैसे, ग्रीन इंडिया मिशन) अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) |
SDG 15 |
स्थानीय जीवन |
वन्यजीव संरक्षण हेतु प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट एलीफेंट CAMPA- प्रतिपूरक वनरोपण निधि मृदा संरक्षण हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना क्षरित वनों की पारिस्थितिकी पुनर्स्थापन हेतु राष्ट्रीय वनरोपण कार्यक्रम (NAP) जैविक संसाधनों के संरक्षण तथा उनके सतत् उपयोग को सुनिश्चित करने के लिये जैविक विविधता अधिनियम, 2002 |
SDG 16 |
शांति, न्याय और मज़बूत संस्थाएँ |
पारदर्शी शासन के लिये डिजिटल इंडिया और पुलिस आधुनिकीकरण |
SDG 17 |
लक्ष्यों के लिये साझेदारी |
अंतर्राष्ट्रीय बिग कैट एलायंस का उद्देश्य सात प्रमुख बड़ी बिल्ली प्रजातियों का संरक्षण और सुरक्षा सुनिश्चित करना है। आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (CDRI ) आपदा रोधी अवसंरचना विकास को बढ़ावा देगा। गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की रोकथाम और उपचार हेतु क्वाड कैंसर मूनशॉट |
सतत् विकास लक्ष्य (SDG) की प्राप्ति में धीमी प्रगति के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?
- वैश्विक संघर्ष: यूक्रेन, गाज़ा, सूडान और अन्य क्षेत्रों में चल रहे संघर्षों ने सबसे बड़े वैश्विक विस्थापन संकट को जन्म दिया है, जिसमें 120 मिलियन से अधिक लोग ज़बरन विस्थापित हुए हैं, जिससे SDG 16 (शांति, न्याय और मज़बूत संस्थान) की दिशा में प्रगति काफी कम हो गई है ।
- जलवायु वित्त अंतर: UNFCCC का अनुमान है कि जलवायु लक्ष्यों को पूरा करने के लिये विकासशील देशों को 2030 तक 6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की आवश्यकता होगी; हालाँकि, गंभीर वित्तपोषण की कमी से SDG 13 (जलवायु कार्रवाई) पर प्रगति बाधित होने का खतरा है।
- महामारी से उत्पन्न संकट: कोविड-19 महामारी ने वैश्विक विकास को गंभीर रूप से बाधित किया है, गरीबी उन्मूलन (SDG 1) की प्रगति को उलट दिया है, स्वास्थ्य सेवा प्रणालियों (SDG 3) को कमज़ोर किया है और शिक्षा तक पहुँच (SDG 4) में बाधाएँ उत्पन्न की है।
- इसने विकासशील देशों में स्वच्छ ऊर्जा निवेश को भी धीमा कर दिया, जिससे SDG 7 (किफायती और स्वच्छ ऊर्जा) की प्रगति में बाधा उत्पन्न हुई ।
- पर्यावरणीय दबाव: जलवायु परिवर्तन, जैवविविधता की हानि और वनोन्मूलन (वनों की कटाई) जैसी बढ़ती चुनौतियाँ पारिस्थितिकी तंत्र के लिये खतरा बन रही हैं, IPCC ने चेतावनी दी है कि 2 डिग्री सेल्सियस तापमान में वृद्धि होने पर 99% तक प्रवाल भित्तियाँ नष्ट हो सकती हैं, जिससे SDG 14 (जलीय जीवन) पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा।
- आपदाएँ: बार-बार होने वाली प्राकृतिक आपदाएँ, जिनमें बाढ़, हीटवेव्स और सूखा शामिल हैं; भारी नुकसान पहुँचा रही हैं, सबसे कम विकसित देश (LDC) और स्थलरुद्ध विकासशील देश (LLDC) 2015 और 2022 के बीच वैश्विक आर्थिक आपदा नुकसान का 6.9% वहन कर रहे हैं, जिससे गरीबी और भेद्यता और भी खराब हो रही है, जिससे SDG 1 (गरीबी उन्मूलन) की प्रगति में बाधा आ रही है।
सतत् विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिये कौन-सी रणनीति अपनाई जा सकती है?
- वैश्विक शासन को मज़बूत करना: सतत् विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिये संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक और IMF जैसे बहुपक्षीय संस्थानों में सुधार करना आवश्यक है ताकि सतत् विकास लक्ष्यों के वित्तपोषण और नीति संरेखण के लिये समर्थन बढ़ाया जा सके, सतत् विकास लक्ष्यों पर आधारित व्यापार समझौतों को बढ़ावा दिया जा सके जो कार्बन-तटस्थ आपूर्ति शृंखलाओं जैसे निष्पक्ष और सतत् व्यापार को प्रोत्साहित करते हैं।
- वास्तविक समय SDG ट्रैकिंग को मजबूतकरना, नागरिक ऑडिट (जैसे, युगांडा) को सक्षम करना और कॉर्पोरेट जवाबदेही के लिये ESG प्रकटीकरण को अनिवार्य बनाना।
- सतत् विकास लक्ष्यों के लिये वित्तपोषण में वृद्धि: ग्रीन बॉण्ड और मिश्रित वित्त/ब्लेंडेड फाइनेंस (सार्वजनिक तथा निजी निधियों का मिश्रण) जैसे प्रणालियों का विस्तार करना, सतत् विकास लक्ष्यों के कार्यान्वयन के लिये संसाधनों को मुक्त करने हेतु विकासशील देशों को ऋण राहत प्रदान करना एवं जीवाश्म ईंधन से हानिकारक सब्सिडी को नवीकरणीय ऊर्जा व स्वास्थ्य सेवा की ओर पुनर्निर्देशित करना।
- सतत् कृषि: मृदा स्वास्थ्य को बहाल करने और उत्सर्जन को कम करने के लिये कृषि पारिस्थितिकी के माध्यम से पुनर्योजी खेती को बढ़ावा देना तथा भंडारण, परिवहन तथा नीतियों में सुधार करके 30% वैश्विक खाद्य अपशिष्ट की समस्या का समाधान करना।
- सतत् विकास लक्ष्यों को स्थानीय बनाना: स्थानीय सरकारों और समुदायों को सतत् विकास लक्ष्यों से जुड़ी योजनाओं को अपनाने तथा क्रियान्वित करने, पर्याप्त वित्त पोषण एवं निगरानी तंत्र के साथ ज़िला स्तरीय कार्य योजनाएँ विकसित करने व नियोजन और जवाबदेही प्रक्रियाओं दोनों में सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये सशक्त बनाना।
निष्कर्ष
SDG इंडेक्स के शीर्ष 100 में भारत का प्रवेश गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवा और स्वच्छ ऊर्जा में प्रगति को दर्शाता है। हालाँकि संघर्ष, जलवायु वित्त अंतराल एवं महामारी संबंधी असफलताओं जैसी वैश्विक चुनौतियाँ प्रगति को खतरे में डालती हैं। वर्ष 2030 एजेंडा को प्राप्त करने के लिये तत्काल बहुपक्षीय सहयोग, वित्तपोषण सुधार, स्थानीय जुड़ाव तथा केंद्रित कार्यान्वयन रणनीतियों की आवश्यकता है।
दृष्टि मेन्स परीक्षा: प्रश्न: सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) को प्राप्त करने में भारत की प्रमुख योजनाओं की भूमिका का मूल्यांकन करें। प्रगति में तेज़ी लाने के लिये और क्या किया जा सकता है? |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स
(a) जोहांसबर्ग में 2002 के सतत् विकास के पृथ्वी शिखर सम्मेलन में। उत्तर: (b)
(a) सामाजिक न्याय और सशक्तीकरण उत्तर: (d) मेन्स
|