डेली न्यूज़ (21 Sep, 2021)



राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक: FSSAI

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण, विश्व खाद्य सुरक्षा, ग्लोबल वार्मिंग, वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन 

मेन्स के लिये:

खाद्य सुरक्षा का महत्त्व एवं संबंधित पहलें 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने तीसरा राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक (Food Safety Index- FSSAI) जारी किया है।

  • इसके अलावा देश भर में खाद्य सुरक्षा परिवेश को मज़बूत करने के लिये 19 मोबाइल फूड टेस्टिंग वैन (फूड सेफ्टी ऑन व्‍हील्‍स) को भी रवाना किया गया है। 

प्रमुख बिंदु 

  • सूचकांक के बारे में:
    • खाद्य सुरक्षा के पांँच महत्त्वपूर्ण मापदंडों पर राज्यों के प्रदर्शन को मापने के लिये भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) द्वारा सूचकांक विकसित किया गया है।
    • मापदंडों में मानव संसाधन और संस्थागत डेटा, अनुमति/अनुपालन, खाद्य परीक्षण- बुनियादी ढांँचा एवं निगरानी, ​​प्रशिक्षण व क्षमता निर्माण तथा उपभोक्ता अधिकारिता शामिल हैं।
    • सूचकांक एक गतिशील मात्रात्मक और गुणात्मक बेंचमार्किंग मॉडल है जो सभी राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों में खाद्य सुरक्षा के मूल्यांकन के लिये एक उद्देश्यपूर्ण ढांँचा प्रदान करता है।
    •  7 जून, 2019 को वर्ष 2018-19 के लिये पहला राज्य खाद्य सुरक्षा सूचकांक विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस पर घोषित किया गया था।
  • राज्यों की रैंकिंग:
    • बड़े राज्यों में गुजरात  रैंकिंग में शीर्ष स्थान पर था, उसके बाद केरल और तमिलनाडु का स्थान रहा।
    • छोटे राज्यों में गोवा शीर्ष पायदान पर रहा और उसके बाद मेघालय एवं मणिपुर का स्‍थान रहा। 
    • केंद्रशासित प्रदेशों में जम्मू-कश्मीर, अंडमान एवं निकोबार द्वीप समूह और नई दिल्ली शीर्ष स्थान पर रहे।
  • खाद्य सुरक्षा का महत्त्व:
    • पर्याप्त मात्रा में सुरक्षित भोजन तक पहुँच जीवन को बनाए रखने और अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने की कुंजी है।
      • दूषित भोजन या पानी के माध्यम से शरीर में प्रवेश करने वाले बैक्टीरिया, वायरस, परजीवी या रासायनिक पदार्थों के कारण होने वाली खाद्यजनित बीमारियाँ प्रायः प्रकृति में संक्रामक या विषाक्त होती हैं।
      • दुनिया भर में अनुमानित 4,20,000 लोग प्रतिवर्ष दूषित भोजन खाने से मर जाते हैं और 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे खाद्यजनित बीमारी के बोझ का 40% हिस्सा वहन करते हैं, जिसमें से प्रतिवर्ष 1,25,000 की मौत हो जाती है।
    • खाद्य सुरक्षा की यह सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका है कि खाद्य शृंखला के प्रत्येक चरण में- उत्पादन से लेकर कटाई, प्रसंस्करण, भंडारण, वितरण, तैयारी और उपभोग तक सभी तरह से भोजन सुरक्षित रहता है।
  • संबंधित पहल:
    • भारतीय:
      • ईट राइट इंडिया मूवमेंट:
      • ईट राइट स्टेशन प्रमाणन:
        • FSSAI द्वारा उन रेलवे स्टेशनों को प्रमाणन प्रदान किया जाता है जो यात्रियों को सुरक्षित एवं पौष्टिक भोजन प्रदान करने में बेंचमार्क (खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अनुसार) निर्धारित करते हैं।
      •  भारत में खाद्य सुरक्षा और पोषण के क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता वाले अनुसंधान को प्रोत्साहित करने व मान्यता देने के लिये ईट राइट रिसर्च अवार्ड्स (Eat Right Research Awards) तथा अनुदान भी  शुरू किये गए हैं।
      • चयनित खाद्य पदार्थों में औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैटी एसिड सामग्री की उपस्थिति की पहचान के लिये अखिल भारतीय सर्वेक्षण (PAN-India Survey) के परिणाम जारी किये गए हैं। कुल 6,245 नमूनों में से महज 84 नमूनों यानी 1.34 प्रतिशत में ही औद्योगिक रूप से उत्पादित ट्रांस फैट की 3 प्रतिशत से अधिक मात्रा पाई गई। 
      • खाद्य पैकेजिंग में प्लास्टिक से जुड़े उद्योगों को शामिल करने के प्रयास में 24 खाद्य व्यवसायों ने सभी स्रोतों से 100% उपभोक्ता द्वारा उपभोग करने के पश्चात् प्लास्टिक कचरे का संग्रह, प्रसंस्करण और पुनर्चक्रण करके "प्लास्टिक अपशिष्ट तटस्थ" बनने की प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर किये।
    • वैश्विक:
      • कोडेक्स एलेमेंट्रिस या "फूड कोड" कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन द्वारा अपनाए गए मानकों, दिशा-निर्देशों और अभ्यास के कोड का एक संग्रह है।
      • कोडेक्स एलेमेंट्रिस कमीशन (Codex Alimentarius Commission) खाद्य और कृषि संगठन (Food and Agriculture Organisation) तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation) द्वारा संयुक्त रूप से स्थापित एक अंतर-सरकारी निकाय है
        • वर्तमान में इस कमीशन के सदस्यों की संख्या 189 हैं और भारत इस कमीशन का सदस्य है।

स्रोत: पीआईबी


गैर-सरकारी संगठनों के विदेशी वित्तपोषण पर प्रतिबंध

प्रिलिम्स के लिये:

गैर-सरकारी संगठन, भारतीय रिज़र्व बैंक, एमनेस्टी

मेन्स के लिये:

विदेशी अंशदान के विनियमन की आवश्यकता, FCRA संशोधन के प्रमुख प्रावधान, नियमों में किये गए परिवर्तन 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने बाल अधिकार, जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण परियोजनाओं पर काम कर रहे 10 अंतर्राष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों (NGO) के विदेशी वित्तपोषण पर प्रतिबंध लगा दिया है।

प्रमुख बिंदु 

  • परिचय:
    • भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहले कई विदेशी संगठनों को पूर्व संदर्भ श्रेणी (Prior Reference Category-PRC) की सूची में रखने के लिये कहा था।
      • इसका आशय यह है कि जब भी विदेशी दाता भारत में किसी प्राप्तकर्ता संघ को धन हस्तांतरित करना चाहता है, तो उसे गृह मंत्रालय से पूर्व मंज़ूरी की आवश्यकता होती है।
      • 80 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियाँ इस सूची में शामिल हैं।
  •  विदेशी योगदान (विनियमन) संशोधन अधिनियम (FCRA), 2020 के तहत प्रावधान:
    • इसके लिये आवश्यक है कि कोई भी संगठन जो एफसीआरए के तहत खुद को पंजीकृत करना चाहता है वह कम-से-कम तीन वर्षों से अस्तित्व में हो और समाज के बेहतरी के लिये पिछले तीन वित्तीय वर्षों के दौरान उसने अपनी मुख्य गतिविधियों पर न्यूनतम 15 लाख रुपए खर्च किये हों।
    • गैर-सरकारी संगठनों को अपने दाताओं को प्रतिबद्धता पत्र प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, जिसमें विदेशी योगदान की राशि और उस उद्देश्य को निर्दिष्ट करना होता है जिसके लिये उन्हें यह धन दिया जाना प्रस्तावित है।
  • प्रतिबंध का कारण:
    • यह तर्क दिया गया था कि विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले दर्जनों एनजीओ इस फंड की पूर्ण रूप से हेराफेरी या दुरुपयोग में लिप्त थे।
    • यहाँ तक कि वर्ष 2010 और 2019 के बीच विदेशी योगदान के अंतर्प्रवाह को दोगुना किया गया फिर भी कई प्राप्तकर्त्ताओं ने उस उद्देश्य के लिये फंड का उपयोग नहीं किया जिसके लिये उन्हें फंड दिया गया था या एफसीआरए अधिनियम के तहत पंजीकृत किया गया था।
      • इन कारणों के चलते केंद्र सरकार को 2011 और 2019 के बीच की अवधि के दौरान 19,000 से अधिक योगदान प्राप्तकर्त्ता संगठनों के पंजीकरण प्रमाणपत्र रद्द करने पड़े।
  • प्रतिबंध का आशय:
    • संवैधानिक अधिकारों को हतोत्साहित करना:
      • इन कदमों का प्रभाव संघ, अभिव्यक्ति और सभा की स्वतंत्रता के संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों को हतोत्साहित करने वाला होगा (अनुच्छेद 19)। 
      • सरकार ने भारत में गैर-सरकारी संगठनों के दिन-प्रतिदिन के कामकाज के संबंध में सरकार के विवेक, नौकरशाही द्वारा नियंत्रण और निरीक्षण में वृद्धि की है।
    • NGO के मानवीय कार्यों पर अंकुश लगाना:
      • लालफीताशाही के ज़रिये NGO पर नियंत्रण से ये संगठन मानवीय कार्य करने में असमर्थ होंगे।
      • यह सरकार, व्यापार, धर्म और राजनीतिक समूहों से स्वतंत्र ज़मीनी स्तर के गैर-सरकारी संगठनों के लिये भारत में कार्य करना और कठिन बना सकता है।
    • दमनकारी स्वतंत्रता:
      • FCRA संशोधन, 2020 के पारित होने और एमनेस्टी के खिलाफ कार्रवाई में यह भारत को केवल रूस के बाद रखता है, जहाँ सरकार ने विदेशी एजेंट कानून, 2012 और अवांछित संगठन कानून, 2015 को संघ व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाने के लिये एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया है।
      • अंतर्राष्ट्रीय संगठनों ने भारत में कार्यकर्त्ताओं और गैर-सरकारी संगठनों की ‘आवाज़ को दबाने’ के लिये विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम के उपयोग पर चिंता व्यक्त की थी।

आगे की राह

  • विदेशी योगदान पर अत्यधिक विनियमन गैर-सरकारी संगठनों के कामकाज को प्रभावित कर सकता है जो ज़मीनी स्तर पर सरकारी योजनाओं को लागू करने में सहायक होगा। यह उन अंतरालों को भरता है जहाँ सरकार अपना काम करने में विफल रहती है।
  • विनियमन को वैश्विक समुदाय के कामकाज के लिये आवश्यक राष्ट्रीय सीमाओं के पार संसाधनों के बँटवारे में बाधा नहीं डालनी चाहिये और इसे तब तक हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिये जब तक कि यह मानने का कारण न हो कि धन का उपयोग अवैध गतिविधियों की सहायता के लिये किया जा रहा है।

स्रोत: द हिंदू


वन अधिकार अधिनियम

प्रिलिम्स के लिये:

लघु वनोत्पाद, वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006,पाँचवीं और छठी अनुसूची 

मेन्स के लिये:

वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 का महत्त्व और चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में जम्मू और कश्मीर सरकार ने वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 को लागू करने का निर्णय लिया है, जो आदिवासियों एवं खानाबदोश समुदायों की 14 लाख की आबादी के एक बड़े हिस्से की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को ऊपर उठाने का कार्य करेगा।

प्रमुख बिंदु 

  • FRA के बारे में:
    • वर्ष 2006 में अधिनियमित FRA वन में निवास करने वाले आदिवासी समुदायों और अन्य पारंपरिक वनवासियों के वन संसाधनों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है, जिन पर ये समुदाय आजीविका, निवास तथा अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक ज़रूरतों सहित विभिन्न आवश्यकताओं के लिये निर्भर थे।
    • यह वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासी (OTFD) जो पीढ़ियों से ऐसे जंगलों में निवास कर रहे हैं, को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है ।
    • यह FDST और OTFD की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण की व्यवस्था को मज़बूती प्रदान  करता है।
    • ग्राम सभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो कि FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है।
  • वन अधिकार अधिनियम के तहत मिलने वाले अधिकार:
    •  स्वामित्व अधिकार:
      • यह FDST और OTFD को अधिकतम 4 हेक्टेयर भू-क्षेत्र पर आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है। 
      • यह स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, इसके अलावा कोई और नई भूमि प्रदान नहीं की जाएगी।
    • अधिकारों का प्रयोग:
      • वन निवासियों के अधिकारों का विस्तार लघु वनोत्पाद, चराई क्षेत्रों आदि तक है।
    • राहत और विकास से संबंधित अधिकार:
      • वन संरक्षण के लिये प्रतिबंधों के अधीन अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन और बुनियादी सुविधाओं के मामले में पुनर्वास का अधिकार शामिल है।
    • वन प्रबंधन अधिकार:
      • इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनः उत्थान या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वन निवासियों द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाता है।
  • महत्त्व:
    • संवैधानिक प्रावधान का विस्तार:
      • यह संविधान की पाँचवीं और छठी अनुसूचियों के जनादेश का विस्तार करता है जो भूमि या जंगलों जिनमें वे स्वदेशी समुदाय निवास करते हैं, पर उनके दावों को संरक्षण प्रदान करता है ।
    • सुरक्षा संबंधी चिंताएँ:
      • जनजातियों का अलगाव नक्सल आंदोलन के कारकों में से एक था, जिसने छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड जैसे राज्यों को प्रभावित किया।
    • वन शासन:
      • इसमें सामुदायिक वन संसाधन अधिकारों को मान्यता देकर वन शासन को लोकतांत्रिक बनाने की क्षमता है।
      • यह सुनिश्चित करेगा कि लोग अपने जंगलों का प्रबंधन स्वयं करें, यह अधिकारियों के माध्यम से वन संसाधनों के दोहन को नियंत्रित करेगा जिससे वन शासन में सुधार होगा और आदिवासी अधिकारों का बेहतर प्रबंधन करेगा।
  • चुनौतियाँ:
    • प्रशासनिक उदासीनता:
      • चूँकि अधिकांश राज्यों में आदिवासी एक बड़ा वोट बैंक नहीं हैं, इसलिये सरकारों को वित्तीय लाभ के पक्ष में FRA को हटाना या इस बारे में बिल्कुल भी परेशान नहीं करना सुविधाजनक लगता है।
      • वन अधिकारियों ने आदिवासियों हेतु कल्याणकारी उपाय के बजाय अतिक्रमण को नियमित करने के लिये एक साधन के रूप में FRA की गलत व्याख्या की है।
      • कॉरपोरेट्स को डर है कि वे मूल्यवान प्राकृतिक संसाधनों तक सस्ती पहुँच को खो सकते हैं।
    • अधिनियम का कमज़ोर पड़ना:
      • पर्यावरणविदों के कुछ वर्ग इस बात पर चिंता जताते हैं कि FRA व्यक्तिगत अधिकारों के पक्ष में अधिक लचीला है जो सामुदायिक अधिकारों हेतु न्यूनतम कार्यक्षेत्र प्रदान करता है।
    • संस्थागत मार्ग बाधा:
      • ग्राम सभा द्वारा समुदायिक और व्यक्तिगत दावों के सामान्य नक्शे तैयार किये जाते हैं, जिनमें कभी-कभी तकनीकी ज्ञान की कमी देखी जाती है और ये शैक्षिक अक्षमता से ग्रसित होते हैं।
    •  FRA का दुरुपयोग :
      • FRA का दुरुपयोग होने के कारण समुदायों ने दावा दाखिल करने के लिये प्रयास किया है। पार्टी लाइनों के राजनेताओं ने FRA को भूमि वितरण अभ्यास के रूप में व्याख्यायित किया है तथा इसके संदर्भ में ज़िलों के लिये लक्ष्य निर्धारित किये हैं।

आगे की राह 

  • यह महत्त्वपूर्ण है कि FRA को लागू करने हेतु मिशन मोड आधारित परियोजनाओं के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर सरकारों को मानव तथा वित्तीय संसाधनों के साथ मज़बूत किया जाए।
  • FRA के कार्यान्वयन की निगरानी और मानचित्रण के लिये आधुनिक तकनीक का लाभ उठाने के अलावा ग्राम सभाओं को सेवा प्रदाता के रूप में सुविधा देने के लिये वन नौकरशाही में भी सुधार किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


पोषण वृद्धि में चावल की भूमिका

प्रिलिम्स के लिये:

फैटी एसिड, हाइड्रोजनीकरण, बाओ-धान (रेड राइस) 

मेन्स के लिये:

कुपोषण से संबंधित मुद्दे और फैटी एसिड की भूमिका 

चर्चा में क्यों?

हाल के एक अध्ययन के अनुसार, शोधकर्त्ताओं द्वारा जाँच के बाद यह पाया गया कि भारतीय चावल की 12 लोक किस्में कुपोषित माताओं में महत्त्वपूर्ण फैटी एसिड (FA) की पोषण संबंधी मांग को पूरा कर सकती हैं।

  • चावल में विभिन्न प्रकार के फैटी एसिड, विटामिन, खनिज, स्टार्च और थोड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है।

प्रमुख बिंदु 

  • फैटी एसिड:
    • फैटी एसिड वसा और तेल के प्राकृतिक घटक हैं। ये शरीर में ऊर्जा भंडारण सहित कई महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं।
    • इनकी रासायनिक संरचना के आधार पर इन्हें तीन समूहों में विभाजित किया जा सकता है: 'संतृप्त', 'मोनो-असंतृप्त' और 'पॉली-असंतृप्त' फैटी एसिड।
      • संतृप्त फैटी एसिड (वसा) मुख्य रूप से (वसायुक्त) मांस, चरबी, सॉसेज, मक्खन और पनीर आदि पशुओं से प्राप्त खाद्य पदार्थों में पाए जाते हैं, साथ ही यह तलने के लिये उपयोग किये जाने वाले पाम कर्नेल और नारियल के तेल में भी पाया जाता है।
      • अधिकांश असंतृप्त वसा एसिड (वसा) पौधे और वसायुक्त मछली मूल के होते हैं। मांस उत्पादों में संतृप्त और असंतृप्त वसा दोनों होते हैं।
      • पॉलीअनसेचुरेटेड फैटी एसिड (PUFA) फैमिली में दो अलग-अलग समूह हैं: 'ओमेगा-3-फैटी एसिड' और 'ओमेगा-6-फैटी एसिड'
        • दोनों को आवश्यक फैटी एसिड माना जाता है क्योंकि इन्हें मानव द्वारा संश्लेषित नहीं किया जा सकता है।
    • ट्रांस फैटी एसिड जिसे आमतौर पर ट्रांस वसा कहा जाता है, हाइड्रोजन गैस और उत्प्रेरक की उपस्थिति में तरल वनस्पति तेलों को गर्म करके बनाया जाता है। इस प्रक्रिया को हाइड्रोजनीकरण कहा जाता है। यह हृदय, रक्त वाहिकाओं एवं शरीर के बाकी हिस्सों के लिये सबसे खराब प्रकार की वसा है।
  • अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष:
    • स्वास्थ्य में सहायक:
      • चावल की पारंपरिक किस्में मुख्य आहार में आवश्यक फैटी एसिड शामिल कर सकती हैं जो शिशुओं में सामान्य मस्तिष्क के विकास में मदद करती हैं।
      • स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिये लोक चिकित्सा में एथिकराय, दूध-सर, कयामे, नीलम सांबा, श्रीहती, महाराजी और भेजरी जैसी कई लोक किस्में महत्त्वपूर्ण मानी जाती हैं।
      • केलास, दूधेबोल्टा और भुटमूरी जैसी किस्में आयरन से भरपूर होती हैं और एनीमिया के इलाज के लिये माताओं के आहार में शामिल की जा सकती हैं।
    • कुपोषण की समस्या का समाधान:
      • पारंपरिक किस्में पाँच साल से कम उम्र के बच्चों में कुपोषण की समस्या का समाधान करने में मदद करती हैं।
      • ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 द्वारा भारत को 107 देशों में 94वें स्थान पर रखा गया था। इसकी गणना जनसंख्या के कुल अल्पपोषण, बाल स्टंटिंग, वेस्टिंग और बाल मृत्यु दर के आधार पर की जाती है।
    • अर्थव्यवस्था में योगदान:
      • हाल ही में असम से बाओ-धान (रेड राइस) की पहली खेप मार्च 2021 में अमेरिका भेजी गई थी। इससे किसान परिवारों की आय में वृद्धि होगी
        • आयरन से भरपूर इस रेड राइस को असम की ब्रह्मपुत्र घाटी में बिना किसी रासायनिक खाद के उगाया जाता है
    • रोग प्रतिरोधक क्षमता :
      • उत्तर-पूर्व भारत की सात चावल की किस्मों- मेघालय लकांग, चिंगफौरेल, मनुइखमेई, केमेन्याकेपेयु, वेनेम, थेकरुला और कोयाजंग में चावल के पौधों में पत्ती और नेकब्लास्ट रोग का प्रतिरोध करने की क्षमता है
        • फफूँद रोगजनक पाइरिकुलेरिया ओरिज़े के कारण होने वाला नेकब्लास्ट रोग दुनिया भर में चावल की उत्पादकता के लिये एक बड़ा खतरा है।
    • कम खर्चीला संरक्षण:
      • पोषक तत्वों से भरपूर चावल की इन उपेक्षित और लुप्त हो रही किस्मों का इन-सीटू/स्वस्थानी संरक्षण (In Situ Conservation), उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) की तुलना में एक सस्ता विकल्प है।
        • विकासशील देशों में खाद्य आपूर्ति में सुधार और अकाल की समस्या के समाधान हेतु वैज्ञानिकों द्वारा HYV बीज विकसित किये गए थे।
        • संरक्षण की सीटू और एक्स सीटू विधियाँ क्रमशः अपने प्राकृतिक आवास के भीतर एवं बाहर प्रजातियों की विविधता के रखरखाव पर केंद्रित है।

चावल 

  • यह खरीफ के मौसम की फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25 डिग्री सेल्सियस से अधिक) और 100 सेमी. से अधिक वार्षिक वर्षा के साथ उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है।
  • चावल उत्तर और उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी इलाकों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टा क्षेत्रों में उगाया जाता है।
  • चावल उत्पादक राज्यों की सूची में पश्चिम बंगाल सबसे ऊपर है, उसके बाद उत्तर प्रदेश और पंजाब का स्थान है।


वैश्विक नवाचार सूचकांक 2021

प्रिलिम्स के लिये:

वैश्विक नवाचार सूचकांक,  बौद्धिक संपदा संगठन, संयुक्त राष्ट्र 

मेन्स के लिये:

वैश्विक नवाचार सूचकांक 2021 में भारत की स्थिति 

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) 2021 रैंकिंग में भारत की स्थिति में दो स्थानों का सुधार हुआ है तथा भारत 46वें स्थान पर आ गया है।

Seven GII Pillar

प्रमुख बिंदु 

  •  वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) 2021:
    • GII के बारे में: 
      • लॉन्च: GII को विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा लॉन्च किया गया है, जो संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है।
        • GII का उद्देश्य विश्व की 132 अर्थव्यवस्थाओं के संदर्भ में नवाचार रैंकिंग और समृद्ध विश्लेषण के बहु-आयामी पहलुओं पर पकड़ को मज़बूत करना है।
      • साझेदारी: इसे पोर्टुलन्स इंस्टीट्यूट और अन्य कॉर्पोरेट भागीदारों के साथ साझेदारी में प्रकाशित किया गया है, इसमें शामिल हैं:
        • ब्राज़ीलियाई नेशनल कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्री (CNI), भारतीय उद्योग परिसंघ (CII), इकोपेट्रोल (कोलंबिया) और तुर्किश एक्सपोर्टर एसेंबली (TIM)।
      • संकेतक: सूचकांक विश्व अर्थव्यवस्थाओं को उनकी नवाचार क्षमताओं के अनुसार रैंक प्रदान करता है जिसमें  लगभग 80 संकेतक शामिल होते हैं तथा इन्हें इनोवेशन  इनपुट (Innovation Inputs) और आउटपुट (Outputs) में समूहीकृत किया जाता है।
        • इनोवेशन  इनपुट: संस्थान, मानव पूंजी और अनुसंधान,  आधारभूत संरचना,  बाज़ार कृत्रिमता (Market sophistication), व्यावसायिक विशेषज्ञता।
        • इनोवेशन आउटपुट: ज्ञान और प्रौद्योगिकी रचनात्मकता।
    • वैश्विक प्रदर्शन:
      • रैंकिंग में शीर्ष पांँच देश : स्विट्ज़रलैंड, स्वीडन, अमेरिका और यू.के. नवाचार रैंकिंग में लगातार शीर्ष पर बने हुए हैं, ये देश पिछले तीन वर्षों से शीर्ष 5 में शामिल  हैं।
        • कोरिया गणराज्य वर्ष 2021 में पहली बार GII के शीर्ष 5 देशों की सूची में शामिल हुआ है।
      • एशियाई देश: चार एशियाई अर्थव्यवस्थाएंँ शीर्ष 15 में शामिल हैं जिनमें सिंगापुर (8), चीन (12), जापान (13) और हॉन्गकॉन्ग (14) शामिल हैं।
    • भारत का प्रदर्शन
      • भारत पिछले कुछ वर्षों से GII में सतत् वृद्धि कर रहा है।
        • भारत 2015 के 81वें स्थान से बढ़कर 2021 में 46वें स्थान पर पहुँच गया है।
      • भारत ने 2021 में नवाचार इनपुट की तुलना में नवाचार आउटपुट में बेहतर प्रदर्शन किया है।
        • इस वर्ष भारत नवाचार इनपुट में 57वें स्थान पर है, जो पिछले वर्ष के बराबर  लेकिन 2019 से अधिक है।
        • जहाँ तक ​​नवोन्मेष उत्पादन की बात है, भारत का स्थान 45वाँ है। यह स्थिति पिछले साल के समान लेकिन 2019 से अधिक है।
      • 34 निम्न मध्यम आय वर्ग की अर्थव्यवस्थाओं में भारत दूसरे स्थान पर है।
      • मध्य और दक्षिणी एशिया की 10 अर्थव्यवस्थाओं में भारत का पहला स्थान है।
      • सरकार ने देश के बेहतर प्रदर्शन के लिये परमाणु ऊर्जा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, जैव प्रौद्योगिकी एवं अंतरिक्ष विभागों को महत्त्वपूर्ण माना है।
  • GII 2021 के अन्य निष्कर्ष:
    • वर्ष 2019 में अनुसंधान और विकास 8.5% की असाधारण दर से बढ़ने के साथ महामारी से पहले नवाचार में निवेश एक सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुँच गया।
    • शीर्ष अनुसंधान और विकास व्यय वाली अर्थव्यवस्थाओं के लिये सरकारी बजट आवंटन में  वर्ष 2020 में निरंतर वृद्धि देखी गई।
    • वर्ष 2020 में दुनिया भर में वैज्ञानिक लेखों के प्रकाशन में 7.6% की वृद्धि हुई।
    • भारत, केन्या, मोल्दोवा गणराज्य और वियतनाम ने लगातार 11वें वर्ष अपने विकास के स्तर के सापेक्ष नवाचार पर बेहतर प्रदर्शन करने का रिकॉर्ड बनाए रखा

नोट:

स्रोत: पीआईबी


जनजातीय क्षेत्रों में मोती की खेती को बढ़ावा: ट्राइफेड

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ

मेन्स के लिये:

मोती की खेती के लाभ और इसो बढ़ावा देने संबंधी उपाय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ट्राइफेड (भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ) ने आदिवासी क्षेत्रों में मोती की खेती को बढ़ावा देने के लिये झारखंड स्थित ‘पूर्ति एग्रोटेक’ के साथ एक समझौता किया है।

भारतीय जनजातीय सहकारी विपणन विकास संघ

  • यह राष्ट्रीय स्तर का एक शीर्ष संगठन है, जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। यह वर्ष 1987 में अस्तित्व में आया था।
  • इसका प्रधान कार्यालय नई दिल्ली में स्थित है और देश में विभिन्न स्थानों पर स्थित 13 क्षेत्रीय कार्यालयों का नेटवर्क है।
  • इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी उत्पादों जैसे- धातु शिल्प, आदिवासी वस्त्र आदि के विपणन व विकास के माध्यम से देश में आदिवासी लोगों का सामाजिक-आर्थिक विकास करना है।
  • यह मुख्य रूप से दो कार्य करता है- लघु वनोपज (MFP) विकास एवं खुदरा विपणन।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • समझौते के तहत विभिन्न ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म के अलावा ‘पूर्ति एग्रोटेक’ द्वारा 141 ट्राइब्स इंडिया आउटलेट्स के माध्यम से मोती बेचे जाएंगे।
    • ‘पूर्ति एग्रोटेक’ के केंद्र को ‘वन धन विकास केंद्र क्लस्टर’ (VDVKC) के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके अलावा झारखंड में मोती की खेती के लिये ऐसे 25 ‘वन धन विकास केंद्र क्लस्टर’ विकसित करने की योजना है।
      • ‘वन धन विकास केंद्र क्लस्टर’ आदिवासियों को कौशल उन्नयन एवं क्षमता निर्माण प्रशिक्षण प्रदान करते हैं और प्राथमिक प्रसंस्करण एवं मूल्यवर्द्धन सुविधाओं की स्थापना करते हैं।
      • ट्राइफेड ने प्राकृतिक 'वन धन' उत्पादों को बढ़ावा देने और बेचने के लिये ई-किराना प्लेटफॉर्म ‘बिग बास्केट’ के साथ एक समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किये हैं।
    • सीपों का प्रजनन एवं मोतियों का विकास व्यवसाय की एक सतत् विधि है और इसे प्रायः उन आदिवासियों द्वारा अभ्यास में लाया जा सकता है, जिनकी आस-पास के जल निकायों तक पहुँच है।
    • यह आने वाले समय में आदिवासियों की आजीविका के लिये गेम-चेंजर साबित होगा।
  • मोती की खेती
    • मोती दुनिया में एकमात्र ऐसा रत्न है, जो किसी जीवित प्राणी से प्राप्त होता है। सीप और मसल्स जैसे मोलस्क इन कीमती रत्नों का उत्पादन करते हैं 
      • पर्ल सीप की खेती दुनिया के कई देशों में सुसंस्कृत मोतियों के उत्पादन के रूप में की जाती है।
    • मीठे पानी के मोती को मसल्स का उपयोग करके खेतों में उगाया जाता है। चूँकि मसल्स ऑर्गेनिक होस्ट होते हैं, इसलिये मोती प्राकृतिक रूप से खारे पानी की सीपों की तुलना में 10 गुना बड़े हो सकते हैं और ताज़े पानी के मोती की चमक भी अधिक होती है।
  • लाभ:
    • किसानों की आय में बढ़ोतरी: भारत में किसानों की आय आमतौर पर जलवायु जैसे बाहरी कारकों पर निर्भर होती है और यह निर्भरता अक्सर उनको नुकसान पहुँचती है, लेकिन दूसरी ओर, मोती की खेती इन कारकों से पूरी तरह से स्वतंत्र है और अधिक लाभ देती है।
    • पर्यावरण के अनुकूल: मोती की खेती पर्यावरण अनुकूल है। यह मछली को रहने के लिये आवास प्रदान करती है जिससे प्रजातियों की विविधता में सुधार होता है।
    • जल शोधन: फिल्टर फीडर सीप (Filter feeder oysters) भी जल को शुद्ध करने का कार्य करते  हैं। एक अकेला सीप एक दिन में 15 गैलन पानी को साफ करता है।
      • यह जल में भारी धातुओं को एक जगह इकट्ठा करता है और हानिकारक प्रदूषकों को भी हटाता है।
  • शुरू की गई पहलें:
    • मोती की खेती करने वाले किसान प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (PMMSY) के तहत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
    • मोती की खेती के दायरे को ध्यान में रखते हुए मत्स्य पालन विभाग ने इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने हेतु नीली क्रांति योजना में मोती पालन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसे एक उप-घटक के रूप में शामिल किया है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सऊदी अरब के विदेश मंत्री की यात्रा

प्रिलिम्स के लिये:

सऊदी अरब की भौगोलिक स्थिति, अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास

मेन्स के लिये:

भारत-सऊदी अरब संबंध का महत्त्व और संबंधित चुनौतियाँ 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय विदेश मंत्री ने सऊदी अरब के विदेश मंत्री से मुलाकात की।

Saudi-Arabia

प्रमुख बिंदु 

  • वार्ता के बारे में:
    • बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग: दोनों ने संयुक्त राष्ट्र, G-20 और खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) जैसे बहुपक्षीय मंचों में द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा की।
      • भारत GCC का सदस्य नहीं है।
    • सामरिक भागीदारी परिषद समझौते का कार्यान्वयन (2019 में हस्ताक्षरित):
      • रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर समन्वय के लिये भारत-सऊदी रणनीतिक साझेदारी परिषद का गठन किया गया था।
        • परिषद का नेतृत्व प्रधानमंत्री और क्राउन प्रिंस मो. हम्माद करेंगे और हर दो साल में इसकी बैठक होगी।
      • ब्रिटेन, फ्राँस और चीन के बाद भारत चौथा देश है जिसके साथ सऊदी अरब ने इस तरह की रणनीतिक साझेदारी की है।
      • सऊदी अरब 2010 में रियाद घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद से भारत का रणनीतिक भागीदार रहा है।
    • अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रीय मुद्दों पर ध्यान: सऊदी अरब, पाकिस्तान और संयुक्त अरब अमीरात के साथ तालिबान शासन का प्रमुख समर्थक था, तालिबान ने अमेरिका के नेतृत्व वाले अंतर्राष्ट्रीय सैनिकों द्वारा हटाए जाने तक वर्ष 1996 से 2001 के मध्य काबुल पर शासन किया था।
    • साझेदारी को मज़बूत करना: इस दौरान व्यापार, निवेश, ऊर्जा, रक्षा, सुरक्षा, संस्कृति, कांसुलर मुद्दों, स्वास्थ्य देखभाल और मानव संसाधन में उनकी साझेदारी को मज़बूत करने के लिये आगे के कदमों पर चर्चा की गई।
  • भारत-सऊदी अरब संबंध:
    • कच्चा तेल आपूर्तिकर्त्ता: सऊदी अरब वर्तमान में भारत को कच्चे तेल का दूसरा सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है (इराक शीर्ष आपूर्तिकर्त्ता है)।
      • सऊदी अरब कर्नाटक के पादुर में सामरिक पेट्रोलियम भंडार (SPR) के निर्माण में भूमिका निभाने का इच्छुक है।
      • सऊदी अरामको, संयुक्त अरब अमीरात के एडनोक और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों द्वारा महाराष्ट्र के रायगढ़ में दुनिया की सबसे बड़ी ग्रीनफील्ड रिफाइनरी की स्थापना के लिये अध्ययन किया जा रहा है
    • द्विपक्षीय व्यापार: सऊदी अरब भारत का चौथा सबसे बड़ा व्यापार भागीदार (चीन, अमेरिका और जापान के बाद) है। वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान द्विपक्षीय व्यापार 33.07 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था।
      • इसी अवधि के दौरान सऊदी अरब से भारत का आयात 26.84 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया और सऊदी अरब को निर्यात 6.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, पिछले वर्ष की तुलना में इसमें 12.18% की वृद्धि दर्ज की गई है।
    • भारतीय प्रवासी: सऊदी अरब में 2.6 मिलियन भारतीय प्रवासी समुदाय सऊदी का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है और उनकी विशेषज्ञता, अनुशासन की भावना, कानून का पालन करने और शांतिप्रिय प्रकृति के कारण 'सबसे पसंदीदा समुदाय' है।
    • सांस्कृतिक संबंध: हज यात्रा भारत और सऊदी अरब के बीच द्विपक्षीय संबंधों का एक अन्य महत्त्वपूर्ण घटक है।
    • नौसेना अभ्यास: हाल ही में भारत और सऊदी अरब ने अल-मोहद अल-हिंदी अभ्यास नामक अपना पहला नौसेना संयुक्त अभ्यास शुरू किया।

आगे की राह 

  • भारत और सऊदी अरब के बीच व्यापार संतुलन सऊदी अरब के पक्ष में अधिक है और भारत का निर्यात मुख्य रूप से कृषि क्षेत्र तक ही सीमित है। व्यापार को अपने पक्ष में संतुलित करने के लिये भारत को अपने उत्पाद आधार को बढ़ाने की आवश्यकता है।
    • द्विपक्षीय सहयोग के अगले चरण के लिये संभावित क्षेत्र बुनियादी ढाँचा, ऊर्जा, कौशल और आईटी हो सकते हैं।
  • इसके अलावा भारत को सऊदी अरब को अफगानिस्तान में तालिबान को नियंत्रित करने के लिये पाकिस्तान पर अपने प्रभाव का प्रयोग करने के लिये राजी करना चाहिये।
    • दोनों अर्थव्यवस्थाओं का संयुक्त सहयोगात्मक प्रयास दक्षिण-पश्चिम एशिया उप-क्षेत्र को रूपांतरित कर देगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस