डेली न्यूज़ (04 Mar, 2021)



ग्लोबल बायो-इंडिया-2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री ने वर्चुअल माध्यम से नई दिल्ली में 'ग्लोबल बायो-इंडिया-2021' के दूसरे संस्करण का उद्घाटन किया।

  • यह राष्ट्रीय स्तर पर और वैश्विक समुदाय के लिये भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की क्षमता और इस क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों को दर्शाता है।
  • केंद्रीय मंत्री ने इस अवसर पर "राष्ट्रीय जैव-प्रौद्योगिकी रणनीति" या ‘नेशनल बायोटेक स्ट्रेटजी’ (National Biotech Strategy) का अनावरण किया और 'ग्लोबल बायो-इंडिया' की आभासी प्रदर्शनी का उद्घाटन भी किया।

प्रमुख बिंदु:

  • संक्षिप्त परिचय:
    • यह जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की एक व्यापक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय निकाय, नियामक निकाय, केंद्रीय और राज्य मंत्रालयों, एसएमई, बड़े उद्योगों, जैव प्रौद्योगिकी, अनुसंधान संस्थानों, निवेशकों तथा स्टार्टअप पारिस्थितिकीतंत्र सहित अन्य हितधारक शामिल हैं।
  • लक्ष्य:
    • इसका लक्ष्य भारत को विश्व में एक उभरते हुए नवोन्मेष केंद्र और जैव विनिर्माण केंद्र के रूप में मान्यता प्रदान करना है।
  • उद्देश्य:
    • जैव- साझेदारी, नीतिगत चर्चा, भारत के लिये कंपनियों के अधिकारियों की योजनाएँ और भारतीय बायोटेक पारिस्थितिक तंत्र को अंतर्राष्ट्रीय पारिस्थितिक तंत्र के साथ जोड़ना तथा नए विचार मूल्यांकन एवं निवेश के लिये मंच तैयार करना।
    • राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों, स्टार्टअप और अनुसंधान संस्थानों के प्रमुख जैव प्रौद्योगिकी नवाचारों, उत्पादों, सेवाओं, प्रौद्योगिकियों की पहचान तथा उनका प्रदर्शन करना।
    • अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों की बड़ी अनुबंध परियोजनाओं के साथ-साथ प्रमुख वैश्विक उद्यमों से भारत में वित्तपोषण को आकर्षित करना।
    • विश्व बैंक की ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस रिपोर्ट 2020 के अनुसार, भारत वर्ष 2014 की 6वीं रैंक के विपरीत वर्तमान में दक्षिण-एशियाई देशों में प्रथम स्थान पर है।
  • आयोजक:

जैव प्रौद्योगिकी:

  • जैव प्रौद्योगिकी वह तकनीक है जो विभिन्न उत्पादों को विकसित करने या बनाने के लिये जैविक प्रणालियों, जीवित जीवों या इसके कुछ हिस्सों का उपयोग करती है।
  • जैव प्रौद्योगिकी के तहत बायोफार्मास्यूटिकल्स का औद्योगिक पैमाने पर उत्पादन करने हेतु आनुवंशिक रूप से संशोधित रोगाणुओं, कवक, पौधों और जानवरों का उपयोग किया जाता है।
  • जैव प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों में रोग की चिकित्सा, निदान, कृषि के लिये आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें, प्रसंस्कृत खाद्य, बायोरेमेडिएशन, अपशिष्ट उपचार और ऊर्जा उत्पादन आदि शामिल हैं।
लाभ चुनौतियाँ
  • उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थों का उत्पादन।
  • कम खरपतवार नाशक और कीटनाशक का उपयोग।
  • अधिक प्रभावी कृषि।
  • उच्च उत्पादन स्तर।
  • प्राकृतिक संसाधनों का कुशल प्रयोग।
  • विटामिन और पोषक तत्त्वों की कमी को दूर करने में सहायक।
  • उत्पादों की शेल्फ लाइफ में वृद्धि।
  • भुखमरी की समस्या से निपटने हेतु उपाय।
  • कठिन/चरम मौसम की स्थिति वाले क्षेत्रों के लिये विशेष रूप से उपयुक्त।
  • महत्त्वपूर्ण औषधियों का बड़े पैमाने पर उत्पादन।
  • रोग संबंधी आनुवंशिक विकारों का अधिक कुशलता से इलाज किया जा सकता है।
  • अन्य देशों पर निर्भरता में कमी।
  • औद्योगिक प्रक्रियाओं की दक्षता में वृद्धि।
  • इसमें जेनेटिक इंजीनियरिंग और जीएमओ (GMOs) का उपयोग शामिल है।
  • GMP के गुण को अनजाने में अन्य पौधों द्वारा अपनाया जा सकता है।
  • मृदा की उर्वरता में गिरावट हो सकती है।
  • क्रॉस प्लांटेशन के कारण संकर प्रजातियों से जुड़ी समस्याएँ।
  • छोटे और सीमांत किसान जो GMO का प्रयोग नहीं करते हैं, वे पिछड़ सकते हैं।
  • स्थनीय बेरोज़गारी के स्तर में वृद्धि।
  • कुछ गरीब देशों की गरीबी में और वृद्धि हो सकती है।
  • अधिक उत्पादन एक बड़ी समस्या बन सकती है।
  • खाद्य निर्यात में गिरावट आ सकती है।
  • जैव-विविधता का ह्रास।
  • GMO से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएँ।
  • भोजन में कृत्रिम स्वाद की मात्रा में अत्यधिक वृद्धि।
  • संक्रामक रोग और महामारी।
  • पादप-रोगों का प्रसार।

भारत का जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र:

  • परिचय:
    • जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र को वर्ष 2024 तक भारत के 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को प्राप्त करने में योगदान देने वाले प्रमुख चालकों में से एक माना जाता है।
    • भारत सरकार की नीतिगत पहल जैसे- मेक इन इंडिया कार्यक्रम का उद्देश्य भारत को एक विश्व स्तरीय जैव प्रौद्योगिकी और जैव-विनिर्माण हब के रूप में विकसित करना है।
    • वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग में लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ भारत विश्व में जैव प्रौद्योगिकी के लिये प्राथमिकता वाले शीर्ष -12 देशों में से एक है।
    • वर्ष 2020 में भारतीय जैव प्रौद्योगिकी उद्योग की हिस्सेदारी 70 बिलियन अमेरिकी डॉलर आंकी गई थी और इसके वर्ष 2025 तक बढ़कर 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर होने का अनुमान है।
  • जैव प्रौद्योगिकी पार्क:
    • जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने आवश्यक अवसंरचना सहायता प्रदान करते हुए जैव प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे अनुसंधानों को उत्पादों और सेवाओं में बदलने के लिये देश भर में जैव प्रौद्योगिकी पार्क/ इन्क्यूबेटरों की स्थापना की है।
    • ये जैव प्रौद्योगिकी पार्क जैव प्रौद्योगिकी के त्वरित वाणिज्यिक विकास हेतु टेक्नोलॉजी इन्क्यूबेशन, प्रौद्योगिकी प्रदर्शन और पायलट संयंत्र अध्ययन के लिये वैज्ञानिकों तथा 'लघु एवं मध्यम आकार के उद्यमों' (SMEs) को सुविधाएँ प्रदान करते हैं।
  • राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति मसौदा 2020-24:

    • संक्षिप्त परिचय:
      • इसके तहत वर्ष 2025 तक जैव प्रौद्योगिकी उद्योग को 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक ले जाने के लिये स्टार्टअप के साथ अधिक जुड़ाव और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल का लाभ उठाने पर ज़ोर दिया गया है।
    • लक्ष्य:
      • शिक्षा और उद्योग को जोड़ते हुए एक जीवंत स्टार्टअप, उद्यमी और औद्योगिक आधार का निर्माण तथा विकास करना।
    • फोकस:
      • स्टार्टअप्स, लघु उद्योग और बड़े उद्योगों के पूर्ण जुड़ाव के साथ अनुसंधान संस्थानों एवं प्रयोगशालाओं (सार्वजनिक और निजी दोनों) में एक मज़बूत बुनियादी अनुसंधान एवं नवाचार संचालित पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण तथा इसका विकास करना।

स्रोत: पीआईबी


स्वच्छता सारथी फेलोशिप: वेस्ट टू वेल्थ मिशन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के कार्यालय ने अपने "वेस्ट टू वेल्थ" (Waste to Wealth) मिशन के अंतर्गत “स्वच्छता सारथी फेलोशिप" (Swachhta Saarthi Fellowship) की शुरुआत की है।

प्रमुख बिंदु

  • स्वच्छता सारथी फेलोशिप के विषय में:
    • उद्देश्य: इस फेलोशिप का उद्देश्य उन छात्रों, स्वयं सहायता समूहों, सफाई कर्मचारियों आदि को प्रोत्साहन प्रदान करना है जो निरंतर अपने प्रयासों से शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में कचरे को कम करने में लगे हुए हैं।
    • इस फेलोशिप के अंतर्गत प्रोत्साहन पुरस्कार को तीन अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया है:
      • श्रेणी-ए: यह श्रेणी उन स्कूली विद्यार्थियों के लिये है जो 9वीं कक्षा से 12वीं कक्षा तक के हैं और सामुदायिक स्तर पर कचरा प्रबंधन के कार्यों में लगे हुए हैं।
      • श्रेणी-बी: इसके अंतर्गत कॉलेज के उन छात्रों को प्रोत्साहन मिलेगा जो स्नातक, परास्नातक तथा शोध छात्र हैं और सामुदायिक स्तर पर कचरा प्रबंधन में लगे हुए हैं।
      • श्रेणी-सी: इसके अंतर्गत स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से समुदाय में कार्य कर रहे उन नागरिकों, नगर निगम कर्मियों और स्वच्छता कर्मियों को प्रोत्साहन मिलेगा जो अपने उत्तरदायित्व से आगे बढ़कर कार्य कर रहे हैं।
  • वेस्ट टू वेल्थ मिशन:
    • यह मिशन अपशिष्ट से ऊर्जा उत्पन्न करने, बेकार सामग्री के पुनर्चक्रण आदि के लिये प्रौद्योगिकियों की पहचान करने के साथ ही उनके विकास और उपलब्धता सुनिश्चित करेगा।
    • “द वेस्ट टू वेल्थ” मिशन प्रधानमंत्री की विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार सलाहकार परिषद (PM-STIAC) के नौ राष्ट्रीय मिशनों में से एक है।
    • यह मिशन स्वच्छ भारत और स्मार्ट शहर जैसी परियोजनाओं में मदद करेगा, साथ ही एक ऐसा वृहद् आर्थिक मॉडल तैयार करेगा जो देश में अपशिष्ट प्रबंधन को कारगर बनाने के साथ-साथ उसे आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी बनाएगा।

ई-वेस्ट टू वेल्थ: नई प्रौद्योगिकी (आईआईटी दिल्ली)

  • भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली ने धन के लिये ई-कचरे का प्रबंधन और पुनर्चक्रण करने हेतु एक शून्य-उत्सर्जन तकनीक विकसित की है।
  • ई-कचरे की नई कार्यप्रणाली मेटल रिकवरी और एनर्जी प्रोडक्शन के लिये "शहरी खदानों" (Urban Mine) का उपयोग करेगी।
    • ई-कचरे से तरल और गैसीय ईंधन प्राप्त करने के लिये इसे पायरोलाइसिस (Pyrolysis) किया जाता है। यह ई-कचरे को गर्म करके अलग-अलग पदार्थों में विभक्त करने की प्रक्रिया है।
    • इन अलग हुए ठोस अवशेषों में 90-95% शुद्ध धातु मिश्रण और कुछ कार्बनयुक्त पदार्थ होते हैं।
    • कार्बनयुक्त पदार्थ को एयरोजेल (Aerogel) में बदला जाता है, जिसका उपयोग तेल रिसाव की सफाई, डाई हटाने, कार्बन डाइऑक्साइड को कैप्चर करने आदि में किया जाता है।
  • यह तकनीक स्मार्ट सिटी मिशन, स्वच्छ भारत अभियान और आत्मनिर्भर भारत जैसी पहलों की ज़रूरतों को पूरा करेगी।

स्रोत: पी.आई.बी.


मैरीटाइम इंडिया समिट 2021

चर्चा में क्यों?

जहाज़रानी मंत्रालय ( Ministry of Ports, Shipping and Waterways) द्वारा मैरीटाइम इंडिया समिट 2021’ का आयोजन किया जा रहा है।

प्रमुख बिंदु:

  • फोकस एरिया:
    • 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्र तटरेखा के साथ बंदरगाह के विकास को आगे बढ़ाना।
    • भारत द्वारा वर्ष 2035 तक (सागरमाला कार्यक्रम के तहत) बंदरगाह परियोजनाओं में 82 बिलियन अमेरीकी डाॅलर का निवेश किया जाएगा, समुद्री क्षेत्र में स्वच्छ नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की हिस्सेदारी को बढ़ावा दिया जाएगा, जलमार्गों को विकसित करने तथा प्रकाश-स्तंभों के आसपास पर्यटन को बढ़ावा दिया जाएगा।
    • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 23 जलमार्गों का परिचालन करना है।
    • भारत का उद्देश्य बुनियादी ढाँचे के उन्नयन पर ध्यान केंद्रित कर आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat) के दृष्टिकोण को मज़बूत करना है।
  • भारतीय बंदरगाहों की वर्तमान स्थिति:
    • भारत के पश्चिम और पूर्वी तट पर 12 प्रमुख बंदरगाह और कई अन्य छोटे बंदरगाह स्थित हैं।
    • प्रमुख बंदरगाहों की क्षमता वर्ष 2014 में 870 मिलियन टन थी जो वर्ष 2021 में बढ़कर 1550 मिलियन टन हो गई है।
    • वर्तमान में भारतीय बंदरगाहों में डेटा के आसान प्रवाह हेतु डायरेक्ट पोर्ट डिलीवरी, डायरेक्ट पोर्ट एंट्री और अपग्रेडेड पोर्ट कम्युनिटी सिस्टम (PCS) उपाय शामिल हैं जो बंदरगाहों पर मालवाहक जहाज़ों के प्रवेश तथा निकासी में लगने वाले समय को कम करने में सहायक हैं।
  • महत्त्व:
    • यह समुद्री क्षेत्र के विकास में मदद करेगा और भारत को विश्व में अग्रणी नीली अर्थव्यवस्था (Blue Economy) के रूप में बढ़ावा देगा।
    • मैरीटाइम इंडिया विज़न 2030 के लिये मार्ग प्रशस्त करेगा।

बंदरगाह विकास हेतु अन्य पहलें:

  • सागर-मंथन: मैरीटाइम इंडिया समिट 2021’ के अवसर पर मर्केंटाइल मरीन डोमेन अवेयरनेस सेंटर की भी शुरुआत की गई।
    • यह समुद्री सुरक्षा, खोज और बचाव क्षमताओं तथा सुरक्षा व समुद्री पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने हेतु एक सूचना प्रणाली है।
  • वर्ष 2022 तक दोनों तटों पर जहाज़ों की मरम्मत करने वाले क्लस्टरों को विकसित किया जाएगा।
  • 'वेल्थ फ्रॉम वेस्ट' (Wealth from Waste) के सृजन हेतु घरेलू जहाज़ रिसाइक्लिंग उद्योग (Ship Recycling Industry) को भी बढ़ावा दिया जाएगा।
    • भारत ने जहाज़ रिसाइक्लिंग अधिनियम, 2019 (Recycling of Ships Act, 2019) को लागू किया है और हॉन्गकॉन्ग अंतर्राष्ट्रीय कन्वेंशन के प्रति सहमति व्यक्त की है।
  • भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक सभी भारतीय बंदरगाहों पर तीन चरणों में कुल ऊर्जा में 60 प्रतिशत से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग बढ़ाना है।

सागरमाला कार्यक्रम:

  • सागरमाला कार्यक्रम का अनुमोदन वर्ष 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा किया गया था, इसका उद्देश्य आधुनिकीकरण, मशीनीकरण और कम्प्यूटरीकरण के माध्यम से 7,516 किलोमीटर लंबी समुद्री तट रेखा के आस-पास बंदरगाहों के इर्द-गिर्द प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विकास को बढ़ावा देना है।
  • इस बंदरगाह-नेतृत्व विकास ढाँचे के तहत सरकार द्वारा कार्गो यातायात को तीन गुना तक बढ़ाए जाने की उम्मीद है।
  • इसमें बंदरगाह टर्मिनलों के साथ रेल/सड़क संपर्क की सुविधा सुनिश्चित करना भी शामिल है, जैसे- बंदरगाहों को अंतिम-मील कनेक्टिविटी प्रदान करना, नए क्षेत्रों में संपर्क बढ़ाना, रेल, अंतर्देशीय जलमार्गों, तटीय एवं सड़क सेवाओं सहित मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी में वृद्धि करना।

स्रोत: पी.आई.बी


कर्नाटक की इंजीनियरिंग अनुसंधान और विकास नीति

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक ने देश की पहली ‘इंजीनियरिंग रिसर्च एंड डेवलपमेंट’ (ER & D) पॉलिसी लॉन्च की है।

प्रमुख बिंदु

  • नीति के तहत केंद्रीय क्षेत्र:
    • नई नीति में एयरोस्पेस और रक्षा; ऑटो, ऑटो घटक और इलेक्ट्रिक वाहन; जैव प्रौद्योगिकी, फार्मा और चिकित्सा उपकरण; अर्द्धचालक, दूरसंचार, इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम डिज़ाइन एंड मैन्युफैक्चरिंग (ESDM) और सॉफ्टवेयर उत्पाद जैसे पाँच प्रमुख केंद्रीय क्षेत्रों की पहचान की गई है।
  • कौशल निर्माण:
    • सरकार कौशल निर्माण में निवेश करेगी, अकादमिक और उद्योग सहयोग में सुधार करेगी और स्थानीय स्तर पर बौद्धिक संपदाओं के निर्माण को भी प्रोत्साहित करेगी।
  • सब्सिडी:
    • इस नीति के तहत बंगलूरू नगरीय ज़िले के अलावा ‘मल्टी-नेशनल कॉर्पोरेशन’ (MNC) संस्थाओं को 2 करोड़ रुपए तक के किराए की 50% प्रतिपूर्ति की पेशकश की जाएगी।
    • इस नीति के तहत बंगलूरू के अतिरिक्त राज्य में निवेश के लिये 20% तक (2 करोड़ रुपए) की सब्सिडी भी प्रदान की जाएगी।
    • इस सब्सिडी का आकलन ‘केस-टू-केस’ आधार पर कंपनियों द्वारा किये जा रहे निवेश और उनके द्वारा उत्पन्न रोज़गार के आधार पर किया जाएगा ।
  • नवाचार:
    • नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकार विभिन्न परियोजनाओं हेतु कॉलेजों को धन मुहैया कराएगी और कॉलेजों एवं विश्वविद्यालयों में उद्योग-उन्मुख पाठ्यक्रम विकसित करने की लागत भी वहन करेगी।
  • लक्ष्य:
    • इस क्षेत्र में उत्पन्न होने वाले अवसरों का उपयोग करने के लिये राज्य को तैयार करना।
    • कर्नाटक को ‘स्किल्ड नॉलेज कैपिटल’ बनाने के लिये इसका योगदान बढ़ाना, अधिक बौद्धिक संपदा विकसित करना।
    • बहुराष्ट्रीय कंपनियों को आकर्षित करने के लिये राज्य में नए ER & D केंद्र स्थापित करना या सब्सिडी के माध्यम से अपनी मौजूदा सुविधाओं का विस्तार करना तथा वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों को बाज़ार में लाकर इंजीनियरिंग प्रतिभाओं और अवसरों के बीच व्याप्त अंतराल को समाप्त करना।
  • आवश्यकता:
    • ER & D क्षेत्र देश में 12.8% की एक चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) के साथ सबसे तेज़ी से वृद्धि करने वाला उद्योग है।
      • चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) एक वर्ष से अधिक समय की निर्दिष्ट अवधि में निवेश की औसत वार्षिक वृद्धि दर है। CAGR निवेशक को बताता है कि इस अवधि के दौरान हर वर्ष आपको कितना रिटर्न मिलता है। सामान्य शब्दों में कहें तो यह एक कंपनी की वृद्धि दर है जो वार्षिक आधार पर व्यक्त की जाती है। CAGR की गणना में कंपाउडिंग के प्रभाव को भी ध्यान में रखा जाता है।
      • वैश्विक इंजीनियरिंग अनुसंधान और विकास उद्योग के वर्ष 2025 तक 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • भारत में ER & D के लिये लगभग 900 वैश्विक क्षमता केंद्र हैं और कर्नाटक का उनमें एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है।
    • राज्य सरकार ने अनुमान लगाया है कि नीति में ER & D क्षेत्र में पाँच वर्षों में 50,000 से अधिक नौकरियाँ सृजित करने की क्षमता है।
      • शीर्ष उद्योग निकाय ‘नैसकॉम’ के अनुसार, ER & D क्षेत्र में अगले पाँच वर्षों में देश में 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर का उद्योग बनने की क्षमता है।
    • डिजिटल इंजीनियरिंग और उद्योग 4.0 के बीच संबंध निम्न रूप में परिलक्षित होता है:
      • प्रक्रियाओं और आपूर्ति श्रंखलाओं में डिजिटल विनिर्माण संचालन एवं स्वचालन;
      • उत्पाद के रूप में एक सेवा व्यवसाय मॉडल, ग्राहकों को वांछित परिणाम के लिये भुगतान करने की अनुमति देता है ( उपकरणों के बजाय);
      • एडिटिव मैन्युफैक्चरिंग, जो जटिल कार्यों में लगी उत्पादन प्रक्रियाओं को फिर से संगठित कर सकता है और उनके कार्यात्मक प्रदर्शन को बढ़ा सकता है।

स्रोत- द हिंदू


मर्चेंट डिजिटाइज़ेशन सम्मेलन- 2021

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत सरकार, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) और संयुक्त राष्ट्र संघ के ‘बेटर दैन कैश अलायंस’ (UN-based Better Than Cash Alliance) द्वारा संयुक्त रूप से ‘मर्चेंट डिजिटाइज़ेशन सम्मेलन 2021: आत्मनिर्भर भारत की ओर बढ़ना’ (Merchant Digitization Summit 2021: Towards Atmanirbhar (Self Reliance) Bharat) की मेज़बानी की गई।

  • इस सम्मेलन से सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के अग्रणी लोगों को साथ आने का मौका मिला है जो पूर्वोत्तर क्षेत्र, हिमालय क्षेत्र और आकांक्षी ज़िलों के कारोबारियों को जवाबदेह डिजटलीकरण (Responsible Digitization) को बढ़ावा देने हेतु प्रेरित करेगा।

प्रमुख बिंदु:

हाईलाइट्स :

  • उन महिला व्यापारियों को सशक्त बनाना जो अपने समुदायों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, डिजिटल इंडिया मिशन को प्राप्त करने में मदद करना इसकी प्राथमिकताओं में से एक है।
  • राष्ट्रीय भाषा अनुवाद अभियान (National Language Translation Mission) के तहत इसके प्रति विश्वास बढ़ाने हेतु डिजिटल भुगतान सूचनाओं के प्रसार और निजता नियमों आदि को स्थानीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जा सकता है।
  • अंतिम पायदान पर मौजूद व्यापारियों हेतु कनेक्टिविटी, स्मार्टफोन तक उनकी पहुंँच और डिज़िटल साक्षरता की चुनौतियों को दूर करने पर भी सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई।  
  • आत्मनिर्भर भारत योजना के माध्यम से ‘मेक इन इंडिया’ पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हुए जवाबदेह डिजिटलीकरण द्वारा ग्रामीण नेटवर्क में स्व-सहायता समूह और समुदाय के स्तर पर लोगों को शामिल करना।
    • इससे लाखों व्यापारियों को औपचारिक अर्थव्यवस्था में शामिल करने हेतु  स्थानीय स्तर पर डिजिटल पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण किया जा सकेगा  ताकि वे आसानी से कर्ज़ लेकर अपने व्यापार का विस्तार कर सकें।
  • भारत ने प्रतिमाह औसतन 2-3 बिलियन डिजिटल लेन-देन करने के बाद अब प्रतिदिन 1 बिलियन डिजिटल लेने-देन का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है। 
    • इसके तहत ग्राहक और कारोबारी के बीच हर माह 10-12 अरब डिजिटल लेन-देन का हस्तांतरण भारत की डिजिटल अर्थव्यवस्था में योगदान देगा।

हाल की पहलें: 

  • डिजिटल भुगतान सूचकांक।
  • 'भुगतान अवसंरचना विकास कोष' योजना। 
  • मर्चेंट डिस्काउंट रेट में छूट।

बेटर दैन कैश अलायंस (BTCA):

  • BTCA के बारे में: BTCA सरकारों, कंपनियों और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के बीच एक साझेदारी है जिसके तहत सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु डिजिटल भुगतानों को तीव्रता के साथ किया जाता है।
  •  स्थापना: इसे यूनाइटेड नेशंस कैपिटल डेवलपमेंट फंड, यूनाइटेड स्टेट्स एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट, बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन, सिटी ग्रुप, फोर्ड फाउंडेशन, ओमिडयार नेटवर्क तथा  वीज़ा इंक द्वारा लॉन्च किया गया था।
    • इसकी मेज़बानी संयुक्त राष्ट्र पूंजी विकास कोष (UNCDF) के न्यूयॉर्क, बोगोटा, डकार, ढाका, किगाली, लंदन, मनीला और नई दिल्ली कार्यालयों द्वारा की जाती है।
    • इसका गठन वर्ष 2012 में किया गया था।
  • सदस्य: इस एलायंस में 75 सदस्य हैं जो दक्षता, पारदर्शिता, महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से भुगतानों को डिजिटल बनाने हेतु प्रतिबद्ध हैं तथा उन अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण में मदद करते हैं जो डिजिटल और समावेशी हैं।
    • इसके सदस्य नकदी के भौतिक लेन-देन को समाप्त नहीं करना चाहते हैं, बल्कि एक ज़िम्मेदार डिजिटल भुगतान विकल्प प्रदान करना चाहते हैं जो “नकदी से बेहतर” है।
    • वित्तीय समावेशन हेतु भुगतान को डिजिटाइज़ करने तथा विश्व के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन कार्यक्रम, प्रधानमंत्री जन धन योजना की सफलता की कहानियों को साझा करने के उद्देश्य से भारत वर्ष 2015 में बेटर दैन कैश अलायंस का सदस्य बन गया।

भारतीय वाणिज्य और उद्योग महासंघ (फिक्की) 

  • फिक्की एक गैर-सरकारी, गैर-लाभकारी संस्था है जिसकी स्थापना वर्ष 1927 में की गई थी।
  • यह भारत का सबसे बड़ा और सबसे पुराना शीर्ष व्यापारिक संगठन है जिसका इतिहास भारत के स्वतंत्रता संग्राम से निकटता से जुड़ा है, इसका औद्योगीकरण तथा  उद्भव सर्वाधिक तीव्र गति से वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में से एक है।

स्रोत: पी.आई.बी.


सूखाग्रस्त मेडागास्कर को मानवीय सहायता

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने मेडागास्कर को 1,000 मीट्रिक टन चावल और 1,00,000 हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (Hydroxychloroquine- HCQ) की गोलियों की खेप भेजी है, ताकि गंभीर सूखे से उत्पन्न मानवीय संकट से निपटने में उसकी सहायता की जा सके।

प्रमुख बिंदु

हाल में की गई सहायता:

  • यह मानवीय सहायता भारतीय नौसेना के जहाज़ जलश्वा (Jalashwa) के माध्यम से भेजी गई है।
  • आईएनएस जलश्वा से भारतीय नौसेना की एक प्रशिक्षण टीम भी भेजी जाएगी, जिसे मालागासी स्पेशल फोर्स के निर्माण और प्रशिक्षण के लिये मेडागास्कर में तैनात किया जाएगा।
  • आईएनएस जलश्वा कोमोरोस गणराज्य के पोर्ट अंजौन पर जाएगा जहाँ 1,000 मीट्रिक टन भारतीय चावल की खेप उतारी जाएगी।

मेडागास्कर की पूर्व में सहायता:

  • कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय नौसेना के जहाज़ आईएनएस केसरी द्वारा "मिशन सागर" (Mission Sagar) पहल के अंतर्गत मेडागास्कर सहित अन्य देशों को खाद्य पदार्थों और चिकित्सा सहायता उपलब्ध कराई गई थी।
  • आईएनएस शार्दूल ने मार्च 2020 में अंटसिरानाना (Antsiranana) बंदरगाह का दौरा किया और मेडागास्कर के उत्तरी क्षेत्र में भारी बाढ़ से निपटने के लिये उसे मानवीय सहायता तथा आपदा राहत (Humanitarian Assistance and Disaster Relief) सहायता के रूप में 600 टन चावल उपलब्ध कराया गया।
  • भारत पहला देश था जिसने डायने चक्रवात (Cyclone Diane) के समय आईएनएस ऐरावत द्वारा ऑपरेशन वेनिला (Operation Vanilla) के तहत मेडागास्कर की त्वरित सहायता की। 
  • भारत सक्रिय रूप से मालागासी के लोगों के क्षमता निर्माण के साथ-साथ अन्य उच्च कुशल/तकनीकी क्षेत्रों में उन्हें प्रशिक्षित करने में लगा हुआ है, जिसके लिये भारतीय तकनीकी तथा आर्थिक सहयोग (Indian Technical and Economic Cooperation) एवं भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन (India Africa Forum Summit) के माध्यम से पाठ्यक्रम प्रस्तुत किये जाते हैं।

महत्त्व:

  • मेडागास्कर और कोमोरोस जैसे मैत्रीपूर्ण देशों में क्षमता निर्माण के लिये खाद्य सहायता तथा क्षमता निर्माण जैसी पहल मिशन सागर के अनुरूप है।
  • यह भारत की भूमिका को हिंद महासागर क्षेत्र में एक सुरक्षा प्रदाता के रूप में दर्शाता है।

हाल के विकास:

  • भारत को हिंद महासागर आयोग (Indian Ocean Commission) में पर्यवेक्षक का दर्जा प्राप्त है।
    • इस दर्जे का सामरिक महत्त्व है क्योंकि यह आयोग पश्चिमी/अफ्रीकी हिंद महासागर का एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्रीय संस्थान है।
    • हिंद महासागर आयोग में कोमोरोस, मेडागास्कर, मॉरीशस, रियूनियन (फ्राँस के नियंत्रण में) और सेशल्स शामिल हैं।
  • भारत ने संस्थागत, आर्थिक और सहकारी वातावरण में बातचीत को बढ़ावा देने के लिये हिंद महासागर क्षेत्र (Indian Ocean Region) संगोष्ठी की मेज़बानी की, इससे हिंद महासागर क्षेत्र में शांति, स्थिरता तथा समृद्धि को बढ़ावा मिलेगा।
    • मेडागास्कर के रक्षा मंत्री ने भी इस संगोष्ठी में भाग लिया था।

Madagascar

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


अरोमा मिशन के तहत ‘बैंगनी क्रांति’

चर्चा में क्यों?

जम्मू में डोडा ज़िले के गाँवों के लगभग 500 किसानों ने मक्का की खेती से लैवेंडर की ओर स्थानांतरण के बाद से अपनी आय में चौगुनी वृद्धि दर्ज की है, जिसे ‘बैंगनी क्रांति’ के नाम से जाना जा रहा है। यह अरोमा मिशन के तहत की गई पहल के कारण संभव हो पाया है।

प्रमुख बिंदु

बैंगनी क्रांति

  • परिचय
    • पहली बार लैवेंडर की खेती कर रहे किसानों को इसके मुफ्त पौधे दिये गए थे और जो लोग पूर्व में लैवेंडर की खेती कर चुके थे, उनसे इसके लिये 5-6 रुपए प्रति एकड़ शुल्क लिया गया था।
  • उद्देश्य
    • आयातित सुगंधित किस्मों को घरेलू किस्मों से प्रतिस्थापित करके घरेलू सुगंधित फसल आधारित कृषि अर्थव्यवस्था का निर्माण करना।
  • उत्पाद
    • इसका मुख्य उत्पाद लैवेंडर तेल है, जो कम-से-कम 10,000 रुपए प्रति लीटर  बिकता है।
    • लैवेंडर इत्र का उपयोग अगरबत्ती बनाने के लिये किया जाता है।
    • हाइड्रोसोल, जो फूलों से आसवन के बाद बनता है, साबुन और फ्रेशनर बनाने के लिये उपयोग किया जाता है।
  • इसमें शामिल प्रमुख एजेंसियाँ
    • काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन, जम्मू (IIIM-J), ये दोनों निकाय मुख्य रूप से अरोमा मिशन के तहत ‘बैंगनी क्रांति’ को सफल बनाने के लिये उत्तरदायी हैं।
  • महत्त्व
    • वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की सरकार की नीति के अनुरूप होने के अलावा लैवेंडर की खेती ने ज़िले की महिला किसानों को रोज़गार प्रदान करने में मदद की है और क्षेत्र में समावेशी विकास को गति दी है।

अरोमा मिशन

  • उद्देश्य: अरोमा मिशन, अरोमा (सुगंध) उद्योग एवं ग्रामीण रोज़गार के विकास को बढ़ावा देने के लिये कृषि, प्रसंस्करण और उत्पाद विकास क्षेत्रों में वांछित हस्तक्षेप के माध्यम से अरोमा (सुगंध) क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन लाना है।
    • यह मिशन ऐसे आवश्यक तेलों के लिये सुगंधित फसलों की खेती को बढ़ावा देगा, जिनकी अरोमा (सुगंध) उद्योग में काफी अधिक मांग है।
    • यह मिशन भारतीय किसानों और अरोमा (सुगंध) उद्योग को ‘मेन्थॉलिक मिंट’ जैसे कुछ अन्य आवश्यक तेलों के उत्पादन और निर्यात में वैश्विक प्रतिनिधि बनने में मदद करेगा। 
    • इसका उद्देश्य उच्च लाभ, बंजर भूमि के उपयोग और जंगली एवं पालतू जानवरों से फसलों की रक्षा करके किसानों को समृद्ध बनाना है।
  • नोडल एजेंसी
    • लखनऊ स्थित CSIR- सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिसिनल एंड एरोमेटिक प्लांट्स (CIMAP) को इस मिशन की नोडल एजेंसी बनाया गया है। पालमपुर स्थित CSIR- इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नोलॉजी (IHBT) और जम्मू स्थित CSIR- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंटीग्रेटिव मेडिसिन (IIIM) भी इसमें शामिल हैं।
  • कवरेज
    • इस मिशन के तहत सभी वैज्ञानिक हस्तक्षेप विदर्भ, बुंदेलखंड, गुजरात, मराठवाड़ा, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, ओडिशा और अन्य राज्यों के ऐसे सभी क्षेत्रों में लागू होंगे, जहाँ बार-बार मौसम की चरम घटनाएँ दर्ज की जाती हैं और जहाँ आत्महत्याओं की दर अधिकतम है।
    • सुगंधित पौधों में लैवेंडर, गुलाब, मुश्क बाला (इंडियन वेलेरियन) आदि शामिल हैं।
  • परिणाम
    • अतिरिक्त 5500 हेक्टेयर क्षेत्र को सुगंधित नकदी फसलों की खेती के तहत लाना, इसके तहत विशेषतौर पर वर्षा आधारित/निम्नीकृत भूमि को लक्षित किया जाएगा।
    • पूरे देश में आसवन और मूल्य वृद्धि के लिये किसानों/उत्पादकों को तकनीकी एवं अवसंरचनात्मक सहायता प्रदान करना।
    • किसानों/उत्पादकों के लिये पारिश्रमिक कीमतें सुनिश्चित करने में प्रभावी। 
    • बायबैक (पुनर्खरीद) तंत्र उपलब्ध कराना।
    • तेलों एवं अरोमा सामग्री का मूल्य-संवर्द्धन सुनिश्चित करना ताकि वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था में उनका एकीकरण सुनिश्चित किया जा सके।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


NDC संश्लेषण रिपोर्ट: UNFCCC

चर्चा में क्यों?

जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (UNFCCC) ने अपनी राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान  (Nationally Determined Contributions- NDC) संश्लेषण रिपोर्ट में सदी के अंत तक वैश्विक तापमान वृद्धि को 2° C (आदर्श रूप से 1.5 ° C) रखने हेतु पेरिस समझौते के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये देशों द्वारा अधिक महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्य योजनाओं को अपनाने का आह्वान किया गया है।

  • 1  से 12 नवंबर, 2021 तक ग्लासगो (यूनाइटेड किंगडम) में आयोजित होने वाले UNFCCC के पक्षकारों के 26वें सम्मेलन (COP26) से पहले इस रिपोर्ट को प्रस्तुत करने की मांग की गई थी। 
  • NDC पेरिस समझौते का मुख्य केंद्रबिंदु  है। राष्ट्रीय स्तर पर उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों में कमी लाने हेतु प्रत्येक देश द्वारा प्रयास किया जा रहा है। NDC में प्रत्येक देश द्वारा घरेलू परिस्थितियों और क्षमताओं को ध्यान में रखते हुए अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को प्रदर्शित किया जाता है।

प्रमुख बिंदु:

NDC के बारे में:

  • NDC संश्लेषण रिपोर्ट में 31 दिसंबर, 2020 तक की प्रस्तुतियाँ शामिल की गई हैं जिसमें 75 पार्टियों के नए या अपडेटेड NDC शामिल किये गए हैं, जो लगभग 30% वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन का प्रतिनिधित्व करते हैं।

रिपोर्ट का परिणाम:

  • बेहतर प्रदर्शन करने वाले देश: 
    • विश्व के 18 सबसे बड़े उत्सर्जक क्षेत्रों में से केवल यूनाइटेड किंगडम और यूरोपीय संघ ही ऐसे क्षेत्र हैं जिन्होंने अपने ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) में कमी की प्रतिबद्धता को काफी बढ़ाया है। 
  • निम्न प्रदर्शन करने वाले देश: 
    • विश्व के 16 सबसे बड़े उत्सर्जकों द्वारा अपनी प्रतिबद्धता के अनुसार उत्सर्जन में कमी नहीं की गई है।
  • अनुकूलन कार्य और आर्थिक विविधता:
    • अधिकांश देशों द्वारा अनुकूलन कार्रवाई और आर्थिक विविधीकरण योजनाओं के सह-लाभ पर रिपोर्ट दी गई है 
    • शमन क्रियाओं के साथ अनुकूलन क्रियाओं और आर्थिक विविधीकरण की योजनाओं में जलवायु-स्मार्ट कृषि, तटीय पारिस्थितिक तंत्रों को अपनाना, ऊर्जा उत्पादन में नवीकरणीय स्रोतों की हिस्सेदारी को बढ़ाना, कार्बन डाइऑक्साइड भंडारण, परिवहन क्षेत्र में ईंधन की कीमतों में सुधार करना तथा बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन हेतु एक चक्रीय अर्थव्यवस्था को अपनाना शामिल है। 
  • नवीनीकरण की आवश्यकता: 
    • जलवायु महत्त्वाकांक्षा (Ambition) का मौजूदा स्तर पेरिस समझौते के  लक्ष्यों को पूरा करने से काफी दूर है। 
    • जबकि अधिकांश देशों ने उत्सर्जन को कम करने हेतु अपनी व्यक्तिगत जलवायु परिवर्तन संबंधी महत्त्वाकांक्षा के स्तर में वृद्धि की है, उनका संयुक्त प्रभाव वर्ष 2010 के स्तरों की तुलना में वर्ष 2030 तक केवल 1% की कमी करने में मदद करेगा।
      • हालाँकि, जलवायु परिवर्तन के  इंटरगवर्नमेंटल पैनल के अनुसार, 1.5°C के लक्ष्य को पूरा करने हेतु वैश्विक उत्सर्जन को 45% तक कम करने की आवश्यकता है।

UNFCCC

  • UNFCCC के बारे में:
    • UNFCCC का आशय ‘जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क’ से है।
    • UNFCCC सचिवालय (यूएन क्लाइमेट चेंज) संयुक्त राष्ट्र की एक इकाई है जो जलवायु परिवर्तन के खतरे पर वैश्विक प्रतिक्रिया का समर्थन करती है। 
    • कन्वेंशन के पास सार्वभौमिक सदस्यता (197 पार्टियाँ) है तथा यह वर्ष 2015 के पेरिस समझौते की मूल संधि (Parent Treaty) है। UNFCCC वर्ष 1997 के क्योटो प्रोटोकॉल की मूल संधि भी है।
  • सचिवालय: 
    • UNFCCC का सचिवालय जर्मनी के बॉन में स्थित है।
  • उद्देश्य: 
    • UNFCCC के अंतर्गत शामिल तीन समझौतों का अंतिम उद्देश्य वातावरण में ग्रीनहाउस गैसों की सांद्रता को एक स्तर पर स्थिर करना है। यह एक निश्चित समय सीमा में जलवायु प्रणाली के साथ उत्पन्न खतरनाक मानव हस्तक्षेप को रोकने में सहायक होगा, जो पारिस्थितिकी प्रणालियों को स्वाभाविक रूप से अनुकूल बनाने की अनुमति देता है और स्थायी विकास को सक्षम बनाता है।

पेरिस समझौता

परिचय

  • पेरिस समझौता (जिसे COP21 के रूप में भी जाना जाता है) एक ऐतिहासिक पर्यावरणीय समझौता है, जिसे वर्ष 2015 में जलवायु परिवर्तन और इसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये अपनाया गया था।
  • इसने क्योटो प्रोटोकॉल का स्थान लिया, जो कि जलवायु परिवर्तन से निपटने संबंधी प्रारंभिक समझौतों में से एक था।

उद्देश्य: इस समझौते का उद्देश्य वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को काफी हद तक कम करना है, ताकि इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तर (Pre-Industrial level) से 2 डिग्री सेल्सियस कम रखा जा सके। इसके साथ ही आगे चलकर तापमान वृद्धि को और 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। 

  • जलवायु परिवर्तन जैसे- चरम मौसमी घटनाओं के कारण संवेदनशील देशों को होने वाले वित्तीय घाटे को संबोधित करना।
  • उन देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना जो कम संपन्न हैं और तुलनात्मक रूप से अधिक असुरक्षित हैं, ताकि उन्हें स्वच्छ ऊर्जा के लिये जलवायु परिवर्तन के अनुकूल बनाने में सहायता की जा सके।
  • उत्सर्जन को कम करने के लिये व्यापक पैमाने पर निवेश की आवश्यकता होती है। हालाँकि समझौते का यह हिस्सा विकासशील देशों पर कानूनी दायित्त्व नहीं डालता है।

‘राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान’ (INDC): सम्मेलन की शुरुआत से पूर्व 180 से अधिक देशों ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के लिये प्रतिज्ञा की थी।

  • INDCs को समझौते के तहत मान्यता दी गई है, लेकिन यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है।
  • भारत ने भी जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिये समझौते के तहत लक्ष्यों को पूरा करने हेतु अपनी INDCs प्रतिबद्धताओं की पुष्टि की है।

CMA:

  • यह पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले और उसकी पुष्टि करने वाले देशों का एक समूह है जो पेरिस समझौते के कार्यान्वयन की देखरेख करता है तथा इसके प्रभावी कार्यान्वयन को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है।
  • पेरिस समझौते में शामिल सभी देशों को इस समूह में प्रतिनिधित्त्व मिलता है और जो इसमें शामिल नहीं हैं उन्हें पर्यवेक्षक का दर्जा दिया जाता है।

भारत के INDCs 

  • उत्सर्जन तीव्रता को जीडीपी के लगभग एक-तिहाई तक कम करना।
  • बिजली की कुल स्थापित क्षमता का 40% गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से प्राप्त करना।
  • 2030 तक भारत द्वारा वन और वृक्ष आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड के अतिरिक्त कार्बन सिंक (वायुमंडल से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करने का एक साधन) के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त की गई।

आगे की राह

  • प्रस्तुत रिपोर्ट में शामिल राष्ट्रों को अपने NDC की समीक्षा करने तथा उसके नवीनीकरण हेतु और अधिक समय मिलेगा। इसे नवंबर 2021 में होने वाले COP26 से पहले अंतिम संश्लेषण रिपोर्ट में संकलित किया जाएगा।
  • जहाँ भी आवश्यक हो पर्याप्त सहायता के माध्यम से जलवायु प्रयासों को सक्षम एवं सुगम बनाया जाना चाहिये। यह एक महत्त्वपूर्ण विषय है, जिसे उच्च वरीयता और तात्कालिकता के साथ संबोधित किया जाना आवश्यक है, क्योंकि पर्याप्त संसाधनों तथा प्रौद्योगिकी के अभाव में निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना संभव नहीं है। 

स्रोत: डाउन टू अर्थ