उत्तराखंड में FM रेडियो स्टेशन लॉन्च | उत्तराखंड | 26 May 2025
चर्चा में क्यों?
भारतीय सेना ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ ज़िले में 'पंचशूल पल्स' नाम से अपना पहला FM रेडियो स्टेशन लॉन्च किया है। इसका उद्घाटन सेना की मध्य कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग (GOC) ने किया।
मुख्य बिंदु
- रेडियो स्टेशन के बारे में:
- भारतीय सेना की स्थानीय पंचशूल ब्रिगेड के साथ इसके जुड़ाव को दर्शाने के लिये इस स्टेशन का नाम 'पंचशूल पल्स' रखा गया है।
- इसे ऑपरेशन सद्भावना के एक भाग के रूप में संचालित किया जाता है, जो सामरिक रूप से महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में नागरिकों के साथ रचनात्मक संबंध बनाने के लिये सेना की एक दीर्घकालिक पहल है।
- ऑपरेशन सद्भावना 1990 के दशक में भारतीय सेना द्वारा जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में आतंकवाद से प्रभावित समुदायों की सहायता के लिये शुरू की गई एक मानवीय पहल है।
- यह वाइब्रेंट विलेज कार्यक्रम के अनुरूप है, जो भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास, संपर्क और जागरूकता पर ज़ोर देता है।
- यह स्टेशन 88.4 FM आवृत्ति पर प्रसारित होता है, जिसे 12 किमी. के दायरे तक सुना जा सकता है।
- पहल के उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक आदान-प्रदान के लिये एक मंच के रूप में कार्य करके नागरिक-सैन्य सहयोग को बढ़ाना है।
- यह स्टेशन सीमावर्ती क्षेत्र के व्यक्तियों के योगदान और बलिदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने का भी प्रयास करता है।
- रेडियो कार्यक्रम की मुख्य विशेषताएँ:
- कार्यक्रम में स्थानीय इतिहास, संस्कृति और सामाजिक प्रथाओं पर विशेष ज़ोर दिया जाता है।
- इसमें कृषि और बागवानी पर सामग्री शामिल है, जो इस क्षेत्र में प्रमुख व्यवसाय हैं।
- इस स्टेशन पर उस क्षेत्र के शहीदों और बहादुर सैनिकों की उपलब्धियों का उत्सव मनाने वाली कहानियाँ प्रसारित की गईं।
- इसमें स्थानीय खिलाड़ियों तथा सामाजिक व सांस्कृतिक क्षेत्रों में कार्यरत व्यक्तियों की उपलब्धियों को भी उजागर किया गया है।
वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम (VVP)
- कार्यक्रम के बारे में: इस कार्यक्रम को 15 फरवरी 2023 को अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और लद्दाख (UT) सहित राज्यों के 46 ब्लॉकों में 19 ज़िलों में भारत की उत्तरी सीमा पर गाँवों के समग्र विकास के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में अनुमोदित किया गया था।
- लक्षित क्षेत्र: पर्यटन, सांस्कृतिक संवर्द्धन, कौशल विकास, उद्यमिता के साथ-साथ कृषि, बागवानी और औषधीय पौधों और जड़ी-बूटियों की खेती के माध्यम से आजीविका सृजन को बढ़ावा दिया जाएगा।
- यह कार्यक्रम सड़क संपर्क, आवास, नवीकरणीय ऊर्जा आदि के माध्यम से बुनियादी ढाँचे में सुधार के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, स्वच्छता और सामुदायिक केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करेगा।
- उद्देश्य: बेहतर बुनियादी ढाँचा और आजीविका के अवसर प्रदान करके, सीमा सुरक्षा और सतत् स्थानीय विकास को बढ़ाकर निवासियों को सीमावर्ती गाँवों में रहने के लिये प्रोत्साहित करना।
- यह कार्यक्रम सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम (BADP) का पूरक है, जो 16 राज्यों और 2 केंद्रशासित प्रदेशों में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के 0-10 किमी. के भीतर सीमावर्ती गाँवों में बुनियादी ढाँचे की कमी को पूरा करता है।
- वाइब्रेंट विलेजेज प्रोग्राम-II (VVP-II):
- VVP- II को वित्त वर्ष 2024-25 से 2028-29 के लिये ₹6,839 करोड़ के बजट के साथ अंतर्राष्ट्रीय भूमि सीमाओं (उत्तरी सीमा को छोड़कर) के साथ गाँवों को विकसित करने के लिये लॉन्च किया गया है।
हेमकुंड साहिब | उत्तराखंड | 26 May 2025
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड के चमोली ज़िले में स्थित सिखों का पवित्र तीर्थस्थल हेमकुंड साहिब श्रद्धालुओं के लिये खोल दिया गया है, जिसके साथ ही वार्षिक तीर्थयात्रा का शुभारंभ हो गया है।
मुख्य बिंदु
- हेमकुंड साहिब के बारे में:
- हेमकुंड साहिब समुद्र तल से लगभग 4,329 मीटर (14,200 फीट) की ऊँचाई पर स्थित है।
- यह हेमकुंड झील के तट पर, बर्फ से ढकी हिमालय की चोटियों से घिरा हुआ है।
- हिमानी जल और अल्पाइन घास के मैदानों से युक्त सुंदर परिदृश्य, शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक वातावरण को और अधिक समृद्ध करता है।
- फूलों की घाटी से होते हुए जाने वाले ट्रैकिंग मार्ग इसे एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाते हैं।
- हेमकुंड झील से हिमगंगा नामक एक छोटी धारा बहती है, जो क्षेत्र की पारिस्थितिक समृद्धि में वृद्धि करती है।
- आध्यात्मिक महत्त्व:
- हेमकुंड साहिब विश्व में सर्वाधिक पूजनीय सिख तीर्थस्थलों में से एक है।
- गुरु ग्रंथ साहिब के अनुसार, दसवें सिख गुरु, गुरु गोबिंद सिंह ने अपने प्रारंभिक जीवन में हेमकुंड झील पर गहन तप किया था।
- यह स्थल भक्तों के लिये दिव्य प्रतिबिंब और पवित्रता का प्रतीक है।
गुरु गोबिंद सिंह
- प्रारंभिक जीवन:
- 22 दिसंबर 1666 को बिहार के पटना में जन्मे गोबिंद राय सोढ़ी सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे।
- ये नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर के पुत्र थे।
- गुरु पद ग्रहण:
- वर्ष 1675 में अपने पिता की शहादत के समय सिर्फ नौ वर्ष की आयु में उन्हें औपचारिक रूप से गुरु पद पर आसीन किया गया।
- उन्होंने आध्यात्मिक नेतृत्व को सैन्य अनुशासन और साहित्यिक अभिव्यक्ति के साथ जोड़ा।
- खालसा की स्थापना:
- वर्ष 1699 में बैसाखी के दिन, उन्होंने खालसा पंथ की स्थापना की, जो संत-सैनिकों का एक सैन्य और आध्यात्मिक संगठन था।
- उन्होंने पंच प्यारे (पाँच प्रिय जन) को दीक्षा दी, 'खंडे दी पाहुल' (अमृत संचार) की परंपरा शुरू की और पाँच ककार अनिवार्य किया: कंघा (कंघी), केश (बिना कटे बाल), कड़ा (स्टील कंगन), कृपाण (तलवार)और कच्छा (विशेष प्रकार का वस्त्र)।
- उन्होंने अपना नाम गोबिंद राय से बदलकर गोबिंद सिंह रख लिया।
- सैन्य संघर्ष और बलिदान:
- मुगल सेनाओं और पहाड़ी राजाओं के खिलाफ कई लड़ाइयाँ लड़ीं, जिनमें भंगानी (1688), नादौन (1691) और मुक्तसर (1705) शामिल हैं।
- मुगलों के अत्याचारों के कारण अपने चारों पुत्रों और माता गुजरी को खो दिया, लेकिन उनका मनोबल अडिग रहा।
- अंतिम दिन और विरासत:
- वर्ष 1708 में सरहिंद के नवाब वज़ीर खान द्वारा भेजे गए हत्यारों के माध्यम से नांदेड़ में घातक रूप से घायल कर दिया गया।
- 7 अक्तूबर 1708 को अपनी मृत्यु से पहले, उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का शाश्वत गुरु घोषित किया, जिससे व्यक्तिगत गुरुओं की परंपरा समाप्त हो गई।