सोयाबीन की उच्च उपज देने वाली किस्में | उत्तर प्रदेश | 27 May 2025
चर्चा में क्यों?
खरीफ 2025 सीज़न से पहले, कृषि विभाग ने उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में स्थानीय जलवायु-आधारित कृषि परिस्थितियों के तहत उपज को बेहतर बनाने के लिये कुछ विशेष उच्च-उपज वाली सोयाबीन किस्मों की खेती की सिफ़ारिश की है।
मुख्य बिंदु
- उच्च उपज देने वाली किस्में: इन किस्मों ने बुंदेलखंड क्षेत्र के विशिष्ट वर्षा पैटर्न, मिट्टी के प्रकार और तापमान प्रोफाइल के प्रति उत्कृष्ट अनुकूलनशीलता प्रदर्शित की है।
- उत्तर प्रदेश के लिये विशेष रूप से कोई अतिरिक्त राज्य-विशिष्ट सोयाबीन किस्म अधिसूचित नहीं की गई है।
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क्षेत्रीय परिस्थितियों के अनुरूपता: ये किस्में मध्यम से गहरी काली मिट्टी तथा मानसून-आधारित वर्षा पैटर्न के तहत अच्छी पैदावार देने में सक्षम मानी जाती हैं।
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भारत में सोयाबीन की खेती: वर्तमान में इसकी खेती कुछ प्रमुख राज्यों में केंद्रित है, जो वैश्विक सोयाबीन उत्पादन में लगभग 4% का योगदान देती है।
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प्रमुख सोयाबीन उत्पादक राज्यों में मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात शामिल हैं।
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सोयाबीन की खेती का महत्व:
- जल दक्षता: सोयाबीन को धान की तुलना में काफी कम पानी की आवश्यकता होती है, जिससे यह सीमित जल उपलब्धता वाले क्षेत्रों के लिये अत्यधिक उपयुक्त फसल मानी जाती है।
- आर्थिक लाभ: कम लागत और अच्छी पैदावार के चलते सोयाबीन की खेती से किसानों को धान के समान या उससे बेहतर आय प्राप्त हो सकती है।
- मृदा स्वास्थ्य: एक दलहनी फसल के रूप में सोयाबीन मृदा में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ाती है, जिससे रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता कम हो जाती है।
- फसल विविधीकरण: सोयाबीन को फसल चक्र प्रणालियों जैसे सोयाबीन-गेहूँ, सोयाबीन-मटर-ग्रीष्मकालीन मूंग आदि में प्रभावी रूप से एकीकृत किया जा सकता है, जिससे किसानों को अपनी फसल पद्धति में विविधता लाने और पानी की अधिक खपत वाली धान की खेती पर निर्भरता कम करने में मदद मिलेगी।
- बाज़ार और पोषण मूल्य: सोयाबीन प्रोटीन और तेल दोनों से समृद्ध है, जिससे यह भोजन, पशु आहार और विभिन्न औद्योगिक अनुप्रयोगों के लिये मूल्यवान है।
खरीफ फसलें
- खरीफ फसलें वे फसलें हैं, जो वर्षा ऋतु के दौरान बोई जाती हैं, जो भारत में आमतौर पर जून से सितंबर तक रहती है।
- इन फसलों को उगने के लिये अधिक पानी और गर्म मौसम की आवश्यकता होती है और ये मानसून पर बहुत अधिक निर्भर करती हैं।
- बुवाई का समय: जून से जुलाई (मानसून की शुरुआत में)
- कटाई का समय: अक्तूबर से नवंबर (मानसून का अंत में)
- प्रमुख खरीफ फसलें:
- धान (चावल), मक्का (मकई), मूँगफली, कपास, आदि।
रबी फसलें
- रबी की फसलें सर्दियों के मौसम में अक्तूबर से मार्च तक उगाई जाती हैं।
- ये फसलें आमतौर पर मानसून समाप्त होने के बाद बोई जाती हैं और विकास अवधि के दौरान इन्हें ठंडी जलवायु और कटाई के समय गर्म, शुष्क परिस्थितियों की आवश्यकता होती है।
- बुवाई का समय: अक्तूबर से नवंबर
- कटाई का समय: मार्च से अप्रैल
- प्रमुख रबी फसलें: गेहूँ, चना, मटर, सरसों, अलसी, आदि।
प्रोजेक्ट अलंकार | उत्तर प्रदेश | 27 May 2025
चर्चा में क्यों?
नई दिल्ली में प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित बैठक के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार की शैक्षिक सुधार पहल 'प्रोजेक्ट अलंकार' की व्यापक रूप से सराहना की गई।
मुख्य बिंदु
- प्रोजेक्ट अलंकार के बारे में:
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इसे 1 अक्तूबर 2021 को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा लॉन्च किया गया था।
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इसका लक्ष्य 2,441 सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में 35 बुनियादी ढाँचे और सुविधा मानदंडों का 100% अनुपालन सुनिश्चित करना है।
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इसका प्राथमिक लक्ष्य राज्य के विद्यार्थियों के लिये अधिक अनुकूल, समावेशी और आधुनिक शिक्षण वातावरण तैयार करना है।
- विशेषताएँ:
- नवनिर्मित कक्षाओं, विज्ञान प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों, कंप्यूटर प्रयोगशालाओं और स्मार्ट कक्षाओं सहित भौतिक बुनियादी ढाँचे का उन्नयन।
- स्वच्छ पेयजल और स्वच्छ शौचालय जैसी आवश्यक सुविधाओं का प्रावधान, विशेष रूप से लड़कियों की स्वच्छता सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करना।
- योजना के अंतर्गत विशिष्ट विद्यालयों का विकास:
- मुख्यमंत्री आदर्श विद्यालय (प्री-प्राइमरी से कक्षा 12 तक) और मुख्यमंत्री अभ्युदय विद्यालय (प्री-प्राइमरी से कक्षा 8 तक) भी विकसित किये जा रहे हैं।
- इन स्कूलों में विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) प्रयोगशालाएँ, कंप्यूटर प्रयोगशालाएँ आदि सहित अत्याधुनिक सुविधाएँ हैं।
- प्रत्येक अभ्युदय स्कूल में 450 विद्यार्थियों की क्षमता है तथा विकास के लिये 1.42 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
- 7 ज़िलों में 141 संस्कृत विद्यालयों का नवीनीकरण और आधुनिकीकरण, उनके पुनरुद्धार के लिये 14.94 करोड़ रुपए की समर्पित निधि।
- वित्तपोषण और कार्यान्वयन:
- प्रोजेक्ट अलंकार के वित्तपोषण स्रोतों में राज्य सरकार, समग्र शिक्षा अभियान, ग्राम पंचायतें, शहरी स्थानीय निकाय, कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (CSR) योगदान और स्वैच्छिक दान शामिल हैं।
- कार्यान्वयन की कड़ी निगरानी ज़िला मजिस्ट्रेटों की अध्यक्षता वाली ज़िला स्तरीय समितियों द्वारा की जाती है तथा राज्य शिक्षा निदेशक इसकी देखरेख करते हैं।
- प्रभाव और परिणाम:
- वार्षिक शिक्षा स्थिति रिपोर्ट (ASER) 2024 के अनुसार, वर्ष 2022-23 और 2024-25 के बीच सरकारी माध्यमिक विद्यालयों में नामांकन में 23% की वृद्धि हुई।
- प्राथमिक विद्यालय में उपस्थिति (कक्षा 1-5) वर्ष 2010 से 2024 तक 11.5% बढ़ी, जबकि उच्च प्राथमिक उपस्थिति (कक्षा 6-8) वर्ष 2018 और 2024 के बीच 9.6% बढ़ी - जो देश में सबसे अधिक है।
- स्कूल पुस्तकालयों के उपयोग में 55.2% की वृद्धि हुई तथा बालिकाओं की शौचालय सुविधाओं तक पहुँच में 54.4% सुधार हुआ, जो बेहतर स्वच्छता और शिक्षण सहायता को दर्शाता है।
समग्र शिक्षा अभियान
- परिचय: केंद्रीय बजट 2018-19 में प्रस्तुत, समग्र शिक्षा एक व्यापक कार्यक्रम है जिसके अंतर्गत समान शिक्षण परिणाम सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्री-नर्सरी से बारहवीं कक्षा तक के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है।
- प्रमुख विशेषताएँ:
- योजनाओं का एकीकरण: इसमें पहले की तीन योजनाएँ सम्मिलित हैं:
- सर्व शिक्षा अभियान (SSA): सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा पर केंद्रित।
- राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (RMSA): इसका उद्देश्य माध्यमिक शिक्षा है।
- शिक्षक शिक्षा (TE): शिक्षकों के प्रशिक्षण पर केंद्रित।
- क्षेत्र-व्यापी विकास दृष्टिकोण: इस अभियान के अंतर्गत खंडित परियोजना-आधारित उद्देश्यों के स्थान पर सभी स्तरों (राज्य, ज़िला और उप-ज़िला) पर कार्यान्वयन को सुव्यवस्थित किया गया है।
- सतत् विकास लक्ष्यों के साथ संरेखण: लैंगिक असमानताओं को समाप्त करते हुए और सुभेद्य समूहों (SDG 4.1) के लिये पहुँच सुनिश्चित करते हुए निःशुल्क, समान और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित की जाती है (SDG 4.5)।
- कार्यान्वयन: यह केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) है, जिसका कार्यान्वयन राज्य/संघ राज्य क्षेत्र स्तर पर एकल राज्य कार्यान्वयन सोसायटी (SIS) के माध्यम से किया जाता है।
- SIS एक राज्य-पंजीकृत निकाय है जो CSS और विकास कार्यक्रमों का क्रियान्वन करता है।