केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान | राजस्थान | 27 May 2025
चर्चा में क्यों?
राजस्थान में केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान, जिसे 'पक्षियों का स्वर्ग' कहा जाता है, अब कछुओं के लिये एक महत्त्वपूर्ण अभयारण्य के रूप में उभर रहा है।
- यहाँ राज्य में पाई जाने वाली 10 में से 8 कछुआ प्रजातियाँ संरक्षित हैं, जिससे यह क्षेत्र कछुओं के लिये सबसे समृद्ध आवासों में से एक बन गया है।
मुख्य बिंदु
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान के बारे में:
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान राजस्थान के भरतपुर में स्थित एक आर्द्रभूमि और पक्षी अभयारण्य है। यह यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और दुनिया के सबसे महत्त्वपूर्ण पक्षी विहारों में से एक है।
- यह अपनी समृद्ध पक्षी विविधता और जल पक्षियों की बहुलता के लिये प्रसिद्ध है। यह उद्यान पक्षियों की 365 से अधिक प्रजातियों का घर है, जिसमें कई दुर्लभ और संकटग्रस्त प्रजातियाँ शामिल हैं, जैसे कि साइबेरियाई क्रेन।
- उत्तरी गोलार्द्ध के दूर-दराज़ के क्षेत्रों से विभिन्न प्रजातियाँ प्रजनन हेतु अभयारण्य में आती हैं। साइबेरियन क्रेन उन दुर्लभ प्रजातियों में से एक है जिसे यहाँ देखा जा सकता है।
- जीव-जंतु:
- इस क्षेत्र में सियार, सांभर, नीलगाय, जंगली बिल्लियाँ, लकड़बग्घे, जंगली सूअर, साही और नेवला जैसे जानवर देखे जा सकते हैं।
- वनस्पति वर्ग:
- प्रमुख वनस्पति प्रकार उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन हैं जो शुष्क घास के मैदान के साथ मिश्रित बबूल निलोटिका प्रभुत्त्व वाले क्षेत्र हैं।
- नदियाँ:
- गंभीर और बाणगंगा दो नदियाँ हैं, जो इस राष्ट्रीय उद्यान से होकर बहती हैं।
- कछुओं के आवास के लिये आदर्श परिस्थितियाँ:
- उद्यान के भीतर जल निकायों, वन आवरण और भूमि का अनूठा मिश्रण कछुओं के लिये एक आदर्श पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करता है।
- गहरे तालाब, दलदली क्षेत्र और घनी वनस्पति कछुओं के अवास बनाने, भोजन की तलाश और प्रजनन के लिये अनुकूलतम परिस्थितियाँ प्रदान करते हैं।
- केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान में पाई जाने वाली कछुआ प्रजातियाँ:
- यह उद्यान सैकड़ों कछुओं का घर है, जिनमें से कई कछुओं की आयु 200 वर्ष से भी अधिक मानी जाती है।
- ये प्राचीन सरीसृप उद्यान की पारिस्थितिक और सांस्कृतिक समृद्धि में वृद्धि करते हैं।
- विविध प्रजातियों में से भारतीय सॉफ्टशेल कछुआ विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- तालाबों और नदियों में पनपने वाला यह जलीय जंतुओं और पौधों का भक्षण करके जलीय स्वास्थ्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह प्राकृतिक सफाई जल निकायों को शुद्ध करने और पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।
- क्राउंड रिवर टर्टल, एक शाकाहारी प्रजाति है, जिसके चेहरे पर पीले-नारंगी धारियाँ होती हैं, यह उद्यान की जैवविविधता में वृद्धि करती है।
- अन्य दुर्लभ प्रजातियों में शामिल हैं:
- भारतीय फ्लैपशेल कछुआ
- भारतीय तंबू (Tent) कछुआ
- भारतीय सितारा (star) कछुआ
भारतीय सॉफ्टशेल कछुआ (गंगा सॉफ्टशेल कछुआ)
- परिचय:
- भारतीय सॉफ्टशेल कछुआ, जिसे गंगा सॉफ्टशेल कछुआ भी कहा जाता है, उत्तरी और पूर्वी भारत की नदियों में पाई जाने वाली एक ताज़े पानी की प्रजाति है।
- यह ट्रियोनीचिडे परिवार से संबंधित है, जो कठोर शल्कों के स्थान पर लचीले, चमड़े जैसे खोल वाले कछुओं के लिये जाना जाता है।
- प्राकृतिक आवास:
- यह प्रजाति मुख्यतः गंगा, सिंधु और महानदी जैसी प्रमुख नदियों में निवास करती है।
- यह झीलों, तालाबों, नहरों और अन्य ताज़े पानी के निकायों में भी पाया जाता है।
- विशेषताएँ:
- कछुए का कवच (ऊपरी खोल) चिकना, अंडाकार अथवा गोलाकार होता है।
- इसका कवच आमतौर पर जैतून या हरे रंग का दिखाई देता है, जिसके किनारे पर अक्सर पीला रंग होता है।
- संरक्षण की स्थिति:
- भारत में अन्य उल्लेखनीय सॉफ्टशेल कछुए:
- लीथ का सॉफ्टशेल कछुआ: प्रायद्वीपीय भारत का स्थानिक और गंभीर रूप से संकटग्रस्त के रूप में वर्गीकृत।
- मोर सॉफ्टशेल कछुआ: यह लुप्तप्राय प्रजातियों की सूची में शामिल है तथा पूर्वोत्तर भारत और बांग्लादेश के तालाबों और मंदिर जलाशयों में पाया जाता है।
आना सागर झील के निकट वेटलैंड्स को मंजूरी | राजस्थान | 27 May 2025
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने अजमेर के निकट दो नए आद्रभूमि विकसित करने के राजस्थान सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसका उद्देश्य आनासागर झील के आसपास सतत् शहरी विकास सुनिश्चित करते हुए पारिस्थितिक संतुलन बहाल करना है।
आना सागर झील
- अजमेर में स्थित यह एक कृत्रिम झील है, जिसका निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पिता अरुणोराज या आणाजी चौहान ने बारहवीं शताब्दी के मध्य (1135-1150 ईस्वी) करवाया था।
- आणाजी द्वारा निर्मित कराए जाने के कारण ही इस झील का नाम आणा सागर या आना सागर पड़ा।
- आना सागर झील का विस्तार लगभग 13 किमी. की परिधि में फैला हुआ है।
- बाद में, मुगल शासक जहाँगीर ने झील के प्रांगण में दौलत बाग का निर्माण कराया,जिसे सुभाष उद्यान के नाम से भी जाना जाता है।
- शाहजहाँ ने 1637 ईस्वी में इसके आसपास संगमरमर की बारादरी (पवेलियन) का निर्माण कराया, जो झील की सुंदरता को और बढ़ाता है।
मुख्य बिंदु
- पृष्ठभूमि:
- आना सागर झील, जो अजमेर की एक महत्त्वपूर्ण शहरी जल निकाय है, अनियंत्रित विकास और इसके आसपास की मानव गतिविधियों के कारण पर्यावरणीय क्षरण का सामना कर रही है।
- इससे पहले राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने झील की हरित परिधि में बने कई अवैध निर्माणों, जिनमें सेवन वंडर्स की प्रतिकृति भी शामिल है, को हटाने का निर्देश दिया था, ताकि झील की पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा की जा सके।
- प्रस्तावित आर्द्रभूमि के स्थान:
- आना सागर के जलग्रहण क्षेत्र के बाहर दो आर्द्रभूमि का निर्माण किया जाएगा: हाथी-खेड़ा के पास फॉय सागर (वरुण सागर) एक्सटेंशन में 12 हेक्टेयर आर्द्रभूमि और तबीजी-1 में 10 हेक्टेयर आर्द्रभूमि।
- इन आर्द्रभूमियों का उद्देश्य क्षेत्र में जल संरक्षण क्षमता, जैवविविधता और पर्यावरणीय स्वास्थ्य में सुधार करना है।
- वैज्ञानिक समीक्षा और पर्यावरण मूल्यांकन:
आर्द्रभूमि
- आर्द्रभूमि को दलदल, दलदली भूमि, पीटलैंड या जल (प्राकृतिक या कृत्रिम) के क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया जाता है, जिसमें पानी स्थिर या बहता रहता है, जिसमें छह मीटर से अधिक गहराई वाले समुद्री क्षेत्र भी शामिल हैं।
- आर्द्रभूमियाँ इकोटोन होती हैं, जिनमें स्थलीय और जलीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच संक्रमणकालीन भूमि होती है।
- आर्द्रभूमि का महत्त्व:
- प्राकृतिक जल शुद्धिकर्ता: आर्द्रभूमियाँ (wetlands) प्राकृतिक जल फिल्टर के रूप में कार्य करती हैं, जो गाद को रोकती हैं, प्रदूषकों को विघटित करती हैं और अतिरिक्त पोषक तत्त्वों को अवशोषित करती हैं।
- बाढ़ नियंत्रण: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) के अनुसार आर्द्रभूमियाँ अतिरिक्त जल को अवशोषित और संगृहीत करती हैं, जिससे बाढ़ के जोखिम में लगभग 60% तक कमी आती है और घरों व बुनियादी ढाँचे की सुरक्षा होती है।
- वन्यजीवों का आवास: स्पेस एप्लीकेशंस सेंटर (SAC) के अनुसार आर्द्रभूमियाँ पृथ्वी की सतह का केवल 6% हिस्सा घेरती हैं, फिर भी ये वैश्विक स्तर पर 40% से अधिक प्रजातियों, जिनमें सरस क्रेन जैसी संकटग्रस्त प्रजातियाँ भी शामिल हैं, को संरक्षण प्रदान करती हैं।
- कार्बन अवशोषण (Carbon Sequestration): आर्द्रभूमियों की मिट्टी और वनस्पति में महत्त्वपूर्ण मात्रा में कार्बन संगृहीत होता है। भारतीय जलवायु परिवर्तन मूल्यांकन नेटवर्क (INCCA) के अनुसार, आर्द्रभूमियों का पुनरुद्धार भारत के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण कदम है, जो कार्बन अवशोषण, स्वच्छ जल और बाढ़ जोखिम में कमी को संभव बनाता है।