विश्व कछुआ दिवस 2025: उत्तर प्रदेश के कछुआ संरक्षण प्रयास | उत्तर प्रदेश | 24 May 2025
चर्चा में क्यों?
23 मई, 2025 को विश्व कछुआ दिवस के रूप में मनाया गया, जिसका उद्देश्य कछुओं के पारिस्थितिक महत्त्व और संरक्षण के बारे में जागरूकता बढ़ाना है और उत्तर प्रदेश भारत में कछुआ संरक्षण के क्षेत्र में अग्रणी राज्य के रूप में उभरा।
मुख्य बिंदु
- भारत में कछुआ प्रजातियाँ:
- भारत में 30 प्रकार की मीठे पानी की कछुआ प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 26 प्रजातियाँ वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची-I में सूचीबद्ध हैं।
- इसके अतिरिक्त, भारत में 5 समुद्री कछुआ प्रजातियाँ भी पाई जाती हैं — ऑलिव रिडले ग्रीन, लॉगरहेड, हॉक्सबिल और लेदरबैक, जो सभी WPA, 1972 की अनुसूची-I के अंतर्गत संरक्षित हैं।
- उत्तर प्रदेश में प्रजातियाँ:
- भारत में पाई जाने वाली 30 कछुआ प्रजातियों में से 15 प्रजातियाँ उत्तर प्रदेश में पाई जाती हैं, जिनमें शामिल हैं- ब्राह्मणी, पाछेड़ा, कोरी पाछेड़ा, कालीतोह, काला कछुआ, हल्दी बाथ कछुआ, साल कछुआ तिलकधारी, धोर कछुआ, भूतकथा कछुआ, पहाड़ी त्रिकुटकी कछुआ, सुंदरी कछुआ, मोरपंखी कछुआ, कटहवा लिथरहवा, स्योंतर फाइटर, पार्वती कछुआ आदि।
- उत्तर प्रदेश के संरक्षण प्रयास:
- सारनाथ कछुआ प्रजनन एवं पुनर्वास केंद्र, जिसे वर्ष 2017 में पुनर्निर्मित और पुनर्विकसित किया गया था, ने वर्ष 2017 से 2025 के बीच 3,298 कछुओं का संरक्षण कर उन्हें वाराणसी में गंगा नदी में छोड़ा, जिससे नदी की पारिस्थितिकी को स्वस्थ बनाए रखने में सहायता मिली।
- वर्ष 2017 से 'नमामि गंगे' कार्यक्रम के अंतर्गत कछुआ पुनर्वास केंद्र को शामिल किये जाने के बाद से कछुओं की तस्करी में भी उल्लेखनीय कमी आई है।
- कुकरेल, सारनाथ एवं चंबल सहित कई अन्य कछुआ संरक्षण केंद्र भी स्थापित किये गए हैं।
- नमामि गंगे कार्यक्रम के अंतर्गत 2020 में प्रयागराज के निकट एक कछुआ अभयारण्य की स्थापना की गई।
- यह अभयारण्य गंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र और तटीय इलाकों के 30 किमी क्षेत्र को कवर करता है। यह तीन ज़िलों– प्रयागराज के कोठारी मेजा से प्रारम्भ होकर, मिर्ज़ापुर और भदोही से होते हुए उपरवार तक विस्तृत है।
कछुओं की अवैध तस्करी पर अंकुश लगाने के लिये पीटीआर की योजना
- विश्व कछुआ दिवस 2025 के अवसर पर पिलीभीत टाइगर रिज़र्व (PTR) में अवैध कछुआ तस्करी पर अंकुश, वैज्ञानिक संरक्षण को प्रोत्साहन तथा प्राकृतिक आवासों के पुनर्स्थापन हेतु एक दीर्घकालिक रणनीतिक योजना की घोषणा की गई।
- मीठे पानी के कछुओं की तस्करी प्रायः चीन, इंडोनेशिया, मलेशिया, ताइवान एवं थाईलैंड जैसे देशों में की जाती है, जहाँ इनका उपयोग पारंपरिक औषधियों, मांस, अंडों, यहाँ तक कि रक्त के उपभोग हेतु होता है।
- वन्य जीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो (WCCB) द्वारा वर्ष 2018 में चलाए गए ऑपरेशन सेव कूर्मा (Operation Save Kurma) के दौरान पिलीभीत-खीरी क्षेत्र को उत्तर प्रदेश के पाँच सबसे संवेदनशील कछुआ तस्करी क्षेत्रों में शामिल किया गया था।
- उत्तर प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल के बाद कछुआ विविधता में तीसरे स्थान पर है, जहाँ की नदियों, झीलों, शारदा सागर बाँध एवं अन्य जल निकायों में पाई जाने वाली 15 प्रजातियों में से 13 प्रजातियाँ पिलीभीत में पाई जाती हैं।
- इस रणनीति के तहत, पहचान किये गए कछुआ तस्करों का पुनर्वास कर उन्हें सरकारी अनुदानित मत्स्य पालन (पिसीकल्चर) योजनाओं से जोड़ा जाएगा, ताकि उन्हें एक सतत् आजीविका का विकल्प प्रदान किया जा सके। यह उत्तर प्रदेश में अपनी तरह की पहली पहल है।
- इसके अतिरिक्त, माला नदी के तट पर CAMPA निधि से एक कछुआ संरक्षण एवं अनुसंधान केंद्र की स्थापना की जा रही है।
कछुए
- परिचय: कछुए (Order Testudines) सरीसृप हैं जो अपनी पसलियों (Ribs) से विकसित एक उपास्थिल कवच (Cartilaginous Shell) द्वारा पहचाने जाते हैं, जो एक सुरक्षा कवच का निर्माण करता है।
- अन्य कवचधारी प्राणियों के विपरीत कछुए अपने कवच को न तो त्याग सकते हैं और न ही उससे बाहर आ सकते हैं, क्योंकि यह उनके कंकाल (Skeleton) का अभिन्न अंग है।
- निवास स्थान: कछुए स्वच्छ जल और समुद्री (लवणीय) दोनों वातावरणों में रह सकते हैं।
- टॉर्टोइस से भिन्नता: टॉर्टोइस (Tortoises) अन्य कछुओं से मुख्य रूप से इस कारण भिन्न होते हैं कि वे पूर्णतः स्थलीय होते हैं, जबकि कछुओं की कई प्रजातियाँ आंशिक रूप से जलीय होती हैं।
- हालाँकि सभी टॉर्टोइस कछुए हैं, लेकिन सभी कछुए टॉर्टोइस नहीं हैं।
- दोनों आम तौर पर शर्मीले, एकांतप्रिय जानवर हैं जो भूमि पर घोंसलों का निर्माण कर अपने अंडों को सुरक्षित रखते है।
- प्रमुख विशेषताएँ: कछुए असमतापी (बाह्यउष्मीय) प्रजाति हैं, अर्थात वे उष्ण और शीत वातावरण के बीच विचरण करके अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित कर सकते हैं।
- अन्य बाह्यतापी जीवों जैसे कि कीट, मत्स्य और उभयचरों की तरह, इनमें धीमी चयापचय क्रिया होती है तथा ये भोजन या जल के बिना भी लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं।
- उत्तर प्रदेश में कटहवा, मोरपंखी, साल और सुंदरी जैसी कछुआ प्रजातियाँ बढ़ते प्रदूषण संकट के बीच जल निकायों को स्वच्छ और पारिस्थितिक रूप से संतुलित बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती हैं।
- महत्त्व:
- कछुए पृथ्वी पर पाए जाने वाले सबसे प्राचीन और दीर्घायु जीवों में गिने जाते हैं, जो जलीय पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। इन्हें प्रायः "जल निकायों के क्लीनर" के रूप में जाना जाता है, क्योंकि ये नदियों, तालाबों और झीलों में प्रदूषण नियंत्रण में सहायता करते हैं और पारिस्थितिकीय स्वास्थ्य को बनाए रखते हैं।
ऑपरेशन सेव कुर्मा
- कछुओं के व्यावसायिक शोषण पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से वर्ष 2016 में "ऑपरेशन सेव कूर्मा" शुरू किया गया।
- यह अभियान विशेष रूप से शिकार, परिवहन और जीवित कछुओं के अवैध व्यापार से जुड़े प्रमुख राज्यों पर केंद्रित था।
- इस अभियान में 10 राज्य शामिल थे — उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल।