छतरपुर ब्रुअरी से विषाक्त अपशिष्ट के निस्तारण की जाँच हेतु NGT ने आदेश जारी किये | मध्य प्रदेश | 22 Oct 2025
चर्चा में क्यों?
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने मध्य प्रदेश के छतरपुर में एक ब्रुअरी के विरुद्ध स्वत: संज्ञान (suo motu) कार्रवाई शुरू की है। यह कार्रवाई उस पर पर्यावरणीय क्षति और विषाक्त अपशिष्ट जल के उत्सर्जन के कारण जनस्वास्थ्य पर गंभीर खतरे उत्पन्न करने के गंभीर आरोपों के मद्देनज़र की गई है।
मुख्य बिंदु
- पर्यावरणीय प्रदूषण: ब्रुअरी से निकले रासायनिक अपशिष्ट ने एक किलोमीटर तक के जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया है और पाँच किलोमीटर के दायरे में फैली तीव्र दुर्गंध से दर्जनों गाँवों के लोगों को प्रभावित किया है।
- गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव: स्थानीय निवासियों ने गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं की शिकायत की है, जैसे सिरदर्द, आँखों में जलन, श्वसन संबंधी कठिनाइयाँ और वमन (उल्टी होना)। प्रदूषित जल और वायु के कारण दीर्घकालीन जोखिमों में किडनी रोग और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ शामिल हैं।
- NGT की न्यायिक प्रतिक्रिया: NGT की एक पीठ ने छतरपुर के ज़िला कलेक्टर और मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) को शामिल करते हुए एक संयुक्त समिति गठित की है, जो जाँच कर छह सप्ताह के भीतर कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
राष्ट्रीय हरित अधिकरण
- उत्पत्ति: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (National Green Tribunal- NGT) की स्थापना NGT अधिनियम, 2010 के तहत की गई थी, ताकि पर्यावरणीय मामलों में न्यायिक निर्णय लिया जा सके और पर्यावरण संरक्षण एवं संरक्षण से संबंधित विवादों का प्रभावी और त्वरित निपटारा सुनिश्चित किया जा सके।
- अधिकार: अधिकरण को सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल न्यायालय के समान अधिकार प्राप्त हैं। हालाँकि, यह सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 या भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 से आबंधित नहीं है और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के आधार पर कार्य करता है।
- सदस्य: NGT के सदस्य पाँच वर्षों की अवधि के लिये या 65 वर्ष की आयु तक पद पर रहते हैं और उन्हें पुनः नियुक्ति का अधिकार नहीं है।
- पात्रता: NGT के अध्यक्ष के लिये आवश्यक है कि वह या तो सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश हो या किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश हो।

पटना उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश | बिहार | 22 Oct 2025
चर्चा में क्यों?
मुख्य न्यायाधीश पवनकुमार भीमप्पा बजंथरी की सेवानिवृत्ति के बाद, न्यायमूर्ति श्री सुधीर सिंह को कॉलेजियम प्रणाली द्वारा पटना उच्च न्यायालय का कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया है।
- अनुच्छेद 223 के अनुसार, जब किसी उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हों या अपने कर्त्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हों, तो राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वे उस उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त कर सकें।
कोलेजियम प्रणाली
- परिचय: कोलेजियम प्रणाली भारत में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और स्थानांतरण का तरीका है। यह सीधे संविधान से उत्पन्न नहीं हुई, बल्कि सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णयों, जैसे तीन न्यायाधीशों के मामलों (थ्री जजेस केस) से विकसित हुई है।
- विकास:
- प्रथम न्यायाधीश मामला (1981): सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि अनुच्छेद 124(2) और 217 में उल्लिखित परामर्श का अर्थ सहमति नहीं है, जिससे न्यायिक नियुक्तियों में कार्यकारी (Executive) को प्राथमिकता मिलती है।
- द्वितीय न्यायाधीश मामला (1993): सर्वोच्च न्यायालय ने पहले के निर्णय को पलटते हुए कहा कि न्यायाधीशों की नियुक्तियों में मुख्य न्यायाधीश (CJI) की सलाह राष्ट्रपति के लिये बाध्यकारी होती है। इस प्रक्रिया में CJI को दो वरिष्ठतम न्यायाधीशों से परामर्श करना आवश्यक है। इस निर्णय के परिणामस्वरूप कोलेजियम प्रणाली का गठन हुआ।
- तृतीय न्यायाधीश मामला (1998): सर्वोच्च न्यायालय ने कोलेजियम प्रणाली का विस्तार करते हुए इसे मुख्य न्यायाधीश (CJI) और चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों तक बढ़ाया। उच्च न्यायालयों के लिये कोलेजियम में मुख्य न्यायाधीश और दो वरिष्ठतम न्यायाधीश शामिल होते हैं। सरकार आपत्ति दर्ज करा सकती है, लेकिन यदि कोलेजियम पुनः नियुक्ति की अनुशंसा करता है, तो उसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं।
- राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC): 99वें संविधान संशोधन अधिनियम के तहत प्रस्तावित एक संवैधानिक निकाय था। इसका उद्देश्य कोलेजियम प्रणाली की जगह पारदर्शी और योग्यता-आधारित प्रक्रिया को लागू करना था।
- चतुर्थ न्यायाधीश मामला (2015)- सर्वोच्च न्यायालय एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ में, सर्वोच्च न्यायालय ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया, क्योंकि इसमें कार्यकारी की अत्यधिक भागीदारी थी और यह न्यायिक स्वतंत्रता के लिये खतरा था।
भावांतर योजना | मध्य प्रदेश | 22 Oct 2025
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश में ‘भावांतर’ योजना में किसान पंजीकरण में तीन गुना वृद्धि देखी गई है, जो 9.36 लाख तक पहुँच गई है, जो सरकार की मूल्य संरक्षण पहल में सुदृढ़ भागीदारी और विश्वास को दर्शाता है।
मुख्य बिंदु
- परिचय: भावांतर योजना एक मूल्य घाटा भुगतान योजना है जिसका उद्देश्य किसानों को वित्तीय नुकसान से बचाने के लिये बाज़ार मूल्यों और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के बीच के अंतर को पाटना है।
- यह योजना विशेष रूप से मध्य प्रदेश के सोयाबीन और बाजरा किसानों को लक्षित करती है, जिसे अक्सर देश का "सोयाबीन का कटोरा" कहा जाता है।
- प्रक्रिया: किसानों को बोआई से पहले अपनी व्यक्तिगत जानकारी और फसल क्षेत्र का विवरण राज्य प्राधिकरणों के साथ पंजीकृत करना होता है तथा अपनी उपज को सरकारी अधिसूचित मंडियों में बेचना अनिवार्य होता है।
- सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)/ मॉडल प्राइस तय करती है और औसत बाज़ार मूल्यों के आधार पर एक मॉडल दर (Model Rate) की गणना करती है। इसके साथ ही किसान द्वारा प्राप्त वास्तविक बिक्री मूल्य को दर्ज किया जाता है।
- प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) उस अंतर के बराबर होता है, जो MSP/मॉडल प्राइस या मॉडल दर (इनमें से जो अधिक हो) और किसान के वास्तविक बिक्री मूल्य के बीच होता है। यह राशि सीधे किसान के बैंक खाते में जमा की जाती है।
- लाभ:
- मूल्य जोखिम से सुरक्षा: किसानों को बाज़ार में मूल्य उतार-चढ़ाव से बचाव प्रदान करती है और उन्हें उचित मूल्य सुनिश्चित करती है।
- राजकोषीय भार में कमी: इस योजना से खरीद, भंडारण और परिवहन पर होने वाले खर्चों से बचाव होता है।
- बाज़ार स्वतंत्रता को प्रोत्साहन: किसान अधिसूचित मंडियों में किसी भी खरीदार को अपनी उपज बेच सकते हैं।
- पारदर्शिता: प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) प्रणाली के माध्यम से भुगतान सीधे और समय पर किसानों को मिलता है, जिससे भ्रष्टाचार की संभावना घटती है
- चुनौतियाँ:
- क्रियान्वयन संबंधी बाधाएँ: पंजीकरण, भुगतान में विलंब और तकनीक संबंधी कमियाँ योजना के सुचारु संचालन में बाधा उत्पन्न करती हैं।
- डेटा की सटीकता: मॉडल दर (Model Rate) वास्तविक बाज़ार मूल्यों को सही रूप से प्रदर्शित नहीं कर पाती, जिससे किसानों को पर्याप्त मुआवज़ा नहीं मिल पाता।
- व्यापारी मिलीभगत: मंडी व्यापारियों द्वारा कीमतें जानबूझकर कम रखने की आशंका बनी रहती है।
- सीमित फसल कवरेज: यह योजना प्रायः केवल कुछ तेलबीजों और दलहनों तक ही सीमित रहती है।
सोयाबीन (ग्लाइसिन मैक्स)
- परिचय: सोयाबीन एक प्रमुख फसल है, जिसे तेल और प्रोटीन के लिये उगाया जाता है। विश्व स्तर पर इसका उत्पादन लगभग 176.6 मिलियन टन है, जो 75.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में किया जाता है।
- उगाने की परिस्थितियाँ: सोयाबीन मुख्यतः वर्षा आधारित (रेनफेड) परिस्थितियों में उगाई जाती है, हालाँकि हाल के वर्षों में पूरक सिंचाई का उपयोग भी बढ़ा है।
- यह फसल उष्णकटिबंधीय, उपोष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जलवायु के लिये उपयुक्त है, 35°C से अधिक या 18°C से कम तापमान पर इसकी वृद्धि धीमी पड़ जाती है।
- मुख्य उत्पादक: भारत में सोयाबीन के प्रमुख उत्पादक राज्य मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान हैं।
वैश्विक स्तर पर सोयाबीन के शीर्ष उत्पादक देश ब्राज़ील, संयुक्त राज्य अमेरिका (अमेरिका) और अर्जेंटीना हैं।