भारत के 86 वें ग्रैंडमास्टर | उत्तर प्रदेश | 20 May 2025
चर्चा में क्यों?
तमिलनाडु के श्रीहरि LR संयुक्त अरब अमीरात के अल ऐन में एशियाई व्यक्तिगत पुरुष शतरंज चैंपियनशिप 2025 में भारत के 86वें ग्रैंडमास्टर (GM) बने।
मुख्य बिंदु
- श्रीहरि LR के बारे में:
- श्रीहरि ने अपना पहला GM नॉर्म वर्ष 2023 में कतर मास्टर्स में और दूसरा वर्ष 2024 में चेन्नई GM ओपन में अर्जित किया।
- उन्होंने अगस्त 2024 में 2500 एलो रेटिंग पार कर ली, लेकिन अंतिम मानदंड प्राप्त करने में उन्हें लगभग 10 महीने लग गए।
- एलो रेटिंग प्रणाली कुछ खेलों, जैसे शतरंज, में अन्य खिलाड़ियों की तुलना में किसी खिलाड़ी की सापेक्षिक शक्ति को मापती है।
- भारत के ग्रैंडमास्टर्स:
- पहले भारतीय ग्रैंडमास्टर विश्वनाथन आनंद थे, जिन्होंने वर्ष 1988 में यह खिताब जीता था।
- पहली भारतीय महिला ग्रैंडमास्टर कोनेरू हंपी थीं, जिन्होंने वर्ष 2002 में 15 वर्ष की आयु में यह खिताब जीता था। उस समय वह दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला ग्रैंडमास्टर बनी थीं।
- वर्तमान में भारत में तीन महिला ग्रैंडमास्टर हैं: कोनेरू हंपी, द्रोणावल्ली हरिका और आर. वैशाली।
- प्रथम भारतीय अंतर्राष्ट्रीय मास्टर मैनुअल एरॉन वर्ष 1961 में बने थे तथा अंतर्राष्ट्रीय मास्टर का खिताब जीतने वाली प्रथम भारतीय महिला जयश्री खादिकर वर्ष 1979 में बनी थीं।
अंतर्राष्ट्रीय शतरंज महासंघ (FIDE)
- परिचय:
- FIDE शतरंज के खेल के लिये एक वैश्विक नियामक संस्था है।
- इसकी स्थापना वर्ष 1924 में पेरिस, फ्राँस में हुई थी।
- इसका मुख्यालय लॉज़ेन, स्विटज़रलैंड में है।
- यह सभी अंतर्राष्ट्रीय शतरंज प्रतियोगिताओं की देखरेख और उनको विनियमित करता है।
- एक गैर-सरकारी संस्था के रूप में स्थापित, FIDE को वर्ष 1999 में अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (IOC) द्वारा आधिकारिक तौर पर वैश्विक खेल संगठन के रूप में मान्यता दी गई थी।
- FIDE का आदर्श वाक्य:
- "जेन्स ऊना सुमस"- लैटिन में इसका अर्थ है "हम एक परिवार हैं ", जो वैश्विक शतरंज समुदाय में एकता पर ज़ोर देता है।
- FIDE की मुख्य गतिविधियाँ:
- शीर्ष 10 समग्र खिलाड़ियों और शीर्ष 10 महिला खिलाड़ियों की औसत रेटिंग के आधार पर देश की रैंकिंग जारी करता है।
- सभी अंतर्राष्ट्रीय शतरंज टूर्नामेंटों के नियमों, मानदंडों और आचरण को नियंत्रित करता है।
- यह विश्व के राष्ट्रीय शतरंज महासंघों को जोड़ने वाले एक केंद्रीय मंच के रूप में कार्य करता है।
https://www.youtube.com/watch?v=GPRHCybWNEI
शाही जामा मस्जिद विवाद एवं पूजा स्थल अधिनियम 1991 | उत्तर प्रदेश | 20 May 2025
चर्चा में क्यों?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के संभल ज़िले में शाही जामा मस्जिद का सर्वेक्षण करने के लिये एडवोकेट कमिश्नर नियुक्त करने के ट्रायल कोर्ट के निर्णय को बरकरार रखा।
मुख्य बिंदु
शाही जामा मस्जिद विवाद
- पृष्ठभूमि: यह मामला स्थानीय निवासियों द्वारा संभल अदालत में दायर याचिका से उत्पन्न हुआ, जिसमें दावा किया गया कि यह स्थल मूलतः श्री हरिहर मंदिर था, जिसे कथित तौर पर मुगल सम्राट बाबर ने वर्ष 1529 में ध्वस्त कर दिया था।
- कानूनी स्थिति: शाही जामा मस्जिद प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत एक संरक्षित स्मारक है। इसे भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) द्वारा राष्ट्रीय महत्त्व के स्मारक के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- शाही जामा मस्जिद और उपासना स्थल अधिनियम, 1991: उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 इस विवाद के केंद्र में है।
- अधिनियम में प्रावधान किया गया है कि उपासना स्थलों का धार्मिक स्वरूप, जैसा कि वे 15 अगस्त 1947 को थे, संरक्षित किया जाना चाहिये तथा ऐसे स्थानों की धार्मिक पहचान में किसी भी प्रकार के परिवर्तन पर रोक लगाई गई है।
- शाही जामा मस्जिद विवाद में मस्जिद के धार्मिक स्वरूप को परिवर्तित करने की मांग करके अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती दी गई है।
उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991
- परिचय: उपासना स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का उद्देश्य उपासना स्थलों की धार्मिक स्थिति को संरक्षित रखना तथा विभिन्न धार्मिक संप्रदायों के बीच या एक ही संप्रदाय के भीतर धर्मांतरण को रोकना है।
- इस अधिनियम का उद्देश्य इन स्थानों के धार्मिक चरित्र को स्थिर रखते हुए तथा ऐसे धर्मांतरण से उत्पन्न विवादों को रोककर सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखना है।
- अधिनियम के प्रमुख प्रावधान
- धारा 3: किसी भी उपासना स्थल को, पूर्णतः या आंशिक रूप से, एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे धार्मिक संप्रदाय में परिवर्तित करने पर रोक लगाती है।
- धारा 4(1): यह अनिवार्य करता है कि उपासना स्थल की धार्मिक पहचान 15 अगस्त 1947 की स्थिति से अपरिवर्तित रहनी चाहिये। धार्मिक चरित्र को बदलने का कोई भी प्रयास निषिद्ध है।
- धारा 4(2): यह विधेयक 15 अगस्त 1947 से पहले किसी उपासना स्थल के धार्मिक स्वरूप के परिवर्तन से संबंधित सभी चल रही कानूनी कार्यवाहियों को समाप्त करता है तथा ऐसे स्थानों की धार्मिक स्थिति को चुनौती देने वाले नए मामलों को शुरू करने पर रोक लगाता है।
- धारा 5 (अपवाद): अयोध्या विवाद (बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि), जिसे अधिनियम से छूट दी गई।
- अयोध्या विवाद के अलावा, अधिनियम में निम्नलिखित को भी छूट दी गई है: कोई भी उपासना स्थल जो प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक है, या प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के अंतर्गत आने वाला कोई पुरातात्त्विक स्थल है।
- ऐसे मामले जो पहले ही आपसी समझौते से सुलझा लिये गए हों या निपटा दिये गए हों।
- अधिनियम के लागू होने से पहले हुए धर्मांतरण।
- धारा 6 (दंड): अधिनियम में उल्लंघन के लिये कठोर दंड का प्रावधान किया गया है, जिसमें तीन वर्ष तक का कारावास और उपासना स्थल के धार्मिक चरित्र को बदलने का प्रयास करने पर ज़ुर्माना शामिल है।
भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI)
- ASI केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन कार्य करता है। यह देश की सांस्कृतिक विरासत के पुरातात्त्विक अनुसंधान और संरक्षण के लिये प्रमुख संगठन है।
- यह प्राचीन स्मारक तथा पुरातत्त्व स्थल और अवशेष अधिनियम,1958 के तहत देश के भीतर सभी पुरातात्त्विक उपक्रमों की देख-रेख करता है।
- यह 3,650 से अधिक प्राचीन स्मारकों, पुरातात्त्विक स्थलों और राष्ट्रीय महत्त्व के अवशेषों का प्रबंधन करता है।
- इसकी गतिविधियों में पुरातात्त्विक अवशेषों का सर्वेक्षण करना, पुरातात्त्विक स्थलों की खोज और उत्खनन, संरक्षित स्मारकों का संरक्षण तथा रखरखाव आदि शामिल हैं।
- इसकी स्थापना वर्ष 1861 में ASI के पहले महानिदेशक अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा की गई थी। अलेक्जेंडर कनिंघम को “भारतीय पुरातत्त्व का जनक” भी कहा जाता है।